अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिका “हिन्दी चेतना” , हिन्दी प्रचारणी सभा कनाडा की त्रेमासिक पत्रिका है. साहित्य जगत में अग्रणी स्थान रखने वाली इस पत्रिका के संरक्षक एवं प्रमुख सम्पादक श्री श्याम त्रिपाठी, कनाडा एवं सम्पादक डॉ सुधा ओम ढींगरा, अमेरीका हैं. हाल ही में इसका जनवरी, २०१० अंक प्रकाशित हुआ जिसकी पी डी एफ कॉपी आप हिन्दी चेतना के ब्लॉग एवं विभोम एन्टरप्राइज की वेब साईट से डाउन लोड कर सकते हैं. इस अंक में मेरी व्यंग्य रचना ’बिजली रानी, बड़ी सयानी’ प्रकाशित हुई है. |
समाचार पढ़ा:
"मेसाचुसेट्स विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने प्रयोग कर दिखा दिया है कि अब बिजली के तार की जरूरत नहीं पडेगी। उन्होंने बिना तार के बिजली को एक स्थान से दूसरे स्थान पहूँचा कर दिखा दिया. वैज्ञानिकों ने बताया है कि यह रिजोनेंस नामक सिद्धांत के कारण हुआ है।"
यह खबर जहां एक तरफ खुशी देती है तो दूसरी तरफ न जाने कैसे कैसे प्रश्न खड़े कर देती है दिमाग में. अमरीका में तो चलो, मान लिया.
मगर भारत में?
एक मात्र आशा की किरण, वो भी जाती रहेगी. अरे, बिजली का तार दिखता है तो आशा बंधी रहती है कि आज नहीं तो कल, भले ही घंटे भर के लिए, बिजली आ ही जायेगी. आशा पर तो आसमान टिका है, वो आशा भी जाती रहेगी.
सड़कें विधवा की मांग की तरह कितनी सूनी दिखेंगी. न बिजली के उलझे तार होंगे और न ही उनमें फंसी पतंगे होंगी. जैसे ही नजर उठी और सीधे आसमान. कैसा लगेगा देखकर. आँखे चौंधिया जायेंगी. ऐसे सीधे आसमान देखने की कहाँ आदत रह गई है.
चिड़ियों को देखता हूँ तो परेशान हो उठता हूँ. संवेदनशील हूँ इसलिये आँखें नम हो जाती हैं. उनकी तो मानो एक मात्र बची कुर्सी भी जाती रही बिना गलती के. पुराने रेल वाले मंत्री की तो फिर भी अपनी गलती से गई, मगर ये पंछी तो बेचारे चुपचाप ही बैठे थे बिना किसी बड़ी महत्वाकांक्षा के. पेड़ तो इन निर्मोहि मानवों ने पहले ही नहीं छोड़े. बिजली के तार ही एकमात्र सहारा थे, लो अब वो भी विदा हो रहे हैं.
विचार करता हूँ कि जैसे ही ये बिना तार की बिजली भारत के शहर शहर पहुँचेगी तो उत्तर प्रदेश और बिहार भी एक न एक दिन जरुर पहुँचेगी. तब जो उत्तर प्रदेश का बिजली मंत्री इस कार्य को अंजाम देगा वो राजा राम मोहन राय सम्मान से नवाज़ा जायेगा.
राजा राम मोहन राय ने भारत से सति प्रथा खत्म करवाई थी और यह महाशय, उत्तर प्रदेश से कटिया प्रथा समाप्त करने के लिए याद रखे जायेंगे. जब तार ही नही रहेंगे तो कटिया काहे में फसांयेंगे लोग. वह दिन कटिया संस्कृति के स्वर्णिम युग का अंतिम दिन होगा और आने वाली पीढ़ी इस प्रथा के बारे में केवल इतिहास के पन्नों में पढ़ेगी जैसा यह पीढ़ी नेताओं की ईमानदारी के बारे में पढ़ रही है.
थोड़ा विश्व बैंक से लोन लेने में आराम हो जायेगा. अभी तो उनका ऑडीटर आता है तो झूठ नहीं बोल पाते, जब तक तार-वार नहीं बिछवा दें कि इस गाँव का विद्युतिकरण हो गया है. तब तो दिन में ऑडीटर को गाँव गाँव की हेलिकॉप्टर यात्रा करा कर बता दो कि १००% विद्युतिकरण हो गया है. तार तो रहेंगे ही नहीं तो देखना दिखाना क्या? शाम तक दिल्ली वापिस. पाँच सितारा होटल में पार्टी और लोन अप्रूव अगले प्रोजेक्ट के लिए भी.
एक आयाम बेरोजगारी का संकट भी है. अभी भी हालांकि अधिकतर बिजली की लाईनें शो पीस ही हैं, लेकिन टूट-टाट जायें, चोरी हो जायें तो कुछ काम विद्युत वितरण विभाग के मरम्मत कर्मचारियों के लिए निकल ही पड़ता है. एक अच्छा खासा भरा पूरा अमला है इसके लिए. उनका क्या होगा?
न तार होंगे, न टूटेंगे, न चोरी होगी. वो बेचारे तो बेकाम हो जायेंगे नाम से भी.
न मरम्मत कर्मचारियों की नौकरी बचेगी, न तार चोरों की रोजी और न उनको पकड़ने वाली पुलिस की रोटी. बड़ा विकट सीन हो जायेगा हाहाकारी का. कितनी खुदकुशियाँ होंगी, सोच कर काँप जाता हूँ. विदर्भ में हुई किसानों की खुदकुशी की घटना तो इस राष्ट्रव्यापी घटना के सामने अपना अस्तित्व ही खो देगी हालांकि अस्थित्व बचाकर भी क्या कर लिया. कौन पूछ रहा है. सरकार तो शायद अन्य झमेलों में उन्हें भूला ही बैठी है.
चलो चोर तो फिर भी गुंडई की सड़क से होते हुए डकैती का राज मार्ग ले कर विधान सभा या संसद में चले जायेंगे, जाते ही है, सिद्ध मार्ग है मगर ये बेकार बेकाम हुए मरम्मत कर्मचारी और पुलिस. इनका क्या होगा?
एक तार का जाना और इतनी समस्यायों से घिर जाना. कैसे पसंद करेगी मेरे देश की भोली और मासूम जनता!!
योजना अधिकारियों से करबद्ध निवेदन है कि जो भी तय करना, इन सब बातों पर चिन्तन कर लेना.
मेरा क्या, मैं तो बस सलाह ही दे सकता हूँ. भारतीय हूँ, निःशुल्क हर मामले में सलाह देना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है. और हाँ, मैं कवि भी तो हूँ, बहुत ज्यादा जिद करोगे तो कविता सुना सकता हूँ. नेता होता तो कुछ वादे भी कर देता:
सबको यह चौकाती बिजली
बिन तारों के आती बिजली.
चोर नापते सूनी सड़कें
उनकी रोजी खाती बिजली.
कभी सुधारा जो करते थे
उनको धता बताती बिजली.
कटियाबाजी वाले युग को
इतिहासों में लाती बिजली.
सोच सोच कर डर जाता हूँ
कैसे दिन दिखलाती बिजली.
-समीर लाल ’समीर’
76 टिप्पणियां:
हिन्दी चेतना कब बनेगी बिजली चेतना
हिन्दी भी बिजली की तरह ही है
इसमें एक इनवर्टर लगाना भी जरूरी है
जिससे सदा ही हिन्दी दिलों में महकती रहे।
बिना तार की बिजली इतनी समस्या को भी जन्म दे सकती है .. पहली बार समझ में आया .. भारत के संदर्भ में आपके सारे प्रश्न बिल्कुल सटीक हैं .. बहुत बढिया व्यंग्य .. बधाई !!
हा हा जबरदस्त हास्य व्यंग की रचना -बिना रीटेक ओके .
और हाँ कटिया समस्या तो सुलझ जायेगी मगर कटुआ ?
हा हा हा (होली है !)
भारत में बिजली के तारों पर तो कुछ लोगों के रोज़गार निर्भर करते है रात में कटाई कर के दिन में बेच देते है भला उनका क्या होगा अगर यह क्रांति भारत में गई तो सचमुच भूचाल आ जाएगा..तार और खंभों की राजनीति भी बंद हो जाएगी फिर तो...बहुत ही मजेदार ढंग से आपकी यह प्रस्तुति दिल को भा गई..
बहुत धन्यवाद समीर जी..
बिजली रानी का ग्राम्य तारतम्य में गहन चिंतन, मजा आ गया।
ये वैज्ञानिक भी न बस, सोचते नहीं हैं कि इन नये संकटों के लिये, तारों से जो खुशी है वह बेतारों से थोड़े ही है।
सही बात है अभी तो तार दिखती तो है कल तो न जाने कौन-कौन एरे गैरे रिज़ोनेंस को हाईजैक/किडनैप कर अपने यहां छुपा लेंगे...बाक़ि को तो पता तक नहीं चलेगा कि बिजली आखि़र अटकी कहां है :)
सुंदर रचना के लिए बधाई.
अगर ये प्रयोग सही है, और बिजली बिना तारों के दौड़ेगी - तो इससे काफी आशाएं जगती हैं. भारत सहित तमाम विकासशील और तीसरी दुनिया के देशों के लिए ये किसी दैवीय वरदान से कम नहीं होगा. जिस प्रकार से इन्टरनेट ने विकसित और विकाशशील देशों की बहुत सी विषमताओं को ख़त्म कर दिया उसी प्रकार से इस प्राकर की खोज पूरी व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन लाने की ताकत रखती हैं. वैसे ये सब किसी सपने से कम नहीं लगता है.
आज भी जब मैं अपने घर बनारस (उत्तर प्रदेश का एक शहर) में फ़ोन करता हूँ, तो मुझको बताया जाता है, की १० घंटे लाइट नहीं है - कब आती है, कब जाती है, ये भी पता नहीं चलता है. हमने तो लैम्प, कैंडल और पेट्रोमैक्स में पढने की आदत बना ली थी. उसी प्रकार से अब आजकल तो ये बिजली पानी चुनावी मुद्दा भी नहीं रहा. सब लोगों ने समझ ही लिया है, कि बिजली बस कुछ समय के लिए आयेगी. और अब इसके लिए कोई complain भी नहीं करता है.
सीधी सरल लेकिन मुश्किल कविता।
समीर जी आपका जवाब नही !!!!!!!!! इतना महीन कटाक्ष रच देते हैं की दिमाग की चिड़िया पूरा आकाश
नाप कर आ जाती है . ''हिंदी चेतना '' में छपने की हार्दिक बधाई .
सोच सोच कर डर जाता हूँ
कैसे दिन दिखलाती बिजली.
" बहुत सुन्दर कविता...सटीक व्यंग..."
regards
सारे ही ब्लागरों के तार काट दिए आपने। अरे कोई इतनी अच्छी पोस्ट भी लिखता है कहीं रोज-रोज? बस रोज पढ़ने की बेचैनी बनी रहती है। भाई आप तो कमाल ही करते हैं। बहुत ही अच्छा और सार्थक व्यंग्य। बधाई।
बिजली के तारों के बहाने हमारे देश का बढ़िया चित्रण !
आपका सिस्टम के प्रति यह व्यंग बहुत ज़बरदस्त व अच्छा लगा.... और बिजली के ऊपर कविता बहुत अच्छी लगी....
सादर
महफूज़....
आपका सिस्टम के प्रति यह व्यंग बहुत ज़बरदस्त व अच्छा लगा.... और बिजली के ऊपर कविता बहुत अच्छी लगी....
सादर
महफूज़....
हे भगवान,
अब तो हमे लगता है कि बिना बिजली के ही रहना पडेगा. कहां पर कटिया लगायेंगे.
कितने दुःख लाएगी बिजली
कटिया डाली आ गई बिजली
मीटर , बिल का लफडाइच नही
बाद में क्या दिन दिखलाये बिजली ?
एक सपना अब आँखों में पलता
मीटरलेस भी हो जाएगी बिजली?
बंद करके दिखाते ठेंगा सबको ,
तब होगा क्या नौनिहालों का ?
मेरे देश के नेताओं का ?
झुग्गियो कच्ची बस्तिया मेंकटिया के दम पे
कितने वोट दिलवाती थी बिजली
दादा बड़ी बुरी खबर दी तुमने
सौ सौ आंसू रुलाती सबको
बिना तार की छी गन्दी बिजली
आपने लिखा हम कल्पनाओं में संग हो लिये ! मजा आ रहा है बिन तारों की बिजली / कटिया और अन्य निहित संभावनाओं के साथ विचरने में !
bahut baDhiyaa likha hai jee
मेरा क्या, मैं तो बस सलाह ही दे सकता हूँ. भारतीय हूँ, निःशुल्क हर मामले में सलाह देना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है.
और मैं भी भारतीय ताऊ हूं..बिना तार की बिजली चोरी करके नही दिखादी तो मेरा नाम नही.:)
रामराम.
जालों में उलझते रहने के आदी हम ...
सटीक व्यंग्य ...!!
ये राजा राम मोहन राय सम्मान मिले न मिले पर इस अमेरिकी शैली में बिजली जरूर आ जायेगी कम से कम नेताओं और बिजली विभाग की जान में जान तो आयेगी. इस बेहतरीन व्यंग्य के लिए बधाई. अब बिजली तार पर नहीं समीर पर आयेगी!
समस्या तो सबसे बड़ी यह कि अब लोग टोका कहां लगायोगें। या इसमें भी जुगाड़ टेकनोलोजी काम करेगा।
हम भी बेतार-कंटिया मार के दिखाएंगे. सारे व्यंग्य-कविताएं धरी रह जाएगी. विज्ञान पर जुगाड़ भारी.
he prabhu ... MERI CHINTA BHI AAPNE KHOOB KARI... MAI BHI BIJLEE VIBHAAG ME HUN ...MERA KYA HOGA...??? HA HA HA
Bijli rani pe is tarah,itna kuchh k likha ja sakta hai...kabhi sapneme bhi nahi aaya tha!
पिताजी ने लिखा था "बिजली तू बड़भागिनी कौन तपस्या कीन", वही याद आ गया.
बहुत बढिया व्यंग्य!!पक्षीयो के बारे मे सोच हमारी भी आँखें नम हो गई हैं.....केबल के कारण अब तो ऐंटीना भी ना के बराबर रह गए हैं...बढिया पोस्ट!!
kya baat hai.....
bijali suraj se hi le lete to achchha tha ......
banaane ki mashakkat se to bachte
aapki kalpnashkti ki udan asim hai sir.padhkar bahut maja aaya :))))
बहुत ही सुन्दरता से व्यक्त बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
सशक्त व्यंग ...और कविता तो सोने पे सुहागा.है
बिना तारों कि बिजली वाह मजा आ गया पढके | भारत में अगर ऐसा होता है तो बहुत सी समस्याए उठ खडी होंगी |
badhaai/
ghar ghar ke yahi kahaani
bijali raani badi sayaani..
badhiya..rachna.
गाँवों में तो खैर कि दिक्कत नहीं है,पर शहरों में उलझे तारों के बीच से गलियों की सड़क और घरों तक तक भगवान् भास्कर भी नहीं पहुँच पाते...बेचारे उन्ही तारों में उलझे फंसे पड़े रह जाते हैं,पर देखिये आपकी दृष्टि "जहाँ न पहुंचे रवि,वहां पहुंचे कवि/लेखक" को चरितार्थ करते हुए वहां तक पहुँच गयी...
आपकी चिंता सोलहो आने वाजिब है...
कटियाबाजी वाले युग को
इतिहासों में लाती बिजली.
सोच सोच कर डर जाता हूँ
कैसे दिन दिखलाती बिजली...
पूरे आलेख के बहाने बिजली का सटीक और सुंदर चित्रण ,आनंद आ गया.
बिना तार की बिजली ? चिडियों के लिये तो मै भी परेसान हूँ, पेड तो बचे नही एक तारों का सहारा था वह भी जाता रहेगा । कटाई वालों की तो सचमुच ही कट जायेगी ।
बढिया व्यंग ।
Bahut sahi kataaksh kiya hai aapne hamare deshh ki sthiti par !!
Abhaar!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
हा हा हा , समीर जी। बिजली के तारों की तस्वीर देखकर याद आया , टोरोंटो में भी ऐसे ही तारों का जाल देखा था । बस फर्क यही था की वहां बड़े संभ्रांत और सुसभ्य तरीके से तार लटक रहे थे ।
बिजली पर बढ़िया व्यंग कसा है।
कंटिया महा ठगिनि मैं जानी।
कंटिया तो भौतिक चीज नहीं, यह तो अंतरमन की दशा है। यूपोरियन जितनी सरलता से गंगा में डुबकी लगा पवित्र हो जाता है, उतनी सरलता से कंटिया फंसा सकता है।
कंटिया दर्शन को तारों की दरकार नहीं। कंटियामार्गी निस्पृह भाव से कंटिया फंसाता है।
कबीर को पढ़ें, कंटिया स्वत: समझ आ जायेगा। मगहर का चक्कर लगा आयें एक! कनाडे में शायद उत्ता समझ न आये! :-)
fabulous satire and poem
बहुत ही सशक्त व्यंग...और कविता रचना को कुछ और उभारती हुई
अच्छा किया समय से सूचना दे दी आपने| अब बिना तार वाली बिजली के आने तक हम उसको चुराने का जुगाड़ विकसित कर लेंगे|चिड़ियों और कर्मचारिओं के पुनर्वास के सम्बन्ध में आपकी चिंता जायज है| आशा है विश्वबैंक हमें नई तकनीक अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेगा तो इनके पुनर्वास की भी व्यवस्था हो ही जायेगी|
एक बार एक बच्चा पैदा हुआ
पैदा होते ही उसने नर्स से पूछा- बिजली है?
उसने कहा... छः घंटे हो गये, अभी आई नहीं..!
बच्चे ने कहा- धुत्त साला, फिर से इंडिया में पैदा हो गया..
हम गरीबों के कलेजे पर क्यों बिजली गिरा रहे हैं भाई साहब? यहाँ बिना बिजली के खाली तार देख-देखकर जो कोफ़्त हुआ करती है उससे तो छुटकारा ही मिल जाएगा न!। जब बिजली आनी ही नहीं है तो तार रहे या न रहें, क्या फर्क पड़ता है? :)
हमेशा की तरह मजेदार और धारदार लेखन।
एक खबर से परेशान हो कर आपने इतना चितंन उडेल दिया कागजों पर
अरे आने तो दीजिये जरा इस तकनीक को यहाँ दिल्ली में
ताऊ रामपुरिया के सर की कसम
दो दिन में तोड़ ढुंढ कर करोलबाग में बिकवा देगें
वह समीर जी ! बिजली पर इस सुन्दर रेखाचित्र हेतु बधाई स्वीकारें !मै भी उत्तर प्रदेश से हूँ और बिजली की व्यवस्था से खूब परिचित हू! उत्तर प्रदेश की बिजली तो रात में सोने के बाद आती है और सुबह जागने के पहले चली जाती है अतः मै इसे "नगरवधू "कहता हूं !
वह समीर जी ! बिजली पर इस सुन्दर रेखाचित्र हेतु बधाई स्वीकारें !मै भी उत्तर प्रदेश से हूँ और बिजली की व्यवस्था से खूब परिचित हू! उत्तर प्रदेश की बिजली तो रात में सोने के बाद आती है और सुबह जागने के पहले चली जाती है अतः मै इसे "नगरवधू "कहता हूं !
हिन्दी चेतना पढ़ी नहीं, लेकिन सचमुच इस इ पत्रिका का कोई जवाब नहीं...............
सच्ची-सच्ची बातें अच्छे-अच्छी बातें बना के कह दीं आपने कोई भला बुरा मानकर भी कईसे मानवे करेगा हैं????
" हिन्दी चेतना" में आपकी रचना भी पढी सुधा धींगरा जी वाकई बधाई की सही
हक्कदार हैं ...और आज का आलेख और बिना तार की बिजली .वाह भाई वाह
अब हुई ना असली बिजली रानी !!
- लावण्या
शानदार व्यंग्य.महीन कटाक्ष. बधाई.
भाई, अगर कटिया की बात नहीं करते तो ये विचारपूर्ण लेख बेमतलब हो कर रह जाता...खासकर हम बिहारियों के लिए...
अब बिजली के तार की जरूरत नहीं पडेगी!
..यह खबर ही बिजली गिराने के लिए पर्याप्त है ..तिस पर चिड़ियों की कुर्सी के छिन जाने का आपका भय ! भई हम तो रोमांचित हो गए.
साधारण सी लगने वाली असाधारण कविता के लिए बधाई एवँ धन्यवाद.
it's a great post
---
EINDIAWEBGURU
समीर भाई ..... हिन्दी चेतना में भी पढ़ा आपका व्यंग .......... बहुत मजेदार और सटीक लिखा है .............
कहे ऐसे ऐसे खोज करते हैं लोग ;)
आविष्कार ऐसा है कि कटियाबाज़ लोगों के लिये बेतार कटिया तैयार करने का चैलेंज उठ खड़ा हुआ है
आपकी रचना से एक चेतना मिलती है। अच्छी रचना के लिए साधुवाद!
वाह क्या व्यंग है भारत मे तो सही बात है अगर ये आ गयी तो बहुत बडा संकट आ जायेगा। बहुत गहन चिन्ता का विषय है अच्छा किया आपने आगाह कर दिया हम नही लेंगे ये बिजली हा हा हा बडिया व्यंग आभार्
क्या बात है बड्डे! बहुत उम्दा कहा।
समस्या तो सबसे बड़ी यह कि अब लोग टोका कहां लगायोगें। या इसमें भी जुगाड़ टेकनोलोजी काम करेगा।
मजा आ गया।
wah sameer ji , ek nai soochna ke saath uske anjaam se bhi wakif kara diya, kuchh asha si bandhi hai , ghaziabad u.p. men jo rahta hun, dekhen kab kya hoga. aabhaar.
हम तो ठहरे बिहार के। और आपने बिल्कुल सही लिखा है कटिया (अंकुसी) सिस्टम के बारे में पर बिजली रानी दिखे तब न अंकुसी फंसाया जाये ! जब बिहार जाता हूँ तो यह शेर थोड़े परिवर्तन के सथ साकार हो जाता है --
शाम होते ही चराग़ों को बुझा देता हूं मैं
दिल ही काफ़ी है तिरी (बिजली रानी) याद मे जलने के लिए।
अच्छी खबर सुना दी आपने । कटिया कंपनी अभी से समस्या पर विचार करना शुरू कर देगी ताकि समय पर हल निकाला जा सके । क्या क्या दिन नहीं देखने पडेंगे इन अमेरिका वालों की वजह से ....
जबर्दस्त व्यंग और बढिया कविता ।
बड़ा सधा हुआ कटाक्ष है. मजा आया पढ़कर. आपको हिन्दी चेतना में प्रकाशित होने के लिए बधाई
सोचे अगर ऐसा हुआ तो करंट के झटके भी रिमोट से लगाने लगेगें...:)
बहुत खूब!!
कटियाबाजी वाले युग को
इतिहासों में लाती बिजली.
सोच सोच कर डर जाता हूँ
कैसे दिन दिखलाती बिजली...
बहुत बढिया व्यंग्य.सुंदर रचना के लिए बधाई!!
समीरलाल जी आदाब,
नस्र हो या नज़्म, आपका ये ’गंभीर’ चिंतन? दिल जीत लेता है.
वाक़ई, सबसे खराब स्थिति तो हम यूपी वालों की हो जायेगी. ’कटिया कनेक्शन’ तो यहां की आन, बान, शान है. आम लोगों से लेकर अधिकारियों तक के प्रति आपके दिल जो ’सहानुभूति’ है, उसके लिये सबकी तरफ़ से धन्यवाद
“हिन्दी चेतना”के बारे में जानकारी मिली.किताब डाउनलोड कर के देखते हैं.लेख छपने की बधाई.
व्यंग्य बहुत ही जबरदस्त है..'बिजली रानी'...और कविता भी खूब!
एक बात और भी भूल गए आप, पड़ोस का कल्लू धोबी जो बिजली के तार पर अपने तार का लंगर डाल के अपनी प्रैस चलाता है लोगों के कपड़े इस्त्री करने के लिए, उसका क्या होगा? वो कैसे फ्री फोकट में बिजली झटकेगा? बेचारे को कनेक्शन लेना पड़ेगा या फिर वापस कोयले की प्रैस पर जाना होगा! ;)
समीर जी,
बहुत बढिया लेख और कविता। बिजली के तारों पर इतनी गहराई से सोचने वाले शायद आप पहले व्यक्ति हैं, चिडि़या की कुर्सी छिनने की दुराशंका से तो मैं भी वय्थित हो गई..लेख के लिये बधाई।
क्या टिप्प्णी लिख्नने की सुविधा लेख के तुरंत बाद में नहीं हो सकती...७६ पोस्ट की सीढि़याँ उतर कर कहीं गंगा नहाना हो पाया...
एक उर्जा को किसी भी दूसरे प्रकार में बदला जा सकता हैं , यह भौतिकी का प्राथमिक सिद्धांत है . रेडियो संदेश इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स से ही भेजे जाते हैं , जिन्हें एम्प्लीफाई कर पुनः ध्वनि उर्जा में बदल कर हम रेडियो सुनते हैं , मतलब जो खोज बेतार द्वारा बिजली के संप्रेषण की हुई है वह पुरी तरह प्रासंगिक है .... इस खबर पर जिस सुंदर तरीके से आपने भारतीय परिप्रेक्ष्य के बिजली परिदृश्य को जोड़ा है वह यह कहने को मजबूर करता है कि .............क्या बात है !
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