इधर बिना किसी घोषणा के १५ दिन कुछ नहीं लिखा. किसी ने नहीं मनाया कि क्यूँ नहीं लिख रहे. कारण-बिना मार्केटिंग कुछ भी हासिल नहीं. नहीं लिखना हो तो भी बताना पड़ता है कि नहीं लिखूँगा अब से. तब तो लोग चेतते हैं कि काहे नहीं लिखोगे भाई..क्या हुआ..कहाँ चले..कब लौटोगे..किसी ने कुछ कहा क्या..आदि आदि. चुपचाप चले जाओ..किसी को कोई अंतर नहीं पड़ता. सब मस्त हैं..सब व्यस्त हैं. आप सोचो कि आपकी अहमियत है, तो आप ही गलत हो.
एक वेल्यू होती है जो सबसे पावरफुल होती है और उसे शुद्ध भाषा में कहा जाता है न्यूसेंस वेल्यू. बहुत पूछ है इसकी. नहीं क्रियेट करोगे तो वही होगा..जो हमारे साथ हुआ. १५ दिन नहीं लिखे..किसी ने नहीं पूछा कि क्यूँ नहीं लिखा.
वैसे तो मुझे खुद भी ख्याल न रहा कि १५ दिन हो गये, नहीं लिखा. कुछ पारिवारिक व्यस्तता और कुछ असंमजस..असमंजस भी ठीक वैसा ही जो बारात में बिन नाचे अलग थलग चलते बुजुर्गों के साथ होता है. नाचने वाले उन्हें खींच खींच कर नाचने बुलाते हैं और वो कभी मुस्करा कर, कभी खीज कर चुपचाप चलते जाते हैं. नाचने वाले उन्हें खूसट समझते हैं और वो बुजुर्ग या सज्जनवार उस बैण्ड बाजे में भी अपनी शांति तलाशते रहते हैं..कुछ शांत रहने की आदत जो पड़ जाती है.
एक बोध कथा याद आती है:
एक साधु गंगा स्नान को गया तो उसने देखा कि एक बिच्छू जल में बहा जा रहा है। साधु ने उसे बचाना चाहा। साधु उसे पानी से निकालता तो बिच्छू उसे डंक मार देता और छूटकर पानी में गिर जाता। साधु ने कई बार प्रयास किया मगर बिच्छू बार-बार डंक मार कर छूटता जाता था। साधु ने सोचा कि जब यह बिच्छू अपने तारणहार के प्रति भी अपनी डंक मारने की पाशविक प्रवृत्ति को नहीं छोड़ पा रहा है तो मैं इस प्राणी के प्रति अपनी दया और करुणा की मानवीय प्रवृत्ति को कैसे छोड़ दूँ। बहुत से दंश खाकर भी अंततः साधु ने उस बिच्छू को मरने से बचा लिया।
बिच्छू ने वापस अपने बिल में जाकर अपने परिवार को उस साधु की मूर्खता के बारे में बताया तो सारा बिच्छू सदन इस साधु को डसने को उत्साहित हो गया। जब साधु अपने नित्य स्नान के लिए गंगा में आता तो एक-एक करके सारा बिच्छू परिवार नदी में बहता हुआ आता। जब साधु उन्हें बचाने का प्रयास करता तो वे उसे डंक मारकर अति आनंदित होते। तीन साल तक यह क्रम निरंतर चलता रहा।
एक दिन साधु को ऐसा लगा कि उसकी सात पीढियां भी अगर ऐसा करती रहें तो भी वह सारे बिच्छू नहीं बचा सकता है इसलिए उसने उन बहते कीडों को ईश्वर की दया पर छोड़ दिया। बिच्छू परिवार के अधिकाँश सदस्य बह गए मगर उन्हें मरते दम तक उन्हें यह समझ न आया कि एक साधु कैसे इतना हृदयहीन हो सकता है।
तब से बिच्छूओं के स्कूल में पढाया जाता है कि इंसान भले ही निस्वार्थ होकर संन्यास ले लें वह कभी भी विश्वास-योग्य नहीं हो सकते हैं।
(आभार पिट्सबर्ग वाले शर्मा जी यानि ’स्मार्ट इन्डिय’ का इस कथा के लिए)
----तो यह तो हो गई आज की बोध कथा- किन्तु यह बिच्छूओं के लिए है. वो पढ़ लेंगे. अतः आपके किसी काम की नहीं.
अब रही अगली बात कि आज प्रेम दिवस है यानि वेलन्टाइन डे. अब इस उम्र में काहे का डे और काहे का सेंन्ट वेल्न्टाइन. मानो न मानो, बस अपनी बुजुरिया ही काम आयेगी-चाहे प्रेम प्रदर्शन करें या न करें. करें भी तो कैसे:
प्रेम दिवस का भूत देखिये, सबका मन भँवरा बोराय
हम बैठे हैं पांव पसारे, दोनों घुटनन रहे पिराये.
हम तो ठहरे बुढ पुरनिया, घर में भांग रहे घुटवाय
दूध जलेबी छान के दिन में, हुए टनाटन हम तो भाय.
सबकी बीबी फेयर लवली, माँग रही है खूब इठलाय
हमरी बीबी बाम रगड़ती, कहती है कि मर गये हाय.
नये लोग हैं नया गीत है, इलु पर दये कमर मटकाय,
हम तो बैठे तिलक लगा कर, आरत राम लला की गाय.
देखो उनकी कैसी मस्ती, पिकनिक पर खण्डाला जाय
बीबी हमरी धड़कन सुनके, ब्लड प्रेशर की दवा खिलाय.
-खैर जो है, सो है-सब दिन एक समान-सब दिन राम के:
आज एक गीत सुनवाता हूँ..ताकि एक बचा डोज़ भी पूरा ही हो ले:
गुरुवार, फ़रवरी 12, 2009
मस्त रहें सब मस्ती में...
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87 टिप्पणियां:
आज तो कमाल ही कर दिया आपने खूब लिखा . न्यूसेंस वेल्यु और बोध कथा का तो जबाब ही नही . और एक बात अभी इतने बूढे नही है आप जो जो वेलेंटाइन डे इंजॉय न करे . बताये क्या कनाडा मे भी इतना क्रेज इसका .
टिप्पणी प्रतिक्रया ...किश्तों में -
!-हाँ अनकुस तो लग रहा था पर इन दिनों महापुरुषों का ब्लॉग न लिखने के कारणों पर प्रवचन चल रहा है (जीतू भाई ) इसलिए डर रहा था कि कहीं ऐसी ही कोई फिलासफी आप भी न उछाल दें-इसलिए टोंकना गैर मुनासिब लगा ,
२-टिप्पणियों के जरिये तो आप ब्लागजगत में विद्यमान थे ही -इसलिए आपके न होने का अहसास उतनी शिद्दत से नही हुआ !
३-अगर दुनिया की तवारीख सही है तो वह महान प्रेम दिन कल पड़ने वाला है -आपका उतावला पन हैरत में कम डालता है आश्वस्त जियादा करता है -शुभकामनाएं !
४-आपके गले में भी सकारात्मक लोच है यह मादरे वतन प्रभाव है .
५-कविता को मुद्रण मोड में भी तो रखना था न -उनके लिए जो फागुनी स्वर झेल न सकें !
६-स्नेह भाव बनाए रखियेगा !
" आपने तो अपने मन की निकाल ली ....न्यूसेंस वेल्यू की जरिये......पर हम अपनी व्यथा किसे जाकर सुनाये....की "आदरणीय समीर जी दरवाजे ( delhi) तक आ कर लौट गये.......कहा था जाते वक्त बतायेंगे मगर कोई ख़बर नही......हा हा हा हा हा हा हम तो इन्तजार करते रह गये "
तो यह तो हो गई आज की बोध कथा- किन्तु यह बिच्छूओं के लिए है. वो पढ़ लेंगे. अतः आपके किसी काम की नहीं. ( ये बिच्छू भी ब्लॉग पढ़ने लगे क्या........कब से.....????)
"रही प्रेम दिवस यानि वेलन्टाइन डे की बात तो इसके लिए कोई उम्र नही होती.....जब तक साँस है तब तक आस है.....है न?????"
डोज़ काफी powerful है और मजेदार भी..."
Regards
kami akhar to rahi thi magar aaj kal mahaul ke mijaj kuchh aise hain ki kisi ke baare me kuchh adhik poochhen to bat ka batangad na ban jaaye khair pata thaa ap velentine day par chup nahi baith sakte is liye aate hi apka blog khola apko aur aapki patni ko velentine day ki shubh kaamnayen post bahut badiyaa hai apki awaz bhi sureeli hai bdhaai
aapki absense ham sabko khalti hai. Bata kar jaya kijiye.
kavita aur bodh kata dono achha laga.
बस छा गये आप और क्या कहूँ...
---
मोसे नैना मिलाइके छाप तिलक
समीर जी
अरविन्द मिश्रा जी ने जो पंचम सुर लगाया है
उसमें उनके लिए जो फागुनी स्वर झेल न सकें !
जैसी चिंता की है
किंतु उनकी चिंता क्यों है सोच रहा हूँ
कोई बात नहीं जो भी हो मुझे तो आनंद आ गया
सबको आयेगा बधाई
वापसी पर स्वागत..
गीत सुन कर अच्छा लगा.. लगता है आप पुनः जबलपुर पहुँच गये.. हम तो इन्तजार करते रह गये..
आप एक दिन पहले ही प्यार के रंग में रंग गए ...और न न करते भी इजहार कर बैठे :) आप के होने का एहसास तो हर जगह दिखायी देता है ...इस लिए शायद किसी ने आपको कहा नही लिखने को :) बोध कथा पसंद आई
हिन्दी चिटठा जगत में आपकी कमी स्पष्ट दिखाई दे रही है......पर आप इंडिया आने के बाद से ही कम पोस्ट लिख रहे हैं....कमेंट भी कम कर रहे हैं......देर आए दुरूस्त आए....सब कुछ समेटा हुआ यह पोस्ट भी अच्छा लगा।
waah katha aur kavya dono bahut badhiya,vaise bhabhji ka tohfa kharida ya nahi ab talak?:);)valentine ka.hamare aur se bhi unhe shubh sneh.
अब आप ज्ञान जी तो है नही की चार दिन आपकी पोस्ट नही आए तो हम मेल फ़ोन कर दे.. ऊपर से आप टिप्पणियो में हमेशा छाए रहते है तो पता ही नही चलता की आप आउट ऑफ कंट्रोल है..
वैसे आपने बिच्छू के लिए लिख तो दिया.. पर बिच्छू पढ़ेगा कैसे? वो तो अभी हो हल्ला करके निकल लिया... मेरा मतलब है की पानी में बह गया ना... जी हा ठीक समझे आप!
aapke bina to blog duniya ki kalpna hee nahi kee ja sakti, sannata pasra huya tha. narayan narayan
ए बादे बहारी उनको भी दो चार थपेडे हलके से
जो लोग किनारे से अब तक साहिल का नज़ारा करतें हैं ..
*दाग
सही किया सही कहा
सलीका-गुल-ए-गुफ्तगूँ की
नसीहतें ज़रूरी हैं . थीं...रहेंगी
जिक्र-ज़न्नत अगरचे थी हंगामें दार
सरकार आप ने उसे बनाया असर दार
जानतें हैं पंकज शुक्ल जी भी आ गए ब्लागिंग
में अब तो तय है होंगे ब्लॉगर हज़ार
समीर जी,आप की इस बात से पूर्ण सहमत है जी कि
"आप सोचो कि आपकी अहमियत है, तो आप ही गलत हो."
साधु जितना मर्जी बिच्छुओं को बचाए लेकिन अगर बिच्छु में सोचने समझनें का दिमाग ना हो तो काटेगा ही। हम भी जानते है साधू को बहुत पीड़ा होती है जब बिच्छू बचानें वाले पर बिच्छु ही हँसता (काटता) है। लेकिन हम चाहेगें की साधु अपना स्वाभाव ना ही छोड़े तो अच्छा है। क्युँकि साधु ज्यादा देर तक ह्रदयहीन बना नही बैठ पाएगा। बिच्छू और साधु मे यही फर्क है।
"दूसरे क्या अहमियत देते हैं इसे आजकल के माहौल को देखते हुए सोचना ही नही चाहिए।"
आप ने अच्छी रचना व पोस्ट लिखी है।भले ही उमर के साथ प्यार को इजहार करने का तरीका बदल जाता है।लेकिन कम कहाँ होता है? आपका गीत सुन कर तो उसकी खुश्बु हमें तो महसूस हुई है।बस अपनी बात को एक मुक्तक में कहना चाहूँगा-
"हम चुप थे तो यह ना समझ की प्यार नहीं ।
कुछ पूछा नही,यह ना समझ इन्तजार नही ।
तेरी आहटों के सहारे ए- दोस्त जिन्दा थे,
माना अपनी जु़बा से कर सके इजहार नहीं।"
बोध-कथा बिच्छू के लिए थी? हम तो पूरी कथा पढ़ लिए तब जाकर आपका संदेश देखने को मिला. फिर हमने सोचा कि एक-आध बिच्छू तो है ही अपने अन्दर भी.....:-)
प्रेम-दिवस पर गीत/आल्हा/गजल....या फिर जो भी हो, बहुत गजब का है. पढ़कर मस्ती छा गई....:-)
बोध कथा और आपकी गीत रूपी डोज बहुत भायी ।
और वैसे कल है वेल्न्टाइन डे । :) यानी १४ फरवरी ।
valantine day per aap kee baat pasand aayee. aap ne 15 din tek que nahi likha isa aap ne nahi bataiya. vaise ek baat aachi hai jo valentines day per app laute. is umar main aap ke bhawana impress karne wali hai. 14 february ke ank main aap ke blog ko main i next dehradun ke ank main prakashit kar raha hoo. kal ise apne blog per bhi daal dunga. jaroor dakhien. aap mul roop se ise inext.co.in per jakar page number 4 per dekh sakte hain.
आन्दोलित कर देने वाला है..यह प्रतीकात्मक आलेख !
पर, अंतिम लाइनें आशंकित कर रही है..
इशारा किधर है.. या मेरे मन का चोर है ?
" इंसान भले ही निस्वार्थ होकर संन्यास ले लें वह कभी भी विश्वास-योग्य नहीं हो सकते हैं । "
क्योंकि जबलपुरी जूते में कम से कम आप तो शामिल हो नहीं सकते !
हम भी बड़े असमंजस में है ..... की एक दिन पहले आपने प्रेम दिवस कैसे घोषित कर दिया ..ये तो सारे के सारे प्रोग्राम चौपट कर देगा मुतालिक सेना के......वैसे भी भारी आर्थिक घाटे (साभार अभिषेक ओझा- चड्डी के बदली साड़ी डील )के कारण मुतालिक सेना डिप्रेशन में आ गयी है .दो दिन का प्रेम दिवस तो उन्हें ले डूबेगा ......
बोध कथा -गाना -ओर फोटू ....एक साथ तीन ट्रंप कार्ड ...सुना है वापसी में दिल्ली गुरुवार डेरा डालेंगे ......तो कुछ जुगाड़ बिठाये हम भक्तगण (कुश) बोध कथा सुनने का.......
'सब दिन एक समान-सब दिन राम के' तभी मैं कहूँ एक दिन पहले ही वैलेंटाइन कैसे मना लिए आप !
बहुत खूब। बिच्छू कथा और प्रेम कथा वाकई अच्छी लगी। सुन तो नही पाए पर फ़ोटो है बहुत भाए।
और आपने आखिरकार सब कुछ कह ही डाला
बोध कथा मे मजा नही आया । लेकिन कविता आपकी बहुत अच्छी लगी । मुझे जैसा लगा मैने लिख दिया है ।
समीर जी की जय हो प्रेम दिवस पर इस बार तो आप श्वसुर हो गये हैं सो जाहिर सी बात है ि बुढ़ापे का एहसास होना ही चाहिये । किन्तु वो कहते हैं ना कि सदा दिवाली संत की बारह मास वसंत सो आप तो संत शिरोमणी श्री श्री 11008 समीरेश्वर उड़नतश्तेश्वर है अत: आपको भी कहीं बुढ़ापा छू सकता है । तिस पर आपका गहन व्यक्तित्व उसके सामने बुढ़ापा भला क्या खाकर टिकेगा ।
bahut hi achha laga itne dino baad aapki post padh kar... full maza aa gaya. aapka geet bhi bahut achha laga.
भैय्या १४ तारीख कल है. खैर बहुत ही मजा आया. सच्ची में.विडियो चलाया तो ससुरा बाजत नहीं न है. लगता है सिस्टम गड़बड़ झाला. देखते हैं. फ़िर सुनने कि कोशिश करते हैं. आभार.
हम तो अरविंद मिश्र जी की टिप्पणी न. २ से सहमत हैं। आखिर आप ही ने कह दिया है-
जो प्यार तुमने मुझको दिया था
वो प्यार किश्तों में लौटा रहा हूं।
हम आपकी इस नसीहत को भी याद रखेंगे-
ज़रा तुम सम्भलना, सम्भल कर चलना
ये बात तुम को सिखला रहा हूं......
गुज़ारिश यही है कि किश्तों में ही सही, पर आपका प्यार ब्लाग जगत को मिलता ही रहे।:)
काफी जल्दी समझ लिये आप ..... मुझे आपके इस लेख से बैलगाडी के नीचे चलने वाले उस किसान के कुत्ते की कहानी याद आ गई जो यही सोचता रहा कि गाडी वही खींच रहा है और खुद पर इतराता भी रहा । पर एक जगह जब वह थोडा रुक गया और ख्याली पुलाव पकाने लगा तो उसे गाडी कि याद आगई.
देखा तो वह काफी दूर निकल चुकी थी । सो लिखते रहिये लिखते रहिये ..लिखने से दोस्त लिखने से ही दोस्त.... टिपियाते है ।
हर बार पढ़ते पढ़ते यही लिखने का मन होता है कि समीर जा का भी जवाब नही....! आप १५ दिन में आओ चाहे माह भर में..आप तो सचिन हो जी...! आते ही हो छाने के लिये...!
गीत और कवित्त दोनो मस्त...बस बोधकथा पढ़ने के बाद लग रहा है कि पढ़ी तो हमने भी....क्या हम भी बिच्छू...??????
अरे ऐसा नही है.....मेरा मन तो शंशय से भरा था कि आख़िर क्या बात हो गई कि आपने यूँ मौन साध लिया है...आज सुबह हो सोच रही थी कि पता लगाया जाय आपके इस अनुपस्थिति के कारणों का.....
खैर,जैसा कि अपेक्षित था, लाजवाब कथा और जबरदस्त प्रेम कविता के साथ आपने अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी....बहुत आभार.
निवेदन है कि ,इतना लंबा अन्तराल न रखिये....
लगता है आज सारे दिनों की कसर निकाल कर लिखा है और बढिया तो आप लिखते ही हैं लेकिन आपने ये बात क्यों बोली की आपको किसी ने मनाने की नहीं सोची मैंने आपको गूगल के थ्रू कोन्टेक्ट करने की कोशिश की उस समय आप बिजी थे मैंने आपको मोबाइल पर भी कोन्टेक्ट करने की कई बार सोची तो कभी आपका मोबाइल बंद होता था कई बार आपका नंबर मुझे मालूम नहीं था तो अब आप नहीं बोलना कि आपको मनाने की कोशिश नहीं कि किसी ने
Padh kar majaa aa gayaa...
आपकी इस रचना का आनंद भी हमने मिलकर लिया.....
निश्चय ही आपकी ऐसी रचनाएं बहुत रोचक होती हैं.........
भाई हम और हमारे गुरुजी तो दो दिन मनाते हैं चाहे कोई भी त्योंहार हो. हम तो गुरु चेले बल्टियान दिवस भी दो दिन मना रहे हैं. आप सबको बहुत बधाई.
और गुरुजी हमारे अंदर बैठे बिच्छू ने बोध कथा पढ भी ली है. और शिक्षा भी ग्रहण करली है. :)
गीत तो बडा मस्त लगा. बस चोला प्रशन्न हो गया.
रामराम.
"देखो उनकी कैसी मस्ती, पिकनिक पर खण्डाला जाय
बीबी हमरी धड़कन सुनके, ब्लड प्रेशर की दवा खिलाय."
अय हाय, किसने आपकी यह हालत कर दी? कहीं अधिक टिप्पणियां करने के कारण "अधिक" प्रेशर तो नहीं हो गया?
आप को तो जुकाम हो जाये तो हिन्दी जगत को रक्तचाप हो जाता है. अब क्या होगा?
मनौती मानते हैं कि हे प्रभु टिप्पणी-सम्राट को चंगा कर देंगे तो प्रभु आईंदा एक भी चिट्ठा नहीं लिखेंगे. इससे बडा सेक्रिफाईस और क्या हो सकता है.
सस्नेह -- शास्त्री
हम आप की व्यस्तता जानते हैं। जब भी लिखें पढ़ने को हाजिर हैं।
समीर जी, हिन्दी चिट्ठाजगत पर आपका हार्दिक स्वागत है.नियमित लेखन के लिए शुभकामनाऐं.
वैसे बिच्छू ओर साधु वाली बोधकथा बहुत जोरदार रही.
क्या बात है सर ! आनन्द आ गया। इतनी ख़ुफ़िया बात और इस अंदाज में। लौटा रहा हूँ तो बहुत ग़ज़ब रही। क्या कहना।
अरे हमे तो पता ही नही चल की आप लिख नही रहे, आप की बिच्छू कथा बहुत अच्छी लगी ,
धन्यवाद
क्या पचड़े में पड़ें - कौन बिच्छू, कौन साधू? बाकी लिखा मस्त है और गीतमय स्लाइड शो तो इम्प्रेसिव!
मजेदार रही आपकी बोध कथा और कविता..
बहुत मस्त लिखा है कई सारी बातें एक ही पोस्ट में. कैसे कैसे किस किस को लपेट लिया आपने.
पढ़ लिये। सुनने के लिये और हिम्मत जुटानी पड़ेगी। पहले ही जो सुना उसी से कान अभी तक सनसना रहे हैं। :)
समीर भाई
मस्त रहें सब मस्ती में , पूरा आलेख. बोध कथा, वेलेंटाइन डे और " जो प्यार तुमने मुझको दिया है, वो प्यार किश्तों में लौटा रहा हूँ " अच्छे बन पड़े हैं और सबके ऊपर प्रेम दिवस पर वीर रस में गाया जाने वाला आल्हा लिख कर प्रेम में भी आपने बहादुरी दिखा कर बता दिया कि " जब प्यार करे कोई , तो देखे केवल मन " सही है.
बहुत अच्छा है प्यार को किश्तों में ( धारावाहिकों की तरह ) लौटाएँ तभी खैर है, एक बार में सब लौटा दिया तो बाकी जिंदगी >>>>>>!!!!. खैर मैंने तो ये चुटकी ली है लेकिन आपके गीत और गायन ने मन को भावविभोर कर दिया .
- विजय
क्या बात कही उस्ताद ग़ज़ब करते हैं आप बिच्छू तक के माध्यम से बात कह ही डाली। हा हा। हँस पड़िए अब तो।
नये लोग हैं नया गीत है, इलु पर दये कमर मटकाय,
हम तो बैठे तिलक लगा कर, आरत राम लला की गाय.
-----------------------
टैम मिलौ तबहुँ ई पढ़्यौ, रीडर में रर्ख्यौ लटकाय
आज सोच कै आये इहां फिर एक टिप्पणी दई लगाय
ऐसी बोध कथाएँ और कविता पन्द्रह दिन बाद भी मिले तो हम धन्य हैं.
शेष शुभ, इति... शुभदा
पोस्ट में कविता का तड़का वाह बहुत ही मजेदार लगा . आनंद आ गया . आभार
बहुत खूब. बोध-कथा, काव्य, गीत, विडियो सभी बहुत धाँसू रहे.
ब्लॉग पर पधारे और इतनी
खूबसूरत टिपण्णी की .
दिल से बहुत-२ धन्यवाद्.
हम तो ठहरे बुढ पुरनिया, घर में भांग रहे घुटवाय
दूध जलेबी छान के दिन में, हुए टनाटन हम तो भाय.
बिन घूंट लिए हम तो इस पर विश्वास करने से रहे।
प्रकृति ने हमें केवल प्रेम के लिए यहाँ भेजा है. इसे किसी दायरे में नहीं बाधा जा सकता है. बस इसे सही तरीके से परिभाषित करने की आवश्यकता है. ***वैलेंटाइन डे की आप सभी को बहुत-बहुत बधाइयाँ***
-----------------------------------
'युवा' ब्लॉग पर आपकी अनुपम अभिव्यक्तियों का स्वागत है !!!
पतंगा बार-बार जलता है
दिये के पास जाकर
फिर भी वो जाता है
क्योंकि प्यार
मर-मिटना भी सिखाता है !
.....मदनोत्सव की इस सुखद बेला पर शुभकामनायें !!
'शब्द सृजन की ओर' पर मेरी कविता "प्रेम" पर गौर फरमाइयेगा !!
देर आयद, दुरस्त आयद. सभी ब्लोगर भले ही देर से लिखें, कम लिखें, लेकिन ऐसा लिखें कि पढ़ के मजा आ जाय, जैसा आपकी इस पोस्ट और कविता को पढ़ के आया. साधुवाद.
समीर जी,
पहली बार यहाँ टिप्पणी करने का साहस कर रही हू-
---"और कुत्तॊ के स्कूल में-- चाहे कितनी भी रोटीयाँ तोडे हमसा वफ़ादार नही हॊ सकता।"
hum ne toe socha humari tarah aap bhi break le rahe hein.. Agar lagta ki manane wala maamla hae to kutch na kutch jaroor kiya hota :)
मस्त रहो भई मस्ती में
महंगी में या सस्ती में
गालिब तो हम नहीं मगर
रहते फाक़ामस्ती में
"असमंजस" की परिभाषा ने तो हमे नतमस्तक कर दिया...आप सिर्फ 15 दिन से नही लिख रहे और हमें तो महीनों इसी असमंजस की दशा में रहते हो गए हैं ...पता नही कब मुक्ति मिलेगी...
प्रेम दिवस पर लिखी मादक कविता ने तो मस्ती बिखेर दी...
समीर लाल जी आपका जवाव नहीं भय्नाकर लिखते हो आप
क्या बात है, जवाब नही है आपका.. लौटने के बाद लिखा वो भी वैलेंटाइन डे पर और कहते है, की बूढे हो गए...
adarniye sameer lal ji..aapki bodh katha laajwaab thi, naya hoon lekin aap logon ke sanidhya main achaa lag raha hai aap k prayaas k liye saddhuwaad....
'न्यू सेंस वेल्यू' के नाम पर 'सेंस आफ वेल्यूएशन' का अच्छा तरीका पेश किया है आपने। आप खातरी रखिए। आपने जो बो रखा है, उसकी फसल तो आप लिखें न लिखें, आपके खेत में उगती ही रहेगी। यह आपकी ऐसी 'शुध्द कमाई' है जो आपने 'लुटा-लुटा कर' पाई है।
भरोसा रखिए, हममें से कोई नहीं सोचेगा कि इतने सह्रदय होकर आप इतनी लम्बी चुप्पी की निर्ममता कैसे बरत सकते हैं।
कई दिनों से चाह रहा था, आपसे रु-ब-रु होऊं. दुर्भग्य , मौका नही मिला. लेकिन देर मेरे लिए अच्छा ही रहा. एकदम नया कलेवर देखने को मिला . बोध कथा का अब तक मैं एक ही पक्ष से अवगत था . लेकिन आपने आज बता दिया की साधू भी अपना चरित्र बदल देता है . और हाँ कविता वेलेंटाइन पर काफी अच्छी लगी.
हम तो आपके पहले से मुरीद हैं
छा गए स्वामीजी
आपकी पोस्ट हमेशा की तरह धारदार है। बिच्छू वाला उदाहरण भी बढिया है।
hasya kavita bhi khuub hai aur
aap ka geet bhi badiya hai....
valentine ke din -ab aap pyar bhi kishton mein lauta rahey hain...!!!!
aap ke is geet ke baad un ka jawab kya raha.yah bhi likh dijeeyega agli post mein.
सरकार की जय हो....
गालिब तो अभी जवान हैं
कल दिगम्बर नासवा जी आये थे यहाँ देहरादून...बड़ी तारीफ़ कर रहे थे आपकी
sameer ji
मस्त रहें सब मस्ती में..."
aap ki yah kahani v kavita ne mujhe sach much jhijhod diya.ek shayar ka sher arj kar raha hoon.
tere jahan mein aisa n ho ki pyar n ho,
jahan ummid ho jiski vahan nahin milta.
bahut kuchh kah diya aapne sarlata se. aur sach kahoon kuchh bhi galat nahin kaha.logon ki soch par
bade pyar se baar kiya jo vaastav mein sarahniy hai.आप सोचो कि आपकी अहमियत है, तो आप ही गलत हो.ye baat aapki sabhalne ke liye ek prerna deti hai.is kahani ke madhyam se aapke vyaktitv ki chhap milti hai.aisa lagta hai ki aap ki jitni taareef ki jay kam hai. बोध कथा bhi bahut kuchh kah rahi, main to yahi kahoonga jo samjhe na anari hai.
जब यह बिच्छू अपने तारणहार के प्रति भी अपनी डंक मारने की पाशविक प्रवृत्ति को नहीं छोड़ पा रहा है तो मैं इस प्राणी के प्रति अपनी दया और करुणा की मानवीय प्रवृत्ति को कैसे छोड़ दूँ। iske madhyam se aapse mulaakat kafi najdeek se ho gayi.इंसान भले ही निस्वार्थ होकर संन्यास ले लें वह कभी भी विश्वास-योग्य नहीं हो सकते हैं। ab aur kya kahen aap ke vichaar mere dilo dimaag mein utar gaye.mere man ko overhaul kar diya.nimn kavita ke duara aapne samaaj ke har vyakti ke man ki vyatha kahdee.mujhe nahin pataa ki kin panktiyon mein aapki vyatha kya hai magar vyathayen saamyak hai.
प्रेम दिवस का भूत देखिये,
सबका मन भँवरा बोराय
हम बैठे हैं पांव पसारे,
दोनों घुटनन रहे पिराये.
हम तो ठहरे बुढ पुरनिया,
घर में भांग रहे घुटवाय
दूध जलेबी छान के दिन में,
हुए टनाटन हम तो भाय.
सबकी बीबी फेयर लवली,
माँग रही है खूब इठलाय
हमरी बीबी बाम रगड़ती,
कहती है कि मर गये हाय.
नये लोग हैं नया गीत है,
इलु पर दये कमर मटकाय,
हम तो बैठे तिलक लगा कर,
आरत राम लला की गाय.
देखो उनकी कैसी मस्ती,
पिकनिक पर खण्डाला जाय
बीबी हमरी धड़कन सुनके,
ब्लड प्रेशर की दवा खिलाय.
God is really great if nobdy is with us atleast we are with us. this beauty of mind much more helpful to suvive in this world.
You are more praisable than my words.With love and afeection.yours
prem farrukhabadi.Fir milte hain.
हम तो ठहरे बुढ पुरनिया, घर में भांग रहे घुटवाय
दूध जलेबी छान के दिन में, हुए टनाटन हम तो भाय.
सबकी बीबी फेयर लवली, माँग रही है खूब इठलाय
हमरी बीबी बाम रगड़ती, कहती है कि मर गये हाय.
नये लोग हैं नया गीत है, इलु पर दये कमर मटकाय,
हम तो बैठे तिलक लगा कर, आरत राम लला की गाय.
badi majedar kavita hai maja aagaya. or bodh katha v achchhi thi. maine to aadha hi padha tha.
वाह समीर जी मज़ा आ गया.....बहोत ही प्यारा रहा ये आपकी लिखाई का सफ़र.....
Der se aaye par durust aaye.
बोध कथा में न्यूसेंस वेल्यू का अच्छा समागम है। मन बाग-बाग हो गया।
LAGHUKATHA AUR AAPKEE KAVITA BAHUT HEE LAJWAAB HAI. DHANYAWAAD.
-kazhroad1.blogspot.com
हम तो ठहरे बुढ पुरनिया, घर में भांग रहे घुटवाय
दूध जलेबी छान के दिन में, हुए टनाटन हम तो भाय.
सबकी बीबी फेयर लवली, माँग रही है खूब इठलाय
हमरी बीबी बाम रगड़ती, कहती है कि मर गये हाय.
नये लोग हैं नया गीत है, इलु पर दये कमर मटकाय,
हम तो बैठे तिलक लगा कर, आरत राम लला की गाय.
वाह प्रेम पर्व पर ये शायराना अंदाज़ काबिले तारीफ है और कहीं से भी आपको बूढा नही बनाती...और हाँ आगे से अपने पाठको को इतना लंबा इंतजार मत करवाइए...
हम तो ठहरे बुढ पुरनिया, घर में भांग रहे घुटवाय
दूध जलेबी छान के दिन में, हुए टनाटन हम तो भाय.
सबकी बीबी फेयर लवली, माँग रही है खूब इठलाय
हमरी बीबी बाम रगड़ती, कहती है कि मर गये हाय.
नये लोग हैं नया गीत है, इलु पर दये कमर मटकाय,
हम तो बैठे तिलक लगा कर, आरत राम लला की गाय.
वाह प्रेम पर्व पर ये शायराना अंदाज़ काबिले तारीफ है और कहीं से भी आपको बूढा नही बनाती...और हाँ आगे से अपने पाठको को इतना लंबा इंतजार मत करवाइए...
अजी वाह जी वाह !१ क्या बात है - भली कही अपनी बात आपने समीर भाई :)
- लावण्या
मुझे लगता है कि हर आदमी अपने आपमें इतने व्यस्त है कि हर किसी पर ध्यान ही नहीं दे पाता। दोस्तों मित्रों की बात छोड दीजिए कभी कभी तो घर में भी पत्नी को ध्यान दिलाना पडता है कि देवी जी घर में बच्चों, परिवार के अलावा एक पति भी है।
अच्छा है
हमाओ नाम सुई डाल लियो
अपनी लिस्ट में भैया जी
हम हेमराज नामदेव् "राज़ सागरी "
कहात हैं
मैं तो आपका ब्लॉग पढ़ पढ़कर शरीर की समस्त मांसपेशियाँ मजबूत करता रहता हूँ।हँसते हँसते लोट पोट होने के साथ साथ स्वस्थ साहित्य पढ़्ने के लिये आपका ब्लॉग सबसे बढि़या है।पर्याप्त जानकारी ना हो सकने के कारण चाहते हुए भी टिप्पणी करने से सकुचाता रहा लेकिन आदरणीय सुमन जी के निर्देशन से बेलाग शुरू किया। आपका आशीर्वाद पाकर कृतकृत्य हूँ।
बहुत खुबसूरत समीर जी...
कई दिनों से मैं भी ब्लॉग चेक नहीं कर पा रहा था... आज पढ़ा तो आनंद आया...
भाई साहब क्या हुआ कई दिन हुए कुछ लिख नहीं रहे :)
इस बार भी देखा तो पिछली पोस्ट छह दिन पुरानी थी। पहले देखता रहा हूं कि आप चौथे पांचवे दिन कोई न कोई पोस्ट लिख ही देते हैं।
क्या आपको नहीं लगता कि डूबते बिच्छू साधू को रिझाने का कोई अलहदा पैंतरा भी खोज सकते हैं।
आप अच्छा लिखते हैं लिखते रहें... शुभकामनाएं... :)
सादर
अनुज
BAHUT BADHIA LAAL SAHIB , ANAND AAGAYA.
एक और बढ़िया लेख,बिच्छुओं ने अगर पढ़ा हो तो भी वो तो डँक मारना ही नहीं छोड़ेंगे। लेकिन आपकी ये पोस्ट बहुत गहरी चोट करती है। आपको बधाई। और वैलंटाईन डे पर जो रचना आपने लिखी है वो तो बहुत ही मज़ेदार और सटीक है।
Bhat sunder git
Thanks for sharing
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