आप सभी का जन्म दिन पर दी गई शुभकामनाओं एवं स्नेह के लिए बहुत बहुत आभार. |
सूचना |
नए तेवर और नए कलेवर के साथ..''हिन्दी चेतना'' का जुलाई-सितम्बर, २०१० अंक प्रिन्ट हो चुका है. हिन्दी चेतना को आप पढ़ सकते हैं-हिन्दी चेतना या विभोम पर. इस अंक में प्रकाशित मेरा व्यंग्य आलेख नीचे पढ़िये. |
बहुत पहले से उन कदमों की आहट....
जगजीत सिंह-चित्रा सिंह का गाया "बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते है”...फिराक गोरखपुरी साहब ने यह गाना जाने कब लिखा, किसके लिए लिखा, क्या सोच के लिखा. किसकी तस्वीर सामने थी? मगर रचा तो भारत में गया यह तय है क्यूँकि हमने सुना भी पहली बार वहीं और फिराक साहब रहते भी वहीं थे. यूँ भी उस समय आज की तरह, जैसा की मुझ जैसे लोग कर रहे हैं, भारत की समस्याओं पर भारत के बाहर बैठे कर भारतीयों के द्वारा लिखने का फैशन नहीं आया था.
खैर, बात चल रही है गाने की "बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते है"...
गौरवशाली भविष्यवक्ताओं के महान देश में तो यह मुमकिन हमेशा ही है कि बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लो.
अगले माह मंगल पर शनि की वक्र दृष्टि रहेगी, व्यापार में घाटा पड़ेगा. लो जान ली पहले से उन कदमों की आहट जो अगले महीने आने वाले हैं.
कई तो इन सब भविष्यवाणियों का गणित भी नहीं समझते मगर इस ब्रह्म एवं गुढ़ ज्ञान के आभाव के बावजूद भी आत्मविश्वास का स्तर ऐसा कि वो अपनी बात यहीं से शुरु करते हैं कि अरे, हम तो आपको गारंटी करते हैं कि इस बार बीजेपी सत्ता में आ रही है. न आये तो कहना, जो कहोगे सो हार जायेंगे. अब बीजेपी न आये तो क्या कहें और उनके पास है क्या जो हारेंगे? जहाँ खड़े होकर घोषणा कर रहे हैं उस पान वाले का तो चार महिने का उधार चुका नहीं पा रहे और बात करेंगे कि जो कहो, सो हारे. उनका आत्म विश्वास देख कर कई बार घबराहट होती है मगर ऐसे आत्म विश्वासी हर पान ठेले पर मिल जायेंगे.
मुझे कई बार सही भी लगता है कि बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं... जब अपने देश की पुलिस के बारे में सोचता हूँ.
कोई मर्डर कब होना है? कौन करेगा? किसका होना है? चोरी कहाँ होगी? कौन करेगा? सब पुलिस बहुत पहले से जानती है..मगर अफसोस, यह गाना यहीं खत्म हो जाता है इसलिए शायद वो बाद में नहीं जान पाते कि अपराधी कहाँ गया? बेचारे ढूंढते रह जाते हैं और अपराधी कभी मिलता नहीं.
काश, कोई लिखता कि तू छिपा है कहाँ ये भी हम जान लेते हैं!! तो पुलिस को कितनी सुविधा हो जाती.
मगर लिखने वाले..धत्त, बस इतना लिख कर गुजर लिए और भुगतान देने खड़ा है पूरा भारत देश.
अब देखिये, भविष्यवक्ताओं के ऐसे देश में जहाँ यह गीत लब लब गुनगुनाया जाता हो कि बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं...उस देश में भला देश के तयशुदा भावी प्रधानमंत्री...जो कि युवा शक्ति का नेतृत्व करता हो और जिसे प्रधानमंत्रित्व का विरासती अधिकार हो, उसके कदमों की आहट न जानें. उनका नाम लेना उचित न होगा. हमारे कदम भी तो आहट करते हैं, कहीं वो इनको जान न लें.
ऐसा युवा भावी प्रधानमंत्री एकाएक गांवों की हालत और ग्रमीणों की जीवनशैली को जानने की जिज्ञासा लिए एक गांव में अपना हेलिकॉप्टर उतरवा देता है. इस एकाएक और आकस्मिक दौरे के लिए वो गाँव भी और उसका पूरा प्रशासन विगत दो माह से तैयारी में जुटा है. हेलीपैड भी इस आकस्मिक दौरे के तैयार है और जिस गरीब की कुटिया में भईया जी ठहरेंगे वो भी और साथ है पूरा तंत्र भी. पूरे दिन में एक घंटे को बिजली के लिए आदिकाल से तरसते इस गांव में उनके आकस्मिक प्रवास के दौरान अचानक पूरे समय बिजली रहती है और उस कुटिया में पोर्टेबल ए सी से ठंडाई ताकि भईया जी मूंझ की खटिया पर बिछे डनलप के गद्दे पर एक रात सो सकें. चुल्हे पर ग्रमीण द्वारा बना, पी एम लेब से चखने के बाद एप्रूव, खाना खा कर ग्रमीण की हालत की पहचान करने के बाद उस पर संसद में एक घंटे का मार्मिक भाषण दे सकें, भला ऐसे अमर गीतों के बिना कैसे संभव हो पाता कि बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं.....
जाने कब रच गये फिराक साहब...ऐसा गीत काश मैं रच पाता. अमर हो जाता. कालजयी कहलाता.
कल अखबार में पढ़ता था कि कॉमनवेल्थ खेलों में आने वाले विदेशी अथिति और खिलाड़ी शौकीन मिजाज हैं अतः भारत में गैर कानूनी ही सही (मगर वो भी धड़ल्ले से धंधा कर लेते है क्यूँकि उन्हें भी पहले से पुलिस से ही पता होता है कब पुलिस का छापा पड़ने वाला है..याने वो भी बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं...उन्हें गाना आता है) मगर दिल्ली के कोठों की सबकी सहमति से साज सज्जा, फेस लिफ्ट, एयर कन्डिशनिंग आदि की जा रही है, भले ही हमारे जो खिलाड़ी खेलने वाले हैं, वो आज लॉज का पैसा खुद की जेब से भर पसीना बहाते न सिर्फ प्रेक्टिस कर रहे हैं बल्कि गर्मी से और मच्छरों से जुझते सो भी रहे हैं और सस्ते रेस्टॉरेन्ट की तलाश में पैदल भी चल रहे हैं.
उन्हें जितना दैनिक भत्ता मिल रहा है उसमें न तो ए सी रुम लिया जा सकता है, न ढंग का रेस्टॉरेन्ट और न ही सस्ते रेस्टॉरेन्ट तक पहुँचने की टैक्सी. वो भी तो आहट सुन रहे हैं उन कदमों की, जो विदेशों से आने वाले हैं. जाने कैसे हमारे खिलाड़ियों के कदमों में आहट क्यूँ नहीं? शायद इसीलिए हार जाते होंगे चूँकि बिना आहट के चलते हैं भारत के एक आम आदमी की तरह जिसके कदमों में कोई आहट ही नहीं, जो सरकार भले पहले से नहीं, मगर कभी तो सुन पाती. मुझे लगता है कि हमारे खिलाड़ियों को खेल का रियाज़ करने से ज्यादा अपने कदमों से ऐसे चलने का रियाज़ करना चाहिये कि आहट हो और सरकार जान पाये.
शायद राहू, शानि, मंगल की वक्र दृष्टि के विपरीत, आम आदमी पर सरकार और मंत्रियों की वक्र दृष्टि ज्योतिष पंचाग से आऊट ऑफ सिलेबस हो इसीलिए उन पर यह गीत न लागू होता हो कि बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं...
एक अंतरंग खबर यह भी है कि बम्बई, पुणे, बेंगलौर, कलकत्ता, मद्रास जैसे महानगरों की कालगर्ल्स कॉमन वेल्थ गेम्स के समय स्थानीय ग्राहकों के लिए उपलब्ध नहीं हैं..वो भी विदेशी कदमों की आहट जान गई हैं. डॉलर रुपी घूंघरु बँधे कदमों की आहट छन छन बोलती है न...वो ही बहुत पहले से और दूर से ही सुन रही होंगी.
इसी डॉलर घूंघरु ने तो भारत का ब्रेन ड्रेन कर डाला और हम उनकी आहट सुन कर मुग्ध हुए अपने कोठे ठीक कराने में लगे हैं..
इसीलिए तो मेरा भारत महान..जहाँ का हर नेता पहलवान. बस गीत गाना आना चाहिये कि:
बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं...
-समीर लाल ’समीर’
75 टिप्पणियां:
सच्चाई को वयां करता अच्छा व्यंग्य ,बधाई
होगा वही जो राम रच राखा!
जिन खोजा तिन पाइयां!स्वार्थ,धनलोलुपता और दूसरों को बेवकूफ बनाने की होड़ में,ज़िंदगी की आहट कहीं सुनाई नहीं देती।
वाह सर, एक ही पोस्ट में कई रंग समेट लिये।
और ’बहुत पहले से उन कदमों’ का संबंध पुलिस से जोड़कर नया ही अर्थ दे दिया आपने।
आभार स्वीकार करें।
सफल वही है जो -धंधे की आहट जान लेते हैं ।
सब के अपने-अपने धंधे हैं.
मगर आपके इस लेख की कानो कान आहट न हुयी और यह आ भी गया -करारी चोट !
बढिया व्यंग्य-बेहतरीन
इसीलिए तो मेरा भारत महान..जहाँ का हर नेता पहलवान. बस गीत गाना आना चाहिये कि:
बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं...
--
बना रहे हर एक पेरवासी का भारत से प्यार!
जन्म-दिवस का इससे अच्छा क्या होगा आभार!
इसीलिए तो मेरा भारत महान..जहाँ का हर नेता पहलवान. बस गीत गाना आना चाहिये कि:
बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं...
--
बना रहे हर एक प्रवासी का भारत से प्यार!
जन्म-दिवस का इससे अच्छा क्या होगा आभार!
सुनी जो उनके आने की आहट,
गरीबखाना सजाया हमने,
कदम मुबारक हमारे दर पे,
नसीब अपना जगाया हमने...
राजकुमार के किसी गरीब की कुटिया में जाने से पहले ये गीत बजाया जाए तो कितना अच्छा लगे...
जय हिंद...
इसीलिए तो मेरा भारत महान..जहाँ का हर नेता पहलवान. बस गीत गाना आना चाहिये कि:
बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं...
" बेहद सामयिक आलेख और सटीक व्यंग "
regards
इसीलिए तो मेरा भारत महान..जहाँ का हर नेता पहलवान. बस गीत गाना आना चाहिये कि:
बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं...
" बेहद सामयिक आलेख और सटीक व्यंग "
regards
इसीलिए तो मेरा भारत महान..जहाँ का हर नेता पहलवान.
समीर जी आप भी बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं... ;-)
बेहतरीन व्यंग्य, बहुत खूब!
ऊपर लाईने पढ़ते समय मुझे खुद पे गर्व हो रहा था कि मै भी रघुपति सहाय ( फ़िराक साहब) कि जम्भूमि में पैदा हुआ हूँ ! लेकिन जब नीचे कि पक्तिओं को पड़ा तो शर्मिंदा हुआ कि अब हमारी पहचान क्या हो गयी है (पुरे भारत के सन्दर्भ में), किसी समय गाँधी जी कहा था कि अगर मै विद्यार्थी होता तो फ़िराक साहब से अंग्रेजी पढ़ता! अब सब बदल चुका है..............
सौ से अधिक टिप्पणियों की आहट मुझे भी महसूस हो रही है। आपने इस आहट को इतना जोरदार बना दिया कि सभी दौड़ते आने वाले हैं। भगदड़ मचने से पहले मैं निकलता हूँ :)
जय हो...।
सब कुछ आपने कह दिया है, अब कुछ बचा ही नहीं कहने के लिये।
इन कदमों की आहट तो हमें भी है, बोल नहीं सकते।
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते है ...
भारीयों की जिंदगी को तो दूर से भी पहचान लेते हैं आप ...!
बहुत पहले से कदमों कि आहट जानते हैं पहचानते हैं पर बहरे और गूंगे बन सुनते और देखते हैं ...
जिनको आहट सुननी चाहिए वो तो सारे ही बहरी जाति के हैं ......सत्ता में आते ही अंधे और बहरे हो जाते हैं ...
भारतीय संस्कृति निभा रहे हैं ...अतिथि देवो भव...जो कुछ भी मेहमानों को चाहिए सब उपलब्ध है ...डॉलर के घुँघरू कुछ ज्यादा ही खूबसूरत आहट देते हैं .....
वहुत अच्छा व्यंग है ..खेलों कि ऐसी तैयारी जान कर शर्म महसूस हो रही है ....
एक अच्छा व्यंग|देर से सही जन्म दिन शुभ और मंगलमय हो |
आशा
अच्छा है।
बहुत अच्छा है।
ई हिन्दुस्तान है ना.... सो ईहै होता है ईहां।
bhaut khoob sir
खेलों के साथ ऐसे ऐसे खेल भी और होते हैं इसकी आहट तो हमें थी ही नहीं। अभी फुटबाल विश्व कप में तो इस प्रकार की खबर पढ़ी थी लेकिन अपने यहाँ भी? विदेशी खेल हैं तो फिर विदेशी परम्परा क्यों ना निभायी जाए? बढिया ज्ञान।
बेहतरीन.
लेकिन एक प्रश्न है कि आमूलचूल परिवर्तन के लिए प्रबुद्ध समाज कब जागेगा ? हम व्यवस्था को गरियाने में जितने आगे रहते है क्रियान्वयन में उतने ही पीछे
--
दिल्ली की कॉलगर्ल तो उपलब्ध हैं ना
कॉमनवेल्थ तो दिल्ली में हो रहे हैं
प्रणाम
गुदगुदाता हुआ....
साथ ही चिंतन करने लायक व्यंग्य.
बहुत ही सुन्दरता से आपने सठिक व्यंग्य किया है! बढ़िया प्रस्तुती! मित्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
bahut badhiya vyang.. vyang se jyada kaali hakikat... katu yatharth ..
आने वाली टिप्पणियों की आहट सुन ली होगी आपने|
एक बेहतरीन व्यंग्य।
"ऐसा युवा भावी प्रधानमंत्री एकाएक गांवों की हालत और ग्रमीणों की जीवनशैली को जानने की जिज्ञासा लिए एक गांव में अपना हेलिकॉप्टर उतरवा देता है. इस एकाएक और आकस्मिक दौरे के लिए वो गाँव भी और उसका पूरा प्रशासन विगत दो माह से तैयारी में जुटा है. हेलीपैड भी इस आकस्मिक दौरे के तैयार है और जिस गरीब की कुटिया में भईया जी ठहरेंगे वो भी और साथ है पूरा तंत्र भी. पूरे दिन में एक घंटे को बिजली के लिए आदिकाल से तरसते इस गांव में उनके आकस्मिक प्रवास के दौरान अचानक पूरे समय बिजली रहती है और उस कुटिया में पोर्टेबल ए सी से ठंडाई ताकि भईया जी मूंझ की खटिया पर बिछे डनलप के गद्दे पर एक रात सो सकें. चुल्हे पर ग्रमीण द्वारा बना, पी एम लेब से चखने के बाद एप्रूव, खाना खा कर ग्रमीण की हालत की पहचान करने के बाद उस पर संसद में एक घंटे का मार्मिक भाषण दे सकें,"
बेहद उम्दा व्यंग्य ! एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं, समीर भाई !
इसीलिए तो मेरा भारत महान..जहाँ का हर नेता पहलवान. बस गीत गाना आना चाहिये कि:
बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं...
....bahut achhe aur sachhe vyang aalekh ke liya badhai
डॉलर घूंघरु ने तो भारत का ब्रेन ड्रेन कर डाला और हम उनकी आहट सुन कर मुग्ध हुए अपने कोठे ठीक कराने में लगे हैं...sir jitna bhi keha-suna jaye kam hoga....fark kisko padta hai..agar hum sabko padta..to ye baat hi na hoti!
बहुत सुंदर व्यंग जी , वेसे यह जानवर चुनाव के आस पास ही भारत की खोज के लिये निकलते है, जेसे बरसातो मे कीडे मकोडे ओर गण्दी मक्खियां निकल आती है
व्यंग्य का आपका यह अंदाज मुग्ध सा कर देता है।
…………..
स्टोनहेंज के रहस्यमय पत्थर।
क्या यह एक मुश्किल पहेली है?
बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं...
इस बात पर हमे तो कभी शक हुआ ही नही....नेता लोग तो बहुत अच्छी तरह से आम आदमी के कदमों की आहट जान लेते हैं इसी लिए तो आम आदमी की छाती पर बैठ कर मूँग दली जा रही है... बहुत जोरदार व करारा व्यंग्य है ....बहुत बहुत बधाई।
अन्दर तक हिला दिया आपके इस व्यंग्य और कटाक्ष ने....
बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट...
सोलह आने सही लिखा है आपने. विज्ञान का विद्यार्थी हूँ, नहीं तो सौ प्रतिशत से भी ज्यादा अंक देने की बात कह देता इस पोस्ट के लिये.
शीर्षक पढ़ कर लगा शायद आप ने गज़ल पोस्ट की है....राजनीति,पुलिस.कानूनव्यवस्था सभी पर गहरा कटाक्ष किया है..आप की चिंता जायज़ है ...फिर भी हम कहते ही हैं मेरा भारत महान..
किशोर दा को सौरभ श्रीवास्तव की स्वरांजलि
अति सुन्दर व्यंग.
बेहतरीन ................
आहाहा .....का बात है ...एक बात बताईये तो एतना पटक पटक के धोना जरूरी था का ...देखिए तो सब ठो मैल एकदम से चमचमा के बाहर तकले आ गया ....ससुर नेतवन सब आपको लाठी लिए ढूंढ रहा है ...एक आध तो बदला लेने के लिए सुना है ब्लॉगिंग में भी उतरने वाला है .....कुछ सूचना है का
..इसी डॉलर घूंघरु ने तो भारत का ब्रेन ड्रेन कर डाला और हम उनकी आहट सुन कर मुग्ध हुए अपने कोठे ठीक कराने में लगे हैं....
..बहुत खूब. शानदार, जानदार और समसामयिक व्यंग्य है.
..बधाई.
समीर जी बहुत अच्छी तरह कई रंगों को मिलाकर इन्द्रधनुष तैयार कर दिया |बहुत खूब ...और हाँ, सीढ़ियों के लिये धन्यवाद!!!
कहते हैं,यहां वही ईमानदार है जिसे बेईमानी का मौक़ा नहीं मिला। यह कैसे समाज की आहट है?
विदेश में रहकर , देश की स्थिति पर इतना बढ़िया व्यंग लिखना ---सचमुच कमाल का है ।
एकदम अपटू डेट ।
अपनी तो ये हालत है कि हम कुछ नहीं कहते । या यूँ कहें कि कुछ नहीं कह सकते ।
एक बात यह जान कर दुःख हो रहा है की क्या क्या हो रहा है देश में खेलों के नाम पर.
एक सुकून ये की हमारे देशवासी देश से दूर रह कर भी देश के बारे में चिंतित हैं और सारी ख़बरें रखते हैं.
ये सब पढ़ कर एक डायलोग याद आ गया...
अब तो राम ही राखे....
अब आजकल कदमों की आहट सुनने के अलावा चारा भी क्या बचा है? बहुत सटीक व्यंग.
रामराम
अब आजकल कदमों की आहट सुनने के अलावा चारा भी क्या बचा है? बहुत सटीक व्यंग.
रामराम
व्यंग्यकार के साथ साथ आपमें तो अच्छा ज्योतिषी बनने के भी पूरे गुण हैं...इरादा हो तो बताईये...आनलाईन क्लासेस शुरू करने जा रहे हैं :)
बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं...
जो नहीं है
उसे भी सच मान लेते हैं।
बेहतरीन व्यंग्य, बहुत खूब!
करारी मार.. यही है व्यंग्य की तलवार.. बधाई सर कार.. :)
क्या कहें - पहले से आहट है तो भी देश भगवान भरोसे हैं !!
परोसते रहो व्यंग्य - काश निवाला कर्णधारों को भी मिले और वो सम्हालें !!
is teenager ko jandin ki bahut bahut badhai, driving license ke liye apply karne ki umra hui ya abhi 1-2 saal baaki hain.
best wishes.
Tarun
sach much ek sachchai se rubaru karata vyanagatamak aalkh. bahut hi badhiya prastutikaran.
poonam
हमेशा की तरह बढ़िया सारगार्वित व्यंग्य प्रस्तुति....आभार
शानदार व्यंग्य लिखा..बधाई.
बहुत बढीया, आज भी वहीं हैं जो पहले थे :)
आपने लेख मे ईस गाने का जिक्र किया है तो डाउन्लोड कर के सुनने की ईच्छा को कौन रोक सकता है :)))
जालिम वक्त ने आदमी को हल्का कर दिया
अब चले भी तो कोई आहट नहीं होती
शीर्षक पढ़ पहले तो गीत सुन आये...
फिर दिमाग को कई झटका दे आपकी पोस्ट पढने बैठे,मगर पोस्ट पढने के बाद सर बस गोल गोल डोल रहा है,झटक झटक कर...
करारा व्यंग्य....काश कि नेता वाकई जमीं पर उतरकर सोचते..
vajandaar vyang..
अच्छा और बेहतरीन व्यंग।
मगर लिखने वाले..धत्त, बस इतना लिख कर गुजर लिए और भुगतान देने खड़ा है पूरा भारत देश....एकदम सटीक चोट की है..साधुवाद.
कभी 'डाकिया डाक लाया' पर भी आयें...
बहुत अच्छा लिखा आपने अंकल जी....
Vyang kee dhaar se sab cheer faad dala aapne :)
behtareen kataksh.
समीर जी, आपके ‘विट’ और भाषा-चातुर्य का जवाब नहीं !
हिंदी चेतना में प्रकाशित होने के लिए बहुत बहुत बधाई ......
और जन्म दिन की भी बहुत बहुत शुभकामनाएं ......
देरी के लिए क्षमा ........!!
बेहतरीन पोस्ट ... करारा व्यंग्य !
बढिया व्यंग लिखा है ,बहुत कुछ जाना इस लेख से .
आपका जन्मदिन था हमने ध्यान ही नहीं दिया ...सॉरी ...चलिए देर से ही सही ...हमारी ओर से बहुत सारी शुभकामनाएँ
वाह समीर भाई क्या मारी है व्यंग्य की तीखी कटार...बहुत खूब मजा आ गया।
सच कहंता एक बढ़िया व्यंग ..जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई ..
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