स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
आज एक गज़ल, जो चंद रोज पहले महावीर ब्लॉग पर छपी थी. महवीर ब्लॉग से अपनी गज़ल का छपना एक गौरव की अनुभूति देता है, बहुत आभार महावीर जी एवं प्राण जी का इस इस स्नेह के लिए. देखें इस गज़ल को, एक अलग तरह का प्रयोग है हर शेर के शुरुवात में मुद्दतों बाद के इस्तेमाल का:
मुद्दतों बाद उसे दूर से जाते देखा
धूप को आज यूँ ही नज़रें चुराते देखा
मुद्दतों बाद हुई आज ये कैसी हालत
आँख को बेवज़ह आंसू भी बहाते देखा
मुद्दतों बाद दिखे हैं वो जनाबे आली
वोट के वास्ते सर उनको झुकाते देखा
मुद्दतों बाद खुली नींद तो पाया हमने
खुद को सोने का बड़ा दाम चुकाते देखा
मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा
मुद्दतों बाद कोई आने लगा अपने सा
रात भर ख्वाब में मैंने उसे आते देखा
मुद्दतों बाद किसीने यूँ पुकारा है "समीर"
खुद ही खुद से पहचान कराते देखा
-समीर लाल ’समीर’
112 टिप्पणियां:
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
रात भर ख्वाब में मैंने उसे आते देखा मुद्दतों बाद किसीने यूँ पुकारा है "समीर"
खुद ही खुद से पहचान कराते देखा -समीर लाल ’समीर’
अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं.... बहुत सुंदर कविता....
मुद्दतों बाद खुली नींद तो पाया हमने
खुद को सोने का बड़ा दाम चुकाते देखा
मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा
बहुत उम्दा!
हक़ीक़त तल्ख़ है लेकिन बद्क़िस्मती से बहुत से घरों की हक़ीक़त यही है
मुद्दतों बाद खुली नींद तो पाया हमने
खुद को सोने का बड़ा दाम चुकाते देखा
दो दिन जो मैं रहा गांव से बाहर
मोहल्ले वाले पहचानना ही भूल गए।
उम्दा गजल के लिए आभार
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई।
हिंदी सेवा करते रहें।
जय हिंद
आपको भी और सभी देशवाशियों को हार्दिक शुभकामनायें इस महान दिन पर ...
गजल में भी व्यंग्य छुपा है :)
vaah sir ji, bahut hi achi gajal hai......aaj bahut din baad itni achi gajal padhne ko mili hai thanks sir ji thanks a lot.......love you....
vaah sir ji, bahut hi achi gajal hai......aaj bahut din baad itni achi gajal padhne ko mili hai thanks sir ji thanks a lot.......love you....
Aapko bhi swatantrata diwas ki hardik badhai.
मुद्दतों बाद किसी को अच्छी गज़ल सुनाते देखा। बधाई समीर जी ।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
http://vyangyalok.blogspot.com
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आपको भी हार्दिक शुभकामनाएँ
मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा
बेहद खुबसूरत ग़ज़ल.....
regards
क्या खूब ? मुद्दतो बाद ही सब खुराफात की जड़ है और आपने इसी को इतना ताब दे दिया ,सर चढ़ा लिया -अब हम भी सावधान हो लिए हैं मुद्दतों बाद को फटकने नहीं देगें ..बड़ी खतरनाक है यह तो !
मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा
आप तो हर बार गज़ब कर जाते हैं..ये मुद्दतों बाद वाला फ़ॉर्मूला ग़ज़ल के लिए बहुत शानदार है लेकिन आप पर लागू नहीं होता...:):)
बहुत खूबसूरत है.. हर आशार...
शुक्रिया...
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ...!
आपने कह तो दिया…
मुद्दतों बाद किसीने यूँ पुकारा है "समीर"
खुद ही खुद से पहचान कराते देखा
बेहद खुबसूरत ग़ज़ल.....
हम जो लिखना चाह रहे थे उसे श्री प्रमोद ताम्बट जी ने लिख दिया. अब केवल "बढ़िया" से काम चला लें.
puri ghazal ...khoobsurat hai..awesome!
हाँ आप के सेव के पेड़ को देख एक बात याद आ गे. एरिज़ोना में (फिनिक्स) हमारी भांजी रहती है. उनके घर में भी सेव का पेड़ है और खूब होता है. वहां की विषम जलवायु में वह कौन सी वेराइटी है. क्या भारत के गरम भागों में उसका प्रत्यारोपण हो सकेगा? दिसंबर में आते वक्त दो चार पौधे ले आयें. जबलपुर में लगा दें.
shandar gazal hai aapki...........
मुद्दतों बाद दिखे हैं वो जनाबे आली
वोट के वास्ते सर उनको झुकाते देखा
बहुत बेहतरीन गजल है ...
मुद्दतों बाद हुई आज ये कैसी हालत
आँख को बेवज़ह आंसू भी बहाते देखा
बेहतरीन ग़ज़ल!
आपको भी परिवार सहित स्वतंत्र दिवस की ढेरों शुभकामनाएँ!
मुद्दतों बाद मेरा घर मुझे अपना लगा,
गुनगुनाते जब उन्हे एक फूल सजाते देखा।
बहुत सुन्दर गज़ल दीवाना करके छोड़ेंगे
आपकी यह गज़ल महावीर ब्लॉग पर भी पढ़ी थी ...फिर से पढ़ना अच्छा लगा ...
मुद्दतों बाद हुई आज ये कैसी हालत
आँख को बेवज़ह आंसू भी बहाते देखा
मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा
बहुत मार्मिक बात कह दी है ...
मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा
सीधी चोट करती बात............
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई
आपको और आपके परिजनों स्वतंत्रता दिवस की असीम हार्दिक शुभकामनाये
...
मुद्दतों बाद उसे दूर से जाते देखा
धूप को आज यूँ ही नज़रें चुराते देखा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति....वाह ..आभार
मुद्दतों बाद खुली नींद तो पाया हमने
खुद को सोने का बड़ा दाम चुकाते देखा........
इन पंक्तियों ने दिल को छू लिया....
बहुत सुंदर ग़ज़ल....
--
www.lekhnee.blogspot.com
Regards...
Mahfooz..
मुद्दतों बाद नहीं, हमने तो आपको हमेशा ही अच्छा लिखते देखा।
मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा...
मुद्दतों बाद बुत कुछ देखा आपने ...
मगर इतनी मुद्दतें हुई क्यों ...
जवान थे तो उड़ते फिरते रहे चमन में ....
बुढ़ापा देख पुराना घर याद आया ....:):)
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ...
जितनी भी है ... आज़ादी मुबारक..!
बहुत अच्छी गज़ल समीर जी.
धन्यवाद.
खुबसूरत ग़ज़ल,
बहुत सुंदर,
बधाई!
मुद्दतों बाद एक अच्छी गज़ल हमने भी पढ़ी है !
मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा
maarmik !!
भाई sab !यह सच है और यही सच है!!
samay हो तो अवश्य पढ़ें:
पंद्रह अगस्त यानी किसानों के माथे पर पुलिस का डंडा
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_15.html
बहुत अच्छी गजल, बधाई।
बढ़िया लिखा है आपने.
मेरा ब्लॉग
खूबसूरत, लेकिन पराई युवती को निहारने से बचें
http://iamsheheryar.blogspot.com/2010/08/blog-post_16.html
बेहतरीन उम्दा गज़ल्।
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा
मुद्दतों बाद कोई आने लगा अपने सा
रात भर ख्वाब में मैंने उसे आते देखा
kamal ki panktiyan hai..bahut khubsurat gajal.bahut2 badhai...
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ
मुद्दतों बाद कोई आने लगा अपने सा
रात भर ख्वाब में मैंने उसे आते देखा
waah
मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा
kya kahne bhaissab... wah wah.
Zindabad zindabad
ये वहां भी पढ़ी थी यहाँ पढकर फिर से आनंद आया .
ये वहां भी पढ़ी थी यहाँ पढकर फिर से आनंद आया .
बाद मुद्दत के मुरादें बर आई हैं :)
bahut hi umda rachna hai !
बहुत सुन्दर गजल है |
मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा
बहुत सुंदर !
मंगलवार 17 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार
http://charchamanch.blogspot.com/
मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा
मुद्दतों बाद कोई आने लगा अपने सा
रात भर ख्वाब में मैंने उसे आते देखा
bahut khoob ,haardik badhai aazadi ke avsar par aapko saparivaar .
muddato baad ham bhi laute hai yahan
bahut khoob
मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा
बहुत सुन्दर गज़ल है समीर जी. शुभकामनाएं.
सीधी-सच्ची गज़ल...
मुद्दतों बाद एक अच्छी ग़ज़ल पढने को मिली!
देर से ही सही आपको स्वतंत्र दिवस कि ढ़ेर सारी शुभकामनाएं. और फिर इन पंक्तियों के लिये भी कि............
ek aur achchhi post ke liye dher sari badhaiyan...........
मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा...
बहुत ही बढ़िया लगा यह शेर ...बहुत खूब समीर जी
मुद्दतों बाद खुली नींद तो पाया हमने
खुद को सोने का बड़ा दाम चुकाते देखा
आँखे जब मुद्दतों बाद खुलेंगी तो दाम तो चुकाना ही होगा.
और फिर जब खुद की खुद से पहचान हो जाये तो क्या कहने ...
मुद्दतों बाद ये आई है तश्तरी में ग़ज़ल
यूएफओ लगती है पास से इसको देखा.
वाह! क्या बात है, बहुत सुन्दर !
मुद्दतों बाद खुली नींद तो पाया हमने
खुद को सोने का बड़ा दाम चुकाते देखा
वाह क्या बात कही ...टच कर गयी |
मैं तो आपका प्रशंसक हूं इसलिए यह तो कहूंगा ही कि आप हमेशा जानदार और शानदार लिखते हैं... लेकिन यह क्या मेरे अलावा ऊपर और भी कई लोग है जो मेरी बात का समर्थन कर रहे हैं।
धांसू गजल....
बधाई आपको.
सच में ही बेहतरीन पंक्तियां हैं ...........बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको ....
बहुत ही सटीक रही आज की आपकी पोस्ट!
--
एक छंद देखिए-
मेरे आजाद भारत को अब देखिए,
हो रहे कत्ल हैं बेसबब देखिए,
इस नई नस्ल को बेअदब देखिए,
कैसे आ पायेगा मुल्क में अब अमन।
उन शहीदों को मेरा नमन है नमन।।
आजादी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
ग़ज़ल और सेब दोनों ही रसदार, वाह.
jnaab aapki muddton ke bad kaa istemaal krna mene to muddton baad nhin blke pehli bar dekhaa or bs chaa gye jnaab aap to bhaayi ho. akhtar khan akela kota rajsthan
बेहतरीन...कविता आज़ादी की शुभकामनाएं
लाजवाब गजल, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम
लाजवाब गजल, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम
मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा
दिल को छु गए ये शेर |
bahut hi behatreen rachna sir ji....
मुद्दतों बाद उसे दूर से जाते देखा
धूप को आज यूँ ही नज़रें चुराते देखा
मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा
मुद्दतों बाद कोई आने लगा अपने सा
रात भर ख्वाब में मैंने उसे आते देखा
................
अच्छे विम्ब, प्रभावी शब्द
समीर भाई ..एक एक शेर ..नग कि तरह बैठा दी हैं आप गजल के अंगूठी में..
लाजवाब्! बेहतरीन! मन को छू जाने वाली रचना....
मुद्दतों बाद आज टिप्पणी कर रहा हूँ . 15 अगस्त की शुभ्कामनाएं देने के लिए.एक पोसट देखें.
http://ajeyklg.blogspot.com/
bahut sunder rachna! muddaton baad aisee gazal padhne ko mili..
मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा
मुद्दतों बाद कोई आने लगा अपने सा
रात भर ख्वाब में मैंने उसे आते देखा
Behad khubsurat .....har sher vastvikta ke dharatal se juda hua hai...Dhanywaad.
मुद्दतों बाद कुछ होता हो
मुद्तों बाद ख्बाव आते हों
मुद्तों बाद वगैरेह वगैरह होता हो..पर आप तो हर बार कमाल करते हैं.....देखा हर काम मुद्दतों बाद नहीं होता...मानते हैं कि नहीं....?
बहुत खूबसूरत गज़ल है सर जी।
पढ़वाने के लिये आभार।
मुद्दतों किया है तेरा इंतज़ार ऐ सनम,
जो सुनाई अंजुमन में शब-ए-गम की आपबीती,
कभी रो के मुस्कुराए,
कभी मुस्कुरा के रोए...
जय हिंद...
मुद्दतों बाद हुई आज ये कैसी हालत
आँख को बेवज़ह आंसू भी बहाते देखा
... बेहतरीन अभिव्यक्ति !!!
सुंदर प्रस्तुति!
“कोई देश विदेशी भाषा के द्वारा न तो उन्नति कर सकता है और ना ही राष्ट्रीय भावना की अभिव्यक्ति।”
हमारे काम का तो सिर्फ़ सेब का झाड़ लगा। जमकर सेब खाने को मिले तो मज़ा है।
बाकी बकबक, शेर के पहले शेर के बाद अपनी समझ के परे है। अपन तो एक ही शेर को जानते हैं, दारासिंह। उसके आगे क्या और पीछे क्या ? समझे जानी।
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
मुद्दतों बाद खुली नींद तो पाया हमने
खुद को सोने का बड़ा दाम चुकाते देखा
मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा
वाह समी जी क्या शेर कहे हैं बधाई।
मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा ।
गहरे भाव लिये हुये, बेहतरीन प्रस्तुति ।
मुद्दतों बाद किसीने यूँ पुकारा है "समीर"
खुद ही खुद से पहचान कराते देखा
...बहुत खूब..खूबसूरत अभिव्यक्ति..बधाई.
'डाकिया डाक लाया' पर भी आयें तो ख़ुशी होगी.
अच्छी गज़ल है समीर भाई ।
मुद्दतों बाद कोई आने लगा अपने सा
रात भर ख्वाब में मैंने उसे आते देखा
मुद्दतों बाद किसीने यूँ पुकारा है "समीर"
खुद ही खुद से पहचान कराते देखा
वाह...वाह.......क्या बात है जी ......!!
बल्ले-बल्ले ......ख्वाब हम देखते रहे और आना-जाना आपके यहाँ होता रहा .....
चलिए मुद्दतों बाद की ये खुसी आपको मुबारक ......!!
सुंदर ग़ज़ल .......!!
मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुती
मुद्दतों बाद हुई आज ये कैसी हालत
आँख को बेवज़ह आंसू भी बहाते देखा
...Khubsurat abhivyaktiyan..badhai.
_________________________
'शब्द-शिखर' पर प्रस्तुति सबसे बड़ा दान है देहदान, नेत्रदान
मुद्दतों बाद दिखे हैं वो जनाबे आली
वोट के वास्ते सर उनको झुकाते देखा
बहुत बढिया।
मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा
वाह.
मुद्दतों बाद किसी ने मुझे पुकारा है
एक पल रुक कर हम सोचने लगे
क्या यही नाम हमारा है।
बहुत अच्छी गजल है। धन्यवाद।
समीर भाई ... बहुत की खूबसूरत ग़ज़ल है ये ..... आज़ादी का जश्न मुबारक हो ...
बहुत सुंदर ग़ज़ल....
muddaton bad main lauta hoon yahan;
kisi ki gazal padhkar, khud ko muskurate dekha..
ek uttam rachna ke liye badhai sameer ji.
पूरी की पूरी गज़ल बहुत खूबसूरत और आखरी के शेर तो बस मन भिगो गए.
सुंदर उम्दा अभिव्यक्ति.
मुद्दतों बाद जो लौटा हूँ मैं घर को अपने
अपने ही भाई को दीवार उठाते देखा
बहुत उम्दा!
मुद्दतों बाद कुछ पढने को जी चाहा
देखा तो खुद को आपको पढ़ते देखा
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सुन्दर ग़ज़ल
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
ग़ज़ल बहुत शानदार है.
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये.
बहुत अच्छी लगी गजल.
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स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ !
मुद्दतों बाद दिखे हैं वो जनाबे आली
वोट के वास्ते सर उनको झुकाते देखा
मुद्दतों बाद खुली नींद तो पाया हमने
खुद को सोने का बड़ा दाम चुकाते देखा..
वाह क्या बात है! बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! लाजवाब कविता!
मुद्दतों बाद हम जो इधर से गुजरे
गुलशन के हर एक गुल को महकते देखा .............वाह जनाब शब्द नहीं है या यूँ कहो की अल्पज्ञानी है ...जो भावों को आपकी तारीफ़ में शब्द न देसके
नायाब रचना...कितने भी बार पढने पर यह नयी ही लगेगी..
हमने तो कुछ ही पलों में इस रचना से
जीवन के हर पहलु को करीब आते देखा
बेहतरीन रचना
बस एक रचना और .... छोटी सी
होती है क्या क्षमता रचनाकार की
आपने फिर से समझा दिया
जो देखा मुद्दतों में आपने
चंद शब्दों में हमें दिखला दिया
मुद्दतों बाद उसे दूर से जाते देखा
धूप को आज यूँ ही नज़रें चुराते देखा
कमाल की पंक्तियाँ हैं...बहुत सुन्दर
समीर जी,
मुद्दतों बाद पढ़कर इस ग़ज़ल को सच में
आज खुद अपने आप को मैंने शर्माते देखा
- विजय
मुद्दत्तों बाद ऐसा बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ के बहुत अच्छा लगा..
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं..
"कन्नू की “गाय” ते माँ का “Cow”" ज़रूर पढ़ें और अपने विचार दें..
आभार..
आपकी कविता बहुत मार्मिक है .भावनाओ से परिपूर्ण,बहुत सुन्दर
shubh ank hai 108
behad sunder,muddaton baad aisi sunder gazal padhi. khas kar 3rd and 4th sher waah waah.
hmmmmm..bahut bahut shurkiyaa....
mujhe ik aisi rchnaa se rubrro hone ka moukaa ddene ke liye..........thanxx...reaaly grt
take care
मुद्दतों बाद हुई आज ये कैसी हालत
आँख को बेवज़ह आंसू भी बहाते देखा
ultimate!!!!!!!!!! afsos hai ki itanee khubsoorat panktiyaan itnee der baad padh saka. badhaee
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