मंगलवार, मार्च 20, 2012

बस!! यूँ ही एक गज़ल बन गई..

इधर व्यस्तता के दौर में समय समय पर आस पास देखते, अखबार पढ़ते, टीवी देखते तरह तरह के विचार आते गये और मैं उन्हें अलग अलग कागज पर लिखता रहा.

कभी घर के पिछली सर्दी में बर्फीले तूफान के दौरान पानी से हुए एक्सीडेन्ट के बाद का रीनोवेशन होते समय यहाँ के मकानों की लकड़ी की दीवारें देख और ऐसे मौके पर कुछ याद आते पुराने रिश्ते, कभी अनजानों के द्वारा अभिभूत करता अपनापन, कभी वेलेन्टाईन डे, मदर डे आदि पर होती चहल पहल देख, तो कभी भारत की खबरें- वहाँ का राष्ट्रव्यापि आन्दोलन, चुनाव, नेताओं की कूटनितियाँ, चालबाजी, तो इस बीच जापान में आये भूकम्प और सुनामी की तबाही का मंजर.

हर बार एक नया भाव, बस दर्ज करता चला गया और आज जब पलटाया उन कागज के पन्नों को तो लगा कि एक गज़ल बन गई जो मेरी हर बात, वो हर भाव जो इस दौरान उठे, कह रही है.

बस, मन किया कि आपसे साझा करुँ:

Tsunamis

पत्थर बिन दीवार बनाना, इन्सानों ने सीख लिया

पत्थर दिल इन्सान बनाना, भगवानों ने सीख लिया.

 

दूर हुए सब रिश्ते-नाते,दूर हुआ मिलना-जुलना

अपनों का किरदार निभाना बेगानों ने सीख लिया

 

प्रेम के इजहारों के दिन भी, त्यौहारों में बदले हैं

इनसे भी अब लाभ कमाना, बाज़ारों ने सीख लिया

 

कौन है हमको लूटने वाला काश कभी हम जान सकें

खादी में भी खुद को छुपाना मक्कारों ने सीख लिया

 

घड़ियाली आंसू बहते हैं, संसद के गलियारों में

ज्यूँ मछली से प्यार जताना, मछुआरों ने सीख लिया

 

एक नहीं लाखों मरते हैं, धरती के इक कंपन से

ढेरों कुनबे साथ जलाना, शमशानों ने सीख लिया

 

डोल गई दिल्ली की सत्ता, ऐसा मतिभ्रम खूब हुआ

जनता को ही मूर्ख बनाना, सरकारों ने सीख लिया.

-समीर लाल 'समीर'

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84 टिप्‍पणियां:

Dr. Shailja Saksena ने कहा…

बहुत बढि़या गज़ल है...आपकी गज़ल पढ़ कर अपनी सरकार के लिये यह कहने का मन करता है....."सुन-सुन कर भी बहरे बनना, सत्ताओं ने सीख लिया है"

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

समीर जी,भगवान बेचारे पर क्यों आरोप-
'पत्थर दिल इन्सान बनाना, भगवानों ने सीख लिया.'
ये तो इंसान ही है जो स्वाभाविक जीवन से असंतुष्ट रह कर अतिवादिता पर उतारू रहता है और उसी का परिणाम ये कटु अनुभव जो आप व्यक्त कर रहे हैं!
हाँ ,करे कोई भरे कोई यह विषमता ज़रूर कष्टदायी है.

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Bahut khub likha aapne bahut2 badhai...

Kunwar Kusumesh ने कहा…

बढि़या गज़ल है.

Padm Singh ने कहा…

आपकी बेहतरीन गज़लों मे से एक ... जबर्दस्त तीखे अंदाज़ के साथ मन को आंदोलित करती गजल।

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

हमने भी अब धीरे-धीरे ग़ज़ल बनाना सीख लिया...!


बहुत खूब कटाक्ष !

संध्या शर्मा ने कहा…

एक नहीं लाखों मरते हैं, धरती के इक कंपन से
ढेरों कुनबे साथ जलाना, शमशानों ने सीख लिया
सही बात है प्रकृति किसी न किसी तरह हमारे कर्मो का फल हमें दे ही देती है, ये नतीजा है उससे खिलवाड़ करने का... सटीक अभिव्यक्ति... आभार

Unknown ने कहा…

बहुत बढ़िया...समीर जी पसन्द आयी आपकी ग़ज़ल।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

अच्छी गज़ल बन गई है। कई दिनो का दर्द इकठ्ठे बाहर आया है। इस शेर का कटाक्ष बहुत प्रभावित करता है..
घड़ियाली आंसू बहते हैं, संसद के गलियारों में
ज्यूँ मछली से प्यार जताना, मछुआरों ने सीख लिया
..बधाई हो सर जी।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

बढ़िया ग़ज़ल..

P.N. Subramanian ने कहा…

समीरजी यह तो गजब की रही. हमने भी आपसे ग़ज़ल समझना सीख लिया.

दीपिका रानी ने कहा…

आज के युग में बहुत ही प्रासंगिक ग़ज़ल है..

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

प्रारम्‍भ के तीन शेर बहुत अच्‍छे हैं लेकिन जैसे ही राजनीति की बात आयी, मन कसैला हो गया।

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वक्त के साथ सभी बदल गए.....सीखते चले गए, अपना हित कैसे साधा जाये....

एक नहीं लाखों मरते हैं, धरती के इक कंपन से
ढेरों कुनबे साथ जलाना, शमशानों ने सीख लिया

बेहतरीन गज़ल सर...
सादर.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

कौन है हमको लूटने वाला काश कभी हम जान सकें

खादी में भी खुद को छुपाना मक्कारों ने सीख लिया



घड़ियाली आंसू बहते हैं, संसद के गलियारों में

ज्यूँ मछली से प्यार जताना, मछुआरों ने सीख लिया

Waah !

kalp verma ने कहा…

bahut khub likha hai...ekdum sachchi baat ek alag andaaz me...

Smart Indian ने कहा…

यूँ तो पूरी रचना अच्छी है परंतु निम्न पंक्तियाँ खास ही लगीं:
घड़ियाली आंसू बहते हैं, संसद के गलियारों में
ज्यूँ मछली से प्यार जताना, मछुआरों ने सीख लिया

एक नहीं लाखों मरते हैं, धरती के इक कंपन से
ढेरों कुनबे साथ जलाना, शमशानों ने सीख लिया

दिगम्बर नासवा ने कहा…

प्रेम के इजहारों के दिन भी, त्यौहारों में बदले हैं
इनसे भी अब लाभ कमाना, बाज़ारों ने सीख लिया ..

सच कहा है समीर भई ... आज सभी कुछ, त्यौहार, दिवस, मौका व्यवहार सभी में बाजारवाद घर कर गया है ...
कमाल की गज़ल है समीर भई ... मज़ा अ गया ..

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

hr ek pankti laajawab...kamal ki prastuti.....
abhar..........

सदा ने कहा…

वाह ...बहुत खूब ।

mridula pradhan ने कहा…

पत्थर बिन दीवार बनाना, इन्सानों ने सीख लिया
wah....kya sunder line hai.....

रश्मि प्रभा... ने कहा…

waah...

अनुपमा पाठक ने कहा…

वाह!
सत्य की आंच पर तपी हर पंक्ति सुन्दर है!
सादर!

Kailash Sharma ने कहा…

पत्थर बिन दीवार बनाना, इन्सानों ने सीख लिया

पत्थर दिल इन्सान बनाना, भगवानों ने सीख लिया.

...बहुत खूब! बेहतरीन गज़ल..हरेक शेर बहुत उम्दा और सटीक..आभार

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बस!! गज़ल यूँ ही बन जाती है :)

Unknown ने कहा…

सुन्‍दर, सामयिक ग़ज़ल। बधाई!!

Maheshwari kaneri ने कहा…

समीर जी बहुत बढिया..

डॉ टी एस दराल ने कहा…

वर्तमान परिवेश पर बढ़िया कटाक्ष .
शानदार ग़ज़ल .

Ram Lal Awasthi ने कहा…

बहुत ही बढ़िया, समसामयिक और साधारण शब्दों में कही गयी गंभीर बातें. मोगेम्बो खुश हुआ....

समय चक्र ने कहा…

दूर हुए सब रिश्ते-नाते,दूर हुआ मिलना-जुलना
अपनों का किरदार निभाना बेगानों ने सीख लिया

bhaut hi bhavapoorn abhivyakti..

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत बढ़िया लगी यह गजल ...

मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…

आपकी गजल को पढ़कर ऐसा लगा जैसे - यूं ही आपके कागज के कतरों ने दिल को छूना सीख लिया

Pratik Maheshwari ने कहा…

वाह! कुछ पंक्तियाँ तो बेहतरीन लगीं:
"अपनों का किरदार निभाना बेगानों ने सीख लिया"

"प्रेम के इजहारों के दिन भी, त्यौहारों में बदले हैं
इनसे भी अब लाभ कमाना, बाज़ारों ने सीख लिया"

"ढेरों कुनबे साथ जलाना, शमशानों ने सीख लिया"
मज़ा आ गया!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सीधे सरल शब्दों से क्या झन्नाट कटाक्ष किया है आपने, वाह पढ़कर मजा आ गया।

***Punam*** ने कहा…

just superb......!!

बिना किसी लाग-लपेट के एकदम सीधी-सच्ची बात...!!

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

एक नहीं लाखों मरते हैं, धरती के इक कंपन से

ढेरों कुनबे साथ जलाना, शमशानों ने सीख लिया

शानदार ग़ज़ल है समीर जी.

Shalini Khanna ने कहा…

बहूत अच्छी गज़ल.....आज के युग पर बिल्कुल सटिक..............

Unknown ने कहा…

घड़ियाली आंसू बहते हैं, संसद के गलियारों में
ज्यूँ मछली से प्यार जताना, मछुआरों ने सीख लिया

सटीक व्यक्त!!

निरामिष: पश्चिम में प्रकाश - भारत के बाहर शाकाहार की परम्परा

vandana gupta ने कहा…

सरल शब्दो मे गहरी बात कहती शानदार गज़ल्।

vandana gupta ने कहा…

सरल शब्दो मे गहरी बात कहती शानदार गज़ल्।

shikha varshney ने कहा…

पत्थर बिन दीवार बनाना, इन्सानों ने सीख लिया

पत्थर दिल इन्सान बनाना, भगवानों ने सीख लिया.
वाह क्या बात कही है ..बहुत खूब.

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी पोस्ट कल 22/3/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.com
चर्चा - 826:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

अशोक सलूजा ने कहा…

प्रेम के इजहारों के दिन भी, त्यौहारों में बदले हैं
इनसे भी अब लाभ कमाना, बाज़ारों ने सीख लिया .

आप की कलम से निकला एक सच और सिर्फ सच!
बहुत बधाई !
शुभकामनाएँ!

Arvind Mishra ने कहा…

बेहतरीन रचना ..जीवन के कितने ही शेडस समेटे हुए

Satish Saxena ने कहा…

घड़ियाली आंसू बहते हैं, संसद के गलियारों में

ज्यूँ मछली से प्यार जताना, मछुआरों ने सीख लिया

आज तो मज़ा बाँध दिया आपने ,,,,
आभार !

rashmi ravija ने कहा…

दूर हुए सब रिश्ते-नाते,दूर हुआ मिलना-जुलना
अपनों का किरदार निभाना बेगानों ने सीख लिया

क्या खूब कही है...बढ़िया ग़ज़ल

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

यही सीख तो सभी सरकारों ने बहुत अच्छे ढंग से सीख ली है.

ghughutibasuti ने कहा…

वाह!
घुघूती बासूती

Vaanbhatt ने कहा…

जनता को ही मूर्ख बनाना, सरकारों ने सीख लिया...

क्या बात है समीर जी...देश और जनता के प्रति ये सरोकार सराहनीय है...लगता है दिल अभी भी देश के लिए धड़कता है...यहाँ भी अब बिन पत्थर के दीवारें बन रहीं हैं...

Rohit Singh ने कहा…

हर धुन .. हर चित्र .. हर घटना आपकी आँखों से होते हुए आपके अंधार जाते जाते कविता बन जाती है..दर्द हो ..या खुसी ..शब्द अपने आप ही आप में बाने लगता है .

Pallavi saxena ने कहा…

वाह बहुत ही सुंदर भाव संयोजन के साथ सार्थक रचना ॥समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर ग़ज़ल बन पड़ी है...... संवेदना के भाव लिए

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है आपने!

vijay kumar sappatti ने कहा…

समीर जी
गज़ल नहीं , बल्कि आज के जीवन की महागाथा को आपने कम से कम शब्दों में ज्यादा से ज्यादा व्यक्त किया है . इंसान के मन की आंतरिक परिवर्तनों को बेहतर दर्शाया है . और यही तो आपकी खूबी है गुरुवार.

प्रणाम

वाणी गीत ने कहा…

बढ़िया है !

Amrita Tanmay ने कहा…

अच्छी लगी..

विष्णु बैरागी ने कहा…

बहुत अच्‍छे। प्रत्‍येक शेर अपने आप में एक स्‍वतन्‍त्र और पूर्ण विचार है।

बेनामी ने कहा…

waah! jnaab kya baat hai !

raadheji ने कहा…

bahut umda!

बेनामी ने कहा…

Lovely…
bangalorewithlove.com

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

गजल में कई रंग दिखा दिये ... खूबसूरत गजल

devendra gautam ने कहा…

शेर पढता गया संदर्भ ताज़ा होते गए. बहुत ही उम्दा ग़ज़ल.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

घड़ियाली आंसू बहते हैं, संसद के गलियारों में
ज्यूँ मछली से प्यार जताना, मछुआरों ने सीख लिया

वाह! वाह! वाह! बहुत ही शानदार ग़ज़ल...
सादर बधाईयाँ.

Dr Xitija Singh ने कहा…

पत्थर दिल इन्सान बनाना, भगवानों ने सीख लिया...

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल लिखी है समीर जी ...

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…





पत्थर बिन दीवार बनाना, इन्सानों ने सीख लिया
पत्थर दिल इन्सान बनाना, भगवानों ने सीख लिया

घड़ियाली आंसू बहते हैं, संसद के गलियारों में
ज्यूँ मछली से प्यार जताना, मछुआरों ने सीख लिया


वाह वाह !
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है
मुबारकबाद !

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

‎.

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥

*चैत्र नवरात्रि और नव संवत २०६९ की हार्दिक बधाई !*
*शुभकामनाएं !*
*मंगलकामनाएं !*

PRAN SHARMA ने कहा…

JAB GAZAL MEIN SACHCHAAEE KAA BYAAN
HOTA HAI TO VAH SONE PAR SUHAAGAA
HOTEE HAI.BEHTREEN GAZAL KE LIYE
AAPKO BADHAAEE .

PRAN SHARMA ने कहा…

JAB GAZAL MEIN SACHCHAAEE KAA BYAAN
HOTA HAI TO VAH SONE PAR SUHAAGAA
HOTEE HAI.BEHTREEN GAZAL KE LIYE
AAPKO BADHAAEE .

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत बढ़िया...

Unknown ने कहा…

बहुत बढ़िया

monali ने कहा…

पत्थर दिल इन्सान बनाना, भगवानों ने सीख लिया...

Ek tereh se achha hi kia k dil ko le k jeena mushkil hi hota...

Suman ने कहा…

प्रेम के इजहारों के दिन भी, त्यौहारों में बदले हैं

इनसे भी अब लाभ कमाना, बाज़ारों ने सीख लिया
bahut sundar har पंक्ति.....

Asha Joglekar ने कहा…

प्रेम के इजहारों के दिन भी, त्यौहारों में बदले हैं

इनसे भी अब लाभ कमाना, बाज़ारों ने सीख लिया



कौन है हमको लूटने वाला काश कभी हम जान सकें

खादी में भी खुद को छुपाना मक्कारों ने सीख लिया



घड़ियाली आंसू बहते हैं, संसद के गलियारों में

ज्यूँ मछली से प्यार जताना, मछुआरों ने सीख लिया


बहुत सुंदर गज़ल ।

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

वैसे तो पूरी ग़ज़ल ही उस सच को बयान कर रही है जो कि आज के समय में सत्य बन चुका है लेकिन सबसे अच्छी बात ये लगी जो हर जीवन से जुड़ी ही है इसके बिना तो जीवन जिया ही नहीं जा सकता है.


दूर हुए सब रिश्ते-नाते,दूर हुआ मिलना-जुलना

अपनों का किरदार निभाना बेगानों ने सीख लिया

Dinesh pareek ने कहा…

नवरात्र के ४दिन की आपको बहुत बहुत सुभकामनाये माँ आपके सपनो को साकार करे
आप ने अपना कीमती वकत निकल के मेरे ब्लॉग पे आये इस के लिए तहे दिल से मैं आपका शुकर गुजर हु आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
मेरी एक नई मेरा बचपन
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरा बचपन:
http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/03/blog-post_23.html
दिनेश पारीक

रचना दीक्षित ने कहा…

"डोल गई दिल्ली की सत्ता, ऐसा मतिभ्रम खूब हुआ
जनता को ही मूर्ख बनाना, सरकारों ने सीख लिया."

यही आज की वास्तविकता है सच्चाई है. सुंदर गज़ल.

sandeep sharma ने कहा…

बहुत खूबसूरत रचना है। यदि ऐसी चलते-फिरते ही बन जाती है, तो मन और टाइम लगाकर बनाएंगे तो कयामत ही न ढा देंगे आप...

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

पत्थर बिन दीवार बनाना इन्सानों ने सीख लिया

पत्थर दिल इन्सान बनाना भगवानों ने सीखलिया.


दूर हुए सब रिश्ते-नाते,दूर हुआ मिलना-जुलना

अपनों का किरदार निभाना बेगानों ने सीख लिया


प्रेम के इजहारों के दिन भी, त्यौहारों में बदले हैं

इनसे भी अब लाभ कमाना बाज़ारों ने सीख लिया

क्या बात है समीर जी, गज़ल के हर शेर पर दाद कबूल फरमायें...

Coral ने कहा…

बहुत खूब!

Abhishek Ojha ने कहा…

बढ़िया !

Anjelanima_एंजेला एनिमा ने कहा…

बहुत बढ़िया गज़ल सर

Pradeep Gupta ने कहा…

महज अपने ही लिए शोहरत और दौलत से जो ठाठ बना बैठे हैं
उसी से हम लोग इंसानी रिश्तों में नफरत की दीवार उठा बैठे हैं
प्रदीप गुप्ता
BRAND CONSULTANT
+91-9920205614

Pradeep Gupta ने कहा…

महज अपने ही लिए शोहरत और दौलत से जो ठाठ बना बैठे हैं
उसी से हम लोग इंसानी रिश्तों में नफरत की दीवार उठा बैठे हैं
प्रदीप गुप्ता
BRAND CONSULTANT
+91-9920205614

नीलांश ने कहा…

acchi ghazal sameer ji