रविवार, सितंबर 07, 2008

मुझे याद रखना-वापस आऊँगा, दोस्तों!!!

कुछ थक सा गया हूँ. कुछ दुखी सा भी हूँ मगर खुद से. कुछ जरुरत से ज्यादा ही आप लोगों का सम्मान, स्नेह, लाड़-प्यार पाकर लेखन के मुख्य कार्य से विचलित हो चला हूँ. सही शब्दों में-बिगड़ सा गया हूँ.

यूँ ही कभी शौकिया लेखन शुरु किया था. आम हल्की फुल्की भाषा में लिखता गया. जब जो मन में आया, लिख दिया. सबने बहुत उत्साहित किया, सम्मानित किया, स्नेह दिया और मैं अपनी ही रौ में बहता लिखता चला गया.

सही मायनों में न तो मैं साहित्य का ज्ञाता हूँ और न ही कोई मंझा हुआ लेखक या कवि न ही ब्लॉगलेखन का महारथी. बस, हल्का फुल्का मन बहलावी लेखन. पाठक को मजा आये, मेरे संदेश उन तक पहूँच जायें, किसी को मेरे लिखे से ठेस या तकलीफ न पहुँचें-बस, यही मात्र उद्देश्य रहा मेरे लेखन का.

मेरे लेखन में कहीं कुछ बहुत बड़ी कमी आ रही है आजकल. आ क्या रही है, है ही. जो कहना चाहता हूँ वो भाव न जाने कैसे मतलब बदल कर पहुँच रहे हैं. निश्चित ही लेखन की कमजोरी है, जो अपनी बात सही तरीके से नहीं रख पा रहा.

कल रात टिप्पणियों के माध्यम से साथी चिट्ठाकारों से निवेदन किया:

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निवेदन
आप लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.
ऐसा ही सब चाहते हैं.
कृप्या दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें.
हिन्दी चिट्ठाकारी को सुदृण बनाने एवं उसके प्रसार-प्रचार के लिए यह कदम अति महत्वपूर्ण है, इसमें अपना भरसक योगदान करें.
-समीर लाल
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उद्देश्य और मंतव्य था कि हिन्दी चिट्ठाकारों को प्रोत्साहन मिले. हिन्दी चिट्ठाकारी का विकास हो और शनैः शनैः, परिणाम स्वरुप हिन्दी का विकास हो.

किन्तु शायद कुछ लोगों तक बात ठीक से पहुँची नहीं और उन्होंने इसे उन पर टिप्पणी न करने का आक्षेप माना या मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी करने का निवेदन. किसी ने साफ साफ लिख कर मुझे अनुग्रहित किया तो किसी ने मेरी टिप्पणी मॉडरेट कर अपना क्षोभ जताया.

इस तरह सोच लेने एवं अर्थ लगा लेने में मैं उनकी कतई गल्ती नहीं मानता. मेरा ही लेखन कमजोर रहा और शायद मैं ही अपनी बात ठीक तरीके से नहीं रख पाया.

आज देखा तो शास्त्री जे सी फिलिप भी इसी बात को बेहतर तरीके से अपनी सिग्नेचर लाईन बना कर सब तरफ टिप्पणियों में कह रहे थे. निश्चित ही वह सक्षम लेखक हैं, अतः अपनी बात बेहतर ढ़ंग से रख पाये, उनका साधुवाद.

प्रोत्साहन के आभाव में, अपने पिछले दो वर्ष और छः माह के चिट्ठाकारी जीवन में न जाने कितने चिट्ठों को दम तोड़ते देखा है. कुछ बंद हो गये, कुछ बंद होने की कागार पर हैं.

मैं अपनी तरफ से जितना बन पड़ता है, उतना प्रोत्साहित करने का प्रयास करता हूँ. अनेकों लोग इसी तरह के प्रोत्साहन देने के प्रयास में सक्रिय हैं. यह एक मिशन है, अतः समय और श्रम दोनों देना होता है मगर साथ ही हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार प्रसार देख कर आत्म संतुष्टी भी होती है कि हमारा यह छोटा सा प्रोत्साहन देने का योगदान बेकार नहीं गया.

खैर, किसी विद्वान को कभी पढ़ा था कि जितना लिखते हो, उससे कई गुना ज्यादा पढ़ो. इससे न सिर्फ ज्ञान बढ़ेगा अपितु लिखने का स्तर भी सुधरेगा.

मुझे लगता है कि मुझे अब पढ़ने में कुछ ज्यादा समय लगाना चाहिये इससे पहले की मैं कुछ लिखने का अधिकारी बनूँ. अतः विचार है कि लेखन को कुछ समय के लिए स्थगित कर मात्र पठन की ओर अग्रसर हुआ जाये ताकि अपने कमजोर लेखन के चलते बार बार लोगों को ठेस न पहुँचाऊँ. शायद पढ़ते रहने से लेखन को कुछ ताकत मिले भले ही थोड़ी सी सही.

पुनः मिलूँगा इसी मोड़ पर जैसे ही कुछ लिख सकने का आत्मविश्वास वापस आता है.

मेरे मन में न तो किसी से द्वेष है और न ही गुस्सा. मैं तो बल्कि उनका आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने मुझे इस कमजोरी को पहचानने का मौका दिया. वरना तो मैं मदमस्त चलता ही जा रहा था.

आशा करता हूँ जब भी लौटूँ, आप सबका स्नेह ऐसे ही प्राप्त हो.

तब तक के लिए आप सबको बहुत शुभकामनाऐं और आजतक प्राप्त समस्त स्नेह और हौसला देते रहने के लिए आभार.

भारी मन से विदा लेता हूँ...

चाहता हूँ आज हर इक शब्द को मैं भूल जाऊँ
चाहता हूँ लेखनी को उंगलियों से दूर कर दूँ

--मेरे गुरु राकेश खण्डेलवाल जी की ताजा रचना से...

सादर

आपका
समीर लाल ’समीर’ Indli - Hindi News, Blogs, Links

100 टिप्‍पणियां:

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

जानता हू लौट कर वापिस पुन: आ जाओगे तुम
क्योंकि यह विश्वास मेरा है, तुम्हें लौटा सकेगा
चाह कर भी राम क्या पथ मोड़ पाये थे शिला से
है पठन संकल्प मेरा जो तुम्हें प्रेरित करेगा

छोड़ सकती लेखनी क्या उंगलियों का साथ बोलो
या जुदा परछाई होती है कभी अपने बदन से
शब्द चाहे बोलिये कुछ और जो चाहे लिखें भी
धार इक बहती रहेगी, नित तुम्हारी इस कलम से

dpkraj ने कहा…

हां, कभी आदमी के मन में ऐसे विचार आते हैं कि वह अपने आपको थका हुआ अनुभव करने लगता है पर फिर वह उत्साह से काम करने लगता है।
दीपक भारतदीप

siddheshwar singh ने कहा…

समीर भाई,
'यहु संसार में भांति-भाति के लोग .. मुझे तो सुखद आश्चर्य होता है कि आप इतना पढ़ कैसे लेते हैं और ऊपर से निरंतर और सक्रिय लेखन.कल रात तो आपकी आवाज में कविता भी सुनी. शायद कुछ बातें/ चीजें आपको नागवार गुजरीं परतु सच्चे मन से मैं यह कह रहा हूं कि हमारा हिन्दी ब्लागजगत जितना भी/जैसा भी है उसमें और लोगों की बात मैं क्या करूं ,मैं आप से राह पाता हूं.विराम लेना आपकी मर्जी है ,आपकी आजादी किन्तु हिन्दी ब्लाग को आपके मार्गदर्शन की जरूरत है,इस बात को बिसरा मत दीजियेगा. आप कुछ आराम और विश्राम कर लेवें और लौटें तो अपनी पूरी धज के साथ.

मुंतजिर और चश्मबरा-
आपका भाई

मैथिली गुप्त ने कहा…

अजी हमसे बचकर कहां जाईयेगा
जहां जाईयेगा हमें पाईयेगा

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

समीर भाई,
मेरा तो यही कहना है आप कहीँ भी ना जायेँ -
आप बधिया लिखते थे, लिल्हते हैँ और सदा लिखेँगेँ ये मेरा विश्वास है -
बहुत स्नेह सहित,-लावण्या

रंजू भाटिया ने कहा…

यह क्या हुआ ? अचानक से .? ..थक गए हैं ..? ??वीर सिपाही कभी थकते नहीं :) ...बहुत काम है अभी बाकी ..हिन्दी ब्लॉग जगत को आगे ऊंचाई तक ले जाना है

Harshad Jangla ने कहा…

समीरभाई
यह अचानक चले जाने की बात कहांसे आ गई?
आप को विरामका हक़ जरुर है लेकिन लिखना बंध करनेकी बात तो आप सोच ही नही सकते|
-हर्षद जांगला
एटलांटा युएसए

बेनामी ने कहा…

आप हम लोगों को इस तरह से छोड़ कर नहीं जा सकते।

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

आज यही बात ज्ञानदत्त जी कह रहे हैं।
आप को कहीं ये तो नहीं लग रहा है कि आप वही पुरानी बात दोहराए जा रहे हैं? लगता है आप ने लेखन को लक्ष्य बना लिया है। सही हो यदि आप लेखन के लिए कोई लक्ष्य बनाएँ।

रंजन (Ranjan) ने कहा…

"न तो मैं साहित्य का ज्ञाता हूँ और न ही कोई मंझा हुआ लेखक या कवि न ही ब्लॉगलेखन का महारथी"..

क्या बात करते है.. मुझे तो एसा कभी नहीं लगता.. आप बहुत अच्छा लिखते है समीर भाई..

आपके निर्णय का सम्मान करते है.. हमें इन्तजार
रहेगा.. और हाँ "बबुआ" आपको बहुत miss करेगा..

do come back soon..

अमिताभ मीत ने कहा…

जाने की बात करते हो
दिल जलाने की बात करते हो ??

समीर भाई सच तो ये है कि न आप ख़ुद जा पायेंगे और न हम आप को जाने देंगे ...... आईये वापस, जल्द. एक अल्प विराम के बात पुनः उसी जोश और स्फूत्रि से जो आप के नाम से जुड़ी है ......

आओ गुरुदेव ... वापस आओ ..... उड़न तश्तरी के बिना उड़ान सम्भव नहीं है .....

"हम इंतज़ार करेंगे तेरा कुछ एक दिन तो ज़रूर
नहीं आए जो मर्ज़ी से .... उड़ा लायेंगे" .................... बहरहाल आप को शुभकामनाएं.

संगीता पुरी ने कहा…

यह क्या कर रहे हैं आप ? बहुत सारे नए चिट्ठाकारो को आपके प्रोत्साहन की आवश्यकता है। फिर भी आपको रोका तो जा नही सकता। खैर इंतजार रहेगा आपके वापस लौटने का।

अजित वडनेरकर ने कहा…

सबकी बात , मेरे मन की बात...
आपके पास असीम ऊर्जा और सामर्थ्य है लेखन की ,यह सर्वसिद्ध है। फिर भी आप एक अलग मिशन पर लगे हैं।
बस , इतना ही कहना चाहूंगा कि "....बहुत से चिट्ठों को दम तोड़ते दखा है" कहते हुए आप ज्यादा ही भावुक नहीं हो गए हैं ...? दरअसल यहां टिके रहने, खदेड़े जाने या टिप्पणियां लेने नहीं आते लोग। जिसे कुछ कहना , बताना या रचनाधर्मिता दिखानी है वह यहां है। पढ़ा जा रहा है..यह तो पता चल ही रहा है उन्हें । चिट्ठों के दम तोड़ने की वजह तो समय की कमी से लेकर कंटेट की गुणवत्ता जैसे बहुत से कारणों से जुड़ी है।
कहना यही चाहता हूं कि आप प्राकृतिक न्याय की व्यवस्था में भरोसा करें। कृपया अन्यान्य कारणों से निष्क्रिय चिट्ठों की ब्लागजगत से गैरमौजूदगी को टिप्पणियों से मत जोड़िये । टिप्पणियों को बेशक मिशन मानें क्योंकि उसकी सबको ज़रूरत है। आपकी टिप्पणी पाना हमारे लिए गौरव की बात है। मगर इसका अर्थ यह नहीं कि इसके लिए अपने मुक्त लेखन को प्रतिबंधित करें, ऐसा कोई व्रत न लें जो उड़नतश्तरी की नैसर्गिक उड़ान को कृत्रिम जीवन रक्षक ओषधि के पैक में बदल दे। आपको यही करना था तो ब्लागर क्यों बने , ब्लाग क्यों बनाया। सिर्फ भ्रमण करते और टिप्पणियों का प्रसाद बांटते !
बेशक टिप्पणियों पर आपने बहुत चिंतन किया है और लोगों का ध्यान इस नैतिक कर्तव्य की ओर दिलाया है। शास्त्रीजी भी इसमें बराबरी से साथ हैं। मगर आप अपनी ब्लागरी छोड़ नहीं सकते , स्थगित नहीं कर सकते । क्योंकि ब्लागर का पहला फर्ज़ सिर्फ लिखना है। उसके बाद अगर वक्त है तो वह सबको पढ़े और फिर टिप्पणियां भी करे। मेरा मानना है कि अगर कोई बात पसंद आती है तो टिप्पणी अवश्य होनी चाहिए। पसंद आई पोस्ट पर बिना टिप्पणी किये मैं आगे नहीं बढ़ता । मगर इससे ज्यादा नहीं , क्योंकि मुझे उनकी भी परवाह है जो मुझसे मेरी वजह से कुछ उम्मीद रखते हैं।
शायद मैं ज्यादा लिख गया हूं। मगर आप हमारे सबसे लाड़ले, दुलारे संगीब्लॉगी हैं सो ऐसा लगा कि आप गॉंधीजी की राह पर चल पड़े हैं इसलिए इतना लिख गए।
अंत में अपना एक शेर कहना चाहूंगा-
खुद ब खुद जो हाशियों पर आ बसे
उनके खेमों को उखड़ने दीजिए....

जै हो। हमारी बात पर ज़रूर गौर फर्माएंगें ऐसा भरोसा है। कुछ ग़लत तो नहीं कहा साथियों ?

Anil Pusadkar ने कहा…

aap jaise log is tarah ki bat karenge to aapke pichhe chal rahe hum jaise naye-nawadiyon ka kya hoga.aapko to shayad pata hi nahi hoga bahut se mere jaise bloggeron ke liye aap prerna bane hue hue hain.aap to bas likhte rahiye.lekhan achha hai kharab padhne wale par chhod dijiye,nar ho na nirash karo man ko...

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

आदरणीय गुरुदेव , सुबह सुबह उठते ही आपकी पोस्ट का टाइटल देख कर लगा की ग्रेंड क. यात्रा का कोई संस्मरण आपने लिखा होगा !
जैसे २ पढ़ता गया , दिमाग सुन्न हो गया !
पर मुझे ऐसा लगता है की आपका क्षोभ भी जायज है ! टिपणी वाली बात हो सकता है कुछ लोगो ने ग़लत ली हो ! हमने तो सही अर्थो में
ली और ये नियम बनाया की कम से कम ५ टिपणी रोजाना हमारी नियमित टिपणियो के अलावा करेंगे ! और हमको तो प्रोत्साहन ही
मिला और कुछ ग़लत कम से कम मुझे तो नही दिखा ! मैं तो सर्फ़ इतना ही कहूंगा की " जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत तिन देखी तैसी" हो सकता है किन्ही सज्जन को इसमे कुछ ग़लत
दिख गया हो और उनकी बुद्धि अनुसार सोच लिया हो ! सबको इस बात की आजादी है !

मेरा सिर्फ़ एक ही निवेदन है की आप पुनर्विचार करे ! आप कई नए जी हाँ , कई नए ब्लागर्स का तो सहारा है ही ! आपकी अनुपस्थिति
उनका हमारा हौसंला तोडेगी ! वैसे आप कहाँ जायेंगे ? हमारे दिलों में आप कैद हो चुके हैं हमेशा के लिए !

पुनश्च:
मुझ जैसे ठूंठ को इस दुनिया में आपने टिकाया ! हम इस बारे में कुछ जानते भी नही थे ! हिन्दी की इतनी बड़ी सेवा आपने की है ! यूँ
तो ब्लॉग जगत में जो भी मुझे जानता है वो एक अनाडी और गंवार ताऊ के रूप में ! पर मैं बताऊ की ये ब्लागिंग शुरू करने के पहले कभी भी , कम से कम कंप्यूटर पर तो हिन्दी नही लिखी ! आज आपने ये रास्ता दिखाया तो हम भरसक कोशीश करते है की हमारे आफिस में जितनी हो सके हिन्दी में मेल करे ! कुछ दोस्त
शुरू भी हो गए हैं! और इस का श्रेय भी आपको जाता है ! प्रणाम !

पुनर्विचार की अपील के साथ !
आपका शिष्य
ताऊ रामपिरिया

जितेन्द़ भगत ने कहा…

मुझे यह जानकर सदमा सा हो रहा है। और हैरानी भी कि‍ लोगों ने आपके मंतव्‍य और ईमानदारी का गलत मतलब कैसे लि‍या। मैं मन की बात बताता हूँ। शुरु में जब कहीं से कोई टि‍प्‍पणी मुझे नहीं मि‍ली तब मुझे लगा कि‍ शायद मैं बेकार लि‍खता हूँ, मुझे कोई नहीं पढ़ता। ऐसे वक्‍त पर भी आपके टि‍प्‍पणी से मुझे जो आगे लि‍खते रहने का हौसला मि‍ला, उसी का परि‍णाम है कि‍ अगस्‍त 2008 में शुरु करने के बाद अबतक 25 पोस्‍ट लि‍ख पाया। अब सच यह है कि‍ थोड़े धक्‍के से मेरी गाड़ी चल नि‍कली, अब टि‍प्‍पणी से अधि‍क content पर ध्‍यान रहने लगा है।
मेरा वि‍नम्र नि‍वेदन है कि‍ आप हम सबका यूँ ही हौसला बढ़ाते रहे, वर्ना कि‍सी की क्षमता उसके भीतर ही दम तोड़ देगी। आप और आपके हमराहि‍यों की वजह से ही कई नवोदि‍त ब्‍लॉगर अपना हौसला बनाकर आगे लि‍ख रहें हैं। please मत जाइए।

ALOK PURANIK ने कहा…

महाराज गये कहां हैं, जो आप आयेंगे।
वन्स ए ब्लागर आलवेज ब्लागर।
जमाये रहिये।

seema gupta ने कहा…

Sir, what happend to you, how you can take such harsh decesion just in a while. You are the person whom i found to very inspiring always, You have shown your presence on each and every blog and encouraged every one to write more and more. if you are hurt with any ones comment or any thing, than I personally feel sorry for it, as I know no one can hurt u intentionally..... we all are just learner and no one is perfect this i believe. what ever you write, we are always eager to read it. please take back your decesion as we all need you here...hope you will consider your decision again and will not dishearten us. And ya you wrote on my blog "that you are using my blog without my permission" in that regard i would like to say, that my blog is yours always, u can write, you can use it when ever you wish to..... hope to see u back again with all good wishes..

Regards

Satish Saxena ने कहा…

समीर भाई !
आप अपने लिए कहाँ लिखते हो ! क्या मिला आपको इस लेखन से और क्या पाया, बहुत से ठूंठों ने आपको गाली जरूर दी होगी ....
मगर आपने क्या दिया ....
सैकड़ों लोगो को लिखने का उत्साह दिया .....पता है आपको
सैकडों लोगों को अपनी कलम पर विश्वास करने का भरोसा दिया...पता है आपको
ख़राब लेखन करने वालों को भी "लेखन कर सकता हूँ" भरोसा दिया ...पता है आपको
आप अपना दिल न दुखाइए, कमजोरों को आपकी उड़नतश्तरी की बेहद ज़रूरत है ....
बापस आओं और आकर लिख जाओ " बहुत उम्दा "........आपकी ज़रूरत है नवोदितों को ....
कम ऑन यार !!

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

भारी मन से विदा लेता हूँ...

चाहता हूँ आज हर इक शब्द को मैं भूल जाऊँ
चाहता हूँ लेखनी को उंगलियों से दूर कर दूँ

मन को छूने वाले अल्फाज़ हैं...
हमने दोस्तों की महफ़िल में आपके ब्लॉग को शामिल किया है...

Unknown ने कहा…

आप दो अलग बातें मिक्स नहीं कर रहे....

आपको लगता है टिप्पणी से प्रोत्साहन मिलता है और हमें ...हम सबको ..यह नेक कार्य करते रहना चाहिये...

इंकार नहीं कर सकती की नहीं मिलता..कई बार अगर एक भी टिप्पणी नहीं आई तो तसल्ली होती है की आपकी तो कम से कम आई...

लेकिन फिर भी सब जगह जाकर मैं टिप्पणी नहीं करती...कई वजह है..कभी यूं ही स्तब्ध हो जाती हूँ...कभी लगता है बात ही पूरी है मैं क्या जोडूँ,कभी की मेरे पास कुछ भी कहने के लिए पर्याप्त जानकारी नहीं है....कई चिट्ठे नहीं पढ़े होते...

आपका ऐसा निवेदन पेश करने के लिए मैं अपनी जगह मुहय्या कराऊँ या नहीं...मुझपर है...और इस बात पर भी की इस बात पर मेरा विचार क्या है...

अगर मैं इसे कोई नेक काम नहीं समझती तो क्यूँ ऐसी बात अपने ब्लॉग पर रखूँ...

यह प्रश्न आपके लेखन प्रतिभा का नहीं आपकी बात का है...इन्हे मिक्स ना कीजिये....

फिर लेखकों को लेखक ही पढ़े तो कैसे लेखक...

भावुक होने के लिए कितने मसले हैं...कोसी है, भूखे हैं...अकेलापन है,प्यार की कमी है....इस इश्यू में तो ऐसा कोई रोमैंटिक नोशन भी नहीं...

इत्ते बढ़े हो गये और बच्चों जैसी बातें करते है...लोग क्या सोचेंगे....

ब्लॉग बंद कर दूँगी...यह तो मैं किसी सुसाइड नोट की तरह इस्तेमाल करती हूँ....आप क्यूँ कर रहे हैं....सोचिये सोचिये...कोई नई बात होगी तो लिखिये....फिर देखती हूँ टिप्पणी करूँ की नहीं...

अवाम ने कहा…

मै आगे आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने का प्रयास करूँगा सर. आपके मागदर्शन की जरुरत है. थोड़ा पढाई ज्यादा होती है हमारे डिपार्टमेन्ट मे. सुबह ८ बजे से रात में करीब ८-९ बज जाते है. पर आगे से मै आपकी सलाह पर खरा उतरने का पुरा प्रयास करूँगा. वैसे मैं उन सभी लोगों की टिप्पणी देता हूँ, जो मेरे ब्लॉग पर आकार टिप्पणी दे जाते है.

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

विश्राम की बात तो ठीक है परंतु विराम और विदा का क्या मतलब है? मुझ जैसे कितने लोग जो आपसे कुछ सीखते हैं, उनके बारे में भी तो सोचिये।
वापस आने की बात से दिलासा मत दीजिये। जाइये ही मत ।

सुशील छौक्कर ने कहा…

समीर जी, मैं तो यही चाहता हूँ कि आप बस पहले की तरह मदमस्त चलते जाए। और रंजना जी की बात से सहमति जताते हुए यही कहूँगा।

वीर सिपाही कभी थकते नहीं।

संजय बेंगाणी ने कहा…

यह सब आपने लिखा है? यह विषादयोग है या कुछ और? अब पूरे समय वाह वाही तो मिलने से सही, जहाँ उद्यम होगा, आलोचना और नींदा भी होगी. शुक्र मानाएं गालियाँ नहीं खायी. पढ़ना पढ़ाना तो ठीक है मगर लिखना बन्द या कम करना समझ से बाहर है.

HBMedia ने कहा…

aapki bhawnaon ki main bahut kadra karta hoon..

sushant jha ने कहा…

aap aise nahin ham se door nahin ja sakte...aap bade woh hai!

बवाल ने कहा…

Kaun type ke ho aar ?

पंकज बेंगाणी ने कहा…

No Comments

ज़ाकिर हुसैन ने कहा…

आपको हक है आराम करने का. लेकिन ये भी याद रखियेगा कि अब आप पब्लिक प्रोपर्टी हो चुके हैं. इस लिए बहुत जल्दी वापस आइयेगा.

रवि रतलामी ने कहा…

संप्रेषणीय अक्षमता तो मुझमें भी है. कई बार मैं कहना कुछ चाहता हूं, कह कुछ देता हूं और समझ कुछ और लिया जाता है. तो इसमें आहत होने की कोई बात ही नहीं है.

हम ये मान रहे हैं - जैसा कि मैथिली जी ने कहा - कि आप कहीं गए ही नहीं.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

कहां जा रहे हैं मित्र? एक ग्लास पानी पीजिये और वापस आइये। हम जाने की बात करेंगे तो हमें आप बुलाने के लिये होंगे कि नहीं?

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

समीर जी मुझे बस एक कविता जो हम शायद दूसरी तीसरी में पढते थे उसकी कुछ लाईन याद आ रही हैं जिन्‍हें मैं आपके लिए लिख रहा हूं

वीर तुम बढे चलो
धीर तुम बढे चलो

हाथ में ध्वजा रहे,
बाल - दल सजा रहे ,
ध्वज कभी झुके नहीं ,
दल कभी रुके नहीं

वीर तुम बढे चलो
धीर तुम बढे चलो


सामने पहाड़ हो ,
सिंह की दहाड़ हो ,
तुम निडर हटो नहीं,
तुम निडर डटो वहीं

वीर तुम बढे चलो
धीर तुम बढे चलो

मेघ गरजते रहें
मेघ बरसते रहें
बिजलिलयाँ कड़क उठें
बिजलिलयाँ तड़क उठें

वीर तुम बढे चलो
धीर तुम बढे चलो

प्रात हो कि रात हो
संग हो ना साथ हो
सुर्या से बढे चलो
चंद्र से बढे चलो ।

वीर तुम बढे चलो
धीर तुम बढे चलो

-द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी

डॉ .अनुराग ने कहा…

विश्राम लेना ठीक है ,पर उदास होकर नही.....आप इस चिट्ठाजगत के मील स्तभों में से एक है ....इसलिए आप पर अब जाने अनजाने जिम्मेदारी बन गयी है...आपका हमारे बीच बना रहना हमें हौसला ओर प्रेरणा देता है......उम्मीद है आप एक दो कप चाय पीकर फ़ौरन ताजा होगे......

बेनामी ने कहा…

>>>>Jana kaha hai

Janab aapaka Blog ke prashanshak yahaan hai.

unhe chodakar aap kaise jaa sakate hai.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

aapko kaise bhulenge hum? aur har aadmi ki soch alag hoti hai,kisi ne galat samajh liya to dil pe mat lijiye aur is bhram me na aaiye ki aapka lekhan kamzor ho gaya,bahut shaandar likhte hain aap !

mamta ने कहा…

अरे समीर भाई ये क्या हो गया। अभी तो ४ दिन पहले ही आपने लॉस वेगास से लौटकर लिखा था कि अब आप नियमित रूप से लेखन करेंगे फ़िर अचानक ये क्या ।

समीर भाई ऐसा आप भला कैसे कर सकते है। आपके लेखन और टिप्पणियों से सभी लोगों को कितना हौसला मिलता है ये हम सभी जानते है।

कामोद Kaamod ने कहा…

कुछ थक सा गया हूँ. कुछ दुखी सा भी हूँ मगर खुद से. कुछ जरुरत से ज्यादा ही आप लोगों का सम्मान, स्नेह, लाड़-प्यार पाकर लेखन के मुख्य कार्य से विचलित हो चला हूँ. सही शब्दों में-बिगड़ सा गया हूँ.


समीर जी, चिट्ठा जगत की शान..
क्यूँ हो दुखी परेशान
हमारा प्यार, सम्मान, स्नेह सब आपके साथ है.
लिखते रहिये , गुननाते रहिये, मुस्कराते रहिये.. :)

Manish Kumar ने कहा…

Maine to socha ki November mein jo Jabalpur ka program hai iske liye aap ne ye soochnatmak post dee hai.

Par yahan mazra kuch aur nikla. Aapka kahna sahi hai ki lekhan ke nirantar vikas ke liye padhna bhi behad juroori hai.

Logon ki baat chhodein par agar aapko khud aisa mehsoos o raha hai ki chahkar bhi aap is or samay nahin nikal pa rahe hain to juroor thoda vishram lein aur soch vichar kar donon mein santulan lane ki cheshta karein .

hum sab nischay hi aapki wapasi ka intezaar karenge.

हिंदी ब्लॉगर/Hindi Blogger ने कहा…

निरंतरता भले ही कम कर लें, लेकिन यदि थोड़ी भी गुंजाइश हो तो कृपा कर एकमुश्त अवकाश नहीं लें.

पारुल "पुखराज" ने कहा…

ab paheli kaisey bujhii jaayengi???:( vishraam kar sheeghr lautiye..

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

kahi.n nahi jana hai aap ko.. aise thode na hota hai ki jab man aaya tab aa gaye jab man aaya chal diye, kisi ne aap ko nahi samjha to aap chale jaye.nge, aur kitne log aap ko samajh rahe hai.m unka kya...! ye bina matlab ka joke nahi sunana hame....!

Sameer ji aap ke blog par shayad kabhi kabhi hi aa pati hu.n, utna nahi likh paati nahi bol paati, lekin ye baat ki aap lekhan sthagit kar rahe hai.n... really it was shocking

श्रीकांत पाराशर ने कहा…

Sameerji, aap to dusaron ko protsahit karne wale hain. aap hi har man jayenge to kaise kaam chalega. aap jitni post padhte hain, aapko salam karne ko jee chahta hai. udan tastari ke bina maza nahin aasakta. ek bhai ne likha hai unse main bhi sahmat hun- Hamen chhod kar kahan jayeeyega, jahan.... isliye behtar hai roothna band keejiye, bas aajayeeye phir se.

शायदा ने कहा…

कैसी बातें कर रहे हैं आप, नए ब्‍लॉगर्स की ज़रा भी फि़क्र नहीं....हर दिन बताते रहे कि हिंदी ब्‍लॉंगिंग को आगे लेकर जाना है और अब ख़ुद ही रुकने की बात कर रहे हैं। थोड़ा आराम करें और फिर से आएं, सबको इंतज़ार करता ही पाएंगे।

L.Goswami ने कहा…

समीर जी आपको देखकर हम प्रेरणा लिया करतें हैं ,आप ही जाने की बात करतें हैं.. .तो हमारा क्या होगा? छुट्टी तक ठीक है पर यह निराशा कैसी ? फैसला आपका है पर मेरा अनुरोध है फ़िर से विचार करें.

CG ने कहा…

कृपया अपने निर्णय पर पुनर्विचार करें.

'अगर लोग आपको गालियां दें तो समझ लें आप बड़ा काम कर रहे हैं.'
-- गुरुकांत देसाई

यह मणिरत्नम की गुरु में सुनी, गांठ बांध ली. अब फिक्र नहीं होती.

आपके अगले लेख का बेताबी से इंतज़ार रहेगा.

Atmaram Sharma ने कहा…

समीर जी,

कभी-कभी ऐसा होता है. एकरसता पैदा हो जाती है. मेरी आपसे गुजारिश है कि सम्भव हो तो बाबा नागार्जुन की कविताएँ और हरिशंकर परसाई समग्र को पलट डालिये. आप पायेंगे कि आपके पास बहुत कुछ है कहने को - जिसे यों भी कहा जा सकता है.

सादर
आत्माराम

Unknown ने कहा…

वीर तुम बढ़े चलो,
धीर तुम बढ़े चलो,
सामने पहाड़ हो,
सिंह की दहाड़ हो,
ध्वज कभी झुके नहीं,
पग कभी रुके नहीं,
अमर्त्य मर्त्य वीर हो,
बढ़े चलो, बढ़े चलो...

नीरज गोस्वामी ने कहा…

"सही मायनों में न तो मैं साहित्य का ज्ञाता हूँ और न ही कोई मंझा हुआ लेखक या कवि न ही ब्लॉगलेखन का महारथी. बस, हल्का फुल्का मन बहलावी लेखन. पाठक को मजा आये, मेरे संदेश उन तक पहूँच जायें, किसी को मेरे लिखे से ठेस या तकलीफ न पहुँचें-बस, यही मात्र उद्देश्य रहा मेरे लेखन का."
समीर जी जिस लेखक का ये उद्देश्य ना हो समझिये वो लेखक नहीं व्योपारी है...और आप ने ये एक तरफा घोषणा कैसे कर दी की आप जा रहे हैं? अरे वाह...बिना अपने प्रशकों की मर्जी के आप ऐसे कैसे जा सकते हैं.??? ये थकने और दुखी लगने वाली बातें आप के श्री मुख से शोभा नहीं देतीं...सच बताईये कहीं लॉस वेगास में हुए नुकसान से तो नहीं उपजी है ये पलायन वाली बात????
मजाक छोडिए अभी सितम्बर चल रहा है और प्रथम अप्रैल(अप्रैल फूल वाला) में बहुत महीने पड़े हैं...बिन मौसम का मजाक ठीक नहीं...कल से ही लेखन फ़िर शुरू कीजिये...सफाई में कुछ सुनना नहीं है हमें...
नीरज

कुन्नू सिंह ने कहा…

आप ये क्या कह रहे हैं। कई लोग तो आपकी वजह से ही ब्लाग जगत में टीके हूवें हैं।

आप जो भी लीखते हैं उसे पढने के लीये लोग बेचैन रहते हैं।

और जब ब्लाग महारथी ही ब्लागींग नही करेंगे तो फीर ब्लागींग करने का क्या फायदा।

ईतना बडा साक नही दें।

और फीर आपके साथ हम सब हैं। पूरा ब्लाग जगत है। तो आप हमे अकेले छोड कर कहां नीकल रहें हैं।

पंकज सुबीर ने कहा…

समीर जी मैं भावुक होकर कोई टिप्‍पणी नहीं कर रहा हूं । ये बात सच है कि एक ही रास्‍ते पर चलते चलते कभी कभी ऐसा लगता है कि सब कुछ एक सा होता जा रहा है और कुछ भी मन के अनुरूप नहीं हो रहा है । उस हालत में कुछ परिवर्तन रि लेना ही चाहिये । जहां तक बात ये है कि आपने कहा कि कुछ पढ़ना चाहते हैं तो मैं कहूंगा कि ये सबसे स्‍वागत योग्‍य कदम है और सबसे ज्‍यादा तालियां बजाने वाला मैं ही हूं । दरअस्‍ल में पढ़ने से लिखने की ऊर्जा मिलती है । अभी मैं संस्‍कृति के चार अध्‍याय को पढ़ रहा था यद्यपि मैं उसको लगभग पचासवीं बार पढ़ रहा था पर फिर भी ऐसा लगा कि कुछ नया मिल रहा है । एक उत्‍साह मिलता है कि हां ये एक नयी दुनिया और हे जहां तक तो अभी हम आये ही नहीं थे । और ये बात तो मैं ही जानता हूं कि दिसम्‍बर में आपका काव्‍य संग्रह आना है औ ये भी सच है कि काव्‍य संग्रह आने का मतलब होता है कि आप पर लोगों की निगाहें हैं । शुभकामनायें ।

मैथिली गुप्त ने कहा…

मैं कल आपके ब्लाग पर आऊंगा, कुछ नया पढ़ने के लिये, जैसे कि रोज आता हूं.
और याद रखने वगैरह का झंझट हम क्यों करें
वो तुम्हें याद करें जिनने भुलाया हो कभी
हमने तुमको न भुलाया न कभी याद किया.

लौट के आओगे तो तब जब हमे तुम्हें यहां से जाने देंगे.

Anita kumar ने कहा…

समीर जी यहां से जाना इतना आसां नहीं, ये तो ऐसी लत है जो जिन्दगी भर नहीं छूटती और हमें तो नहीं लगता कि आप के लेखन की गुणवत्ता में कोई कमी आयी है।

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

समीर जी मै आपके जाने के विचारो से कतई सहमत नही हूँ .आप ब्लॉग जगत के प्रमुख स्तम्भ है और हिन्दी ब्लागजगत के नव ब्लागरो के लिए प्रेरणाश्रोत भी है . आप नियमित लेखन कार्य जारी रखे . आपकी पोस्ट रोचक और प्रभावी रहती है जिसे हम सभी पाठक पसंद करते है . हाँ कार्य व्यस्तता के चलते लेखन के लिए समय न मिले वह एक अलग बात है पर आप हमेशा बीच रहे और हमेशा साथ रहेंगे. हाँ इंडिया हमारे बीच कब आ रहे है .

Arvind Mishra ने कहा…

मैंने तो गाने को मना किया था आप तो लिखना छोड़ चलें -बहुत नाइंसाफी है यह .समीर भाई यह ब्लॉग जगत इस समय हिन्दी फिल्मों की एक उस प्रचलित दृश्यावली की प्रतीति कर रहा है जब कोई माफिया सदस्य विवेक जगने पर अपने माफिया टोली को छोड़ना चाहता है -सरदार कहता है अब तक हम सुख दुःख में साथ रहे और अब तुम भला कैसे यहाँ से जा सकते हो ?अब जब हम इस दुश्चक्र में आ ही गए हैं तो फिर निकलना कहाँ ?
आप पुनर्विचार करें ! हम आपका गीत आपके स्वर में सुनेंगे, वादा !

विवेक सिंह ने कहा…

अंकल जी मेरे कारण तो आप छोड कर जाइएगा मत . मुझसे कोई गुस्ताखी हुई हो तो आप जैसे बुजुर्गों से सार्वजनिक रूप से माफी माँगने में मुझे प्रसन्नता ही होगी . मेरी पत्नी भी यही चाहती है कि आप छोड कर न जायें . मैंने तो अभी ऐसे ही ब्लॉगिंग शुरू की थी . अभी मेरे पास खाली समय है, कल नहीं रहेगा . मैं तो रोटेटिंग शिफ्ट में काम करने वाला साधारण कर्मचारी हूँ, थोडा बहुत आगे की पढाई भी करनी पडती है . इसी गैप में थोडा लिखने का शौक चर्राया था . मैं इस साहित्यिक लाइन का जीव नहीं हूँ . कहाँ आप कहाँ मैं . मैं आपका सम्मान करता हूँ . हाँ आपकी कोई अपनी समस्या हो तो कुछ दिनों का विश्राम लेने में बुराई नहीं है .

Kavita Vachaknavee ने कहा…

ग़लत बात है यह.ऐसे भला कोई करता है क्या कि कहीं भी कभी भी कह दिया -- `सबको राम राम राम '.

२-४ दिन मान मनोव्वल का सबने अनुभव बटोर लिया, अब फ़िर से काम पर जुट जाइये समीर भाई.

अगली पोस्ट में घोषणा कर डालिए कि अरे वह तो ऐसे ही तात्कालिक मजाक-भर था.
बहुत हुआ ...

....हैं ....?

डा. अमर कुमार ने कहा…

.

ऎ समीर भाई,
यहाँ तो लिखे पड़े हो..

’ आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है.’और... यह सच भी है, आपको ही नहीं सबको यह हौसला मिलता है । आप तो लेते नहीं , बल्कि उससे ज़्यादा हौसला नवलिक्खाड़ों को देते भी हो । बल्कि बहुतेरे ब्लाग्स पर तो आप ही जाकर उनकी बोहनी करते हो । ज़ाहिर है, कि लोग आपको अपने कितना निकट पाते हैं, यह आप नहीं अंदाज़ पाओगे...
बिना समीर भाई की टिप्पणी देखे पेट ही न भरता , किसी का तो ?अब ऎसा भारी भरकम हौसला देने वाला ... ’ अब तुम्हारे हवाले ब्लागिंग साथियों.. ’ गाते हुये टहल ले, तो यहाँ पर ब्लागिंग के फ़िदाइन हाराकिरी क्यों न कर लें ?
बस, इतना बताते जाओ, हम बचे खुचे बेशर्मों को... फिर जहाँ मर्ज़ी हो जाओ, हम न रोकेंगे । अरे सोचो जरा.. कनाडा में रहने वाला मेगा साइज़ आदमीइंगलिश व फ़्रेंच के सहारे अपना काम चलाने वाला.. यदि अपनी हिंदी मे लिखने जैसा सिरफिरा काम कर रहा हो, तो किसको प्रेरणा न मिलेगी ?समीर लाल भले चले जायें, पर.. हमारी प्रेरणा यहाँ से ले जाने वाले कौन होते हैं ?यह उड़न तश्तरी तो.. अब हम चिरकुटों की धरोहर है । अपनी तो अब आप जानो ! अरे थोड़ा बहुत दुःखी हो लेयो, वह तो हम जब भी ब्लागर पर आते हैं.. तभी होते हैं । फिर.. आँसू पोंछ पाँछ टिप्पणी - पोस्टिंग करते हैं कि नहीं ?कुछ पाना है.. कुछ कर दिखाना है का ज़ज़्बा ऎसे ही थोड़े निभता है ?मोडरेशन हो गया .. आप परेशान, टिप्पणी का अनर्थ कर दिया .. आप हलाकान !मोडरेशन से मुझे भी तकलीफ़ हुआ करती है, लगता है कि गरदन में हाथ देकर निकाल दिया गया हूँ ।मैं ई-स्वामी से भिड़ चुका हूँ कि हे, 35 ब्लागर कुलश्रे्ष्ठ , यह समझा दे कि ब्लागिंग का सर्वोच्च आकर्षण है स्वतंत्रता ! यह इस आभिजात्य टोटके से अपमानित होती है कि नहीं ? न वो माने और न हम माने ।अब देख ही रहे हो कि, किस बेशर्मी से टिका हुआ हूँ । अब आपकी बात है, सो सार्वजनिक किये दे रहा हूँ, वरना अपुन तो हलाहल पीने वालों में से हैं ।
आपका टिप्पणी बक्सा काँखने लगा है, सो जाते जाते कहे जा रहा हूँ, कि कल शाम को आपकी एक पोस्ट ( भले ही.. रिठेल हो ) दिखनी चाहिये, एक नवी हँसती फोटो के साथ, वरना ..
वरना इस प्यारी सी जानमारू फोटो की कसम !

सागर नाहर ने कहा…

ये बात बिल्कुल गलत है भाई साहब.. कुछ चीजों पर सिर्फ मेरा कॉपी राइट है, आप बिना मुझसे अनुमति लिये उसका उपयोग ऐसे नहीं कर सकते।
जब कभी मैं भागने की बात करता था, आप अनूपजी और वरिष्ठ चिट्ठाकार मित्र रोक लेते थे और आज आप...?
बिल्कुल कहीं नहीं जायेंगे आप, छोटे भाई का आदेश है, आप नियमित लिखेंगे और लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देंगे।
लोगों का काम है कहना...

बेनामी ने कहा…

अरे सब नाटक है, उड़नतश्तरी कहीं नहीं जा सकती, सब झूठ है. मैं इस बात विश्वास नहीं करता. आप लोग क्यों कर रहे हैं. अभी देखियेगा कल ही आपके ब्लॉग पर समीर लाल की टिपण्णी होगी.
मेरे पर नहीं हो तो भी चलेगा, पर आप आप नहीं बाप हो.
यहाँ पर जाने का नहीं हो रहा है.

सचिन मिश्रा ने कहा…

Ruk jao sir ji, nahi to protsahit koun kariga.

Abhishek Ojha ने कहा…

लोगों ने तो सलाह दे ही दी है. पर हम जैसे जो सीखने के लिए आपकी कर पोस्ट का इंतज़ार करते हैं... उनका क्या होगा?
हम जैसे जिनके ब्लॉग आपकी टिपण्णी के टुकडो पर पलते हैं... !
किसी को अन्यथा लगा हो तो माफ़ी माँगने तक ठीक पर ऐसे कैसे मैदान छोड़कर चले जाइयेगा ! इंतज़ार रहेगा अगली पोस्ट का.

Ashok Pandey ने कहा…

नहीं, समीर भाई। विदा लेने की बात आप नहीं कहिए। आप की मौजूदगी के बिना हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की कल्‍पना करना कष्‍टदायक है। आशा है आप हमें निराश नहीं करेंगे। सादर।

Jitendra Chaudhary ने कहा…

थक गए हो? चलो कोई बात नही,तुम वापस लिखना चालू करो, तब तक हम तुम्हारे लिए एक झकास स्क्रूड्राइवर बनाकर लाते है। ओके?

Sanjeet Tripathi ने कहा…

ऐ साहेब, यार आप ऐसे मूड में अच्छे नई लगते, मान जाओ।

आपको ऐसे कैसे जाने देंगे हजूर हम।
धमकी दे रहा हूं दो दिन के अंदर ताज़ी पोस्ट नई दिखी आपकी तो सोच लेना बॉस,
आवारा से पंगा नई लेने का हां
;)

Sarvesh ने कहा…

समीर जी,
आप बिल्कुल काबिले तारिफ़ काम कर रहे थे। मैं देखा हुं कि आप छोटे से छोटे ब्लाग्स और उसके लेखन पर टिप्पणी देते रहते थे। नि:संदेह आपका ये सार्थक प्रयास कितने चिट्ठाकारों को उत्साहित करता होगा। मैं कुछ बहुत अच्छा अच्छा ब्लाग (लेखनी) भी पढा हुं । लेकिन टिप्पणी के नाम पर अकेले उड़न तस्तरी जी टिमटिमाते नजार आते हैं। आप बिल्कुल दुर ना जायें। यही रहें और चिठाकारों को प्रोत्साहित करते रहिये। आप तो खुद गजमान शरिर लिये हुए हैं इसलिये ये सोच कर मस्त रहिय कि हाथी चले बजार.............
धन्यवाद
सर्वेश कुमार उपाध्याय
बंगलोर

बेनामी ने कहा…

आपने मन दुखा दिया। शायद उन लोगों ने भी आपका मन दुखाया होगा जिसके कारण आपने इतना बड़ा फैसला लिया, आपको बहाना बनाना भी नही आता। कैसे आपने कह दिया कि "थक गये अब लिखा नही जाता, लिखने नही आता"…

लिखना तो उन्हें नही आता होगा जिन्होंने ये बात कही होगी।

संकीर्ण सोच रखने वालों से क्या घबराना … वो एक बात कहें या दस बात … उनकी कोई बात दिल को नही भाती।

उनके कारण आप ये बंधन छुड़ा कर जा रहे हैं जिसे आपने ही तैयार किया है…

गुजारिश है आपसे कि आप दृढ़ रहिये हमेशा की तरह्…

आप ही से हम सब है…………

त्रिभुवन ने कहा…

समीर जी,
आपको मेरा प्रणाम
मै तो बङा अभागा निकला…………………आज पहली बार
आपको मैने पढा वो भी इस तरह।मेरा तो अस्तित्व ही इस ब्लोगवाणी पर आप और मनीष जी की वजह से है। आप मेरे लिये गुरू समान हैं और एक गुरू जब अपने शिष्यों को छोङ्कर चलें जातें हैं तो उनसे बढ्कर अभागा इस संसार मे कोई नही होता।तो मेरा आपसे निवेदन है की अपने गुरू ज्ञान की छाया हमपर बनाये रखें।

वीनस केसरी ने कहा…

समीर जी नमस्कार
आपने जो निर्णय लिया सोंच विचार कर लिया
मगर हम एक बात जानते है यदि हम लोगों की चाहत सच्ची है तो वो आपको कहीं जाने नही देगी
आप सुस्ताइये फ़िर आपको ख़ुद महसूस होगा की लिखना आपकी जिंदगी बन चुका है और मै तो ये बात जनता हूँ की
जिस तरह जेम्स बोंड के किरदार को रचने वाले लेखक ने एक बार अपने किरदार से जल भुन कर अपनी कहानी में मार डाला मगर लोगों की इतनी तीखी प्रतिक्रिया मिली की उसको अगली कहानी में जेम्स बोंड को फ़िर से जीवित करना पड़ा

उसी तरह आपके इस लेख को इतनी टिप्पडी मिलेगी की आपका पिछला सारा रिकॉर्ड टूट जाएगा
ये अपनापन नही है तो क्या है आपके कहने पर ही मैंने विगत दो दिनों में कम से कम ५० टिप्पडी की हर सिक्के के दो पहलू होते है
अब इसी पोस्ट पर अगर कोई कहे
"" ये सब तो टिप्पडी पाने के चोचले है ""
तो ज़रा कोई उनसे जा कर पूछे महोदय ये बताने का कष्ट करो जिस आदमी के पास छप्पन भोग होगा वो भूखा क्यों रहेगा आपको प्यार दुलार मिला वो इसलिए क्योकि आपने दूसरों को प्यार दिया
यूँ ही अपना प्यार लोगों पर बरसाते रहिये लोगों का प्यार पाते रहिते

आपका वीनस केसरी

Mrinal ने कहा…

हमारे जैसे सैकड़ों लोग हैं जो देर रात तक ब्लॉग के आकाश में उड़न तश्तरी को देखते रहते हैं. पिछले साल भर से तो मैं ही आपको रोज पढ़ती हूं. कम अज कम एक बार तो आपके ब्लॉग की ओर रुख करती ही हूं. और आप जैसे ब्लॉगर अगर इस तरह की बात करेंगे तो कैसे चलेगा ? मानती हूं कि हमारे जैसे पाठक आपकी उड़न तश्तरी के दरवाजे पर बिना दस्तक दिए, बिना शोरगुल मचाए चले जाते हैं लेकिन इसका मतलब आपने कैसे निकाल लिया कि प्रतिक्रिया नहीं आना नकारातमकता की निशानी है ? हमें आपका इंतजार रहेगा. कल फिर उड़न तश्तरी पर आउंगी, एक नई इबारत की तलाश में. निराश नहीं करेंगे न ?

राज भाटिय़ा ने कहा…

समीर जी भाई क्या बात करते हे, क्यो इतना उदास हो गये, अरे आप तो कभी बडे बन कर बच्चो को प्यार की झपकी देते हो त कभी नटखट बन कर बच्चो सी मुस्कान बाटंते हॊ.... कोर किसी एक या दो की बाते से बुरा मान गये.... छोडो..... अजी हमे तो लोगो ने यहां विदेशी भी कह दिया, ओर हमारी मां बहन को भी गाली दे दी, हम फ़िर भी डटॆ हे, आप एक दो गलत लोगो के कारण सब का दिल तोड कर केसे जायेगे भाई, क्या आप को वो एक दो ज्यादा प्यारे लगते हे, जिन्होने गलत किया, या यह इतनी लम्बी लाईन् प्यारी हे अजी इतने सारे दिल मत तोडो भाई, जल्दी से एक नयी पोस्ट लिख डालो , भाई मे तो आप से उम्र मे भी बडा हु, मान जाओ अपने बडे भाई की बात..
नवम्बर मे तो मिल ही रहे हे... तब तक तो लिखो.... फ़िर यहां आप को आगे के लिये भी मना ले गे.....
तो कल शाम को मे आप की नयी पोस्ट की इन्तजार करुगां मान जाओ भाई मेने इतनी मिन्न्त तो आप की भाभी की भी नही की.. आप अच्छो को देखो .... उन्हे मत देखो ... जिन्होने ..
कल की पोस्ट की इन्तजार मे
धन्यवाद

Tarun ने कहा…

सरजी, आप कहाँ जा रहे हैं देखो तो कितनी टिप्पणी पड़ चुकी हैं अभी तक। जाना तो हम लोगों को चाहिये जिन्हें कोई पढ़ने नही आता। हमने कहा हम जा रहे हैं मुश्किल से १०-१२ लोगों ने कहा ना जा बाकियों ने कुछ ना कह के जता दिया, अरे जाओ कौन सा यहाँ तीर मार रहे थे।

आपको तो सभी कह रहे हैं ना जाओ, इसलिये मान जाओ और लौट आओ या कहीं चिट्ठाचर्चा Takeover करने का मन तो नही बना लिये।

अगर फिर भी नही लिखने का मन है तो हम आपको मेल से लिखकर भेज दिया करेंगे, आप पोस्ट कर देना इसी बहाने टिप्पणी सुख हमें भी मिल जायेगा। बोलिये Deal No Deal

vineeta ने कहा…

कमाल करते हो आप समीर भाई. ऐसे कोई विराम लेता है भला. आप वो सिपाही हो जिसे आराम तो मिल सकता है पर विराम नही . थक गये हैं तो थोड़ा आराम कर लीजिये और फ़िर ताज़ा हवा के झोंके की तरह वापस आकर सबको तारो ताज़ा कर दीजिये. हम चिरकुटों को पहली टिप्पणी देने वाले समीर भाई कभी नही जा सकते.
आपकी छोटी बहन तो बस यही कह सकती है..... समीर हवा का जोंक, अभी गया तो अभी लौट के आएगा....

betuki@bloger.com ने कहा…

आप लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.
ऐसा ही सब चाहते हैं.
कृप्या दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें.
हिन्दी चिट्ठाकारी को सुदृण बनाने एवं उसके प्रसार-प्रचार के लिए यह कदम अति महत्वपूर्ण है, इसमें अपना भरसक योगदान करें.

आपके लिखे इस निवेदन में मेरी नजर में कोई ऐसी बात नहीं जो किसी को बुरी लगे। औरों का तो मुझे पता नहीं पर अपनी बात इतनी जानता हूं कि मैंने जब पहली बार इस चिट्ठाजगत में कदम रखा तो आपकी टिप्पणी पाकर बेहद खुशी हुई। उसके बाद निरंतर आपकी टिप्पणी आती है तो मन को प्रसन्नता होती है। आपका जब निवेदन प्राप्त हुआ तो मुझे अपनी गलती का अहसास भी हुआ। मैं ब्लाग पढता तो था पर टिप्पणी नहीं करता था। ऐसे में और लोगों से क्या उम्मीद करता कि वो मेरे लिखे पर टिप्पणी करें। आपने जो फैसला किया है उसे वापस ले लें तो बेहतर है। आपको पढ़ने का अलग ही मजा है। आपको ही क्या हर ब्लाग को पढ़ने का अपना अपना मजा है। एक बार फिर इस अनुरोध के साथ कि
न जइयो छोड़ के ब्लाग।

वर्षा ने कहा…

आपने तो चौंका दिया

बेनामी ने कहा…

Bhai shaahab namskar
mai bhee aap kee baat se shamat hoon. aur lekhan ke saath-saath adhyayn bhee kar raha hoon. aap ko jaldi hee vaapas likhte hue dekhunga yisee ummeed hai.

बेनामी ने कहा…

aap likhten rahen .

बेनामी ने कहा…

जाओजी जाओ और आपको ढूंडना तो हमारा ही काम है ना

Satyendra Prasad Srivastava ने कहा…

आराम कर लीजिए। दस दिन-बीस दिन-एक महीना। हम सबकी तरफ़ से छुट्टी मंजूर हो जाएगी लेकिन कभी अलविदा ना कहना। ऐसे नहीं जाने देंगे।

अनुनाद सिंह ने कहा…

वह, जिसके दिल में हिन्दीको आगे बढ़ाने की ज्वाला धधक रही हो, इतनी सरलता से हिन्दी के रास्ते से कैसे हट जायेगा? समीर जी, हिन्दी को यों छोड़कर आप आराम नहीं कर सकते।

विक्रांत बेशर्मा ने कहा…

समीर जी ,
मुझे आपकी टिपण्णी में कोई ऐसी बात नही लगी जो किसी को बुरी लगे ....हम सब लोग यहाँ एक ही मकसद से यहाँ हैं ..हिन्दी को जन जन तक पंहुचाना...अगर आप ही रुक गए तो हम सब कैसे चल पाएंगे !!!!!!!!

Gyan Darpan ने कहा…

आपके बिना तो चिठाजगत ही अधुरा लगेगा

संजीव कुमार सिन्‍हा ने कहा…

चिट्ठाजगत के प्रकाशस्‍तंभ है आप, जिसकी रौशनी में हम आगे बढ पाते है।
अध्‍ययन अवकाश के लिए शुभकामना।
आप जल्‍द ही चिट्ठाजगत में हम सबके हौसला को बढाने के लिए हाजिर होंगे- ऐसा विश्‍वास।

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

बड़े भाई,
आप सन्यास लेने का फैसला कैसे ले सकते हैं? मुझे तो इस बात पर विश्वास ही नहीं है कि समीरजी ऐसी गैर जिम्मेदारी से उन असंख्य नवागन्तुक चिठेरों को निराश करके चलते बनेंगे। हिन्दी ब्लॉग जगत के बिरवे को खाद-पानी देकर बड़ा करने का काम अभी तो शुरू हुआ है। तो इस उपवन का सबसे दक्ष माली सेवा निवृत्त कैसे हो सकता है?

किसी बात से मन निराश हो तो थोड़ा हवा बदल कर लेना चाहिए। आप अपनी भारत यात्रा थोड़ा जल्दी प्लान कर लें। सब ठीक हो जाएगा।

श्रद्धा जैन ने कहा…

mujhe nahi pata ki kya karan hai lekin hawaon main aisa hi mahol chal raha hai
thakan ka hona ub jana aur khud ko parakhte samay khud ko kahi na pana shayad yahi hum chintansheel insaan ki pareshani hai

lekhan band karne ki partigya nahi le
kyuki ye fir ghutan dega aapko
bus jab lage ki kalam khud ba khud chal padhi hai use likh le

zayda likhne ki koshish main kayi baar hum wo nahi kahe paate jo kahna hai aur khud ko palat kar padhte waqt khud main kami nazar aati hai

mujhe khushi hai apne hi jaise ek aur insaan se mil kar
jo itni bhaagti duniya main khud ko padh raha hai parakh raha hai

nahi to dusron ko parakhne se kaha kisi ko waqt milta hai

mousam badalta hai to ye bhi nahi rahega hamesha ke liye
aap fir se kalam utha kar fir se hanste hue josh ke saath loutoge

mujhe khud ke aur aapke loutne ka intezaar rahega


aapki is post ko padh kar laga ki jaise kisi ne meri pichhle kuch mahino ki mano sthithi likh di ho

aabhari hoon

बेनामी ने कहा…

तश्तरी जी, वापिस आ जाइए,
आप के बिना हर चिट्ठाकार विधवा है.
एक-दो लोगों की गलतियों की सज़ा आप पूरे चिट्ठा समुदाय को हरगिज़ नहीं दे सकते.
आप ने कभी भी मेरे ब्लॉग पर टिपण्णी नहीं की. मुझे नहीं चाहिए थी, मेरा मतलब है मेरा सौभाग्य कहाँ कि आप की टिपण्णी पाऊँ ?
आप को पता है, मैंने लगभग 50 ब्लॉग बनाए और एकदम धुंआधार तरीके से लिखने वाला ही था कि आप ने जाने की बात कर दी.
1. अपने तकनीकी लेखों के द्वारा श्रीश जी की बराबरी करने का सपना है मेरा.
2. अभी फुरसतिया जी को नया-नया चाचा बनाया है, नए रिश्ते सबसे बना रहा हूँ.
भाटिया जी, लवली जी, रक्षंदा जी, ज्ञानदत्त जी मेरी लिस्ट में जुड़ने ही वाले हैं.
3. शास्त्री जी का चेला बन रहा हूँ.
4. इन सारी नारी (यों) और चोखेर बालियों से हिसाब चुकता करना था, मैंने कमर कस लिया था. एक एक का जीना दूभर कर देने का इरादा है मेरा, इन नर-विरोधी प्राणियों को मैं सामाजिक प्राणी बना देता.
आप अगर दो दिन रुक जाते तो एक नए योद्धा के दर्शन कर पाते. योद्धा कौन ?
अरे मैं, महाराज मैं ई-गुरु राजीव.
आप भी न एकदम्मै मोटी बुद्धि वाले हैं.
आप आ जाइए, नहीं तो मैं हिन्दी में ब्लॉग लिखना बंद कर दूँगा.
आप एक भीषण योद्धा की तलवार ( लेखनी ) छीन रहे हैं और कुछ नहीं.
अब जब तक आप की टिपण्णी के दर्शन मैं अपने ब्लॉग पर नहीं कर लूँगा,
महादेव की सौगंध मैं एक शब्द भी नहीं लिखूंगा.

Dr. Chandra Kumar Jain ने कहा…

आप हमारी भावना के सम्मान में
फिर दौड़े चले आयेंगे,
ये हमें मालूम है.
=============
चन्द्रकुमार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ये क्या, इस तरह का निर्णय आप कैसे ले सकते हैं। समीरजी एक मुकाम पर पहुंच कर इंसान फ़िर सिर्फ़ खुद का नहीं रह जाता। किसी ने कुछ कह दिया और आप दिल से लगा बैठे। मेरी तरफ़ ध्यान देंगे, शास्त्रीजी के एक लेख पर मैने एक टिप्पणी क्या कर दी, एक भले/भली ने मेरे नाम को ही अपशब्द बना दिया। जब की मेरा पक्का विश्वास है कि अगले ने बिना कुछ समझे अपनी भडास निकाली है। इस तरह तो मुझे भाग जाना चाहिए।
मेरी गुजारिश है कि आप कहीं नहीं जायेंगे। आप जैसे लोग डगमगाने लग जायेंगे तब तो हो चुका।

कुन्नू सिंह ने कहा…

उडन तश्तरी जी,
अब आप लौट आईये, अब ईतने लोगों का वीशवास है।
अब तो आपको आना ही होगा क्यो की अब बहूत सारे लोगो का वीशवास है की आप आऎंगे और कल परसो से लीखना भी चालू कर देंगे।

विशवास मत तोडीयेगा।

Bhawna Kukreti ने कहा…

mera beta rudra beete dino kadi dhoop me bahar bhagna chah raha tha .maine use pakda par voh nahin man raha tha to maine use paijaami pahnaae ki kosish ki . voh uske liye bhi tayaar nahin hua.krodh to mujhey us pal bahut aaya , phir maine use jaane diya.
jab kuch door jaa kar uske pair jalne lage to vah meri or dekh katar swar me rone laga , mamta ki maari main use utha kar laayi aur puchkaara , paijaami pahnaai aur chaaya waale hisse me use utha kar baitha diya .us chan jis smit ke saath usne mujhey dekha wah pal avismarniya hai.
ab jab bhi use baahar aangan me jaana hota hai to wah ek baar meri or jaroor dekhta haai . aap bhi hum sabhi "rudron" ke liye "mamta ki chanv " hain . isliye mujhey yakeen hai ki aap "chottan ke utpaat" par itana bada nirnay nahin lenge .haan yadi sach me thoda vishraam chahte hain to jaroor karein aur ekdam tarotaza ho kar tezi ke saath blog par chaakaar lagaiye .aapko dekhne me aanad milega . And dil se "Sir jiiiiiiiii tussi naa jao."

Asha Joglekar ने कहा…

sameer bhaee aapse ye ummeed na thee are kahane wale kehate hi rehate hai. Aap likate rahiye padhte rahiye rahiye likhne padh ne se dil bahal jate hain. warna aapke mitron ka kya hoga ?

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

ये दुनिया बहुत छोटी है समीर जी, किसी न किसी मोड पर तो मुलाकात होगी।

RADHIKA ने कहा…

Aap pls likhte rahiye ,Hame Aapke margdarshan ki bahut jarurat hain.

Shastri JC Philip ने कहा…

आप तो वापस आ जायेंगे, लेकिन इस बीच जरा रजिया का पता बता देंगे क्या!! घर में और कोई बुजुर्ग है क्या अभी??



-- शास्त्री जे सी फिलिप

-- हिन्दी चिट्ठा संसार को अंतर्जाल पर एक बडी शक्ति बनाने के लिये हरेक के सहयोग की जरूरत है. आईये, आज कम से कम दस चिट्ठों पर टिप्पणी देकर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)

बेनामी ने कहा…

ज़्यादा नहीं कहूंगा, गुलज़ार सहब की एक पंक्ति है -- है इंतज़ार के आँखों से कोई बात चले....

निशा ने कहा…

aap ki baat sahi hai sameer ji mai koshish karungi ki jisko padhun use apni pratikriya de sakun

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' ने कहा…

97 मनुहार... अगली तीन मैं कर रहा हूं... लौटिये गुरुदेव और मेरी नई पोस्टों पर जल्दी टिप्पणी करिये---
अच्छा लगा पढ़कर...

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

श्रीमान आपका चिठ्ठा पढने मैं बहुत आनंद आता है
आपको मेरे ब्लॉग पर आमंत्रण है

बेनामी ने कहा…

Aap ne bahut hi achchha likha hai
Ekdam saral sabdo me apni bat kahne ki jo kala aap ko aati hai, vah kahi aur dekhne ko nahi milti....
Mujhe aap ke sujhavo ka intjar rahega..
http://www.dev-poetry.blogspot.com/

बेनामी ने कहा…

Cracking article.