एक गांव में सरपंच जी ने बैठक बुलवाकर घोषणा की कि अब अगले माह तक हमारे गांव में बिजली आ जायेगी.
पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ पड़ी. उत्सव का सा माहौल हो गया. हर गांववासी प्रसन्न होकर नाच रहा था.
देखने में आया कि गांव के कुत्ते भी खुशी से झूम झूम कर नाच रहे थे. यह आश्चर्य का विषय था.
लोगों ने कुत्तों से जानना चाहा कि भई, तुम लोग क्यूँ नाच रहे हो?
कुत्तों ने बड़ी सहजता से जबाब दिया कि जब बिजली आयेगी तो इतने सारे खम्भे भी तो लगेंगे.
मुझे मेरे मित्र ने जब यह किस्सा सुनाया तो प्रथम दृष्टा तो यह चुटकुला ही लगा मात्र हास्य बोध देता किन्तु गहराई से सोचा जाये तो हम इन्सानों में यह आदत क्यूँ नहीं? क्यूँ हम किसी और की खुशी में अपनी खुश होने की वजह खोजने के बदले इर्ष्यावश दुखी होकर बैठ जाते हैं?
खैर, एक विचार उठा तो सुना दिया.
ऐसे ही कुछ समय पहले कुछ विचारों को, कुछ भावों को शब्दबद्ध कर कवि मित्र शरद कोकस जी से बात कर रहा था और उनके मार्गदर्शन में उसी रचना में कुछ सुधार कर यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ:
साहित्य के ध्रुव |
कीड़े मकोड़ों की तरह माचिस की बिना किसी मकसद वहीं बुद्धि के विमान में सवार अपनी गिद्ध-दृष्टि से एक आधी-अधूरी कविता जिसे अब साहित्य पुकारा जाता है!! -समीर लाल ’समीर’ |
107 टिप्पणियां:
कुछौ समझै में नाई आ रहा की का कमेंटवा करी जबसे दाग्डार ने कमेंटवा की जिद न करो का आलाप लिया है
या एक निरर्थक कहानी...
सार्थकता और निरर्थकता तो सापेक्ष है. जो निरर्थक है किसी के लिये सार्थक है किसी के लिये.
आधी अधूरी कविता रचकर यदि मकसद (पता नहीं कौन सा) पूरा होता है तो यह अधूरी कहाँ रही.
और फिर बिजली आने की खुशी तो कुत्तों (सचमुच के कुत्ते) को ही सबसे ज्यादा होगी.
आपकी कहानी से आपकी पोसिटिव थिंकिंग साफ़ झलक रही है ...
वाह सर,
मज़ा आ गया आशावादी दृष्टिकोण देखकर(कुत्तों का)।
भाई शरद कोकास और आप दोनों का धन्यवाद जो इसे साहित्य सृजन तक सीमित रखा अगर दायरा ब्लाग लेखन तक बढ़ता तो हम भी फंस जाते ! सच में बुरा तो लगता ही :)
वैसे टिप्पणी बतौर इतना ही कहेंगे यथार्थ परक और निर्मम कविता !
जो व्यक्ति दूसरों की ख़ुशी देखकर कुढ़ता नहीं और उनकी ख़ुशी में अपने खुश रहने की वजह तलाश लेता है वह जीवनभर सुखी रहता है वहीँ दूसरों की ख़ुशी से ईर्ष्या करने वाले जीवनभर दुखी |
कई बार छोटे छोटे चुटकले भी बहुत गूढ़ समझा देते है |
काश की कुत्ते होकर खंबों के लगने के आनंद का सोचकर ही खुशी व्यक्त कर पायें, पर वो कुत्ते हैं न और हम इंसान यह है सबसे बड़ी समस्या, कि इंसान के पास जो चीज है वो किसी ओर जीव के पास नहीं है कि वो चीजों को रच सकता है, नहीं तो हम आपके विचारों तक नहीं पहुँच पाते।
अब भला बतायें कि हमारी गली का कुकुर किसी ओर जगह के कुकुर से अपनी विचारों को थोड़े ही साझा कर सकता है।
साहित्य के तो क्या कहने, अगर मनन करें तो कविताएँ हमेशा अधूरी ही रहती हैं, क्योंकि जब कवि पूर्ण नहीं है तो उसकी रचनाएँ कैसे पूर्ण होंगी।
अपनी गिद्ध-दृष्टि से
वे देखते हैं दुनिया
और रचते हैं
और खुशी मनाते हैं
नए खंभों के खड़े होने की:)
बढिया पोस्ट समीर भैया
आभार
लोगों ने कुत्तों से जानना चाहा कि भई, तुम लोग क्यूँ नाच रहे हो?
कुत्तों ने बड़ी सहजता से जबाब दिया कि जब बिजली आयेगी तो इतने सारे खम्भे भी तो लगेंगे.
... bahut khoob .... कुत्तों को भी जश्न मनाने का हक है, उनका नाचना-गाना भी जायज है !!!
छोटी बातें भाव कमाल
कहते इसे समीर लाल
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
प्रस्तुत कविता निराशा का भाव उत्पन्न करती है जो सही नहीं है। इन्ही आधे-अधूरे प्रयासों में ही पूर्णता की संभावना छुपी होती है। सरकते घिसटते कवि कथाकार दिखाते रहते हैं समाज की सुंदरता और विद्रुपतता। साहित्य सृजन और साहित्यकार के निर्माण की यह एक सतत प्रक्रिया है।
माचिस की डिब्बियों का पुराना स्वरूप परिवर्तित होकर अब ब्लॉग रूपी उपयोगी डिब्बियों के तौर पर उपलब्ध है और माचिस की डिब्बी में टिप्पणियां उसकी तीलियां हैं। इनमें कुछ सीली, कुछ गीली, कुछ पनीली,कुछ ढीली, कुछ सख्त, कुछ लाइट, कुछ ब्राइट, कुछ रांग, कुछ राइट, कुछ रंगीन और बाकी रंगहीन जबकि आपकी माचिस की डिब्बी में 100 से अधिक तीलियां रहती हैं फिर भी आवाज नहीं आती है। पर यह तय है कि ब्लॉग विचारों की आग से सराबोर है।
कुत्तों के माध्यम से बहुत बड़ी बात कह गये, सर!
समीर भाई, कविता भी और चुटकुले से निकला अर्थ भी विचारों को नवीनता देते हैं। बहुत अच्छा लगा पढ़कर, सच में आप ब्लाग जगत के लिए आदर्श हैं।
ये जो टांग उठाने की आदत आम हो गई,
तौबा-तौबा ब्लॉगिंग बदनाम हो गई...
और ये साहित्य नहीं है...
जय हिंद...
अच्छी वैचारिक विश्लेष्णात्मक आधारित रचना के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद /हम आपको अपने इस पोस्ट http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html पर देश हित में १०० शब्दों में अपने बहुमूल्य विचार और सुझाव रखने के लिए आमंत्रित करते हैं / उम्दा विचारों को हमने सम्मानित करने की व्यवस्था भी कर रखा है / पिछले हफ्ते अजित गुप्ता जी उम्दा विचारों के लिए सम्मानित की गयी हैं /
उत्सव मनाने का हक तो कुत्तों का भी है।
कब तक हड्डियों को चुसते रहेंगे।
कभी तो बोटी भी मिलनी चाहिए।
वैसे कुत्तों के प्रतीक के माध्यम से
बहुत ही गहरी बात कही है......
प्रतियोगिता कहीं न कहीं इस जलन भरे परिदृष्य के लिये जिम्मेदार है।
पर बुराई अच्छाई को बिल्कुल मार ही न दे इसके लिये
इधर उधर बिखरी पड़ी अच्छाई का सयुंक्त रुप से एकत्रित होकर हुंकार भरना जरुरी है
तब बुराई का महत्व
गॉयबलिस्म के बावजूद ज्यादा नहीं होगा।
क्यूँ हम किसी और की खुशी में अपनी खुश होने की वजह खोजने के बदले इर्ष्यावश दुखी होकर बैठ जाते हैं?
"इंसान की एक आम कमजोरी है.....सच में मिलता क्या है, अपना आप हु दुखी करता है इंसान मगर फिर भी...."
regards
और रचते हैं एक आधी-अधूरी कविता
या एक निरर्थक कहानी... जिसे अब साहित्य पुकारा जाता है!! -
समीर जी ! साहित्यकार परिवर्तन चाहता है !इसलिए वह लिख रहा है !एक समय आएगा जब वह लिख पायेगा ....एक पूरी और सार्थक पंक्ति ! और वह समाज को दिशा देगी !आपके भीतर बासीपन को उखाड़ फेंकने की अद्भुत चाहत है ! यही संजीवनी है ! आभार !
जब बिजली आयेगी तो इतने सारे खम्भे भी तो लगेंगे?????????????
सबकी अपनी अपनी खुशी होती है कोई बिजली के लिए कोई खंभे के लिए...बढ़िया प्रसंग..कविता भी बढ़िया...साहित्यकार बहुत हो गये है...समीर जी सुंदर प्रसंग के लिए बधाई
वहीं बुद्धि के विमान में सवार
लोगों को भी
ऐसा ही दिखता है
दुनिया का हाल
अपनी गिद्ध-दृष्टि से
वे देखते हैं दुनिया
और रचते हैं
बहुत बेहतरीन. कुत्तो वाली बात हमारे बीनू फ़िरंगी ने बतायी थी, उस समय कुत्तों का सरदार वही हुआ करता था.
रामराम
वहीं बुद्धि के विमान में सवार
लोगों को भी
ऐसा ही दिखता है
दुनिया का हाल
अपनी गिद्ध-दृष्टि से
वे देखते हैं दुनिया
और रचते हैं
बहुत बेहतरीन. कुत्तो वाली बात हमारे बीनू फ़िरंगी ने बतायी थी, उस समय कुत्तों का सरदार वही हुआ करता था.
रामराम
साहित्य के बारे में जो आपकी राय है, वह एक हद तक सही है मगर मुझे सार्वभौम नहीं लगता ।
अनुभूत सत्य झेलने वाले और उसे लिखनेवाले यदि एक ही होते तो इतना बड़ा और सार्थक साहित्य दुनिया के सामने नहीं आ पाता।
दिल यह भी स्वीकार नहीं करना चाहता कि आज जो भी साहित्य में लिखा जा रहा है, वह सब प्रकाशक और सो-कॉल्ड साहित्यकारों का बिजनेस फंडा है।
यदि कविता आधी-अधूरी लगती है या कहानी निरर्थक-सी जान पड़ती है तो वह इसलिए कि आज हमें हमारा दौर निरर्थक और आधा-अधूरा प्रतीत होता है।
आपकी कविता सोचने को मजबूर करती है
और ऊपर वाला प्रसंग तो बहुत मजेदार है, हमेशा याद रखने लायक।
"कुत्तों ने बड़ी सहजता से जबाब दिया कि जब बिजली आयेगी तो इतने सारे खम्भे भी तो लगेंगे"
यही तो अन्तर है हमारी और इनकी सोच में!
शिक्षाप्रद पोस्ट!
क्यूँ हम किसी और की खुशी में अपनी खुश होने की वजह खोजने के बदले इर्ष्यावश दुखी होकर बैठ जाते हैं? अगर ऐसा हो जाए तो फिर क्या बात है।
वैसे आपका विचार और कविता दोनों ही आत्म मंथन के लिए के लिए विवश करती है।
समस्या मानसिकता की है । जब तक यह सोच रहेगी कि संसाधन सीमित हैं, उनके लिये झगड़ा होता रहेगा । सबका अपना व्यक्तित्व है, अपनी विचार श्रंखला है तो जो रचनायें होंगी वो भी अलग होंगी । पढ़ने वाले भी अलग होंगे । चाह कर भी टकराव नहीं हो सकता ।
मानसिक भ्रम है, सिर फुटौव्वल की जड़ । शीघ्र भ्रम से निकलना ही निदान है ।
ab kya karen!
खम्भा खोजिये .... बी पोजिटिव ... :-)
"क्यूँ हम किसी और की खुशी में अपनी खुश होने की वजह खोजने के बदले इर्ष्यावश दुखी होकर बैठ जाते हैं?"
क्योंकि हमारी कुशिक्षा ने हमें दूसरों की खुशी को अपनी खुशी मानने के संस्कार ही नहीं दिये हैं।
बहुत कुछ सीखने को मिलता है यहाँ!हर बार!
कुंवर जी,
समीर जी,
कविता बहुत अच्छी और सार्थक है ... हर कोई अपने आप को डिबिया में बंद कर सोचने लगता है और बिना किसी मकसद के अपनी लिखी बातों को साहित्य बना देता है ...... अब क्या करें हमारी तो आपने एक दो बार पीठ थपथपा दी तो हम और लिखने लगे ....:)
साहित्य सकारात्मक और सार्थक करने का ही नाम है !!
कुत्तों का खम्भों से क्या कनेक्शन है?
ओहो, समझ गया।
आजकल के साहित्य पर यह एक गंभीर कटाक्ष जान पड़ता है. आभार.
@क्यूँ हम किसी और की खुशी में अपनी खुश होने की वजह खोजने के बदले इर्ष्यावश दुखी होकर बैठ जाते हैं?
ईर्ष्या या घृणा के विचार मन में प्रवेश होते ही खुशी गायब हो जाती है। प्रेम व शुभ भावनायुक्त विचारों से उदासी दूर हो जाती है।
बहुत खुबसूरत कविता हैं...बधाई
समीर जी ,
बिजली के खम्बे का किस्सा बढ़िया है...
और रही कवियों की कागज़ काले करने की बात तो...सब अपने मन के अधूरेपन को ही लिखते हैं...अब वो कभी निरर्थक भी हो सकती है कभी सार्थक भी...पर जो समाज को चेतना दे सके सही मायने में वही साहित्य की श्रेणी में आनी चाहिए...
सुन्दर प्रविष्टि के लिए आभार
fantabuls.......us yaad ke zariye jo bat kahi wo bhi achhi ..aur nazm ke zriye jo kaha.. wo bhi sach .
साहित्य के नग्न सत्य को उघारती एक गम्भीर कविता। बधाई।
--------
गुफा में रहते हैं आज भी इंसान।
ए0एम0यू0 तक पहुंची ब्लॉगिंग की धमक।
क्यूँ हम किसी और की खुशी में अपनी खुश होने की वजह खोजने के बदले इर्ष्यावश दुखी होकर बैठ जाते हैं?
यही तो मैं भी कहता हूँ....ऐसा नहीं करना चाहिए.....
बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट....
सादर
महफूज़...
कविता तो बढ़िया है. लेकिन ऊ खम्भन वारी बात... :))
एक आदमी जब कविता करता है तो उसे कविता कहते हैं.
यही काम जब दो लोग मिल कर करें तो उसे क्या कहा जाए .........
कवि लोगों से पंगा :) "पंगा कवि"
कुत्तों पे दया आती है , इंसान पीछा क्यों नहीं छोडता
किन्तु गहराई से सोचा जाये तो हम इन्सानों में यह आदत क्यूँ नहीं? क्यूँ हम किसी और की खुशी में अपनी खुश होने की वजह खोजने के बदले इर्ष्यावश दुखी होकर बैठ जाते हैं?
...यह तो वाकई सोचने वाली बात है..गंभीर सवाल !!
समीर भैया , बहुत बहुत आभार ! जिस तरह से आप बड़ी से बड़ी बात सहजता से समझा जाते है ........ हर एक बस की बात नहीं !
नमन आप को !
बहुत विचारोत्तेजक रचना है आपकी. ऐसी रचाना हमसे साझा करने के लिये धन्यवाद.
Itni sanjeeda post padhke,meri to zuban khamosh ho jati hai..
बिजली आई की नही? खाम्खां मै गांव वालो ओर कुत्तो को सपने ही दिखा दिये, कविता बहुत सुंदर लगी जी.
bahut bahut sundar panktiyaan!
सच है, दूसरों की खुशी में खुश होना तो जैसे हमने सीखा ही नहीं. सुन्दर कविता.
bahut badhiyaa
कुत्तों को पता नहीं सरकार आजकल अंडर ग्राउंड केबल डाल रही है..:)
बात बिजली की है, तो हम यही कहेंगे, अभी भी बहुत उपाय करने बाकी हैं, हिन्दुस्तान के बहुत से शहरो, कस्बो, गाँव में.
.
Positive Attitude--
Baby mosquito came back after 1st time flying.
His dad asked him "How do you feel?"
He replied "It was wonderful, Everyone was clapping for me!"
Now that's what I call Positive Attitude.
Smiles..
बहुत शानदार पोस्ट व्यंग के बाद गहरी बात...."
बिना किसी मकसद
रेंगते भटकते
कागज़ काले करते लोग..
ओह!! बहुत गहरी बात कह दी..इस कविता के बहाने
बहुत अच्छा लगा पढ़कर, सच में आप ब्लाग जगत के लिए आदर्श हैं।
आपका विचार और कविता दोनों ही आत्म मंथन के लिए के लिए विवश करती है।
badhiya baat ...us par ...vyangya ke saath...badhai sweekar le aap
समीर जी और शरद जी से क्षमा याचना सहित इस कविता में संशोधन करना चाहूंगा।
कीड़े मकोड़ों की तरह
एक दूसरे पर लदे-फदे
सरकते घिसटते
ब्लागिंग में
अपनी दुनिया बसाये
बिना किसी मकसद
रेंगते भटकते
कागज काले करते लोग..
वहीं बुद्धि के विमान में सवार
लोगों को भी
ऐसा ही दिखता है
दुनिया का हाल
अपनी गिद्ध-दृष्टि से
सब देखते हैं दुनिया
और रचते हैं
एक आधी-अधूरी कविता
या एक निरर्थक कहानी...
जिसे साहित्य कहा जाता है!!
बिजली आएगी तो खम्बे ज़रूर लगेंगे, मगर अगर हियाँ की बात है, युपोरियन टाइप, तो बाद में खम्बे होंगे, मगर बिजली नहीं आएगी।
जब आएगी, तो कँटिया मारेंगे लोग।
बहरहाल आपने कुत्तों का ख़ूब ख़्याल रखा, इसलिए हम उसी समाज की तरफ़ से आप का शुक्रिया अदा करने आए हैं।
वफ़ादार हैं न, बस दुम हिलाना अउर सीख रहे हैं आजकल।
सादर-सस्नेह,
हम इन्सानों में यह आदत क्यूँ नहीं?
क्योंकि हम कलयुगी इंसान हैं।
खुद आगे बढे न बढ़ें , दूसरों को नीचे गिराने की फ़िराक में रहते हैं।
अब साहित्य की समझ तो ज्यादा है नहीं, क्या कहें शायद ऐसा ही होगा।
गमों की आंच पर आंसू उबाल कर देखो
बनेंगे रंग किसी पर भी डाल कर देखो
तुम्हारे दिल की जलन भी जरूर कम होगी
किसी के पाँव से कांटे निकाल कर देखो
कहते हैं जानवरों की सिक्स्थ सेन्स बहुत स्ट्रोंग होती है ..हो सकता है उनका नाचना कोई संकेत हो?
--निराशा में आशा है.बाकि ईर्ष्या दुःख की जननी है ..जल जल कोयला भयेगा मन.और
सही कहा -- दुनिया का हाल अपनी गिद्ध-दृष्टि से वे देखते हैं.'
आप आईना ले आये हैं और दिखाते अच्छा भी है
कविता में जो भाव समेटा,सच्चा भी है अच्छा भी है
लेकिन बाद आज के होगा फिर ब्लाग पर वो ही किस्सा
जिसका ज़िक्र करें न हम तुम, तो सचमुच में अच्छा ही है
सच कहा आपने...बात सिर्फ दृ्ष्टिकोण की है..जो आपकी दृ्ष्टि में सार्थक है, हो सकता है शायद वो मुझे निरर्थक लगे...निरापेक्ष कुछ भी नहीं, सब सापेक्ष है......
भाई अली जी को अपनी चिन्ता सताने लगी :-)
समीर जी क्या कहें...अगर आपके विचार लोगों की समझ में तिनका मात्र भी घुसे हैं...तो शायद कुछ लोगों की खुशी बढ़ जायेगी...लेकिन अफसोस महत्वाक्षांओं की इस दौड़ में हर कोई पहले नंबर पर नहीं आ सकता...इसीलिये क्रैब मेनटेलिटी है इंसानों की ..पीछे खींचते रहते हैं...आगे वाले को...जो नहों खींच पाते वो ईर्ष्या करते हैं
इस निरर्थक कविता और कहानी के संगम का उदाहरण हम बहुत पहले अपनी एक पोस्ट में दे चुके हैं. किसी भी गद्य को आप तोड़-तोड़ कर लिख दीजिये हो गई कविता. आप कुछ भी मसालेदार लिख दीजिये जिसमें यौन प्रसंग हो, प्रेमालाप हो, युवा हो बस हो गई कहानी......इसी के दम पर हम कहते हैं कि हम साहित्यकार हैं और हमारा लिखा साहित्य है.......भले इसे सिर्फ हम ही पढने वाले ही क्यों न हों.
==================================
इस निरर्थक कविता
और
कहानी के संगम का
उदाहरण
हम बहुत पहले
अपनी एक पोस्ट में
दे चुके हैं.
किसी भी गद्य को
आप तोड़-तोड़ कर
लिख दीजिये
हो गई कविता.
आप कुछ भी
मसालेदार लिख दीजिये
जिसमें
यौन प्रसंग हो,
प्रेमालाप हो,
युवा हो
बस हो गई कहानी......
इसी के दम पर
हम कहते हैं कि
हम साहित्यकार हैं
और
हमारा लिखा साहित्य है.......
भले इसे सिर्फ
हम ही पढने वाले
क्यों न हों.
==================
क्या इसी को नई कविता तो नहीं कहते?
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
एक आधी-अधूरी कविता
या एक निरर्थक कहानी...
जिसे अब साहित्य पुकारा जाता है!!
aa ha ha
jise ab sahitya pukara jata hai
ajee aap to pol kholak yantra ban gaye hain.......
अपनी गिद्ध-दृष्टि से
वे देखते हैं दुनिया
और रचते हैं
एक आधी-अधूरी कविता
या एक निरर्थक कहानी...
जिसे अब साहित्य पुकारा जाता है!!
-----------------------------
और अक्सर पुरिस्कृत भी हो जाते हैं :)- वीनस
अच्छा है...
गांव के कुत्ते भी खुश हैं.. और शायद कुत्ते ही खुश हैं...
इधर दु चार बार से देख रहे हैं कि आपका लिखने का इश्टाइले बदल गया है..का बात है.. ?? कम्पीटीशन बढ गया बुझाता है..पहिले आप 10% और 90% वाला फिलोस्फी दिये, उसके बाद शौचालय में कुदकर सुइमिंग करने वाला, फिर देखावा वाला और अब ई एगो नया सगूफा छोड़ दिये हैं.. एके बार में जेतना लिखने वाला लोग है, सभे को आप त कीड़ा मकोड़ा और कुत्ता बना दिए जो इहाँ ब्लॉग्स्पॉट पर मूत्र विसर्जन करने आता है..भाई जी आप त बहुते बड़ा साहित्यकार हैं, त एगो अंगरेजी साहित्य का कवि हैं बाबू पी. बी. शेल्ली..उनका कहनाम था कि हमरा सबसे मधुर संगीत ओही होता है जिसका भित्तर से दुःख का सुर फुटता है. और इहाँ जेतना आदमी लिखता रहता है सब अंदर से कवि है.. कहीं न कहीं भोगा है ससुरा तबे जाकर कुछ लिखता है...हमको भी पता है कि बहुत लोग कबिता के नाम पर तुकबंदी करता है, तबो उसका भावना देखिए... साह्जहाँ ताजमहल बना दिया त उसका प्यार महान हो गया और हमरा जइसा आदमी का हैसियत नहीं था त हमरा प्यार का कोनो कीमत नहीं...आप जइसा पढा लिखा और काबिल आदमी भी ओतने भावना को फील करता है जेतना कोई रेक्सा चलाने वाला...उसका मन में भी ओही बात है कहने के लिए जो आपका मन में है..आप कबिता लिख दिए और ऊ तुकबंदी.. अब बताइए कि ऊ कहाँ से कुता हो गया... हमको त इहो नहीं लगता है कि ऊ अपना आप को साहित्त्कार भी बोलता होगा बेचारा… तब त आप उसको ई अपराध में कुत्ता बना दिए जो ऊ बेचारा करबे नहीं किया था...आप बहुत बड़ा साहित्तकार हैं त तनी बड़प्पन मेंटेन किजिए… (पिछला बार त हमारा कमेंट छाप दिए थे अबरी त कोनो चांस नहीं है)...
जिसे अब साहित्य पुकारा जाता है!!
------------ ek baargee to aisaa hee kagtaa hai n ! par waastav men naa naa naa !!!
समीर जी, प्रणाम,
आपकी ये कविता कई बार पढ़ी और आप जो कहना चाहते हैं वो समझने कि कोशिश कि, आजकल बहुत से कवि कथाकार बहुत कुछ अच्छा भी और बुरा भी लिख रहे हैं, लेकिन हरेक को उपयुक्त मंच नहीं मिल पता और जो बहुत ही अच्छी रचनाएँ हैं वो भी साहित्य जगत के सामने ही नहीं आ पाती, वही कुछ प्रसिद्ध कवि कथाकार जिन्हें कि कई पुरस्कार मिल चुके है वे चाहे कुछ भी लिख दें चाहे वो किसी को समझ भी ना आए, उस कि चर्चा होती है और उसे साहित्य कि श्रेणी में रखा जाता है! मैंने आपकी कविता का निचोड़ यही निकाला है ! पता नहीं ठीक है या गलत ! अगर ये सही है तो बैचेन आत्मा जी को निराश नहीं होना चाहिए !
चला बिहारी ब्लॉगर बनने:
एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि आप हर बार इस भाव को लेकर ही क्यूँ कमेंट करते हैं कि यह नहीं छपेगा. क्या आपको लगता है कि जो आप लिख रहे हैं वो गलत है, अभद्र है या अमर्यादित भाषा में है जो इसे नहीं छपना चाहिये फिर ये कैसी कुंठा, मित्र और वो भी तब, जब आप अपने असली नाम से कमेंट नहीं कर रहे हैं और यह दीगर बात है कि मैं आपका आई पी जानता हूँ. इस तरह कमेंट करने में आपकी मंशा है कि आप छद्म नाम से कमेंट करें और आपकी असलियत उजागर न हो पाये तो उसका सदैव सम्मान होगा और आपका आई पी जो मेरे पास आया है, मुझ तक ही रहेगा. भविष्य में अगर इमानदारी से आलोचना कर रहे हैं तो निश्चिंत हो कर किया किजिये, बिना किसी अपराध बोध या ग्लानि के, कि टिप्पणी छपेगी या नहीं, जब तक भाषा की मर्यादा बरकरार रखते हैं.
अब आज की टिप्पणी के बारे में:
अव्वल तो आप सिर्फ आलोचनात्मक टिप्पणी करने के लिए टिप्पणी कर गये बिना आलेख और कविता में उतरे और उस पर भी आरोप यह कि काम्पटीशन बढ़ गया बुझाता है. तो निश्चिंत रहिये, आप तो स्थापित पहुँचे हुए लिख्खाड़ है, आपके सामने मुझ अदना से लेखक के मन में कैसा कॉम्पटीशन. अगर ऐसे भाव भी मेरे मन में आयें तो यह पाप की श्रेणी में ही मानूँगा. दूसरा, लेखन में यूँ भी कॉम्पटीशान होता नहीं है, जैसा आप खुद ही बाद में कह रहे हैं कि सबका अपना अपना सुर सबसे मधुर होता है, इस बात से मैं भी कहाँ इन्कार करता हूँ.
जरा गौर से पुनः पठन करें. गद्य एकदम अलग हिस्सा है और पद्य एकदम अलग, तो कृपया दोनों को मिला कर एक ही झोली में न भरें. फिर किसको क्या कहा गया है, संदर्भ क्या है, मंशा क्या है, भाव क्या हैं, उसमें उतरिये तो, आप खुद जान जायेंगे कि क्या लिखा गया है. इस चक्कर में जल्दबाजी में टिप्पणी मत करिये कि कहीं बाद में लोग आपकी टिप्पणी न पढ़ पाये तो आपका टिप्पणी करना ही बेकार चला जायेगा. जैसे यह पोस्ट यहाँ बनी रहेगी, आपका कमेंट भी बना रहेगा. आप सक्षम हैं अन्य माध्यमों से भी इस ओर सबका ध्यान आकर्षित करवा सकते हैं कभी भी.
पढ़िये, समझिये, मनन किजिये और फिर दिल खोल कर, यदि लगे तो, आलोचना किजिये-स्वागत रहेगा, इस नाम से भी या आपका असली नाम भी बुरा तो नहीं है, उसी से कर दिजियेगा.
अनेक शुभकामनाएँ.
ek chhand likhunga is post par....
sir ji kutton ne manushya ka bahut upkar kiya hai..itihas gavah hai pehli gulami in becharon ne hi li..fir bhi humar khushi mein shamil hain..
संक्षेप में गहरी बात यही तो आपका स्टाईल है |
क्या ब्बात है गुरू। बहुत मज़ेदार और उतना ही वाजिब। वाह वाह। कविता ने सब कुछ ही तो कह डाला। क्या अधूरा रहा ?
कुत्ते बहुत वफादार होते है और समझदार भी :) लिखते रहिये और रोशनी जगाते रहिये ...
>>>हम किसी और की खुशी में अपनी खुश होने की वजह खोजने के बदले इर्ष्यावश दुखी होकर बैठ जाते हैं<<<<
बहुत सटीक कथन .... आभार
Very thought provoking
वाह सर,
मज़ा आ गया....
ये पोसिटिव थिंकिंग पढ़िये...
झील पर बादल बरसता है हमारे देश में, खेत पानी को तरसता है हमारे देश में, कुछ फकीरों पागलों और आशिकों को छोड़कर, आज खुलकर कौन हँसता है।
माचिस की
डिबियों में ज्यों
अपनी दुनिया बसाये
बिना किसी मकसद
रेंगते भटकते
कागज़ काले करते लोग..
बहुत सुन्दर पंकियाँ! इतना बढ़िया लिखा है आपने की सोचने पर मजबूर कर देता है! हमेशा की तरह लाजवाब पोस्ट!
समीर बाबू प्रनाम,
अरे ई त हमहूँ जान रहे हैं कि आज कल टेक्नोलोजी के टाईम में आई.पी. पता लगाना कोनो बहुत बड़ा काम नहीं है... बाकी असली बात त अभियो रहिए गया... हमरा मतलब खाली एतना था कि जो बात आप कहे हैं ऊ तनी हर्ट करता है... ई हमरा ही नहीं, बहुत सा लोग का भी सोचना है ..काहे से कि हम सब लोग का कमेंट देखने के बाद लिखे थे…
ई बात भी नहीं समझ में आता है कि आपका चुट्कुला और कबिता में कोनो रिलेसन नहीं था.. आप ही कहते हैं कि मुँह से बात निकलने के बात बदल जाता है, आदमी के तरह हो गया है बात... तबे आप के बात का जो मतलब हम या और लोग लगाए हैं उसी के उपर कमेंट करेंगे …हो सकता है कि जो बात बहुत सा लोग छिपाकर बोला, हम तनी जोर से बोल दिए.. आपका हम बहुत इज्जत करते हैं , ई बात आप भी जानते हैं (हमरा आई.पी. त हइये है आपके पास)... और अपना बहुत सा दोस्त लोग के बीच (जो लोग ब्लोग़ नही पढता है) आपका चर्चा भी करते हैं... लेकिन इस तरह का बात दिल को ठेस पहुँचाता है...आपको हमरा भी तारीफ करना होगा कि आपका जैसा महाभारत का भगवान कृष्ण को भी हम चक्का उठाने पर मजबूर कर दिए...नहीं त आप कहाँ एतना लम्बा प्रतिक्रिया लिखने वाले थे...
असली नाम अगर खाली हमरा होता त जरूर लिखकर कमेंट करते... जाने दीजिए...कहा सुना माफ... आपका शुभकामना हमरे लिए आसीस है!! काहे से कि आप जिस अस्थान पर हैं, हमरा अस्थान के लिए उसपर का मालूम केतना जीरो लगाना पड़ेगा...
@ चला बिहारी ब्लॉगर बनने:
अब कहा सुनी किनारे करिये और अगर मेरी किसी भी बात से, लेखन से आपकी भावनाओं को ठेस पहुँची हो, तो शुद्ध क्षमायाचना मेरी तरफ से. आप भी जानते हैं कि मंशा ठेस पहुँचाने की कदापि नहीं थी.
आना जाना बनाये रहिये. इस नाम से भी चलेगा. :) और लेखन में हुई त्रुटियों की ओर ध्यान दिलाते रहें, मार्गदर्शन करते रहें, आभारी रहूँगा.
अनेक शुभकामनाएँ.
गध पद्ध दोनों पर मिली जुली प्रतिक्रिया:-
खंबे बिजली के सहारे उनके,
जिससे तय होते इलाके उनके,
ध्रुवी साहित्य में कम्पन जैसे,
Buzz बज़ाते से तराने उनके
aapki rachna padhi....aapka tazurba sahi ho sakta hai...lekin wo jo apni khushi ke liya abhivyakti ke is srot ke madhyam se apne vicharo ko rakhte hain....jika uddeshya saaf hai pavitra hai...Anjane mein hi sahe ve Itihaas rach rahe hain...Kuch logon ko yash jeevan upraant milta hain...ho sakta hain...bhavishya ka kuch aisa sanket ho :-)
साहित्यकारों में ध्रुवीकरण होता देखा है । बहुत से साहित्यकार जो स्वयं को साहित्यकार कहलाने का दंभ भरते हैं, वे वस्तुत: साहित्यकार हैं क्या ? ऐसे साहित्यकारों में ही गुटबाजी पनपती हैं । जो गुटबाजी करता है वह सह का भाव का रहा और जिसमें सह और हित का भाव नहीं वह साहित्यकार कैसा ?
हाँ ,आधी-अधूरी ...सार्थक... निर्थक ये सब सापेक्ष बातें हैं ... क्या अज्ञेय की कविता कविता नहीं ... उसमें अर्थ देखने वाले लोगों ने बहुत गहरा अर्थ देखा है और बहुतों ने उनकी कविता को अकविता कह कर कविता से दूर कर दिया ।
सर जी... कुत्तों का खुश होना ... अच्छा सा लगा... लेकिन हो सकता है कि उस आधी-अधूरी कविता औऱ निरर्थक कहानी की नियति ही वही हो... इनके साथ समय ही न्याय कर सकता है... डर उस वक्त से लगता है जब हर आधी-अधूरी और निरर्थक जिंदगी जीने वाला शख्स उसे कागज पर उतारने लगेगा... क्योंकि तब तक खंबों की संख्या भी उतनी ही बढ़ गई होगी ...
ही ही. कुत्ते बड़े खुश हो गये.
Baat to aapne 100% sahi kahi..kutton wali bhi. :)
विस्तृत सोच...उम्दा आलेख
समीर जी का चुटकला और कविता दो ही घणी जोर की है, मैं तो ऐसे ही पढके बाकी के कमेन्ट पढ़ रा था के तभी बिहारी भाई और समीर जी का संवाद पढने को मिल ग्या.
बिहारी भाई के चक्कर में कविता दोबारा पढनी पढ़ी तब जाके उसका मरम समझ आया. भोत बढ़िया बात कही है आपने समीर जी अपनी पोस्ट में.
और भाई एक सन्देश बिहारी भाई को भी देना छा रहा हूँ की भाई तू ज़रूर एक दिन पक्को ब्लोगर बन जागो चिंता न कर.
Aap acchee soch aur acche lekhan ke dhanee hai........
kabhee kabhee bhoole bhatke mere blog par aane aur ek bahate sameer ke jhonke mafik apanee tipannee se sheetalta chod jane ke liye aabharee hoo.
A good symbolism in the story.
good narration
बहुत बढ़िया लिखा अंकल जी...
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'पाखी की दुनिया' में 'वैशाखनंद सम्मान प्रतियोगिता में पाखी'!!
sir you are universal blogger.adbhut.www.jaikrishnaraitushar.blogspot.com
हाय, काश हम कुकुर होते!
sir your blog is very nice
दूसरों की खुशी में खुद की खुशी...ढूँढने वाले को जमाना पागल कहता है...और मुझे पागल होना पसंद है गुरूदेव।
प्रसन्नता का भाव जगता ही तब है जब मन खाली हो- पूर्वाग्रहरहित,नए तत्वों के प्रति जिज्ञासा भाव लिए। मगरर हमारा मन ठहरा कोबाल्ट-60 वाला कबाड़ !
behtareen!
@@चला बिहारी ब्लागर बनने !
समीर लाल के ब्लाग पर मैंने आपकी टिप्पणी देखी जिसने समीर लाल को भी रथ से कूदकर चक्का उठाने को विवश कर दिया :-) ,
अगर उद्देश्य यही था तो वास्तव में आप भीड़ को आकर्षित करने में कामयाब रहे बिहारी बाबू और आपकी मैं प्रसंशा करता हूँ ! मैं अधिकतर बेनामियों को नहीं पढता इसके बावजूद आपकी टिप्पणियों में धार देखकर और बढ़िया दिलवाला मानते हुए आपकी और आकर्षित हुआ ...सम्मान तो लेने में आप योग्य हैं ही !
मगर समीर लाल के ब्लाग पर मुझे लगा कि आप उन लोगों में शामिल हो गए जो अपने बेनाम का प्रचार करना चाहते हैं ! मेरे एक मित्र ने कहा कि मैं इस पर अपनी प्रतिक्रिया दूँ , आप जैसा आदमी अगर समीर लाल या अनूप शुक्ल पर ऊँगली उठाकर अपने को स्थापित करने का प्रयत्न करे तो निस्संदेह गलती आपकी है !
कृपया ध्यान रहे आपको अपना समझकर और आपके दिल को अपने नज़दीक पाकर ही यह गुस्ताखी कर रहा हूँ ! अगर आम ब्लागर की तरह बुरा लगे तो पहले से ही क्षमा प्रार्थी हूँ ...और हाँ बुरा लगने कि स्थिति में गुरु आप होंगे !
किसी की ख़ुशी में ..?? यह तो अब बीते वक़्त की बाते होने लगी है ....साहित्य की परिभाषा सोचने पर मजबूर करती है ..
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