आज वापस कनाडा पहूँच ही गये पूरे ६ माह भारत में फटाफट व्यतित करके. अभी दो घंटे ही हुए हैं आये.
मौसम बेहतरीन है. इस समय ६ डिग्री सेल्सियस हुआ है. दोपहर में १३ डिग्री था. भारत में ४३ डिग्री से आने के बाद आनन्द आना स्वभाविक है. यात्रा लम्बी थी तो थकान भी उतनी ही स्वभाविक और नींद- १० घंटे का टाईम डिफ्रेन्स जान लिये ले रहा है.
आँख नींद से लाल
शरीर थकान से अलाल,
मौसम के बेहतरीन हाल..
खुश हो रहे हैं समीर लाल
अब शायद कल से नेट पर ज्यादा बना रह सकूँ. तब तक भारत का ही एक किस्सा जो वहाँ से पोस्ट हो नहीं पाया था:
महेन्द्र मिश्रा जी http://mahendra-mishra1.blogspot.com/ आये थे रविवार को मिलने. हमसे मिले. जितनी गरमी थी उससे भी ज्यादा गरमजोशी से मिले. हमने पूछ ही लिया कि इतनी गरमी में कैसे निकले?
कम शब्दों में अपनी बात कहने वाले मिश्र जी कहने लगे," वो आज हनुमान जयंति है, तो निकले थे सोचा आपके दर्शन कर लें."
जल्द ही वो चले गये. शायद हनुमान मंदिर ही गये होंगे. बहुत अच्छे मेहमान हैं. न ज्यादा बैठते हैं, न चाय पीते हैं और न ही नाश्ता मिठाई खाते हैं. एक पलक पावड़े बिछा कर ब्रह्म स्वागत योग्य अतिथि.
उनके जाने के बाद शीशे में खुद को निहारता रहा. तरह तरह से मूँह बना कर देखा. फोटो खींची. पत्नी ने लगातार शीशे में निहारने का रहस्य पूछा तो हमने मिश्र जी की बात बताई कि कह रहे थे: "आज हनुमान जयंति है, तो निकले थे सोचा आपके दर्शन कर लें."
पत्नी कह रही हैं कि सही जगह तो आये थे. लगते तो वैसे ही हो.
हमने भी ठान ली है कनाडा जाकर कम खाऊँगा और खूब दौड़ लगाऊँगा और अगले साल मिश्र जी आप जन्माष्टमी पर आना.
राम नवमीं पर बुलाता मगर क्या करुँ-शरीर तो घटाना अपने हाथ में है, रंग का क्या करुँ? कृष्ण जन्माष्टमी ही ठीक रहेगी. आना जरुर दर्शन करने.
चलिये, घटनायें तो होती ही रहती हैं, उन्हीं पर आधारित एक रचना:
ढ़ोंगी!!!
दिखता खुश हूँ पर
भीतर से उदास हूँ!!
हजार कारण हैं...
मंहगाई बढ़ रही है!
रोजगार घट रहे हैं!
किसान मर रहे हैं!
सरकार अपनी कारस्तानियों में व्यस्त है!
एक के बाद एक जादू कर रही है सरकार
मगर फिर भी कहती है कि उनके पास कोई जादूई डंडी नहीं.
वामपंथी नाराज हैं??
बिहारी बम्बई में नहीं रह पा रहे हैं!
बिहारी बिहार में रह कर क्या करेंगे?
कल बात यूपी वालों पर भी आयेगी!
कभी तिब्बत तो कभी कश्मीर!!
गीत को सुर नहीं मिल रहा और गज़ल को काफिया!
हत्यारों को माफी मिल रही है वो भी जिसकी हत्या हुई है उसक घर वालों से!
बेटी अपने आशिक से मिलकर पूरे घर वालों की हत्या कर देती है!
ट्रेन में डकैतियाँ और बलात्कार!
चोरों के नये हथकंडे!
पुलिस डकैत हुई है
और डकैत सरकार!
सेन्सेक्स में गिरावट और गरमी में गले की तरावट का आभाव!
सोना उछलता है, कपास लुढ़कती है!
भ्रष्टाचार तरल से तरलतम हो फैलता जा रहा है
और मानवीय संवेदनायें- जमीं हुई एकदम कठोर!
बिजली गई और पानी आता नहीं!
बांये बांये दांये दांये......उपर नीचे...
हर तरफ कारण ही कारण कि दुखी हो लूँ, उदास हो जाऊँ!!!
खुश कैसे होऊँ??..एक भी कारण नहीं दिखता,,,इस बात से भी उदास हूँ!!
क्या तुम्हारे पास खुशी का कारण है या मेरी ही तरह तुम भी ढ़ोंगी हो!
दिखाने भर को खुश!!
-समीर लाल ’समीर’
( यह सब खबरें एक ही दिन के अखबार से हैं. तारीख क्या बताऊँ-किसी भी तारीख का अखबार उठा लो.)
रविवार, अप्रैल 27, 2008
अजब-गजब है ये बात!!
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48 टिप्पणियां:
अरे काय बड्डे के तो रए हते कि जाते बखत मिलके जेंहें । मनो चुपके से हीट गए । का हो गओ । हम सोच रहे थे कि हनुमान जी को परसाद चढ़ा देहें । माने ज़रा सा छुवा दओ फिर सारा खुद हजम कर लेहें । अब सच्ची के हनुमान जी के पास जाने पड़हे । अंग्रेजी में कहें तो उड़नतश्तरी मिसिंग यू इन इंडिया ।
बोलो पहलवान बब्बा की जय ।
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर....
भाभी का विचार ही ठीक है, आप ज्ञान गुण सागर ही बने रहें तो अच्छा है।
दुखी हैं, दुख का कारण मत तलाशने लगना, वहाँ कनाड़ा में पीपल वृक्ष भी नहीं मिलेगा।
हनुमान जयंती का प्रसंग रोचक रहा। कविता में तो आपने अपनी भारत यात्रा के सारे अनुभव ही समाहित कर दिये। पर इतना सब होते हुए भी लोग खुशी के पल निकाल लेते हैं चाहे वो गिने चुने ही क्यों ना हों।
आपके शब्दों में आपको इस पोस्ट के लिए साधुवाद.. :D
समीर भाई घर सकुशल पहुँच गए ये तो ठीक है लेकिन मालवा में आने का वादा तो अधूरा रहा .इंतज़ार रहेगा.
बढ़िया है जी.
जरा पब्लिकिया को अपने महावीरी लंगोट त्यागने कि तिथि बता दें,
मैं ब्लागर बंधुओं से व्रत रखने की अपील करूँगा ।
यदि जम्बूद्वीपे भारतखंडे आने की तिथि अग्रिम पता हो जाये, तो गोपियों की व्यवस्था करने में भी सुविधा होगी ।
यहाँ धर्म की हानि का सेन्सेक्स अंतरिक्ष छू रहा है, और आप भक्तों को छोड़छाड़ पलायन कर गये , यह श्रीकृष्ण के लक्षण तो नहीं हैं ?
ha ha mazedar yadgar vakiya tha,hanuman se krishna banane ke liye best luck,kitna vajan ghata batayiga jarur.babhi ji ki maddat bhi ligiyega,:):)
कनाडा रहिये या इलाहाबाद
ब्लाग को किये रहिये आबाद
आपकी उपस्थिति इंटरनेट पर खास है
आपके बगैर हाय हमरा ब्लाग उदास है
वाह साहब, हैं तो सेवक (हनुमान) और सोच रहे हैं मालिक (श्री राम) बनने की!
मानवीय संवेदनाओं का देख कर बुरा हाल
दुःखी हो गये हमारे समीर लाल
ढोंगी मैं भी हूँ पर खुद को ढोंगी कह नहीं पाता
पर आपने कहने का साहस कर के
माशाअल्लाह किया है बड़ा कमाल।
हिन्दी ब्लॉग जगत में दौडाने भागने का ठेका हमने ले रखा है, :-)
दौड़ने सम्बन्धी सभी आंकडे हमे भेजना न भूले :-)
अनूपजी और पांडेजी भी शायद आपसे सबक लें और दौड़ना शुरू कर दें :-)
कनाडा वापसी पर बधाई, बड़े व्यस्त होंगे इस समय इतनी लम्बी छुट्टी के बाद, ज्यादा लोड न लें और खूब आराम के काम निपटाएं |
क्या बात है जी ,मतलब कनाडा पहुचे और पोस्ट ठेल दी, यहा आलसियो के रिकार्ड तोडने मे लगे थे ,वहा जाते ही कामगार बन गये :) मतलब साफ़ है जी भारत का बंदा भारत मे काम करके खुश है ही नही :)
या भाभीजी ने हनुमान को बल याद दिला दिया :)
हनुमान जयंती की गुदगुदाती बात कहकर काफ़ी गहरी बात कही आपने इन दो पंक्तियो में
बिहारी बम्बई में नहीं रह पा रहे हैं!
बिहारी बिहार में रह कर क्या करेंगे?
बहुत ही उम्दा.. जानकार अच्छा लगा की अब आप नियमित रहेंगे.. यूही पढ़वाते रहिए.. बधाई
मिलेंगे तो रोज ही पर याद बहुत आयेगी।
जै हनुमान ग्यान गुण सागर
बहुत बढ़िया समीर जी मज़ा आ गया
पर आप ६ माह भारत में रहे-----खैर कोई बात नहीं परिचय ही था तो मुलाकात कैसे होती
फिलहाल ब्लाग से ही काम चलाते हैं
चित्र गज़ब खींचा है आपने--हनुमान जी का भी और देश का भी---साधुवाद
Welcome back...
आपकी फोटो तो बहुत गज़ब आई है , वर्णन भी बहुत अच्छा लगा।
रचना में बहुत कुछ कहा है आपने- आज़ की स्थिति का सही खाका खींचा है ये भी सच है कि आज़ सुख की अपेक्षा दुख की अधिकता है, सुख कुछ लोगों के खाते में ज्यादा है किसान, मज़दूर, गरीब लोग आज़ भी जूझ रहे हैं ...
बधाई कि आप का भारत भ्रमण सफल रहा और उस अनुभव का निचोड़ कविता में आप ने दे ही दिया.
''सरकार अपनी कारस्तानियों में व्यस्त है!''
बस यही अगर सरकार भी समझ ले और समय रहते चेत जाए तो जनता का कुछ तो उद्धार हो .
अच्छे मौसम का आनन्द ले. शितलता मुबारक :)
कृष्ण ही नहीं राम भी श्याम वर्ण के थे, महाराज. :)
अखबारी बात सही है, बस ऐसा ही है भारत, राम भरोसे चल रहा है :)
हनुमान जयंती तो खूब रही। :)
और आपकी कविता बेमिसाल ।
अरे आप जब जल्दी हनुमान से किसन-कन्हैया बन जाएं, फिर हम भी आपके दर्शन करने आते हैं महेंद्र जी के साथ :-) कुछ गोपियों का भी बंदोबस्त करने की सोच रहे हैं क्या?
वैसे आपका अखबार अच्छा है, रोज़-रोज़ पढने से अच्छा है कम समय में... एक ही जगह सारांश.
भाभी जी ने पते की बात कही , ढोगी कविता मे आप की चिन्ता साफ है पर हम सब खुश है कि अब रोज दिखेगे सनीर लाल .
मैंने आप को बताया भी था कि पोस्ट लिखने वाली थी कि
इ लाल उ लाल
कहा हैं
समीर लाल ,पर .....
हनुमान जयंती का किस्सा बहुत interesting लगा.कविता और भी अच्छी लगी.thanks
समीर जी आप तो सरे कष्टों को छोड़ कनाडा उड़ लिए...हनुमान जी वैसे अभी भारत मे ही है क्या करे रोज आरती जी होती है उनकी......पर आपके दुःख वाजिब है....पर ढेर सरे है तभी तो हिन्दुस्तान के इतने देवी देवता भी उन्हें दूर नही कर पा रहे है.......
vajan vali baat yad rakhiyega....
हनुमान जयंती का प्रसंग रोचक रहा...और घटनाओं का सिलसिला भी सच्चा है...
जय हनुमान ज्ञान गुणसागर
खुश हो रहे कनाडा आकर
जय हो आपकी । आपके भक्तगण अब टिप्पणियों का प्रसाद खूब पाया करेंगे और आपके दरबार में भी रौनक रहेगी। जय हो जय हो जय जय हो।
तो समीरजी कनाडा पहुंच ही गए। अब जल्दी से बजरंग बली आपकी पोस्टों के दर्शन कराएं। टिप्पणीयों के लिए तो हम जैसे भक्त तरस ही गए।
समीर जी
आपकी यात्रा सुखद रही है .काफी अरसे के बाद आज पोस्ट के साथ कविता पढी बहुत अच्छी लगी . इस कविता मे वास्तविक सत्य की झलक रही है मंहगाई गरीबी बेरोजगारी . बहुत बढ़िया रचना के लिए धन्यवाद
कृष्ण जन्माष्टमी पर यदि आप कनाडा मे रहे तो वहां दर्शन करने आ जाऊंगा आपका जबलपुरिया भाई .
जय हो हनुमानजी की
छह महीने फटाफट व्यतीत करने भारत पुनः कब पधार रही है उड़नतस्तरी?
भाई, कविता में आपकी चिंताएं जायज हैं.
जय हो कनाडावाले हनुमान की
जाते हुए भी तापमान को ही याद कर रहे थे अब लौटे तो भी ताप तापते ही लौटे।
जय हो।
समीर जी, किस्सा और कविता दोनों बेहतरीन हैं।
" गीत को सुर नहीं मिल रहा और गज़ल को काफिया!
हत्यारों को माफी मिल रही है और राज करे हैँ माफीया "
" जब कोई बात बिगड जाये,
या मुश्किल पड जाये,
तो देँगेँ साथ सदा
हमरे,हनुमान दद्दा "
" welcome back Kotter "
स्नेह्,
- लावण्या
बढि़या है। वजन घटाने की बात पर सीरियसली अमल किया जाये!
टिप्पणी भाभीजी के काम की है।
समीर भाई कृष्ण जन्माष्टमी पर बुला रहे हैं। किशन कन्हैया बनने के चक्कर में हैं। आप बेवजह हनुमान माने बैठी हैं।
कनाडा पहुँचते ही पोस्ट, भई वाह! आपको जेट लैग नहीं होता क्या? महावीर जयंती का प्रसंग बड़ा रोचक है, और कविता बिल्कुल आज की वास्तुस्थिति की द्योतक. अच्छा लगा पढ़ना
आपकी फोटो देख कर आज सुन्दरकाण्ड का पाठ कर लिया मैने। मंगल व्रत मे यह नयी मूर्ति एक अलग किस्म की ऊर्जा दे गयी। बहुत खूब।
वैसे आपकी अखबारी कविता में भारत का महापर्व क्रिकेट व उसमें घटित ‘झापड़ काण्ड’ भी होता तो इन्द्रधनुष पूरा बन जाता। शायद हवाई यात्रा में इस तमाशे से चूक गये।
इसकी एक बानगी यहाँ देखिये।
http://satyarthmitra.blogspot.com
आप तो नस ही पकड लेते हैं। आपको कैसे पता चला की बाहर से खूश और अंदर से दूखी होते हैं लोग।
लाजवाब है और अच्छा हूआ की आप कनाडा पहूच गै अब आपकी पोस्टॊं का ईंतजार ज्यादा दीनो तक नही करना पडॆगा।
जय हनुमान जी की :) कविता बहुत पसंद आई हमे :)
समीर जी,२२-२३ की रात को मे टाटा,ओर बा बा ही करता रह गया,ओर भई उपर से निकल गये, भाई एक बार खिडकी खोल कर हमारी टाटा ओर बा बा का जबाब ही दे देते,
समीर साहब,
आपकी शैली गुदगुदाती है
हँसाती है
वार-प्रहार भी करती है
लेकिन ये तय है कि
हर तापमान में पाठकों को
अनुकूलित /वातानुकूलित भी करती है !
एक ख़ास मक़सद की खातिर.
=========================
संकट-मोचन की यह क़लमगोई
कभी राम बन के,कभी श्याम बन के
हम सब को लुभाती और जागती रहे
यही कामना है .
आपका
डा.चंद्रकुमार जैन
समीर जी ! आपकी इस पोस्ट में कई छुपी बाते बाहर आयीं . एक तो ये कि आप ऐसे अतिथि से ज्यादा प्रसन्न रहते हैं जो कम समय लेते हैं . या तो उस अतिथि को मालूम होगा कि अगर बैठ गए तो राम कहानी शुरू हो जायेगी इसलिए हनुमान जी का बहाना बना कर निकल लेते हैं .....:)
अब जैसे आपकी तरह मैं भी ऐसे ही अतिथियों से खुश रहता हूँ ..लेकिन क्या करे अभी कच्ची उम्र है ... कुछ दोस्त आते हैं तो अपनी प्रेम कहानी लेकर बैठ जाते हैं ...कुछ मार -पीट की बात शुरू करते हैं ...और कुछ सलाह मांगने आते हैं कि उस लड़की को कैसे पटायें (बहुत अच्छी लगती है ) ..
आप तो कच्ची उम्र से कब के पार पा लिए फिर भी कम देर तक बैठने वाले अतिथियों से ही ज्यादा लगाव क्यों ....
और आपकी कविता समझ में आई ..और अन्तिम पंक्ति ...
( यह सब खबरें एक ही दिन के अखबार से हैं. तारीख क्या बताऊँ-किसी भी तारीख का अखबार उठा लो.
पढ़कर अखबार देखने की इच्छा हुई ....
आपने हमें अपने चंद शब्द देखर कृतार्थ किया .
मैं अभी इस क्षेत्र में नया हूँ ...और ब्लागवानी क्या है ये भी पता नहीं . मैं तो शौकिया लिखता हूँ . पहले तो मेरे शब्द डायरी तक ही सीमित थे .. फिर जब से अंतरजालीय सेवा अपनाए तब से ब्लागस्पाट पर आये .
अभी कच्ची उम्र है पढाई की तरफ भी ध्यान रहता है ...और लिखाई की तरफ भी .
एक दिन अचानक आप की उड़न तश्तरी दिखी ...काफी अच्छी लगी . और आपसे होते हुए मैंने कई लोगों को जाना ...
जैसे मीत जी , आशा जोगलेकर जी .....और भी कई लोग .
आपका supporting nature काफी अच्छा लगा .
कई बार सुना करता था कि ये दुनिया अच्छे लोगों से ही टिकी है ... तो मैं सोचता था कि ये लोग हैं कहाँ ....आजकल रोज़ उन लोगों के शब्द दिख जाते हैं ...
हो सके तो कुछ जानकारी दे दीजियेगा ....इस ब्लॉगर संसार के बारे में ...
राम नवमीं पर बुलाता मगर क्या करुँ-शरीर तो घटाना अपने हाथ में है, रंग का क्या करुँ? कृष्ण जन्माष्टमी ही ठीक रहेगी. आना जरुर दर्शन करने.
ही ही ही!! समीर जी रंग का इलाज भी हो सकता है!! अरे अपने माइ के लाल जयकिशन को नहीं देखे हैं? ऊ पहले रंग-रुप में माशा-अल्लाह आपके जैसा ही था और फिर जुगाड़ करा रंग बदलवा लिया अपना!! ;)
आपकी भारत यात्रा नें यक्ष प्रश्न कों रखनें का स्थान उपलब्ध किया।धन्यवाद!
बहुत अच्छे विचारों से भरी उम्दा पोस्ट.
अपनी सखी पारुल से सहमत हूँ ....हनुमान जी और देश दोनो का चित्र गजब खींचा
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