सो कॉल्ड एलीट ग्रुप- तथाकथित अभिजात्य वर्ग. आम लोगों की पहुँच से बाहर. आम जन के मानस पर हर वक्त यह छाया रहता है कि जाने कैसी दुनिया होगी उनकी.
एलीट वर्ग में कोई यूँ ही तो नहीं आ जाता-जरुर व्यस्त रहते होंगे. आम जन के बीच बैठ समय बिताने लगें तो फिर काहे के एलीट. बात समझ में आती है. लेकिन उनकी बात समझने में दिक्कत होती है जो आमजन से दूरी मात्र इस कारण कर बैठे हैं ताकि आमजन उन्हें एलीट समझे.
पर्याप्त दूरी बनाये रखने के लिए वो लबादा ओढ़े भले ही घर में दिन के उजाले में सोते रहेंगे और रात गये अँधेरे में यह पता करने धीरे से आकर झाँक जायेंगे कि आमजन ने मुझे एलीट समझना शुरु किया कि नहीं.
एक भय भी रहता होगा उनके मन में कि कहीं लोग पहचान न जायें कि मैं एलीट हूँ ही नहीं, बना एलीट हूँ. ये बात उन चार खास दोस्तों तक ही बनी रहे जो मेरे साथ खुद भी इस नाटक में शामिल हैं, तो ही ठीक. यह भी डर होता होगा कि कहीं उन चार में से एकाध एलीटता से उकता कर वापस अपने मूल खेमें में जाकर भंडा फोड़ न कर दें कि हम चारों रंगे सियार हैं.
ऐसे भयाक्रांत हो जीने से तो बेहतर है कि मूल खेमे में ही रहते हुए जीवन गुजारे भले ही कुछ कम सक्रियता रहे. सक्रियता तो यूँ भी एलीट दिखने के चक्कर में खत्म सी हो ही चुकी है.
हर समाज में तो हर तरह के लोग होते हैं कुछ अति सक्रिय, कुछ कम सक्रिय..फिर खेमा बदली का ढोंग क्यूँ? चाँदी की परत चढ़वा देने से कुछ समय तो चाँदी के होने का भ्रम पैदा कर सकते हैं मगर चाँदी हो तो नहीं सकते. अपने मूल स्वरुप में ही जीवन जीना हमेशा सरल और सहज होता है.
ढोंग में समय न नष्ट करो. उसे सृजनात्मक कार्यों में लगाओं. क्या पता तुम्हारे कार्य तुम्हें वाकई एक दिन एलीट वर्ग में ले जाकर खड़ा कर दें.
अब, एक लाल एण्ड बवाल की जुगलबंदी:
मौसम में घटा जब, सुहानी आ जाए
ठहरी हुई लहरों में, रवानी आ जाए
इस कदर भी न पत्थर, हुआ जाए के
ख़ुद में खु़दा की गुमानी आ जाए
बज़्म फिर रज़्म में, आज बदले नहीं
फिर न बातों में मज़हब-ज़बानी आ जाए
बुलंद हो जाए हौसला जो दिल में अगर
बूढ़ी-बूढ़ी रगों में, जवानी आ जाए
ज़िन्दगी में कुछ ऐसा भी, करते चलें
मौत पर अपनी छपकर, कहानी आ जाए
चाँद के कारवाँ के सितारों का नूर,
काश लेकर के उनकी, निशानी आ जाए
सख़्त नफ़रत में माहिर, ज़माने को भी
देखें शायद, यूँ उल्फ़त, निभानी आ जाए
***
बज़्म= सभा, महफ़िल
रज़्म= युद्ध
92 टिप्पणियां:
फिर न बातों में मज़हब-ज़बानी आ जाए बुलंद हो जाए हौसला जो दिल में अगर
बूढ़ी-बूढ़ी रगों में, जवानी आ जाए ज़िन्दगी में कुछ ऐसा भी, करते चलें
मौत पर अपनी छपकर, कहानी आ जाए चाँद के कारवाँ के सितारों का नूर,
खासकर इन पंक्तियों ने रचना को एक अलग ही ऊँचाइयों पर पहुंचा दिया है शब्द नहीं हैं इनकी तारीफ के लिए मेरे पास...बहुत सुन्दर..
aadarniya sameer ji
मेरे पास शब्द नहीं हैं!!!!
tareef ke liye
चाँदी की परत चढ़वा देने से कुछ समय तो चाँदी के होने का भ्रम पैदा कर सकते हैं मगर चाँदी हो तो नहीं सकते. अपने मूल स्वरुप में ही जीवन जीना हमेशा सरल और सहज होता है.
बहुत बढिया ज्ञानवर्धक सुक्ति।
बुकमार्क कर लिया है।
आभार
राम-राम
elite vastav mein ho na ho....lekin dikhawa chalan mein hai....ye rog infectious disease ke jaisa fail chuka hai....Yakeenan!ek din dharti par ye kuleen,sabhya, sophisticated log badh jaayege....khud ko achcha dikhane ki hod mein aise- waise bhi kuch kar jayenge...rachna jordaar hai
तक़रीर और गजल दोनों बस पूँछिये मत हम भी पढ़कर इलीट हुए
आप की भावनाएं ऐसी ही रहें कभी डिलीट न हों
इस कदर भी न पत्थर, हुआ जाए के
ख़ुद में खु़दा की गुमानी आ जाए
..वाह, क्या बात है! इस गज़ल का यह शेर ऊपर की एलीट चर्चा से मेल खता है.
..दरअसल लोग वही नहीं होते जो कि वे होते हैं. न जाने क्यूँ अपने सम्पूर्ण जिस्म में इतना चन्दन-मंदन पोत लेते हैं कि सुंदर तो दिखते हैं मगर खुश नहीं रह पाते..!.. हमेशा डरते रहते हैं. हम जो हैं वैसे ही दिखने लगें तो जीवन जीना बहुत सरल हो जाएगा.
बढ़िया ज्ञान वर्धक लेख |
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इस कदर भी न पत्थर, हुआ जाए के
ख़ुद में खु़दा की गुमानी आ जाए
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ हैं ! ना जाने कुछ लोगों में इतनी हीन भावना क्यों होती है कि वे अपने मूल स्वरूप के ऊपर झूठ का लबादा ओढ़े रहते हैं ! जो सच नहीं है उसे सच दिखाने की कोशिश ही उन्हें ले डूबती है ! बहुत ही बढ़िया आलेख !
आपका इशारा किन लोगों की तरफ है, बहुत साफ साफ समझ आ रहा है.
sachai bayan karti, gazal ke sath ek khoobsurat prastuti, behatareen.
सही कहा , मुखौटे आखिर कब तक काम आयेंगे ।
बज़्म फिर रज़्म में, आज बदले नहीं
फिर न बातों में मज़हब-ज़बानी आ जाए
क्या बात है । बहुत बढ़िया ।
Bahut acchi post acchi bhavnae liye....Gazal bahut khubsurat hai pad kar dil khush ho gaya.
Dhanywaad
चलिए आपने लोगों को याद दिलाया...देखिये शायद कुछ असर हो
पर्दे में रहने दो , पर्दा न उठाओ
सच्चाई यही है की जिंदगीं में ढोंग करके टाइम नष्ट करने से कुछ हासिल नही होता क्षणिक भर के लिए कोई मान भी ले तो क्या फ़र्क पड़ेगा एक दिन हक़ीकत तो सामने आ ही जाएगी...बढ़िया बात कही आपने..
ज़िन्दगी में कुछ ऐसा भी, करते चलें
मौत पर अपनी छपकर, कहानी आ जाए..
सुंदर शेर...बधाई
ज़िन्दगी में कुछ ऐसा भी, करते चलें
मौत पर अपनी छपकर, कहानी आ जाए
"जिन्दगी से जुड़े छोटे बड़े वाक्यों को सहजता से प्रस्तुत करने की आपकी एक अनोखी कला है. " बेहद सुन्दर जुगलबंदी , खास कर ये पंक्तियाँ बहुत भा गयी...."
regards
जिंदगी भर मूल खेमे में रहे ...बहुत सही कहा ...
और एलिट का चक्कर तो एलिट ही जाने ...
ना एलिट रहे न ही एलिट रहने की कोई ख्वाहिश रही कभी ...
अपनी सहजता के लिए ही जाने जाते रहे हैं ...बचपन से ...:):
सख़्त नफ़रत में माहिर, ज़माने को भी
देखें शायद, यूँ उल्फ़त, निभानी आ जाए ....
बहुत खूब ...
कारस्तानियाँ सारी मेरी नफ़रत मिटाने की रही
देखा मगर जिंदगी और उलझती रही ....
हम तो इसीलिये अपनी औकात मे और अपने रामप्यारे के साथ रहते हैं. हम इस एलीट का फ़ंडा बहुत पहले समझ चुके हैं. जो एलीट बने बैठे रहते हैं उनसे जरा उनकी पीडा पूछिये.
लाल और बवाल तो दो श्रेष्ठताओं का एक साथ मिलन है. बहुत सुंदर रचना. लाल साहब और बवाल साहब दोनों को शुभकामनाएं.
रामराम.
जाने हम सड़क के लोगों से,
महलों वाले क्यों जलते हैं,
इनसान नहीं वो मौसम हैं,
जो वक्त के साथ बदलते हैं...
जय हिंद...
आपसे मुलाकात सुखद लगी.अब नए सफ़र में नियमित रूप से मिलते रहेंगे,विचारों में ज़रूर एलीट बनें रहें !
मगर यह बात उस सो कॉल्ड एलीट ग्रुप की समझ से बाहर की है तभी तो वे एलीट श्रेणी में आते है !
बहुत खुब। दिल खुश हो गया।
चाँदी की परत चढ़वा देने से कुछ समय तो चाँदी के होने का भ्रम पैदा कर सकते हैं मगर चाँदी हो तो नहीं सकते. अपने मूल स्वरुप में ही जीवन जीना हमेशा सरल और सहज होता है.
ढोंग में समय न नष्ट करो. उसे सृजनात्मक कार्यों में लगाओं. क्या पता तुम्हारे कार्य तुम्हें वाकई एक दिन एलीट वर्ग में ले जाकर खड़ा कर दें.
कमाल की सीख दी है आज आपने !!
leadership is not a position, its an action...
एलीट ग्रुप को ये समझना चाहिये.. :)
हम तो सिर्फ ये जानते हैं कि आपकी महफिल में जो एक बार आ गया, फिर वो एलीट बना इतराता घूमता है....
ब्लॉग लेखन भी एलिट क्लास वाला काम है, मगर अंग्रेजी में. कोई बात नहीं कभी हिन्दी वाला भी एलिटी कार्य हो जाएगा.
बुलंद हो जाए हौसला जो दिल में अगर
बूढ़ी-बूढ़ी रगों में, जवानी आ जाए
ज़िन्दगी में कुछ ऐसा भी, करते चलें
मौत पर अपनी छपकर, कहानी आ जाए..
अद्भुत सुन्दर पंक्तियाँ! आपकी जितनी भी तारीफ की जाए कम हैं! लाजवाब और उम्दा पोस्ट!
इस कदर भी न पत्थर, हुआ जाए के
ख़ुद में खु़दा की गुमानी आ जाए ..
Kya gazab likhte hain aap..alfaaz nahi milte ki kuchh kaha jay..
स्वयं की खोज
ज़िन्दगी में कुछ ऐसा भी, करते चलें
मौत पर अपनी छपकर, कहानी आ जाए
khoobsurat alfaaz!
shaandaar sameer dadaa
इस कदर भी न पत्थर, हुआ जाए के
ख़ुद में खु़दा की गुमानी आ जाए
सुन्दर पंक्तियाँ...
ऐसे एलिट होने से क्या फायदा....कि हर पल खुद को असुरक्षित महसूस करते रहें...
--100 baton ki ek baat kahi--अपने मूल स्वरुप में ही जीवन जीना हमेशा सरल और सहज होता है--
Ghazal bhi bahut achchee lagi.
mulamma to ek n ek din utarta hi hai. bahut achchha. ghazal, kavita jo bhi kahen man ko moh gayi.
इस कदर भी न पत्थर, हुआ जाए के
ख़ुद में खु़दा की गुमानी आ जाए
waah
बुलंद हो जाए हौसला जो दिल में अगर
बूढ़ी-बूढ़ी रगों में, जवानी आ जाए
ज़िन्दगी में कुछ ऐसा भी, करते चलें
मौत पर अपनी छपकर, कहानी आ जाए
पोस्ट के साथ-साथ रचना भी बहुत बढ़िया है!
इसे इच्छा कहें या सन्देश!
अगर दोनों ही कहें तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी!
सख़्त नफ़रत में माहिर, ज़माने को भी
देखें शायद, यूँ उल्फ़त, निभानी आ जाए
बढ़िया है सर !
ज़िन्दगी में कुछ ऐसा भी, करते चलें
मौत पर अपनी छपकर, कहानी आ जाए
Kammal hai. Mubarak ho.
सख़्त नफ़रत में माहिर, ज़माने को भी
देखें शायद, यूँ उल्फ़त, निभानी आ जाए
बहुत सुन्दर जुगलबंदी और कुछ शिक्षा भी देती आपकी पोस्ट....आभार
"चाँदी की परत चढ़वा देने से कुछ समय तो चाँदी के होने का भ्रम पैदा कर सकते हैं मगर चाँदी हो तो नहीं सकते."
बिल्कुल सही कहा आपने!
हर समाज में तो हर तरह के लोग होते हैं कुछ अति सक्रिय, कुछ कम सक्रिय..फिर खेमा बदली का ढोंग क्यूँ? चाँदी की परत चढ़वा देने से कुछ समय तो चाँदी के होने का भ्रम पैदा कर सकते हैं मगर चाँदी हो तो नहीं सकते. अपने मूल स्वरुप में ही जीवन जीना हमेशा सरल और सहज होता है.
गागर में सागर भर दिया आपनें,उम्दा चिंतन.
good blog
अपने मूल स्वरुप में ही जीवन जीना हमेशा सरल और सहज होता है.
laakh take ki baat......
sundar prastuti.
जो हैं वही तो रहेंगे ! और उसमें बुराई भी क्या है. ये सन्देश 'सो काल्ड...' वालों की समझ में कहाँ आएगा?
सही कहा ...मुखोटा है जब तक चले तब तक चले जुगलबंदी बहुत पसंद आई बेहतरीन शुक्रिया
bahut badhiya lekh hai....us par jugalbanee ne kamaal kiya hai....laal aur babaal, donon ko salaam..
एलिट बनने में दुख ज्यादा है सुख कम है। मैं तो उकता गयी हूँ इस प्रश्न से कि क्या आपके पास समय है? मैं अक्सर सभी से कहती हूँ कि एकदम ठाली हूँ आप तो काम बताएं। लेकिन वो फिर नहीं मानता कि अरे आपका बडप्पन है, बस आप थोड़ा समय दे दें। सच समीर जी एकदम खास होने में जो मजा है वो अभिजात्य में नहीं। लेकिन कुछ लोग है वे तभी आपको सम्मान देते हैं जब तक की आप के पास समय नहीं है। इसलिए ही लोग समय नहीं है का ढोंग रचते हैं। आपकी गजल की तो सभी ने तारीफ की है, इसलिए उसके लिए तो मैं क्या लिखू? मैं तो आपके गद्य की प्रशंसक हूँ।
बढ़िया पोस्ट. एलीट दिखना फैशनेबल होगा.
सबसे बढ़िया लगी लाल और बवाल की जुगलबंदी. पढ़कर आनंद आ गया.
ज़िन्दगी में कुछ ऐसा भी, करते चलें
मौत पर अपनी छपकर, कहानी आ जाए
क्या कहने जी।
पुराने ज़माने में उम्दा बातों या चीज़ों पर कुछ न्योछावर करने की रीत होती थी.. अगर आज आपकी इस पोस्ट पर कुछ न्योछावर करना चाहूं तो बिक जाऊँगा, पर न्योछावर पूरी ना होवेगी..
चाँदी की परत चढ़वा देने से कुछ समय तो चाँदी के होने का भ्रम पैदा कर सकते हैं मगर चाँदी हो तो नहीं सकते.
पर चाँदी दुबकी हुई है मिट्टी की परतो के बीच और चाँदी की परत चढे हुए चमक रहे हैं एक अर्से से.
मैंने अभी अभी कहीं टी आर पी का लफड़ा तो नहीं के अंतर्गत लिखा है
"अच्छे रचनाकार इन सब बातों की चिंता भी नहीं करते. उनका तो टी आर पी तो स्वयमेव बढ़ा हुआ रहता है" शत प्रतिशत लागू होता है यहाँ. श्री लाल जी के इस पोस्ट में "हर समाज में तो हर तरह के लोग होते हैं कुछ अति सक्रिय, कुछ कम सक्रिय..फिर खेमा बदली का ढोंग क्यूँ? चाँदी की परत चढ़वा देने से कुछ समय तो चाँदी के होने का भ्रम पैदा कर सकते हैं मगर चाँदी हो तो नहीं सकते. अपने मूल स्वरुप में ही जीवन जीना हमेशा सरल और सहज होता है....
बहुत सुन्दर... और वैसे भी समीर भाई साहब हमेशा किसी को ठेस पहुंचाने वालों में से नहीं हैं. सभी को प्रोत्साहित ही करते हैं. क्या इनसे सीखा नहीं जा सकता?
"अच्छे रचनाकार इन सब बातों की चिंता भी नहीं करते. उनका तो टी आर पी तो स्वयमेव बढ़ा हुआ रहता है" हर समाज में तो हर तरह के लोग होते हैं कुछ अति सक्रिय, कुछ कम सक्रिय..फिर खेमा बदली का ढोंग क्यूँ? चाँदी की परत चढ़वा देने से कुछ समय तो चाँदी के होने का भ्रम पैदा कर सकते हैं मगर चाँदी हो तो नहीं सकते. अपने मूल स्वरुप में ही जीवन जीना हमेशा सरल और सहज होता है. ढोंग में समय न नष्ट करो. उसे सृजनात्मक कार्यों में लगाओं. क्या पता तुम्हारे कार्य तुम्हें वाकई एक दिन एलीट वर्ग में ले जाकर खड़ा कर ....
यहाँ यह सिद्ध कर रहा है कि ऐसे रचनाकार कभी टी.पी.आर. के भूखे नहीं रहेंगे. क्या बढ़िया बातें लिखी हैं. वैसे भी समीर भाई साहब को हमने देखा हमेशा प्रोत्साहित करते. कोई भीअन्यथा टिपण्णी नहीं करते...... बहुत सुन्दर
बहुत सुंदर रचना जी धन्यवाद
इन्ही एलीयाटीयो से तो मुश्किल मे पड जाता है समाज
बेहतरीन !!!
वाह...
वाकई में... आपके अन्दर वो कला है कि आप जो भी विषय छू लेते हैं.. बढ़िया बन ही जाता है.. एक अति सामान्य सी लगने वाली बात पर एक बेहतरीन प्रस्तुति...
बात तो आप ठीक ही कह रहे हैं पर उस ईगो का क्या किया जाए, उसको भी तो सहलाना आवश्यक है, इसलिए उन लोगों द्वारा एलीट क्लब बनाया जाता है जो बाकी किसी चीज़ में आम जन से अलग नहीं होते! अब दो तरह के एलीट होते हैं ना, जो किसी कारण से एलीट होते हैं (संपत्ति, इंटलेक्ट, पॉवर, इत्यादि) और जो खामखा एलीट होते हैं!! ;)
आप को नववर्ष की शुभकामनाएं.......
इस कदर भी न पत्थर, हुआ जाए के
ख़ुद में खु़दा की गुमानी आ जाए
बहुत शानदार.
बातो बातों में ही आप बहुत कुछ कह गये और हमारे जैसों को तो साथ में सीख भी मिल गई :-)
"इस कदर भी न पत्थर, हुआ जाए के
ख़ुद में खु़दा की गुमानी आ जाए"
गजल की ये पंक्तियाँ तो कमाल की लगी!!
बेहतरीन!
यहाँ चेहरों पर चढ़े हैं कईं चेहरे.......
यही बात आप कह गए गहरे, impressive
समीर भाई
इशारा किस की ओर से ये तो समझी नहीं :)
Who is this " Elite " ??
परंतु रचना और आलेख हमेशा की तरह उम्दा लगे
स्नेह सहित,
चैत्र नवरात्र की मंगल कामना
- लावण्या
समीर भाई , आपने इन सो काल्ड एलीत्स के बहुत थोड़े गुणधर्म बताये। अब तो इन लोगों की दूसरी तीसरी पीढ़ी आ गई है और यह वह थोड़ी बहुत शर्म भी बेचकर खा गये हैं जो इनके बाप-दादा के पास थी । अब इन्हे अभावों के सुख की इस दुनिया में लौटाकर लाना कठिन है । ठीक है इनका साथ न सही .. हमे क्या ?
नववर्ष विक्रमी सम्वत् २०६७ मंगलमय हो। शुभकामनाएँ।
नववर्ष विक्रमी सम्वत् २०६७ मंगलमय हो। शुभकामनाएँ!
बुलंद हो जाए हौसला जो दिल में अगर
बूढ़ी-बूढ़ी रगों में, जवानी आ जाए
ज़िन्दगी में कुछ ऐसा भी, करते चलें
मौत पर अपनी छपकर, कहानी आ जाए
बहुत सुन्दर भाव..खूबसूरत रचना..बधाई !!
______________
आपको भारतीय नववर्ष विक्रमी सम्वत 2067 और चैत्री नवरात्रारंभ पर हार्दिक शुभकामनायें. आप के लिए यह नववर्ष अत्यन्त सुखद हो, शुभ हो, मंगलकारी व कल्याणकारी हो, नित नूतन उँचाइयों की ओर ले जाने वाला हो !!
चाहता था कि लगा लूं गले आगे बढ़ कर
या ठहाके मार कर हँसु खुल कर
किसी मस्त धुन पर थिरकू मैं भी
या रो लूं सबके सामने जी भर कर
खुद से ही दूर हो गया 'एलिट' बन कर
गर्व से कहता हूँ जानता नही पड़ोसी को
मुस्कराता भी नही उसके नन्हे बच्चे से मिल कर
खुद के चारों खड़ी कर दी दीवारें इतनी
कि अपने आप से बेगाना हो गया
डरने लगा हूँ खुद से ,समीरजी !
कभी खोल से निकल ना जाऊं
जो हूँ किसी दिन उसी रूप में ना आ जाऊं
जो ख़ूबसूरती थी मेरी दरअसल
शायद दोबारा ना उसे पा पाऊँ
'एलिट' भी ना बना 'आम' को भी भूल जाऊं
चाँदी की परत चढ़वा देने से कुछ समय तो चाँदी के होने का भ्रम पैदा कर सकते हैं मगर चाँदी हो तो नहीं सकते. अपने मूल स्वरुप में ही जीवन जीना हमेशा सरल और सहज होता है.
..........ऐसे लोगों पर सटीक व्यंग्य..बेहतरीन प्रस्तुति !!
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आखिर लोग इलीट क्यों बनना चाहते है?क्या वो अपनी जीवन शैली से परेशान हो गये है। या दूर के ढोल सुहावने लगते है
इस कदर भी न पत्थर, हुआ जाए के
ख़ुद में खु़दा की गुमानी आ जाए
*****
ज़िन्दगी में कुछ ऐसा भी, करते चलें
मौत पर अपनी छपकर, कहानी आ जाए
पूरी ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी...खास तौर पर ये शेर तो गज़ब के हैं.....बधाई
जिन्दगी में कुछ ऐसा भी करते चलें ,
की मौत पर छप कर कहानी आ जाए ,
सख्त नफरत में माहिर जमाने को देखें '
शायद यूँ उल्फत निभानी आ जाये
ये सभी बाते आपके कथन को ... उस एलीट क्लास को ....स्पष्ट कर देती हैं
Very Nice Post Sir...
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Ram Krishna Gautam
"इस कदर भी न पत्थर, हुआ जाए के
ख़ुद में खु़दा की गुमानी आ जाए !!!"
इसे सहेजकर रख लिया अपने पास...
बेजोड़...लाजवाब...बेहतरीन....
वाह वाह हम ति ईलीट होने से रह जाते अगर आज ये पोस्ट न पढते क्या जुगलबन्दी है गज़लें पढ कर आनन्द आ गया। धन्यवाद
So called elite people...
"Dhobi ke kutte, na ghar ke na ghat ke"
kuchh galat likh diya kya?
bhaut sunder sirji maza aa gaya
ज़िन्दगी में कुछ ऐसा भी, करते चलें
मौत पर अपनी छपकर, कहानी आ जाए
बहुत ही बढिया है ये पंक्तिया...
ज़िन्दगी में कुछ ऐसा भी, करते चलें
मौत पर अपनी छपकर, कहानी आ जाए
कहानी अकसर मरने के बाद ही बना करती है
really touching
suman'meet'
अब राजा और रंक का फर्क तो मिटने लगा है.. लेकिन अमीर और गरीब की खाई और गहरी होती जा रही है.. जुगलबंदी बहुत ही शानदार है.. आपके लिखे पर कमेंट्स करना तो चिराग को लौ दिखाने के बराबर है...
इस कदर भी न पत्थर, हुआ जाए के
ख़ुद में खु़दा की गुमानी आ जाए
bahut hi shaandaar aur laazwaab rahi dono rachnaye .
कविता पर आज ध्यान नहीं जा रहा..
आपका लेख पढ़ कर सोचने पे मजबूर हैं फिलहाल...
हर समाज में तो हर तरह के लोग होते हैं कुछ अति सक्रिय, कुछ कम सक्रिय..फिर खेमा बदली का ढोंग क्यूँ?
aapki lekhni ke baare me kuchh bhi kahne layak main khood ko nahi samajhti....to meri or se dhanyawaad is saugaat ke liye.....aur navvarsh ki shubhkamnayen
banavati chehara..ant me bahut dukh deta he..fakkhad rahne ka apna mazaa hotaa he..jese ham he.kher..
jugalbandi vakai..umda he..vese yah aapki beshkeemati pratibha he ji jo hame aanand ke saagar me le jati he
धन्यवाद सर आपने वह रचना मुझे भेजी..........बहुत बहुत शुक्रिया
हर समाज में तो हर तरह के लोग होते हैं कुछ अति सक्रिय, कुछ कम सक्रिय..फिर खेमा बदली का ढोंग क्यूँ? चाँदी की परत चढ़वा देने से कुछ समय तो चाँदी के होने का भ्रम पैदा कर सकते हैं मगर चाँदी हो तो नहीं सकते. अपने मूल स्वरुप में ही जीवन जीना हमेशा सरल और सहज होता है.
ढोंग में समय न नष्ट करो. उसे सृजनात्मक कार्यों में लगाओं. क्या पता तुम्हारे कार्य तुम्हें वाकई एक दिन एलीट वर्ग में ले जाकर खड़ा कर दें
bahut khoobsurat nasihat ,aml bhi kiya jaaye to aur bhi behtar rahe .
Bahut achi gajal likhi ha bahut2 badhai...der se hi sahi :]
आज तो आपने काफी अंदर की बात बता दी है| बढ़िया लेख है |
देर से आता हूँ, लेकिन सच में बहुत कुछ अधिक पाता हूँ, बहुत कुछ अधिक पाता हूँ।
उम्र रखे विचार और नीचे कविता अद्भुत थी। बहुत कुछ कह गए अलफाज आपके।
ज़िन्दगी में कुछ ऐसा भी, करते चलें
मौत पर अपनी छपकर, कहानी आ जाए
ग़ज़ब भाई ... शेरो में कमाल है ...
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