पड़ोस, याने दो घर छोड़ कर एक ग्रीक परिवार रहता है. मियां, बीबी एवं दो छोटी छोटी बेटियाँ. बड़ी बेटी ऐला शायद ४ साल की होगी और छोटी बेटी ऐबी ३ साल की.
अक्सर ही दोनों बच्चे खेलते हुए घर के सामने चले आते हैं और साधना (मेरी पत्नी) से काफी घुले मिले हैं. साधना बगीचे में काम कर रही होती है तो आस पास खेलते रहते हैं और यहाँ की सभ्यता के हिसाब से उसे साधना ही बुलाते हैं. आंटी या अंकल कहने का तो यहाँ रिवाज है नहीं. जब कभी मैं बाहर दिख जाता हूँ तो मेरे पास भी आ जाते हैं और गले लग कर हग कर लेते हैं.
इधर दो तीन दिनों से हल्का बुखार था और साथ ही बदन दर्द तो न दाढी बनाई जा रही थी और न ही बहुत तैयार होने का मन था इसलिए आज सुबह ऐसे ही घर के बाहर निकल पड़ा. सर दर्द के कारण माथे पर हल्की सी शिकन भी थी. आप कल्पना किजिये कि कैसा दिख रहा हूँगा.
साधना बाहर ही गार्डन में थी और तभी दोनों बच्चे भागते चले आये. छोटी ऐबी हाथ में एक फूल लिए आई, जो उसने वहीं गार्डन से तोड़ा होगा और बड़े प्यार से मुझे दिया. बच्चे का मोह देख कर बड़ी प्रसन्नता हुई और हाल चाल पूछ कर और प्यार करके भीतर चला आया. वो दोनों साधना के साथ खेलने लग गई.
थोड़ी देर बाद बाहर से हा हा की आवाज सुनकर मैं उपर से उतर कर आया कि देखा जाये आखिर माजरा क्या है?
बाहर साधना बच्चों को चाकलेट( गोल्ड पॉट केडबरी) खिला रही थी और उन बच्चों की मम्मी शेनन के साथ जोरदार ठहाके चल रहे थे. मैं आश्चर्यचकित कि ये क्या हुआ? वरना साधना और उसे चाकलेट खिला रही हो जिसने उसके गार्डन से फूल तोड़ा हो. वो कुछ कह भले न पाये मगर चाकलेट, सवाल ही नहीं उठता. मैं तोड़ लूँ तब तो समझो, खाना न मिले.
मेरे बाहर निकलते ही साधना ने मुझसे हिन्दी में कहा कि इतने दिन से कह रही हूँ कि बाल रंगा करो और दाढी वगैरह बना कर बाहर निकला करो, ये देखो प्यारी ऐबी क्या कह रही है?
दरअसल ऐबी ने अपना फूल तो मुझे दे दिया था और ऐला ने अपना फूल जब साधना को दिया तो ऐबी ने उससे कहा कि मैने तो फूल साधना के डैड को दे दिया. बस, साधना जी ऐसा खुश कि क्या कहा जाये. बड़े प्यार से बच्चे को बैठाला गया. घर में से चाकलेट ले जाकर खिलाई गई. कहने लगी कि बच्चों का दिल एकदम साफ होता है, उसमें ईश्वर वास करते हैं, कोई छल कपट तो होता नहीं, जैसा देखते हैं, जैसा उनको लगता है, बोल देते हैं.
खैर, भला हो उसकी मम्मी शेनन का, जिसने उसे समझाया कि बेटा ये साधना के डैड नहीं, हसबैण्ड हैं. मैं भी दिखावे का हा हा हू हू करके लौट आया. और तो रास्ता भी क्या था?
जाने क्यूँ सर का दर्द अचानक बढ़ गया. उपर जाकर बिस्तर पर लेट गया. जरा अमृतांजन भी मल लिया. लेटे लेटे विचार करने लगा तो एकाएक दो बरस पहले का वाकिया याद आया.
तब ऐसे ही पड़ोस में एक कनेडियन परिवार रहता था. पति, पत्नी और एक बच्ची. ढाई तीन साल की छोटी सी, प्यारी सी. एक बार मैं और साधना इसी तरह बाहर बरामदे में थे और मैं उस बच्ची से हैलो हाय में व्यस्त था तो उस बच्ची ने मुझे डैडी कह दिया. मैने उसकी मम्मी की तरफ देखा तो वो भी मुस्करा दी. बच्ची तो बच्ची है, उस नादान को क्या समझ? साधना ने भी देखा और बस!! शायद वो आखिरी दिन था जब उसने उस महिला से बात की होगी. मिलना जुलना बंद हो गया जनाब!! मूँह फूल कर वापस नार्मल होने में पूरा दिन लगा. अब बताओ, तब बच्चे के दिल में ईश्वर नहीं बैठे थे क्या? क्या कोई छल कपट नें घेर डाला था उस बच्चे को?
शब्द वही, ’डैडी’ या डैड, सामने छोटी सी बच्ची, सुनने वाली साधना वही. मायने कितना बदल गया.
सोचता हूँ शब्द की क्या ताकत-बल्कि ताकत तो संदर्भ की है जिसमें वो इस्तेमाल किया गया और जिस ओर वो इंगित किया गया, वरना तो क्या वो अपने सही के डैडी को डैडी कहती और उसकी पत्नी मुस्करा देती तो साधना का भला मूँह फूलता?
बड़ा अटपटा है यह शब्दों का संसार, इनसे वाक्यों का विन्यास और इनका इस्तेमाल. बड़ा संभलना होता है, बहुत सतर्कता और सजगता मांगता है. जरा चूके और देखो-क्या से क्या हो गया. :) कभी वही शब्द मिठाई दिला जाता है तो कभी वही शब्द-मन मुटाव करा जाता है.
लेखकों से: चलो, वो तो बच्चे थे, हो गई गल्ती मगर आप तो समझदार हो. शब्द चुनने के साथ साथ कहने, लिखने के बाद एक बार पढ़ कर भी देख लिया करो कि कहीं अर्थ का अनर्थ तो नहीं होने जा रहा है.
इसी में से फूल तोड़ा होगा |
अपनी एक पुरानी कविता पुनः
शब्द
जब निकल जाते हैं
मेरे
मेरे होठों के बाहर
तो बदल लेते हैं
अपने मानी
सुविधानुसार
समय के
और परिस्थित के साथ
शब्दों के अर्थ
फिर बदलते हैं
पढ़ने वाले की
सोच के साथ
उसकी
इच्छानुसार
उफ़..........
मेरे शब्द
शब्द नहीं
आदमी बन गए हैं
-समीर लाल ’समीर’
-एक दोहा-बुखार को समर्पित-
मौसम की इस मार से, ऐसा चढ़ा बुखार..
छोटा बच्चा चीख कर, बाबा रहा पुकार.
-समीर लाल ’समीर’
134 टिप्पणियां:
bahut jandar,shandar,damdar.narayan narayan
bahut hi acchi rachan hain apaki
khaskar jis tarah se aapane
sabko samjhaya ke shabdo ka kitna mahatv hota hain
apaki kvaita to bahut hi acchi thi...
chirag,,,,
मेरे शब्द
शब्द नहीं
आदमी बन गए हैं
सुन्दर वृत्तांत सुनाया आपने. शब्दो को दिशा देने की जरूरत होती है फिर ये मनोवांछित अर्थ भी दे देते हैं.
श्रीमान समीर जी, मैं उन दोनों वाकयों की कल्पना करके ही लोटपोट हुआ जा रहा हूं...
ही ही ही
सर, आपके साथ ही क्यूँ ऐसे किस्से हो जाते हैं. हमें तो मजा आ जाता है भले आप पर जो गुजरती हो. ही ही!!
क्या बात है! अमृतांजन मलने की नौबत आ गई! दर्द-ए-सर की दवा तो इण्डिया से ले जाते हैं. दर्द-ए-दिल की दवा कहाँ से खरीदेंगे!?
मौसम की इस मार से, ऐसा चढ़ा बुखार..
छोटा बच्चा चीख कर, बाबा रहा पुकार.
बाबा रहा पुकार, लालजी अब का कीजै!
फिरसे डिबिया खोल अमृतांजन मल लीजै.
Wow ...majaaa aa gayaa aapaki jawaani se lekar budaape ka saphar aur there was a big hidden msg for all of u
ati sundar. ... Jiyo hajaaro Saal aur jaldi se theek ho jao
get well soon , take some rest gurujee
एक रचना को जीवंत करतीं दूसरी रचना की पंक्तियां...अत्यंत स्नेहासिक्त,स्निग्ध-स्निग्ध सी....
छोटी ऐबी हाथ में एक फूल लिए आई, जो उसने वहीं गार्डन से तोड़ा होगा और बड़े प्यार से मुझे दिया.
वस्तुतः सब पत्नियाँ अपने पति को दुनिया के समक्ष विजेता और स्वयं के सम्मुख परास्त देखना चाहती है, हो सकता है ये मेरा निजी अनुभव हो.
कविता शानदार है और दोहा कारगर है कई सारे दृश्य बुन जाता है पढ़ते ही.
मेरे शब्द
शब्द नहीं
आदमी बन गए हैं
बहुत खूब समीरजी ! संस्मरण और कविता दोनों ही बहुत रोचक हैं ! केशव के दोहे के चंद अल्फाज़ याद आ गये !
"केशव केसन अस करी ........."
ये अहीर की छोरियाँ बाबा कहि कहि जांय !"
आपके साथ जो हुआ सो हुआ हमारा तो दिल खुश हो गया ! हां हा हा !
लिखन शैली बेहद बढ़िया है गुरूदेव जी।
डैडी ठीक है, डैड गलत लगता है मरा हुआ.. माँ ठीक है, मम्मी अजीब लगता है डैड बॉडीज़।
भजना अमली अपनी पत्नि से बोला..तुम ठीक कहती हो। अपनी उम्र से छोटी को मैं बेटी कह दूँगा, और हमउम्र को बहन, लेकिन खुद से बड़ी को माँ नहीं कह सकता।
पत्नि बोली क्यों? क्या अब तेरे चलते पिता का चरित्र भी ख़राब कर दूँ।
आपको बुखार है, हमें आनंदित तो नहीं ही होना चाहिये, पर आप ऐसी बातें बतायेंगे तो हम तो उलझन में पड़ेंगे ही।
हम तो जी बहुत पहले से ही दाढ़ी बढ़ाकर, बाल काले न करके गृह शांति का उपाय अपना रहे हैं।
अमृतांजन का प्रयोग वाकई कारगर होता है, जब सिरदर्द बढ़ जाये ऐसी बातों से?
आभार
बच्चों के हृदय में ईश्वर का वास करते है पर उनकी बातें ज़्यादातर तभी मानी जाती है जब अपने पक्ष में हो जैसा आपके केस में हुआ....लोगों को बस अपने मन की बात चाहिए...मजेदार वाक़या एक ने आपको पापा बना दिया एक ने नाना...वैसे सही है स्टाइल वाले लोगों के बीच में तोड़ा स्टाइल में ही रहा कीजिएगा ना..सब खुश भी रहेगा इससे....बढ़िया मजेदार वाक़या...कविता भी अच्छी लगी....धन्यवाद समीर जी
वो कैनेडियन लेडी से मुझे भी मिला दो यार . मेरी बीबी को तो अच्छा लगेगा कि अभी दम ख़म बाकि है.
हासानन्द
समीर भाई!
ताऊ ने आपको समीरानन्द की उपाधि देकर तो जगत बाबा बना दिया है!
क्या फर्क पड़ता है! बाबा तो बाबा ही है!
चाहे कोई भा कहे!
--
इस लेख में आपने बहुत ही मार्मिक बात कही है!
शब्दों की महिमा बहुत ही निराली है!
शब्दों का सही प्रयोग न करने से वास्तव में अर्थ का अनर्थ हो जाता है!
शब्दै मारा गिर पड़ा शब्दै छोड़ा राज ।
जिन जिन शब्द विवेकिया तिनका सरिगौ काज॥
इंसान ज्यों-ज्यों समझदार होता जाता है उसकी गुस्ताख़ियां बढ़ती जाती हैं.
बहुत सही...रोचक.
==================
आभार आपका
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
अगर गलतियाँ इंसान नहीं करेगा तो कौन करेगा, और वैसे भी बच्चे बहुत प्यारे होते हैं, जो बोलते हैं बहुत सोच समझकर बोलते हैं :)
.बढ़िया मजेदार वाक़या...कविता भी अच्छी लगी....धन्यवाद समीर जी
कविता शानदार है और दोहा कारगर है कई सारे दृश्य बुन जाता है पढ़ते ही.
"तब बच्चे के दिल में ईश्वर नहीं बैठे थे क्या? क्या कोई छल कपट नें घेर डाला था उस बच्चे को? "
पहले वाक्ये में साधना जी खुश और आपने अमृतांजन लगाया बिलकुल ठीक !...और दूसरे वाक्ये में
साधना जी को बुरा लगा ये तो स्वाभाविक था पर तब आपको कैसा लगा आपने बताया नहीं...वैसे चिन्हांकित वाक्य से कुछ तो समझ में आ रहा है :)
बहुत बहुत धन्यवाद । मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और अपनी टिपण्णी छोड़ने के लिए । मेरी दूसरी रचनायों पर भी आपका मत और सुझाव चाहूँगा । आप ज़रूर आइयेगा, आपका हमेशा स्वागत है ।
आपके लेख मैं पढ़ते रहता हूँ ।आपका यह लेख भी अच्छा लगा । सच ही है, अर्थ का कब अनर्थ हो ये समझ पाना कठिन है इसलिए हमेशा सतर्क रहना चाहिए ।
आप के साथ हुए हादसे से पूरी सहानुभूति है !पर हैं तो हम साधना जी की तरफ !बहुत मजा आया !वैसे आपकी बात याद रखेंगे कि अर्थ का अनर्थ न हो !धन्यवाद
Shabd shabd nahi ami ban gaye hain...
waah
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
बहुत ही खूब। अब तबियत कैसी है?
बाल रंगे कि नहीं? :)
वाकई शब्दों की महिमा अपरंपार है. जो ना करादे वो कम. कविता और बुखार को समर्पित दोहा बहुते लाजवाब.
रामराम.
नमस्कार ,
बहुत मज़ेदार है ये संस्मरण,
बहुत सही कहा आप ने शब्द अगर सही जगह पर न इस्तेमाल किए जाएं तो अपने अर्थ ही खो देते हैं
खैर, भला हो उसकी मम्मी शेनन का, जिसने उसे समझाया कि बेटा ये साधना के डैड नहीं, हसबैण्ड हैं. ......
............चलिए अंत भला तो सब भला, दोनों आप बीती गजब की हैं.
उफ़..........
मेरे शब्द
शब्द नहीं
आदमी बन गए हैं...क्या कहना है,वाह.....
"मैं उस बच्ची से हैलो हाय में व्यस्त था तो उस बच्ची ने मुझे डैडी कह दिया. मैने उसकी मम्मी की तरफ देखा तो वो भी मुस्करा दी. बच्ची तो बच्ची है, उस नादान को क्या समझ? साधना ने भी देखा और बस!!"
भाभी जी का गुस्सा एकदम जायज था, आज कल दायाँ हाथ बाए हाथ का दांई आँख बाएं आँख की, दाया कान बाए कान का भरोसा नहीं कर सकता और आपने बात हलके में टाल दी, भारतीय राज्नेतावो की तरह ! इस बात की पूरी तहकीकात की जानी चाहिए थी किसी स्वतंत्र जांच एजेंसी से :) : ) :)
गुरुदेव,
आजकल यहां टीवी पर एक एड आता है...जिसमें पति और पत्नी में बहस चल रही होती है, बेटा किस पर गया है...तभी बेटा बाहर से आ जाता है कुछ डरा हुआ सा...पति पूछता है, बेटा तुम ही बताओ, किसके बेटे हो...चार साल का बेटा जवाब देता है...मल्होत्रा अंकल का...
...
...
...
पति अब पत्नी को देखता है...लेकिन तभी बेटा जवाब पूरा करता है...कांच तोड़ दिया छक्का मार के....
जय हिंद...
बहुत मजेदार प्रसंग और अद्भुत पोस्ट!!!
अपनी पड़ोसन से कहते, बेटा तुम्हारी छोटी बहने बहुत शरारती है. फिर देखते..... :)
यहाँ की सभ्यता के हिसाब से उसे साधना ही बुलाते हैं. आंटी या अंकल कहने का तो यहाँ रिवाज है नहीं.
ऐसा भी क्या ??
.. और शब्दों का तो कुछ भी अर्थ लगाया जा सकता है .. सब अपनी मन:स्थिति के ऊपर निर्भर करता है !!
डेन्टिग और पेन्टिग का विशेष ध्यान रखे वर्ना ऎसी दुर्घट्नाये होती रहेंगी . वैसे आज नही तो कल बाबा तो बनना ही है आपको . बाबा मतलब ग्रेन्ड फ़ादर ना कि समीरानन्द
नन्हा-मन पर आपकी उड़न तश्तरी देखकर आ रही हूँ. उड़न तश्तरी में हमें भी घूमना है...
***************
'पाखी की दुनिया' में इस बार "मम्मी-पापा की लाडली"
सही कहा
बॉस शब्द कई बार अर्थ बदल लेते हैं..महिलाओं का क्या कहें....मर्दों की तारीफ कोई कर दे तो बरदाश्त नहीं कर पातीं.....पुरानी कविता याद दिला कर दिल खुश कर दिया....एक बात बताइए...शब्द आदमी बन गया है....पर क्या ये नहीं कह सकते की शब्द औरत बन गए हैं...???????????
बच्चों का दिल एकदम साफ होता है, उसमें ईश्वर वास करते हैं, कोई छल कपट तो होता नहीं, जैसा देखते हैं, जैसा उनको लगता है, बोल देते हैं.......ये हुई न बच्चों वाली बात..अब आपकी तबियत कैसी है.
:):)....
हा हा हा ....दोनों घटनाएँ बहुत खूब रहीं....
लेकिन इनके माध्यम से जो सन्देश दिया है वो लाजवाब है...सच है शब्द ज़रा सी गलती से अर्थ का अनर्थ कर देते हैं...
और कविता तो गज़ब है...जो कुछ लिखा जाता है उसका अर्थ सब अपनी सोच के अनुसार ही लगा लेते हैं इस तरह शब्दों के अर्थ बदलते रहते हैं...बहुत खूब
शब्द तो ब्रह्म है हीं संदर्भों के हिसाब से ब्रह्मास्त्र भी बन जाते हैं -बच्चे ब्रहम स्वरुप ही हैं ! स्वास्थ्य का ध्यान रखें !
न दाढी बनाई जा रही थी .....वैसे रोज क्या करते हैं आप.....
mujhe yaad ayi woh angreji ki class jab bhudau massab bolta tha "Kala mota hiran ...." aur tumhare chehre pe lali (kali) chha ja ti thi....
हे हे हे हे...केशव की याद आ गई. लेकिन सच में शब्दों की मार बड़ी ज़बर्दस्त होती है...औरतों को कुछ ज्यादा ही महसूस होती है. कविता अच्छी लगी आपकी. और...कोटेशन भी.
समीर जी ! शब्दों पर आपने कोई जादू कर दिया है वे आपके कहेनुसार ही चलते बोलते हैं .
aapki yah aapbiti mere budhape me kaam ayegi.
maja aagaya
mujhe udan tastari dekhne ki kafi utkantha hai kabhi apni tastari sahit tashreef laiye
"शब्द की क्या ताकत-बल्कि ताकत तो संदर्भ की है" बजा फ़रमाया है. सुन्दर कविता को सलाम.
उफ़..........
मेरे शब्द
शब्द नहीं
आदमी बन गए हैं
क्या कहूँ, इतना रोचक, इतना साधारण, इतना सशक्त संस्मरण...
कसम से आप शब्दों को अर्थ देने में सफल हैं.
और हाँ, बाल रंगा कीजिये, क्लीन सेव रहिये... इसका मतलब ठीक ही है. चलिए तबियत पर ध्यान दीजिये !
हा हा हा
इसीलिये कहा गया है की कमान से निकला तीर और जबान से निकली बात वापस नहीं होती .
कनाडा में अमृतांजन ?
daddy mein aap muskuraye, daid me sadhna ji....tab unki hansi gai, aaj aap ki hahaha
अभी तक मुझे भी अंकल शब्द से चिढ़ है ।
दूसरी घटना आपको इसलिये याद आयी कि आप पहली को पचा न पाये ।
कोई बात नहीं ।
समझदार बच्चों से दोस्ती कर के रखें । पता नहीं कब आपके मतलब की बातें बोल दें ।
बुखार की किस्मत क्या कहिये जिसे आपने सुरों में ढाला है .....|
'साधना के डैड 'सुनकर ज़ाहिर है सर दर्द बढ़ ही गया होगा...:)..
होता है ,होता है और इसका असर कितना घर हुआ है ये इन आखिर की पंक्तियों में पता ही चल रहा है...
मौसम की इस मार से, ऐसा चढ़ा बुखार..
छोटा बच्चा चीख कर, बाबा रहा पुकार.
------------
एक विज्ञापन कुछ ऐसा ही आता है टी वी..पर...:)
---------------
एक सीख भी दे गए ..'लिखे हुए को पहले और एक बार पढ़ लिया करें....[कमेन्ट में]...अर्थ का अनर्थ न हो जाये!'
अब तीन बार पढ़ती हूँ फिर एंटर प्रेस किया जायेगा.
तो बदल लेते हैं
अपने मानी
सुविधानुसार
समय के
और परिस्थित के साथ
...शब्द भी अब आदमी की तरह हो गए हैं. जैसा देश-वैसा भेष !!
समीर भाई ... मजेदार किस्से हैं ... पर सच कहूँ तो साधना भाभी को देख कर ये झूठ/सच सच लगता है ...
हा..हा..हा...क्या मज़ेदार पोस्ट थी...और उतनी ही सुन्दर कविता......."
अच्छा..!!
जब हम साधना जी से मिले थे तब भी हमको यही लगा था....
बाकी आप काला चश्मा पहिनबे किये हैं ....एक बार तब ज़रुरत हुई होगी जब साधना जी को गुस्सा आया था...@$%&..धिशूम ....
और दूसरी बार....:) अब हम का कहें...!!!
हाँ नहीं तो..!!
शब्द और शब्दार्थों पर ध्यान रखेंगे, और भी!
Apka likha vakya bahut acha laga..sacha kaha bachho ki baten hoti hi payari han..tabiyat ka khyal rakhiyega yahana par bhi mosam badla raha ha..
शब्दों का इस्तेमाल सचमुच सोच समझ कर ही हाेना चािहए। बहरहाल,खुद का ख्याल रखना भी उतना ही जरूरी है।
दरअसल ऐबी ने अपना फूल तो मुझे दे दिया था और ऐला ने अपना फूल जब साधना को दिया तो ऐबी ने उससे कहा कि मैने तो फूल साधना के डैड को दे दिया. बस, साधना जी ऐसा खुश कि क्या कहा जाये. बड़े प्यार से बच्चे को बैठाला गया. घर में से चाकलेट ले जाकर खिलाई गई. कहने लगी कि बच्चों का दिल एकदम साफ होता है, उसमें ईश्वर वास करते हैं, कोई छल कपट तो होता नहीं, जैसा देखते हैं, जैसा उनको लगता है, बोल देते हैं.
.... लगता है बात मे दम है, अदा जी ने भी समर्थन कर दिया है ...रोचक पोस्ट!!!
बच्चे जो कहना चाहते थे वही कहा न ? आखिर परेशान होने की क्या बात है । अगर किसी को कहें कि आपकी पत्नी आपकी अम्मा लगती हैं तो भी क्या उसे अच्छा लगेगा ?
हा हा हा ! बढ़िया प्रसंग।
इसीलिए अपुन तो रोज़ शेव भी करते हैं और नहा भी लेते हैं मल मल के ।
फिर भी कोई अंकल बोले तो अटपटा सा लगता है।
वैसे अंतिम लाइनों में बड़ी बात कह गए भाई जी ।
बड़ी गहरी बात कह दी,आपने मजाक मजाक में है...शब्द के अर्थ ,अनर्थ कर डालते हैं,कभी कभी....और उससे ज्यादा तो एक ही शब्दों के अलग अलग टोन...
और मेरी पोस्ट पर कमेन्ट में आपका कहना सोलहों आना सच है कि "जबलपुर वाले ऐसे ही होते हैं " तभी तो सारा ब्लॉग जगत ही मुरीद बना बैठा है एक किसी जबलपुर वाले का :)
बहुत बढ़िया पोस्ट. ऐसा शायद केवल लिखने वोलों के साथ ही होता है कि हर एक दुःख दर्द कुछ दे जाता है. अब आप खुद को ही देखिये,बुखार क्या हुआ एक नई पोस्ट बन गई.........
अच्छा हुआ जो बच्चों ने ऐसा कहा वर्ना मामला गंभीर था....
उड़न-चच्चा = 'साधना के डैड' ! :)
चच्चा तौ आप हमरे हैं, डैड किसके हैं आज पता चला. हा हा हा.
बच्चों की क्या कहें, उनके भोलापन बहुत ही समस्या ला देता है कभी-कभी.
मज़ा तो तब आया होता जब आप दूसरी वाली बच्ची जिसने आपको डैड कहा था, उसे उसका ईनाम चाकलेट( गोल्ड पॉट केडबरी) दिए होते. :)
फिर आपकी जो ठुकाई चाची करती, कसम से बाई गोड मज़ा आ जाता.
इस बात से हम समझ सकते हैं कि अगर कुछ मांगना हो तो चाची से मांगो, बेहतर है. चच्चा से कुछ भी नहीं मिलने वाला.
हम तो आपकी इस पोस्ट का वास्तविक सन्दर्भ खोजने का प्रयास कर रहे हैं...किन्तु मिल नहीं पाया, शायद आजकल ब्लागिंग से थोडा कटे हुए से हैं इसलिए पता नहीं चलता कि पीछे क्या चल रहा है :-)
मुहँ फुलाना तो हक जमाने का कायदा होता है। बस मौका मिलना चाहिए।
आप जो कहना चाहते हैं वह बहुत समर्थ भाषा में संप्रेषित हुआ है ।
ही ही!! साधना भाभी के डैडी..बच्चे कितना साफ साफ बोल देते हैं. बनावटी बातें तो बड़े ही कर सकते हैं.
बच्चों के हृदय में ईश्वर का निवास होता है, सच है... और यह भी कहावत है कि सारे दिन में एक बार हमारी जिह्वा पर सरस्वती विराजती हैं और उस मुहूर्त में जो कहें सच हो जाता है... आपकी पुरानी कविता इतनी भी पुरानी नहीं, लिहाजा मैं पुनः अपनी कविता से प्रतिक्रिया नहीं दे रहा... ना जाने क्यों आपकी पोस्ट का इंतज़ार रहता है... एक अपनापन अनुभव होता है... डायरेक्ट दिल से!!
waah....khub kahi aapne...achhi rachana....
hahahaha
aap bhi na kamaal karte hain
Patni is always right .....aapne wo kahawat nahi suni kya :-)
maza aa gaya sone se pahle man halka phulka ho gaya
nice
(अभी तक दिखे नहीं, मैं ही कहे देता हूँ)
sab shabdo ki maya he
yahi banati he or yahi insan ki wat lagati he
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
ठीक लिखा है आपने कई बार दैनिक जीवन में ऐसी बातें हो जाती हैं कि हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं और शब्दों के अर्थ किस कदर बदल जाते हैं । ये शब्द बस ढूँढते जाते हैं नये अर्थ...........
'शब्द की क्या ताकत-बल्कि ताकत तो संदर्भ की है'
बात मे दम है साहब।
आपने जिस लहज़े मे घटनाओं को पेश किया है, पढ़ते - पढ़ते, चेहरे पर मुस्कान आ ही गई । शुक्रिया । कविता भी बेहतरीन ।
IS BAAR BHEE AAPNE UMDA LIKHA HAI.
KAHANI AUR KAVITA MEIN SAAMANJASYA
AAP KHOOB BITHAA RAHE HAIN.EK BAAR
AUR KAHNAA PADAAGAA- BAHHU UMDA !!
बहुत अच्छा लिखा है. अच्छा लगा.
"शब्द की क्या ताकत-बल्कि ताकत तो संदर्भ की है" : सोलह आने सही!
"यहाँ की सभ्यता के हिसाब से उसे साधना ही बुलाते हैं" : यहाँ की ये बात मुझे अखरती है. बड़ा हो छोटा हो, सब को नाम से पुकारेंगे.
-Rajeev Bharol
हा हा ! ग्रीक में कहीं कुछ और मतलब तो नहीं होता :)
पत्नियाँ होती ही ऐसी हैं...शब्दों को भी इजाज़त लेनी पड़ती है अपना अर्थ बताने के लिए ...
आपकी कविता सुंदर है याद दिलाती है अर्थ किस तरह गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं..
मेरे शब्द
शब्द नहीं
आदमी बन गए हैं
इशारों में ही क्या गजब बात कह डाली आपने.. :)
बहोत अच्छे मौसा। ज़बरदस्त वाक़िये हैं दोनों।
मेरे शब्द
शब्द नहीं
आदमी बन गए हैं
इन आठ शब्दों मे सब कुछ कह दिया |
hanste-hanste pet me dard ho gaya aur aankh me aansoo aa gaye... sandesh bhi achchha hai .. kavita pahle bhi aap padha chuke hain lekin is sandarbh me padhkar aur achchhi lagi. :)
Bahut hi achchi rachna.
समीर जी बातों बातों में ही आप महत्वपूर्ण बात कह जाते हैं। मैं और टिप्पणीकारों से कहूंगा कि इस बात पर ध्यान दें।
शब्दों से ही सारे अर्थ का अनर्थ होता है...मेरे अमेरिका प्रवास के दौरान जब एक सज्जन से मीटिंग में मिला तो उसने हाथ मिलाते हुए पूछा" हैव यु कम हेयर टू डाई ?" मैं क्या कहता, उसकी शक्ल देखता रहा ? तब मेरे मित्र ने मुझे समझाया की इसका मतलब ये पूछ रहा है टू डे...अमेरिका में डे को डाई बोलते हैं...उच्च्चारण ही ऐसा है..याने आप आज ही आयें हैं क्या...
बहुत रोचक पोस्ट है आपकी...मज़ा आया पढ़ कर हमेशा की तरह....ये आप रोज़ रोज़ बीमार को हो जाते हो...कुछ लेते क्यूँ नहीं...? वोदका ग्रे गूज टाइप कुछ ?
नीरज
Kaan ki bhi ye aadat hai ki wo, wahi sunte hain jo sunna chahte hain.
Shabd ka itna pyara anarth pehle nahi suna/dekha.
Sadhna ji ki masoomiyat ko shat shat Naman !
Aap par kya beeti hogi, samajh sakti hun...Smiles !
वाकई संदर्भ का ही महत्व है, उसी के अनुसार एक शब्द का अर्थ बदल जाता है! :)
badiya ... :)
शानदार्।
संस्मरण के बहाने बढ़िया सीख
vakya dilchasp hai...kavita pahle bhi padhi thi...aaj bhi vaisi hi lagi
इस घटना से कुछ सीख लीजिये...वरना अगली बार कोई बच्चा साधना भाभी को आपकी पोती न समझ ले......:)
aapne shabdon ke maayne bahut hi saadgi aur sahajta se samjha diya... kavita jitni serious hai... wakya utni hi interesting...
jitna mazedaar vaakya, utna hi mazedaar aapka andaaz-e-bayan hai.
शब्दों के अर्थ
फिर बदलते हैं
पढ़ने वाले की
सोच के साथ
उसकी
इच्छानुसार
उफ़..........
मेरे शब्द
शब्द नहीं
आदमी बन गए हैं
teeno hi rachna shaandaar .doha sundar hai .
वाह ……………………यहाँ तो हल्का सा झटका बहुत जोर से लगा है………………………।लेकिन बात सही कह दी है।
मेरे शब्द
शब्द नहीं
आदमी बन गए हैं
बस यही अपराध मै हर बार करता हूँ, आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ
बहुत सुन्दर सन्देश्।
T20 [केवेंडर पेकेट वाले] हो या TEST [ फुल साइज़ का लेख , आप शतक [ टिप्पणियों का] तो आसानी से लगा जाते है! रोचक प्रसंग.
नीरज गोस्वामी जी,
"अमेरिका में डे को डाई बोलते हैं"
अमेरिका में नहीं ऑस्ट्रेलिया में बोलते हैं. वो व्यक्ति ऑस्ट्रलियन होगा!
-राजीव भरोल
नीरज गोस्वामी जी,
"अमेरिका में डे को डाई बोलते हैं"
अमेरिका में नहीं ऑस्ट्रेलिया में बोलते हैं. वो व्यक्ति ऑस्ट्रलियन होगा!
-राजीव भरोल
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 17.04.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/
आपने लिखा, कल्पना कीजिए कैसा लग रहा होऊंगा- अब बच्ची ने पत्नी का डैडी कहा तो कल्पना साकार हो गयी. केशवदास भी ऐसी ही परिस्थितियों से पीड़ित थे. अरे हां, वो कनाडियन महिला की बच्ची वाला मामला किसी अगली पोस्ट में विस्तार से लिखिएगा. और सच लिखिएगा कि क्या बच्ची को यह नहीं बताया गया था कि आपके घर आप को डैडी नहीं बोलने का.
बगिया के फ़ूल बता रहे हैं कि साधना जी बहुत मेहनत करती है और उनके हाथों में जादू है। है न डैडी जी? ओप्स सॉरी समीर जी…।:)
इसे कहते हैं....बच्चों की पारखी नजर!
सर आलेख पढ़कर मजा आ गया....
प्रशंसनीय ।
कोई जवाब नहीं आप श्रीमान के लेखन का। क्या स्टाइल है गुरू बात कहने की ! लाल साहब आपकी तारीफ़ के लिए शब्द नहीं हैं अपने पास।
Bahut sundar sansmaran---padh kar maja aa gaya---bachchon ke sath aksar aisa hota hai.
bahut achhi...
you have got a good neighborhood over there...
nicely written..
poem is also awesome......
regards
shekhar
शब्द कभी बाण बन जाता है, कभी नि:शब्द कर देता है.
aaj pahli baar main aap ke blog par aaya aur aap ke bare main pura janne ko mila...bahut aacha laga. aap ka asirwaad bana raha yahi meri kamna.
jaise shbd ,,shabd nahi...aadmi ho gaye hai.... aapki kavita hamesha lubhati hai
bahut sunder rachna . ..
समीर अंकल जी नमस्कार
आप हमरे बाल सजग ब्लॉग पर आकर हमारी कविताये पढ़ते है और हमारा हौसला बढ़ाते है हमें बहुत अच्छा लगता है. हम तो अभी लिखना सीख रहे है शब्द ढूढ़ने पड़ते है जो हम सोचते है उसके लिए. हम १२ बच्चे एक साथ रहते है हमारे माता पिता प्रवासी मजदूर है और कानपूर में ईट भाठ्ठो पर ईट पथाई का काम करते है. हम लोग भी मजदूरी करते थे मगर अब हम पढाई करते है...एक संस्था के माध्यम से . ...हम लोग अपनी कविता लिखते है और खुद ही ब्लॉग पर डालते है हमें इसमें मज़ा आता है ...
अपना घर के सभी बच्चे
आप की परेशानी , हमारा मनोरंजन बन गयी ।
महाकवि केशवदास ने कहा ही था :
केशव केशन अस करी,
जस अरिहु न करहिं ,
चंद्र मुखी मृगलोचनी,
बाबा कहि कहि जाहिं ।
bahut sahi likha hai............shabdon ko bahut sambhal kar istemal karna chahiye.
Dear Sameer ji,
I read your blog time to time. I guess you live in Ottawa. I am right now in Hamilton and planning to visit Ottawa at the end of this month. If you have time, I would like to meet with you.
I could not find your email so writing here. Can you please reply me at gajpaly@gmail.com.
thanks,
Yuvraj Gajpal
अपने बुखार का मजेदार चित्रण कर दिया है आपने, सर दर्द में भी काफी अच्छा लेख लिखा है, वाह साहब वाह
श्रीमान समीर जी सुन्दर वृत्तांत है. शब्द ही संसार है. शब्द के बिना सब अनर्थ है.इसलिए इसका मूल्य समझना चाहिए. शब्दों के जाल में कभी कभी चतुर भी फँस जाते है. वृतांत पढ़ कर मजा आ गया.
सही वाक्या है.. :)
वैसे ’पंकज' नाम के भी सही मायने है.. लखनऊ मे जब मै पढाई करता था तो हमारे ही फ़्लैट मे एक भैया-भाभी रहते थे.. भैया का नाम पंकज था.. उनकी एक बडी प्यारी सी बेटी थी.. मै अपने नालायक दोस्तो के सामने उससे पूछता था कि
"बेटा, आपके पापा का नाम क्या है?"
"पंकज.."
दोस्तो के सामने ये ’अश्वथामा मारा गया’ वाली कहानी से थोडा बहुत रौब भी बन जाता था ;)
'मेरे शब्द
शब्द नहीं
आदमी बन गये हैं'
सुन्दर और सारगर्भित।
zamana kharaab aa gaya hai.
वाह ! पढ़ कर मज़ा आ गया, कभी मिले तो हम भी उन्हें भाभी और आप को अंकल कहेंगे!
"""बड़ा अटपटा है यह शब्दों का संसार, इनसे वाक्यों का विन्यास और इनका इस्तेमाल. बड़ा संभलना होता है, बहुत सतर्कता और सजगता मांगता है. जरा चूके और देखो-क्या से क्या हो गया""""
शत प्रतिशत सहमत हूँ....आभार
"""मेरे बाहर निकलते ही साधना ने मुझसे हिन्दी में कहा कि इतने दिन से कह रही हूँ कि बाल रंगा करो और दाढी वगैरह बना कर बाहर निकला करो, ये देखो प्यारी ऐबी क्या कह रही है?""""
हा हा सही तो है ....आभार
kabhi bhopal aayen to seva ka moka de
हा हा हा !
बडा मजेदार वाकया सुनाया आपने ।
रिअली आपको बच्चे ने डैडी बोला था क्या :)
1.यह बच्चे में बसने वाला ईश्वर भी बड़ा मज़ाकिय है । जहाँ डैड कलवाना था वहाँ "साधना का डैड कहलवा दिया । ( भाभी जी से क्षमायाचना सहित ) सवाल यह मन मे आया कि वहाँ अंकल आंटी नही कहते तो वे बच्चे आपको क्या कहते हैं ?
2 कविता अच्छी है । शब्द इंसान ने ही गढ़े हैं और इंसान ही उनके साथ खिलवाड़ करता है ।
3 . दोहे में अगर बाबा की जगह डैडी कर दे तो भी मात्रायें तो उतनी ही रहेंगी ना ?
हा हा हा हा , मजेदार ...... भला मानिए डैड तक आकर शब्द रूक गए.....नहीं तो बच्चों को हमने भी देखा हैं.....रिश्तों को सूरत देखकर बनाते हुए..... एक बार बस में बैठे हम आ रहे थे या कहीं जा रहे थे, इसका मुझे अंदाजा नहीं... बगल में एक आधुनिक कन्या जो बैठी थी.... :) हम आये या जाएँ क्या फर्क पड़ता हैं.... :) अभी मन में गुदगुदी भी शुरू नहीं हुई थी कि एक बच्चों का झुण्ड बस में आ गया.... थे तो केवल दो लेकिन एक पूरी टोली से भी ज्यादा खतरनाक... आते ही एक शब्द मेरी तरफ दाग दिए.... क्या *अंकल* कहाँ जा रहे हो...??? मुझे तो कुछ नहीं हुआ लेकिन बगल में बैठी सुकन्या को गुदगुदी होने लगी.... आगे की घटना बताने लायक नहीं हैं.... आखिर सब बच्चे ही तो थे...
बच्ची द्वारा डैडी कहने पर आपका मुस्कुराना.... और 'भाभी जी के डैडी' कहे जाने पर चाकलेट का खिलाया जाना...
दोनों हालात एक से रहे होंगे ...
अमृतांजन वही था ... सिर्फ सर बदल गए होंगे :-))
हा हा हा हा ! समीर जी....आपके साथ हुए वाकये तो बस...एकदम यूनिक होते हैं ....पढ़ कर मज़ा आता है ...हंसी आती है और आपकी प्रस्तुति बहुत कुछ सिखा और समझा भी जाती है .....:)
सुनाते रहिये यूँ ही .....सीखते रहेंगे हम ....
उफ़..........
मेरे शब्द
शब्द नहीं
आदमी बन गए हैं
वाह शब्दों की ताकत तो सबसे बड़ी है ...:)
bahut hi kbhusrat, hasyapurna or shabdo ka sahi arth samjhne wali rachna
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