अक्सर अकेले में डायरी के पीले पड़ गये सफहों से गुजरने का भी मन कर आता है. गांव के पीले सूखे खेत में अक्सर ही घूमता रहा हूँ मैं. नंगे पैर. चलने में करीचियों की चुभन और दर्द का मीठा सा अहसास. आदत में शुमार बातों की कोई खास वजह नहीं होती, बस यूँ ही...वो गीत सुनते:
यूँ ही दिल ने चाहा था, रोना रुलाना...
तेरी याद तो बन गई एक बहाना...
रुकता है सफहों को पलटने का सिलसिला-ठीक उस कोरे पन्ने पर आकर, जो किसी भी भरे पन्ने से भी ज्यादा भरा सा लगता है..अलिखित इबारतों की एक लड़ी शरीर पर रेंगती लाल डंक वाली चीटियों की सिहरन लिए..पन्ने के .बीचों-बीच एक हल्की सफेदी थामे गोलाकार निशान...याद आता है वो लम्हा, जब कैद कर लिया था इस पन्ने ने, तुम्हारी आंसू की उस बूँद को- जो टपकी थी उस वक्त जब मेरी डायरी पर झुकी तुम मुझसे नजरे चुराती कह रही थी..अलविदा. अब शायद अगले जनम में मुलाकात हो. कहा था तुमने कि हम वादा करें कि अब कभी नहीं मिलेंगे इस जनम में..... याद है?
उस रात एक तारा टूटा था छत पर उत्तर की दिशा में, और हम निहारते रहे थे उसे ओझल.होने तक .बिना कुछ मांगे. अपने हिस्से के आगे कुछ भी छीन लेना तुम्हें कब पसंद था भला. सो छूट गये वो दो हाथ भी थमने के पहले...ढहा सपनो का ताजमहल बनने के पहले...बस्स!! इतना ही!!
शायद, शब्दों ने जो गुंजाईश दी, बस उन्हीं बैसाखियों पर टंगे निकल पड़ा मै , निपट अकेला तन्हाईयों के जंगल में..कहाँ रह पाई तुम भी अपने आपको अपने वादे पर अटल....रोज तो चली आती हो याद बनके मेरे सपने में...नींद से जागने का मन नहीं होता..... दुनिया सोने नहीं देती. मैं जाग नहीं पाता तो लोग अक्सर ही दीवाना नाम दिये जाते हैं..मुझे बुरा नहीं लगता ये नाम भी.
कभी तो मन करता है कि लिखूँ उसी पन्ने पर एक कविता...तुम्हारे तुम होने की या तुम्हारे गुम होने की.....
शिव कुमार बटालवी याद आने लगते हैं:
एक कुड़ी जेदा नाम मोहब्बत...
गुम है...गुम है...गुम्म है!!!!.......
वो तुम्हारी बातों की वसीयत..जिसे थामें चला आया हूँ, उन बैसाखियों पर टंगा इतनी दूर, उम्र के इस पड़ाव पर..जहाँ से अब बस धुँधलका ही नज़र आता है..आगे भी और मुड़ कर देखूँ तो पीछे भी - यादों की गहरी वादियों में.. रोक देती है मुझे- भरे पन्ने को फिर से भरने को. चाहूँ तो भर दूँ...एक नया जाम....पर खुमार...उन यादों का..उस रात से चढ़ा,,,.रोक देता है. तब ऐसे में टपका देता हूँ एक बूँद और अपने आँसू की उस पन्ने के कोने पर...और इन्तजार करता हूँ कि कब वो मिल जाये उस निशान से, जिसे छोड़ गई थी तुम और कैद कर लिया था मेरी डायरी के कोरे पन्ने ने.
कभी तो मिलन होगा...हमारा न सही..इन बूँदों का ही सही. एक तसल्ली काफी है..मधुर मिलन की...बैसाखियों को किनारे रख- चिर निद्रा में सुकून से लीन होने के पहले!! लब पर मुस्कान लिए...
एक विचार उठता है फिर उसी कोने से..कहता है- पगले, हर कविता लिखी जाये ये जरुरी तो नहीं...भाव यूँ भी अपना सफर तय करना जानते है..उनकी अपनी तरंगे हैं. छोड़ मोह कि- कुछ लिख डाल और बहने दे उन भावों को..उनके अपने प्रवाह में..हट जा किनारे और देख साक्षी भाव से उन्हें प्रवाहित होता..एक महा मिलन का उत्साह लिए..सागर में जा समाहित होने की उमंग....छल रहित....छल छल कल कल की धुन बजाता....जोड़ कान उस धुन से...नाच कि एक उत्सव है आज!! एक महोत्सव..महा मिलन की आस का....सावन में झूलती गोरी की मद मस्त पैंगें...और वो सखियों के संग नाचते हुए उठती कज़री की धुन!!
बदरा....गरज बरस तू आज.....
झकझोरते ख्यालात ...थमीं सी कलम....एक और बूँद उस आँसू की-- जो प्रवाहित कर गई सारे भाव बिना लिखे तुम्हारे पढ़ने को...बांच लोगी तुम...मुझे पता है...सुन तो सब लेते है लेकिन तुम धड़कन पढ़ना जानती हो!!! एक अनजान मोड़ पर थमी कहानी...जिसका कोई सारांश नहीं..इन्तजार करती है तुम्हारी उन नीली पनीली आँखों से तकती नज़रों का..
मिलोगी जब
इस बार
घूमेंगे हम
हरियाली के आगोश में
हाथ मे हाथ थामें
भीगेंगे उस
दूध झरने के
नीचे
और थक कर चूर
बैठ किसी भरे पेड़ के नीचे
तने से पीठ टिकाये मैं
और मुझ से टिकी तुम...
बँद आँख
सपनों की दुनिया का
वो पूरा चाँद देखते .....
मत करना उम्मीद मुझसे कि
कुछ गुनगुनाऊँगा मैं...
याद है तुमने कहा था उस रात
मुझसे दूर जाते
कितना बेसुरा हूँ मैं...
-मैं फिर तुम्हें खोना नहीं चाहता...
-समीर लाल ’समीर’
74 टिप्पणियां:
एक विचार उठता है फिर उसी कोने से..कहता है- पगले, हर कविता लिखी जाये ये जरुरी तो नहीं...भाव यूँ भी अपना सफर तय करना जानते है..उनकी अपनी तरंगे हैं. छोड़ मोह कि- कुछ लिख डाल और बहने दे उन भावों को..उनके अपने प्रवाह में..हट जा किनारे और देख साक्षी भाव से उन्हें प्रवाहित होता..bejod bhaw
भावपूर्ण अभिव्यक्ति..सुन्दर लगी..बधाई.
अतीत की यादों की मर्मांतक अभिव्यक्ति ।
बहुत भावप्रणव पोस्ट!
आंख से छलका आंसू,
और जा टपका शराब में,
दिल में चुभा जो कांटा,
वो जा निकला गुलाब में...
जय हिंद...
प्यार के एहसास में सनी नेह की बँधी डोर न जाने कब तक लिखवाती रहेगी..बेचारे इस दिवाने को भी पता नहीं...जमाना चाहे हमको कहे दिवाना,पर क्या फर्क पड़ता है..यही एहसास तो है जो आज ना होकर भी हमारे खुद के होने को अस्तित्व दे रहा है..लाजवाब लिखा है आपने....बहुत सुंदर।
बहुत प्यारा लिखते हो समीर भाई !
शुभकामनायें !
ye bhav pravah to itna gahra tha ki dubo gaya.........
कैसे तारीफ करूँ समझ न आए...बहुत-बहुत बधाई
एक कुड़ी जेदा नाम मोहब्बत...
गुम है...गुम है...गुम्म है!!!!
गुमशुदा की तलाश में कब से भटक रहे हैं, इश्तिहार भी लगवा दिया, पर पता न चला। कहीं मिले तो बताएं, और पते पर पहुंचाएं।:)
शुभकामनाएं
बहुत बढ़िया सर ।
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आपकी एक पोस्ट की हलचल आज यहाँ भी है
सिर्फ एक शब्द ...लाज़वाब !
हम अक्सर अपनी डायरी के पन्नों को खोल कर बन्द कर देते हैं और आप लिख जाते हैं.... बेहद खूबसूरत सपनीला लेख
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण प्रस्तुती! लाजवाब पोस्ट!
'हर कविता लिखी जाये ये जरुरी तो नहीं...'
और हर कविती पूरी हो जाये यह भी कहाँ ज़रूरी है !
भावों के अथाह सागर में लगवाते है आप डुबकियाँ!!
प्रतीको से साक्षात कर देते है हमारी अनुभूतियाँ !!
पन्ने के .बीचों-बीच एक हल्की सफेदी थामे गोलाकार निशान...याद आता है वो लम्हा, जब कैद कर लिया था इस पन्ने ने, तुम्हारी आंसू की उस बूँद को- जो टपकी थी उस वक्त जब मेरी डायरी पर झुकी तुम मुझसे नजरे चुराती कह रही थी..अलविदा.
अलग सी अपनी बात कहती एक सुन्दर पोस्ट जो बीते समय को फिर से अपने पास रोक कर रखने की उम्मीद जगाती है ...............सफ़र तय करना जरुरी है फिर वह चाहे किस तरह से भी प्रवाहित हो .....बेहतरीन
एकांत में बैठकर सोचने लगें तो सभी के जीवन में ऐसी कहानियां बनती बिगडती होंगी .
बहुत मार्मिक रूप में प्रस्तुत किया है आपने .
बेशक सपनों की दुनिया हकीकत की दुनिया से ज्यादा सुनहरी होती है .
समीर जी पोस्ट पढ़ कर आनंद आ गया। बहुत ही नफासत से नाजुक यादों को कुरेदा है।
समीर जी , आपकी भावनायें एकदम नि:शब्द कर गयीं ......... गद्य में भी कविता के कोमलतम भावों को प्रवाहित कर दिया ...... आभार !
बारिश का मौसम तो यहाँ है..पर असर आप पर ज्यादा दिख रहा है...:)
ख़ूबसूरत गद्य को कॉम्प्लीमेंट करती हुई प्यारी सी कविता...
खूबसूरत यादें सावन की हरियाली की तरह ताज़ी...
बदरा....गरज बरस तू आज.....
झकझोरते ख्यालात ...थमीं सी कलम....एक और बूँद उस आँसू की-- जो प्रवाहित कर गई सारे भाव बिना लिखे तुम्हारे पढ़ने को...बांच लोगी तुम...मुझे पता है...सुन तो सब लेते है लेकिन तुम धड़कन पढ़ना जानती हो!!! एक अनजान मोड़ पर थमी कहानी...जिसका कोई सारांश नहीं..इन्तजार करती है तुम्हारी उन नीली पनीली आँखों से तकती नज़रों का..
Uf!!
Mitt gaye maree umeed ke tara harf magar
aaj tak tarey khatoon say taree kushboo na gayee.
(not mine)
Puran chand
गजब है रूमानियत!
अब पढ़ने को मिल रहा है जब यह भूल सा गया हूं कि कुड़ी कैसी होती है! :(
जब -जब अंतर्मन में झांको एक ऐसा शब्दकोष खुल जाता है जिसमें शब्द और भाव एक साथ निर्झर होते हैं बस शर्त वही है ...की आप अंतर्मन की धड़कन पढ़ना जानते हों .बहुत-बहुत बधाई .
उफ़ .... तुम भी न ... क्या गज़ब करते हो समीर भाई ... साधना भाभी और तुम्हारी फोटो गुज़र गयी नज़रों के सामने से ... और कौन कमबख्त कहता है तुम बेसुरे हो ....
हर पंक्ति दिल को चीरती हुई निकली जाती है.... हर शब्द , हर पंक्ति भावनाओं के सागर में गोते लगाने को मजबूर करती है....
-आकर्षण
bahut khoobsurat abhivyakti...aabhar
लाजवाब लिखा है आपने....बहुत सुंदर...समीर जी
क्या बात है...ये दर्द बड़े गहरे से निकला है...डायरी के सफ़ेद पन्नों में गुम दास्तान...बहुत ही संजीदा लेखन...
एक और बूँद उस आँसू की-- जो प्रवाहित कर गई सारे भाव बिना लिखे तुम्हारे पढ़ने को...बांच लोगी तुम...मुझे पता है...सुन तो सब लेते है लेकिन तुम धड़कन पढ़ना जानती हो!
बहुत सुन्दर .. अतीत के पन्ने पलट कर रख दिए हैं ... अच्छी प्रस्तुति
तुम्हारे तुम होने की या तुम्हारे गुम होने की.....
भावुक कर देने वाली बेहद खूबसूरत रचना.....
बधाई...
@यूँ ही दिल ने चाहा था, रोना रुलाना...
तेरी याद तो बन गई एक बहाना...
बहुत खूब भाई जी.
एक कुड़ी जेदा नाम मोहब्बत...
गुम है...गुम है...गुम्म है!!!!.......
:) har bar ki tarah NIce Post...
बहुत लाजवाब लेख, खुली आंख से देखे सपने ही अपने होते हैं, बंद आंखों मे तो सपनों पर भी किसी और का वश है. इसलिये आंखे खुली रखकर सपने देखना ही समझदारी है.
रामराम
जब सुर ही साथ छोड़ बैठे हों तो क्या खोना क्या पाना? वह तो लय वापस आने के बाद पता लगता है कि क्या पाना था?
master... truly...
mai aur kuch kah saku itni badi bhi nahi...
जज़्बात अगर मोती की शक्ल अख्तियार कर लेते और उन्हें धागे में पिरोकर माला बनायीं जाती तो तो वह ठीक आपके इस आलेख जैसी होती. इधर कुछ दिनों से आप बहुत ज्यादा जज्बाती होते जा रहे हैं. जज्बों की नदी में तैरना अच्छा है. इसमें गोते लगाने से भी बहुत कुछ मिल जाता है लेकिन उसमें बह जाना खतरनाक है..वैसे लिखने वाला तैरकर निकल जाये और पढने वाला लहरों के थपेड़ों में गुम हो जाये. इसका खतरा ज्यादा है.
TUMAREE YAAD HEE TUMSE BHALEE HAI
JO GAM MEIN SAATH DENE AA GAYEE HAI
YAADEN HAMESHA KUCHH N KUCHH APNE
SAATH LAATEE HAIN .MARMIK ABHIVYAKTI KE LIYE BADHAAEE AAPKO.
bahut खूब दादा
वाह क्या बात है
बहुत ही भावनात्मक. बहुत खूब. बधाई.
तने से पीठ टिकाये मैं
और मुझ से टिकी तुम...
वाह क्या कल्पना है समीर भाई| जय हो|
बहुत बहुत खुबसूरत....
हर कविता लिखी जाये ये जरुरी तो नहीं...भाव यूँ भी अपना सफर तय करना जानते है..उनकी अपनी तरंगे हैं...
Bavon ki ye tarnagen,safar bahut acha taya kiya aapne..gahri chaap,rachna bhi anmol...hardik badhai..
सपनों की दुनिया का
वो पूरा चाँद देखते .....
मत करना उम्मीद मुझसे कि
कुछ गुनगुनाऊँगा मैं...
याद है तुमने कहा था उस रात
मुझसे दूर जाते
कितना बेसुरा हूँ मैं...
-मैं फिर तुम्हें खोना नहीं चाहता...
बेसुरेपन की धुन तुम क्या जानो,
दिल से निकले आह की अंगड़ाई है
समीर जी भाव -विभोर कर दिया आपने , बधाई !
क्या खूब लिखा है..!! लाजवाब..!!!
वाह सर जी,
मेरे पास शब्द कम है तारीफ में
समूची पोस्ट काव्यमय है भावविभोर कर दी ..
सुन तो सभी लेते है तुम धड़कन पढना जानती हो
बेहद सुंदर.... धड़कन पढने वाले लोग बहुत शानदार होते है !
khubsurat ehssao ko kitni sehjta se prstut kiya hai aapne... bhaut khub...
बहुत भावप्रणव पोस्ट!
बैठ किसी भरे पेड़ के नीचे
तने से पीठ टिकाये मैं
और मुझ से टिकी तुम...
बँद आँख
सपनों की दुनिया का
वो पूरा चाँद देखते ..... bade hi santulit andaz mein shabdon ka istemal karte hain ..lagata hai aap jo kuch likh rahe hain ham uske sakshi hain..sadar pranam ke sath
आपको पढना सदैव अच्छा लगता है। इसबार भी।
आपकी यह पोस्ट पढ कर मेरे मन की बात, श्रीसूर्यभानु गुप्त के इस शेर के जरिए पूरी होती है -
यादों की इक किताब में कुछ खत दबे मिले
सूखे हुए दरख्त का चेहरा हरा हुआ
very nice meaningful creation.
खूब .... रूमानी भावों की गहरी अभिव्यक्ति
'एक बूँद और अपने आँसू की उस पन्ने के कोने पर...और इन्तजार करता हूँ कि कब वो मिल जाये उस निशान से,'
ओह यह तो आत्मा और परमात्मा के अद्भुत मिलन सा है एकदम अशरीरी. बिना प्यार किये कोई प्यार की गहन अनुभूति को इस तरह शब्दों में नही ढाल सकता.
जाने ...आप जैसे विद्वान लेखकों को शब्दों के खेल में माहिर भी देखा है मैंने.किन्तु आप????नही .शब्दों से खेलते नही आप.खेल ही नही सकते.आप 'उन' लेखकों जैसे नही हो सकते दादा!
प्यार का पावन अद्भुत और खूबसूरत रूप देखा है मैंने आपकी रचनाओं में.
विचलित कर देती है ऐसी रचनाये मुझे.क्यों बुरी तरह रोने लगती हूँ मैं?????और भगवान से कहती हूँ 'इन्हें इस जनम में दूर किया.अगले जन्म में ऐसा मत करना.मिला देना.इन दो आंसुओ की बूंदों की तरह. सचमुच दिल को छू लेने वाला लिखते हो दादा कभी कभी तो.दुष्ट हो.मैं यहीं से आपके मन की उथल पुथल को देखती हूँ और....भीगी हुई आँखों को भी.ऐसा न किया करो दादा! हम कठपुतलियाँ हैं.हम लिखते हैं.हमारा ???कोई और लिखता है.
priytam kee madhur yaad ,wirah kee vedanaa ,sundar abhiwyakti.
अतीत की यादो के सफ़र में हम भी आपके साथ ...घूम आये
इस अतीत के पन्नो में छुपे राज़ को हम भी कहीं काफिले के
रूप में हम साथ ले आये ....बंद है कुछ पन्ने मेरी भी जिन्दगी के .....
अनु .......
भावुक कर देने वाली रचना
aapme shab-dar-shabd dusre ke bheetar kahin gahre me sama jane ka hunar maalum hai aur jab post khatam hoti hai to nikalna mushkil ho jata hai.
uff....lekin nikalna to padta hai.
bheegi si chader samite.
सर, बहुत अच्छा लगा आज आपको पढ़कर। मन नहीं कर रहा हटने को। बार-बार पढऩे को जी कर रहा है।
आदरणीय समीर लाल उड़न तश्तरी जी --सुन्दर लेख व् सशक्त रचना काफी कुछ कहती सन्देश देती हुयी -बीते लम्हे याद आते हैं तो मन ....
शुक्ल भ्रमर 5
याद आता है वो लम्हा, जब कैद कर लिया था इस पन्ने ने, तुम्हारी आंसू की उस बूँद को- जो टपकी थी उस वक्त जब मेरी डायरी पर झुकी तुम मुझसे नजरे चुराती कह रही थी..अलविदा. अब शायद अगले जनम में मुलाकात हो. कहा था तुमने कि हम वादा करें कि अब कभी नहीं मिलेंगे इस जनम में.....
भावुकता से परिपूर्ण सुन्दर पोस्ट.
यूँ ही दिल ने चाहा था, रोना रुलाना...
तेरी याद तो बन गई एक बहाना...
लिखूँ उसी पन्ने पर एक कविता...तुम्हारे तुम होने की या तुम्हारे गुम होने की.....
मैं फिर तुम्हें खोना नहीं चाहता...
मत करना उम्मीद मुझसे कि
कुछ गुनगुनाऊँगा मैं...
याद है तुमने कहा था उस रात
मुझसे दूर जाते
कितना बेसुरा हूँ मैं...
-मैं फिर तुम्हें खोना नहीं चाहता...
wah......ekdam gazab ka likhe hain aaj to......
अतीत की आंसू की बूंद को वर्तमान के ब्लोटिंग पेपर से सोखने का शाश्क्त प्रयास
aapka likha gadya bhi itna kavyamay hota hai ki kavita hi lagta hai aap bahut hi sunder tarike se apni lekhni ke sang sabhi ko baha le jate hain
saader
rachana
ओह्ह्ह !!! 68 कमेंट्स मिलने के बाद, मेरे 69वें कमेन्ट की वैल्यू मिलेगी या नहीं चाचू ???
हमको तो अच्छी लगी पूरी पोस्ट... बाकी सबकी टिप्पणियों में से थोडा थोडा मेरा भी समझ लीजिये... :)
मुंडिया इह तां दस् इह किहड़े उपन्यास दा हिस्सा है ....?
अब ये कौन सा उपन्यास लिखा जा रहा है समीर जी .....?
हमारी बुकिंग तो पहले से है .....
यादों के सफे पर टपकी वह आँसू की बूंद कितनी सहेज़ कर रखी है । भाव अपना सफर तय करना जानते हैं शायद तय करके मंजिल तक पहुँच भी गये हों ।
आज तो दर्दे दिल बयाँ कर डाला समीर जी ।
प्यारी रचना, ख़ूब दर्द संजो कर रखा है आपने !
कुछ तो मजबूरियां रही होगी,
ख़्वाब बहते न आंसू बनकर यूं ?
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यह भी कहना चाहूँगा कि:-
"इक कड़ी जेदा नाम हिम्मत है,
गुम थी कहीं ! गुम थी कहीं !! गुम थी कहीं !!!
http://aatm-manthan.com
बहुत देर से इस पोस्ट पर रुक गया हूँ .. क्या कहूँ.. न शब्द है , और न ही मन और न ही कुछ और .. सब कुछ तो आपने अपने इस पोस्ट में समेट लिया है .
मन कही जाकर किसी waterfall के पास रुका हुआ है .. सांस किसी चादर पर ठहरी हुई .. शब्द किसी शहर में किसी का इन्तजार करते हुए.. सब कुछ ठहर गया है ..और गले में बहुत कुछ अटक गया है .. आँखों के किनारे पर पानी में किसी का नाम भी तैर रहा है ....भैय्या अब और न लिखा जायेंगा .. ऐसी पोस्ट्स मत लिखा करो सर जी ..
विजय .
चलने में करीचियों की चुभन और दर्द का मीठा सा अहसास… zindagi ke raste bhi ese hi hain… nahi? ek hi line mein kitna kuch keh diya aapne…
नींद से जागने का मन नहीं होता..... दुनिया सोने नहीं देती. मैं जाग नहीं पाता तो लोग अक्सर ही दीवाना नाम दिये जाते हैं..मुझे बुरा नहीं लगता ये नाम भी.
Amazingly beautiful post, every line is profound, probably worth a whole post in itself…!
सच ही तो कहा है...हर कविता लिखी जानी ज़रूरी भी नहीं...। किसी कविता सी ही बस सीधे मन की गहराइयों में उतरने वाली पोस्ट है यह...पोस्ट नहीं यादें...।
क्या कहूँ...यादों की गली में टहलने के लिए बधाई दूँ या बस खामोश रहूँ ???
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