फिलहाल इस एतिहासिक शहर सेन फ्रेन्सिसको से लिखी और फेस बुक पर इस बीच मेरे द्वारा चढ़ा दी गई कुछ पंक्तियाँ – चाहें तो ३ कवितायें कह लें...अभिव्यक्ति...अनुभूति...विचार...भाव!!! आपकी इच्छा- हम तो छाप ही रहे हैं.
आगे कभी आपको इस शहर की गलियाँ, सड़कें और तापमान के साथ इसका चेहरा और व्यवहार पढ़वायेंगे. फिलहाल तो यह पढ़ें:
--१—
वो पूछता है मुझसे
मिरा हाल और के
मैं हूँ कहाँ- इन दिनों
इस रोज!!
क्या कह पाता –
सो लिखा.. मौन
क्या हाल किसी दीवाने का
और क्या पता किसी बंजारे का...
जो कि समझ सको - तुम हे ज्ञानी
हम रमता जोगी औ’ बहता पानी!!
--२—
वो तोड़ती पत्थर...
देखा उसे मैने
इलाहाबाद के पथ पर
वो तोड़ती पत्थर...
दो बूँद पसीना....
सुखा पाने की कोशिश
घूप दिखा ..
ज्यूँ सूखता हो चद्दर...
देखा उसे मैने
इलाहाबाद के पथ पर
ज्यूँ सूखता हो चद्दर...
बदल गये युग......
मात्र कुछ पलों में...
निराला गुजरे..
हुए छिन्न तार...
लुटी इस्मत...
वो पहने था खद्दर...
देखा उसे मैने
इलाहाबाद के पथ पर....
वो पहने था खद्दर...
देखा उसे मैने
इलाहाबाद के पथ पर
वो तोड़ती पत्थर...
दो बूँद पसीना....
सुखा पाने की कोशिश
घूप दिखा ..
ज्यूँ सूखता हो चद्दर...
देखा उसे मैने
इलाहाबाद के पथ पर
ज्यूँ सूखता हो चद्दर...
बदल गये युग......
मात्र कुछ पलों में...
निराला गुजरे..
हुए छिन्न तार...
लुटी इस्मत...
वो पहने था खद्दर...
देखा उसे मैने
इलाहाबाद के पथ पर....
वो पहने था खद्दर...
(आदरणीय निराला जी की रचना से प्रेरित और उनको नमन करते हुए आभारी)
(गुरुदेव राकेश खण्डेलवाल का सुझाव अमल करते हुए निराला जी से क्षमायाचना की जगह उपरोक्त कथन)
--३--
हूँ......न!!
क्या?
एक नई कविता..
वाह!!
खुद बुनी??
हूँ..सहारा उन बिम्बों का...
जो “न” कहे गये हैं
इस्तेमाल को समाज में...
समाज...अपरिभाषित...
हमेशा की तरह...
एक उहापोह..कोई जबाब...
फिर भी...हूँ..
ह्म्म!!.............लोग वाह कहते हैं..
लोग उफन भी जाते हैं...ह्म्म!!
फायदा कहीं...वाह! आह!
जो हासिल इक मंजिल
मात्र ऐसे कि कोई कहे...
वाह!! आह!!
एक नई कविता..
एक उलझी कविता..
एक अनसुलझी कविता..
ताकतवर,,,,बोल्ड अंग्रेजी में..
बोल्ड...या क्लीन बोल्ड हिन्दी में...
भाषा का तमाशा!!
एक नई कविता..
नई या पुरानी..
हू केयर्स!!
डैम!!!
-समीर लाल ’समीर’
73 टिप्पणियां:
स्वागत है जी!
देखा उसे मैने
इलाहाबाद के पथ पर
वो तोड़ती पत्थर...
दो बूँद पसीना....
सुखा पाने की कोशिश
घूप दिखा ..
ज्यूँ सूखता हो चद्दर...
देखा उसे मैने
इलाहाबाद के पथ पर
ज्यूँ सूखता हो चद्दर...
बदल गये युग......
मात्र कुछ पलों में...
निराला गुजरे..
हुए छिन्न तार...
wah kya bat hai badhai..
AAJ KE DIN KA SHREEGANESH AAPKI ANUPAM KAVITAAON SE HUA HAI ....AASHA HAI DIN BADHIYA GUZREGA,,,,,,,,,,,,
WAAH ! WAAH ! WAAH !
इतने सुन्दर भावपूर्ण कविताओं का जहाँ सृजन हो, वह जगह भी विलक्षण ही होगी.
यह सानफ्रांसिस्को क्यों भैया ??
शुभकामनायें !
नया शहर, नया अनुभव, जीवन के नये रंग, कुछ चटख कुछ धुँधले..
badhiya bhavaporn rachana ... abhaar
क्या हाल किसी दीवाने का
और क्या पता किसी बंजारे का...
भाषा का तमाशा!!
एक नई कविता..
नई या पुरानी..
हू केयर्स!!
डैम!!!.................. हू केयर्स!!
खुशियां यहीं पे मिलेंगी हमें रे,
अपना है, अपना...
ये देस...परदेस...
जय हिंद...
नए शहर, नए माहौल, नए साथियों के लिए शुभकामनाएं। बस कविता वही रहे.. वह न बदले..
बढिया है
ओह ! तो आजकल खानाबदोश बन गए हैं .
तभी कहीं नज़र नहीं आते .
खद्दरधारी कविता बहुत मार्मिक है .
शब्दों को रंगा है कहीं ... कहीं पहचानने की कोशिश करते भाव .. बेहतरीन प्रस्तुति।
वाह...............
निराला जी खुश होंगे.....
:-)
बहुत खूब सर.
सादर.
अनु
गोल्डन गेट ब्रिज की तस्वीर देख बहुत सारी मधुर स्मृतियाँ जागृत हो गयीं ! आपका सैनफ्रांसिस्को का प्रवास सुखद रहे यही कामना है ! तीनों कवितायें एक से बढ़ कर एक हैं ! निराला जी की रचना का रीमिक्स विशेष रूप से पसंद आया ! बधाई तो स्वीकार कर ही लीजिये !
कविता की प्रत्येक पंक्ति में अत्यंत सुंदर भाव हैं.... संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...
संजय भास्कर
teenon hi bahut achchi lagin.....
Bahut achchhe bhaav the aapki rachna ke aapko hardik badhai...
नए शहर में बड़े नए नए ख़याल आ रहे हैं.
शैली और अंदाज़-ए-बयां...दोनों भा गये...सन फ्रांसिस्को...के नाम से दर्द-ए-डिस्को याद आ गया...
चलिए ई फ़्रांसिस्को में आप थोडा तो ब्लॉग की तरफ़ खिसको । तीनों टुकडे दिल चाक चाक किए दे रहे हैं , जानते हैं मिट्टी की खुशबू आपहु को हलकान किए रहती है हमरे जईसे ही
बिल्कुल ताज़ी और फ़्रेश-फ़्रेश सी कविता जो नए आयाम को छूती है। आपने ब्लॉग जगत के लिए एक नायब तोहफ़ा दिया है। इन कविताओं के बिम्ब आकर्षक हैं और विषय को विस्तार प्रदान करते हैं\
तीनों कवितायें अलग अलग शेड्स लिए हुये ... सुंदर अभिव्यक्ति
सेन फ्रेन्सिसको पहुँच कर हवा-पानी में काफ़ी बदलाव आ गया लगता है, वहाँ का मौमस ही ऐसा है !
बहुत सुंदर हैं रचनाएँ..... शुभकामनायें
क्या बात है!! बहुत सुन्दर
नयी जगहं की कविताई
अच्छी नज्में हैं.यात्रा के दौरान तरह-तरह के भाव उभरते हैं जो कभी-कभी बहुमूल्य होते हैं.
नई जगह पर जमने की जद्दोजहद में भी कविता ने अपनी जगह बनाए रखी है...ये क्या कम है..
शुभकामनाएं !!
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...!
सेनफ्रांसिस्को में बेटा भी है, उसकी सेवाएं आप ले सकते हैं।
कविता नई हो या पुरानी, कविता तो कविता है, कवि के मन के भावों का शब्द रूप । सुंदर प्रस्तुति ।
लीजिये आपने टोरेन्टो छोड़ा और कविताओं ने आपका दामन पकड़ लिया...बहुत अलग और खूबसूरत अंदाज़ में आपने कवितायेँ रची हैं...आपके अन्दर का कवि अंगडाई ले कर उठ खड़ा हुआ है...इसे बैठने मत दीजिये...उम्र के इस दौर में आये इस बदलाव को सहने की हिम्मत आपमें है तभी कवितायेँ रची जा रही हैं...लगे रहिये समीर भाई...ये वक्त भी कट ही जायेगा...
नीरज
सेन फ्रेन्सिसको... ह्म्म्म ...दाना -पानी कहाँ से कहाँ ले जाता है !
कविता के भाव अच्छे हैं !
sundar prastuti
मत भेद न बने मन भेद:A post for all bloggers
एक नई कविता..
एक उलझी कविता..
एक अनसुलझी कविता..
ताकतवर,,,,बोल्ड अंग्रेजी में..
बोल्ड...या क्लीन बोल्ड हिन्दी में...
वाह वाह क्या बात है. दिल खुश हो गया. बधाई समीर जी
क्या हाल किसी दीवाने का
और क्या पता किसी बंजारे का...
beautiful lines
adbhut bhaw.
बहुत बढ़िया प्रस्तुति । शुभकामनाएँ ।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति । शुभकामनाएँ ।
The contents are really good…
Gurgaonflowerplaza.com
नमस्कार...मुबारक हो...हम ही नहीं.....आप भी ख़ानाबदोश हुए...जानकर अच्छा लगा....
सब पड़ाव हैं - भारत, टोरण्टो या सेनफ्रांसिस्को!
हुए छिन्न तार...
लुटी इस्मत...
वो पहने था खद्दर...
? .....
कवि और कविता .. श्वास और जीवन
शानदार प्रस्तुति.
मई २०१२ में US का प्रोग्राम है.१६th से २३ rd
में Western Coast के टूर में लौटते हुए सेन
फ्रांसिस्को होते हुए लौटना होगा.
आपके दर्शन हो पाए तो खुशी मिलेगी.
naya shahar aur nayi kavita.dono hi acche hain. mubarak.
नया शहर और नयी कविता. दोनों सुन्दर. मुबारक.
बहुत ही मार्मिक एवं सारगर्भित प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपके एक-एक शब्द मेरा मनोबल बढ़ाने के साथ-साथ नई उर्जा भी प्रदान करते हैं । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
आपकी गहन अनुभूतियों ,उत्कृष्ट भावाभिव्यक्तियों ने अभिभूत कर लिया...
सहज ही मन को छू, चुप कर देने वाली है समस्त प्रविष्टि...
क्या बात है समीर भई ...
तो अब अमेरिका आना होगा मिलने के लिए ...
चचा, आप हिंदी के स्वनामधन्य साहित्याकारों से बेहतर लिखते हैं, जिनकी लेखनी में धुंध और कुहरे के सिवा कुछ नहीं होता।
हम इधर टोरंटो में ढुंढते रहे और आप जा पहुंचे सेन फ़्रांसिस्को....आशा है ये प्रवास भी आनंद दायक रहेगा. शुभकामनाएं.
रामराम.
कवितायें लाजवाब हैं.
रामराम
सब एक से बढकर एक हैं.
रामराम
sir
avsar mila hai to ghumiye khoob -khoob ghumiye hamari par shubh kamnao ke saath hi saath apni shubh kamnaon se hamein vanchit na rakhiyega.
kaviyayen bahut bahut hi achhi lagin---
sadar naman
poonam
sir avsar mila hai to khoob khoob ghumiye par hammari shubh kamnao ke saath hi saath apni shubh kamnaon se hame bhi vanchit narakkhein----
kavitayein bahut bahut hi badhiya lagin
sadar naman
poonam
♥
आदरणीय समीर जी
सस्नेहाभिवादन !
नमस्कार !
लेखनी और सृजन आप जहां भी रहें , साथ ही रहेंगे
आप जैसों के लिए कहा जा सकता है - तू जहां जहां चलेगा , मेरा साया साथ होगा …
:)
सुंदर कविताएं … साधुवाद !
हार्दिक शुभकामनाएं !
मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
चलता जाता जीवन ऐसे ...
हर सुबह कुछ नया ....
कोई नया शहर ...
कुछ नए एहसास ...
कुछ नए लोग ...
फिर कोई नई कविता ...
लिखता चल ...
रमता चल
राही बढता चल ....
शुभकामनायें ...
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
टोरंटो या सेन फ्रांसिसको
यहाँ वहाँ बस सरको खिसको
इलाहाबाद सा मिला नहीं पथ
बैठ के देखा सोने का रथ.
कहाँ ले चली है जिंदगानी
याद आता नर्मदा का पानी.
तीनों रचनायें अति सुंदर............
बहुत ही सुंदर भाव...सुन्दर प्रस्तुति...हार्दिक बधाई...
bahut dino fir wahi behtarin dil ko chhune wali prastuti ! bhale jagah badal jaye...........
fir bhi dil hai hindusthani !
समीर जी कहीं रहे लेकिन बात तो तय कविताना तो छोड़ ही नही सकते है . सेन फ्रेंसिस्को की आबो हवा कैसी भी हो ............दिल से कविताई नही छीन सकती . प्रस्तुत कविताये ........हर बार की तरह दिल को चुने वाली !
नया तरीका भी खूब भाया
आप भी बड़े निराले हो....सर जी
yaha Canada k jaise jada thand nahi parti hogi achchha hai mama ji .
nirale andanj mein rachint sundar rachnayen... bahut badiya prastuti..
कल 21/05/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
। अच्छा पोस्ट । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
सुन्दर प्रस्तुति...
वो पहने था खद्दर...
देखा उसे मैने
इलाहाबाद के पथ पर....
वो पहने था खद्दर...
आज की कविता...
सुन्दर.
सादर बधाई.
Mr. Lal you are kindly requested not to wright such maarmik posts. I start missing you a lot, with tears in my eyes.
aapke shahar men aakar achchha laga.
par aapse milna n ho saka iska afsos hai.aasha hai bhavishy men shighr milna hoga.aapko kaisa lag raha hai
san fransisco.
गुरुदेव,
कहीं मेरे आपको किए मेल स्पैम में तो नहीं जा रहे...
सादर,
खुशदीप
priya sathi apki kavtayen and pravash ki tippani dono hi achchee hain aur man ko chhuti hain. Nirala jee ko yad karne ka yah tarika bhee nirala hai badhyee.
badhayee bahut achchee kavitayen hain.
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