शनिवार, दिसंबर 23, 2006
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--ख्यालों की बेलगाम उड़ान...कभी लेख, कभी विचार, कभी वार्तालाप और कभी कविता के माध्यम से......
हाथ में लेकर कलम मैं हालेदिल कहता गया
काव्य का निर्झर उमड़ता आप ही बहता गया.
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दूसरों की गलतियों से सीखें। आप इतने दिन नहीं जी सकते कि आप खुद इतनी गलतियां कर सके।
-अमिताभ बच्चन के ब्लॉग से
और क्या इस से ज्यादा कोई नर्मी बरतूं
दिल के जख्मों को छुआ है तेरे गालों की तरह
-जाँ निसार अख्तर
अधूरे सच का बरगद हूँ, किसी को ज्ञान क्या दूँगा
मगर मुद्दत से इक गौतम मेरे साये में बैठा है
-शायर अज्ञात
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2 टिप्पणियां:
आपको कितना समझाया कि किसी को मत बातइयेगा। पर, पर आपने तो ऐलने जंग ही कर दी। सबको बता दिया वो भी खुल्लम-खुल्ला। लगता है कुछ न कुछ करना पडेगा। हाँ अब अपना चुनाव प्रचार ही करता हूँ।
वैसे आपका जाना धमकियों से ही हो रहा है, बहाने चाहे जो भी बनाइये। भाई नेता जी वाली चाल आपको भी चलना आ ही गई। कैसे कह रहे कि धमकियों से नही डर रहे है। आपके मन क्या पक रहा है वह किसी से छिपा हुआ थोडी है।
जैसे झारखण्ड के विधायक गोवा ले जाये जाते है वैसे आप भी भाग रहे है। कही आपकी उड़नतश्तरी का हाई जैक न हो जाये। वैसे एक गाना है जहॉं जाईयेगा हमे पाईयेगा। :)
आपकी यह पोष्ट काफी अच्छी और व्यग्यात्मक है। मजेदार
Samir Bhaiya
Yah kon se chunao ho rahe he? Kya pahle bhi hote the?
Rajesh
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