(जिन्होंने पिछले भाग न पढ़े हों उनके लिए: याद है मुझे सालों पहले, जब मैं बम्बई में रहा करता था, तब मैं विल्स नेवीकट सिगरेट पीता था. जब पैकेट खत्म होता तो उसे करीने से खोलकर उसके भीतर के सफेद हिस्से पर कुछ लिखना मुझे बहुत भाता था. उन्हें मैं विल्स कार्ड कह कर पुकारता......)
विल्स कार्ड का एक और बंडल खींचता हूँ दराज मे से.
सोचने लगता हूँ उन्हें पढ़कर. जाने कैसे कैसे टुकड़ों को जोड़ जोड़ कर बनी है अब तक की यह जिन्दगी. बिल्कुल पज़ल के टुकड़ों सी. जो जहाँ लगना है वहीं लगेगा वरना पज़ल अधूरा ही रहेगा.
कब सोचा था कि ये जो मैं विल्स कार्ड के पीछे दर्ज कर रहा हूँ, आज किस वक्त की याद दिलायेगा. ये कार्ड ही तो मेरी जिन्दगी के पज़ल के टुकड़े हैं. वक्त की मार ने सब तितर बितर कर दिया. और फिर हर रोज कुछ नये जुड़ते भी तो जा रहे हैं. बस, जब कभी खुद से मिलने का मौका मिलता है, लगता हूँ सहेजने, बड़े जतन से, इन टुकड़ों को. कोशिश करता हूँ और थक हार कर सब फिर से आपस में मिलाकर वापस वक्त के झोले में भर कर रख देता हूँ सहेज कर दराज में. सोचता हूँ फिर कभी सही, कभी तो हल कर ही लूँगा.
मुझे लगता है कि जैसे भी हो, चाहे मशक्कत कर या यूँ ही सहज भाव से, नियमित जिन्दगी की घटनाओं को शब्द रुप दे सहेज लेना चाहिये. शायद आज, जब हम उसे दर्ज कर रहे हों, वो यूँ ही बेतरतीब सी बिखरी बातें लगें मगर वक्त के सांचे में ढल, जिन्दगी की कड़ी धूप में तप, एक दिन वो कंचन हो उभरेंगी और तब मेरी ही तरह सब लिख रहे होंगे-विल्स कार्ड पर उतरी बातें....
और हल करेंगे अपनी जिन्दगी की पज़ल. बिना किसी क्लू के. बस, एक धुँधलकी यादों के सहारे.
कुछ भी दफन नहीं होता. साथ साथ चलता है. बस, आज की चमक में दमित. मगर चमक कब तक? जब उतरेगी तो यही यादें और यही बातें, एकाकी मन का सहारा बनेंगी. विश्वास जानो!!!
तो आज वैसे ही किसी दौर में दर्ज कुछ विल्स कार्ड. लगता है दिल टूटने का मौसम रहा होगा, जब ये दर्ज हुए होंगे.
सभी के जीवन में तो ऐसे मौके आते हैं. कोई दर्ज कर लेता है और कोई सर झटक कर किनारा कर लेता है.
मैने दर्ज किये हैं तो पढ़वाने में कैसा गुरेज..
क्या सोचूँ, क्या याद रखूँ!! |
*१*
काँच का गिलास गिरा
और
छन्न!! से टूट गया...
ये रिश्ते भी कितने नाजुक होते हैं!!
*२*
वो तेरी गर्म सांसों का अहसास
उन नाजुक लम्हों की याद....
आँसूंओं की बारिश थमती नहीं....
क्या बादलों ने कभी इश्क नहीं किया!!
*३*
मेरे सूने कमरे की
खिड़की से उतर आती है उसकी याद
हर रात
बैठ जाती है मेरे सिराहने
और
नींद आ जाती है मुझे
उन थपकियों के अहसास से...
काश!! तुम तुम नहीं, तुम्हारी याद होती!!
*४*
जिस दिन तुम गैर हुई....
मेरे कान उस दिन से
अब तक बहते हैं..
न जाने क्यूँ लोग-
शहनाई को सुरीला कहते हैं...
*५*
दिल की
तराजू में
तौल कर देखा है..
सबसे दुखद है
उसे चाहना
जिसने कभी तुम्हें चाहा था...
*६*
वक्त बेवक्त
खुद को खुद से
मिलवाता हूँ मैं...
डर जाता हूँ मैं..
*७*
इसे रोकूँ
उसे टोकूँ...
अक्सर पी कर
बहक जाता हूँ मैं...
आजकल बहुत
थक जाता हूँ मैं...
-सुना है, हालात बदलेंगे!!
*~*~*~*~*~**~*~*~*~*~*
--समीर लाल ’समीर’
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63 टिप्पणियां:
आज रात मैंने सपने में दूसरी बार किसी ब्लॉगर को देखा वह आप थे . क्या देखा यह तो अलग से लिखने की बात होगी , कभी मेल में लिखूँगा. और पहला ब्लॉगर कौन देखा यह भी उस ब्लॉगर को ही बताया जाएगा !
पर जागते ही आपकी पोस्ट देखना, सपना सच होने जैसा रहा !
उफ़ क्या करें ..की कभी सिगरेट नहीं पी ..पीते तो भी क्या ये लिख पाते ..अजी किसे लिखना है ..हम तो पढने के लिए पैदा हुए हैं..पिछले दिनों ..सुना पढ़ा की अंदाज बदले हुए थे ..क्यूँ भाई ..क्या सूर्यग्रहण का असर अब तक है एलियन पर...आज लगता है लौटे हैं जवानी पे....एक एक कार्ड ..कमाल है ...हाँ पजल हल करते हुए कित्ते दुबले लग रहे हैं ...का पजल भी तभी हल करने लग गए थे ....
धुंआ अभी भी उड़ रहा है है क्या...मतलब कार्ड तैयार हो रहे हैं ..न ..अच्छा हुआ जो इन्हें संभाल कर रखा आपने ..बहुत ही अद्भुत शब्द, पंक्तियाँ, भाव ...आनंद आ गया ..
लाजवाब हैं, ये विल्स कार्ड। दिल उतर आया है इन पर।
पहले की ही तरह उम्दा -जिन्दगी पजल नहीं एक खूबसूरत गजल हुयी न !
क्या बात है सर जी .... कमाल करते हैं ये विल्स कार्ड. बीच बीच में दराज से निकालते रहिये ........
भाई आप वास्तव में ही बहुत अच्छा लिखते हो.
नियमित ज़िंदगी की घटनाओं को क्या इतना आसान होता है सहज पाना.....बहुत खुशनसीब होते होंगे वो,जिन्हें एक नियमित ज़िंदगी की नियामत बख्शी होती है,ऊपर वाले ने....
वक्त बेवक्त....
खुद को खुद से...
मिलवाता हूँ मैं...
डर जाता हूँ मैं....
बहुत शिद्द्त भरे अल्फ़ाज़ लगे ये.....!!
bade hee majnoo type mood me hain aaj aap, kya Sadhna bhabhee aas pass nahee hain ?
"आजकल बहुत
थक जाता हूँ मैं...
-सुना है, हालात बदलेंगे!!"
बहुत बढ़िया समीर लाल जी।
गीत पुराने, नये तराने अच्छे लगते हैं।
मीत पुराने, नये-जमाने अच्छे लगते हैं।
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
विल्स कार्ड्स का ऐसा उपयोग... विल्स वाले कहीं ऐडवटीज्मेंट में ना उपयोग करने लगें !
सीधे दिल में उतरती हैं,
जिस दिन तुम गैर हुई....
मेरे कान उस दिन से
अब तक बहते हैं..
न जाने क्यूँ लोग-
शहनाई को सुरीला कहते हैं...
लाजवाब कार्ड हैं जी. सिगरेट पीना सफ़ल हुआ..हमने तो युं ही धुंवां निकाल के समय बेकार किया. काश आपने कुछ साल पहले ही गुरु ज्ञान दे दिया होता.
बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
विल्स कार्ड भाग ५ की सातों नज़्म तो अद्भुत हैं ही, ऊपर भूमिका में कही गयी बातें भी किसी नज़्म से कम नहीं...
और इस मिस्रे पे "काश!! तुम तुम नहीं, तुम्हारी याद होती..." सरकार, हम बिछ गये हैं।
जो बेहद पसंद आये..."बादलों ने इश्क..." और "सुरीली शहनाई" वाली...
आँसूंओं की बारिश थमती नहीं....
क्या बादलों ने कभी इश्क नहीं किया!!
वाह क्या बेहतरीन पंक्तियाँ हैं....मन को छु गयी......जिन्दगी का क्या कहें पजल है कभी ग़ज़ल.......और कर जाती है सदा आँखे सजल.......
regards
Fir ek baar stabdh hun..alfaaz nahee hain..kahne wale kah gaye..
आपके विल्स कार्ड है या कोई जादू की पुडिया एक एक शब्द भावनाओं से इतने बँधे है की खो जाने मे आता है,और एक जादू सा छा जाता है.
शब्दों से विचारों को खूब गढ़ा है.
बेहतरीन....भाव...
उतर आए?
एक बार गोरखपुर आइए न।
"जिस दिन तुम गैर हुई....
मेरे कान उस दिन से
अब तक बहते हैं..
न जाने क्यूँ लोग-
शहनाई को सुरीला कहते हैं..."
उपर की लाइनें पढ़ कर कह रहा हूँ। साथ साथ मगहर चलेंगे - कबीर चौरे।
Dear Sameer ji,
You are requested for one "one wills card episod/post with SCANNED copy of wills cards". Hope you will consider my request.
Please..........
बहुत बढिया रचनाएं है।समीर जी आप का यह पुराना खजा़ना बहुत से कीमती समान को संजोय है।पहली कड़ीयां जो पढ़ने से रह गई थी एक साथ पढ़ गया।बहुत बढिया लगी.....बधाई ।अगली पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी...
waah
waah
waah !
भाई जी सिद्ध हो गया कि आप पहले भी अच्छा लिख लेते थे, अब तो लिख ही रहे हैं और उम्मीद है कि आगे तजुर्बा और भी बेहतरीन लिखवाएगा...........
बधाई.
जय हो विल्स कार्ड की जिसने इन्सान को खाने के बजाय साहित्य जगत में एक अलख तो जगाई................
वाह! ये कार्ड नहीं पढ़े थे मैंने |
पुरानी बातों को याद करने का अपना मज़ा है, सुख है | अच्छा किया जो आपने अपने दराज़ को टटोला |
आदाब अर्ज है
दिल ढूंढता है वोही फुर्सत के चार दिन
मेरे सूने कमरे की
खिड़की से उतर आती है उसकी याद
हर रात
बैठ जाती है मेरे सिराहने
और
नींद आ जाती है मुझे
उन थपकियों के अहसास से...
बहुत ही बढ़िया. बिलकुल ताज़ी हवा जैसी. धुएँ का कहीं नाम-ओ-निशान तक नहीं. जैसे बस कल की बात हो.
vaah sameer भाई............ दिल के gahre jajbaaton को khol कर विल्स के bahaane कह दिया............ kamaal है ......... लाजवाब लिखा है, हर chanika में gahri बात, दिल का दर्द, halaat की sachaai का bayaan है .......... विल्स की bikri badh jaayegi mahaaraaj ............
आपने इतने पज़ल हल कर दिए कि ताऊजी को जबरन आपही को पुरस्कार देना पड़ रहा है। अपनी कविताओं में आपने बढिया पज़ल साल्व किए हैं तो क्या ताऊ यहां भी पुरस्कृत करेंगे????:)
काँच का गिलास गिरा
और
छन्न!! से टूट गया...
ये रिश्ते भी कितने नाजुक होते हैं!!
achhi post...
हे, बाबाजी, इस शिष्य को कुछ अंदाजा है कि शहनाई की आवाज कब कर्कश लगती है लेकिन आपको कर्कश लगी थी, यानि आपने एक एक्सट्रा बीयर भी पी थी, यानि आपने एक बार फिर दाढ़ी बढाई थी, फ्रेंच कट के अलावा, यानि आपको कुछ और दिन खाना और नहाना बुरा लगने लगा था, यानि जीने और सफलता के मायने बदले थे, यानि फिल्मी गानों में भी दर्द महसूस हुआ था, यानि संगीत से अधिक प्रभावी बोल लगने लगे थे, यानि आपने भी दुआ की थी कि भगवान पैसा छीन लेना पर किसी का दिल मत तोड़ना, यानि....
वाह ....
बधाई हो...
क्या भाभीजी को पता है ? :) :) :)
लाजवाब ये विल्स कार्ड
ताऊ की बात जमीं
कि
सिगरेट पीना सफल हो गया
सुरीली शहनाई? आह!
क्या बादलों ने कभी इश्क नहीं किया!!
यह अंदाज़ बहुत भाया.
वैसे उम्मीद करता हूँ अब तो विल्स पीनी छोड़ दी होगी भैया.
एक से बढ़ कर एक..
मजा आया..
काश!! तुम तुम नहीं, तुम्हारी याद होती!!
क्या बात है....!
जिस दिन तुम गैर हुई....
मेरे कान उस दिन से
अब तक बहते हैं..
न जाने क्यूँ लोग
शहनाई को सुरीला कहते हैं...
बहुत खूब..!
आदरणीय उड़न तश्तरी जी सब के सब आपकी प्रशंसा ही कर रहे है ऐसे में उड़न तश्तरी कही बिना ब्रेक के ना उड़ने लगे इसलिए ऐसी टिप्पणी कबूल फरमाइए
क्या करे उन दिनों कागज नहीं मिलते थे
हालात को तो बहुत सुधारा हमने लेकिन
कमबख्त जालिम जज़्बात नहीं मिलते थे
जिंदगी को धुँए में उड़ा कर पी जाना चाहा
मगर उन दिनों सिगरेट पीने के भी टोंटे होते थे
विल्स कार्ड पर लिखा एक एक लफ्ज जिंदगी का एक पहलु बयां करता है...मुझे सारे कार्ड्स बहुत अच्छे लगे...पर दिल में उतर गए वो शहनाई के चंद लफ्ज़ और जिसने कभी तुम्हें चाह था...बेहद खूबसूरत समीर जी...बेहद...आज की पोस्ट मुझे अब तक की आपकी सबसे अच्छी पोस्ट लगी.
क्या बादलों ने कभी इश्क नहीं किया!!
सबसे दुखद है
उसे चाहना
जिसने कभी तुम्हें चाहा था...
अहा! वाह! सच मानिये आपका दार्शनिक रूप बडा प्यारा है.
वो तेरी गर्म सांसों का अहसास
उन नाजुक लम्हों की याद....
आँसूंओं की बारिश थमती नहीं....
क्या बादलों ने कभी इश्क नहीं किया!!
बहुत बेहतरीन भैया. विल्स कार्ड और निकालें. कितनी संवेदना धरोहर के रूप में धरी हैं.
इन कार्ड से अब भी विल्स की गंध आती है, या वह पुराने कागज की गंध में तब्दील हो गई है? बस यूं ही सवाल आता है मन में।
जिन्दगी कैसी पहेली है हाय ...जिन्दगी की पहेली को जितना सुलझाने की कोशिश करते हैं उतना ही उलझा देती है ...कहाँ से शुरू करें ....
कांच का गिलास गिरा और छान से टूट गया ..ये रिश्ते कितने नाजुक होते हैं ...बहुत सही कहा आपने ...
आपकी विल्स कार्ड श्रंखला बहुत ही रोचक लगी . आभार.
Sir ji namaskaar,
aapki wills-card-poem se hamesha se hi prabhivit raha hoon...
is wali ne vishesh taur par prabhavit kiya:
वो तेरी गर्म सांसों का अहसास
उन नाजुक लम्हों की याद....
आँसूंओं की बारिश थमती नहीं....
क्या बादलों ने कभी इश्क नहीं किया!!
बहुत अदभुत हैं आपके ये विल्स कार्ड.
इनमें जीवन के कई रंग दिखाई देते हैं.
हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
विल्स के ये कार्ड भी पसंद आए।
वक्त बेवक्त
खुद को खुद से
मिलवाता हूँ मैं...
डर जाता हूँ मैं..
लाजवाब........
वो तेरी गर्म सांसों का अहसास
उन नाजुक लम्हों की याद....
आँसूंओं की बारिश थमती नहीं....
क्या बादलों ने कभी इश्क नहीं किया!!
तौबा .....यह कमबख्त इश्क ......!!
जिस दिन तुम गैर हुई....
मेरे कान उस दिन से
अब तक बहते हैं..
न जाने क्यूँ लोग-
शहनाई को सुरीला कहते हैं...
सुभानाल्लाह .....!!
वक्त बेवक्त
खुद को खुद से
मिलवाता हूँ मैं...
डर जाता हूँ मैं..
लाजवाब कर दिया समीर जी ......!!
बहुत सुन्दर रचनाये है । प्रसंशा के शब्द ही नही मिल पाये ।
wah , sameer ji aapke wills card men to khazane chhupe hain. nikalte rahiye.
जिस दिन तुम गैर हुई....
मेरे कान उस दिन से
अब तक बहते हैं..
न जाने क्यूँ लोग-
शहनाई को सुरीला कहते हैं...
मज़ा आ गया जी.
जिस दिन तुम गैर हुई....
मेरे कान उस दिन से
अब तक बहते हैं..
न जाने क्यूँ लोग-
शहनाई को सुरीला कहते हैं...
समीर सर आप बहुत पहले ही हमें निशब्द कर चुके हैं....
मीत
जवाब नहीं आपके विल्स कार्ड का ...दर्द को सहज उकेरा है.. आपने.. ये जिसका स्वप्न है ,किसका दुःख, कैसी हंसी कौनसा सुख कुछ याद नहीं और याद सब कुछ... अच्छी पोस्ट है ..
वक्त बेवक्त.
खुद को खुद से
मिलवाता हूँ मैं
डर जाता हूँ मैं
shukriyaa.
पहली बार आप के ब्लॉग पर आया हूँ. दुखी हूँ इतनी देर क्यों लगी. आप तो जादू करते हैं, लिखते नहीं. सर्वत जमाल ने आकी बहुत प्रशंसा की. उन्हीं के दम से आप का दरबार देख रहा हूँ. ख्वाहिश है, आप फुर्सत में हों और मिजाज गवारा करे तो मेरे ब्लॉग पर भी अपने कीमती हस्ताक्षर दे जाएँ.
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! इस लाजवाब और उम्दा पोस्ट के लिए बधाई! स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
not as expressive as previous ones
wait for new
Rachna
बहुत बेहतरीन. गजब. आनन्ददायक. रुलाने वाले भी.
जिस दिन तुम गैर हुई....
मेरे कान उस दिन से
अब तक बहते हैं..
न जाने क्यूँ लोग-
शहनाई को सुरीला कहते हैं...
लाजवाब...विल्स पी कर डिब्बी फेंकने का अब बहुत अफ़सोस हो रहा है ये तरकीब हमारे दिमाग में आ जाती तो हम भी आपको उस युग में लिखी हमारी शायरी सुनाते...
नीरज
जिस दिन तुम गैर हुई....
मेरे कान उस दिन से
अब तक बहते हैं..
न जाने क्यूँ लोग-
शहनाई को सुरीला कहते हैं...
.........
Uffff !!! Kya kahun.......
Simply great !!!!
बहुत बढ़िया !
विल्स का कमाल बेमिसाल |
'प्रदीप जी ने ई मेरे वतन के लोगों का मुखडा भी सिगरेट के पैकेट में लिखा था"
तब वो समंदर के किनारे घूमने गए थे |
सिगरेट के कागज़ और कविता का गहरा नाता लगता है |
वक्त बेवक्त
खुद को खुद से
मिलवाता हूँ मैं...
डर जाता हूँ मैं..
समीर जी ,
ये तो नहीं जनता की आप अब भी सिगरेट पीते हैं या नहीं परन्तु मेरी तो यही ख्वाहिश है की ये विल्स कार्ड कभी ख़त्म न हों |
बस कुछ कुछ दिन मैं एक और बण्डल निकाल के सुना दिया करे आप ...:)
काँच का गिलास गिरा
और
छन्न!! से टूट गया...
ये रिश्ते भी कितने नाजुक होते हैं !!
बहुत ही सटीक मेरे दिल की बात अपने कह दी "रिश्ते वास्तव में नाजुक होते है" . जो पल भर में बिखर और टूट जाते है इसीलिए किसी ने यह भी कहा है की रिश्तो की अहमियत को समझना चाहिए. बहुत ही भावपूर्ण आलेख और रचना . आभार
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सूचना :
कल सवेरे नौ बजे से पहली C.M. Quiz शुरू हो रही है.
आपसे आग्रह है कि उसमें भी शामिल होने की कृपा करें.
हमें ख़ुशी होगी.
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क्रियेटिव मंच
गजब का भाव संयोजन और उससे भी अच्
छी उसमें तैरता सच, आपका भी हमारा भी....
बहुत सुन्दर लघु कवितायें हैं। बधाई।
मेरे सूने कमरे की
खिड़की से उतर आती है उसकी याद
हर रात
बैठ जाती है मेरे सिराहने
और
नींद आ जाती है मुझे
उन थपकियों के अहसास से...
काश!! तुम तुम नहीं, तुम्हारी याद होती!!
lajabab hai sir ji
waqt be waqt khud ko khud se milwata hoon main .
saham jata hoon main.
shabd nahi hai sir ji. sachhayi hai . ise shabd kaise diye aaapne . hatzz offfff....
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