पढ़ता हूँ कुछ साहित्यिक पुरस्कार प्राप्त कहानियाँ और कवितायें नये जमाने की और सोचता हूँ:
शब्द शब्द जोड़
कुछ ऐसा सजाऊँ
जैसे काढ़ी हो सलीके से
कुछ बूटियाँ
और तैयार कर....
एक जामा
पहना दूँ अपनी कविता को...
इस खूबसूरती से
कि निखर जाए उसका रूप सौन्दर्य भी
उकेर दूँ उसके अंग अंग...
उसकी निश्चेत
फेन्टिसीज को उभारती हुई..
शायद
जीत लूँ
एक ईनाम मैं भी
साहित्य के इस तथाकथित
पावन मकड़जाल में....
-समीर लाल ’समीर’
मैं पूछता उस अंधेरी रात में बिस्तर पर लेटे अंधेरे में छत को ताकते तुमसे:
’कोई गाना सुनोगी?’
तुम कहती
’क्या तुम गाओगे अपना गीत?’
मैं कहता...
’न, मैं थका हूँ.. सी डी लगा देता हूँ...फरीदा गा देगी.. दिल जलाने की बात करते हो...आशियाने की बात करते हो..’
तुम कहती...
-हूंह्ह...फिर आगे से ऐसी बात न छेड़ना...जो तुम न कर पाओ...बस, सो जाओ...अब...’
मैं सोचता हूँ....
’अब बात क्या छेडूँ???’
मौन की न जाने क्या ताकत है...अब जानूँगा मैं!!!
फेरीवाले की
इकतारे की धुन..
और
बचपन
भाग निकलता था गलियों में....
उस धुन को बजा लेने की कोशिश में
न जाने कितने दीपक फोड़े हैं मैने
न जाने कितने ख्वाब जोड़े हैं मैने
लेकिन
मन है कि
मानता नहीं!!
और
वो फेरीवाला...
ये बात
जानता ही नहीं...
-समीर लाल ’समीर’
जिंदगी की आंधी में
फड़फड़ाते भावों के पन्ने
शब्दों की कलम में
आँसूओं की स्याही..
कुछ खास रच जाने को है..
एक आत्म कथा..
एक कविता...
या
नज़्म पुकारेंगे लोग उसे...
तुम-
चुप रह जाना..
बिना कुछ कहे..
सब सह जाना...
-समीर लाल ’समीर’
(फेसबुक पर बिखेरे टुकड़े सहेजते हुए)
82 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया समीर जी. साधुवाद
"हूंह्ह...फिर आगे से ऐसी बात न छेड़ना...जो तुम न कर पाओ........"
गुड मोर्निंग समीर भाई !
हम तो अक्सर सुनते हैं यह लाइन , शुभकामनायें आपको !
....
और
वो फेरीवाला...
ये बात
जानता ही नहीं..
...यह अंश बेहतरीन है।
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।
:)
------
आप चलेंगे इस महाकुंभ में...
...खींच लो जुबान उसकी।
@@शायद
जीत लूँ
एक ईनाम मैं भी
साहित्य के इस तथाकथित
पावन मकड़जाल में....
बहुत बढ़िया,आभार.
कई छोटे-छोटे टुकड़े एक साथ रखकर आपने एक पूरी जिंदगी का ताना-बना बुन लिया है....यह महारत आपको ही हासिल है समीर जी ! आभार !
जिंदगी की आंधी में
फड़फड़ाते भावों के पन्ने
शब्दों की कलम में
आँसूओं की स्याही..
कुछ खास रच जाने को है..
एक आत्म कथा..
एक कविता...
या
नज़्म पुकारेंगे लोग उसे...
आत्म कथा के पन्ने सचमुच दिल को छू जाते है. बहुत ही संवेदनशील और खूबसूरत. बधाई.
अच्छा किया आपने जो यहाँ समेट दिया, इन मोतियों की माला बना दी.
laajabaab bahut sundar kavitayen.
एक से एक बढ़कर. ईनीम देने वालों की तो लाईन लगी है. इकतारे वाले को देख याद आया "सैय्याँ झूटों का बड़ा सरताज निकला"
बहुत सुन्दर! मकड़जाल से कहीं आगे पहुँचने के लिये शुभकामनायें!
शब्द शब्द जोड़ से लेकर फ़ेरी वाले की नफ़ेरी तक शब्दगंग बह रही है। आभार
शायद
जीत लूँ
एक ईनाम मैं भी
साहित्य के इस तथाकथित
पावन मकड़जाल में....
साधु-साधु
मीठा और तीक्ष्ण व्यंग्य
गुरुदेव,
इन अनमोल शब्दों का सम्मान करने से कोई भी सम्मान खुद सम्मानित होगा...
समारोह में किसी का सम्मान हो गया,
क्या आदमी वाकई इनसान हो गया,
आज़मगढ़ में पंक्चर लगाता रहता है जमाल,
क्या किस्मत का वाकई शाहरुख़ ख़ान हो गया...
जय हिंद...
बहुत ही बढ़िया सर!
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कल 27/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
काव्य संकलन अच्छा लगा।
एक साथ कई रसों का आस्वादन. वाह,समीर जी!
वाह दददा वाह ...
बिखरे टुकड़े अनमोल लगे ... सुन्दर प्रस्तुति
सहेजे हुए टुकड़े ज़बरदस्त है.. सभी के सभी...
alag alag bhav bahut pasand aaye,khas kar feriwale se judi yaadien anmane se jagrut ho uthi,kitna sach hai wo,hum uski dhun bina uske jane hi copy kiya karte thay......
तुम चुप रहा जाना ,बिना कुछ कहे ..सब सह जाना ...बहुत बढ़िया ........मकडजाल में उलझा हुआ यह भोला सा मन ......
बहुत बढ़िया लगा! सुन्दर प्रस्तुती!
chun-chun kar laye hain......bahot achchi hai.
वाह !!! सर आपने तो दिल की बात कहदी मेरी भी कुछ ऐसी ही इच्छा है शायद जीत लूँ एक इनाम मैं भी साहित्य की इस तथा कथित पावन मकड़जाल में.... :)
बढ़िया प्रस्तुति समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
वाह समीर भाई ... ऐसा भाभी ने तो नहीं कहा होगा की फिर ऐसी बात न छेडना ... जोक्स एपार्ट ...
बहुरत ही संवेदनशील दीर को कुरेद के रख देने वाली रचनाएं हैं सभी ...
मन की पीड़ा कोई न जाने,
मन जो माने, कोई न माने।
नज़्म पुकारेंगे लोग उसे...
तुम-
चुप रह जाना..
बिना कुछ कहे..
सब सह जाना...
फेसबुक की वजह से क्रियेटिविटी जूस उफान पर है :)...
जारी रहे....यूँ शब्दों का नज्मो में तब्दील होना...
पढ़कर हम भी भावनाओं में बह गए ।
बहुत खूबसूरत ।
शायद
जीत लूँ
एक ईनाम मैं भी
साहित्य के इस तथाकथित
पावन मकड़जाल में...
आमीन ....
बेहतरीन हैं सभी नज्में पुरस्कार तो मिलना ही चाहिए.:)
साहित्यिक इनाम के लिए जुगाड लगाना पडता है :)
शायद
जीत लूँ
एक ईनाम मैं भी
साहित्य के इस तथाकथित
पावन मकड़जाल में....
वाकई बहुत घणा मकडजाल है.
रामराम
bahut hi khas hain..sir ji!!
Bahut sundar abhivayakti...
सुन्दर प्रस्तुति पर
बहुत बहुत बधाई ||
बेहतरीन.
नमस्कार बहुत खूब लिखा
बडे दिन हो गये
आप का आगमन नही हुआ ब्लोग पर
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/
बेहतरीन नज्में पुरस्कार तो मिलना ही चाहिए....!
वाह ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
सुन्दर प्रस्तुति, बधाई,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत सुन्दर
बहुत खूब .
बहुत सुन्दर
बहुत खूब .
यादों को सहेजना एक कला है, उसी की अभिव्यक्ति साहित्य बन जाती है, आपको दोनों में महारत हासील है. अब कोई इनाम तो क्या इसकी गरिमा बढ़ाएगा. आपकी उपलब्धियाँ ही आपका सम्मान है.
http://aatm-manthan.com
मन मस्तिष्क में बनने वाले जाले...शब्दों में बखूबी उतर आये हैं...
♥
आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
आपको नवरात्रि की ढेरों शुभकामनायें.
शायद
जीत लूँ
एक ईनाम मैं भी
साहित्य के इस तथाकथित
पावन मकड़जाल में....
bahut khoob....aabhar
LAJAWAB SAMEER BHAI !
भिन्न भिन्न मनोभावों को मनमोहक ढंग से उकेरती सुन्दर कृतियाँ...
बेहतरीन टुकड़े हैं...ऐसे ही संजोते रहें...
आपको एवं आपके परिवार को नवरात्रि पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
सुन्दर प्रस्तुती!
बहुतअच्छी प्रस्तुति .
नवरात्रि पर्व की आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
आपकी कविता का बूटीदार जामा खूबसूरत भी है और खुशबूदार भी...
दादा,
ये बढ़िया काम किया आपने सहेजने का!
आशीष
--
लाईफ़?!?
तुम-
चुप रह जाना..
बिना कुछ कहे..
सब सह जाना...
इस रचना का सूफ़ियाना रंग लाजवाब है।
गहन अनुभूतियों और दर्शन से परिपूर्ण इस रचना के लिए बधाई।
्समीर जी नमस्कार । सुन्दर लिखा है आपने श्ब्दो के पावन मकड़ जाल के बारे में।
समीर जी !बहुत बढ़िया . सहेजे हुए टुकड़े ..बहुत सुन्दर हैं...आभार...
वाह... इतना सारा एकसाथ ही समेट लिया...
मुझे भी अपनी कविताओं का सौन्दर्य सुधारना है और एक पुरूस्कार से खुद को ही नवाज़ना है... :)
मुझे भी एक ऐसी ही धुन की तलाश है जिसमें मेरा सारा मौन सिमट जाए...
और जब वो धुन बन जाएगी तब तो चुप रहने का भी अर्थ निकल आएगा और सहना सीख जायेंगे... :)
antas ko jiti man ki gahri abhivyakti. sabhi rachnaayen bahut achchhi hain. zindgi ho ya ki man mein ukere hue shabd...
तुम-
चुप रह जाना..
बिना कुछ कहे..
सब सह जाना...
chaaro rachna behtareen, puraskrit hona hin chaahiye, bahut shubhkaamnaayen.
बहुत सुन्दर विचार।
जिंदगी की आंधी में
फड़फड़ाते भावों के पन्ने
शब्दों की कलम में
आँसूओं की स्याही..
कुछ खास रच जाने को है..
एक आत्म कथा..
एक कविता...
या
नज़्म पुकारेंगे लोग उसे...
तुम-
चुप रह जाना..
बिना कुछ कहे..
सब सह जाना...
kash vo bina kuch kahe sab sah jaye. jabardast rachna.
कैसे कैसे ख्वाब और उनसे जन्म लेती कितनी खूबसूरत कविताएं । फेरी वाला सब की साझी अनुभूती है । मकड जाल से निकल आने पर अभिनन्दन ।
नवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें आप को और आपके परिवार को ...
आपके सहेजे हुए टुकड़े भी अपने आप में मुकम्मल हैं ... बेहतरीन !
बहुत अच्छी कविता, बहुत पहले आपने सिगरेट के पैकेटों में लिखी कुछ कविताएं पोस्ट की थी। उनमें से एक भीग कर आने के बाद सबकी अलग टिप्पणियों की थी। इस कविता से बरबस वो कविता याद आ गई। मैंने इसका जिक्र एक जगह करना चाहा। पोस्ट पुरानी थी और कवि नहीं हूँ सो वैसा कह नहीं पाया। अब चाहता हूँ उस कविता को खोजूँ लेकिन आप इतना लिखते हैं कि उसे खोज पाना काफी कठिन होगा।
आप सब को विजयदशमी पर्व शुभ एवं मंगलमय हो।
विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व, सभी के जीवन में संपूर्णता लाये, यही प्रार्थना है परमपिता परमेश्वर से।
नवीन सी. चतुर्वेदी
Sundar Rachna
आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
इकतारे की धुन..
फेरीवाले ने भी तो सुना ही होगा ..
Sir,
Bahut hi prabhavshali rachnayen....
Shubhkamnayen.
Poonam
फ़ेंटस्टिकली आध्यात्मिक लेख। आप ना ..... अब मेरे से कुछ बोलते ही नहीं बन रहा है। आय एम वण्डर्डे एब्सोल्युटली। यू आर ग्रेट समीर सर। विज़िट हाँगकाँग सम टाइम। जय हिंद।
लाज़वाब! निशब्द करते शब्द.....
dard se geet aur vyangya dono bahut achchhe banate hain.
bahut sunder badhiya .....
बहुत ही खूबसूरत कवितायें पढ़ने को मिली आभार भाई समीर जी
बहुत ही खूबसूरत कवितायें पढ़ने को मिली आभार भाई समीर जी
vaah.....bhaayi.....jaab aao...chhaa jaao....
पढ़ा तुमने, तुम्हारा प्यार मिला.
मेरे गीतों को सबसे बड़ा उपहार मिला.
फेरीवाले की
इकतारे की धुन..
और
बचपन
भाग निकलता था गलियों में....
हर बार की तरह शानदार पोस्ट...
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें.
बहुत सहज, सरल और सुंदर....आत्मा में उतरता हुआ.....
जिंदगी की आंधी में
फड़फड़ाते भावों के पन्ने
शब्दों की कलम में
आँसूओं की स्याही..
कुछ खास रच जाने को है.......
तुम-
चुप रह जाना.. ......
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