रविवार, अप्रैल 18, 2010

वैल्यू ऑफ न्यूसेन्स वैल्यू

शाम हो चली. मौसम तो खैर जैसा भी हो, माकूल ही होता है पीने वालों के लिए. सर्दी हो, गरमी हो या बरसात.

एक गिलास में मुश्किल से १०% स्कॉच, बाकी पूरा पानी और बर्फ (पानी ही तो है).

whiskey

पिओ और झूमो नशे में. सब कहते हैं शराब के नशे में है. डॉक्टर कहता है जितना हो सके, पानी पिओ. ९०% पानी ही है मगर कोई यह कहने को तैयार नहीं कि पानी पिआ है. असर भी पानी का नहीं, शराब का ही महसूस कर रहा हूँ.

मात्र एक छोटा सा हिस्सा. बस १०% मगर न्यू सेन्स वैल्यू ऐसी कि ९०% पानी को झूठला गया.

सही ही कहते होंगे लोग कि आज जो भी वैल्यू है वो न्यूसेन्स वैल्यू की ही है.

आस पास के जीवन में रोज देखता भी हूँ. एक मवाली पूरे मोहल्ले के लोगों को हालाकान किये रहता है.

अपने ब्लॉगजगत में ही देख लो, १०% से भी कम लोग हैं जो संप्रदायिकता और अन्य मसलों को लेकर लिख रहे हैं और झगड़ रहे हैं और बातें, हिन्दी ब्लॉगजगत में तो बस झगड़ा ही मचा रहता है. तू तू मैं मैं ही होती रहती है. बाकी के ९०% जो इससे दूर हैं, अपनी अपनी कलम लिए कथा, कहानी, गीत, कविता लिखे जा रहे हैं, उनकी तरफ किसी का ध्यान ही नहीं. वजह, वही मीडिया वाली. बात सनसनीखेज हो तो खबर बने.

जाने कब तक यह १०% हाबी रहेगा. जाने कब तक हम न्यूसेन्स वैल्यू को ही वैल्यू की तवज्जो देते रहेंगे. सब हमारे हाथ में है फिर भी. हम भी तो सनसनी के आदी हो गये हैं.

यही आदी हो जाना रोज शाम उस १०% स्कॉच की तरफ आकर्षित करता है वरना तो पानी सुबह से शाम तक में कितना पी गये, याद ही नहीं.

 

दो छोटी छोटी कवितायें:

 

गिद्ध

gidhdh

गिरा

आकाश से

पहुँचा नहीं

धरती पर

लूट कर

टुकड़ा टुकड़ा

खा गये

गिद्ध!!

-समीर लाल ’समीर’

 

माँ

india_village

जब भी मैं

पीछे मुड़कर सोचता हूँ..

अपना बचपन

अपना मकान

वो गलियाँ

वो मोहल्ला

अपना शहर

अपना देश..

या

फिर

खुद अपने आप को..

हर बार मुझे

माँ

याद आती है!!

-समीर लाल ’समीर’

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97 टिप्‍पणियां:

Girish Kumar Billore ने कहा…

सही कहा हिमालय का एहसास सहारा में मिला करता है पने वालों को है न समीर भाई
कविताये भी गज़ब है शुक्रिया सुखद सवेरे के लिये

M VERMA ने कहा…

10% की हरकतों पर जबतक 90% अपनी दृष्टि कौतूहल के साथ और कभी कभी रोमांच के लिये डालते रहेंगे 10% हाबी रहेंगे.
और फिर गिद्ध तो झपट्टा मारेगा ही.
माँ मिट्टी मिट्टी मे बसी है, बचपन का हर रंग माँ के स्पर्श से ही आकार लेता है फिर माँ कैसे जुदा हो सकती है.
शानदार और संतुलित पोस्ट, सन्देश देने में समर्थ

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

पहले तो सुना था ये नशा अफीम जैसा है। आप बता रहे हैं कि स्कॉच जैसा है। तभी तो कहूँ कि ये पंडित, मौलवी टाइप लोग इधर क्यों पिले रहते हैं एक दूसरे को धकियाते लतियाते हुए?

Sadhana Vaid ने कहा…

बिल्कुल सत्य कहा है आपने ! १०% वाले बाकी ९०% को इस कदर ओवरशेडो कर लेते हैं कि उनका अस्तित्व तो एकदम से नज़रंदाज़ हो जाता है ! कवितायें दोनों ही बहुत शानदार हैं ! माँ के स्नेह की ऊष्मा तो आज भी हर पल एक स्निग्ध स्पर्श की तरह अपनी बाहों में समेटे रहती है ! सुन्दर पोस्ट के लिये आभार !

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

दुरस्त फ़रमाया समीर सर आपने,
जीवन के लिये जल ही जरूरी है, लेकिन क्रेज़ जल का नहीं स्कॉच का ही है। ये 10% को वरीयता देने वालों को 100% यही उपलब्ध करवाई जाये तो बाकी बचे 90% की भी वैल्यू समझ में आ जायेगी।
कवितायें भी दोनों बहुत अच्छी लगीं। कंट्रास्ट इन नेचर।
गिद्ध अपनी ड्यूटी भले से निभाते हैं और मां का स्नेह कभी भुलाया नहीं जा सकता।
आभार।

दिलीप ने कहा…

sahi kaha sir...maa to zindgi ke har mod pe na hokar bhi hamesha hoti hai...

बेनामी ने कहा…

कवितायेँ अच्छी लगीं.

-Rajeev Bharol

वाणी गीत ने कहा…

हर बार मुझे माँ याद आती है ...
अच्छी कविता ...
सनसनी पर no comments...

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

१०% ही होते है जो पूरा एरिया खराब कर देते है..ऐसा हर जगह होता है चाहे आदमी की भीड़ हो या कुछ और...
कम शब्द में बहुत बढ़िया चर्चा....माँ तो सर्वव्यापी है चाहे जहाँ भी रहे माँ की याद तो आएगी ही....सुंदर भावपूर्ण कविता...बधाई समीर जी..

Arvind Mishra ने कहा…

...बेहतरीन कवितायें .....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपने शराब के साथ दोनों कविताएँ बहुत ही करीने से पिरोई हैं!

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

जाने कब तक यह १०% हाबी रहेगा. जाने कब तक हम न्यूसेन्स वैल्यू को ही वैल्यू की तवज्जो देते रहेंगे. सब हमारे हाथ में है फिर भी. हम भी तो सनसनी के आदी हो गये हैं.
..यह सदा से ही होता आया है,जो ज्यादा चिल्लाता है वही ज्यादा पाता है -कुदरत का यह अजब फार्मूला है....
दोनों रचनाएँ बेहतरीन लगीं.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

आपकी दोनों रचनाएं बहुत बढ़िया हैं. आपका यह कहना भी सही है कि न्यूइसेंस कम की सही पर अपनी उपस्थिति धड़ल्ले से दर्ज़ कराती है... गाली की इन्टेसिटी भजन से ज़्यादा होती ही है, चुनाव अपना अपना है.

मुंहफट ने कहा…

टुकड़ा टुकड़ा

खा गये

गिद्ध!!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जब तक सार्थकता का न्यू सेन्स डेवलप नहीं होगा, 10% का न्यूसेन्स बना रहेगा ।
ऐसे गिद्ध क्या कनाडा में भी हैं ।

विवेक रस्तोगी ने कहा…

पर हमें तो ऐसा पता है कि आजकल ९०% पानी की जगह ९०% सोडे का इस्तेमाल हो रहा है :)

वैसे सोडे से भी न्यूसेन्स में कोई कमी नहीं आती है :D

गिद्ध और माँ कविताओं के लिये तो शब्द ही नहीं मिल रहे हैं।

Prem Farukhabadi ने कहा…

Bahut sahi kaha Bhai aapne. kavitayen bhi achchhi lagi.Badhai!!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

हलके-फुल्के में ही सही मगर बड़ा अच्छा और गूढ़ टोपिक पकड़ा आपने समीर जी !

और ये होटल वाले है की दाम पूरे गिलास के वसूलते है :)

दोनों कवितायें भी बेहतरीन !

Satish Saxena ने कहा…

कमाल की गहरी नज़र रखते हो गुरु , अगर बच्चन जी को यह अनुपात याद आ गया होता तो कुछ खूबसूरत लाइनें और जुडती इस महान रचना में !
nice !

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

१०% भी बेईमान नही गिर भी भारत बदनाम .शायद न्युसेंस बेल्यू है महान

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

१०% भी बेईमान नही गिर भी भारत बदनाम .शायद न्युसेंस बेल्यू है महान

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

जिन्‍दगी भर नेक काम करिए बस एक बुरा काम ही आपको जिन्‍दगी भर के लिए बदनाम कर देता है। आपकी कविता श्रेष्‍ठ रही।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

कवितायें बहुत सुन्दर... न्यूसेन्स का मतलब न्यू सेन्स लगाया जा सकता है क्या ?? :)

राइना ने कहा…

Bahut hi sundar kavita.

प्रवीण ने कहा…

.
.
.
आदरणीय समीर जी,

"वैल्यू ऑफ न्यूसेन्स वैल्यू"

भले ही यह १०% ही हो पर यही कीमती है... बिकता है बड़े-बड़े लेबलों के साथ बड़ी-बड़ी दुकानों में बड़े-बड़े दामों पर... यही इसकी वैल्यू है! बाकी ९०% के बारे में क्या कहूँ... यह तो हर टोंटी से बहता है...

दोनों कवितायें बहुत अच्छी हैं।

इसी लिये आपको "अदॄश्य गुलाबी एकश्रृंगी के इस महान धर्म" की काव्यगाथा को लिखने का महत् कार्य दे दिया गया है !

आभार और प्रतीक्षा मे !

दीपक गर्ग ने कहा…

मैंने यह पढ़ा है,यह महसूस किया है कि संसार मुट्ठी भर अच्छे लोगो के कारण ही चल रहा है.आप तो १०% की बात कर रहे हैं,यह बढ़ कर ९०% भी हो जाए,तो भीइसका असर थोड़ी देर के लिए ही होगा,अन्ततः पानी ही संसार को जीवित रखेगा.
समाज पर दीर्घ असर साहित्य का होता है,कविता,कथा,गीत हमेशा जिन्दा रहेंगे.
साम्प्रदायिकता आदि मसले कुछ समय के लिए हैं.थक कर,मर कर,मार कर खत्म हो जायेंगे.
नशे वाली मानसिकता वाले ही नशे करने वालों की तरफ ध्यान देते हैं.

अनिल कान्त ने कहा…

satya vachan....
mother wali panktiyaan dil mein asar kar gayin

दीपक गर्ग ने कहा…

मैंने यह पढ़ा है,यह महसूस किया है कि संसार मुट्ठी भर अच्छे लोगो के कारण ही चल रहाहै.आप तो १०% की बात कर रहे हैं,यह बढ़ कर ९०% भी हो जाए,तो भी इसका असर थोड़ी देर के लिए ही होगा,अन्ततः पानी ही संसार को जीवित रखेगा.
समाज पर दीर्घ असर साहित्य का होता है,कविता,कथा,गीत हमेशा जिन्दा रहेंगे.
साम्प्रदायिकता आदि मसले कुछ समय के लिए हैं.थक कर,मर कर,मार कर खत्म हो जायेंगे.
नशे वाली मानसिकता वाले ही नशे करने वालों की तरफ ध्यान देते हैं.

Khushdeep Sehgal ने कहा…

गुरुदेव,
10 फीसदी का तो काम ही यही है, कपड़े उतार कर लोगों का अपनी ओर ध्यान आकृष्ट करना...ठीक वैसे ही जैसे क्रिकेट या फुटबॉल के मैदान में कोई अंजान मॉडल सारे कपड़े उतार कर रेस लगाने लगती है( जिसे स्ट्रीकिंग कहा जाता है), सिर्फ इस चाह में कि अगले दिन के न्यूज़पेपर में उसकी फोटो छप जाए या छोटी सी कोई ख़बर...

लेकिन दुख तब होता है जब 90 फीसदी में ही से कुछ लोग इन 10 फीसदी की पोस्ट पर जाकर उन्हें भाव देने लगते हैं...मैं कहता हूं कि कोई पागल आपके रास्ते में आ जाता है तो क्या आप उससे जाकर भिड़ोगे...बच कर निकल जाओगे न...फिर ब्लॉग की दुनिया में भी ऐसा क्यों नहीं किया जाता...ये तो शाश्वत नियम है गेंद को जितना ज़ोर से ज़मीन पर पटकोगे, वो उतना ही आपके सिर पर चढ़कर नाचेगी...गेंद को ज़मीन पर पड़ी रहने देने में ही भलाई है...

जय हिंद...

Shiv ने कहा…

बढ़िया पोस्ट. कवितायें बहुत अच्छी हैं.

१०% का तथाकथित महत्व सब जगह दिखाई देता है. चार प्रतिशत धर्म संबंधी ज्ञान बघारते हैं और ६ प्रतिशत उससे पीड़ित होने का शोर मचाते रहते हैं. पढ़कर ऐसा लगता है जैसे और कुछ हो ही नहीं रहा है.

डॉ महेश सिन्हा ने कहा…

नशा शराब में होता तो नाचती बोतल.
नशा दिमाग में होता है शराब मुफ्त में बदनाम होती है .
अगर आप बहुत ज्यादा पानी पी लें तो भी नशा हो जाता है water intoxication

drdhabhai ने कहा…

वैसे गिलास मैं ब्रांड कौनसा है.....

संगीता पुरी ने कहा…

10 प्रतिशत भी अधिक ही कह रहे हैं आप .. 98 प्रतिशत अच्‍छाइयों पर दो प्रतिशत बुराइयां हावी हो जाया करता है .. रचनाएं अच्‍छी हैं .. पुरानी यदों में खोने पर मां के सिवा और क्‍या नजर आ सकता है ??

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

१०% और ९० % का लेखा जोखा बढ़िया लगा...

और कवितायेँ तो कमाल की हैं....

Urmi ने कहा…

उम्दा पोस्ट! बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

maa .... baat hi alag hai

बेनामी ने कहा…

सम्वेदना को संवारना और यथार्थ की अभिव्यक्ति दोनों में ही आप का सही नजरिया है ! आभार !

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Dono hi rachnayen dil ko chuu gayi..bahut2 badhai..

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

aadarniy sir,
aapka liha lekh ekdam sach ko dikhla raha hai.dono kavitayenbhi behatareen lagin khas kar --maa.
poonam

अंजना ने कहा…

माँ पर लिखी अच्छी कविता..
समीर जी एक सवाल मेरे ब्ल‌ांक प‌र ...जरुर आईयेगा उत्तर देने....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब समीर भाई ... सब कुछ मा में ही तो समाया होता है ... ये घर, ये संसार ... बहुत ही भाव और संवेदनशील पोस्ट और रचना हैं ...

राज भाटिय़ा ने कहा…

अजी एक नंगा ही काफ़ी है मुहल्ले को शर्मिंदा करने के लिये.... यहां तो १०% है जिन्होने ९०% के नाक मै दम कर रखा है....
इन सब को एक एक बोतल स्कांच की दे कर पाकिस्तन के बार्डर पर भेज दो, वही कर जो करना है
कविता पढ कर घर ओर मां याद आ गई

Abhishek Ojha ने कहा…

१०% वाली बात जमीं... हर जगह ये फ़ॉर्मूला फिट व हिट है ! और कवितायें तो खुबसूरत हैं ही...

राजेश उत्‍साही ने कहा…

हम सब को 10 प्रतिशत को 90 में बदलने की कोशिश करना चाहिए।

Parul kanani ने कहा…

antim panktiyaan ..choo gayi!

राजेश स्वार्थी ने कहा…

समीर जी

आप लिखते नहीं है, दिलों में उतर जाते हैं.

अद्भुत लेखन.

दीपक 'मशाल' ने कहा…

Margdarshan karta hua aapka ye lekh bahut achchha laga Sameer sir aur kavitaayen bhi samvedna ke chhui-mui paudhe ko ek baar fir chhoo gayeen. lekin pata nahin kyon ab mujhe lagne laga hai ki ye giddh agar bhagaye na gaye to baki 90% ko nonch-nonch kar kha jayenge.

सुशीला पुरी ने कहा…

10 प्रतिशत वाले कब तक बवाल करेंगे ??? एक न दिन उन्हे 90 के साथ आना ही होगा । 'माँ' कविता की सवेदना आसमान को छू रही है समीर जी ! आभार इतनी सुंदर कविता और न्यू सेंस माहौल बनाने के लिए .....

संजय भास्‍कर ने कहा…

sahi kaha sir...maa to zindgi ke har mod pe na hokar bhi hamesha hoti hai...

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

सबसे पहिले तो दोनों कवितायें अद्भुत...
होने दीजिये ये धमाल...ये न हो तब भी जीवन सपाट हो जाएगा....और फिर प्रकृति खुद को बैलेंस करती ही है...ब्लॉगवुड भी हो जाएगा बैलेंस...
ये जिसे आप न्यूसेंस वल्यू कह रहे हैं वो न्यूज वर्दी कहाता है आज के ज़माने में.....जबतक कुछ सनसनी खेज़ न हो लोगों को अच्छा नहीं लगता....देखते नहीं हैं...कुछ आएँ बाएँ छपा नहीं की लोग-बाग़ दौड़े पढने के लिए....यही तो बिकता है...आज मदर टेरेसा की जीवनी छापिये....भूले-भटके कोई आ जाए तो अपना भाग समझिये.....
हाँ नहीं तो...!!

''अपनी माटी'' वेबपत्रिका सम्पादन मंडल ने कहा…

poems are very much motivational....

APNI MAATI
MANIKNAAMAA

डॉ महेश सिन्हा ने कहा…

ये 10 का नंबर मिला कहाँ से . शायद इसीसे 10 नंबरी बना है .

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुते सुदर रचना है. स्काच और १०% ? अवधिया जी से सहमत हैं.


रामराम

ज्योति सिंह ने कहा…

जब भी मैं

पीछे मुड़कर सोचता हूँ..

अपना बचपन

अपना मकान

वो गलियाँ

वो मोहल्ला

अपना शहर

अपना देश..

या

फिर

खुद अपने आप को..

हर बार मुझे

माँ

याद आती है!!

dono hi rachna behtar

डॉ टी एस दराल ने कहा…

कुछ लोग जो ज्यादा जानते हैं ,
इन्सान को कम पहचानते हैं।

आज खुशदीप की तरह गाने की लाइने लिख दी हैं ।
ब्लोगर्स में भी कुछ ऐसे ही लोग हैं।

एक पुराना जोक याद आ गया । पहले मैंने विस्की पी पानी के साथ --चढ़ गई । फिर रम पी पानी के साथ ---वो भी चढ़ गई । जब वोदका भी पानी के साथ चढ़ गई --तबसे मैंने पानी पीना ही छोड़ दिया । :)

Asha Joglekar ने कहा…

अब देखिये ना आप का १० प्रतिशत ९० पर भारी पड गया कविताएं खास कर मां बहुत सुंदर हैं ।

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

गिरा आकाश से
पहुँचा नहीं
धरती पर
लूट कर
टुकड़ा टुकड़ा
खा गये गिद्ध!!

बहुत खूब

बेनामी ने कहा…

बिलकुल सोलह आने सच्ची बात

archana rajhans ने कहा…

बचपन में ऐसा सोचती थी..10 परसेंट

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

बेहतर एवं अनोखी उपमाएँ … लेकिन किसी ने सोचा है कभी कि वो 10% स्कॉच भी नीट यानि बग़ैर पानी के नहीं पी जा सकती. मतलब ये कि 10% की उत्तेजना या ‘किक्क’ के लिए 90% पानी का सहारा आवश्यक है... पृथ्वी पर 70% से 80% जल है, लेकिन असल झगड़ा तो 30% से 20% भूमि का है... मानव शरीर में 70% पानी ही तो है, फिर भी इंसान सिर्फ पानी पीकर ज़िंदा नहीं रह पाता... पूरे खाने में 10% नमक होता है… अगर न हो तो 90% बेस्वाद... ज़रूरत है तो सिर्फ 10% को उसी स्तर पर बनाए रखने की..क्योंकि 10% से 15% नमक सब बेस्वाद कर देता है.
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप,
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

आपकी post ने और ....khusdeep जी ...dr dral जी और samvedna sansaar की tippaniyon ने sab gad mad कर दिया ...और मैं duvidha में हूँ 10% ya 90%....?

शब्द
जब निकल जाते हैं
मेरे
मेरे होठों के बाहर
तो बदल लेते हैं
अपने मानी .....

राम त्यागी ने कहा…

९० % की वजह से दुनिया कायम है या १० % की वजह से? ...ये सोचनीय है. पर हाँ हिंदी ब्लॉग जगत में ९० % सार्थक सोचने वालो को उतना प्रोत्साहन और प्रचार नहीं मिल पाता जो इन १० % चटखारे की दूकान वालो को .

हिंदी ब्लोग्स को गैंग रहित बनाए बिना आप और हम हिंदी का नहीं, कुछ विशेष समूहों और गैंगो का ही विकास या प्रचार कर पा रहे है .

राम त्यागी ने कहा…

९० % की वजह से दुनिया कायम है या १० % की वजह से? ...ये सोचनीय है. पर हाँ हिंदी ब्लॉग जगत में ९० % सार्थक सोचने वालो को उतना प्रोत्साहन और प्रचार नहीं मिल पाता जो इन १० % चटखारे की दूकान वालो को .

हिंदी ब्लोग्स को गैंग रहित बनाए बिना आप और हम हिंदी का नहीं, कुछ विशेष समूहों और गैंगो का ही विकास या प्रचार कर पा रहे है .

वीनस केसरी ने कहा…

10 % से तौबा कर ली है

अब इसे आप दोनों जगह रख सकते है

विस्की,वाइन हो या ब्लॉग जगत ९० % ही लक्ष्य है पानी भी और बढ़िया ब्लॉग भी

Manjit Thakur ने कहा…

चचा एक बात आपने कभी गौर न की हो...हमारा कमेंट सबसे आखिर में आता है..दरअस्ल हम वही 10 फीसद हैं जो 90 फीसद पानी के बाद आते हैं और लोगों को नशे में ले आते हैं। बहरहाल, कनाडा में कैसा है मौसम..यहां दिल्ली तो तवा हो रखी है।

Mahfooz Ali ने कहा…

आदरणीय समीर जी,

इस रोज़ की ब्लॉग पर तू-तू... मैं.. मैं... से मन वाकई में खिन्न हूँ / गया है... यह बात भी सही है...कि...न्यू सेन्स की ही वैल्यू है....

कवितायेँ बहुत अच्छी लगीं...

--
www.lekhnee.blogspot.com


Regards...


Mahfooz..

Alpana Verma ने कहा…

न जाने १०%..पर ही ध्यान क्यूँ रहता है..९०% पर नहीं ये बात आप ने सही उठाई है.
----यह मिडिया वाली ही मानसिकता तो है यहाँ भी ...

-----------
'माँ 'कविता मर्मस्पर्शी है

Kulwant Happy ने कहा…

आपकी बात बिल्कुल सही है, आटे में नमक बराबर लोग वैसी घटिया सोच के आर्टिकल लिखते हैं, लेकिन चर्चा 90% लोग करते हैं, जिसके कारण वहाँ बहुमत सौ प्रतिशत हो जाता है, जबकि दस प्रतिशत तो फिर भी बचता है। वो नब्बे प्रतिशत कहते हैं कि हिन्दी ब्लॉग जगत में कुछ नहीं मिला पढ़ने को, मैं कहता हूँ, हजारों ब्लॉग हैं, लेकिन उनका ध्यान केवल दस प्रतिशत ब्लॉगों पर है, तो क्या मिलेगा। फिर तो शिकायत ही रहेगी।


एक चुटकला गुरूदेव। डाँक्टर ने पूछा हैप्पी से, तुम शराब कौन कौन से दिन पीते हो। हैप्पी ने तपाक से उत्तर दिया, बस दो दिन। डॉ. ने दोहराया कौन कौन से? तो हैप्पी बोला..जब बरसात होती है, और जिस नहीं होती है।

जितेन्द़ भगत ने कहा…

आपकी बातें संजीदा और मजेदार।

Smart Indian ने कहा…

मात्र एक छोटा सा हिस्सा. बस १०% मगर न्यू सेन्स वैल्यू ऐसी कि ९०% पानी को झूठला गया.

सही ही कहते होंगे लोग कि आज जो भी वैल्यू है वो न्यूसेन्स वैल्यू की ही है.


जब १०% में इतनी सुन्दर कवितायें कह दीं तो शत-प्रतिशत में क्या हुआ होता! मगर फिर भी... लोगों का काम है कहना.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

हम दस परसेंट को इतना भाव देते हैं तभी वो बाकि के नब्बे पर भारी हैं...हमें तो पता भी नहीं के उन दस परसेंट में कौन लोग हैं और अगर हैं तो अच्छा ही है थोडा चेंज बना रहता है...बहुत अच्छी कवितायेँ रोज रोज़ सुनने के बाद कभी कभी गाली उनसे भी अच्छी लगती है...स्वादिष्ट खाने के बाद सिगरेट के कश की तरह...
दोनों छोटी कवितायेँ आपके काव्य कौशल को प्रमाणित करती हैं...विलक्षण हैं...
नीरज

कुमार संभव ने कहा…

बढ़िया बहुत बढ़िया ........... बस एक लाइन में कहना चाहूँगा की क्या कह दियेया आपने .................... मई जो सोच रहा था बरसों कह दी आपने कल परसों...

rashmi ravija ने कहा…

दोनों कवितायें बहुत सुन्दर हैं..ख़ासकर माँ वाली,
और १०% की बात तो अच्छी कही...मन दुखी हो जाता है ये सब देख...बस नज़रंदाज़ ही कर सकते हैं..पर वे पोस्ट टॉप पर कैसे पहुँच जाती हैं?? ..ये भी एक अचरज है....यानि की लोग पढ़ते हैं...टिप्पणियाँ भले ही ना करें...फिर ये ९०% के ऊपर ही है,ना कि उन्हें हतोत्साहित करे.

Pawan Kumar ने कहा…

समीर जी
सीधे दिल से निकली पोस्ट.............! पैग के साथ दो कवितायेँ वाह वाह......अच्छा अंदाज़ है आपका.
माँ वाली कविता दिल को छू गयी.....!

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत सुन्दर है!

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

na jane aisa kyu hota hai...har baat pe maa kyu yaad aa jati hai...par yahi sach hai. acchhi rachna. badhayi.

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

माँ पर आपकी कविता बहुत प्यारी है अंकल जी..

चिट्ठाचर्चा ने कहा…

आपका ब्लॉग बहुत अच्छा है. आशा है हमारे चर्चा स्तम्भ से आपका हौसला बढेगा.

कडुवासच ने कहा…

लूट कर

टुकड़ा टुकड़ा

खा गये

गिद्ध!!

...bahut khoob, prasanshaneey rachanaa !!!

शरद कोकास ने कहा…

माँ को याद करते हुए लिखी कविता पढ़ने के बाद तो मेरे पास कहने के लिये कुछ नहीं है । आपकी इस वेदना मे सहभागी हूँ बस ।

mukti ने कहा…

समीर जी, मुझे लगता है कि इतनी चिन्ता की बात नहीं है इन १० % लोगों को लेकर. लोग इनके शीर्षक से आकर्षित होकर उधर चले जाते हैं, पर पढ़ते नहीं है. ये लोग आपस में ही एक-दूसरे को पढ़ते हैं और टिप्पणी पर टिप्पणी करते रहते हैं, जिससे इनका ब्लॉग अग्रीगेटर्स की टॉप पोस्ट की लिस्ट में आ जाये....शुरू में मुझे भी दुःख होता था इनकी बढ़ती लोकप्रियता को देखकर, पर एक-दो बार उधर जाकर देखा तो सारी असलियत समझ में आ गयी.
आपकी दोनों कविताएँ बहुत अच्छी लगीं...ख़ासकर माँ वाली.

हर्षिता ने कहा…

आपकी दोनों कविताएँ बहुत अच्छी लगीं।

मीनाक्षी ने कहा…

इतने दिनों बाद आपके ब्लॉग़ पर आए भी तो क्या देखते हैं.90% और 10% का तालमेल..... हमें तो 10% ज़्यादा आकर्षित कर रहा है....ठीक वैसे ही जैसे....एक बार लुकमान हकीम से किसी ने पूछा - हक़ीम साहब आपने इतना अदब कहाँ से पाया ? तो लुकमान हक़ीम का जवाब था -- 'बेअदबों से'

Unknown ने कहा…

अच्छी कविता ...
बधाई ....

कविता रावत ने कहा…

हर बार मुझे
माँ
याद आती है!!
......Maa jaise Mamta, pyar aur bhala kahan mil paata hai.... Aaj ke samay ko dekhar nisandeh wah Maa dhanya hai jiske bete unhen sadaiv yaad karte hain..

शारदा अरोरा ने कहा…

न्यूसेंस वेल्यु ही ज्यादा वैल्यूएबल हो गयी है ...मगर ये आप भी जानते हैं बाकी ९०% ही जिन्दगी है ....हार कर आना उसकी ही शरण में पड़ेगा । कुछ पंक्तियाँ पेश कर रही हूँ .....
हम सबने एक ही जाम पिया
थोडा सोडा , थोड़ी शराब
थोडा पानी
थोडा हाजमा , थोडा नशा
थोड़ी जिन्दगानी
प्यास और नशे का फर्क ढूँढते रहे
जिन्दगानी का मतलब ही खोजते रहे
उफन कर बहे नहीं
ख़्वाब ढूँढते रहे
गाफिल हैं , सफ़र में
अन्दाज़ ढूँढते रहे
कवितायें भी सवेंदानाएं जगा गईं , माँ से ही हमारा बचपन समृद्ध है ।

डॉ. राजेश नीरव ने कहा…

झूठ वाले कहाँ के कहाँ चल दिये और मैं था कि सच बोलता रह गया.... बढ़िया ब्लाग....

शशांक शुक्ला ने कहा…

बहुत खूबसूरत कविता लिखी है. वैसे वो जो दस प्रतिशत वाले लोग है उनको पढ़ने वाले पांच प्रतिशत ही है....क्योंकि वो सुनना ही नहीं चाहते दूसरे कि कहना चाहते है बस

साधवी ने कहा…

दोनों कविताएँ बहुत पसंद आई.

संजय तिवारी ने कहा…

ही ही! यह १०% ही तो किक मारता है.
कविता माँ वाली बहुत सुन्दर.

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

True, the nuisance value is truly ivaluable!
Regards!

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

"१०% स्कॉच, बाकी पूरा पानी " से बात शुरू होती है और मवाली पर अटकते हुए ब्लॉग जगत के १०% संप्रदायिकता और अन्य मसलों को लेकर लिखने वालों की होती है. अब हर पाठक अपने अपने अंदाज़ में समझेगा, मैं ये ही जानता हूँ कि कितने प्रतिशत लोग समीर भाई की बात को उनके हिसाब से हृदयंगम करेंगे अथवा स्कॉच तक ही सिमट जायेंगे.
इसलिए हे ! भद्रजनो, हमसे जितना भी बन सके सर्व जन-हिताय और सर्वजन-सुखाय की भावना से एक पग भी बढाने की कोशिश तो करें !!!!
साथ ही दोनों उत्कृष्ट रचनाओं के लिए बधाई.
२१ अप्रेल २०१०
- विजय तिवारी 'किसलय '

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

जब तक नब्बे प्रतिशत लोग इन दस प्रतिशत लोगों की बात पर ध्यान देते रहेंगे, तब तक ये उठापटक चलती ही रहेगी.
सुन्दर कवितायें. आभार.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

हम तो ग्लास पर अटक गये। कल ऐसी ग्लास में सतू पिया था घोल कर! :)

Rohit Singh ने कहा…

ग्लास तो जोरदार है बॉस ....हम तो काफी बेतकल्लुफ होकर मिलते हैं....नफासत औऱ लखनवी अंदाज से कोसो दूर..उम्मीद है आप भी....

Mrityunjay Kumar Rai ने कहा…

माँ की कविता रुला देनी वाली है

seema gupta ने कहा…

हर बार मुझे

माँ

याद आती है
" सच बेहद भावुक कर गयी ये कविता..."
regards