मुझे नहीं, वो मेरी लेखनी पसंद करती है. मुझे तो वो कभी मिली ही नहीं और ये भी नहीं जानता कि कभी मिलेगी भी या नहीं? बस जितना जानती है मुझे, वो मेरे लेखन से ही. कभी ईमेल से थोड़ी बात चीत या कभी चैट पर हाय हैल्लो बस.
मगर उसे लगता है कि वो मुझे जानती है सदियों से. एक अधिकार से अपनी बात कहती है. मुझे भी अच्छा लगता है उसका यह अधिकार भाव.
पूछती कि तुम कौन से स्कूल से पढ़े हो, क्या वहाँ पूर्ण विराम लगाना नहीं सिखाया? तुम्हारे किसी भी वाक्य का अंत पूर्ण विराम से होता ही नही ’।’ ..हमेशा ’.’ या इनकी लड़ी ’....’ लगा कर वाक्य समाप्त करते हो. शायद उसने मजाक किया होगा मेरी गलती की तरफ मेरा ध्यान खींचने को.
ऐसा नहीं कि मैं पूर्ण विराम लगाना जानता नहीं मगर न जाने क्यूँ मुझे पूर्ण विराम लगाना पसंद नहीं. न जिन्दगी की किसी बात मे और न ही उसके प्रतिबिम्ब अपने लेखन में. मुझे हमेशा लगता है अभी सब कुछ जारी है. पूर्ण विराम अभी आया नहीं है और शायद मेरी जैसी सोच वालों के लिए पूर्ण विराम कभी आता भी नहीं..कम से कम खुद से लगाने को तो नहीं. जब लगेगा तो मैं जानने के लिए हूँगा नहीं.
कहाँ कुछ रुकता है? कहाँ कुछ खत्म होता है? मेरा हमेशा मानना रहा है कि - जब सब कुछ खत्म हो जाता प्रतीत होता है तब भी कुछ तो रहता है. एक रास्ता..बस, जरुरत होती है उसे खोज निकालने की चाह की, एक कोशिश की.
मैं उसे बताता अपनी सोच और फिर मजाक करता कि अंग्रेजी माध्यम से पढ़ा हूँ न, इसलिए पूर्ण विराम लगाना नहीं सीखा..वो खिलखिला कर हँसती. उसे तो पहले ही बता चुका था कि सरकारी हिन्दी स्कूल से पढ़ा हूँ.
वो खोजती मेरी वर्तनी की त्रुटियाँ, वाक्य विन्यास की गलतियाँ और लाल रंग से उन्हें सुधार कर ईमेल से भेजती. मैं उसे मास्टरनी बुलाता तब वो पूछती कि लाल रंग से सुधारना अच्छा नहीं लगता क्या...जबकि उसका इस तरह मेरी गलतियाँ सुधारना मुझे अच्छा लगता और मुझे बस यूँ ही उसे मास्टरनी पुकारना बहुत भाता.
बातों से ही अहसासता कि वो जिन्दगी को थाम कर जीती है, बिना किसी हलचल के और मैं बहा कर.
मुझे एक कंकड़ फेंक उस थमे तलाब में हलचल पैदा करने का क्या हक, जबकि वो कभी मेरा बहाव नहीं रोकती.
अकसर जेब से कंकड़ हाथ में लेता फिर जाने क्या सोच कर रुक जाता फेंकने से..और रम जाता अपने बहाव में.
सब को हक है अपनी तरह जीने का...
लेकिन पूर्ण विराम...वो मुझे पसंद नहीं फिर भी.
थमे ताल के पानी मे
एक कंकड़ उछाल
हलचल देख
मुस्कराता हूँ मैं...
ठहरे पानी में
यह भला कहाँ मुमकिन...
फिर भी
बहा जाता हूँ मैं!!
-समीर लाल ’समीर’
76 टिप्पणियां:
अच्छी भावनात्मक अभिव्यक्ति......
थमे ताल के पानी मे
एक कंकड़ उछाल
हलचल देख
मुस्कराता हूँ मैं...
ठहरे पानी में
यह भला कहाँ मुमकिन...
waah
ठहरे पानी में युँ ना कंकरिया मारो।
तुम बहने के बहाने युँ ना ढूंढो यारों।
पूर्ण विराम को लेकर सुन्दर प्रतीकात्मक लेख !
जीवन के गद्य को व्याकरण की 'अशुद्धियों' के साथ पद्य की तरह न सिर्फ पढ़ा, बल्कि गाया भी जाता है.
पूण विराम तो एक ही बार लगता है जी, बाक़ी तो डॉट-डॉट ही है......
कविता के भाव बहुत गहरे हैं .....
बहुत बड़े ज्ञान की बात बताई है आप ने समीर साहब की "जब सब कुछ खत्म हो जाता प्रतीत होता है तब भी कुछ तो रहता है. एक रास्ता..बस, जरुरत होती है उसे खोज निकालने की चाह की, एक कोशिश की"
शुक्रिया
@>>अभी सब कुछ जारी है. पूर्ण विराम अभी आया नहीं है ...
और जब पूर्ण विराम आता है तब इंसान क्या कर पाता है ....आपका ख्याल नेक है ..सार्थक है ...प्रभावी है ...बहुत - बहुत आभार
पूर्ण विराम पर आपका नज़रिया मुकम्मल लगा। ठ्हराव और बहाव की फ़िलासफ़ी पर लिखी कविता संदेश देने में सक्छम है ।
एक प्ररभावशाली रचना
सच है जीवन तो चलने का नाम है अभी से पूर्ण विराम क्यों लगाया जाए
आज तो फलसफे पे फलसफे ;)
लिखते रहिये ...
गहन अभिव्यक्ति ...सरस लेखन
बहुत अच्छी अभीव्यक्ति .....जब जिन्दगीका नाम चलना है तो पूर्ण विराम क्यू?... आपके कविताके भाव अच्छे लगे
पूर्ण विराम का मतलब है अब और कुछ नहीं...
उम्मीद है आपकी रचनाओं में पूर्ण विराम कभी न लगे....
भावपूर्ण कविता .... पूर्णविराम की बात पर मन ठहर गया.....
प्रेरणा देती हुई हैं आपकी पोस्ट और उसके साथ लगी रचना!
जब खुद ही कह दिया 'सब को हक है अपनी तरह जीने का' तो उसके बाद कहने को बचता ही क्या है?
पूर्ण विराम्……………लगना ही नही चाहिये……………चलते रहिये……………………एक बेहद उम्दा भावपू्र्ण अभिव्यक्ति।
सही है कोई पूणैविराम नहीं। ना लेखनी में और ना ही जीवन में।
बस यही है कि पूरी कंघी-पट्टी करने, पूरी भावुकता समेटने के बावजूद हमें न वो मिलती है, न कविता निकलती है कलम से।
नजरिये की रुक्षता कैसे निकाली जाये, इस पर एक पोस्ट लिखें आप।
आज तो अलग ही रंग में डूबी है लेखनी...बहुत ही सहज और सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कविता! बेहतरीन प्रस्तुती!
SUNDAR KAVITA AUR KAVITA KE BAHANE BEBAK BATCHEET
SUNDAR KAVITA AUR KAVITA KE BAHANE BEBAK BATCHEET
सब कुछ ख़त्म होते दिखते भी कहीं न कहीं कुछ बचा रहता है ...
यही उम्मीद है ....
@ जब लगेगा तो मैं जानने के लिए हूँगा नहीं...
पूर्ण विराम लगने की यही शर्त है तो पूर्ण विराम कभी आये ही नहीं ...
कैसे बंजारे मन सी उदासी है इस आलेख में ...
जीवन में पूर्णविराम का ना होना ही अच्छा है.. सुन्दर कविता..
भावमय करते हुये शब्द ....।
पुरम विराम लगना ही नहीं चाहिए ..गहन अभिव्यक्ति.
‘मुझे नहीं, वो मेरी लेखनी पसंद करती है. ’
ई तो बहानेबाजी है जी :)
... bahut badhiyaa ... shaandaar post !!!
थमे ताल के पानी मे
एक कंकड़ उछाल
हलचल देख
मुस्कराता हूँ मैं...
ठहरे पानी में
यह भला कहाँ मुमकिन...
फिर भी
बहा जाता हूँ मैं!!
.....
कोमल भावों से सजी कविता . शुभकामना .
थमे ताल के पानी मे
एक कंकड़ उछाल
हलचल देख
मुस्कराता हूँ मैं...
ठहरे पानी में
यह भला कहाँ मुमकिन...
फिर भी
बहा जाता हूँ मैं!
sunder!
एक कंकड़ उछाल
हलचल देख
मुस्कराता हूँ मैं...
ठहरे पानी में
यह भला कहाँ मुमकिन...
रोज़मर्रा की बात से निकली सुन्दर भावमय अभिव्यक्ति____ चलो हम भी पूर्ण विराम नही लगाते--- शुभकामनायें---
भावपूर्ण अभिव्यक्ति ..... आभार
बिल्कुल सटीक, अपनी तरह जीने का अधिकार सभी को है, सुंदर विचार.
रामराम
कमाल है , यह तो हमने कभी ध्यान दिया ही नहीं ।
ठहरे पानी में यह भला कहाँ मुमकिन... फिर भी बहा जाता हूँ मैं!!
क्या बात है ।
- कहते हैं कि समीर का है अंदाज़े ब्याँ और. कविता छोटी और पैनी है.
बहोत*१००० सुन्दर प्रस्तुति ............
बहुत ही सार्थक लेख
मेरी बातें पूर्ण विराम तब तक ना लेंगी जब तक मै खुद की पूर्ण आहुति इस जीवन समर में ना दे दूँ
जीवन के प्रति आपके दृष्टिकोण से परिचय कराती हुई रचना के साथ साथ एक भावनात्मक रचना.
सच में ऐसी कोई अधिकार जताने वाली है क्या :)
क्या बात है समीर जी ......!!
कौन है वो .....?????
सारी टिप्पणियाँ गौर से पढनी पडेंगी अब तो ....
तुम कौन से स्कूल से पढ़े हो, क्या वहाँ पूर्ण विराम लगाना नहीं सिखाया? तुम्हारे किसी भी वाक्य का अंत पूर्ण विराम से होता ही नही ’।’
ओये होए .....!!
थोडा कयास हम भी लगा ही लेते हैं कौन होगी .....
अब स्कूल के बारे पूछा है शहर के बारे नहीं तो वो आपके ही शहर की होगी ....
आपका शहर यानि ...जबलपुर .....???.
सारी टिप्पणियाँ (सिर्फ महिलाओं की ) देख लीं कइयों ने तो लिखा ही नहीं कहाँ रहती हैं ....
यानि फेल .....
चलिए आगे कड़ी नज़र रखी जाएगी ....
@ थमे ताल के पानी मे एक कंकड़ उछाल हलचल देख मुस्कराता हूँ मैं... ठहरे पानी में यह भला कहाँ मुमकिन... फिर भी बहा जाता हूँ मैं......
ओये होए .....!
बहाव रोकिये .....
पीछे साधना जी खड़ी हैं .....हा...हा...हा.....!!
थमे पानी की हलचल, जीवन के कई रूप सिखा जाती है या जीवन को ही जीवन्त कर जाती है।
वाह अच्छी अभिव्यक्ति "पूर्ण विराम" के प्रति रुखता की..
पूर्ण विराम तो सही मायनों में यहाँ से चले जाने के बाद ही लगेगी जिसे देखने के लिए हम नहीं रहेंगे पर दुनिया रहेगी..
अच्चा लगा यह पोस्ट...
आभार
'पूर्णविराम' इस बेहद ही सरल प्रतीत होते शब्द में गहरे अर्थ छुपे हैं| आप ने अपने लेख में इसका बखान बड़ी ही खूबी से किया है.**शुभकामनाएं**
ठहरे पानी में फैंका हुवा एक पत्थर कितने लहरें पैदा करता है.......
एक पूर्ण विराम मात्र का स्मरण पता नहीं इस ह्रदय रुपी ताल में भावना रूपी लहरों को जन्म देता है......
वैसे बात थोड़ी खोल कर बताते तो अच्छा था.. :)
बिना बाधा बने किसी साथ का अनुभव करते रहना भी एक सुखद अनुभूति होगी ,समीर जी !
ठहरे हुए पानी में कंकर न मार सांवरे. हलचल सी उठ जाएगी। मगर जहां जल के अंदर ही इतनी हलचल हो वहां कंकर मारने की जरुरत है क्या?
एक प्ररभावशाली रचना पूर्ण विराम क्यों ?
गुरुदेव की भी गुरुदेवनी को शत शत नमन...
आपका पूर्ण विराम का दर्शन आत्मसात कर लिया है...
गुरुदेव एक दिन का वक्त निकाल सकें तो ऋषिकेश में बिल्कुल अलौकिक जगह पर मेरे साथ चलिए..
जय हिंद...
इस 'वो' और पूर्णविराम का जीवन में बहुत महत्व है. दोनों ही हर मोड़ पर कुछ सिखा जाते हैं. जीवन का अंत या जीवन की शुरुआत.
पूर्ण विराम लगाने की कत्तई जरूरत नहीं है. आप यूँ ही बहते रहिए... निर्झर.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
sameer bhai ji,
poorn viram na lagane ka matlab hamesha jeevant bane rahna vo to hain aap.ye sab ke bas ki baat nahin.
apne aap mein bahut kuchh kahti post sarahneey.. badhai!!
no cooment on 'o'
jai hind-jai bloging
समीर भाई .... गहरी अनुभूति ... क्या अछा नहीं है पूर्ण विराम आये ही नहीं जीवन में .... यूँ ही चलते रहें ..
sir,
poorn viraam waali baat ...kuch man me utar gayi.. abhi kuch bol nahi paaunga .. phir kabhi ..
vijay
poornviram....ek sampoornta bhi hai par jeevan me ye asampoornta bani rahe tabhi iski kashish banhi rahti hai.....ek poornviram par bahut bhavpoorn lekhan...
Adwitiya........!
बड़ा संदेश देती पोस्ट...
यही तो आपकी विशिष्ट शैली भी है.
दार्शनिक
ये भी एक खास अंदाज है कि कब कौन सा विराम प्रयोग करना है..पूर्ण विराम पर एक बढ़िया रोचक आलेख....कविता तो बहुत सुंदर बन पड़ी है..बधाई जी
बहुत सुन्दर कविता ............चन्द शब्दों का बेजोड़ मेल..........
ठहरे हुए शांत पानी में पत्थर फ़ेंककर जितने खुश होते है शायद पानी को उतनी ही तकलीफ हो...... अच्छा किया जो आपने ऐसा नहीं किया..... बहुत ही सुंदर और भावुकता के साथ लिखे हुए सुंदर संस्मरण.
कहाँ से कहाँ तक सोच जाती है गुरू आपकी ? वाह वाह क्या कहना !
छू न पाती है परे-जिब्रील की हवा
ये किन बुलंदियों पे उड़े जा रहे हो तुम ?
और कहते हो कि बहते हो ? हा हा!
बहुत नाज़ुक सी पोस्ट है.
क्या कंकड़ उछाला और क्या खूब बहे , हम भी इस बहाव में बह गये ।
कितनी गहरी दर्शन की बातें कितने सहज भाव से कह जाते हैं आप ! पूर्णविराम भला कौन लगाना चाहेगा अपनी लेखन यात्रा में भी और जीवन यात्रा में भी ! जितना काव्यात्मक गद्य उतनी ही खूबसूरत कविता ! दोनों ही बेजोड़ और बेमिसाल ! बधाई एवं आभार !
bahut sahaj aur sunder bhaw.
सब को हक है अपनी तरह जीने का...
लेकिन पूर्ण विराम...वो मुझे पसंद नहीं फिर भी.
ham sahmat hai aap ki is baat se.
पूर्ण विराम मुझे पसंद नहीं" इसमें सब कुछ कह दिया आपने.
- विजय तिवारी
aadarniy sar
bahut hi khoobsurat lagin aapki kavita ki panktiyan.bahut hi badhiya bhav purn.
poonam
aadarniy sar
bahut hi khoobsurat lagin aapki kavita ki panktiyan.bahut hi badhiya bhav purn.
poonam
Purn viraam .. sabhi log use karte hain lekin koun apne lekhan mein apni abhivayakti mein aur uski baaton mein, bahte rahne mein, purn viraam lagana chhata hai
bahut achchi lagi aapki ye post.man ko bheetar tak chhuti hui masoom si,
‘पूर्ण विराम‘ को लेकर इतना सुंदर फलसफाना लेख और कविता...कमाल है...ऐसा आप ही कर सकते हैं...पढ़कर अच्छा लगा।
samir ji purna viram ko lekar jis saraltase apne likha bahut sunder laga....
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