डॉक्टर का कमरा.
महिला अपनी एक साल की बेटी को गोद में और सोनोग्राफी की रिपोर्ट हाथ में लिए होने वाली कन्या का गर्भापात कराना चाहती है.
तर्क है छोटी छोटी दो बेटियों को कैसे संभालेगी?
डॉक्टर ने सलाह दी कि लाओ, इस गोद में बैठी बेटी को मार देते हैं. फिर बस एक होने वाली रह जायेगी.
महिला स्त्ब्ध!!
यह तो पाप होगा.
आज उसके आँगन से दोनों बेटियों के चहकने के आवाज आती है.
कोई
हत्या महज हत्या नहीं होती!!
परिस्थिति के अनुरूप
समय की गति में
नहीं होती हत्या
जो होती हैं बहादुरी
आत्मरक्षा
और
कर्तव्य से प्रेरित
कुछ होती हैं कायरता
लाचारी
और
कमजोरी
जैसे की आत्महत्या
कुछ
मानसिक रुग्णता
यानी कि
विद्वेष, नफ़रत
और
बदले की भावना से जनित
किन्तु
कुछ होती हैं मानसिक विकृतता
भयानक रुप
निरीहता पर प्रहार
जो अक्षम्य है
जैसे की
भ्रूण हत्या!!!
-समीर लाल ’समीर’
(कथा की प्रेरणा एक ईमेल से प्राप्त संदेश है एवं चित्र साभार गुगल)
सूचना:
कुछ दिन पूर्व तरुण जी ने निट्ठला चिंतन पर मेरी पुस्तक बिखरे मोती की शानदार समीक्षा की है, यदि नजर न गई हो तो यहाँ क्लिक करें.
102 टिप्पणियां:
हत्या!
परिस्थिति के अनुरूप
समय की गति में नहीं होती हत्या
बहुत सुन्दर.... परिस्थिति और हालात.
अत्यंत सुन्दर लघुकथा।
rongte khade ho gaye ---
कुछ होती हैं कायरता
लाचारी
और
कमजोरी
जैसे की आत्महत्या
--
समाज को दिशा देती पोस्ट और एक बहुत ही सुन्दर रचना को आपने प्रस्तुत किया है!
बहुत-बहुत आभार!
मानसिक विकृत्ति का सुन्दर चित्रण !!!
जो भी गलत कर्म किये जाते हैं,
वह मानसिक विकृत्ति के कारण होते हैं।
मानसिक विकृत्ति केवल सन्तुष्टि के भाव से ही मिट सकती हैं।
आज की कथा और कविता दोनों ही नश्तर जैसी हैं।
अद्भुत!
आज बस इतना ही!
ज़्यादा कहने से इस पोस्ट का सर ख़तम हो जाएगा।
डॉक्टर ने सलाह दी कि लाओ, इस गोद में बैठी बेटी को मार देते हैं. फिर बस एक होने वाली रह जायेगी.
महिला स्त्ब्ध!!
यह तो पाप होगा.
आज उसके आँगन से दोनों बेटियों के चहकने के आवाज आती है.
prernadayak aur shikshaprad. Needful and more creative. Thanks.
ऐसे डॉक्टर कम होते हैं ...मगर होते तो हैं ...
एक सामाजिक समस्या पर बेहद संवेदनशील रचना ..
आभार ..!
डॉक्टर ने सलाह दी कि लाओ, इस गोद में बैठी बेटी को मार देते हैं. फिर बस एक होने वाली रह जायेगी.
महिला स्त्ब्ध!!
यह तो पाप होगा.
आज उसके आँगन से दोनों बेटियों के चहकने के आवाज आती है.
समाज को दिशा देती पोस्ट और एक बहुत ही सुन्दर रचना को आपने प्रस्तुत किया है!
.
लघुत्तम लेकिन मुकम्मल कहानी
और इस भावपूर्ण नज़्म के लिए बधाई
समीर जी धन्यवाद भी कि आप ने एक नारी के मन की व्यथा और असमंजस को समझा
उस मां से पूछना चाहिए था कि खुद उसकी मां ने उसे कैसे पाला था...
गुरुदेव की ये कहानी खास तौर पर हरियाणा-पंजाब के घर-घर में ज़रूर पढ़ानी चाहिए...इन दो राज्यों में लिंग-अनुपात सबसे ज़्यादा गड़बड़ाया हुआ है...वजह यही है कन्या भ्रूण हत्या...इसी चक्कर में लड़कों की शादी के लिए लड़कियां ढूंढने में दिक्कत बढ़ती जा रही है...
जय हिंद...
समीर जी , इस विषय पर थोडा मतभेद हो सकता है । भ्रूण हत्या और कन्या भ्रूण हत्या में फर्क है ।
एम् टी पी कानूनी तौर पर मान्यता प्राप्त है ।
प्रोब्लम सिर्फ फिमेल फिटस की है । और यह एक सामाजिक समस्या ज्यादा है । बेशक इसे गैर कानूनी करार दिया गया है । लेकिन जब तक हम अपनी मानसिकता नहीं बदलेंगे , तब तक सिर्फ कानून के सहारे बदलाव नहीं लाया जा सकता ।
दोनों ही गज़ब की -अंदर चुभती हुईं.
(कथा की प्रेरणा एक ईमेल से प्राप्त संदेश है
the day people start writing on their own without प्रेरणा only then the world will change for woman
it has to come from your own inner voice
rachna
बेहद संवेदन्शील .........एक सिहरन सी उठी पढ़ कर....
Regards
कहते हैं- "गाय मार गंगा नहाए-कन्या मार कहां को जाए?"
गाय की हत्या हो जाने से गंगा नहाने से गौहत्या का पाप धुल जाता है। लेकिन कन्या की हत्या करने या हो जाने से उसकी हत्या का प्रायश्चित करने के इस ब्रह्माण्ड में कोई जगह नहीं है।
अच्छी पोस्ट
आभार
संवेदनशील रचना. दिल को छू गया.
सामाजिक टॉपिक पर ये असामाजिक प्राणी क्या बोलेगा? :(
हमने सुना है कि कैसे इस टाइप की हत्या होती है… अलग अलग किस्सों में अलग अलग तरीके से की गयी भ्रूण हत्या…
क्या हम बेटियाँ ऐसी बोझ होती हैं? :(
बहुत सुंदर प्रस्तुति .. डॉक्टर न चाहे तो जरूर भूण हत्या पर रोक लग सकती है !!
एक गंभीर समस्या पर अच्छा कटाक्ष किया है... बहुत खूब...
सभी डॉक्टर इसी मानसिकता के हो जाये तो कहने ही क्या
प्रणाम
ye laghuttam katha pahle kaheen padhi hai .... kavita achhi lagi aap ki ...
लघु कथा बहुत संवेदनशील...काश सारे डाक्टर लोगों को इस तरह सीख दे सकें ....
कविता में हत्या के हर रूप को रखा है...चाहे वो अत्मेअक्षा के लिए की गयी हो या कायर बन कर ...समाज की मानसिक विकृति को बहुत सक्षम शब्दों में कहा है ...बहुत सार्थक रचना ...सन्देश देती हुई...
kya khub sandesh hai ek chhoti si katha mein...
aur kavita to usse v behtareen.....
Ekdum 'khatarnaak' awesome laghukatha aur kavita...
Thanx sir...
कुछ होती हैं मानसिक विकृतता
भयानक रुप
निरीहता पर प्रहार
जो अक्षम्य है
जैसे की
भ्रूण हत्या!!!
समीर जी शायद भ्रूण हत्या पर ये सबसे बेहतरीन कविता होगी .....
और डा की ये सलाह....
कि लाओ, इस गोद में बैठी बेटी को मार देते हैं. फिर बस एक होने वाली रह जायेगी.
आँखें खोल देने वाली है ......
गर्भ का बच्चा अदृश्य होता है इसलिए महिलाएं उसकी हत्या को पाप नहीं समझती ....
बहुत ही सशक्त रचना ......!!
अब तो गुरुदेव सच में गुरु बनते जा रहे हैं .........बधाई ....!!
समीरभाई आप इतनी निर्दयता से भी प्रभावशाली बात कह सकते हैं। गजब है। बधाई।
कमाल कि अभिव्यक्ति! बहुत खूब! बेहतरीन!
अत्यंत सुन्दर लघुकथा।
बहुत सुंदर शव्दो मै उस डा० ने इंसानियत समझा दी उस महिला को...बहुत अच्छि लगी आप की यह पोस्ट
aa jindagi...jina sikh le..
na dard par bas chikh le!
kavita ke madhyam se jo kehna chaha hai sir..kash! sab samjh le!!
इसे कहते हैं सार्थक साहित्य।
…………..
अंधेरे का राही...
किस तरह अश्लील है कविता...
अंकल जी, आपकी यह लघुकथा तो बहुत मार्मिक है...आप बहुत अच्छा लिखते हैं..बधाई.
________________________
'पाखी की दुनिया' में 'लाल-लाल तुम बन जाओगे...'
'आज' की सच्चाई और 'कविता' का शानदार प्रारूप
निश्चित ही यह 'आज की कविता' है |
भाईसाब... ये आप ही लिख सकते हैं |
अनुकरणीय रचना ...
सुचिंतित लघुकथा और कविता !
क्या कहें...
आँख खुल जाए..किसी की भी..
बहुत ही संवेदनशील रचना है भाईसाहब..काश आज समाज के सभी डॉकटर इसी तरह सोच ले तो शायद ये भ्रूण हत्या जल्द ही समाप्त हो जाए...!!
बहुत ही संवेदनशील रचना है भाईसाहब..काश आज समाज के सभी डॉकटर इसी तरह सोच ले तो शायद ये भ्रूण हत्या जल्द ही समाप्त हो जाए...!!
सत्य कहा....
इसकी तीव्र भर्त्सना की ही जानी चाहिए...
आपके इस सद्प्रयास के लिए आपका कोटि कोटि आभार...
देखन में छोटन लगें, घाव करें गम्भीर।
बहुत सामयिक बात झन्नाटेदार अन्दज़ में बयाँ कर दी।
समीर लाल जी....
ये लघु(त्तम) कथा तो हिलाने वाली है.
बहुत बड़ा संदेश है आपकी रचनाओं में.
aisa bhi hota hai kya??
महिला अपनी एक साल की बेटी को गोद में और सोनोग्राफी की रिपोर्ट हाथ में लिए होने वाली कन्या का गर्भापात कराना चाहती है. ................और पुरूष ???????
आँखे खोल देने वाली जागरूक कविता ।
आप से सहमत हूँ! नमन आपको और आपकी इस रचना को !
Sameer Bhai...
KAVITA aur LAGHU KATHA dono ek doosre ki poorak ban padi hain...aur donon hi adwiteeya hain.... Bharteeya janmans aaj bhi ladki aur ladke ke bhed se ubar nahi paya hai, pahle samay main jo bhi aata tha wo chahe kosa jaaye par paala jaata tha par es badle yug ne..."BHROON HATYA" ka naya vikalp de diya hai...aur es prakar ki hatyaon ke liye hatyare doshi bhi nahin maane jaate...
Deepak
हत्या व मृत्यु का परिस्थिति जन्य काव्य विश्लेषण
आन्दोलित कर गया।
मेरे ब्लाग पर आपके सूचन का आभार!!
विचारणीय परिस्थिति और हालात पर
अच्छा कटाक्ष.... रचना भी बढ़िया लगी....आभार
हतप्रभ कर देने वाली लघुकथा और उससे जुडी कविता भी शानदार .हमेशा की तरह एक सहेजने वाली पोस्ट
काश ऐसे डाक्टर सब कहीं हों।
एक्दम सधे अंदाज में रही यह लघु कथा, ’टु द प्वायंट।’
आभार स्वीकार करें।
Bahut hi sundar dhang se humaare samaaj ke ek katu satya ko prastut kiyaa aapne...
सुंदर रचनाओं के लिए धन्यवाद |
डॉक्टर ने सलाह दी कि लाओ, इस गोद में बैठी बेटी को मार देते हैं. फिर बस एक होने वाली रह जायेगी.
काश सारे डाक्टर इस लघु कथा वाले दाक्तर जैसे ही मसीहा हो जायें. वर्ना जो यह जघन्य कार्य करते हैं वो भी डाक्टर ही हैं.
रामराम.
इस बार आपके लिए कुछ खास है चर्चा मंच पर...बुझो तो जाने...तो आइये विशेतह आमंत्रित हैं कल के चर्चा मंच पर.
आप की रचना 06 अगस्त, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
एक महापाप का मार्मिक वर्णन!!
करारा थप्पड़ मारा है कमीनो के गालों पर। कभी बेटी के बहाने.....कभी अपनी अंधी वासना के बहाने.......
बात तो अनूठी है ही, डॉक्टर की अनूठी छवि पेश की है, आपने.
bahut asardaar laghukatha !
कविता और लघु कथा के जरिये एक गहरा सन्देश देती यह पोस्ट बहुत कुछः सोचने को मजबूर करती है...
एक घृणित अपराध का मार्मिक वर्णन
हमेशा की तरह लाजवाब...
नीरज
गर्भपात से बढकर कोई पाप नही ।
सामाजिक समस्या पर अच्छी पोस्ट्
बहुत ही प्रेरणास्पद और संवेदनशील्……………समाज को आईना दिखाती हुयी।
कम शब्दों में ऐसा प्रभाव् नहीं देखा अन्यत्र ! दिल को छू गयी.. झकझोर गयी !
ए़क नारी होने के नाते मैं इसे बेहतर महसूस कर रही हूँ.. बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना !
...बेहतरीन !!!
काश ऐसा डॉ.हर जगह होता,आपकी कविता और कथा दोनों ही अत्यंत ह्रदयस्पर्शी हैं .मेरे पास सच में शब्द नही हैं,और न मैं कुछ कह सकती हूँ सिवाय इसके की यह पोस्ट मुझे बहुत बहुत बहुत पसंद आई .
संवेदनशील रचना
पर ऐसे डॉक्टर हैं कितने
लघु कथा और कविता दोनों ही बहुत संवेदनशील हैं...मन को झकझोरने वाले
'कुछ होती हैं मानसिक विकृतता
भयानक रुप
निरीहता पर प्रहार
जो अक्षम्य है
जैसे कि
भ्रूण हत्या!!!'
- भ्रूण ह्त्या पर बहुत सुन्दर तरीके से लिखा है - लघुकथा और कविता दोनों में ही.
-
सीधा कटाक्ष.
हम त बेटी के बाप हैं…जिसको माँ कहते हैं... एतना घोर अपराध उस बेटी के खिलाफ... हमरी बेटी का टिप्पनी है समीर भाई कि क्या हम बेटियाँ इतना बोझ होती हैं... अरे पगली अईसा माँ बाप बोझ होता धरती के लिए!! समीर बाबू चक्कू घोंप दिए हैं आप हमरे करेजा में!!
कथा और कविता दोनों को हमारे ग्राम्य वातावरण में आज भी जरूरत है !!
लघुत्तम-कम-अतिउत्तम !
कुछ होती हैं मानसिक विकृतता
भयानक रुप
निरीहता पर प्रहार
जो अक्षम्य है
जैसे की
भ्रूण हत्या!!!
Bahut samayik rachna. samaj me hote hue anyay ko awaj deti huee.
कुछ होती हैं मानसिक विकृतता
भयानक रुप
निरीहता पर प्रहार
जो अक्षम्य है
जैसे की
भ्रूण हत्या!!!
Bahut hee samayik aur katu satya ko ujagar karne wali post.
एक गंभीर समस्या पर अच्छा कटाक्ष किया है... बहुत खूब...
सार्थक संदेश देती संवेदनशील रचना ।
सवेदनशील कविता है . अच्छी लगी
बेहतरीन लघुकथा---हमारे समाज की एक कठोर चेहरे को बेनकाब करती हुयी।
मार्मिक
मैने खुद देखा है कुछ लोगो को जिनने ऐसा कार्य करवाया और आत्म्ग्लानि तथा तकलीफ़ो से ग्रस्त है
मेरे एक परिचित.
दोनों पति पत्नी 'गायत्री माता' के जबर्दस्त भक्त.
तीन बेटियों के बाद कितनी बार......
शायद उन्हें भी याद नही.
'बेटा' हो गया.
दोनों के शब्द-'जनम सफल हो गया हमारा.'
मैंने उन्हें 'अबोर्शन के बाद 'फिटस'की छिन्न भिन्न शरीर के फोटोज़ 'नेट'पर दिखाए.कांप गई-'क्या करूँ परिवार और पति को लड़का चाहिए था.बच्चे की 'ये' हालत हो जाती है?'
उनकी खुद की बेटी एक बेटी के जन्म के बाद गर्भवती हुई वापस फिमेल-बेबी की रिपोर्ट थी.सख्ती से बोली -'नही,तू नही करवाएगी अब.लड़की है कोई बात नही,दो बेटियां ही सही.'
इस प्रकार के फिटस के फ़ोटो पब्लिक में प्रचारित किये जाएँ तो निःसंदेह कन्या भ्रूण हत्या में कमी आएगी.
मेरा अपना सोचना है कि परिवार,पिता भी जरुर एक बार ऐसा करने से पहले सोचेंगे.वो इतने निर्दयी नही हो सकते.
बहुत गहरे भीतर तक हिला कर रख दिया आपने.
समीर जी, मन और हृदय दोनों को आन्दोलित कर गयी आपकी लघुकथा। सशक्त प्रस्तुति।
नमस्कार,समीर जी डॉक्टर की अनूठी छवि पेश की है, आपने काश अब डॉक्टर ही आगे आये इस गंभीर समस्या को रोकने के लिये....सुन्दर कटाझ है बहुत-बहुत आभार!
समीर जी नमस्कार एक गंभीर समस्या पर अच्छा कटाक्ष किया ! भ्रूण ह्त्या पर बहुत सुन्दर तरीके से लिखा है काश कि समाज में सुधार आजाये
समीर जी नमस्कार एक गंभीर समस्या पर अच्छा कटाक्ष किया ! भ्रूण ह्त्या पर बहुत सुन्दर तरीके से लिखा है काश कि समाज में सुधार आजाये
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...................
waqai ye rachana stabdh kar dene wali hai.ek aisi sachchai jo dil swikar nahi karta,us samay majburi me ghire insaan ko paap puny nahi dkhlai padta ,par aapne sahi likha hai-----
परिस्थिति के अनुरूप
समय की गति में नहीं होती हत्या
poonam
बहुत भावपूर्ण कविता है. भ्रूण-हत्या के नाम पर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं... चाहे वो कन्या की हो या लड़के की.
डॉक्टर ने सलाह दी कि लाओ, इस गोद में बैठी बेटी को मार देते हैं.
वाह! क्या जवाब है। बहुत सही! आपने हिलाकर रख दिया। एक झटके में पूरा मैसेज। आनन्द आ गया।
कोई
हत्या महज हत्या नहीं होती!!
परिस्थिति के अनुरूप
समय की गति में...
खतरनाक सा निष्कर्ष लगता है...
बेहतर प्रस्तुति...
अद्भुत!हत्या!!!!
समाज को दिशा देती संवेदनशील पोस्ट. बधाई
आपकी पोस्ट को पढ़ कर मुझे मेरी इसी विषय पर लिखी पोस्ट याद आ गई
" भाव शून्य "
"वो बहुत खुश थी
बरसों से प्रतीक्षारत थी,
जिस ख़ुशी के लिए
वो उसे मिल जो गयी थी.
जीवन में एक पूर्णता,
एक सम्पूर्ण नारीत्व,
एक अजीब सी हलचल,
उत्साह और..
पूरी देह में सिहरन
पर न जाने क्यों,
उस सम्पूर्ण नारीत्व को देखने की चाह,
उसमें जाग उठी.
फिर क्या था,
एक कमरा तार मशीनें और
कुछ चहलकदमी.
अचानक कुछ हलचल हुई.
नेह के ताल में एक नन्ही सी जान.
गालों में गहरे गड्ढे,
एक शांत सौम्य मुस्कान.
फिर एक अंगडाई,
पांव लम्बे खिंचे,
दूर तक जाते हाँथ,
घूमता शरीर,
फिर वही शांत सौम्य मुस्कान.
उसी पल पाया उसने.
अपनी देह में, नन्हे पांवों का कोमल स्पर्श,
कोहनिओं की हड्डियों की मीठी चुभन.
खो जाना चाहती थी वो उसमें
पर हैरान थी वो !!!!
न जाने क्यों पास बैठे लोगों के चेहरे
अचानक भाव शून्य हो गए थे ... "
बहुत ही सुन्दर और विचारिणी पंक्तियाँ
बहुत सुन्दर लघुकथा। बेहतरीन!
"Compelling content causes comments"
...this one caused 96 comments so far.
अनकहा ही बेहतर
:)
bahut bahut khoob...
bahut achha laga pad kar...
Meri Nai Kavita padne ke liye jaroor aaye..
aapke comments ke intzaar mein...
A Silent Silence : Khaamosh si ik Pyaas
झकझोर कर रख दिया आपकी लघु कथा और कविता ने . क्रांति है आपकी कलम में
आह !
ये कहानी तो बहुत से लोगों को पढ़ानी होगी।
बहुत बढ़िया तरीके से आपने इस गंभीर विषय पर लिखा है समीर जी ...बहुत हालात सुधरे हैं पर अभी भी बहुत जरुरत है इस विषय में जागरूक करने की ...
ऐसी लघुत्तम कथा और इतनी प्रभावी!!!!! भ्रूण हत्या पर लिखा ये लेख सभी को पढना और उसे समझना चाहिए.. आपके ब्लॉग पर मैं काफी देरी से आई, इसका अफ़सोस हो रहा है.
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