जिस दिन लोकसभा में विश्वास मत के सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन हुआ, और सारे सांसदों के कारनामे खुले आम जनता के सामने आये, मैने एक टिप्पणी, इस विषय में पहली पोस्ट पर लिखी:
दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय!!!
फिर इसे नोट पैड में सुरक्षित भी कर लिया.
आज तक की सबसे ज्यादा चलने वाली टिप्पणी- बहुत खूब!! साधुवाद!! आम जनता की तरह अपने मूँह की खाई किनारे पड़ी रही और ये बिन सिर पैंदी की टिप्पणी अपनी विजय यात्रा पर निकली. हर जगह-जिस पोस्ट पर देखो..संसद, सांसद, उनका चरित्र, सोमनाथ दा का पार्टी निकाला, उन्होंने सही किया, उन्होंने गलत किया. सांसदों को ऐसे नोट नहीं चमकाने थे, सारे २५ करोड़ चमकाने थे आदि आदि...सब पर यह टिप्पणी कट पेस्ट से चमकने लगी: दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय!!! सौजन्य-उड़न तश्तरी-समीर लाल...
हमने सोचा कि एक दो दिन में मामला शांत हो जायेगा तो यह टिप्पणी वाली फाईल डिलिट कर देंगे मगर फिर बैंगलोर में धमाके: दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय!!!
कल अहमदाबाद में धमाके: दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय!!!
अब तक १२१ से ज्यादा पोस्ट हो चुकी है, जिस पर मैं यह चिपकाते आ रहा हूँ. हे मानवता!! जागो!! मुझे मौका दो कि मैं यह टिप्पणी मिटाने दो...मैं अब और इसे करना नहीं चाहता. एक डर और है कि कहीं किसी कविता आदि पर न चिपक जाये जल्द बाजी में. मित्रों, इसे भूल चूक लेनी देने में डाल देना-माहौल के चलते हो गई होगी. :)
खैर!! इसी मसले पर मेरे गुरु गीत सम्राट राकेश खंडेलवाल जी से बातचीत हो रही थी, तो दोनों की बातचीत कुछ कवित्तमय हो ली संसद कांड को लेकर. आप भी देखें:
उठा पटक के इस नाटक में,
किसको क्या क्या याद रहा...
दुर्योधन ने लाज बचाई,
कृष्ण बेचारे भूल गये...!!
बारिश की बूँदों ने रोका.
सूरज की किरणों ने टोका..
रुपयों की बारिश देखी तो,
झोली फ़ैलाना भूल गये!!
कुटिल हुईं कौटिल्य नीतियां
करें राज अब विषकन्या
जिसने पाला पोसा, वे ही
मंतर सारे भूल गये!!
गांधारों के शकुनि आज सब
दिल्ली में आकर बैठे
इन्द्रप्रस्थ का सपना क्या था
हम बेचारे भूल गये!!
सत्ता की रावणी प्यास ने
कैसा खुल कर नॄत्य किया
शर्म- चूनरी शेहरावत की
लाज के मारे भूल गये!!
फिर न जाने क्यूँ मेरे मन में इस कविता ने जन्म लिया, जो आपका आशिर्वाद चाहती है:
नई महाभारत
मदारी का खेल
मसखरों का जमावड़ा
कुछ कुश्ती, कुछ दंगल,
एक सांस्कृतिक मंचन
मंच का नाम 'संसद'!!
लोकतांत्रिक तरीके से
लोकतंत्र का चीरहरण करते
युग पुरुष
लाज बचाना
भूल गये हैं कृष्ण
हँसते हैं
और उनके साथ
ताली बजाते पांडव,
मंद मंद मुस्कराते
भीष्म पितामह,
कलयुग में
क्या नहीं होता
सब हैं
एक नई महाभारत
नित रचने के लिए!!
जनता
अपने ही चमत्कार से
रोज चमत्कृत होती
अपने ही चयन को
मूँह बाये
आश्चर्य से देखती
कुंठा
और खीज
की गठरी
सर पर लादे...
सावनी अमावस्या से भी काली
घुप्प अंधेरी सुरंग मे,
मौन के सम्वेत स्वर के
कर्णभेदी
भयावह अट्टाहस
के बीच
चंद खुली सांसों की
एक ख्वाहिश लिए...
दिशाहीन
अप्राप्य रोशनी
के एक सपने
का पीछा करते
भटकती चली जा रही है..
उफ़!!!
कितनी जटिल है यह चाह
विकासशील
से विकसित होने की!!
--समीर लाल 'समीर'
---कल और आज कोई टिप्पणी नहीं की. दो दिन बाद अभी अमेरीका से लौटा हूँ याने कल सुबह से...फिर शुरु!! :)
रविवार, जुलाई 27, 2008
एक टिप्पणी १२१ पोस्ट
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79 टिप्पणियां:
दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय!!!
आपको शीघ्र ही इन शब्दो को मिटाने का मौका मिले, इन्हीं कामनाओं के साथ
दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं........!!!
कविताएँ दोनों अच्छी हैं। टिप्पणी अभी चलती रहेगी, हालात और बिगड़ रहे हैं। आंतरिक सुरक्षा प्रबंधन अक्षम है। सरकार और राजनैतिक दलों का जन सहयोग की ओर ध्यान नहीं है।
आप के नए चित्र जोरदार हैं। टिप्पणी गुरू के स्थान पर बॉक्सिंग गुरू नजर आ रहे हैं।
आप अमरीका हो कर आए और हम ससुराल। दो दिनों से अपनी भी पोस्ट और टिप्पणियाँ गायब थीं।
Aapki Tippaniyon ka " Copy right " nahee na karvaya aapne Sameer bhai
Aur,
Hume to dono Beton ke sath aapki tasveer behad pasand aayee .....
America ki yatra sukhad rahee hogee....
Sa sneh,
- Lavanya
दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय!!!
फिर एक बार किनारा कर के निकल गए।
आपको यह टिप्पणी न करने का मौका न मिल पाना ... दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय!!!
मदारी का खेल
मसखरों का जमावड़ा
कुछ कुश्ती, कुछ दंगल,
एक सांस्कृतिक मंचन
मंच का नाम 'संसद'!!
दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय
ye to hona hi tha or desh ki yahi niyati ban gai hai .
मन को छूने वाली कवितायें, हम सब की दुआओं में भी यही कामना है समीर भाई
दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय!!! सौजन्य-उड़न तश्तरी-समीर लाल...
"you have mentioned very rightly and ur comments is appropriate as per the situation and circumstances" But still agree with you and wish that this comment would be be replaced soon.........."
Regards
बिल्कुल सही कहा है। हम भी उसी जनता के अंग हैं जो...
जनता
अपने ही चमत्कार से
रोज चमत्कृत होती
अपने ही चयन को
मूँह बाये
आश्चर्य से देखती
कुंठा
और खीज
की गठरी
सर पर लादे...
दुनिया में हर तरह के बंदे हैं। तरह तरह के धंधे हैं।
दुर्योधन ने लाज बचाई,
कृष्ण बेचारे भूल गये...!!
Excellent!Just one poem was enough Sameer ji ,second one is a synergistic double dose.
दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय!!!:)आखिर आप भी उस चर्चा में फँस ही गए ना....टिप्पणीयां करते करते ।तभी तो यह लिखा है-
"सत्ता की रावणी प्यास ने
कैसा खुल कर नॄत्य किया
शर्म- चूनरी शेहरावत की
लाज के मारे भूल गये!!"
आखिर भूले भी क्या?:)
आप की रचना पसंद आई।
कितनी जटिल है यह चाह
विकासशील
से विकसित होने की!!
बिल्कुल सत्य कहा है आपने।
लेकिन आप ने जिस टिप्पणी के बारे में लिखा है वह १२१ बार तो आप ने चेपी हैं। लेकिन अब १२२ वीं पोस्ट पर हम चेप रहे हैं:)
दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय!!!:)
जिन शब्दों से मानवता को सबसे ज्यादा ख़तरा है आज वही शब्द सबसे अधिक प्रयोग में आते हैं । और वे सारे शब्द जो कि मरहम का काम कर सकते हैं वे तो शब्दकोश से बाहर आने के लिये छटपटा रहे हैं । खैर वो सुबह कभी तो आएगी
ब्लास्ट , आत्मदाह , झगड़े , रिश्वत , दन्गे ,अनसुलझे मर्डर केस ....... वाकई माहौल ऐसा है कि बरबस मुख से निकल रहा है -
दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय!!!
चिंतनशील कवि मन का एक और लाजवाब उदाहरण !!
दुर्योधन ने लाज बचाई,
कृष्ण बेचारे भूल गये...!!
बिलकुल दुरुस्त फ़रमाया है आपने!
वाकई बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय!!!
उफ़!!!
कितनी जटिल है यह चाह
विकासशील
से विकसित होने की!!
सही कहा ...
कोई टिप्पणि नही कर पायेगे जी हम भी
आपके इसी पोस्ट के साथ नोटपैड का वह आपका हिस्सा खतम हुआ.... बहुत बढ़िया...लाजवाब, अति सुंदर... लिखते रहिये, साधुवाद.....
अफसोसजनक ...
achha hai!
बहुत समय लगेगा, और हमीं लोगों को करना पड़ेगा। कोई आसमान से नहीं टपकेगा इन शब्दों को निकाल भगाने के लिये।
अरे मिटा ही दीजिये... कहीं ऐसा तो नहीं की आपके नोट्पैड में पड़ा होने की वजह से सब हो रहा हो?
कविता दोनों ही अच्छी लगी... और आपकी तस्वीरें तो गजब ढा रही हैं. बढाते रहिये... एक स्लाइड शो ही डाल दें तो बेहतर रहेगा.
हम कब मुक्त होंगे इस शर्मिन्दगी से ?
दोनों ही कवितायें जोरदार रहीं.शत-प्रतिशत प्रभावशाली.
कितनी जटिल है यह चाह
विकासशील
से विकसित होने की!!
बहुत ही सही कहा आपने , इस जटिल राह पर चलते चलते हम बहुत कुछ खोते जा रहे हैं , कभी इंसान और कभी इंसानियत | आशा करता हूँ की आपको "दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय!!!" वाली फाइल डिलीट करने का अवसर शीघ्र प्राप्त हो |
इन शब्दों को हटा पाना शायद अभी आपके लिए मुश्किल होगा ,अलबत्ता हमारी यही दुआ है की इनकी जरुरत न पड़े
दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय!!!
ab aur kya kah sakte hai...
:)
समीर जी, बहुत जल्द ही आप के ये शब्द डिलीट हो जाएंगे। दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय!!! पर जब तक हम जागेंगे नहीं तब तक शायद ये लिखना इन हादसों पर जारी रहेगा । लेकिन आप ने उस पोस्ट पर भी तो चिपकाई थी ये दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक...!! जब श्रीलंका से मिली थी मात। अब कुछ अलग के इंतजार में।
आपको अपनी यह टिप्पणी 122 वीं पोस्ट् पर न चेपनी पडे ! आमीन !!
is durbhagya par kya kahun........
bas swayam ka aahwaan krna hoga,
'nahin ho naumeed ikbaal apni kishte veeran se
zara nam ho to yah mitti badi zarkhej hai saaki
बहुत सुन्दर...लिखते रहें...क्या खुब लिखा है...
अजी जाने दें यह सब. सच तो यह है, बाप बेटे खुब जम रहें है. मस्त तस्वीर है. बधाई स्वीकारें.
इस टिपण्णी को तो आप हमेशा के लिए सेव ही कर लें....क्योकि हालत को देखते हुए लगता नहीं की इसकी उपयोगिता कभी कम होगी!हाँ..ये ज़रूर है की किसी की ख़ुशी भरी पोस्ट या कविता ,नज़्म पर ये टिपण्णी गलती से न चिपक जाए!
समय अच्छा और बुरा दोनों पैदा करता है। हम केवल अच्छे की चाह रखते हैं। जो गलत होता है - उसपर आश्चर्य व्यक्त करते हैं।
संसद में, देश में यह चर्निंग, यह भ्रष्टाचार, यह आतन्क, यह दंगे, यह असंतोष और यह निन्दनीय - क्या अप्रत्याशित है।
हां - तो आप कुछ नहीं कर सकते।
नहीं, तो मस्त रहिये!
हर आदमी सिनिकल बनने की बजाय अपने धनात्मक कण्ट्रीब्यूशन को देखे! बस।
समीर जी आप अपने गुरु राकेश जी का नाम क्या खूब रोशन कर रहे हैं...इतनी सुन्दरता से आपने आज के सच से परिचय करवाया है की क्या कहूँ....जिस गुरु के पास आप सा चेला उसे और क्या चाहिए?
देख रहा हूँ आजकल आप अपने ब्लॉग पर ख़ुद ही छाने की कोशिश कर रहे हैं एक से एक उम्दा और डेशिंग फोटो चिपका रहे हैं...कारण क्या है प्रभु इस...कढी में उबाल का??? सबको नहीं बताना चाहते तो फ़ोन करके कान में बतादें.
आप के दोनों बेटे बहुत स्मार्ट हैं...मेरा आशीर्वाद है की वे जीवन में नित नई ऊचाईयों को छुएं...
नीरज
कितनी जटिल है यह चाह
विकासशील
से विकसित होने की!! ---
अपनी लिखी दो लाइने याद आ गईं...
इंसान की लयाकत क्या कयामत लेकर आई..
इंसानियत पर कहर की बदली है छाई !!
चश्मेबद्दूर (नज़र न लगे)....दोनों बेटों को खूब प्यार और आशीर्वाद ...
एकदम सत्य कहा आपने.पता नही कब वह दिन आएगा जब किसी एक दिन के पूरे चौबीस घंटे में ऐसा कुछ देखने को न मिले जब इन शब्दों का प्रयोग न करना पड़े.
पंगा तो पंगा ही हे ,रास्ता आप ने बता दिया समीर भाई, अब टिपाणिया भी रजि० करवानी होगी.
आपकी टिप्पणी के बारे में एक बात कह सकता हूँ - इसे संभाल कर रखिये | मौजूदा हालात को देखते हुए ऐसा कतई नहीं लगता कि आपको इतनी आसानी से इस टिप्पणी से मुक्ति मिल सकती है |
रही बात कविता की तो जी बहुत खूब ... हमारे लिए विकसित की कटेगरी में आना अभी दूर है |
भगवान करे कि किसी को भी इन शब्दों का इस्तेमाल ना करना पडे।
मिटा दीजिए अब. दूर्भाग्यपूर्ण पढ पढ कर दिमाग को लकवा मार गया है मेरे तो... दूर्भाग्य पर रोते रोते आँखे सूज गई..
भाड मे गया भाग्य अब वर्तमान मे जीना है.
दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय!!! सौजन्य-उड़न तश्तरी-समीर लाल...
अरे अरे.. ये क्या हो गया.. आपकी टिप्पणी ही तो हर जगह डालते हैं.. अब आप अपने नाम से टिपिया कर माहौल खराब ना करें.. नहीं तो हम जैसो का क्या होगा?? वैसे भी माहौल बहुत खराब है.. :)
कवितायें बहुत अच्छी लगी..
आप टिप्पणियों को मिटाने के बारे मत सोचिये. ये अभी और काम में आयेंगी. हाँ, आपने मेरी कल की पोस्ट पर कमेन्ट नहीं किया. ये मेरे लिए
दुर्भाग्यपूर्ण एवं अफसोसजनक है. हाँ, निंदनीय नहीं कहूँगा मैं इसे.....:-)
दिशाहीन
अप्राप्य रोशनी
के एक सपने
का पीछा करते
भटकती चली जा रही है..
उफ़!!!
कितनी जटिल है यह चाह
विकासशील
से विकसित होने की!!
बहुत ही अफसोसनाक, जितना अफ़सोस किया जाए कम है...हमें ख़ुद नही पता की हम कहाँ जारहे हैं और कहाँ जा कर रुकेंगे...ये टिपण्णी आने वाले कल के संभालनी पड़ेगी...क्योंकि हालात तो बस ऐसे ही हैं की इनकी ज़रूरत पड़ सकती है...लेकिन दुआ यही है की इसकी फिर से ज़रूरत न पड़े...
कविता बहुत ही शानदार है...जो हालत हैं..उन्ही को आईना दिखाती हुयी...बहुत खूब...
कविताएँ अच्छी हैं
कैसे डिलीट होंगी ये टिपण्णिया ? आज बंगलोर
कल अहमदाबाद उसके बाद ..... ! अनवरत सिलसला ! अब बस बहुत हो गया ! आपको नही लगता की आम आदमी कितना मायूस है ?
क्या यह कहना जरूरी है कि आपकी कविता बेहद उथली है. चलो उथले में ही डूबने की कोशिश की जाए!
विजय भाई,
हो सकता है उथली हो मगर उतनी भी उथली न होगी कि आप डूब न पायें. कोशिश तो करिये-डूब जायेंगे मगर डूबियेगा इस सलीके से कि आसपास की लहरों को भी पता न लगे. शुभकामनाऐँ. अगर हमारे गुरुदेव का आशीष न होता इस रचना को, तो आपकी बात सर आँखों पर होती.
सादर
समीर लाल
kavita ke bhaav hum sab tak pahunchtey hain SAMEER ji :)
.
अतिसुंदर, मन को हर्षाने वाला, वाह.. क्या बात है ?
चश्मे बद्दूर, किसी की नज़र ना लगे..आदि आदि
यह टिप्पणियाँ तो यहाँ छवियों को देख हठात ही निकल पड़ी हैं, पोस्ट पर टिप्पणी तो मैं पोस्ट पढ़ने के बाद ही कर पाऊँगा, एक ज़ायज़ा मिल ही गया है...सो यदि मेरी टिप्पणी यहाँ प्रगट न भी हो, तो आप तो पहले ही कह चुके हैं..
दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय!!!
और यह प्राइम टिप्पणी हमारे अमर-शिव टिप्पणी बैंक में क्यों नहीं जमा करायी गयी थी, अब तक..
दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय!!!
;)
मन सचमुच बड़ा व्यथित हो चुका है बार बार इन घटनाओं के होते रहने से..
दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय!!!
lo g sir ...hamari tarf se bhi sa prem....
तभी सोचूँ कि कापी पेस्ट करने की आदत आपको कैसे लग गयी।
अच्छा हुआ कि "दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय!!!" शब्द मेरे मत्थे नही चढ़ा।
वैसे कवितायें अच्छी लगी। बस सीखने की चाह है। मेरी मिठाई तो भूल गये लेकिन इसे नही भूले।
खैर जो भी हो पोस्ट से पोस्ट की टिप्पणियों की टाँग खीचना, अच्छा लगा
:)
आपकी दोनों रचनाएं बहुत बढिया है। साथ ही पिता की अपने दोनों पुत्रों के साथ वाली तस्वीर बेहद अच्छी लगी।
कुछ गहरे में डुबकी लेते
कुछ उथले में ही रहते
और किसी के लिये कभी तो
चुल्लू भी ज्यादा होता
लेकिन कूछ ऐसे भी तो हैं
जिन को सागर भी कम है
ऐसा अगर न होता , तो फ़िर
वैसा कभी नहीं होता
कवितायें दोनों ही बहुत अच्छी बन पडी हैं. बधाई!
दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय!!!
ज़रा सी देर क्या हो गई पढने में और ५६ टिप्प्णियां पहले से मौज़ूद हैं ?
कविताएं अच्छी लगीं ।
hamaari bhavnayen bhi apki tarah hi hai. per shabd nahi hain is ghtna ke chitran ke liye aur aap ne to kavitaaye likh di hai...........
wah janaab
rajesh
उफ़!!!
कितनी जटिल है यह चाह
विकासशील
से विकसित होने की!!
आज के जो हालात हैं उनपर आपकी यह कविता बिल्कुल सटीक है ।
सचमुच अभी - अभी संसद में कुछ हुआ उस पर पानी भी न फेर पाय थे कि ये बम ब्लॉस्ट ने तो दिल दहलाकर ही रख दिया है । भय बना रहता है कि ना जाने कब और कहां से खबर आ जाए कि अमुक स्थान पर बम ब्लास्ट हो गया ? समझ में नहीं आता कि हमारे देश में आतंकवाद की जडे़ं कहां तक फैली हुई हैं ?
ये नेता और अफसर लोग जुटे हैं
अपने हितोंकी रजनीति में ,
खामियाना भुगतने में लगी है
बेचारी - बेकसूर और भोली-भाली जनता,
पता नहीं कब रुकेगी ये
इंसानी खूनी होली....?
शब्द ही नहीं रह गए हैं इतनी बुरी स्थिति का बयान करने के लिए .....
अफसोसजनक, अतिदुर्भाग्यपूर्ण, एवं अतिनिंदनीय!!!!!!!!!!!
एक ही टिपण्णी को इतना निचोड़ लेना वास्तव में काफ़ी दुर्भाग्यपूर्ण, अफसोसजनक एवं निन्दनीय है.
हम इसकी कड़ी भर्त्सना करते हैं.
(आइडिया के लिए धन्यवाद
लगता है बहुत जल्द ही नई महाभारत रची जाएगी। व्यास जी ने महाभारत की रचना गुहा में बैठ कर की थी यह महाभारत शायद उड़न तश्तरी में रची जाएगी। व्यास जी ने सरस्वती के चरणों में रची थी पता नहीं नई महाभारत के रचयिता समीर जी किसके चरणों में बैठ कर रचेगे। शायद ब्लोगिग में ही शुरू कर दें…
दूसरी कविता की धारा मन को भा गई... और समीर भइया ,ये क्या बात हुई कि मै कोई भी चित्र देख ही नहीं पाती ..
dusari to aap ki hai, pahali kis ki hai..?
Lo ji humne to aapki is 121 post wali tippani ko break karwa diya, aap to kuch aur hi tippani chor ke gaye ;)
Aap america aa kar gaye aur hawa tak nahi lagne di, Agar NY aaye thai ek phunwa to ghuma dete aur agar DC gaye thai to bhi appan raste pe hi parte hain....
लोकतांत्रिक तरीके से
लोकतंत्र का चीरहरण करते
युग पुरुष
लाज बचाना
भूल गये हैं कृष्ण
हँसते हैं
और उनके साथ
ताली बजाते पांडव,
सही बात कही गयी है कविता में। हमारे लोकतंत्र की यही खासियत है। सब कुछ लोकतांत्रिक तरीके से होता है, फिर भी लोकतंत्र के कपड़े उतर जाते हैं। प्रतिपक्ष भी अपनी भूमिका के प्रति असंवेदनशील ही रहता है।
BAHOOT HI SUNDER SI ADHUNIK KAVITA SAM-SAMYIK,JAISA KI AAJ KE PARIVESH ME HO RAHA HAI US PAR BAHOOT HIUMDA DHANG SE KATACHH KIYA HAI. BAHOOT HI ANAND AAYA.
स्वार्थ ने और स्वार्थ के चलते अर्थ(धन-दौलत) की चाह ने आदमी को इन्सान से इस अर्थ प्रधान युग में क्या-क्या नही बना दिया, मसलन भाई, नेताजी, चमचा, चुगलखोर, रिश्वतखोर, जन-सेवक नही जन-त्रासद, अध्यापक नहीं ट्यूटर, डॉक्टर नही किडनीचोर आदि-आदि..........
कभी पढ़ा था "साहित्य ही समाज का दर्पण है" पर आज लगता है की इसे कुछ सुधर कर इस तरह पढ़ना चाहिए "संसद में हो रही बहस ही समाज का दर्पण है"
आज हमें कबीर दास की तरह
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिल्या कोई
जो तन देखा आपनो, मुझसे बुरा न कोई
हमें भी यह देखना पड़ेगा की क्या हम भी इस भ्रष्ट व्यवस्था के भागीदार किसी न किसी रूप में हैं या नही.
दूसरों की भ्रष्टता तो दिखाना बड़ा आसन है, पर अपनी ऐश किस संसाधनों से होती है, हमें इस पर भी गौर करना पड़ेगा.
बातें तो बहुत हैं, पर कितना लिखा या व्यंग कसा जाय, पर गांधी जी की तरह किसी को तो इमानदार शुरूवात करनी ही पड़ेगी. ध्यान देने की बात है कि गोडसे ने तो गांधी को एक बार मारा था, लेकिन उनके अनुयायी तो उनके आदर्शों की हत्या दिन में कई- कई बार करने से नही चूक रहे हैं.
गांधी जी जैसे-जैसे ज्ञानी महात्मा बनते गई, उनके शरीर से वस्त्र कम होते गए, पर उनके नाम पर वोट मांगने वाले तथाकथित आज के नेताओं की सुख सुविधाएं, वस्त्र सभी कुछ बढ़ते जाते है .
मूल कारणों को खोज कर वसा निदान करना होगा, अन्यथा फिर तो किसी राम का ही इंतजार करना होगा
यथा--
श्रद्धा
(३१)
हे राम ! तुम्हारी रामायण को
कब किसने समझा- जाना है
दिए उदाहरण स्वार्थ हेतु ही
समझा इसको ताना- बाना है
करें कल्पना राम - राज्य की
पर हरकत विपरीत मिले हरदम
आदर्श रचोगे हो श्रद्धा में रत
तभी राम - राज्य को आना है
चन्द्र मोहन गुप्त
अड़सठवीं टिप्पणी मेरी ! वही आपकी वाली।
घुघूती बासूती
बिल्कुल सही कहा है।
HAPPY
BIRTH
DAY
TO YOU
29.7.19 ??
ऒऎ समीर प्राजी,
लख लख पदाइइयाँ ।
हुण काल राति तों याद राख्या सी,
अज्ज कों पुल्ल ग्या । खंडेलवाल्लः दा दन्न्यवाद होर
तुहाड्डे नुँ हैप्पि बड्डे ! चंगा नीं लग्या कि तुस्सी एक्क
बरस आग्गे जा रयो, उमर दा की लोड़ ए, ज़िंदगी विच
तुस्सी होर आग्गे होर आग्गे ......रब्बा, कि बोल्याँ के
किन्ने आग्गे जावोगे ।
अपुन तो ऎसे ही बधाई देंगे जी,
यह अपुन का इश्टाइल का मामला है ।
Many Many Happy Returns of the Day.
May you continue to be our Light House
here and everywhere in every walk of Life!!
जन्मदिवस की शुभकामनाएँ
जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं।
जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाए !
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकार करिए..
समीर जी ,
एक दिन देर से सही पर जन्मदिन की शुभकामनाएं स्वीकार करना...
जीओ - जीओ तुम हजारों साल
साल के दिन हों..........
जितने चाहो उतने,
हा हा हा हा हा ..........
रुपयों की बारिश देखी तो,
झोली फ़ैलाना भूल गये!!
हरफनमौला हो दोस्त ! मुबारक
Is post ko padhne ke baad maine kuchh na kahna hai jee.
Sansad main us roz main hee main to tha.
India i.e. Bharat.
Parliament of India i.e. Bavaal
hum aalaah kee bande, yeo allaah kee marzee ! Hum karte hain dhande, vo kahte hain khudgarzee !!
बारिश की बूँदों ने रोका.
सूरज की किरणों ने टोका..
रुपयों की बारिश देखी तो,
झोली फ़ैलाना भूल गये!!
वाह वाह
आपका सदैव स्वागत है http://manoria.blogspot.com and kanjiswami.blog.co.in
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