शनिवार, दिसंबर 30, 2006

हैलो , हैलो, मैं सुंदर चिडिया हूँ...

//भावनाओं में बहकर लेख कुछ ज्यादा लंबा हो गया है कृप्या क्षमा करें//

मम्मी-पापा दोनों आये थे. मई २००४ की बात है. चार महिने मेरे पास रहे. पता ही नहीं चला, कब आये और कब वापस जाने का समय आ गया. बहुत घूमें थे हम सब. कनाड़ा और अमेरीका के अनेकों शहरों में.सितम्बर में जाने से पहले मम्मी एक तोता (बज्जी) खरीद कर मुझे तोहफे में दे गयीं थी. दुकान वाले ने बताया था कि लड़की है तो नामकरण हुआ ऐना. बहुत जल्दी सब से हिल मिल गई. मम्मी के साथ तो दस दिन ही रही और फिर मम्मी पापा भारत लौट गये.वही मेरी और ऐना की आखिरी मुलाकात थी मम्मी से. फिर मेरी पत्नी दो माह बाद ही भारत गई और जिस दिन वह लौटी, मम्मी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. खैर, मेरी बदनसीबी, मैं तो उनकी अंतिम क्रिया के बाद पहूँचा.

इस बीच, पत्नी जब भारत गई थी, तब ऐना की देख रेख की सारी जिम्मेदारी मेरी उपर आ गई. बहुत जल्दी उसने सब सिखना शुरु कर दिया था. उसके मन से इंसानों का डर भी खत्म हो गया था. उसका पिंजड़ा हमेशा खुला रहता था. जब तक मन हो बाहर खेले और फिर अपने आप ही अंदर चली जाती थी. अब तो हम उससे डर कर चलते थे कि कहीं पैर के नीचे न दब जाये मगर उसे हम पर विश्वास था और वह स्वछंद यहाँ वहाँ घुमती थी. काश, हम इंसान भी एक दूसरे पर ऐसा ही भरोसा कर पाते. उसे अपना घंटी लगा खिलौना बहुत पसंद था, हमेशा उससे खेलती. अगर उसे अलग करके दूसरा खिलौना टांग दें तो चीं चीं करके लड़ने लग जाती थी. उसी खिलौने से उसने मुँह से घंटी बजाना सीख लिया था. दिन भर बैठे मुँह से घंटी बजाती रहती. कोई बड़ा ज्ञानी ही जान सकता था कि सच में घंटी बज रही है कि ऐना आवाज निकाल रही है. धीरे धीरे उसके पास ढ़ेरों खिलौनों का आंबार लग गया मगर घंटी वाले खिलौने का मोह उसने कभी नहीं छोड़ा. आज सोचता हूँ तो लगता है हर एक की जिंदगी में एक न एक प्रिय खिलौना जरुर आता है जिसका मोह जिंदगी भर नहीं छूटता, भले आप उससे खेल ना पाये मगर याद रहता है. जैसे हमारे पंकज भाई को उनका पहिये वाला प्लास्टिक का लाल हाथी आज भी याद है. जबकि अब वो २७ साल के हो चले हैं.

उसके आवाज सीख लेने की काबिलयत से प्रभावित हो, मैं उसके लिये एक शीशा खरीद लाया जिसमें आवाज भरने की सुविधा है और जब भी ऐना उसके सामने जाये तो वो बोलता था. मैने उसमें अपनी आवाज में रिकार्ड किया-हैलो , हैलो, मैं सुंदर चिडिया हूँ. ऐना ने बहुत कोशिश की, मगर कभी भी मेरी आवाज कॉपी नहीं कर पाई. लगता है, अपनी आवाज में ही कुछ डिफेक्ट है वरना तो वो घंटी की आवाज सीख ही गई थी.

रात में हमेशा झूले पर चढ़ कर सोती थी. बाकि सारे दिन झूला देखती भी नहीं थी. जब भी घर में किसी को देखती, अपनी खुद की धुन का गाना, चीं चीं आवाज में सुनाती. सोचती थी हमारा दिल बहला रही है, वैसे सच में, बहलाती तो थी. खाने में थोड़ा पिकी थी. हम कोई सा भी लेटेस खा लें, उन्हें फ्रेश रोमन लेटेस (सबसे महंगा) ही खाना है. साधारण वाला लगाकर तो देखो, वो देखे भी न उसकी तरफ. रईसों के बच्चों वाले सारे चोचले पाल लिये थे. हर महिने नया खिलौना, खाने में हाई स्टेन्डर्ड और लड़की थी तो स्वभाविक है, शीशा दिख तो जाये, घंटों खुद को निहारती थी. एक बार शीशा देखे, फिर हमें कि देखो, कितनी सुंदर दिख रही हूँ. सच में बहुत सुंदर थी, दिखने में भी और दिल से भी.

शाम को उसको टीवी देखना बहुत पसंद था, खास कर सिंदूर....., जो ज़ी टीवी पर आता है. उसके टाईटिल गीत में बजते घूंघरु की आवाज पर पूरी तल्लीनता से सुर मिलाकर नाचती थी. हमसे ज्यादा उसे आभास था कि कब आयेगा वो सिरियल. अगर टीवी बंद हो तो हल्ला मचा मचा कर चालू करवा लेती थी और अब देखें, आप ठीक आठ बजे सोती हैं तो उन्हें हल्ला गुल्ला, रोशनी कुछ भी पसंद नहीं. उन्हें उठा कर अलग कमरे में अंधेरा करके, कंबल से पिंजड़ा ढ़को और आवाज न जाये, इसलिये दरवाजा भी लगा दो, तब वो सोयें. वरना मजाल है कि आपको टीवी देखने दे या कोई काम करने दे. गोद में बैठ कर टीवी देखना, खाना खाना आदि उनकी अदायें थीं. नहाने में उसके जैसा खुश होते मैने आज तक किसी मानव को तो नहीं देखा. हर हफ्ते कुद कुद कर बेसिन में नहाती थी, वही उसका बाथिंग टब था. फिर टावेल में लपेट कर उन्हें निकाला जाता था और सुखाया जाता, तब खाना खाकर, उस दिन वो दुपहर में भी सोती.

समय उड़ता चला गया. एक रोज इसको इनकी बेबी सिटर के पास छोड़ने गये कि हम दो दिन को कहीं जा रहे हैं. उसके पास पचास से ज्यादा चिडियां एक वक्त में बेबी सिटिंग को होती हैं और वो चिडियों को प्यार करने वाली जानकार महिला है. उसी ने हमें ऐसी बात बतायी कि हम तो धक से रह गये. इनका गीत सुनकर और अन्य अवलोकन कर उसने बतलाया कि जिसे आप लड़की समझते हैं वो लड़का है. अब लिजिये. खैर हम उसे लड़की ही मानते रहे और न ही कभी उसका नाम बदला.

कुछ समय से हमने महसूस किया कि ऐना कभी कभी उदास हो जाती थी और चुपचाप बैठी रहती थी. हम समझ गये कि अब वो बड़ी हो गई है और उसे साथी की जरुरत महसूस हो रही है. इन सब बातों में हम यूँ भी ढ़ेड समझदार है लेकिन अपने लड़कों के मामले में इसे प्रदर्शीत नहीं होने देते, हालांकि हम समझ वहां भी रहे हैं.

खैर हम ऐना के लिये साथी ले आये. इस बार लड़की परखवा कर लाये, हालांकि कनाडा के हिसाब से कोई सी भी युगलबंदी गाई जा सकती थी, सब जायज होता. मगर यहाँ हमारा भारतीय होना आडे आ गया. नव आगंतुक का नामकरण किन्हीं विशिष्ठ कारणों से किया गया-बोलू. आप भी अगर फुरसतिया जी की तरह सोचेंगे तो समझेंगे कि नामकरण का कारण उसका अत्याधिक बोलना रहा होगा. नहीं भाई, इसकी भी एक दिलचस्प कथा है.



" हमारी ससुराल मिर्ज़ापुर की है. हम गये वहाँ और हमारे ससुर साहब, अब नहीं हैं इस दुनिया में, के मित्र कालिन का धंधा करते थे ,उन्होंने मुझे उनकी फेक्टरी देखने भेजा ,वहां मालिक ने हमारी खातिरदारी की, दामाद जो थे और वो भी विदेश से गये. अपने खास नौकर को न जाने क्या समझा कर हमारे साथ किया. वो हमें गोदाम दिखाने लगा, पहली कालीन दिखाई और कहा कि ई बोलू है हम सोचे कि यह कोई क्वालिटी होती होगी. तब तक दूसरी कार्पेट दिखाई और कहा कि ई रेड है, लाल रंग की थी वो. तब हम यह समझ पाये कि पहले वाली नीली थी इसलिये बोलू ....यह नयी वाली भी नीले रंग की है सो नामकरण हुआ "बोलू". :)


बोलू ने आते ही अपना माहौल जमा लिया, और जैसा कि होता है कि अगर लड़का ज्यादा उम्र तक बिना लड़की के रह जाये तो जब भी लड़की मिल जाये, शादी हो जाये, तो बस गुलामी करने लगता हैं. वो ही ऐना के साथ भी हुआ. सुबह से शाम तक बोलू के पीछे पीछे घुमना, उसे खाना खिलाना, यहाँ तक की ऐना ने अपना झुला भी सोने के लिये उसको दे दिया और खुद नये झुले पर सोने लगी. अपने सारे खिलौने भी उसके नाम. आजकल जैसा होता है, बोलू ने भी इसका खुब फायदा उठाया और खुब ऐश की. सब हथिया लिया और ऐना के हिस्से मे आई हमारी गोद और अपने पिंजड़े का एक कोना. बाकि सब बोलू का हो गया. बोलू हद से उपर व्यवहारिक और व्यवसायिक और ऐना उतनी ही शर्मिली और संस्कारी. बोलू स्ट्रीट स्मार्ट और ऐना, सभ्य पारिवारिक बाला.

आपस में प्रेम तो बहुत था मगर अचानक, शायद, बोलू को चाँद लाने का वादा कर बैठी ऐना ने इतनी ऊँची उड़ान भरी कि प्रेमांध वो छत न देख पाई और टकरा कर गिर पड़ी. फिर ऐना कभी न चल पाई और न उड़ पाई. सब इलाज करा लिये पाँच दिन में. सी टी स्केन से होम्योपेथिक से एंटिबायोटीक...कुछ भी न काम किया.

पांच दिन से डॉक्टर के ऑफिस चक्कर, सी टी स्केन, दुआयें, पूजा पाठ, हमारे प्रिय फुरसतिया जी की मानता, सबने बस इतना ही काम किया कि आज ऐना शांति से ब्रह्म लोक सिधार गई. अब तक तो मम्मी के पास भी पहूँच गई होगी. मगर मम्मी की जिंदा याद, ऐना, हम तुमको नहीं भूल पायेंगे.

तुम्हें सेब पसंद था न!! आंगन में सेब के पेड़ के नीचे ही तुम्हारे पार्थिव शरीर को दफनाया है. अगले बरस जब उसमें सेब आयेंगे, तुम हमें खुब याद आओगी तुम हमारे दिल में हमेशा जिंदा रहोगी. वहां खुब उडना और मम्मी के पास रहना. वैसे तो तुम खुद ही समझदार हो. एक दिन जरुर मिलेंगे फिर.

बोलू भी दुखी है. ऐना तो चली गई मगर शीशा बोलू को देख कर बोल रहा है, "हैलो , हैलो, मैं सुंदर चिडिया हूँ"

अभी बोलू को सोने के लिये अलग कमरे में रख कर आया हूँ, मन भर आया है बिल्कुल वैसे ही, जैसे मम्मी के जाने के बाद पापा को भारत में अकेला छोड़ कर निकला था......

अंत में ऐना की आत्मा को शांति मिले, इस हेतु अनेकों प्रार्थना और उसे नमन और हार्दिक श्रृद्धांजली...तुम हमेशा याद आओगी.





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29 टिप्‍पणियां:

Neeraj Rohilla ने कहा…

समीरजी,
इस पोस्ट नें सच में आंखे नम कर दीं |
बचपन में महादेवी वर्मा की एक कहानी "गिल्लू" पढ़ी थी तब भी आंखे नम हो आयीं थीं |
शायद जीवन के झन्झावतों के बाद भी एक सरल ह्रदय जीवित है |

बचपन में हमारे घर भी एक तोता था जिसे हम "पट्टू" बुलाया करते थे | मैं और मेरी बडी दीदी ने अपने जेब ख़र्च से कटौती कर उसके लिये बडा सा पिन्जरा खरीदने का सोचा था |
विडम्बना ये रही कि जिस दिन मैं उसके लिये पिन्जरा खरीद कर घर पंहुचा, एक बिल्ली ने उसे अपना ग्रास बना लिया था | वो पिन्जरा आज भी घर में खाली रखा है |

बेनामी ने कहा…

लेख की अन्तिम पंक्तियाँ आँखे नम कर गयी।
अब तो बस यही कहा जा सकता है कि भगवान ऐना की आत्मा को शान्ति प्रदान करे और आप सब को इस दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करे।
भले ही ऐना तोता रहा हो पर था तो आपके घर का सदस्य, मैं आपके मन की हालत समझ सकता हूँ।

उन्मुक्त ने कहा…

अक्सर पशु पक्षी, मनुष्यों से ज्यादा नजदीक हो जाते हैं।

बेनामी ने कहा…

ऐना की आत्मा को शांति मिले.

ऐना को नमन और हार्दिक श्रृद्धांजली...

प्रेमलता पांडे ने कहा…

एना की आत्मा को शांति मिले।
बहुत भावुकता पूर्ण विवरण।
गीता में लिखा है-
"अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत।
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिवेदना॥"

बेनामी ने कहा…

दिल में दर्द भर आया महाशय, अप तो हमेशा गुदगुदाते रहे है. और आज...
सुंदर चिड़ीया की आत्मा को परमेश्वर शान्ति दे. वह जहाँ भी रहे सदा सिटी बजाती रहे.
पालतु-प्राणी उम्र भर खुशीयाँ देते हैं पर अंत में दुःखी छोड़ जाते है. इसलिए बहुत बार किसी प्राणी को लाने की इच्छा होती है, पर बिछड़ने पर होने वाले दुःख को ध्यान में रख इरादा त्याग देता हूँ.

पंकज बेंगाणी ने कहा…

क्या कहुँ.. कहने को शब्द नही है।

ऐना की आत्मा को प्रभु शांति दे। आप कितने घनिष्टता से जुडे होंगे ऐना से यह आपके लेखन से स्पष्ट हो रहा है।

यह आपके लिए एक मुश्कील पल है... पर यही नियती है शायद... हममें से कोई अमर नहीं.. सबको जाना है। कडवा सच पर .... सच.

पंकज बेंगाणी ने कहा…

आपके पास ऐना की फोटो तो होगी... देखना चाहता हुँ.... प्लीज..

बेनामी ने कहा…

दिल को छू लेने वाला किस्सा !

rachana ने कहा…

हमारे आस-पास,हमारे साथ रहने वाले पशु-पक्षी हमारे जीवन का हिस्सा हो जाया करते हैं..

बेनामी ने कहा…

This is very sad. Ever since our son was old enough to recognize identities & names, it was Ana's home and not Lal Sahab's place. It will be quite a learning experience for him next time he is over at your place.

From my perspective, I can draw a paralllel between Auntiji and Ana - both "passed-on" just within a few weeks of my meeting them for the last time - the former taught me some valuable exercises for my chronic back problems and the latter taught me humility in the face of more aggressive personalities "Bholu."

From a Vedic perspective did you know that Dec 29th was Vaikunth Ekadasi. According to scriptures very few souls have the good fortune to leave for the heavenly abode and if they are lucky enough to do so they are assured a place in the Heaven. So, without a doubt, Ana is with Auntiji in the Heaven!

Manish Kumar ने कहा…

जिस ममत्व से आपने एना के बारे में लिखा है उसे पढ़ कर मन दुखी हो जाता है । बहुत सुंदर श्रद्धांजलि रही ये !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

समीर भाई,
नमस्ते !
आप व परिवार के सभी को आगामी वर्ष के लिये,
मेरी शुभ कामना भेज रही हूँ ~~
समीर भाई ,
आपकी इस प्रविष्टी को पढकर २००६ की समाप्ति पर हर्ष / विषादि मिश्रित
भावना के वलय गहरा गये....
हमारे अपने जब भी छोड कर , ओझल होते हैँ तब तब, मन ना जाने क्यूँ,
उनके प्यार के बँधन मेँ , ज्यादा बँतध जाता है -- गाँठेँ द्रढतर हो जातीँ हैँ.
एना की बातेँ उसीकी तरह रसीली लगीँ .
मम्मीजी की पावन - स्मृति को मेरे स्नेह भरे प्रणाम !
फिर , लिखूँगी ...
मैँ , हाल, " एरीजोना प्राँत" मेँ हूँ
स स्नेह,
लावण्या

बेनामी ने कहा…

नये वर्ष में पाइये सब कुछ भाई समीर ।
दुनियाँ में बन जाइये सबसे बडे अमीर।।

नये वर्ष पर ढेर सारी शुभकामनायें
शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

बेनामी ने कहा…

समीर जी,
ऐना की मृत्यु पर दुःख हुआ। पाले गये पशु पक्षी घर परिवार का एक अभिन्न सदस्य बन जाते है , उनके बिछुडने पर दुःख स्वाभाविक है।

Laxmi ने कहा…

समीर जी,

बहुत मार्मिक सस्मरण है। कई साल पहले मेरी पुत्री ने मुझे एक हैमस्टर दिया था। वह केवल अपनी पसन्द का सीरिअल खाता था। दूसरा दो तो थूक देता था।

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

समीर जी बहुत ही भावपूर्ण उदगार हैं मैं आपकी स्थिति अच्छी तरह समझ सकती हूँ, वास्तव में बहुत दुख होता है जब हमारे पालतू जिनको हम बच्चों के तरह रखते हैं और वो हमसे इस तरह एक दिन विदा ले जाते हैं। जब मैं युगांड़ा आ रही थी मेरे पास "जिम्मी" मेरा पॉमेरियन डॉग, २ तोते और ११ छोटी-२ प्यारी-२ रंगीन चिड़याँयें थी अब समस्या ये के उनके बिना तो आ नहीं सकते मेरा और मेरी बेटी का रोना धोना शुरु कि उनके बिना नहीं जाना खैर हमने उनके पासपोर्ट आदि के लिये चक्कर लगाना शुरू किये पर दुख की बात ये कि जैसे ही हमारे पासपोर्ट तैयार हुये और हमारे आने की घड़ी नज़दीक आई वो सब एक-एक करके हमारा साथ छोड़ने लगे और अन्तिम दिनों में मेरे "जिम्मी" ने भी मेरा साथ छोड़ दिया बस अब उनकी यादें व फोटो ही हमारे साथ हैं शायद वो अपने वतन से दूर नहीं होना चाहते थे।
डॉ० भावना कुँअर

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

समीर जी बहुत ही भावपूर्ण उदगार हैं मैं आपकी स्थिति अच्छी तरह समझ सकती हूँ, वास्तव में बहुत दुख होता है जब हमारे पालतू जिनको हम बच्चों के तरह रखते हैं और वो हमसे इस तरह एक दिन विदा ले जाते हैं। जब मैं युगांड़ा आ रही थी मेरे पास "जिम्मी" मेरा पॉमेरियन डॉग, २ तोते और ११ छोटी-२ प्यारी-२ रंगीन चिड़याँयें थी अब समस्या ये के उनके बिना तो आ नहीं सकते मेरा और मेरी बेटी का रोना धोना शुरु कि उनके बिना नहीं जाना खैर हमने उनके पासपोर्ट आदि के लिये चक्कर लगाना शुरू किये पर दुख की बात ये कि जैसे ही हमारे पासपोर्ट तैयार हुये और हमारे आने की घड़ी नज़दीक आई वो सब एक-एक करके हमारा साथ छोड़ने लगे और अन्तिम दिनों में मेरे "जिम्मी" ने भी मेरा साथ छोड़ दिया बस अब उनकी यादें व फोटो ही हमारे साथ हैं शायद वो अपने वतन से दूर नहीं होना चाहते थे।
डॉ० भावना कुँअर

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

समीर जी बहुत ही भावपूर्ण उदगार हैं मैं आपकी स्थिति अच्छी तरह समझ सकती हूँ, वास्तव में बहुत दुख होता है जब हमारे पालतू जिनको हम बच्चों के तरह रखते हैं और वो हमसे इस तरह एक दिन विदा ले जाते हैं। जब मैं युगांड़ा आ रही थी मेरे पास "जिम्मी" मेरा पॉमेरियन डॉग, २ तोते और ११ छोटी-२ प्यारी-२ रंगीन चिड़याँयें थी अब समस्या ये के उनके बिना तो आ नहीं सकते मेरा और मेरी बेटी का रोना धोना शुरु कि उनके बिना नहीं जाना खैर हमने उनके पासपोर्ट आदि के लिये चक्कर लगाना शुरू किये पर दुख की बात ये कि जैसे ही हमारे पासपोर्ट तैयार हुये और हमारे आने की घड़ी नज़दीक आई वो सब एक-एक करके हमारा साथ छोड़ने लगे और अन्तिम दिनों में मेरे "जिम्मी" ने भी मेरा साथ छोड़ दिया बस अब उनकी यादें व फोटो ही हमारे साथ हैं शायद वो अपने वतन से दूर नहीं होना चाहते थे।
डॉ० भावना कुँअर

Udan Tashtari ने कहा…

आप सबने मुझे इस मुश्किल समय में जो संबल प्रदान किया, उसके लिये अति आभारी हूँ. यूँ ही स्नेह बनाये रखें.

Arvind Mishra ने कहा…

संभवतः वह बुजेरिगर रही होगी ,आपकी लेखनी ने उनके व्यवहार विवरण को और भी जीवंत बना दिया है -हमारे आप में एक समानता भी पता चली -मेरा ससुराल भी मिर्जापुर में है !

बेनामी ने कहा…

अभी बोलू को सोने के लिये अलग कमरे में रख कर आया हूँ, मन भर आया है बिल्कुल वैसे ही, जैसे मम्मी के जाने के बाद पापा को भारत में अकेला छोड़ कर निकला था......

आपने तो सच में रुला ही दिया. मानवीय रिश्ते तो समाज का हिस्सा हैं, लेकिन देखिये, ये बेजुबान कैसे आत्मीयता पैदा कर देते हैं, हम निष्ठुर मानवों में.

आपकी सहज लेखन शैली ने मन भगो दिया.

ghughutibasuti ने कहा…

अभी अभी पाबला जी ने यह पोस्ट दिखाई तो पढ़ी। क्या कहूँ, जीवन में इतने मासूम प्राणी आए और अपनी यादें छोड़कर चले गए। जो प्यार उनसे मिला वह मनुष्य कभी नहीं दे सकते।
घुघूती बासूती

मीनाक्षी ने कहा…

पाबलाजी ने इतनी सुन्दर चिडिया से परिचय करवा दिया...स्कूल के दिनो मे दो तोते पाले थे...एक ने दूसरे को चोंच से चोट कर कर के मार डाला.. शायद एक को कैद मे रहना कबूल नहीं था.. दूसरे ने समर्पण कर दिया था...एक की मौत होने पर दूसरे को उडा दिया. .. बहुत दर्द भरी यादें ताज़ा हो गई...

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

ऐना हमेशा याद रहेगी . आशा है अब वह माताजी के साथ होगी मज़े से

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

आज पाबला जी के ब्लाग पर इस पोस्ट का लिंक मिला. बहुत ही मार्मिक लेखन है. मुझे ऐसा लगता है जैसे किसी महान कृति को पढा हो. शुभकामनाएं.

रामराम.

Anita kumar ने कहा…

बहुत ही मार्मिक पोस्ट, हमें भी अपनी माँ की याद दिला गयी।

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

बहुत ही प्यारी और मार्मिक कथा .पशु-पक्षियों से इतना लगाव तो होसकता है लेकिन उसकी ऐसी अभिव्यक्ति ने एक सुन्दर रचना को साकार कर दिया है .

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

बहुत ही प्यारी और मार्मिक कथा .पशु-पक्षियों से इतना लगाव तो होसकता है लेकिन उसकी ऐसी अभिव्यक्ति ने एक सुन्दर रचना को साकार कर दिया है .