हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि वो महान कहलाये, अभी न भी सही, तो कम से कम मरणोपरांत.
हमारे एक मित्र तो इसी चक्कर में माला पहन कर अगरबत्ती समाने रखकर तस्वीर खिंचवा लिये कि घर में टंगी रहेगी. कोई माला पहनाये न पहनाये, अगरबत्ती जलाये न जलाये, तस्वीर महानता बरकरार रखेगी. साथ ही कुछ कार्ड छपवा कर फोटो के सामने रख दिये हैं..स्व. कुंदन लाल गुप्ता...क्या पता बाद में कोई स्वर्गीय कहे न कहे. जमाना तेजी से बदल रहा है.
एक मित्र नगर निगम को १५ लाख डोनेशन देकर मरे कि मरने के बाद चौराहा उनके नाम कर दे या एक सड़क का नाम, गलीनुमा ही सही, उनके नाम हो जाये. हुआ नहीं, सब खा पी गये, यह अलग बात है. उनकी दूरदृष्टि का दोष, कि ऐसे निकम्मे्पन को भाँप न पाये. हम और आप ही कहाँ भाँप पा रहे रहे हैं, हर बार हाय करके रह जाते हैं.
लोग वसीयत तक का फॉरमेट इस तरह बदल डाल रहे हैं कि उनकी महानता स्थापित हो पाये. गोया..मेरी जायजाद का आधा हिस्सा मेरे बेटे को उसी हालत में दिया जाये जबकि वो मेरी बाकी आधी जायदाद को इस्तेमाल कर मेरी स्मृति एक वृद्धाश्रम खोले.
क्या क्या नहीं करता इंसान अपना नाम कायम किए रहने के लिए और खुद को महान घोषित करवाने के लिए.
लोग जब मर जाते हैं तो लोग उनके कहे में से सुभाषित ढ़ूंढ़ते हैं. महात्मा गाँधी ने ये कहा, लूथर किंग ने ये कहा, हिटलर ऐसा कह गये. वो सिर्फ इतना कह कर मर नहीं गये. उन्होंने इससे लाख गुना कहा मगर उसमें से इतना भर सुनने लायक है जो उन्हें महान बनाता है.
वो तो रोज सुबह शाम ही कुछ न कुछ कहते ही रहते थे. उसमें से इतना ही है एक लाईना...सुनने लायक. उनका काम ही कहना था...आप बस इतना सुनो..और उनकी महानता का जयकारा लगाओ. सारा सुन कुछ फायदा नहीं, वितृष्णा ही मिलेगी. खामखाँ मन खट्टा होगा, स्वास्थय बिगड़ेगा.
कौन जाने हमारे कहे में से ऐसे सुभाषित कोई खोजे न खोजे.. एक लईना में? कौन जाने कहीं कोट हो न हो. या फिर ऐसा भी हो सकता है कि कोई अपने नाम ही से हमारी कही महान बात न छाप जाये इस खराब जमाने में. किसे पता चलेगा कि इतनी बड़ी उड़नतश्तरी में ये कहाँ लिखा है. किसी का भरोसा तो रहा ही नहीं..
इसलिए हमने सोचा कि अभी तक लिखे में खुद ही छांट कर अलग कर दें इस टाईप के सुभाषित और फिर हर एक नियमित समयांतराल में करते चलेंगे. और कुछ ध्यान में न भी होंगे तो आप बता देना. इससे एक तो किसी और को मेहनत न करना पड़ेगी और महान बनने में सरलता रहेगी. बताईये, ठीक है क्या यह आईडिया?
- प्रशंसा और आलोचना में वही फर्क है जो सृजन और विंध्वस में.
- गिनती सीधी गिनो या उल्टी, अंक वही होते हैं. सिर्फ क्रम बदल जाते हैं.
- मैं और तू सामने वाले पास भी वही विकल्प प्रदान करते हैं मैं और तू वाले.
- साहयता से गुरेज मात्र आत्म विश्वास का दिखावा है. हर व्यक्ति साहयता चाहता है.
- एसी की आहर्ता रखने वाले को आप एसी का किराया देकर सिर्फ बुला सकते हैं जबकि तृतीय श्रेणी की आहर्ता रखने वाले को एसी का किराया देकर बुलाने पर आप उसे कुछ भी सुना सकते हैं.
- शराब सोडे मे मिलाओ या सोडा शराब में. नशा शराब का ही होता है.
- कलम की छांव में पलते शब्द आलसी हो जाते हैं. किसी काम के नहीं रहते. उन्हें ताप की जरुरत है.
- कुनबा एकरस लोगों का हो, यह जरुरी न्हीं. सबकी अपनी राय और सबकी अपनी महत्ता होती है.
- हर लिखा पठनीय हो, यह आवश्यक नहीं किन्तु हर पठनीय लिखा हो, यह जरुरी है और ब्लॉग यह सुविधा प्रदान करता है.
- चिल्लर की तलाश में रुपये गँवाने वालों को सलाह है कि वो सरकारी नौकरी प्राप्त करने की कोशिश करें.
-समीर लाल 'समीर'
बताईयेगा, आपके क्या विचार हैं?
76 टिप्पणियां:
"हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि वो महान कहलाये, अभी न भी सही, तो कम से कम मरणोपरांत.
हमारे एक मित्र तो इसी चक्कर में माला पहन कर अगरबत्ती सामने रखकर तस्वीर खिंचवा लिये कि घर में टंगी रहेगी. कोई माला पहनाये न पहनाये, अगरबत्ती जलाये न जलाये, तस्वीर महानता बरकरार रखेगी."
बहुत बढ़िया युक्ति बताई है जी!
अनुकरणीय है।
आज हम भी यही करेंगे और आपके अवलोकनार्थ
किसी दिल ब्लॉग पर भी लगा लेंगे।
आपका आभार गुरूदेव!
बस आप तो नये-नये गुर बतलाते रहा करो।
श्री गुरू नानकदेव जयन्ती और कार्तिक पूर्णिमा की
आपको बहुत-बहुत बधाई!
हम इसका नाम रखेगें -समीर सुभाषितम -आप निसाखातिर रहें !
मगर यहाँ तो सोमरस में गंगाजल मिलाने की परम्परा रही है -कहते हैं
गंगाजल में सोमरस मिलाने पर ऊ गंगाजल बन जाता है ससुरा ....
बहुत सुंदर-हर आदमी अमर होना चाहता, सार्वजनिक स्थलों का नाम करण भी इसमे एक है, मेरी एक सलाह है कि नोटो पर भी बोली लगनी चाहिए जिस तरह आज कल कोई भी जगह नही बची जिसमे विज्ञापन न हओ इसी तरह नोट पर फ़ोटु छ्पवाने की तमन्ना लिए मरने वालो के लिए एक सुविधा होनी चाहिए कि नोट पर फ़ोटु के लिए जो जितना ज्यादा रुपया दे उसकी फ़ोटु छपे। समीर भाई मेरी सलाह पर ध्यान दिया जाए-राजस्व मे बहुत बढोतरी होगी।
आपको महानता को साबित करने के लिये अगरबत्ती जलाने की आवश्यकता नहीं है. एक लाईना को खुद 'कोट' करने की भी नहीं. आज ही दीपक मशाल की पोस्ट "कल नहीं पढा आज फिर पढिये ---" किस ओर इन्गित कर रही है सर्वविदित है. (आपके ध्यान मे कमोबेश हर कोई आना चाहता है). और यह तब होता है जब कोई हरेक के ध्यान में आ जाता है.
और फिर अंत में :
महान होने की अरमां वो करे जो महान न हो
(उपरोक्त विचार से सहमत होना जरूरी नहीं)
एक अदद नौकरी की तलाश शुरू कर देनी चाहिए।
वैसे तो आपके सुभाषित आपको महान बनाने के लिये पर्याप्त हैं लेकिन आपको इंतज़ार करना होगा सतयुग आने तक! ये कलियुग है गुरू! क्या बिना घूस दिये कोई काम होता है आजकल? महान बनने के लिये पहली शर्त चाणक्य-नीति में पारंगत होना है..:)
हर वह शख्स महान है, जो बन सके कबीर.
दुनिया से सच कह सके, सम कह धूल-अबीर.
कर अक्षर आराधना, होता रंक अमीर.
'सलिल' किये चल साधना, लग जा गले समीर..
सारा प्रवाहपूर्ण लेखन. बधाई.
किसे पता चलेगा कि इतनी बड़ी उड़नतश्तरी में ये कहाँ लिखा है. किसी का भरोसा तो रहा ही नहीं..
" हा हा हा हा हा हा हा हा हा वैसे ये "भरोसा" होता क्या है ये शब्द अभी भी इस्तेमाल होता है क्या???? बहुत पते की बाते कही है आपने.."
regards
एक बात तय कि अगर किसी ब्लागर की महानता का जब उसके मरने के बाद बखान करना होगा तो उसके कहे वचन पूरे वर्चुअल वर्ल्ड में यहां वहां चारों तरफ फैले मिलेंगे...उसके कथनों की कमी कभी न होगी.
kuchh bhi ho aap to mahanta ki shreni men aa hi gaye hain. badhaai.
एक ठो बात बताइए तो....ई जीते जी महान बनने का कौनो जुगाड नहीं है का...एक दमे नहीं...माने बाबा बूबा बन के ..अपना पेड भक्त सब को काम पे लगा दिया जाए...चलिये ई टौपिक पर कौनो आउर को करने देते हैं पी एच डी..प्रवचन गजबे रहा जी..हमको पूरा यकीन है..आप बताए नहीं हैं..मुदा ई तो पता चलिये न जाता है कि एलियन इंसान से कैसे अलग होते हैं...हां तो कह रहे थे कि यकीन है कि ई प्रवचन खास कर ऊ युग पंक्ति ..सोडा वाला ..पानी वाला..जरूरे आप बोतलवा के रैपर पर लिखे होंगे..पता नहीं कतना तो लिखे आप बीडी ..मदिरा ..सब के कवर पर जी...
अच्छा एगो बात भी बताईये दिजीये....राज दरबार भी खाते हैं..अरे गुटखा है जी..नहीं तो जल्दी शुरू किजीये..काहे से बिना लिखे तो आप छोडेंगे नहीं ऊ पर भी..
महान होने का फ़ारमूला सब नोट कर लिया गया है..कापी में ...
उत्तम विचार है और आपको समय रहते ही कौंध भी गया...वर्ना आपके गो लोक वासी होने के बाद पीछे से लोग क्या पता इन बातों की जगह कुछ और की कोट करते फिरते और आपका नाम होने की बजाये बदनाम हो जाता...आपने जो ये निर्णय लिया है वो आपकी दूर दृष्टि का परिचायक है...आप इसी लिए महान होने के क्रम में सबसे आगे खड़े हैं...
आपका ये विचार हम जैसे महान होने की कतार में खड़े व्यक्तियों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत्र है...आपकी जय हो.
नीरज
समीर जी, इच्छा तो हरेक की होती है मगर ,
वह सूरज बनके भी फायदा क्या
जो सूरज जैसा जलने की हिम्मत न रखे ?
सिर्फ बुत लग जाए और चिडियावो के लिए शौंचालय की व्यवस्था हो जाए ऐसी महानता से क्या करना ?
विचार बहुत शानदार रखें हैं।
महान बनो..वाद मत बनो
वाद से विवाद उपजता है
उस विवाद की आग में न जाने कितने ही झुलसते हैं।
आपने अच्छी स्कीम बताई आज ही माला मंगवाकर पहिनकर फोटो उतरवाता हूँ और घर की दीवारों पर और गेट पर टंगवा देता हूँ . महान बनने की दौड़ में यह नुस्का भा गया ...मरने के बाद कम से कम महान बनाने की तमन्ना दिल में तो न रहेगी..... हा हा हा .....
हम छुटभैये का कहें जी:)
हम तो हर एक के साथ नाम लगा कर रखेगें.. कोई ऊडा ले गया तो....
प्रशंसा और आलोचना में वही फर्क है जो सृजन और विंध्वस में. -समीर लाल 'समीर'
गिनती सीधी गिनो या उल्टी, अंक वही होते हैं. सिर्फ क्रम बदल जाते हैं. -समीर लाल 'समीर'
मैं और तू सामने वाले पास भी वही विकल्प प्रदान करते हैं मैं और तू वाले. -समीर लाल 'समीर'
साहयता से गुरेज मात्र आत्म विश्वास का दिखावा है. हर व्यक्ति साहयता चाहता है. -समीर लाल 'समीर'
एसी की आहर्ता रखने वाले को आप एसी का किराया देकर सिर्फ बुला सकते हैं जबकि तृतीय श्रेणी की आहर्ता रखने वाले को एसी का किराया देकर बुलाने पर आप उसे कुछ भी सुना सकते हैं. -समीर लाल 'समीर'
शराब सोडे मे मिलाओ या सोडा शराब में. नशा शराब का ही होता है.-समीर लाल 'समीर'
कलम की छांव में पलते शब्द आलसी हो जाते हैं. किसी काम के नहीं रहते. उन्हें ताप की जरुरत है. -समीर लाल 'समीर'
कुनबा एकरस लोगों का हो, यह जरुरी न्हीं. सबकी अपनी राय और सबकी अपनी महत्ता होती है.-समीर लाल 'समीर'
हर लिखा पठनीय हो, यह आवश्यक नहीं किन्तु हर पठनीय लिखा हो, यह जरुरी है और ब्लॉग यह सुविधा प्रदान करता है. -समीर लाल 'समीर'
चिल्लर की तलाश में रुपये गँवाने वालों को सलाह है कि वो सरकारी नौकरी प्राप्त करने की कोशिश करें.-समीर लाल 'समीर'
मुझे सबसे ज्यादा पसंद आई ये..
कुनबा एकरस लोगों का हो, यह जरुरी न्हीं. सबकी अपनी राय और सबकी अपनी महत्ता होती है.-समीर लाल 'समीर'
Aapka ha likha pathneey hota hee hai...yebhi sach harek apne likhe ko padhwane-padhne ke liye hi pesh karta hai...kisee ka kam padha jata hai, kisee ka kam..apne apne wajuhaat bante hain..!
आपका अपनी बात को रखने का तरीका लाजवाब था।
पढ़ते-पढ़ते मन उस बात को खोजने लगा जब इंसान महान होने की तलाश में कइ जुगाड़ बुनता है।
बहुत अच्छा लिखा है।
प्रशंसा और आलोचना में वही फर्क है जो सृजन और विंध्वस में.
BADHIYA
कहीं पढ़ा था ...समीर लाल जी विनम्र हैं ...और... अब ये महानता ?
पढ़ कर अच्छा लगा लेकिन दुविधा ये है की
हमें पुराने समीर लाल समीर ही पसंद हैं ! खैर ....
'जो तुझ भावे नानका'
शुभकामनायें
धन्य हो ! धन्य हो !
आप श्रीमान हैं, बलवान हैं, बुद्धिमान हैं, धनवान हैं, कवि और ब्लॉगर तो हैं ही । अब बाकायदा महान भी हो गए वो भी अपनी स्टाइल में । मैं तो कहता हूं आप पुरुष ही नहीं हैं ....महापुरुष हैं महापुरुष !
कुछ सुभाषितान तो पाठ्यक्रम में रखने लायक हैं ।
यह लेख भी महान स्तरीय है ।
पर मेरी समझ में एक बात आज तक नहीं आई कि जब कोई मर ही जायेगा तो नाम रहे चाहे न रहे क्या फ़र्क पडता है । क्योकि मरने के बाद वह अपनी महानता का मजा कैसे लेगा ?
तो देखिए बुद्ध जी क्या कहे थे इस बारे में :
"जो महान मालूम पडता है, उसका भी पतन है । जो नित्य मालूम पडता है वह भी परिवर्तनशील है ।"
- गौतम बुद्ध
लीजिये हम भी एक उद्धरण देकर अपनी महानता का आगाज कर देते हैं :
"कोई भी प्राणी इतना महान नहीं हो सकता कि उसे गरिआया न जा सके"
-अर्कजेश
धन्यवाद !
वाह ! क्या आईडिया है सरजी !
आज तो गज़ब कर दिया दादा !
क्या सूत्र दिए हैं !
वाह !
हसमुख है, विद्वान है
समीर लाल महान है
_____________अभिनन्दन !
महान बनने के आसान तरीके, किताब का नाम कैसा रहगा (:
समीर जी,इस लेख के लिए धन्यवाद।आप के इस लेख को पढ़ कर बहुतो को प्रेरणा मिलेगी।सभी इस काम में जुट जाएगें......."महान" होना तो सभी की इच्छा होती है...
हमने भी अपने मतलब की कुछ बाते इस लेख में से चुन ली है और जल्द ही उसे अमल मे लाना शुरू कर देगें....:))
हमने तो ढ़ूंढ़ लिया और कोट भी कर रहे
कि
कौन जाने हमारे कहे में से ऐसे सुभाषित कोई खोजे न खोजे.. एक लईना में?
बी एस पाबला
अच्छा व्यंग्य है जी
सच कहा आपने, महानता न तो पैसों से न ही जोर-जबर्दस्ती से प्राप्त की जा सकती है वो तो सिर्फ अच्छे कर्मो से और सत्य वचनों से मिलती है.
"बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर......"
वैसे सच पूछा जाय तो वह महान तो है, मजाक की बात अलग ।
इंसान जो न बन जाए वह भी थोडा है .आपके लिखे महान वाक्य बहुत पसंद आये .
महान होने का अरमान रखना और कोशिश करना हर इंसान का हक़ है ....मगर आपको इसकी जरुरत क्यों पड़ी ...क्या कसर रह गयी थी महान होने में ...!!
प्रशंसा और आलोचना में वही फर्क है जो सृजन और विंध्वस में.
गिनती सीधी गिनो या उल्टी, अंक वही होते हैं. सिर्फ क्रम बदल जाते हैं.
bahut sahi baat kahi hai apne...
एक से एक मजेदार कोट्स
गुजराती के वरिष्ठ लेखक रतिलाल 'अनिल' कई वर्षों से सुरत के प्रख्यात गुजरातमित्र में एक कॉलम (चंदारणा)लिखते हैं जिसमें इस तरह के एक लाईनों के मजेदार 'कोट" होते हैं।
पर मेरी समझ में एक बात आज तक नहीं आई कि जब कोई मर ही जायेगा तो नाम रहे चाहे न रहे क्या फ़र्क पडता है । क्योकि मरने के बाद वह अपनी महानता का मजा कैसे लेगा ?
@अर्जकेश
हमारे मेवाड़ में आजकल एक नया फैशन चला है, लोगों को लगता है कि उनके मरने के बाद उनकी संताने उनका मौसर (मृत्यु भोज) नहीं करेंगी, सो वे जीते जी ही मौसर करते हैं।
जीते जी के म्रूत्यु भोज.. (बड़ा कन्फ्यूजन है) में बुजुर्गवार दूल्हा बन कर इठलाते हैं।
मरने के बाद भले ही लोग जीमने ना जायें लेकिन जीते जी के मौसर में पूरे गांव को नूता (न्यौता) दिया जाता है और लोग राजी-राजी जीमने आते हैं।
ek se badhkar ek ...subah bachchon ko praarthna ke samay kahne ke lie likh lie hain ....
आपने ऐसा धाँसू आइडिया दे दिया की लोग तो इसपर अमल करने निकल भी गए होंगे.....
जबरदस्त ज्ञानचक्षुखोलक पोस्ट...वाह !!
वैसे आप चिंता जिन करिए....आपके कोट बस आपके ही रहेंगे...आपके स्टाइल की लाख नक़ल करना चाह भी लोग पर्फेक्सन नहीं ला पाएंगे...
बहुत अच्छी समीक्षा है महानता की. जब बुद्धन खान की मौत हुई तो चारों बेवायें और छत्तीसों बेटे कब्रिस्तान के फाटक पर अड़ गए की लाश तब तक दफ़न नहीं होगी जब तक कब्रिस्तान के दरवाज़े पर उनका शेर चस्पा न हो, ऐसी जिद वे अपनी वसीयत में कर गए थे. बड़ा फजीता हुआ मगर आखिरकार पहले शेर लिखा गया और फिर बुद्धन खान अन्दर घुसे.
हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि वो महान कहलाये, अभी न भी सही, तो कम से कम मरणोपरांत.
ekdum sahi kah rahen hain aap.........
bahut achcha laga yeh vyang....
बहुत जोरदार जोगाड बताया है. हम तो अभी से शुरु कर दिये हैं.:)
कल किसने देखा?
रामराम.
बताईयेगा, आपके क्या विचार हैं?
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अरे हम क्या बतायें। आप ही जरा ई-मेल से (यानी कान में) बतायें कि हम महान कैसे बनें।
आपको हमारा साधारण सा व्यक्तित्व तो पता ही है। महान बनना कई जन्मों की साधना प्रतीत होती है! :)
बढ़िया है। सुभाषितों पर कॉपी राइट तो होगा ही।
महान बनने का सबसे सरल नुस्खा हे अपना नाम ही महान रख लेना।
घुघूती बासूती
arey sir, aapke sujhaav sar aankho par........ab to ham bhi mahan hona chahte hai :-)
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"हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि वो महान कहलाये, अभी न भी सही, तो कम से कम मरणोपरांत..."
समीर जी,
अपने पास इसका पक्का जुगाड़ है...जरूरत सिर्फ एक एफिडेविट और अखबार के क्लासिफाइड कॉलम में एड देने की है...
अपना नाम ही बदलकर "महान" रख ले वो...
हा हा हा... :)
अमर वाणी...सुंदर और सच्ची बात बस अंदाज थोडा चेंज है..
"हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि वो महान कहलाये, अभी न भी सही, तो कम से कम मरणोपरांत.
अजी अपून की कोई ऎसी इच्छा नही,
चलिये इसी बहाने आप की इच्छा का पता चल गया, २०,२५ करोड दे तो जंगल के दस बारह पेड आप के नाम कर देते है, यानि हर पेड आप के नाम का
श्री गुरू नानकदेव जयन्ती और कार्तिक पूर्णिमा की
आपको बहुत-बहुत बधाई!
आप महान हो जी
आप चिंता न करें, आपको तो हम महान बना देंगे,
मैं खुदा को हाजिर-नाजिर जानकर अपने ब्लॉग पर आपका स्मारक बनाने की घोषणा करता हूँ, सभी ब्लोगर इसके गवाह हैं.... (नोट : स्मारक ब्लॉग पर ही बनाऊंगा और इसे बारह एम् बी का स्पेस मिलेगा)
अब बाल इन योअर पाले में..
आप स्मारक बनाने के लिए हमें उचित समय बताएं...
समीर भाई
सच मैं भी महान बनना चाह रिया हूं
जब नौकरी चाकरी से रिटैयर होने तक
महानता के लिये जो ज़रूरी बातैं
मूर्ति का आर्डर बेगड जी को दे दिया
है..... तब तक लाख पोस्ट तीन लाख टिप्पणियां
मिल ही जाएगी चलो महानता का जुगाड पूरा
अपन अपनी चौराहे वाली मूर्ती को छतरी से छा देंगे
ताकि "काग-बीट-अभिषेक" से बचा जा सके...
आमीन कहिए गुरु
"हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि वो महान कहलाये, अभी न भी सही, तो कम से कम मरणोपरांत"
लेकिन उसके लिए कर्म भी तो ऎसे होने चाहिए, कि जीते जी न सही, कम से कम मरने के बाद तो कोई याद कर सके... बबूल बोकर हम लोग बस आम खाने के चक्कर में लगे रहते हैं ।
apne AMAR hone ka bhi vichar bahut DHAAAAAANSOOOOOOOOOOO hai, BOSSSSS.....................
kabhi bataayenge FURRRRRRRRRRRSAT men.
मेरी ख्वाहिश भी महान बनने की है, लेकिन मरने के बाद महापुरुष बनने का कतई अरमान नहीं है।
आपकी महानता का परिचय तो आपकी पोस्ट पर आने वाले कमेंट्स से ही पता लग जाता है।
समीर भाई एक गुजारिश है
इसे नियमित कर दीजिए। भले ही एक पोस्ट में दो या तीन डालें लेकिन आखिर में अनुराग भाई के तीन लाइना की तरह तीन सुभाषित डाल दिया करें।
मेरे जैसे कईयों का भला होगा।
और हम भी कह सकेंगे उड़नतश्तरी कह गई... हा हा हा हा :)
aisa hi joke raju srivastav ne tv per sunaya tha.................ki ek bahut hi knjoosh tha. achank tabiyt kharab hote hi bete so bola mala lavo pahana kar photo khichva lo. fil frame me lagakar tang dena rozana 5 rupye bachenge........)o
गुरुदेव,
क्या मायावती बहनजी ने सीक्रेट तौर पर कनाडा का दौरा तो नहीं किया...जीते जी महान बनने के चक्कर में मायावती ने बुतों-पार्कों के निर्माण पर दस हज़ार करोड रुपये झोंक दिए...
वैसे यहां ट्रकों के पीछे एक वाक्य लिखा होता है...
100 में से 95 बेईमान,
फिर भी मेरा भारत महान...
जय हिंद...
वाह क्या चुनचुन कर एक लाइने लिखे हैं । हमें तो ये वाला सबसे बढिया लगा ।
जो लिखा गया वह पठनीय हो, जरूरी नही पर जो पठनीय हो वह लिखा जाना चाहिये और ब्लॉग ये सुविधा प्रदान करता है ।
अच्छा समीर भाई ऐसा नहीं लगता कि व्यक्ति को मरने से पूर्व दिव्य ग्यान की प्राप्ति हो ही जाती है....
समीर जी, एक बार फिर आपकी कलम को मेरा दंडवत प्रणाम......
जय हिंद...
समीर भाई
आप भी ना -
- क्या क्या सोचते हैं -
मरने की बात ना करीए -
हां महानता तो आपमें (जबरदस्त मात्रा में) ,
भरी हुई है -
ये मैं जानती हूँ :)
और सौ. साधना भाभी जी भी
यही कहतीं हैं - खुश रहें सदा
सादर, स स्नेह
- लावण्या
हमारे एक मित्र तो इसी चक्कर में माला पहन कर अगरबत्ती समाने रखकर तस्वीर खिंचवा लिये कि घर में टंगी रहेगी. कोई माला पहनाये न पहनाये, अगरबत्ती जलाये न जलाये, तस्वीर महानता बरकरार रखेगी. साथ ही कुछ कार्ड छपवा कर फोटो के सामने रख दिये हैं..स्व. कुंदन लाल गुप्ता...क्या पता बाद में कोई स्वर्गीय कहे न कहे. जमाना तेजी से बदल रहा है.
बहुत ही अच्छा लिखा है ।
* चिल्लर की तलाश में रुपये गँवाने वालों को सलाह है कि वो सरकारी नौकरी प्राप्त करने की कोशिश करें.
-समीर लाल 'समीर'
(ये तख्ती टांगने लायक है)
सचमुच नाम कमाने की लालसा बड़ी विचित्र है, पर कम से कम ऐसा कोई कर्म तो हो!! चाहे वो कुकर्म ही हो जिससे नाम हो !अब नाम तो नाम है चाहे कुख्यात हो या प्रख्यात दोनों को प्राप्त करने के लिए कर्मो की जरुरत है ! बिना कर्म के नाम कमाने की लालसा या तो खुद ही जैसा आपने बताया अपनी अगरबती करके या अपना ही पुतला बना कर अपने ही घर के आगे रखने से ही होगा क्यूंकि गली मोहल्ले में कोई रखने दे ना दे !! और अंत में लिखे आपके सुन्दर वचन तो लाजवाब हैं!!!
उड़न तश्तरी जी ,
महान बनने की लालसा आदमी से क्या क्या नहीं करवा लेती . व्यंग अच्छा है . शब्दों में जब तक ताप नहीं तब तक सचमुच वे शब्द मात्र ही रह जाते हैं . ठीक कहा आपने .
sameer भाई
भाई आपका vichaar बहुत ही उत्तम है ............... और आपके shubhaashit usme poori poori madad कर रहे हैं ........ आप तो बस kitaab chaapne की tayaari करो .........
Apki mahanta per sak nahi. apne jo likha hai wo satya hai. samaj me aisa ho raha hai.
आखिरी वाला जँच गया।
अब राम राम रटना छोड़कर, नाम नाम रटना शुरू करते हैं.
वैसे ये काम , नेता लोग तो हमेशा ही करते आये हैं.
बढ़िया पोस्ट, सूत्र उससे भी बढ़िया....
बधाई..
समीर जी
यह सिर्फ आपका स्टाईल हो सकता है महान होने को. महान लोग ही ऐसी राह लेते हैं. :)
गजब बातें कह जाते हो आप भी न चाचा. सबको कनफ्यूज कर दिया न आपने.
ज्ञानबर्धन ही हुआ यह सब जान कर. बाकी तो गुरु जी आपकी खबर लेंगे. आज शाम को उनको सुनाऊँगी कि आप ऐसा कहते हैं.
शानदार विचार.
आपका यह अरमां यूँ ही आसुओं में न बह जाए, हमारी यही कामना है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
हर महान व्यक्ति के सुभाषित मे उसके मरने के बाद क्षेपक जोड़ने का प्रचलन है । आप अपने क्षेपक खुद ही लिख कर रख दीजिये .। जैसे शराब पीने से मर जाये तो मुझे न कोसें या नौकरी छूट जाये तो मै ज़िम्मेदार नहीं या आलोचना से भी आपको अक्ल आ जाये तो मुझे बक्षें आदि आदि । बाकी आप 123 साल जियें....मरें आपके दुश्मन ।
वाह, क्या बात है। अपन भी आज ही से महान बनने की तैयारी शुरु कर देते हैं, तीस-चालीस वर्ष की मेहनत के बाद कुछ तो तोप चला ही लेंगे ऐसा विश्वास मन में जागा है! :D
समीर जी, नमस्कार,
महान बनने के ईरादे से आपकी कुछ पंक्तियों को खोज रहा हूँ ! यहाँ से कुछ चुरा कर शायद मैं भी महान बन सकूँ!
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