कल ही नीलिमा जी को पढ़ता था कि कामकाजी महिलाओं के लिए आरामदायक चप्पल मिलना कितना मुश्किल है. जल्दी मिलती ही नहीं, हर समय तलाश रहती है.
आज बरसों गुजर गये. हजारों बार पत्नी के साथ चप्पलों की दुकान पर सिर्फ इसलिए गया हूँ कि उसे एक कमफर्टेबल चप्पल चाहिये रोजमर्रा के काम पर जाने के लिए और हर बार चप्पल खरीदी भी गई किन्तु उसे याने कमफर्टेबल वाली को छोड़ बाकी कोई सी और क्यूँकि वह कमफर्टेबल वाली मिली ही नहीं.
अब दुकान तक गये थे और दूसरी फेशानेबल वाली दिख गई नीली साड़ी के साथ मैच वाली तो कैसे छोड़ दें? कितना ढ़ूँढा था इसे और आज जाकर दिखी तो छोड़ने का तो सवाल ही नहीं उठता.
हर बार कोई ऐसी चप्पल उसे जरुर मिल जाती है जिसे उसने कितना ढूंढा था लेकिन अब जाकर मिली.
सब मिली लेकिन एक आरामदायक चप्पल की शाश्वत खोज जारी है. उसे न मिलना था और न मिली. सोचता हूँ अगर उसे कभी वो चप्पल मिल जाये तो एक दर्जन दिलवा दूँगा. जिन्दगी भर का झंझट हटे.
उसकी इसी आदत के चलते चप्पल की दुकान दिखते ही मेरी हृदय की गति बढ़ जाती है. कोशिश करता हूँ कि उसे किसी और बात में फांसे दुकान से आगे निकल जायें और उसे वो दिखाई न दे. लेकिन चप्पल की दुकान तो चप्पल की दुकान न हुई, हलवाई की दुकान हो गई कि तलते पकवान अपने आप आपको मंत्रमुग्ध सा खींच लेते हैं. कितना भी बात में लगाये रहो मगर चप्पल की दुकान मिस नहीं होती.
ऐसी ही किसी चप्पल दुकान यात्रा के दौरान, जब वो कम्फर्टेबल चप्पल की तलाश में थीं, तो एकाएक उनकी नजर कांच जड़ित ऊँची एड़ी, एड़ी तो क्या कहें- डंडी कहना ही उचित होगा, पर पड़ गई.
अरे, यही तो मैं खोज रही थी. वो सफेद सूट के लिए इतने दिनों से खोज रही थी, आज जाकर मिली.
मैने अपनी भरसक समझ से इनको समझाने की कोशिश की कि यह चप्पल पहन कर तो चार कदम भी न चल पाओगी.
बस, कहना काफी था और ऐसी झटकार मिली कि हम तब से चुप ही हैं आज तक.
’आप तो कुछ समझते ही नहीं. यह चप्पल चलने वाली नहीं हैं. यह पार्टी में पहनने के लिए हैं उस सफेद सूट के साथ. एकदम मैचिंग.’
पहली बार जाना कि चलने वाली चप्पल के अलावा भी पार्टी में पहनने वाली चप्पल अलग से आती है.
हमारे पास तो टोटल दो जोड़ी जूते हैं. एक पुराना वाला रोज पहनने का और एक थोड़ा नया, पार्टी में पहनने का. जब पुराना फट जायेगा तो ये थोड़ा नया वाला उसकी जगह ले लेगा और पार्टी के लिए फिर नया आयेगा. बस, इतनी सी जूताई दुनिया से परिचय है.
यही हालात उनके पर्सों के साथ है. सामान रखने वाला अलग और पार्टी वाले मैचिंग के अलग. उसमें सामान नहीं रखा जाता, बस हाथ में पकड़ा जाता है मैचिंग बैठा कर.
सामान वाले दो पर्स और पार्टी में जाने के लिए मैचिंग वाले बीस.
मैं आज तक नहीं समझ पाया कि इनको क्या पहले खरीदना चाहिये-पार्टी ड्रेस फिर मैचिंग चप्पल और फिर पर्स या चप्पल, फिर मैचिंग ड्रेस फिर पर्स या या...लेकिन आजतक एक चप्पल को दो ड्रेस के साथ मैच होते नहीं देखा और नही पर्स को.
गनीमत है कि फैशन अभी वो नहीं आया है जब पार्टी के लिए मैचिंग वाला हसबैण्ड अलग से हो.
तब तो हम घर में बरतन मांजते ही नजर आते.
घर वाला एक आरामदायक हसबैण्ड और पार्टी वाले मैचिंग के बीस.
गम भरे प्यालों में,
दिखती है उसी की बन्दगी,
मौत ऐसी मिल सके
जैसी कि उसकी जिन्दगी.
-समीर लाल ’समीर’
85 टिप्पणियां:
जब पार्टी के लिए मैचिंग वाला हसबैण्ड अलग से हो. nice.............nice.............nice........
गनीमत है कि फैशन अभी वो नहीं आया है जब पार्टी के लिए मैचिंग वाला हसबैण्ड अलग से हो.'
चप्पल और जूतियो ने हरेक को दुखी किया है. पार्टी वाले हसबैण्ड की बात जोरदार है मजा आ गया.
तथाकथित आधुनिकता पर व्यंग्य करती सुंदर सांकेतिक रचना !
गुरुदेव,
अब कमफर्टेबल पति की तलाश में विफल रहने पर समझौते तो करने पड़ते ही हैं न...
जय हिंद...
समीर भाई!
निराश न हों!
आपकी कामना अधूरी नही रहेगी!
जल्दी ही वो समय भी आनेवाला है,
जब पार्टी के लिए मैचिंग वाला हसबैण्ड
अलग से होगा!
मगर आप चिन्ता मत कीजिए!
पार्टी के लिए मैचिंग वाली हसबैण्डनी
भी उपलब्ध हो ही जायेंगी!
अब सुमन जी की ही नकल कर देता हूँ-
nice.........!
अब आप भी नारी विमर्श पर शुरू हो गए समीर जी
अब कौन और मिलेगा तो आदरणीय भाभी जी को
मोहरा बना लिए -बिना उनसे अनुमति लिए !
यह थी.....क नहीं है-
और सुबह सुबह मुंह की मांशपेशियों का जो अभ्यास
करा दिया अपने इसके लिए शुक्रिया ! -लगातार
मुस्कुराता रहा हूँ !
समीर जी,
यह तो आप ने हद्द कर दी, यह तो हमारी और पत्नी की रोज़ का ही वार्तालाप का विषय बना रहता है. बहुत खूबी से आप ने सभी कुछ अपनी इस रचना के ज़रिये शब्दों में उतार लिया है.
बहुत बहुत बधायी हो!
आशु
समीर जी,
यह तो आप ने हद्द कर दी. यह तो हमारी और पत्नी की रोज़ का ही वार्तालाप का विषय बना रहता है. बहुत खूबी से आप ने सभी कुछ अपनी इस रचना के ज़रिये शब्दों में उतार लिया है.
बहुत बहुत बधायी हो!
आशु
क्या सभी के घर एक ही समस्या है. इसे तो पुरुष चिन्तन की जगह पुरुष विमर्श ही कहना चाहिये था. आपने तो मेरे घर की कहानी लिख दी.
पार्टी वाला हसबैंड? कुछ अति नहीं हो गई?
@ दिनेश जी
यह अति शब्द अब जमाने को देखते हुए शब्दकोश से अलग कर दिया गया है.
मुझे लगा कि आपको पता होगा. :)
गनीमत है कि फैशन अभी वो नहीं आया है जब पार्टी के लिए मैचिंग वाला हसबैण्ड अलग से हो.
कहीं कहीं पर मैचिंग वाली बीबी का फैशन तो दिख जाता है .. इसके बारे में नहीं लिखा आपने .. वैसे बहुत मजेदार पोस्ट रही आपकी !!
ये हुई ना ...समानता की बात ...पत्नी की सैंडिल के साथ आपके जूतों की मैचिंग का आईडिया कैसा रहेगा ....??
कहीं कहीं पर मैचिंग वाली बीबी का फैशन तो दिख जाता है .. इसके बारे में नहीं लिखा आपने .. वैसे बहुत मजेदार पोस्ट रही आपकी !!
संगीता जी से शत प्रतिशत सहमत ...!!
भाभी जी के पैर .......बहुत सुन्दर हैं!!
इन्हें जमीन पर रखने की साजिश मत करें नहीं तो ..............................................................................................................................................................................................................................................................................................................................मैले हो जायेंगे !! और क्या???
बढ़िया है !!
अच्छे कर्मों वाले लोगों की बातें हैं जो चप्प्ल पहन कर भी कामकाज पर निकल सकते हैं...यहां तो जूते की बिना बात ही नहीं बनती फिर वह चाहे आरामदायक भी भले ही न हो...
मैं आज तक नहीं समझ पाया कि इनको क्या पहले खरीदना चाहिये-पार्टी ड्रेस फिर मैचिंग चप्पल और फिर पर्स या चप्पल, फिर मैचिंग ड्रेस फिर पर्स या या...लेकिन आजतक एक चप्पल को दो ड्रेस के साथ मैच होते नहीं देखा और नही पर्स को.
बड़ा अबूझ पहेली है।
बहुत सुंदर रचना। मज़ेदार।
" नारी " का चरित्र उसके शरीर के विपरीत बहुत मजबूत हैं । मानसिक रूप से वो इतनी परिपक्प्व होती हैं की पति बदलने का कभी नहीं सोचती पति के मरने के बाद भी । पार्टी मे गल बहियाँ दाल कर पति ही किसी और ऊँची एडी वाली नारी को लेकर बीयर के साथ मिल जायेगे पर पत्नी अपने पति के साथ ही मिलेगी ।
पोस्ट अनुज बढ़िया हैं लेकिन ज्यादा लोग पढ़ेगे नहीं इतनी सुंदर सुडोल सेंडिल का चित्र जो आप ने लगा दिया हैं । कुछ और क्रोप हो सकता था फोटोशोप मे ।
अति शब्द के साथ हरी अनंत हरी कथा अनंता भी अब नहीं देखने को मिलते
अभी समधियों के यहाँ शादी में जाना था तो सोचा कि साड़ी के साथ की डिजायनर चप्पल खरीद ली जाए, नहीं तो लोग कहेंगे कि शादी में भी सादगी से ही आ गए। दुकानदार से कहा कि कोई फैन्सी चप्पल दिखाओ, वो तुनककर बोला कि आप आरामदायक चप्पल क्यों नहीं खरीदती? अब उसने हमें पूरा लेक्चर पिला दिया और एक आरामदायक चप्पल ही हमारे चेप दी। तो भाई समीर जी हम तो फैन्सी खरीदने गए थे और हमेशा की तरह आरामदायक ही खरीदकर आ गए। आपकी पोस्ट से लग रहा था कि इसका अन्त हसबैण्ड से ही होगा। अच्छी मनोरंजक पोस्ट है।
दाल = डाल
वाह जी वाह.. सुबह सुबह कस के मारा है जुता...
वाह वाह ये जूता पुराण बहुत रोचक लगा शुभकामनायें
बहुत मजेदार। धन्यवाद।
सही कह डाला भाई !
मस्त
प्रणाम
गम भरे प्यालों में,
दिखती है उसी की बन्दगी,
मौत ऐसी मिल सके
जैसी कि उसकी जिन्दगी.
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति, आभार ।
आपकी ईमानदारी है कि इस रचना को ‘व्यंग्य’ नहीं लिखा। बाक़ी तारीफ तो बहुतों ने कर ही दी है।
समीर जी आपने ज़बरदस्त लिखा है आजके फैशन के बारे में! आज के ज़माने में कपड़ों के साथ साथ मैचिंग जूते पहनने का अनोखा स्टाइल है ! खासकर पार्टी के लिए जूते अलग से खरीदते है और वो ड्रेस के साथ हुबहू मैचिंग होना चाहिए! ज़माना बदल गया है! पहले तो ये था की जूता फट जाए तो ही दूसरा जूता खरीदते थे !
धन्य है महाराज! अब पादुकापुराण!हो गयी शुरुवात एक नई बहस की। हा हा हा
एक पति की पीडा मैं समझ सकती हूं ! जूतों के आश्रय से ही एक ज़रूरी पुरुष - विमर्श चल ही निकला ! और इसका श्रेय आप यदि हमारे चप्पल विमर्श के बहाने स्त्री विमर्श वाली पोस्ट को देना चाह रहे हैं तो आभार सहित धन्यवाद ! :)
आखिर पलडे बराबर रहने चाहिए न :)
मजेदार चिन्तन .......,अकेले अकेल जी भर कर हस रही हूँ ..
घबराइये मत अभी पार्टी वाला मैचिंग हसबैंड का जमाना आने में देरी है .
चप्पल की दुकान के बाजू में फंकी disposable हसबंड की दुकान कैसी रहेगी . मिया की जूती मिया के सर
सही कहा आपने...जूतों के आगे हसबेण्ड की बेण्ड ही बजती है. जो हसबेण्ड न हुए उन पर भी जूते बजते है :)
wah Pintu bhai, wah, bas ek kami aapke article me rah gai, ki - aapne photo ka 20% hi rakha hai, upar ke 80% hissa bhi prakashit karne ka kasht kare. jeet raho ...
हा हा ...सब पतियों का दर्द बयाँ कर दिया आपने....अब क्या करें...ईश्वर ने हम स्त्रियों को बनाया ही है, सजने संवरने के लिए...तो उसकी इच्छा में दखलंदाजी कैसी??....मैचिंग चप्पलें,पर्स ढूँढने ही पड़ेंगे,ना
तब तो हम घर में बरतन मांजते ही नजर आते.
घर वाला एक आरामदायक हसबैण्ड और पार्टी वाले मैचिंग के बीस.
गम भरे प्यालों में,
दिखती है उसी की बन्दगी,
मौत ऐसी मिल सके
जैसी कि उसकी जिन्दगी.
मेरे को तो घर घर की यही कहानी दिखती है?
रामराम.
ऐसे मैचिंग से हसबैण्ड चुने जाते तो हम कुंवारे ही रहते - हम न मैचिंग न कम्फर्टेबल!
हां तब अपना खाना खुद बना रहे होते और अपने बर्तन खुद मांज रहे होते! :)
सुन्दर विमर्श ...
नख से शिख तक की यात्रा की ...
मजा आया ...
बढियां व्यंग्य कसा है आपने....पर सभी स्त्रियाँ फैशनपरस्त ही नहीं होती...एक बाहर वाली और एक घर वाली आरामदायक दो जोड़े चप्पलों वाली भी होती हैं..हाँ यह जरूर है की ऐसी नारियों की संख्या दुनियां में कुछ कम है...
हा..हा..बढिया है. बडे खूबसूरत पैर चस्पां किये हैं आपने..
कहीं कहीं पर मैचिंग वाली बीबी का फैशन तो दिख जाता है .. इसके बारे में नहीं लिखा आपने ..
समीर जी..हमें तो आसार कुछ ठीक नहीं दिखाई दे रहे :)
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हा हा हा ! ये चप्पल वाला किस्सा तो बड़ा मजेदार रहा।
जब पार्टी के लिए मैचिंग वाला हसबैण्ड अलग से हो.
अब वो ज़माना भी आने ही वाला है।
हर बार कोई ऐसी चप्पल उसे जरुर मिल जाती है जिसे उसने कितना ढूंढा था लेकिन अब जाकर मिली
..........
आप तो कुछ समझते ही नहीं. यह चप्पल चलने वाली नहीं हैं. यह पार्टी में पहनने के लिए हैं उस सफेद सूट के साथ. एकदम मैचिंग.’
.........
जूते के बादलों से चप्पलों की ऐसी बरसात.
हम पढ़ कर लोट पोट हो गए.
वो बिहारी में कहते हैं न, भिंगा के मारा है. दर्द देर तक रहेगा. (मतलब हंसी देर तक रहेगी )
चिंता की कोई बात नही समीर भाई वो समय भी आने वाला है .......... मेचिंग हसबैंड ..... तब शायद हसबैंड भी उपभोगता वास्तु बन जाएगा ........
gazab ... kya khub likhte hai aap,
padhne wale raah takte reh jate honge ke kab Sameer Ji kuch likhe aur kab padhne walo ki bhookh pyaas mitey ....
तब तो हम घर में बरतन मांजते ही नजर आते..च च ..क्या कहे अब ..:)
गजब आत्मविश्वास है बंदे का, कि पार्टी कोटि में तो नही पर कंफर्टेबल कैटेगरी में ये पत्नी की पसंद बने रहेंगे... अनप का तो दावा है कि अगर चुनने चलन आ ही जाए तो शायद खुद हम भी अपने आप को दोनों कैटेगरी में बेकार समझेंगे... ऐसा जूता जो न केवल काटता है वरन दिखाने लायक भी नहीं :))
मैचिंग वाला हसबैंड!!
हूजूर, जब ऐसा बैंड मिल गया हो जिसे बजाने पर भी वह हमेशा हंसता रहे तो फिर तो अलग से मैचिंग के लिए खर्च करने की क्या जरूरत है? आप भी बहुत भोले हैं! पर यह पुरुष (जूता) विमर्श बढ़िया रहा.
wah chappal se husband tak ka safar bahut aramdayak raha.
चलिए ठीक है खोज जारी रखिएगा मिल ही जाएगा स्पेशल वाला चप्पल..वैसे अभी तक तो पार्टी वाला हसबैंड बदलने का दौर नही आया है पर क्या पता सब कुछ आज फैशन पर डिपेंड है अगर शुरुआत हुई तो फिर ये भी संभव हो जाएगा..
बढ़िया आलेख...धन्यवाद समीर जी
गनीमत है कि फैशन अभी वो नहीं आया है जब पार्टी के लिए मैचिंग वाला हसबैण्ड अलग से हो. ..
sabse behtareen line....
Arey sir....aap nahi samjhenge matching bahut zaroori hoti hai....Mrs sharma ko yaad rahta hai ki mrs. Verma, Arora ji ki party mein kaun si dress & accessories ke saath aayi thi...... ab agar repetition hota hai to sophisticated, polished, educated tanz bhi sunne ka khatra rahta hai...koi ghar ki ladies par taunt maare ye to tolerate nahi kar sakte aap......Isliye khamosh rahne mein bhalai hai
अजी आपने ये क्या सुझाव दे दिया......मैचिंग हसबैंड
मजेदार जी यह सब नारियो को बात है , नही तो मुक्ता मोर्चा नारी संगठन वालिया आ जायेगी, बाकी अगर आप इस लाईन को ना लिखते**जब पार्टी के लिए मैचिंग वाला हसबैण्ड अलग से हो. तो मै इसे लिखने की सोच ही रहा था:)
हमारे जमाने में तो शिरोमणि की कीमत थी. अब आजकल के ज़माने की क्या कहें? जैदी पहले ईराक में जूता चलाता है, फिर ईराक को पीछे पटक कर पेरिस जाता है और वहां पर एक इराकी से जूता खाता है. एक बात तो तय है कि जैदी जैसों का जूता किसी न किसी दिन वापस उनके ही सर पर आता है.
जैसे पार्टी-सार्टी में मिठाई खाने की इच्छा रखने वाले कहते हैं न लीजिये, लीजिये भाईसाहब एक रसगुल्ला और लीजिए। उसी तरह अपने इच्छायें आप घुमाकर बताये हैं। जो आप पतियों के लिये चाहते हैं उसकी कल्पना पत्नियों के बहाने किये हैं--" जब पार्टी के लिए मैचिंग वाला हसबैण्ड अलग से हो "। इसका मतलब है कि लेखक कहना चाहता है-- पार्टी के लिये मैचिंग पत्नी कब होगी? :)
एक फिल्म आई थी राजेश खन्ना वाली। उसमें पत्नी बनी हिरोईन ने अपने मां बाप के सामने रोब जाडने के लिये कि उसने सही पति चुना है, एक किराये का शानदार घर ले लिया और चाहा कि जब उसके मां बाप आएं तो उसके रोब दाब पर विश्वास करें।
उधर पति राजेश खन्ना खीजते हुए कहते हैं कि जैसे किराये का घर ले ली हो, उसी तरह किराये का पति क्यों नहीं ले लेती।
आज की आपकी पोस्ट उसी को याद करा गई।
बढिया लिखा.
घर वाला एक और पार्टी वाले मेचिंग के बीस, अपने पास वही दो जोड़ी नहीं जी बस एक जो पुरानी भी हो तो न बदली जाए........जूतों की तरह
प्रो. हइकल के अनुसार जो बातें समझ के बाहर हों उन पर सिर नहीं खपाना चाहिए ।
मैं आज तक नहीं समझ पाया कि इनको क्या पहले खरीदना चाहिये-पार्टी ड्रेस फिर मैचिंग चप्पल और फिर पर्स या चप्पल, फिर मैचिंग ड्रेस फिर पर्स या या...लेकिन आजतक एक चप्पल को दो ड्रेस के साथ मैच होते नहीं देखा और नही पर्स को.
गनीमत है कि फैशन अभी वो नहीं आया है जब पार्टी के लिए मैचिंग वाला हसबैण्ड अलग से हो.
तब तो हम घर में बरतन मांजते ही नजर आते.
घर वाला एक आरामदायक हसबैण्ड और पार्टी वाले मैचिंग के बीस.
हालंकि कापी पेस्ट कर के कमेंट लगाना मुझे अच्छा नहीं लगता लेकिन आज खुद को रोक नहीं पाया । ये पंक्तियां शरद जोशी जी की धार के ठीक आस पास से गुजरती हैं । इनमें वही कुछ है जो आदरणीय शरद जोशी जी के व्यंग्य लेखों में होता था । वही जिसमें गुदगुदी भी होती थी और चुभन भी । आपके व्यंग्यों में भी दोनों का बहुत अच्छा सम्मिश्रण होता है । पूरी रचना दिलचस्प है । लेकिन अंत तो कमाल का है । मैचिंग वाला विचार गुदगुदाता भी है और चुभता भी है । बधाई
इसका मतलब है कि लेखक कहना चाहता है-- पार्टी के लिये मैचिंग पत्नी कब होगी? :)
उपरोक्त लाइन फ़ुरसतियाजी के कमेंट्स से उठाई है.इस लाइन से स्कूल के दिनों की याद आ गई जब हिंदी के मास्साब कबीर का दोहा पढाने के बाद उसका भावार्थ बताते थे तब बोला करते थे " कवि यहां यह कहना चाहता है कि ब्लागर के मन की उडान बहुत ऊंची होती है":)
जय हो फ़ुरसतिया मास्साब की.:)
रामराम.
भूल गए वो दिन जब तुम कहा करते थे की जिस कलर की सूत पहनूंगा उस कलर की कार में यात्रा करूंगा . अब बेचारी औरत ज़ात को क्यों कोसते हो
हासानंद भोपाली
आदरणीय समीरजी.....
सादर नमस्कार....
हा हा हा हा हा हा ..... बहुत बढ़िया लगी यह पोस्ट..... चप्पल वाला और पार्टी के लिए मैचिंग वाला हसबैण्ड किस्सा बहुत ही मजेदार रहा.....
"कामकाजी स्त्री के लिये आरामदायक चप्पल मिलना सचमुच मुश्किल होता है और यह तलाश जीवन भर चलती रहती है । " लेकिन चप्पल और पार्टी का सम्बन्ध आज पता चला । अब समझ में आया जयललिता जी के पास 700 जोड़ी चप्पले कैसे इकठ्ठा हुई होंगी । सही है पार्टी का काम बहुत महत्वपूर्ण होता है । बाकी बातों पर no comment !!!
sarthak chintan ,magar is mamle mein hamara vote bhabhi ji ki aur jata hai:).
हा..हा..हा... ये सब आप जैसे शादीशुदा लोगों की टेंशन है.. अपन तो अभी इस झंझट से बहुत दूर हैं...
मैचिंग हस्बैंड?:) कमाल का लिखा है आपने.
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आदरणीय समीर जी,
'पत्नी श्री' कहती हैं कि उनका कॉन्फिडेन्स लेवल सैंडिल की हील की ऊंचाई के directly proportional रहता है। मैचिंग वाला पर्स, चप्पल, चूड़ियां, बिन्दी, लिपस्टिक, ब्लशर, आई शैडो, आई लाईनर, हाईलाइटर, मस्कारा, हेयर क्लिप, घड़ी, मोबाईल आदि आदि रखना तो उनका जन्म सिद्ध अधिकार है फिर आप और मैं क्या कर सकते हैं सिवाय पुरूष चिन्तन के।
पार्टी के लिए मैचिंग वाला हसबैण्ड
ये आइडिया अभी तक हम लोगों के दिमाग में क्युं नहीं आया…पत्नी मंडली आभारी रहेगी आप की ऐसे ही नये नये आइडिया सुझाते रहिए…:)
एकदम सटीक चिंतन.....
खुदाया खैर!...
woh din door nahi .... party wala husband bhi aa jayega....
Sameer ji,
bahut hi sundar lekh .badhai!!
Nice Post!! Nice Blog!!! Keep Blogging....
Plz follow my blog!!!
www.onlinekhaskhas.blogspot.com
जूताई दुनिया से ये खासम-खास परिचय बड़ा ही खास रहा पढ़ने के लिये....
यह तो कमाल हो गया। आप ने जो लिखा वैसा ही मैं महसूस करता रहा हूँ लेकिन कभी लिखने को सोच नहीं पाया। इसलिए कि ये शानदार शब्द और वाक्यांश मेरे जेहन में पैदा ही नहीं हो पाते। आप गजब का लिखते हो जी।
लेकिन अनूप जी की गवेषणा का भी जवाब नहीं। आपके कहे में जो बात छिपी टाइप रहती है उसे खोज निकालने में अनूप जी को महारत हासिल हो गयी है। हमारी मौज के लिए यह युगलबन्दी बहुत मुफ़ीद साबित हो रही है।
joota vimarsh achcha laga!
bas mujhe laga aap shayad meri aane waali zindagi mein aane wale ek adad husband ki bhasha bol rahe hain...... sach kitni milti julti hai ladkiyon ki duniya ..kam s ekam purse aur chappalon ke mamlon mein....
बहुत बढिया पोस्ट है ।
भविष्य दर्शन करा दिया आपने।
लेकिन आने वाले दिनों मे मैचिंग हसबैंण्ड और बीबी का चलन संभव है शुरू हो ही जाए।:))
समीर जी ये मेचिंग का चक्कर तो लगभग हर घर में हैं .... आपके इस व्यंग ने तो घर घर की कहानी बता दी है ......
लाजवाब लिखा है |
समीर जी बहुत ही आम समस्या को खास अन्दाज़ मे सबके सामने रखा है. पुरुष तो अब इस नयी सदी मे बस चिन्तन ही कर सकता है. एक टिप्पणी थी कि -
"नारी का चरित्र उसके शरीर के विपरीत बहुत मजबूत हैं । मानसिक रूप से वो इतनी परिपक्प्व होती हैं की पति बदलने का कभी नहीं सोचती पति के मरने के बाद भी । पार्टी मे गल बहियाँ दाल कर पति ही किसी और ऊँची एडी वाली नारी को लेकर बीयर के साथ मिल जायेगे पर पत्नी अपने पति के साथ ही मिलेगी ।"
यह ये समझ नही आया कि अगर नारी इतनी मज़बूत है तो पुरुष को पार्टी मे ले जाने को महिला जैसी नारी कहा से मिल जाती है और अगर उनका इशारा ये है कि वो जो विवाहित नही होती है वे कमजोर और सहज उपलब्ध है तो मुझे इस पर घोर आपत्ति है. लम्पटता व्यक्तिगत चरित्र है और इसका पुरुष और नारी से कोई सरोकार नही है.
आप अकसर मेरी पोस्ट के पहले टिप्पणी भेजने बाले होते है. इसके लिये आभार कहके मै आपके स्नेह को कम नही समझुन्गा.
bahut sundar vyang....sateek kataksh....maza aaya padh kar....badhai
गनीमत है कि फैशन अभी वो नहीं आया है जब पार्टी के लिए मैचिंग वाला हसबैण्ड अलग से हो.
हा हा हा :D
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