पहले की तरह ही, पिछले दिनों विल्स कार्ड भाग १ , भाग २ , भाग ३ ,भाग ४ , भाग ५ और भाग ६ को सभी पाठकों का बहुत स्नेह मिला और बहुतों की फरमाईश पर यह श्रृंख्ला आगे बढ़ा रहा हूँ. (जिन्होंने पिछले भाग न पढ़े हों उनके लिए: याद है मुझे सालों पहले, जब मैं बम्बई में रहा करता था, तब मैं विल्स नेवीकट सिगरेट पीता था. जब पैकेट खत्म होता तो उसे करीने से खोलकर उसके भीतर के सफेद हिस्से पर कुछ लिखना मुझे बहुत भाता था. उन्हें मैं विल्स कार्ड कह कर पुकारता......) |
आज फिर छुआ कुछ और विल्स कार्डों को...जाने कब कब और क्या क्या दर्ज किया था. क्या सोच रहा था उस वक्त. अब तो चित्र भी नहीं खींच पाता.
लेकिन मेरे जीवन में भी तो जाने कितनी घटनायें ऐसी हैं जिनका चित्र अगर कोशिश भी करुँ तो नहीं बना सकता. सोचते ही असहज हो जता हूँ.
कुछ ऐसे वाकिये जिन पर अब तक सहज विश्वास नहीं होता, गुजर गये और मैं देखता रहा चुपचाप. क्या कहता? विरोध करता? करता तो अपनों को ही बदनाम करता और सुनता कि आपके वो...ऐसा कर गये...जुड़ता तो मुझसे ही आकर. मौन सिद्ध रहा. बदनामी बची. पहले मेरी और फिर उनकी.
उन्होंने भी पहचाना. बस, स्वीकारा नहीं. उससे मुझे कोई फरक नहीं पड़ता. मुझे इतना काफी है कि पहचाना. मगर मेरे काफी को दुनिया नहीं समझती. वो उसे समझती है जो दिखता है. मेरे बस में नहीं ऐसा कुछ दिखाना...
तुम्हारे बस में है. गुजारिश है कि गर अपमानित न महसूस करो तो दिखा देना कुछ ऐसा करके जो सिद्ध करे वरना मैं तो यूँ भी जी लूँगा...सच में..संतुष्ट..जानता हूँ कि तुम इस बात को पहचानते हो!! है न!!
कोई अपराध बोध तुम पालो-यह मेरे लिए बर्दाश्त नहीं. प्लीज, ऐसा मत करना!!
मुझे तकलीफ होगी. तुम कहोगे नहीं मगर इससे तुम्हें भी तकलीफ होगी..मैं जानता हूँ.. रिश्ते टूटते है तो बिखरे किरचें दिखते नहीं मगर होते हैं जो कांच से गहरे चुभते हैं.
काँच मे अच्छाई है, टूटता है तो आवाज करता है और टूटन सी उपजी किरचें हैं वो दिख जाती हैं तो निकाली जा सकती हैं और वक्त घाव भर देता है..
रिश्तों की टूटन तो आवाज भी नहीं करती और इसकी किरचें तो बस सालती हैं जीवन भर....कोई तरीका नहीं इन्हें निकालने का सिवाय झेल कर इनके साथ जीने की आदत बना लेने के.
नासूर लिए भी तो लोग जीवन जी ही लेते हैं..मैने क्या खास किया!!!
-१-
रिश्तों पर जमीं गर्द को
खुरच कर नहीं उधाड़ा करते..
खुरचने से जख्म छूट जाता है
और बस
एक आहत रिश्ता
सामने आ जाता है..
उन्हें आँसूओं की नमी से
भीगो कर
फुलाओ
और फिर
स्नेह रुपी मलमल से
साफ कर उबारो...
जो बिगड़ा था उसे भूल
सिर्फ भविष्य को सुधारो.
-२-
प्रेम
जैसे
पिंजड़े के भीतर कैद
पंछियों की आजादी..
कोई बेडियाँ नहीं...
बस, सामाजिक मर्यादाओं
के
दायरे हैं...
और उनके भीतर रहते
एक उन्मुक्त उड़ान का अहसास!!
-३-
सफेद गुलाब
मुझे लुभाते हैं..
और
लाल गुलाब
न जाने क्यूँ
विचलित कर जाते हैं...
देखी थी एक रोज मैने
लाल सूर्ख खून से लथपथ
उस बच्ची की लाश
टीवी पर..
जिसे बलात्कार कर
मार दिया गया....
-४-
आजाद सोच की
ये कैसी गिरफ्त है...
जो
आजाद ही नहीं होने देती ...
इतना आसान तो नहीं
इस जिन्दगी को
जी जाना!!
-५-
वो आया था
दिन भर की मशक्कत के बाद
पसीने में लथपथ
कुछ देर ठहरा
फिर चला गया!!
उसके पसीने की बू
अब भी ठहरी है
अपनी ललकार लिए!!
सफलता यूँ ही तो
हासिल नहीं होती!!
-६-
ओह!!
कितना विस्तार
है इस सागर का...
सौम्य और शान्त
जाने कितना गहरा होगा...
उतरूँ
तो जानूँ...
-समीर लाल ’समीर’
93 टिप्पणियां:
विल्स कार्डों पर दर्ज इबारते ....लाजवाब हैं...
बहुत खूब
सच बात कहता हूँ कि आप न जाने किस मिट्टी के बने हैं.
आपकी जगह कोई भी होता तो इस एक पोस्ट की ६ पोस्ट बनाता और वैसा ही आपके पहले के विल्स कार्ड के साथ होता. मेरा दावा है कि ऐसी हर पोस्ट हिट होती. न जाने क्यूँ आपको पोस्ट संख्या बढ़ाने का लोभ क्यूँ नहीं है.
एक बहुत ही भावुक कर देने वाली-विचार करने को रोकती प्रस्तुति. हमेशा की तरह उम्दा. विल्स कार्डों पर तो आपकी किताब निकल जानी चाहिये.
सोचियेगा.
रिश्तों की टूटन तो आवाज भी नहीं करती .....
सही कहा है ऐसे रिश्तों को जिन्दगी भर ढ़ोना कितना भारी होता है।
और विल्स कार्ड बहुत खूबसूरत ।
कमाल के हैं आपके विल्स कार्ड...तब आपके काम आए, अब आपके जरिए हमारे काम भी आ रहे हैं। आभार।
कमाल की रचनाएं .. सब एक से बढकर एक !!
ई तो एके ठो पौकिट का हुआ टोटल....माने कई गो बीडी बचिये गया होगा ...और आप अईसे तो हैं नहीं कि ..छुछे धुंआ उडाए होंगें ...वसूल लिए होंगे सब का सब ....विल्स कार्ड सुपर हिट था, है , और आगे तो इतिहास बनाएगा जी देखियेगा ..
बहुत सुंदर ..एक दम एलियोनिटिक टच लिए हुए ....
न जाने क्यूं ऐसा लगता है की आपके इस मनस्थिति से मेरा भी गहरा तादाम्य है
बस आप इतना खूबसूरत अभिव्यक्त कर लेते हैं और मैं आपकी ही अभिव्यक्ति में
खुद को ढूंढ लेता हूँ -
आभार !
अच्छा लिखा है !
ओह!!
कितना विस्तार
है इस सागर का...
सौम्य और शान्त
जाने कितना गहरा होगा...
उतरूँ
तो जानूँ...
गुरुदेव, समीर नाम के सागर में उतरने पर अपना भी यही हाल है...
जय हिंद...
समीर भाई , क्या बात है ...
" बिखरे मोती " का इंतज़ार है :)
और
अगली पुस्तक -
विल्स कार्ड पर इबारतें ही हो -
- बहुत खूब लिखा है
स स्नेह,
- लावण्या
विल्स कार्डों पर अंकित आपके शब्द-चित्र बहुत ही बढ़िया हैं और वीते क्षणों की स्मृतियों को पुनर्जीवित करते हैं।
बहुत असरदार है आपके विल्स कार्ड की बात।
रिश्तों के टूटने की चुभन भी बहुत चुभती हुई बन कर आई है।
बधाई।
कोई बेडियाँ नहीं...
बस, सामाजिक मर्यादाओं
के
दायरे हैं...
और उनके भीतर रहते
एक उन्मुक्त उड़ान का अहसास!!
ye kadi bhi har baar ki tarah bahut sunder hai.saumya shabdon mein gehre jazbaat liye huye.waah
achchey likhae ko padhnae kaa romanch
padhey likhae ko pataa hota haen
कमाल की रचनायें हैं शुभकामनायें
sameerji aapki kavitaayein mujhe mail kar dijiye jarur padhi jayengee aur meri khushkismati hogii is mail par subject me mera naam ya misty mehil likh kar sikkim@radiomisty.co.in agale ravivaar ko dilkash andaaj me prastut kar monday ko aap ko sunaa dunga
"सफेद गुलाब
मुझे लुभाते हैं..
और
लाल गुलाब....."
"आजाद सोच.....इतना आसान तो नहीं इस जिन्दगी को जी जाना!"
बेहतरीन..उम्दा..! आपके अनुभवों के मोती जुगुनू बन जीवित हो गए हैं और कहाँ-कहाँ सैर कर अपना अनूठापन झलका रहे हैं...बेहतरीन..!!!
aapki ye rachnaa bhi padhi laajwaab!!!
सुंदर बहुत सुंदर
नतमस्तक
उन्हें आँसूओं की नमी से
भीगो कर
फुलाओ
और फिर
स्नेह रुपी मलमल से
साफ कर उबारो...
जो बिगड़ा था उसे भूल
सिर्फ भविष्य को सुधारो.
क्या बात है, बहुत खूब, लाजबाब सन्देश !
सागर और लाल गुलाब दोनों कविताएं बहुत प्रभावी हैं । विशेष्कर लाल गुलाब कविता बहुत पसंद आई । आपके विल्स कार्ड तो सुपरहितअ साबित हो रहे हैं । अगले अंक का इंतजार है ।
रिश्तों पर जमीं गर्द को
खुरच कर नहीं उधाड़ा करते..
खुरचने से जख्म छूट जाता है
वाह
रिश्तों की टूटन तो आवाज भी नहीं करती और इसकी किरचें तो बस सालती हैं जीवन भर....कोई तरीका नहीं इन्हें निकालने का सिवाय झेल कर इनके साथ जीने की आदत बना लेने के. नासूर लिए भी तो लोग जीवन जी ही लेते हैं..
-
क्षणिकाएं सम्पूर्ण अनुभव का धीरे धीरे ब्यौरा दे रही है.
लोग पूछते हैं तुम क्या ढूंढते हो...मैं कहता हूं शब्दों में आग।
वो मुझे मिलती है ढूंढने से...बहुत शानदार लिखने के लिए बधाई स्वीकारें।
सफेद गुलाब
मुझे लुभाते हैं..
और
लाल गुलाब
न जाने क्यूँ
विचलित कर जाते हैं...
देखी थी एक रोज मैने
लाल सूर्ख खून से लथपथ
उस बच्ची की लाश
टीवी पर..
जिसे बलात्कार कर
मार दिया गया....
वो आया था
दिन भर की मशक्कत के बाद
पसीने में लथपथ
कुछ देर ठहरा
फिर चला गया!!
उसके पसीने की बू
अब भी ठहरी है
अपनी ललकार लिए!!
सफलता यूँ ही तो
हासिल नहीं होती!!
मैं जानता हूँ.. रिश्ते टूटते है तो बिखरे किरचें दिखते नहीं मगर होते हैं जो कांच से गहरे चुभते हैं.
......
तारीफ से ऊपर सबकुछ है
विल्स कार्डों पर दर्ज इबारते ....shandar hai,dharkane hai..., main mahsus bhi karsakta hun.
Will I Live Long Sir (W.I.L.L.S.) No - at the most 100 - 150, not more - - then pray dont let me be man - but human - manushya nahi manav, aadmi nahi insaan, pratharna hai.
अद्भुत रचनाएँ रच डाली हैं आपने हैं इन विल्स कार्ड पर...शब्द और भाव का इतना खूबसूरत संगम किया है आपने इन पर की सरकार की संवेधानिक चेतावनी" सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है" भूल सा गया है...ऐतिहासिक दस्तावेज हैं ये आपके...सदा यूँ ही जवान रहेंगे...वाह.
नीरज
behadb lajwab v umda rchna .
उसके पसीने की बू
अब भी ठहरी है
अपनी ललकार लिए!!
सफलता यूँ ही तो
हासिल नहीं होती!!
satya vachan
विल्स पीने वाळों की बात ही कुछ ओर है :)
रिश्तों पर जमीं गर्द को
खुरच कर नहीं उधाड़ा करते..
खुरचने से जख्म छूट जाता है
और बस
एक आहत रिश्ता
सामने आ जाता है..
उन्हें आँसूओं की नमी से
भीगो कर
फुलाओ
और फिर
स्नेह रुपी मलमल से
साफ कर उबारो...
जो बिगड़ा था उसे भूल
सिर्फ भविष्य को सुधारो.
गजब की अभिव्यक्ति है. बहुत मुश्किल है इतनी आसानी से अपने आपको अभिव्यक्त कर लेना. और यही कला आपको भीड से जुदा करती है. शुभकामनाएं.
रामराम.
आदरणीय समीरजी.....
बहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट...... कई पंक्तियों से मैंने खुद को भी जुड़ा हुआ पाया...... ऐसा लगा कि हाँ! मैं भी ऐसा ही सोचता हूँ.....
रिश्तों की टूटन तो आवाज भी नहीं करती और इसकी किरचें तो बस सालती हैं जीवन भर....कोई तरीका नहीं इन्हें निकालने का सिवाय झेल कर इनके साथ जीने की आदत बना लेने के.
यह पंक्तियाँ दिल को छू गयीं.....
सादर
महफूज़
आप तो गंभीर हो चले मगर पढ़कर संतोष हुआ।
ओह!!
कितना विस्तार
है इस सागर का...
सौम्य और शान्त
जाने कितना गहरा होगा...
उतरूँ
तो जानूँ.....
विल्स के काग़ज़ पर बहुत गहरी बातें लिख आते हो समीर भाई ....... जीवन के सत्य को ...... ज़िंदगी के फ़लसफ़े को सीधे उतार आर रख देते हो ......... दिल में सीधे उतार जाती हैं ये रचनाएँ .........
आपके विल्स कार्ड मुझे बहुत पसंद हैं... सारे पद्द सुन्दर हैं... बहुत सारे सीख देती और अच्छे अर्थों से भरे हुए...
रिश्तों पर जमीं गर्द को
खुरच कर नहीं उधाड़ा करते..
खुरचने से जख्म छूट जाता है ....
सुभानअल्लाह....
प्रेम
जैसे
पिंजड़े के भीतर कैद
पंछियों की आजादी.. कोई बेडियाँ नहीं... बस, सामाजिक मर्यादाओं
के
दायरे हैं...
और उनके भीतर रहते
एक उन्मुक्त उड़ान का अहसास!!
sundar...
सफेद गुलाब
मुझे लुभाते हैं..
और
लाल गुलाब
न जाने क्यूँ
विचलित कर जाते हैं...
देखी थी एक रोज मैने
लाल सूर्ख खून से लथपथ
उस बच्ची की लाश
टीवी पर..
जिसे बलात्कार कर
मार दिया गया....
लाल गुलाब पर मेरा नजरिया भी बदल रहा है...
Hi, If possible please post the "SCANNED" copy of your WILLS CARDS. Please................
बस, सामाजिक मर्यादाओं
के
दायरे हैं...
और उनके भीतर रहते
एक उन्मुक्त उड़ान का अहसास!!
एहसासो को कसक तो उसी दायरे की है
और फिर
सागर की गहराई तो उतरने से ही पता चलेगी
यह विल्स कार्ड संभाल के रखने लायक है समीर जी एक से बढ़ कर एक खूबसूरती से लफ़्ज़ों में ढले हुए ..बेहतरीन शुक्रिया
दिल शाम से डूबा जाता है
रात आएगी तो क्या होगा:(
"रिश्तों की टूटन तो आवाज भी नहीं करती"
मन कैसा-कैसा तो हो गया, समीर जी!!!!
धूम्रपान के कुछ तो फायद है :)
आज बहुत सीरियस बातें कर गए समीर जी।
सभी क्षणिकाएं कमाल की हैं।
बहुत सुंदर रचना जी.
धन्यवाद
जो बिगड़ा था उसे भूल
सिर्फ भविष्य को सुधारो.
बहुत ही खूबसूरत रचनाएँ...
समीर जी,
विल्स नेवी कट इतनी गहराई लिये है अपने अन्दर-----ये बात मुझे पहले मालूम होती तो मैं क्यों कभी कभी चान्सलर के साथ वक्त बर्बाद करता।
बहुत अच्छी लगीं आपकी सभी कवितायें।
हार्दिक बधाई।
हेमन्त कुमार
behatareen abhivyakti hain sabhi bahut umda. wills card adbhut hain.
कितने ही कार्ड खोल लिये आज ..कितने ही सागर उतर गये आज .. अब आप सागर में उतरे या सागर आप में ..अद्भुत है यह ।
सच में आप लाजवाब हो जी... एक पहाड़ सरीखे।
भाई जी हमें अब पूरी तरह से विश्वास हो चला है कि विल्स कार्ड आपके कोलेज टाईम की उपज हों या न हों पर आपके कवि दिमाग की उपज अवश्य हैं.....
कोई समझे या नहीं आप तो कह ही रहे हैं "मैंने क्या खास किया?"
लाजवाब खुब-हमने पहले साबुन के रैपर पे लिखते सुना था। आपका विल्सकार्ड लाजवाब है।
रिश्तों की टूटन तो आवाज भी नहीं करती ...और इसकी किरचें तो बस सालती हैं जीवन भर....
बहुत असरदार अभिव्यक्ति
क्या बात है, बहुत खूब
आभार।
रिश्तों की टूटन तो आवाज भी नहीं करती ... और इसकी किरचें तो बस सालती हैं जीवन भर...
बहुत असरदार अभिव्यक्ति
क्या बात है ...बहुत खूब
आभार ।
प्रेम
जैसे
पिंजड़े के भीतर कैद
पंछियों की आजादी..
कोई बेडियाँ नहीं...
Kaash zindagi itni hi aasaaan ho jaati !!
Devi nangrani
हाऽऽऽऽऽऽऽय समीर!!! क्या हुआ है जी? सब ठीक है न??? :-)
सभी सही कह रहे हैं। विल्स्कार्ड पर लिखी इबारतें - यही होना चाहिये अगली किताब का उन्वान आपके ।
कोई अपराध बोध तुम पालो-यह मेरे लिए बर्दाश्त नहीं. प्लीज, ऐसा मत करना!! कितनी महान सोच है! सच में! आध्यात्म के एवरेस्ट पर बैठा हुआ कोई व्यक्ति जैसे लिख रहा हो यह! शानदार!
लाल सुर्ख . . . टी वी पर देखी लाश... वाली नहीं जमीं।
ए टेम्पलेट वो टेम्पलेट वाले जमाने में आप के ब्लॉग का सरल सा कलेवर और यह लोकप्रियता ! उफ ...
जनता पैकिंग नहीं माल देखती है।
पैकिंग से याद आया, विल्स कार्ड भी तो पैकिंग के ही हिस्से हैं। पैकिंग खोल कर उन पर कविता रचना ! - कितने संकेत और प्रतीक छिपे हैं।
वैसे विल्स वालों से इस श्रृंखला को प्रायोजित कराने पर विचार करिए। उनका मुफ्त में प्रचार हो रहा है।
..किसी दिलजले ने एकबार इन कार्डों का फोटो लगाने की चुनौती दी थी। शायद आप को याद हो। ..मुझे तो ये कार्ड प्रतीक भर लगते हैं - जिन्दगी के उस समय के दोस्त जब सुख हो या दु:ख, धुएँ में उड़ा देना, हवा में छल्ले उछाल देना ही बस 'बस्स' हो जाता है।
"रिश्तों पर जमीं गर्द को
खुरच कर नहीं उधाड़ा करते..
खुरचने से जख्म छूट जाता है ...."
बहुत सही कहा है आपने !
चलो गिरिजेश भाई
अगली पोस्ट में सबूत ही दे देते हैं.. :)
नासूर लिए भी तो लोग जीवन जी ही लेते हैं..मैने क्या खास किया!!
गर अपमानित न महसूस करो तो दिखा देना कुछ ऐसा करके जो सिद्ध करे
बी एस पाबला
प्रेम जैसे पिंजड़े के भीतर कैद
पंछियों की आजादी..
कोई बेडियाँ नहीं...
बस, सामाजिक मर्यादाओं
के दायरे हैं...
और उनके भीतर रहते
एक उन्मुक्त उड़ान का अहसास!!
सामाजिक दायरे में पलती यह
प्रेमबयानी भी खूब है ..!!
उड़नतश्तरी जी, आपकी कविताओं पर टिप्पण देने से पहले सोच रहा था कि दूं या न दूं, ६३ टिप्पणों के बोझ से मेरी नाजुक और नरम टिप्पणी दब कर दम न तोड़ दे.. पता नहीं आप पढें भी या नहीं??
समीर जी ! आप तो बहुत ही गहरे चले गए...आप की इन पंक्तिओं को पढ़ का काफी कुछ याद आया...आया आंधी की तरह और निकल गया तूफ़ान की तरह...एक गीत आया करता था न...तस्वीर बनता हूँ ; तस्वीर नहीं बनती...आपने उस गीत को भी फिर से ताज़ा कर दिया...पर वैसे तस्वीर को बनाते भी वही हैं जिन्हेई लगता है कि... तस्वीर नहीं बनती...एक उपदेश भी याद आया..सोच कर कोई तुआलक तोडना...टूट कर पत्ते हरे होते नहीं...पर अब कौन समझाए.....कि कभी कभी तोड़ने के बिना ही बहुत कुछ टूट जाता है...जिसकी आवाज़ भी नहीं होती....समीर जी अपनी इस गहरायी को बनाये रखना..अच्छी रचना के लिए मुबारक...
ओह!!
कितना विस्तार
है इस सागर का...
सौम्य और शान्त
जाने कितना गहरा होगा...
उतरूँ
तो जानूँ...
सबसे बेहतर लगी ...सिर्फ उतर कर ही नहीं डूब कर भी देखिये .....!!
Bahut samaya bad kuch padha...jo padha usmen itni gaharai thi ki mantr mugdh si ho gayi...or kuch kahne ko shabd nahi han...aabhar
ओह!!
कितना विस्तार
है इस सागर का...
सौम्य और शान्त
जाने कितना गहरा होगा...
उतरूँ
तो जानूँ...
सबसे बेहतर लगी ...सिर्फ उतर कर ही नहीं डूब कर भी देखिये .....!!
ओह!!
कितना विस्तार
है इस सागर का...
सौम्य और शान्त
जाने कितना गहरा होगा...
उतरूँ
तो जानूँ...
सबसे बेहतर लगी ...सिर्फ उतर कर ही नहीं डूब कर भी देखिये .....!!
ओह!!
कितना विस्तार
है इस सागर का...
सौम्य और शान्त
जाने कितना गहरा होगा...
उतरूँ
तो जानूँ...
सबसे बेहतर लगी ...सिर्फ उतर कर ही नहीं डूब कर भी देखिये .....!!
क्या पालें - अपराध बोध?
हम तो ईर्ष्याबोध ही पालते हैं आपकी सेंसिबिलिटी देख कर!
सफेद गुलाब
मुझे लुभाते हैं..
और
लाल गुलाब
न जाने क्यूँ
विचलित कर जाते हैं...
very nice sir..
बहुत कमाल का लिखा आपने. ये विल्स कार्ड तो वाकई इतिहास रचेंगे.
लाजवाब। सभी एक से एक। बहुत भावपूर्ण।
विल्स कार्ड और वा दौर आपके जीवन का एक का एक अहम हिस्सा है कितने अनोखे और सुंदर भाव आपने संजोए है उस विल्स कार्ड पर ...एह भाग भी बढ़िया गया..उम्मीद करता हूँ आगे और सुंदर सुंदर भावनाएँ दिखेगी आपकी रचनाओं में जो कभी आपने इस विल्स कार्ड पर उकेरा था..बहुत बहुत धन्यवाद
विनोद कुमार पांडेय ने आपकी पोस्ट " मैने क्या खास किया!!!-विल्स कार्ड भाग ७ " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
विल्स कार्ड और वा दौर आपके जीवन का एक का एक अहम हिस्सा है कितने अनोखे और सुंदर भाव आपने संजोए है उस विल्स कार्ड पर ...एह भाग भी बढ़िया गया..उम्मीद करता हूँ आगे और सुंदर सुंदर भावनाएँ दिखेगी आपकी रचनाओं में जो कभी आपने इस विल्स कार्ड पर उकेरा था..बहुत बहुत धन्यवाद
उतरूँ
तो जानूँ...
मैं फिर वही कहूँगा कि कितनी सहजता से कह जाते हैं ।
आप हर पैकेट के कार्ड पर लिखते थे । महीने भर में तो एक संग्रह भर की सामग्री हो जाती होगी ।
बहुत सुंदर, भावपूर्ण और दिल की गहराई से लिखा है आपने! बधाई!
समीर जी, बेहतरीन अभिव्यक्ति.... विल्स का आभार.... और हां खेद है कि पाडकास्ट करना मुझे आता नहीं.. आसान विधि समझाइयेगा..
Inme doobne ke baad to bas NIHSHABDTA ki sthiti me hun kya kahun....
सही में रिश्तों के किरचें सही में ऐसी चुभती की फिर नहीं निकलती !!! कुछ ऐसे बोल जो घाव कर जाते हैं !!!
लागुलाब से विचलित होता मन और पसीने की बदबू लेते सिख, गहरे समुद्र मंथन की लालसा काबिले तारीफ़ है !!!
यादो को आपने खूबसूरती से सहेजा है ... बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति इन विल्स कार्डों में . ...
wah sameer bhai bahut khub likha hae. bahut bahut badae.
ये विल्स कार्ड हैं या भोज पत्र. क्या कुछ छिपा है इनमें.
बिखरे मोती की समीक्षा प्रकाश बादल के ब्लॉग पर पढ़ी ! आपके ब्लॉग पर अक्सर आता रहता हूँ आपके शब्द प्रभावित तो करते ही है साथ ही मैं कुछ न कुछ सीखता भी हूँ ! पत्ता नोट कर लिया है जल्दी ही पुस्तक मंगवा लूँगा ! बाकि बेज का कोड आपके ब्लॉग से ले लिया है !
बहुत सुंदर लालाजी,
ब्लाग पर कितने ही दिन बाद वापस आओ....आपको पढ़ने की इक्छा हमेशा रहती है...पढकर कुछ लिखने का आगाज़ भी होता है
बधाई !!
रीतेश गुप्ता
आपके विल्स कार्ड जबरदस्त होते हैं. श्रृंखला २० तक पहुँचाईये, तो किताब निकलवाऊँ.
दिल को छू गये.
Remarkable. Keep it up, sir.
वाह, बहुत खूब !
आपके विल्स कार्ड इतने दिनों पहले लिखे गये, अब इतने सालों के आद में भी आप वैसे के वैसे ही रही. कुछ भी सुधरे नहीं.
आप तो बस गाते रहिये--
सब कुछ सीखा हमने, ना सीखी होशियारी,
सच है दुनिया वालों के हम हैं अनाडी....
--एक और अनाडी
aapki ye series hamesha prabhavit karti hai..mind observation karne daud jata hai... aur us waqt aap kya sonchte honge, wo sonchne lagta hai..
saari ki saari bas 'ufff' nikalne wali..
Gulzaaar ki ek nazm yaad aa gayi-
याद है एक दिन
मेरी मेज पर बैठे बैठे
सिगरेट की डिबिया पर तुमने
छोटे से पौधे का
एक स्केच बनाया था
आकर देखो
उस पौधे पर अब फूल खिल आए हैं।
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