रविवार, मार्च 15, 2009

बिल्लु की जगह बिल्ली भी चलता..

हमारे मोहल्ले का गरीब नाई. पुरानी स्टाईल वाला. बस, एक टूटी कुरसी, पुराना आईना और टूटे फूटे औजार. क्या चलेगी उसकी दुकान ऐसे दिखावे के बाजार में जहाँ प्रोडक्ट से ज्यादा शो पानी बिकता है. तो नहीं चलती थी.

एकाएक हमारे गाँव में बॉलीवुड सुपर स्टार शूटिंग करने आ जाता है और लोगों में पता नहीं कहाँ से हवा फैल जाती है कि ये नाई उसका बचपन का दोस्त है.

लोग समझते नहीं हैं, हमारे गाँव में तो अमरीका से बुश भी आ जाये, तो उसके साथ के बचपन के पढ़े पाँच सात तो पान की दुकान पर गपियाते मिल जायेंगे. मूँह चलाने में कोई पैसे थोड़ी ही न लगते हैं.

बस, फिर क्या!! आज की दुनिया में लोग तो वक्त के दोस्त होते हैं आपके थोड़े न!! आपका वक्त अच्छा, तो आपके दोस्त वरना नहीं पहचानते. इसी हल्ले में उसकी दुकान चल निकलती है. नाई की पूछ परख बढ़ जाती है. सब उसे जरिया बना कर सुपर स्टार से मिलना चाहते हैं.

अरे, जो खुद ही नहीं सुप स्टार से मिल पा रहा वो क्या किसी को मिलायेगा. इत्ती सी बात बहुत समय निकल जाने के बाद लोगों को समझ आती है और फिर जैसा मैने कहा, लोग वक्त के दोस्त होते हैं. सब उसे दुत्कार देते हैं और वो फिर से पुराना वाला नऊआ.

गांव के एक स्कूल में शूटिंग के आखिरी दिन सुपर स्टार स्कूल के बच्चों के लिए रखे गये कार्यक्रम में किसी तरह समय निकाल कर पाँच मिनट के लिए आता है और फिर ऐसा रह जाता है जैसे जाना ही न हो. अपनी जीवनी सुनाता है और अपने बचपन के दोस्त नऊए का जिक्र कर बैठता है.

फिर क्या, सब उसे लेकर नऊए के यहाँ आ जाते हैं. सब घर के बाहर और सुपर स्टार अंदर. गला मिलन और एक मिनट में बचपन की याद, बात और फिर सुपर स्टार का उसे ऑफर कि तू पुराने गाँव में जाकर बस जा, तो कभी हम पुराने दिन फिर से जी लेंगे और सुपर स्टार रवाना वापस बम्बई.

अब बताओ, पुराने गाँव में धरा क्या है? कुछ होता तो क्या नाई यहाँ आता? न पैसा न कौड़ी, कुछ भी प्रामिस नहीं किया और कह गये, जाकर बस जाओ-कहाँ बस जाये? बस स्टैंड पर कि कुछ मकान दुकान खरीद के दोगे? कहानी खत्म!!

ये हम सोच सोच कर कहानी नहीं बनायें हैं. ये है बिल्लू बार्बर फिल्म की कहानी. नाम फिल्म का यह भी हो सकता था ’मैं किंग खान’ या ’शाहरुख’ या ’क्या देखने आये हो, कुछ काम नहीं है क्या’ या ’अगली फिल्म में मुझे ले ले, ठाकुर!!’ .......कुछ भी. सब इसी तरह फिट होते. फिल्म का नाम ’बिल्लू बार्बर’ मगर फोकस पूरे समय बस शाहरुख खान के प्रमोशन पर.

अगर शाहरुख कोई नया आया कलाकार होता और फिल्म में जरा सी काट छांट करके बिल्लू सिल्लू अलग कर दें, तो भी २ घंटे का शाहरुख प्रोमो बच रह जायेगा जिस सीडी को किसी भी प्रोड्यूसर के पास भेज अगली फिल्म में काम मिलने का इन्तजार किया जा सकता है.

मगर हम तो फिल्म प्रोड्यूस करते नहीं और आप भी कहाँ फिल्में बनाते हैं, अतः आपके और हमारे काम की नहीं.

बिल्लु के बदले: बिल्ली

शाहरुख का होम प्रोड्क्शन है. वो क्लेम कर सकते हैं कि यह फिल्म मेरे प्रमोशन के लिए नहीं बल्कि मित्रता की मिसाल, बाल सखाओं का प्यार, त्याग और बलिदान जैसी बातें बताने के लिए बनाई है तो आप पायेंगे कि पूरे तीन घंटे की फिल्म में ये मित्र आमने सामने मात्र दो मिनट के लिए हैं एक सिंगल प्रेम में. अगर फिल्म की जस्ट समाप्ति पूर्व वो फ्रेम न होता और इन्हें आपस में बताया न जाता तो कहो, ये दोनों जान भी न पाते कि फिल्म में किसके साथ काम किये हैं.

हैप्पी एंडिंग हुई-ऐसा पत्नी ने मुस्करा कर थियेटर के बाहर निकलते हुए बताया. जबरदस्ती दिल्ली की ट्रिप में दिल्ली ६ जैसी फिल्म दिखाने के बावजूद भी (नेक इन्सान एक गल्ति करके संभल जाता है मगर वो!!) दूसरी फिल्म दिखाने ले आई थी तो भला उसके पास चारा भी क्या था सिवाय मुस्कराने के.

हम भारतियों की यही विशेषता है कि जब कुछ समझ न आये, कोई गल्ति हो जाये, बेवकूफ बन जाओ या कोई रास्ता समझ न आये तो बिना लॉजिक दाँत चियार के मुस्कराने लगो. मामला अपने आप सलट जाता है.

खैर, पूरी फिल्म में एक करेक्टर थे जो याद रह गये- कविराज माननीय राजपाल यादव जी. ये छुटकू महाराज हमें यूँ भी पसंद हैं और इसमें तो कवि बने हैं.

मोहल्ले में बताया कि फिल्म तो ऐं वें टाईप थी, बस कवि चूँकि हमारे हम शौक निकले इसलिये ठीक लगे तो बात लोगों को ठनक गई.

सब पीछे लग लिए कि मोहल्ले में 'मोहल्ला स्थापना रजत जयंति समारोह' के कार्यक्रम में फागुन गीत भी गाया जायेगा, आप जरा फड़कता हुआ गीत लिख दिजिये- जरा लोकगीत की तर्ज पर रहे, यह ध्यान रखियेगा. मोहल्ले में तो ईमेज से ही इन्सान की पहचान होती है फड़कता लिखें तो फड़कती ईमेज बने, सो उसे मेन्टन करने के चक्कर में हम लिखे और दे दिये. अब इसकी धुन बनेगी और कोई महिला मंडल की सदस्या ’मोहल्ला स्थापना रजत जयंति समारोह” में इसे गायेंगी मगर तब तक आप पढ़ लो. राज पाल यादव के गीत ’बिल्लू भयंकर’ से बेहतर ही सा लग रहा है:


चढ़ गया रे फागुनी बुखार,
गीला रंग मोहे लगाई दो!!

रंग लगा दो,
गुलाल लगा दो,
गालों पे मेरे
लाल लगा दो..
भर भर पिचकारी से मार,
गीला रंग मोहे लगाई दो!!

चढ़ गया रे फागुनी बुखार,
गीला रंग मोहे लगाई दो!!

सासु लगावें
ससुर जी लगावें,
नन्दों के संग में
देवर जी लगावें..
साजन का करुँ इन्तजार,
गीला रंग मोहे लगाई दो!!

चढ़ गया रे फागुनी बुखार,
गीला रंग मोहे लगाई दो!!

गुझिया भी खाई
सलोनी भी खाई
चटनी लगा कर
कचौड़ी भी खाई..
भांग का छाया है खुमार..
गीला रंग मोहे लगाई दो!!

चढ़ गया रे फागुनी बुखार,
गीला रंग मोहे लगाई दो!!

हिन्दु लगावें
मुस्लमां लगावें,
मजहब सभी
इक रंग लगावें..
मुझको है इंसां से प्यार..
गीला रंग मोहे लगाई दो!!

चढ़ गया रे फागुनी बुखार,
गीला रंग मोहे लगाई दो!!

-समीर लाल ’समीर’ Indli - Hindi News, Blogs, Links

77 टिप्‍पणियां:

Smart Indian ने कहा…

चलो बार्बर नहीं हैं बर्बर भी नहीं हैं - फिर तो क्या बिल्लू और क्या बिल्ली. आशा है कि 'मोहल्ला स्थापना रजत जयंति समारोह' का महिला संगीत आपके गीत से ज़रूर रंगीन हो गया होगा.

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

इस फ़िल्म की पहली समीक्षा मिली है पढ़ने को। हमेशा की तरह रोचक शैली में गम्भीर कथ्य।

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

sahi kaha aapne, narayan narayan

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

बहुत सुंदर! अधिकतर फिल्मों के बारे में ऐसे ही पता लगता रहता है। तब जा कर साल में कोई दस बारह फिल्में मुश्किल से देख पाते हैं। आप से बिल्लू बारबर के बारे में जाना। दिल्ली-6 का कुछ भाग कल देखा था। अच्छी लग रही थी। लगता है पूरा देखना पड़ेगा। होली गीत अच्छा लगा।

ghughutibasuti ने कहा…

यदि कोई कलाकारा हमारे महिला मंडल में भी निकली तो गाने को कहूँगी। बस इस सुन्दर गाने के लायक सुर ताल भी होना चाहिए।
घुघूती बासूती

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बिल्लु बार्बर का पोस्टमार्टम पसंद आया. और छुटकु के चलते कई फ़िल्मे हमें भी देखनी पडती हैं आज भी.

ये छुटकू महाराज कुणबा पाल है यानि एक बडे परिवार मे जब ज्यादा लोग निठ्ठल्ले हो तब भी एक आदमी उनको पालता है. वो कुणबा पाल कहलाता है. वैसे ही हैं ये कविराज माननीय राजपाल यादव जी.

सासु लगावें
ससुर जी लगावें,
नन्दों के संग में
देवर जी लगावें..
साजन का करुँ इन्तजार,
गीला रंग मोहे लगाई दो!!

आजकल पानी की दिक्कत है तनिक सूखा रंग लगाने का प्रोग्राम नही हो सकता क्या?:)

रामराम.

"अर्श" ने कहा…

bahot khub dhero badhaaee aapko sahib..


arsh

P.N. Subramanian ने कहा…

लोक गीत के तर्ज पर आपकी रचना तो जोरदार है. अब संगीतबद्ध करनेवाले पर है. बिल्लू बर्बर का मुंडन कर अच्छा किया. आभार.

seema gupta ने कहा…

" ये फिल्म हमने भी देखि है , लकिन फिल्म से ज्यादा लगता है उसकी ये समीक्षा पढ़ने में ज्यादा मजा आया....."

Regards

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

आपका गीत धारदार बन पडा है समीर भाई ..बहुत अच्छे ! और शाहरुख अपनी इमेज को चमकाने मेँ व्यस्त हैँ जी ..शो बीज़नेस है ना !!
- लावण्या

अनिल कान्त ने कहा…

aapka likha hua geet hume pasand aaya

naresh singh ने कहा…

फ़िल्म की समीक्षा रोचक है | सुन्दर लेखनी को सलाम

Unknown ने कहा…

bahut badhiya sir ji mast laga aapka geet.

कुश ने कहा…

बिल्लू फिल्म के टाइटल में बारबर लिखे जाने पर हल्ला हो गया था.. फिर आपने तो नाई ही लिख दिया.. सोचिए अब क्या होगा.. वैसे भी जाति के नाम पर हो हल्ला चल ही रहा है..

रंजू भाटिया ने कहा…

यह फिल्म कल ही देखी पर इसको अंत तक झेल नहीं पाए ..आज आपके द्वारा की समीक्षा बहुत बहुत बढ़िया लगी इस पर ..

समयचक्र ने कहा…

ओह कविता भी जोरदार और बिल्लू बर्बर की पहली समीक्षा भी बिल्ली भी मजेदार . बबाल जी के मोहल्ले का हरी राम नाई भी याद आ गया . बहुत बढ़िया पोस्ट आभार.

दर्पण साह ने कहा…

Bhai apne to mere dedh sau rupiye bacha liye, Ab main koi film vilm nahi jaane wala....

...haan bata dijiega
'मोहल्ला स्थापना रजत जयंति समारोह' main koi entry vintry deni ho, to wahan in paison ko karch kar doon, aakhir sunna chahta hoon ki apka geet 'compose' karne ke baad kaisa lagta hai?

संजय बेंगाणी ने कहा…

एक ही निश्कर्ष निकलता है. जो फिल्म लाल देखेंगे वह खराब होगी, अतः इन पर फिल्म देखने का प्रतिबन्ध लगवाया जाय :)

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

भई हम तो मंत्रमुग्ध हुए पढते चले गए कि आप अपनी कोई कथा बांच रहे हैं,ये तो आखिरी में पता चला कि आप तो फिल्म की कहानी सुना डाले.वैसे भी हमने आपको किसी पत्र/पत्रिका के लिए फिल्म समीक्षा करने वाली राय कोई गलत नहीं दी थी,अब तो लगता है कि कदम उसी दिशा में बढ रहे हैं.

समयचक्र ने कहा…

भूल सुधार
टीप में लिखा हरिराम नाई सही नहीं है उसकी जगह रघुनाथ नाई पढ़ा जाये

Shiv ने कहा…

बहुत शानदार पोस्ट.

ये कविराज (छोटकू महाराज) जी का एक ब्लॉग खोलवा दिया जाय.

विष्णु बैरागी ने कहा…

आपकी पोस्‍ट पढने से पहले दिल्‍ली-6 और बिल्‍लू देख ली। दिल्‍ली-6 पहले, बिल्‍लू बाद में। दिल्‍ली-6कम समझ में आई, बिल्‍लू उससे तनिक अधिक। फिल्‍‍म देखकर मन में जो कुछ आया था, लगभग वही का वही आपकी इस पोस्‍ट में पाया। हां, नायक इरफान (अब कोई चाहे जो कहे, नायक तो इरफान ही है) जब-जब पर्दे पर आया, सचमुच में छाया रहा। शाहरुख का आतंक उस पर रंग नहीं जमा सका।

आपका गीत वास्‍तव में लोकगीत ही है। आज के बीतों में देवर, जेठ, ननद आदि नहीं मिलते।

Puja Upadhyay ने कहा…

आपने चेता दिया है अब तो हरगिज नहीं जायेंगे बिल्लू देखने, इंतज़ार करेंगे जब बिल्ली रिलीज़ होगी तो देख लेंगे. उम्मीद है उसमे आपने जिस बिल्ली का फोटो दिया है वही स्टार होगी, शाहरुख़ नहीं :)
लगता है अभी तक होली का खुमार नहीं उतरा , गीत पूरी तरह होली के रंगों में भीगा हुआ है, और सुन्दर तो है ही.

pallavi trivedi ने कहा…

हम तो अभी तक देख ही नहीं पाए हैं ये बिल्लू भयंकर....देख लेते तो अपनी बात भी रख देते!फागुन गीत बढ़िया लगा!

pallavi trivedi ने कहा…

हम तो अभी तक देख ही नहीं पाए हैं ये बिल्लू भयंकर....देख लेते तो अपनी बात भी रख देते!फागुन गीत बढ़िया लगा!

Ashish Khandelwal ने कहा…

bahut rochak sameeksha kee hai aapne billu barbar kee..

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

इस फिल्म को भी कोई ऑस्कर-फास्कर मिलने का चक्कर है क्या? यूं पूछ रहा हूं कि दस बीस ब्लॉग पोस्टें और ठेलने वाले होंगे लोग तब - बिल्लू बार्बर के पक्ष विपक्ष में! :)

बेनामी ने कहा…

कहां-कहां टाइम बरबाद करते रहते हैं भाई! ज्यादा टाइम हो चुनावै मां खड़े हुई जाव!

Vineeta Yashsavi ने कहा…

Rochak smeeksha ki hai apne film ki...

गौतम राजऋषि ने कहा…

धाँसु समीक्षा है सरकार.....मजा आ गया पढ़कर...और फाग तो बस ---ये होली से पहले क्यों नहीं पढ़वाया?

shelley ने कहा…

samiksha achchhi hai. aapki kavita v achchhi lagi.

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

वाह भई! लोक गीत का पुट लिये ये कविता....! क्या कहने...!

L.Goswami ने कहा…

भयंकर !! पोस्ट भी फिल्म भी और समिक्षा भी ...हमरी तो आँखे खुली की खुली रह गई जब चचा ने बताया की चाची दिल्ली ६ में चटाने के बाद भी दुबारा चटा के भी मुस्कुराने की हिम्मत कर गई. ऐसे जस्बे को हमारा सलाम, हम तो अपने बाल नोचने लगे थे फिलम देखकर.

mark rai ने कहा…

हिन्दु लगावें
मुस्लमां लगावें,
मजहब सभी
इक रंग लगावें..
मुझको है इंसां से प्यार..
गीला रंग मोहे लगाई दो!!

....समीक्षा पढ़ने में मजा आया..
समीक्षा बहुत बहुत बढ़िया लगी

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

गज़ब की पोस्ट लिखी है... बहुत-२ बधाई...

नीरज गोस्वामी ने कहा…

फिल्म तो हम भी देखे फेम एड लैब में जिसमें फिल्म देखने का मजा फिल्म से भी ज्यादा आता है...पिक्चर चलती रही हम हाल के मजे लेते रहे...खाते पीते कब फिल्म ख़त्म हुई पता ही नहीं चला...शाहरुख़ के अलावा फिल्म बहुत अच्छी है.....खासतौर पर इसकी फोटोग्राफी और इरफान खान का अभिनय जिसके बारे में आपने कुछ नहीं लिखा...हम बताते चलें की इरफान हमारे साथ नाटकों में काम किया करता था लेकिन अब शायद पहचानने से ही मना दे...हम दोनों जयपुर के ही हैं ना...
नीरज

बेनामी ने कहा…

नमस्कार समीर जी,
लगता हैं अब फिल्म स्टार्स और फिल्मों का कचूमर निकलेगा क्योंकि इतने दिन आपकी नजरों से शायद ओझल हो रखे थे,
हाँ एक बात कहूँगा अगर पहेली फिल्म देख कर इस प्रकार की टिप्पणी करी होती तो शायद और ज्यादा मजा आता, उसके मुकाबले तो बिल्लू काफी अच्छी बन पड़ी हैं!
साधुवाद...
दिलीप लुमार गौड़, गांधीधाम

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

बिल्लू बार्बर उर्फ़ बिल्ली बार्बर

Vinay ने कहा…

हाँ जी धाँसू ही है, बस दुआ करिए कि मेरी बिल्ली फिर मिल जाये, कहीं खो गयी है

---
गुलाबी कोंपलें

रंजना ने कहा…

गीत तो सचमुच एकदम धाँसू रंगीन और फड़कदार है.....सभा में सुपरहिट होगी...पक्का है.

बाकि फिलिम अभी देखी नहीं,पर यह तय है कि देखने की ललक शाहरूख के वजह से नहीं,बाकियों के वजह से होगी....राजपाल और इरफान सचमुच कमाल के एक्टर हैं.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

समीर भैया
अब तो आप फ़िल्मी समीक्षक बन गए, आपका ये नया अंदाज खूबसूरत है, मजा आ गया पढ़ कर. और आपकी होली की कविता क्या बात है.

गुझिया भी खाई
सलोनी भी खाई
चटनी लगा कर
कचौड़ी भी खाई..
भांग का छाया है खुमार..
गीला रंग मोहे लगाई दो

आलोक सिंह ने कहा…

प्रणाम
बिल्ली बार्बर से ज्यादा अच्छी समीझा है .
एक पंक्ति मुझे बड़ी पसंद आई "बिना लॉजिक दाँत चियार के मुस्कराने लगो. मामला अपने आप सलट जाता है."
अब से इस पर अमल करना शुरू कर देता हूँ .

मीत ने कहा…

सुंदर लेख...
बहुत अच लगा...
मीत

Mohinder56 ने कहा…

समीर जी,
बिल्लू हो या बिल्ला मगर उसके उस्तरे के आगे तो राजा महाराजा भी सिर झुकाते हैं और हजामत बनाते वक्त वो चाहे जो कुछ भी मांग ले.. मना नहीं करते.. क्योंकि गर्दन को इधर उधर करने का सवाल ही नहीं उस्तरे की धार के आगे :)

सटीक व्यंग्य के लिये बधाई

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

नमस्कार समीर जी,
आजकल तो आप फिल्मों की समीक्षायें देने में लगे हैं। लगता है कि अब फिल्म समीक्षकों को रोजी-रोटी के लाले पड़ जायेंगे?????
बढ़िया है........ बातों ही बातों में जानकारी देना कोई आपसे सीखे। हम तो आपकी नकल करने में लगे हैं पर हर बार मात खा जाते हैं,
एक निवेदन है कि एक नया ब्लाग बना कर ब्लाग लेखन की क्लास लगाना शुरू कर दीजिए। हम जैसों को फायदा होगा।
विचार करिएगा।

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

wah samir ji, maza aagaya poori story/article aur oopar se galguni lok geet

हिन्दु लगावें
मुस्लमां लगावें,
मजहब सभी
इक रंग लगावें..
मुझको है इंसां से प्यार..
गीला रंग मोहे लगाई दो!!


wah, bahut umda. badhai

बेनामी ने कहा…

ये फ़िल्मो की जो ब्लोग पर आपने चर्चा शुरू की है आने वाले दिनो मे अच्छा धंधा बनने वाली है . जमाये रहिये हम किसी को ना बताये इसके लिये हमे हमारा हिस्सा भिजवाये रहे वर्ना आप जानते है पंगा हो जायेगा :)

डॉ .अनुराग ने कहा…

पिक्चर देखी नहीं आपके जरिये उसकी झलक देखी.....गुलाल देखियेगा थोडा मूड बदलेगा..ओर भारतीयों की एक तस्वीर का अंदाजा भी लगेगा

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मुझे तो लगता है कुछ दिनों में अर्जुन ही श्री कृष्ण को उपदेश देना शुरु कर देगा।

ओम आर्य ने कहा…

क्या है की बौलीवूड में फिल्में नहीं स्टार चलता है, सब बाजार का किया धरा है !
सिरिअसली.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

समीक्षा पढ़ने के बाद भी तय नहीं कर पा रहा हूँ कि यह फिल्म तीन घण्टे गुजारने लायक है भी कि नहीं। तीन घण्टों में तो ब्लॉगरी मे काफी पढ़ने देखने को मिल जाता है।

क्लू देने का शुक्रिया।

Malaya ने कहा…

सुना है कि नामी बनिया की राख भी बिक जाती है। शाहरुख खान आज वैसे ही बिकाऊ हैं। ये कुछ भी बनाकर उसकी मार्केटिंग कर सकते हैं।

वैसे आप भी कम बिकाऊ नहीं हैं। बेशक बड़ी मेहनत से यहाँ पहुँचे होंगे। बधाई।

mamta ने कहा…

फ़िल्म तो नही देखि पर आपकी समीक्षा बहुत पसंद आई ।

कहने की जरुरत नही है कि गीत तो जोरदार है ही .

रश्मि प्रभा... ने कहा…

maine bhi yah film dekhi,aapki samikshaa sahi hai........

राज भाटिय़ा ने कहा…

नयी फ़िल्मे देखे कई साल हो गये, लेकिन आप दुवारा समीक्षा अच्छी लगी, ओर यह गीत्भी धंस्सु लगा.
धन्यवाद

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

wah bhai saab
khoob mila ke diya hai

Kavita Vachaknavee ने कहा…

बढ़िया है, कि आप ब्लॊगर से कवि, और अब फ़िल्म समीक्षा के क्षेत्र में अपने हाथ आजमाने उतर रहे हैं। फाग गीत झक्कास है।

हिन्दीवाणी ने कहा…

बिल्लू बार्बर की इतनी शानदार समीक्षा के लिए बधाई। इतनी अच्छी प्रस्तुति की इंसान पढ़ने को बाध्य हो जाए। मैं अपने अखबार के फिल्म समीक्षक को आपकी यह पोस्ट जरूर पढ़ाऊंगा कि वह भी चाहें तो कुछ सीख लें। आपकी लेखनी में कुछ देसी टच का स्वाद ही अलग है। कुछ ज्यादा तो नहीं हो गया? बहरहाल, बधाई।

प्रदीप कांत ने कहा…

लोग समझते नहीं हैं, हमारे गाँव में तो अमरीका से बुश भी आ जाये, तो उसके साथ के बचपन के पढ़े पाँच सात तो पान की दुकान पर गपियाते मिल जायेंगे. मूँह चलाने में कोई पैसे थोड़ी ही न लगते हैं.

सत्य वचन....

फ़िलम की मजेदार समीक्षा

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

बिल्लु बार्बर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पसंद आयी.
पर......................
सनद रहे कि......................
बिल्लू फिल्म के टाइटल में बारबर लिखे जाने पर हल्ला हो गया था.. फिर आपने तो नाई ही लिख दिया.. सोचिए अब क्या होगा.. वैसे भी जाति के नाम पर हो हल्ला मच ही जाता है.......
पर कुछ भी हो कहना ही पड़ेगा कि .................
कविता भी जोरदार, बिल्लू बार्बर की अद्भुत समीक्षा भी प्रशंशीय और बिल्ली भी कम इज्जतदार नहीं जो इस मशहूर ब्लॉग पर इत्ती बड़ी तस्वीर छपवा ली.....................

चन्द्र मोहन गुप्त

Arvind Mishra ने कहा…

अच्छा है खूब फिलम विलम देखी जा रही है !

संजय तिवारी ने कहा…

समीक्षा बहुत अच्छी की है. मुझे भी मूवी देखकर यही लगा.

फागुन गीत तो मैं भी सुनने आने वाला हूँ.

admin ने कहा…

क्या बात है, गीला रंग बहुत गहरा चढा है।

Alpana Verma ने कहा…

फिल्म की बिल्ली बना दी आप ने!'फोकस पूरे समय बस शाहरुख खान के प्रमोशन पर.शाहरुख का होम प्रोड्क्शन है ' अतः आपके और हमारे काम की नहीं.

[ ये मित्र आमने सामने मात्र दो मिनट के लिए हैं एक सिंगल प्रेम में------ शायद गलती से आप ने फ्रेम की जगह प्रेम लिखा है]
और बिल्ली की तस्वीर भी जबरदस्त लगाई है!:D
फागुन का गीत मजेदार है..यह नहीं बताया कि फागुनी उत्सव में महिला मंडल ने गाया इसे या नहीं?
या फागुनी उत्सव होना अभी बाकि है?

अभिषेक मिश्र ने कहा…

Geet bhi khub hai.

Prem Farukhabadi ने कहा…

Dear Sameer bhai ji,
हम भारतियों की यही विशेषता है कि जब कुछ समझ न आये, कोई गल्ति हो जाये, बेवकूफ बन जाओ या कोई रास्ता समझ न आये तो बिना लॉजिक दाँत चियार के मुस्कराने लगो. मामला अपने आप सलट जाता है.
bahut sach kaha aapne. man ko chhoo gayi ye baat.bahut bahut badhaai ho.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

मलय- समीर उडा़ती जाती,

पीला-लाल गुलाल।

पप्पु-पप्पी,बिल्लू-बिल्ली,

होली के रंगों मे लाल।

साली-जीजा, देवर-भाभी,

करते हँसी-ठिठोली हैं।

बुश भैया! भी भाँग छानते,

बुरा न मानो होली है।

Manish ने कहा…

kya gana likha hai.... apne? ham to apni dhun par gunguna bhi liye.... dhun vahi hai jo holi vaale ganon me hoti hai..

sateek baithi....:)

apna P.C. bol gaya hai.... to cyber cafe se kaam chalaa lete hain.....

isliye hindi ki thodi mandi hai..:)

HAPPY HOLI der se hi sahi....

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

ईष्टायल में उड़नतश्तरी नहीं , कहें अब फ़्लायिंग सासर
ऐसा ही कुछ असर हमारे ऊपर डाल गई है पिक्चर
और आपका अनुमोदन तो करना अपनी है लाचारी
क्योंकि वही होता है जादू, जो बोला करता सर चढ़कर

बेनामी ने कहा…

मुझे तो कविता का "ठेठ" रंग बहुत भाया!
पढने मे मजा आया! :)

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

ye Tau ji Rampyari aapne kyo kaid kr rakhi hai...??

बवाल ने कहा…

हम भारतियों की यही विशेषता है कि जब कुछ समझ न आये, कोई गल्ति हो जाये, बेवकूफ बन जाओ या कोई रास्ता समझ न आये तो बिना लॉजिक दाँत चियार के मुस्कराने लगो. मामला अपने आप सलट जाता है.
बहुत लाजवाब बात महाराज क्या कहना ! बेमिसाल पोस्ट।

Abhishek Ojha ने कहा…

फिल्म की तो बड़ी सही समीक्षा की आपने. लेकिन बार्बर और नाई कैसे कह दिया आपने? हेयर ड्रेसर कहिये नहीं तो 'मान हानि' ठोक देगा कोई :-)

अजय कुमार झा ने कहा…

haan billi tak to theek hee hai mujhe to lagtaa hai pikchar kee haalat dekh kar to pilli ajee wahee female pilla bhee chal hee jaataa. waise shahrukhwaa ko kaahe nahin bataye ee sheershak

sandhyagupta ने कहा…

Is andaaj me film samiksha pahli baar padhi.Aap hi ka kaam ho sakta hai..

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

हम भारतियों की यही विशेषता है कि जब कुछ समझ न आये, कोई गल्ति हो जाये, बेवकूफ बन जाओ या कोई रास्ता समझ न आये तो बिना लॉजिक दाँत चियार के मुस्कराने लगो. मामला अपने आप सलट जाता है.
बात हजम हो गयी ,बहुत दम है इन लाइनों में .संभवतः इसी अदा के चलते हम भारतीयों पर लोग -बाग -बाग होतें हैं .

कुमार संभव ने कहा…

सबसे पहले माफ़ी चाहूँगा आप के ब्लॉग पर लेट से आने के लिय ब्लॉग पढ़ कर लगा कि मैने आज तक क्या मिस किया.