ओबेद उल्लाह अलीम को सुनता था कभी...गजब की शक्सीयत है। ऐसा खोया कि खोता ही चला गया और खो गया कुछ पुरानी यादों में। अब पुरानी यादें हैं तो कहानियाँ क्यूंकि हम भी अपने समय में एक चीज हुआ करता थे...अब यह अभी के रिसेन्ट नौजवानों को न भी समझ आये तो कोई रंज नहीं क्योंकि यह हम जैसे उन नौजवानों की कथा है जो जवानी में अनुभव प्राप्त कर चुके हैं और फिर भी अभी जवान हैं, बस थोडे से उम्र से ढीले...या गीले..:)..हालाँकि बारिश तेज है, जल्द ही पूरे गीले होकर बुढापे के कॉरिडोर में खड़े नजर आयेंगे: अब यह एक अलग तरह का दर्शन है, हमारी अन्य रचनाओं से, तो थोड़ा हमारे साथ चलें:
खैर, सुनें, मेरे खोने में उठे डूबे हुये उदगार:
इक धुँआ धुँआ
इक धुँआ धुँआ सा चेहरा
जुल्फों का रंग सुनहरा
वो धुँधली सी कुछ यादें
कर जाती रात सबेरा।
इक धुँआ धुँआ सा चेहरा……
कभी नाम लिया न मेरा
फिर भी रिश्ता है गहरा
नींदों से मुझे जगाता
जो ख्वाब दिखा, इक तेरा।
इक धुँआ धुँआ सा चेहरा……
वहाँ फूल है अब भी खिलते
जिस जगह कभी दिल मिलते
उन्हीं फूलों की वादी में,
अब पाँव लगते फिसलते।
इक धुँआ धुँआ सा चेहरा……
बातें हैं बहुत पुरानी
यूँ लगे की एक कहानी
क्या यादें भी बन जायें,
दरिया का बहता पानी।
इक धुँआ धुँआ सा चेहरा……
--समीर लाल ‘समीर’
सोमवार, दिसंबर 04, 2006
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25 टिप्पणियां:
समय के साथ या तो विवेक बढ़ सकता है....या उम्र...दिल और मन भी कभी बूढ़ा हुआ है....
आपकी रचना अच्छी लगी।
बहुत खूब
एकदम इठलाती नदी के बहाव-सी कविता.
बहुत अच्छी लगी
आप भी कैसी बात करते हैं ?
आपकी भरी -पूरी जवानी पर किसने सवालिया निशान लगाया भाई ? :)
बहरहाल आपकी पंक्तियों में ख्वाब के धुओं से उभरती तसवीर पसंद आई ।
सही कहा आपने पुरानी यादों के बारे में:-
वह नुक्कड़ वाला पनवाड़ी जिसकी दुकान अपना अड्डा
जिस पर थे रोज सजा करती अपने सब यारों की महफ़िल
उस जगह समस्या सुलझाते गंभीर सभी, हम चुटकी में
बस उसी मोड़ पर देते थे हर माहेजबीं को अपना दिल---------
क्या बात है
अच्छा लिखा है आपने- सीधे यादों में बहा ले गये
अच्छा लिखा है आपने- सीधे यादों में बहा ले गये
अच्छा लिखा है आपने- सीधे यादों में बहा ले गये
बढिया लिखा है समीर भाई
Sameer Bhai
Ek bahut hi umda khyaal. Muafi chahta hun, Hindi me likhne kaa tazurba nahi hai computer par. Hamesha padh kar man bahlta tha magar aaz rok naa saka apne ko bina kuch kahe. Bahut kalaam suni, ise me apni suni aur padhi sabhi kalaamon me ek umda kalam ki jagah deta hun. Khuda yun hin aapki kalam par mehrbaan rahe.
Dua karta hun.
--Khalid Hasan
समीरलालजी,
वहाँ फूल है अब भी खिलते
जिस जगह कभी दिल मिलते
उन्हीं फूलों की वादी में,
अब पाँव लगते फिसलते।
ये सब पढ़ा-पढ़ाकर आप दिल को बहकाने की साजिश करते हैं। ये अच्छी बात नहीं है!
एक शेर याद आता है पता नहीं किस शायर का है:-
जवानी ढल चुकी खलिशे मोहब्बत(मोहब्बत की चाह)
आज भी लेकिन/ वहीं महसूस होती है जहां महसूस होती है।
तो आप जवानी के दिन याद करने के बुढ़ापे तक इन्टाइअटिल्ड हैं। जमकर धुआं-धुआं कीजिये, करते रहिये।
u r right samir ji..
sach kaha hai.....
yadein ehsas hai kal aur aaj ka
pal pal jitey hai in yadon ke sath
kabhi ban dost hastati hai ye yadein
kabhi ban dard rulati hai
gujar jatey hai kabhi hajar lamhe
kabhi kat-tha nahi ek pal bhi in yadon ke saath.....
keep writing
आप्की कवीता तो अच्ची लगी, लेकीन क्मेन्त्स भी बहुत अच्चे है :)
कौन कहता है कि आप बूढे हो गये ख्यालों और विचारों से आप नौजवानों को मात दे रहे हैं। अच्छा है ऐसे ही बने रहिए और सबको हंसाते रहिए।
डा. रमा द्विवेदी
अच्छी कविता है!
कभी नाम लिया न मेरा
फिर भी रिश्ता है गहरा
नींदों से मुझे जगाता
जो ख्वाब दिखा, इक तेरा।
इक धुँआ धुँआ सा चेहरा……
ना जाने एह किस का चेहरा है जो आज भी मेरे ज़ेहन पेर छा जाता है
कुछ धुँआ धुँआ सा होता कोई अक़्स आज भी मुझे कुछ याद करा जाता है
ranju [ranjana]
आपके पोस्ट पर आना बहुत अच्छा लगा.....अतीत की धुंधली यादों को संजोने की शिद्दत से भरी रचना ....सुन्दर प्रस्तुति
हलचल ने मौका दिया पुराने पन्ने पलटवाने का....
बढ़िया कविता..
सादर.
यादों के झरोखे से झांकती बहुत सुंदर प्रस्तुति...आभार
कभी नाम लिया न मेरा
फिर भी रिश्ता है गहरा
नींदों से मुझे जगाता
जो ख्वाब दिखा, इक तेरा।
वाह.....
गुजारे हैं मौसम...हमने भी कुछ ऐसे...
सुबह उसकी थी...शाम अपनी थी.....
बहुत ही सुन्दर रचना है...
बातें हैं बहुत पुरानी
यूँ लगे की एक कहानी
क्या यादें भी बन जायें,
दरिया का बहता पानी।
sundar abhiwyakti.
बातें हैं बहुत पुरानी
यूँ लगे की एक कहानी
क्या यादें भी बन जायें,
दरिया का बहता पानी।
sundar abhiwyakti.
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