सरकारी घर मिला हुआ था पिता जी को, पहाड़ के उपर बनी कॉलोनी में- अधिकारियों की कॉलोनी थी- ओहदे की मर्यादा को चिन्हित करती, वरना कितने ही अधिकारी उसमें ऐसे थे कि कर्मों से झोपड़ी में रखने के काबिल भी नहीं, रहना तो दूर की बात होती. मजदूरों और मातहतों का खून चूसना उन्हें उर्जावान बनाता था.
वो अपने पद के नशे में यह भूल ही चुके थे कि कभी उन्हें सेवानिवृत भी होना है. खैर, सेवा के नाम पर तो वो यूँ भी कलंक ही थे तो निवृत भला क्या होते लेकिन एक परम्परा है, जब साथ सारे अधिकार भी पैकेज डील में जाते रहते हैं. खुद तो खैर औपचारिक रुप से सेवानिवृत होने के साथ ही शहर में कहीं आकर बस जाते मगर बहुत समय लगता उन्हें, जब वो वाकई उस पहाड़ वाली कॉलोनी से अपनी अधिकारिक मानसिकता उतार पाते. जिनका जीवन भर खून पी कर जिन्दा रहे, उन्हीं से रक्त दान की आशा करते. कुछ छोड़ा हो तो दान मिले. खाली खजाने से कोई क्या लुटाये.
उसी पहाड़ पर उन्हीं अधिकारियों के बच्चे, हम सब भरी दोपहरिया में निकल लकड़ियाँ और झाड़ियाँ बीन कर चट्टानों के बीच छोटी छोटी झोपड़ियाँ बनाते और उसी की छाया में बैठ घर घर खेलते. अपने घर से टिफिन में लाया खाना खाते मिल बाँट कर और उस झोपड़ी को अपना खुद का घर होने जैसा अहसासते. मालूम तो था कि शाम होने के पहले घर लौट जाना है या अगर ज्यादा गरमी लगी तो शाम से कोई वादा तो है नहीं कि तुम्हारे आने तक रुकेंगे ही, और होता भी तो वादा निभाता कौन है? फिर रात तो गर्मी में कूलर और सर्दी में हीटर में सोकर कटेगी (आखिर अधिकारी के बेटे जो ठहरे) तो झोपड़ी की गर्मी/सर्दी की तकलीफ का कोई अहसास ही नहीं होता. घर से बना बनाया खाना और बस लगता कि काश इसी में रह जायें.
वातानुकूलित ड्राईंगरुम में बैठकर गरीबी उन्मूलन पर भाषण देने और शोध करने जैसा आनन्द मिला करता था उन झोपड़ियों में बैठ कर.
पहाड़ों पर तफरीह के लिए घूमने जाना और पहाड़ों की दुश्वारियों को झेलते हुए पहाड़ों पर जीवन यापन करना दो अलग अलग बातें हैं, दो अलग अलग अहसास जिन्दगी के.
सुनते हैं आजकल युवराज ऐसे ही कुछ अहसास रहे हैं शासन की बागडोर संभालने के पहले.
काश!! दुश्वारियाँ, परेशानियाँ और दर्द बिना झेले अहसासी जा सकती.
भरी रसोई में ही उपवास भी धार्मिक कहलाता है वरना तो फक्कड़ हाली को कौन पूछता है. न कोई पुण्य मिलता है, न ही पुण्य प्राप्ति की आशा उन दो रोटियों की उम्मीद में.
भगवान भी कैसे भेदभाव करता है-शौकिया भूखा रहने वालों को पुण्य और मजबूरीवश भूखा रहने वालों को अगले दिन फिर भूख झेलने की सजा.
कहने को
बहुत कुछ है
मगर लंगड़े हालात ऐसे
कि
जुबान लड़खड़ा जाती है...
और
बैसाखी मुहैया कराने को
सक्षम हाथ
कहते हैं
मैं
नशे में हूँ!!
-समीर लाल ’समीर’
नोट: जब यह पोस्ट आयेगी, तब मैं देहरादून के रास्ते में रहूँगा. शायद देहरादून ९ तारीख की रात पहुँच कमेंट अप्रूव कर पाऊँ अगर कनेक्शन मिला तो..वरना तो भगवान भरोसे देश चल रहा है तो हम तो चल ही जायेंगे. :)
देहरादून और नजदीकी ब्लॉगर अगर मिलना और संपर्क करना चाहें तो नम्बर ०८८८ ९३७ ६९३७…
94 टिप्पणियां:
कहने को
बहुत कुछ है
मगर लंगड़े हालात ऐसे
कि
जुबान लड़खड़ा जाती है...
और
बैसाखी मुहैया कराने को
सक्षम हाथ
कहते हैं
मैं
नशे में हूँ!!
दुर्भाग्य से यह सच है! मगर कब तक?
सुंदर शब्दों में कड़वा सच!
आदरणीय समीर लाल जी
नमस्कार
आपका संस्मरण जीवन की सच्चाईयों को उद्घाटित करता है, आखिर इंसानियत बड़ी है ..पद और प्रतिष्ठा नहीं ..पर कुछ लोग इस बात को भूल जाते हैं ....बहुत आभार
यात्रा मंगलमय हो ...
देश धमाकों के बीच सुखपूर्वक चल रहा है
बाकी सब ठीक है
सक्षम हाथ
कहते हैं
मैं
नशे में हूँ!!
....स्वीकार कर लेते तो क्या बात थी ! वो तो हम-आप जानते हैं कि वे नशे में हैं।
...यहाँ आकर बचपन की यादों में आपका खोना तो स्वाभाविक है, हमसे अपनी यादें बांटना अच्छा लगा।
गरीबों के साथ कुछ पल बिताकर लगता है गरीबों पर एहसान हो गया ,ये वोट तो अब कहीं नहीं जाने वाला ????
भगवान की माया है, जय हो..
कई बार भोगे हुए यथार्थ से कम प्रामाणिक और वैध नहीं होता महसूस किया यथार्थ.
मजदूरों और मातहतों का खून चूसना उन्हें उर्जावान बनाता था
नरपिशाच जो ठहरे!
आप ने बहुत सही लिखा है पहाड़ों पर तफरीह के लिए घूमने जाना और पहाड़ों की दुश्वारियों को झेलते हुए पहाड़ों परजीवन यापन करना दो अलग अलग बातें हैं| जो पहाड़ में रहता है वही जानता है|
जिनके जुल्म से दुखी है जनता हर बस्ती हर गांव में,
दया धर्म की बात करें वो बैठ के सजी सभाओं में,
दान का चर्चा घर-घर पहुंचे, लूट की दौलत छुपी रहे,
नकली चेहरा सामने आए, असली सूरत छुपी रहे...
देखे इन नकली चेहरों की कब तक जय जयकार चले,
उजले कपड़ों की तह में कब तक काला संसार चले,
कब तक लोगो की नज़रों से छुपी हक़ीक़त छुपी रहे,
नकली चेहरा सामने आए, असली सूरत छुपी रहे...
क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छुपी रहे,
नकली चेहरा सामने आए, असली सूरत छुपी रहे...
जय हिंद...
phone no. dene ke liye dhanyvad ab to bat hi hogi
जानकर अनजान बने रहना आसान नहीं। जागते हुए सोए रहने का अभिनय करना भी कठिन है। नियत ठीक हो सकती है किन्तु तरीका उचित नहीं लगता।
यह केवल पहाड़ी ओहदे की बात नहीं है ..हर सरकारी ओहदे की बात है ...झोपड़ी बना कर सच्चा आनंद लिया...बचपन को जीवंत कर दिया ....
सुनते हैं आजकल युवराज ऐसे ही कुछ अहसास रहे हैं शासन की बागडोर संभालने के पहले. काश!! दुश्वारियाँ, परेशानियाँ और दर्द बिना झेले अहसासी जा सकती.
काश होता ऐसा ....
इस पोस्ट का प्रत्येक वाक्य एक दर्शन है। जीवन की नंगी सच्चाई है। कल्पना और यथार्थ का अन्तर बेहद मार्मिक है।
मगर लंगड़े हालात ऐसे
कि
जुबान लड़खड़ा जाती है...
और
बैसाखी मुहैया कराने को
सक्षम हाथ
कहते हैं
मैं
नशे में हूँ!!
regards
आपकी कलम का लोहा मनवाती एक और बेहतरीन पोस्ट...जुमले घड़ने में आपका जवाब नहीं...
नीरज
एक कमेन्ट मेरा भी,आपके एप्रूवल के इन्तेज़ार में खड़ा है :)
इस दुनिया के रंग निराले...
कोई खाते-खाते मरे कोई खाने बिना मरे :(
बहुत बढ़िया पोस्ट।
सही कहा कुछ ना कुछ तो शेष रह ही जाता है....
मगर लंगड़े हालात ऐसे
कि
जुबान लड़खड़ा जाती है...
और
बैसाखी मुहैया कराने को
सक्षम हाथ
कहते हैं
मैं
नशे में हूँ!!
एक कडवा सच उजागर कर दिया……………सच है।
शाल ओढकर आग तापना कहाँ तक ठीक है?
aadarniy sir.bahut hi sahi prastuti
भगवान भी कैसे भेदभाव करता है-शौकिया भूखा रहने वालों को पुण्य और मजबूरीवश भूखा रहने वालों को अगले दिन फिर भूख झेलने की सजा.
ek yatharth prastut karti aapki rachna.
poonam
एक पड़ोसी हैं हमारे - सेवानिवृत्त अधिकारी। अभी भी अधिकारी मोड में। साल भर हमने उनकी रौबियत देखी, सुनी, सही।
फिर एक दिन बात लत्तेरेकी-धत्तेरेकी पर आ गयी और अब सही समीकरण हो गये हैं।
हमने तय किया है कि अपने समीकरण शुरू से ही सही रखें।
फिर भी, तमन्ना मड़ई की है - वातानुकूलित!
आपकी पोस्ट ने यह सब याद दिलाया। धन्यवाद।
पुछल्ले से तबीयत टुन्न हो गयी. आभार.
""भगवान भी कैसे भेदभाव करता है-शौकिया भूखा रहने वालों को पुण्य और मजबूरीवश भूखा रहने वालों को अगले दिन फिर भूख झेलने की सजा""
बहुत ही भावुक कर देने वाली पोस्ट .... ईश्वर ने जीवन तो दोनों को दिया हैं ..भगवान का यही भेदभाव तो उचित नहीं हैं ... देहरादून की यात्रा सफल हो ... सर लगता है स्केटिंग वगैरा का जुगाड़ है .... बर्फबारी अच्छी खासी हो रही है ... आभार
"भगवान भी कैसे भेदभाव करता है-शौकिया भूखा रहने वालों को पुण्य और मजबूरीवश भूखा रहने वालों को अगले दिन फिर भूख झेलने की सजा. "
बिलकुल सही कहा...कलयुग है,ना...ऐसा ही होता है
जनाब समीर साब यूँ तो सारा लेख सुंदर है मगर आपकी यह लाइन ....काश!! दुश्वारियाँ, परेशानियाँ और दर्द बिना झेले अहसासी जा सकती.दिल में ठहर सी गई है और कविता क्या खूब लिखी वाह नशे वाल बात वाह जनाब सुंदर व्यंग आलेख में भी और कविता में भी .शुक्रिया
जब सेवा ही नहीं की जीवन भर तो निवृत्ति कैसी। जीवन भर लूटने की आवृति रहे तो निवृत्ति कैसी।
वाह समीर भाई .. किधर निशाना है ...
भारत दर्शन हो रहे हैं आज कल ... दिली कब आओगे ... मैं भी २३ को पहुँच रहा हूँ ...
शानदार पोस्ट!
सराहनीय रचना!
--
आप देहरादून जा रहे हो!
आपकी यात्रा मंगलमय हो!
--
देहरादून में पंडित जी की तबियत खराब है!
भेंट नही हो पायेगी! इसीलिए मैंने भी देहरादून का कार्यक्रम स्थगित कर दिया है!
गंभीर चिंतन कर डाला आज तो ..अच्छी पोस्ट.
देहरादून के बाद पोर्टब्लेयर घूमने आइयेगा अंकल जी...
______________
'पाखी की दुनिया' में छोटी बहना के साथ मस्ती और मेरी नई ड्रेस
भगवान भी कैसे भेदभाव करता है-शौकिया भूखा रहने वालों को पुण्य और मजबूरीवश भूखा रहने वालों को अगले दिन फिर भूख झेलने की सजा.
वाह जी , क्या बात कही है । इसलिए हम तो उपवास रखते ही नहीं ।
पहाड़ों पर तफरीह के लिए घूमने जाना और पहाड़ों की दुश्वारियों को झेलते हुए पहाड़ों पर जीवन यापन करना दो अलग अलग बातें हैं, दो अलग अलग अहसास जिन्दगी के.
हमारे नेता भी इसी तरह आदिवासियों और गरीबों की झौपडी में जाकर रात बिताने या खाने का ड्रामा करते हैं.
रामराम.
देहरादून प्रवास बुबारक हो. ब्लागर सम्मेलन कर लिया हो तो रिपोर्ट भिजवाईयेगा.
रामराम.
बहुत सामयिक और सटीक पोस्ट, आज का सारा नेतामयी माहोल ही ऐसा है. सिवाय नौटंकी कुछ नही, ओढी हुई सादगी भोगना अलग बात है.
रामराम.
कविता का रसवादन लेना सुंदर अनुभव रहा
शौकिया भूखा रहने वालों को पुण्य और मजबूरीवश भूखा रहने वालों को अगले दिन फिर भूख झेलने की सजा.......सच कहा है |
बडे बडे होटलों में झोपडी नुमा केबिन, बडे लोगों के लिए गरीबी भी एक खिलवाड ही तो है... वो क्या जाने गरीबी. उन्हें तो बस उस को भी एन्कैश कराना है :(
अच्छी लगी, रचना।
भरी रसोई में ही उपवास भी धार्मिक कहलाता है वरना तो फक्कड़ हाली को कौन पूछता है. न कोई पुण्य मिलता है, न ही पुण्य प्राप्ति की आशा उन दो रोटियों की उम्मीद में.
भगवान भी कैसे भेदभाव करता है-शौकिया भूखा रहने वालों को पुण्य और मजबूरीवश भूखा रहने वालों को अगले दिन फिर भूख झेलने की सजा.
बहुत सुन्दर........
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
"भगवान भी कैसे भेदभाव करता है-शौकिया भूखा रहने वालों को पुण्य और मजबूरीवश भूखा रहने वालों को अगले दिन फिर भूख झेलने की सजा."
katu yatharth ko sahajta se abhivyakti mili hai!
regards,
भगवान भी कैसे भेदभाव करता है-शौकिया भूखा रहने वालों को पुण्य और मजबूरीवश भूखा रहने वालों को अगले दिन फिर भूख झेलने की सजा...
pata nahi kyun !
अधिकारी होना ही श्राप है...हम्म.
बेहतरीन पोस्ट..
कुछ कहते ही नहीं बन रहा इस पोस्ट पर। क्या बात कही है भाई !
आपकी छोटी सी कविता ने बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया .
आभार
विजय
शौकिया भूखा रहने वालों को पुण्य और मजबूरीवश भूखा रहने वालों को अगले दिन फिर भूख झेलने की सजा
,
यह सत्य तो है लेकिन अगर इस दुनिया के बाद कोई और जहाँ नहीं है, परमात्मा नहीं है, स्वर्ग और नरक भी नहीं है,तो ना इंसाफी लगती है..और इसके ज़िमेद्दर भी हम लोग ही हैं.
मैं मानता हूँ की दूसरा जहाँ है, और वहां दुनिया मैं दुःख उठाने वाले को ही सुख मिलेगा.है..
bahut acchi post .sunder ahsaas.......
man ko kachotne wala neem sach
काश!! दुश्वारियाँ, परेशानियाँ और दर्द बिना झेले अहसासी जा सकती.
भरी रसोई में ही उपवास भी धार्मिक कहलाता है वरना तो फक्कड़ हाली को कौन पूछता है. न कोई पुण्य मिलता है, न ही पुण्य प्राप्ति की आशा उन दो रोटियों की उम्मीद में.
भगवान भी कैसे भेदभाव करता है-शौकिया भूखा रहने वालों को पुण्य और मजबूरीवश भूखा रहने वालों को अगले दिन फिर भूख झेलने की सजा.
.....samaj ke ek bahut bade hisse kee yahi trasadi hai.......
Supअअअअअb. dhool ki पोल khol kar rakh dI. very GooooooooooooooooooD. visit my blog also.
काश कि हमारे नेता भी कुछ पल इन गरीबिओं के बीच बिता सकें। हालात जरूर लंगडे हैं मगर कोई उनकी बैसाखी बनने की सोचे तो बहुत कुछ हो सकता है। बहुत संवेदनायौ से भरा हुया संस्मरण। यात्रा मंगलमय हो। शुभकामनायें।
बहुत अच्छा संस्मरण है.................आशा है और बहुत कुछ पढ़ने को मिलेगा।
आपकी ये कला की असाधारण बात को इतनी सुंदरता और सादगी से कह जाना...जबरदस्त है. सटीक प्रस्तुति.
हालात लंगड़े ही
होते हैं मेरे देश में तगड़े
भ्रष्टाचार घोटाला
है कोई ऐसा
जिसका न पड़ा हो पाला
पाला आजकल खूब
हर जगह पड़ रहा है
अविनाश मूर्ख है
hathi ke daant khane ke aur dikhane ke aur wali baat charitaarth kar di. sunder lekh.
काफी अच्छा लिखा आपने ...यात्रा मंगलमय हो.
बहुत सुन्दर! भैया गुवाहाटी भी आ जाइये एक बार, कम से कम दो ब्लॉगर तो हैं यहाँ भी हरकीरत जी और मैं!
सबसे पते की बात भरी रसोई भूखा रहना उपवास और जो भूखे नर रहे हैं ये उनके कर्मों का दंड. अरे उपवास वाले भी तो अपने हिस्से का किसी को नहीं दे पाते हैं . चाहे वे बड़े अफसर हों या फिर धनाढ्य .
सच्चाई को आपने बड़े ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! बेहतरीन पोस्ट!
आदरणीय समीर लाल जी
नमस्कार
बहुत अच्छी लगी
ati sundar...hamesha ki tarah!!!
isme koi shak nahi ki aap hindi blog jagat ke shahanshah hai..vadhai!!!
नशे में वाली बात जमी.
पहाड़ों का आनंद लीजिये आप. कमेन्ट अप्रूव करने का चक्कर छोडिये एकाध दिन :)
कड़वी सच्चाई को उदघाटित करती हुई पोस्ट !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
khushdeep bhai ka tippani geet is post ki jaan hai......
bharat bhraman ki badhai.....
googal map se panipat ka rasta bhi pata lag sakta hai.....koshish to kariye ek baar
सही कहा भाईजी....एक एक शब्द सही..
काश कि तकलीफ इतनी आसानी से अहसासा जा सकता...
सच कहा आपने... लेकिन नशा भी ज़रूरी है जिंदगी के लिए!!
काफी दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आया, माफ़ी चाहूँगा...
अब लगातार बना रहूँगा!!
साभार
राम
शानदार लिखा अंकल जी..आजकल आप दिख नहीं रहे हैं.
________________
'पाखी की दुनिया; में पाखी-पाखी...बटरफ्लाई !!
बहुत बढ़िया गंभीर लेख ...आखिर आपने व्यस्त टाइम से भी समय निकाल ही लिया ! हार्दिक शुभकामनायें !!
पूरी पोस्ट और ख़ासकर अंतिम की पंक्तियाँ तो बेहद ज़बरदस्त लगीं..
रजनी चालीसा का जप करने ज़रूर आयें ब्लॉग पे..
आभार
pahaad par ghumna yani prakrati ke bilkul paas rahna hai,aapka anubhav doosron ke bhi kaam ayega....
बहुत खूब लिखा है. और आशा है पहाड़ यात्रा सुखद रही होगी.
घुघूती बासूती
समीर जी आपकी बात से सहमत हूँ. कई बार निवृति, आवृति, प्रवृति एक दूसरे के पूरक से लगते है,जिसका सीधा असर संस्कृति और प्रकृति पर साफ़ दिखता है. यात्रा मंगलमय हो
मगर लंगड़े हालात ऐसे
कि
जुबान लड़खड़ा जाती है...
और
बैसाखी मुहैया कराने को
सक्षम हाथ
कहते हैं
मैं
नशे में हूँ!!
बस इतना ही कि बहुत सुंदर...
आपके संस्मरण बेहद रोचक होते हैं.
आपका अंदाज, वाकई सबसे जुदा है। एक एक शब्द इसका गवा है।
---------
प्रेत साधने वाले।
रेसट्रेक मेमोरी रखना चाहेंगे क्या?
आपका लेख/ संस्मरण और कविता काफी अच्छी लगी ... ... कल मैं यह लिंक चर्चामंच पर रखूंगी .. आपका आभार .. http://charchamanch.blogspot.com .. on dated 17-12-2010..आप वह भी आ कर अपने विचार दें
समीर जी आपकी यह सुन्दर पोस्ट आज १७-१२-२०१० को चर्चामंच में रखी है.. आप वहाँ अपने विचारों से अनुग्रहित कीजियेगा .. http://charchamanch.blogspot.com ..आपका शुक्रिया
भरी रसोई में ही उपवास धार्मिक कहलाता है वरना फ़क्कड़ हाली को कौन पूछता है।
आपकी शैली में गज़ब की रवानी है जो गद्य को भी पूरा पढने के लिये मजबूर करती है।
मगर लंगड़े हालात ऐसे
कि
जुबान लड़खड़ा जाती है...
और
बैसाखी मुहैया कराने को
सक्षम हाथ
कहते हैं
मैं
नशे में हूँ!!
क्या गजब का लिखा है आपने.
duniya ke rang aise hi hai..
mere blog par bhi sawagat hai..
Lyrics Mantra
thankyou
अतीत की चर्चा के बहाने नौकरशाही की अच्छी खाल उधेड़ी है.
कितनी सुन्दर तरीके से आपने मामूली सी बात में भी निहित अर्थ ढूंढ ही लिए ... शायद इसीलिए समीर लाल, समीर लाल है ... इस सुन्दर लेख के लिए धन्यवाद !
जी
क्या खबर है दादा
क्लिक कीजिये कमाईये !!
"भरी रसोई में ही उपवास भी धार्मिक कहलाता है वरना तो फक्कड़ हाली को कौन पूछता है.|" एक झकझोरने वाला सत्य उद्घटित किया है -आपने।
===============================
वर्तमान हालात एक सदाबहार टिप्पणी-
सदाचार
============
नेता की अय्यारी ने॥
अफ़सर की मक्कारी ने॥
सदाचार को दिया है-
गोली भ्रष्टाचारी ने॥
yahi kadwi sacchai hai,insaniyat ko hamesha duyam sthan milta hai,saachi baat.
samir ji aapko aur sadhana bhabhi ji ko xmas aur aanewale naye saal ki abhi se mubarak baat.sadar mehek.
आप भारत भ्रमण कर रहे हैं औऱ दिल्ली में पड़ाव नहीं होगा तो कैसे काम चलेगा।
main bhi dehradun mein hi rehta hun.
सभी हिंदी ब्लोग्गेर्स अपने ब्लॉग को प्रेसवार्ता.कॉम से जोड़े . प्रेसवार्ता.कॉम एक ऐसा मंच है जहा सारे पत्रकार , लेखक अपनी लेखनी पर धार लगा सकते है . इसलिए सभी लोगो से निवेदन है आप अपना प्रोफाइल प्रेसवार्ता .कॉम पर बनाये . www.pressvarta.com
सार्थक और सटीक !
और
बैसाखी मुहैया कराने को
सक्षम हाथ
कहते हैं
मैं
नशे में हूँ!!
बहुत सुन्दर कविता है समीर जी.
subhan allah.....kya..ahsas hai....
ankhe nam hue jati hai...
pranam
जनाब जाकिर अली साहब की पोस्ट "ज्योतिषियों के नीचे से खिसकी जमीन : ढ़ाई हजा़र साल से बेवकूफ बन रही जनता?" पर निम्न टिप्पणी की थी जिसे उन्होने हटा दिया है. हालांकि टिप्पणी रखने ना रखने का अधिकार ब्लाग स्वामी का है. परंतु मेरी टिप्पणी में सिर्फ़ उनके द्वारा फ़ैलाई जा रही भ्रामक और एक तरफ़ा मनघडंत बातों का सीधा जवाब दिया गया था. जिसे वो बर्दाश्त नही कर पाये क्योंकि उनके पास कोई जवाब नही है. अत: मजबूर होकर मुझे उक्त पोस्ट पर की गई टिप्पणी को आप समस्त सुधि और न्यायिक ब्लागर्स के ब्लाग पर अंकित करने को मजबूर किया है. जिससे आप सभी इस बात से वाकिफ़ हों कि जनाब जाकिर साहब जानबूझकर ज्योतिष शाश्त्र को बदनाम करने पर तुले हैं. आपसे विनम्र निवेदन है कि आप लोग इन्हें बताये कि अनर्गल प्रलाप ना करें और अगर उनका पक्ष सही है तो उस पर बहस करें ना कि इस तरह टिप्पणी हटाये.
@ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने कहा "और जहां तक ज्योतिष पढ़ने की बात है, मैं उनकी बातें पढ़ लेता हूँ,"
जनाब, आप निहायत ही बचकानी बात करते हैं. हम आपको विद्वान समझता रहा हूं पर आप कुतर्क का सहारा ले रहे हैं. आप जैसे लोगों ने ही ज्योतिष को बदनाम करके सस्ती लोकप्रियता बटोरने का काम किया है. आप समझते हैं कि सिर्फ़ किसी की लिखी बात पढकर ही आप विद्वान ज्योतिष को समझ जाते हैं?
जनाब, ज्योतिष इतनी सस्ती या गई गुजरी विधा नही है कि आप जैसे लोगों को एक बार पढकर ही समझ आजाये. यह वेद की आत्मा है. मेहरवानी करके सस्ती लोकप्रियता के लिये ऐसी पोस्टे लगा कर जगह जगह लिंक छोडते मत फ़िरा किजिये.
आप जिस दिन ज्योतिष का क ख ग भी समझ जायेंगे ना, तब प्रणाम करते फ़िरेंगे ज्योतिष को.
आप अपने आपको विज्ञानी होने का भरम मत पालिये, विज्ञान भी इतना सस्ता नही है कि आप जैसे दस पांच सिरफ़िरे इकठ्ठे होकर साईंस बिलाग के नाम से बिलाग बनाकर अपने आपको वैज्ञानिक कहलवाने लग जायें?
वैज्ञानिक बनने मे सारा जीवन शोध करने मे निकल जाता है. आप लोग कहीं से अखबारों का लिखा छापकर अपने आपको वैज्ञानिक कहलवाने का भरम पाले हुये हो. जरा कोई बात लिखने से पहले तौल लिया किजिये और अपने अब तक के किये पर शर्म पालिये.
हम समझता हूं कि आप भविष्य में इस बात का ध्यान रखेंगे.
सदभावना पूर्वक
-राधे राधे सटक बिहारी
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