किसी ने कहा है कि अगर ससम्मान जीवन जीना है तो वक्त के साथ कदमताल कर के चलो अर्थात जो प्रचलन में है, उसे अपनाओ वरना पिछड़ जाओगे. अब पार्ट टाईम कवि हैं, तो उसी क्षेत्र में छिद्रान्वेषण प्रारंभ किया. ज्ञात हुआ कि वर्तमान प्रचलन के अनुसार, बड़ा साहित्यकार बनना है तो दूर दराज के विदेशी कवियों की रचनाऐं ठेलो.
पोलिश कवियत्री, रुमानिया का कवि, उजबेकिस्तान का शायर, फ्रेन्च रचनाकार, और साथ में इटेलियन चित्रकार की चित्रकारी ससाभार उसी चित्रकार के, जैसे कि उसे व्यक्तिगत जानते हों. वैसे, बात जितनी सरल लग रही है, उतनी है नहीं. मन में कई संशय उठते हैं. अतः मैने अपने मित्र को किसी के द्वारा प्रेषित एक बड़े साहित्यकार द्वारा छापी एक विदेशी कवि की रचना मय चित्र भेज कर उसके विचार जानने चाहे. त्वरित टिप्पणी में उसे हमसे भी ज्यादा महारथ हासिल है. तुरंत जबाब आ गया. कहते हैं कि कविता तो खैर जैसी भी हो, विदेशी होते हुए भी हिन्दी पर पकड़ सराहनीय है.
मैं माथा पकड़ कर बैठ गया. लेकिन फिर सोचता हूँ कि इसमें उसकी क्या गल्ती है. अव्वल तो ऐसी कविताओं के साथ लिखा ही नहीं होता कि यह अनुवाद है या भावानुवाद या किसने किया है और अगर गल्ती से लिख भी दें तो कहीं कोने कचरे में हल्के से और कवि का नाम और उनका देश बोल्ड में.
मगर फैशन है तो है. सब लगे हैं तो हम क्यूँ पीछे रहें. शायद इसी रास्ते कुछ मुकाम हासिल हो.
मूल चिन्ता यह नहीं की कैसे करें? मूल चिन्ता है कि किसकी कविता का अनुवाद करें? वो बेहतरीन रचना मिले कहाँ से, जो हिन्दी में भी बेहतरीनीयत कायम रख सके? घोर चिन्तन और संकट की इस बेला में हमें याद आया हमारा पुराना संकट मोचन मित्र. उसकी दखल हर क्षेत्र में विशेषज्ञ वाली है और इसी के चलते कालेज के जमाने में उसे संकट मोचन की उपाधि से अलंकृत किया गया था हम मित्रों के द्वारा. संकट कैसा भी हो, उन्हें पता लगने की देर है और वो उसे मोचने चले आयेंगे. अतः हमने खबर कि संकट की घड़ी है, चले आओ और वो हाजिर.
विषय वस्तु समझने, सुनने और अनेकों उदाहरण जो मैने प्रस्तुत किये, देखने के बाद पूरी अथॉरटी से बोले: ’यार, तुम भी तो कविता लिखते हो? एकाध गद्यात्मक कविता निकालो अपनी डायरी से.’ हमने धीरे से अपनी एक कविता बढ़ा दी. एक नजर देखकर बोले, हाँ, यह चल जायेगी क्यूँकि कुछ खास समझ नहीं आ रही कि तुम कहना क्या चाह रहे हो!!’
फिर उन्होंने इन्टरनेट का रुख किया और गुगल सर्च मारी: ’स्विडन के फेमस लोग’. सर्च के जबाब में ओलिन सरनेम चार पाँच बार दिखा, नोट कर लिया. दूसरा सरनेम दो बार दिखा तो वहाँ से फर्स्ट नेम ’पीटर’ निकाल लाये और शीर्षक तैयार ’स्विडन के प्रख्यात जनकवि पीटर ओलिन की कविता’. मेरा तो नहीं मगर इस संकट मोचनवा का दावा है कि बहुतेरे लोग इसी तरह चिपका रहे हैं अपनी रचनाऐं विदेशी नाम से और चल निकले हैं.
आगे के लिए भी सलाह दी है कि अगर कविता तैयार न हो तो किसी भी जगह से ८-१० लाईन का अच्छा गद्य उठा कर कौमा फुलस्टाप की जगह बदलो. शब्दों की प्लेसिंग बदलो, थोड़ा कविता टाईप शेप देकर ठेल दो, तुम तो कवि हो, इतना तो समझते ही हो. एक विदेशी नाम मय देश के चेपों और बस, चल निकलोगे गुरु.
संकट मोचन तो हमारा संकट मोच चले गये, कहीं और मोचने और हम चेंप रहे हैं:
’स्विडन के प्रख्यात जनकवि पीटर ओलिन की कविता’
घुटन
सुबह सुबह
स्वच्छ, साफ सुथरा
वातावरण
शीतल शुद्ध
मंद बयार
पर झूमती हुई
पक्षियों की चहचहाहट
हरे भरे वृक्ष
मेरा मन
मोहित कर लेते हैं
जब मैं
टहलने निकलता हूँ ...
प्रफुल्ल मना
वहीं पार्क की
कोने वाली बेन्च पर-
सुस्ताने की खातिर
बैठ कर
खोलता हूँ
अखबार का पन्ना
और
मन घुटन से भर जाता है!
भावानुवाद: समीर लाल ’समीर’
(चित्र साभार: इटालियन चित्रकार एन्टोनी डी पॉम्पा, उनका बहुत आभार)
नोट: महज हास्य विनोद वश पोस्ट है. कोई आहत न हो और अपनी आदतानुसार जारी रहें. इस रचना का उद्देश्य उन्हें रोकना नहीं, वरना उसी अखाड़े में अपना हाथ आजमाना है.
बुधवार, जुलाई 30, 2008
ये सॉलिड तरीका हाथ लगा!!!
लेबल:
कविता,
नव-कविता,
व्यंग्य,
हास्य-विनोद,
hasya,
hindi laughter,
hindi poem,
hindi satire,
kavita,
poem,
vyangya
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
78 टिप्पणियां:
इस बहस में नहीं पडना चाहता,पर इस नितांत मौलिक व्यंग्य के लिए बधाई.
भाई साहब,
आपने कविता तो हमसे ले ली मगर हमारे नाम का रूपांतरण भी कर दिया. खैर कुछ देखा तो अनदेखा करना पड़ता है न. इसलिये इसे भी आपकी ही रचना मान लेते हैं. अगली बार नाम चाहिये तो बता देना, कोई नया ईज़ाद कर देंगें
वाह विदेशी कवि ठेलन पर १० में से १०० अंक!
वैसे इस क्षेत्र में शिव कुमार मिश्र/बालकिशन न जाने कहां कहां के और कितने ही कवियों को जन्म दे चुके हैं। :-)
आपका इशारा हो तो हम भी कुछ हाथ आजमायें। घाना, ग्वातेमाला, बुरुण्डी ... कहीं के भी! चाहें तो ईदी अमीन की कालजयी रचना भी ठेल दें!
हास्य व्यंग्य के लिये इतना सालिड मैटेरियल काहे को बर्बाद किया जी।
मंगलवार को जन्मदिन की पार्टी कैसी रही?शुभकामनायें, देर से ही सही.
पता लगा है कि आपकी कविता चीनी भाषा में अनुवादित होकर एक चीनी पत्रिका में छपीं है!
इतनी प्रगतिशीलता कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद. इतना तो पता चला की ये जनकवि जी स्टाकहोम में रहते है लेकिन कविता के अलावा और क्या क्या करते है, अमेज़न.कॉम पर भी दिख रहे थे, किसी पुस्तक पर अपना ज्ञान बाटते हुए (http://www.amazon.com/gp/pdp/profile/AG9UXD6ZO9J44).
मार ही डालोगे मिया.... ऐसा रपेटा है की अमिताभ और स्मिता पाटिल की आज रपट जाए... याद आ गई
:-) :-)
सूरज आता है.
फिर आता है
फिर आता है
रोज आता है
आता है
फिर आता है
फिर चला जाता है
चला जाता है
चला जाता है
फिर रात आती है
रात आती है है
फिर आती है
धूप रात,चिड़िया
पानी हवा
रात बारात
हवा आंधी
ये स्वीडिश कवि पोलियांस्का चावूस्की की कविता है। भावानुवाद आलोक पुराणिक
"अगर कविता तैयार न हो तो किसी भी जगह से ८-१० लाईन का अच्छा गद्य उठा कर कौमा फुलस्टाप की जगह बदलो. शब्दों की प्लेसिंग बदलो, थोड़ा कविता टाईप शेप देकर ठेल दो, तुम तो कवि हो, इतना तो समझते ही हो. एक विदेशी नाम मय देश के चेपों और बस, चल निकलोगे गुरु."
समीर जी आज आपने पोस्ट में उपरोक्त विचार व्यक्त किए है जिसे पढ़कर एक नही हजारो कवि बन जायेंगे . आज आपने एक खासा नुक्ता दिया है कवि बनने के लिए . आज ही से मै पुर्तगाली भाषा और अन्य विदेशी भाषाओ का हिन्दी रूपांतर कर ब्लॉग में ठेलने की पुरजोर कोशिश करूँगा . विश्व की २० भाषाओ का रूपांतर अब गूगल के माध्यम से सम्भव है . और उन भाषाओ को हिन्दी में ट्रांसलेट करने में मुझे महारत हासिल हो गई है . नुक्ता की जरुरत थी सो आपने आज पूरी कर दी . आभार धन्यवाद. शुक्रिया .....अब मै जरुर कवि बन जाऊंगा हा हा हा
सुस्ताने की खातिर
बैठ कर
खोलता हूँ
अखबार का पन्ना
और
मन घुटन से भर जाता है!
हमें एक अच्छी कविता पढने को मिल गई ...आपके इस आखडे में हाथ अजमाने से .:)..लगे रहे
कविता तो वाकई बहुत कुछ कह गई - घुटन के अवसाद पर !
हमेँ तो वही पसँद आता है जो सीधा दिलसे निकले ..बेशक कुछ वर्तनी की गलतियाँ भले होँ -
प्रयास तो सही है - आप हमेशा बढिया लिखते हैँ --
और वरतनी की गलतियाँ आप नहीँ ना करते ...
हमीँ करते रहेँ हैँ ;-) ...LOL
पर बात दिल से लिख देते हैँ
और हाँ साल गिरह का केक कहाँ है ? हेप्पी बर्थडे जी ...
बहुत बहुत बधाई - स्नेह
- लावण्या
aapka ye lekhan bahut pasand aaya..
ये बहस का नहीं, हंसने का मुद्दा है। वाह क्या खूब लिखा है। बढ़िया है...? खूब चुटकी ली है आपने। इस नए अंदाज में भी आपका स्वागत है। दूसरी कब?
आगे के लिए भी सलाह दी है कि अगर कविता तैयार न हो तो किसी भी जगह से ८-१० लाईन का अच्छा गद्य उठा कर कौमा फुलस्टाप की जगह बदलो. शब्दों की प्लेसिंग बदलो, थोड़ा कविता टाईप शेप देकर ठेल दो, तुम तो कवि हो, इतना तो समझते ही हो. एक विदेशी नाम मय देश के चेपों और बस, चल निकलोगे गुरु.
""हा हा हा बहुत अच्छा लेख है, पर उपर लिखी ये पंक्तियाँ तो पढ़ने वालों के लिए दोहरा काम कर गयी हैं, अब ये व्यंग है ऐसे कवियों पर जो ऐसा करतें हैं या, फ़िर एक नया तरीका है कविता लिखने का" पर जो भी है आपके लिखने का एक अलग अंदाज हमेशा की तरह बहुत प्रभावी है"
mujhe bhi part kavi banaa do,gurujee main bhi thoda hit ho jaaun
इतना भी क्यों? कनाडा में यह सुविधा भले ही न हो पर भारत में है कि यहाँ खाने पीने की बहुत वस्तुएँ अखबार और पुस्तकों की रद्दी पन्नों पर मिलती है। किसी पन्ने को लम्बवत आधा मोड़ कर, फाड़ दीजिए। दोनों भागों पर दो कविताएं बड़े मजे से तैयार हो जाएँगी। चाहें तो यह प्रयोग आप किसी प्रेम-पत्र के साथ भी कर सकते हैं।
एक अच्छी कविता पढ़वाने के लिए साधुवाद! और समीर दादा, जन्म दिन की ढेर सारी बधाइयां!
बहुत गजब पोस्ट है. समीर भाई, अब आप हास्य के धंधे में फुलटाइम आ जाइये.....:-)
हाँ, इस विषय पर मैं कहूँगा कि बाल किशन के ब्लॉग पर ढेर सारे विदेशी कवियों/कवयित्रियों की रचनाएँ पढी हैं. सूडान की महान कवयित्री शियामा आली, इराक की महान कवयित्री नाजिक अल-मलाईका, निकारागुआ के महान कवि स्टीवेन व्हाइट, क्यूबा के महान कवि अझेल पास्त्रो ('टाइपिंग मिस्टिक' के चलते बाल किशन ने उजेल पास्त्रो लिख दिया था, जिस बात का खुलासा अनूप जी ने किया था) वगैरह की शानदार कवितायें पढ़ चुके हैं. और आज इसी कड़ी में आपके ब्लॉग पर स्वीडेन के विख्यात कवि पीटर ओलिन की कविता. अब हिन्दी साहित्य में 'जमे' हुए कवि इन महान कवियों से कम्पीटीशन लेकर ही छोडेंगे.
जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई...हमें तो पता ही नहीं था याद तो फिर दूर की बात। अभी मैंने मोबाइल पर रिमाइंडर लगा लिया है २८ तारीख का अगले साल की, २९ का नहीं। आप जबलपुर से सर्र करके निकल गए, बेड़ाघाट की याद आती है कभी या नहीं। अपना एमपी भी गजब की जगह है महीना तो लग जाए यदि लगातार घूमें तो। मेरी पैदाइश कटनी की है। जिंदगी के शुरूआती १६ साल वहीं गुजारे। ये टिप्पणी महज आप के लिए है।
ये ढंग भी अच्छा है बंधुवर बधाई
समीर जी देरी से सही पर जन्मदिन की मुबारक बाद स्वीकार करें। ढेरो शुभकामनाऐ।
बात में जान हैं। अजी सुबह सुबह प्रकृति का आनंद लीजिऐ बस।
सुबह सुबह
स्वच्छ, साफ सुथरा
वातावरण
शीतल शुद्ध
मंद बयार
पर झूमती हुई
पक्षियों की चहचहाहट
हरे भरे वृक्ष
मेरा मन
मोहित कर लेते हैं
जब मैं
टहलने निकलता हूँ ...
बहुत खूब।
अरे आप तो विकसित देशों में लग गए... असली कविता तो गरीबी से निकलती है... दुःख से.
तो अफ्रीका और एशिया के इतने देश कब काम आयेंगे.... और नाम थोड़ा सॉलिड रखिये जैसे चित्रकार के नाम में दम है.
नाम कुछ ऐसा होना चाहिए जैसे श्रीलंकाई कवि... लुटैय्या गदारापा समिरंगे ! वैसे कितना फायदा पता होगा नहीं पता मैंने भी तो ये सब सुना ही है :-)
कविता दमदार है ..
सरजी लगता है की पूरी की पूरी पोस्ट ही हमको ध्यान में रख कर लिखी गई है.
ये शुभ कार्य तो शायद हमारे ही ब्लाग पर सबसे ज्यादा संपन्न हुआ है.
वैसे हमारे इस तरीके की भनक आपको कैसे लग गई ये तो बड़ा ही गोपनीय था.
खैर अब लग ही गई तो क्या एक से भले दो.
जबलपुर से मुन्नालाल कोरी,
कटनी से हरीश जादवानी,
नरसिहपुर से लक्ष्मण प्रसाद,
शहडोल से सूरज विश्वकर्मा,
मण्डला से रमेश धुर्वे,
कटंगी से प्रकाश नन्होरिया,
गोदिंया से संजय नहातकर,
सतना से योगेश सैनी,
रीवा से शैलेष मिश्रा,
नैनपुर से पीटर मरकाम,
लखनादौन से नीरज श्रीवास्तव,
उमरिया से धीरज रैकवार,
.........................,
,.......................,
सभी को ओलिन भइया और एन्टोनी चच्चा को आभार ! बहूत जल्दी ये सभी "यक्ष" पर अवतरित होगे।आप सभी महान लोक कलाकार है। पाठ्य पुस्तको की कविताए अपने अपने गाँव में प्रादेशिक भाषाओ में पेल कर फेमस हो चुके है,कृपया ईनके ब्लाग की भी सफलता की कामना करे।
पीटर ओलिन जी से मेरा नमस्ते कहिएगा.. उन्होने एक बार मेरी कविता का वहा पर अनुवाद किया था.. और मेरे ही मित्र श्रीमान खपच्ची लाल की पैंटिंग साथ में चिपकाई थी.. उनकी कविता का आपके द्वारा अनुवाद पढ़कर आँखें भर आई.. दिल दहाड़े मार मार कर रो रहा है.. बहुत याद आ रही है उनकी.. सेनटी हो गया हू.. आज नींद नही आएगी.. जन्म दिन का केक खलू तभी कुछ बात बन सकती है.. खिला रहे है न आप?
जन्मदिन की बधाई स्वीकारे और अनुप भाई की बात पर ध्यान दें।
sam,eer ji,janamdin kii badhaayii...zara der se hi sahi..aur panktiyaan to sadaa ki bhaanti...sateek..bhaavpuurn...
लो ये बात पहले पता होती तो अब तक मै कवि शिरोमडी बन गयी होती :P
वैसे कविता बहूत सुन्दर है।
समीर जी
इस से पहले की इस घुटन से घुट घुट कर मर जायें किसी देसी कवि की विदेशी कविता भी सुनवा दो जल्दी से...
नीरज
पुनश्च : आप का जन्म दिन निकल गया और आप ने भनक तक ना होने दी...हम कहाँ केक खाने आ रहे थे हम तो भिजवाने की फिराक में थे...चलिए अगले साल सही...खुश रहें ...हमेशा.
wah kya tarika bataya hai..algi fursat me hi aajma lenge.
अगर कविता तैयार न हो तो किसी भी जगह से ८-१० लाईन का अच्छा गद्य उठा कर कौमा फुलस्टाप की जगह बदलो. शब्दों की प्लेसिंग बदलो, थोड़ा कविता टाईप शेप देकर ठेल दो, तुम तो कवि हो, इतना तो समझते ही हो. एक विदेशी नाम मय देश के चेपों और बस, चल निकलोगे गुरु."
मास्टर [समीर] जी कवि बनने का बड़ा अच्छा पाठ पढा़या है ।
जरा गौर फरमाईएगा-
मैंने कहा -
हॉं जी , आप ही से
जरा गौर फरमाईयेगा,
मैंने आपसे
सीख लिया है-
कविता कहना...
कहो कैसी रही ,
हा हा हा-------
जब मैं
टहलने निकलता हूँ ...
गुरुदेव बड़ा आनंद आया !
टहलने से याद आया
रविवार सुबह के मजमे का विषय
मिल गया आपसे ! धन्यवाद !
"आगे के लिए भी सलाह दी है कि अगर कविता तैयार न हो तो किसी भी जगह से ८-१० लाईन का अच्छा गद्य उठा कर कौमा फुलस्टाप की जगह बदलो. शब्दों की प्लेसिंग बदलो, थोड़ा कविता टाईप शेप देकर ठेल दो, तुम तो कवि हो, इतना तो समझते ही हो. एक विदेशी नाम मय देश के चेपों और बस, चल निकलोगे गुरु."
कविता लिखने का बहुत सॉलिड तरीका बताया है आपने। शुक्रिया जी शुक्रिया।
अपने हाथ आजमाते रहिये ,हमें ये अखाडा भला लगा ...वैसे भी कविता का कोई देश नही होता है......
tum jiyo hazaaron saal.saal ke din ho pachaas hazaar
आपकी इस पोस्ट पर मैं अपना एक अनुभव रखना चाहती हूँ।
एक कवियित्री कुछ समय से कवि सम्मेलनों में अपनी रचनाएँ पढती थी जो ठीक-ठाक होत्ती थी। फिर अचानक उनकी रचनाओं का स्तर बढने लगा। अचानक बढी बौद्धिक क्षमता कुछ अजीब लग रही थी कि एक दिन एक श्रोता ने पकड़ लिया।
हुआ यूँ कि जो रचना वो सुना रही थी वो रचना उस श्रोता की एक मित्र कवियित्री की थी जो उन्हें बहुत पसन्द थी सो याद रह गई थी। उनकी मित्र इस संसार में रही नहीं और उनके लेखन की देखभाल करने वाला कोई है नहीं, बस यह नई कवियित्री चाँदी काट रही है।
ham apni angrejee waali kavitae.n bhijawae.n kyaa...???? :) :)
वाह वाह क्या शानदार अनुवाद है, मूल कविता के भाव अक्षुण रहे है. यह काम आप ही कर सकते थे. आपका प्रयास लम्बे काल तक याद रखा जाएगा. आपने जर्मन और भारतीय साहित्य के बीच सेतु जोड़ने का काम किया है.
प्रस्तावना में तो जैसी कविता के झेलने की आशंका हुयी ,कविता वैसी निकली नही -यह अप्रत्याशित रूप से बढियां लगी .कवि वह जो कोई भी हो सचमुच कवि है .
आपको जन्मदिन की ढेरो बधाई और शुभकामना . आप स्वस्थ और दीघार्यु हो.
समीर साब जैसा सुन रखा था वैसा ही देख रहा हूँ. यह खूबी कम लोगों में होती है. उन कमों में आपको देखना सुखद लग रहा है. बधाई. गुरु ज्ञान देते रहियेगा.
टिप्पणी मय आभार
जर्मन लेखिका 'पेरागीया राइथोऊरे'
खूब कही किसी ने,
आज मन खुश हुआ
और फिर,
मेरी लेखनी चल निकली
आपकी तरह,
टेढे मेढ़े रास्ते पर...
गद्य को जबरदस्ती,
पद्य का जामा पहनाती...
चलती है प्रशंसा करती हुई...
आपको समझ आया हो तो मुझे भी जरा समझाना....
मजेदार कवीता है आप नही लीखते तो हमे पता कैसे चलता की अंग्रेज की कवीता है। (ईसलीये ये कवीता आपका बनाया हुवा हो गया)
ऎसे ही लीखते रहीये। बहुत अच्छे लेखक हैं।
.
:-7
कजरारे कजरारे तेरे ये कारे कारे चश्मे :)
इधर भी चशमा उधर भी चशमा, कित्ते सारे चशमे :)
vyangya aur anuwaad-dono sarahniye
ये भी खूब रही !:)
अच्छा व्यंग्य रहा।
sahi hai...hamne bhi aki kavitaayen aise hi likhi hain.
गुरुवर - और जवान होने की बधाई - मिजाज़ शरीफ़ के नटखट होने की भी [:-)] मनीष
पहले तो जनम दिन की बधाईयाँ लेते जाइये समीर जी. देर से इसलिए दी क्यूंकि आप का जनम दिन का नशा अभी भी ताज़ा लग रहा है.
कसा हुआ व्यंग और अच्छी कविता का सुन्दर मेल. वाह.
aapkii yahii adaa to kaatil hai
आप का शुक्रिया।
समीर जी, क्या बात हे यह कविता तो मुझे सुबह सुबह उठाने के लिये तो नही लिखी क्या.लेकिन हे बहुत अच्छी ,धन्यवाद उस फ़्रांसीसी को जिस ने यह कविता आप के लिये लिखी, आप का भी धन्यवाद आप ने हिन्दी मे अनुवाद जो किया :) :) :)
कमाल कर दिया आपने तो.
"८-१० लाईन का अच्छा गद्य उठा कर कौमा फुलस्टाप की जगह बदलो. शब्दों की प्लेसिंग बदलो, थोड़ा कविता टाईप शेप देकर ठेल दो"
अन्दर की बात है, इसी तरह की एक लम्बी गद्य की लाइन को बीच में बीस एंटर घुसेड़ने की वजह से वर्तनी की अनेकों गलतियां होने के बावजूद एक ऑनलाइन काव्य प्रतियोगिता में पहला इनाम मिला था. टिप्पणी में तारीफ़ करने का झूठ तो हमसे बोला न गया हाँ बधाई ज़रूर दे आए.
समीर जी सबसे पहले तो आपके जन्म दिन की बधाई अच्छा लिखते हैं आप कोई शक की गुजाइश नहीं है बाकी तो मैं क्या कहूं कहने वाले महान दिग्गज तो पहले ही काफी तारीफ कर चुके हैं बस ये ही कहूंगा same to all बधाई हो
बहुत बढिया व लाभदायक सुझाव दिया है आपनें।अब हम भी महानता के शिखरों को छूनें के लिए इस पर जरूर अमल करेगें।
प्रफुल्ल मना
वहीं पार्क की
कोने वाली बेन्च पर-
सुस्ताने की खातिर
बैठ कर
खोलता हूँ
अखबार का पन्ना
और
मन घुटन से भर जाता है!
बहुत बढिया कविता है।
(लेकिन यह बात समझ में नही आई की मन घुटन से क्यों भर जाता है...क्या वहाँ बच्चे बहुत शोर मचाते हैं?...आप अखबार पढ़ नही पाते:))
पोस्ट के बदले
मिला ज्ञान
खुले चक्षु
कि मैं भी
कवि बन सकता हुँ
कहीं का रोडा
कहीं का पिटारा
भानूमति का बनाकर
छा सकता हुँ
क्या यह
कविता है
या
बटाँधार
समीर जी मज़ा आगया क्या बात कही आप ने। वास्तव में ये आज की सच्चाई है पर आप ने जिस व्यंगात्मक रूप में लिखा है उसका जवाब नही। कवि बनने का रास्ता दिखने के लिए धन्यवाद, लेकिन अब आपको ही मेरे कविताओं को झेलना पड़ेगा।
समीर जी मज़ा आगया क्या बात कही आप ने। वास्तव में ये आज की सच्चाई है पर आप ने जिस व्यंगात्मक रूप में लिखा है उसका जवाब नही। कवि बनने का रास्ता दिखने के लिए धन्यवाद, लेकिन अब आपको ही मेरे कविताओं को झेलना पड़ेगा।
अनुवादित कविताएं पढ़ने से पहले सतर्क भी होना पड़ेगा कहीं ये भी किसी ऐसे ही पीटर की तो नहीं
Bohot khoob! Bade dinon baad aapke blogpe aa payee hun...bohot kuchh padhna chaha par samay kee kamee se nahee padh payee...kuchh dinon baad phirse aake padh loongee!
Aaapse seekhna kaafee miltaa hai!
Shama
Kya zarooree hai ke sholon kee madad lee jaye ?
Jinko jalna hai vo shabnam se bhee jal jaate hain !!
अगर ससम्मान जीवन जीना है तो वक्त के साथ कदमताल कर के चलो अर्थात जो प्रचलन में है, उसे अपनाओ वरना पिछड़ जाओगे. अब पार्ट टाईम कवि हैं, तो उसी क्षेत्र में छिद्रान्वेषण प्रारंभ किया. ज्ञात हुआ कि वर्तमान प्रचलन के अनुसार, बड़ा साहित्यकार बनना है तो दूर दराज के विदेशी कवियों की रचनाऐं ठेलो.
भैया इसकी भी ज़रूरत नहीं है अब तो पुराने अखबार उठाओ पत्रिकाएँ लो सबसे पुरानी कविता उठाओ नीचे से कवि / कवियत्री का नाम उडाओ और छाप दो यानी की ठेल दो
गज़ब की पोस्ट बेहतरीन विषय बधाई
बड़ा साहित्यकार बनना है तो दूर दराज के विदेशी कवियों की रचनाऐं ठेलो.
व्यंग्य चुभता है क्यों कि यथार्थ के बहुत निकट है। पर इत्मिनान रखिये ऐसे कवि कभी बड़े साहित्यकार नहीं बन सकते।
कुछ ऊलजलूल कवियों को सुन कर मुझसे एक कविता बन पड़ी थी 'शब्दशिल्पी हूँ मैं'
हो सके तो मेरे व्लॉग पर पड़ लें
मथुरा कलौनी
विदेशी कवि की रचना चेंप कर अपने ब्लॉग में ठेलने का सूत्र देने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद साथ ही एक अच्छी रचना पढ़वाने के लिये भी । एक अच्छा प्रयास ।
विदेशी कवि की रचना चेंप कर अपने ब्लॉग में ठेलने का सूत्र देने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद साथ ही एक अच्छी रचना पढ़वाने के लिये भी । एक अच्छा प्रयास ।
hamesha ki tarah is baar bhi mai sabse late hun...wishing you a very happy belated birthday.....aur kabhi kabhi videsh men bhi itni kathinaiyan hoti hain ki apna desh peeche choot jaye...shayad isliye kavita umadti hai
sameer bhaiya ,cake khilane ke dar se hame bataya hi nahin ki aapka birthday hai ....thik hai mai bhi ab milne par sood samet 10 cake khaungi...bhai bane hai aap ..ab bach nahin sakte
instant kavi banna thaa,
so kya kartaa
meri majboori thii
liya ek videshi naam
jo dilwaye meri kavita ke daam
aur sabse asan ek totka
gadya ko gadya mat rehne do
tod daalo uski panktiyaan
to ho jaati hai kavita
uspar de daalo ek title darshanik
jahaan do line ka gadya thaa
use ab todkar de daalo paanch line
blog par aakar log kahenge
tumhari poem hai badi fine
uttam vyang raha sahab
घुटन
सुबह सुबह
स्वच्छ, साफ सुथरा
वातावरण
शीतल शुद्ध
मंद बयार
पर झूमती हुई
पक्षियों की चहचहाहट
हरे भरे वृक्ष
मेरा मन
मोहित कर लेते हैं
जब मैं
टहलने निकलता हूँ ...
प्रफुल्ल मना
वहीं पार्क की
कोने वाली बेन्च पर-
सुस्ताने की खातिर
बैठ कर
खोलता हूँ
अखबार का पन्ना
और
मन घुटन से भर जाता है!
हो सके तो मेरी इस कविता का अंग्रेजी में अनुवाद करा कर कनाडा की किसी साहित्यिक पत्रिका में छपवाने की कृपा करें :) अनुवादक स्विडन के प्रख्यात जनकवि पीटर ओलिन जैसा हो तो बेहतर:)
bahut accha likha hai
सही कहा आपने,
अब तो ये भी चलन है कि स्पेनिश के अंग्रेजी अनुवाद से किया हिन्दी अनुवाद "सीधे स्पेनिश से अनूदित" इस तरह प्रस्तुत किया जाता है।
वाह समीर जी, आपने तो धो डाला है, क्या कहें, कुछ कहने के लिए शेष ही न रहा!
बाई द वे, चित्र तो बहुत ही लाजवाब है, मॉडर्न आर्ट का बेहतरीन नमूना! :P
Bahut Zyada Khushi ho rahi hai.. ki abhi bhi itne achhe log hai jo itni achhi kavitayen aur hasya vyanga lekhan karte hai.
waise to videsh jate he log videshi ho jate hai. aur aane par yahan ka pani chhod bisleri aur camera lekar ghumte hain...poor india poor india karte hai.. bahut se aise log dekhe.. aapke jaisa pehli baar dekha.
Bahut he achha laga.
:)
एक टिप्पणी भेजें