आज कुछ भी भूमिका बाँधने की न तो इच्छा है और न ही जरुरत!!
सीधे पढ़िये मनोभाव, बड़े अजीब से हैं:
माँ
नही रही...
और
पिता जी..
उन्होंने कत्ल कर दिया..
अपने जीने की
चाहत का...
बतौर सजा,
कर लिया
कैद
खुद को
खुद के भीतर...
एक अँधेरी काल कोठरी में..
और
पाल ली एक नफरत
जिन्दगी से...
बना ली
एक दूरी
हर शख्स से...
किन्तु
मैं..?
मैं तो
जिन्दा हूँ अभी....
और
वो
होते हुए..
नहीं रहे!!
-मैं अनाथ हुआ!!
-समीर लाल ’समीर’
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दूसरों की गलतियों से सीखें। आप इतने दिन नहीं जी सकते कि आप खुद इतनी गलतियां कर सके।
-अमिताभ बच्चन के ब्लॉग से
और क्या इस से ज्यादा कोई नर्मी बरतूं
दिल के जख्मों को छुआ है तेरे गालों की तरह
-जाँ निसार अख्तर
अधूरे सच का बरगद हूँ, किसी को ज्ञान क्या दूँगा
मगर मुद्दत से इक गौतम मेरे साये में बैठा है
-शायर अज्ञात
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- कुछ निवेदन और पहेली का जबाब एवं विजेता
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कड़ियां
बिखरे मोती: एक नजर
मेरे सिराहने उड़न तश्तरी : अर्श
शिमला पहुँची उड़न तश्तरी : प्रकाश बादल
उड़न तश्तरी का दूसरा रुप : गुरुदेव पंकज सुबीर
चिट्ठाकार समीर लाल, जैसा मैने देखा :अरविन्द मिश्रा
चिट्ठाकार समीर लाल, जैसा मैने देखा २: : अरविन्द मिश्रा
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वक्त की पाठशाला में एक साधक: : देवी नागरानी
टूट गयी है माला मोती बिखर गये: : निठ्ठला चिंतन
"देख लूँ तो चलूँ"- एक नजर
देख लूं ....उड़नतश्तरी द्वारा सस्नेह: : मेरे गीत पर सतीश सक्सेना
कथा,काव्य,यात्रावृत्त और दर्शन का अद्भुत संगम----‘देख लूं तो चलूं’: : क्रिएटिव कोना पर हेमन्त कुमार
उपन्यासकार समीर लाल 'समीर' को पढ़ने के बाद : सतीश चन्द्र सत्यार्थी
देख लूँ तो चलूँ – लम्हों की दास्तान : स्म्वेदना के स्वर
जिंदगी को जीता , सफ़र का एक खूबसूरत टुकडा : अजय कुमार झा
बहता समीर : प्रवीण पाण्डेय
समीर लाल का जीवन भी किसी उपन्यास से कम नहीं: विवेक रंजन श्रीवास्तव
जिंदगी की डगर पर एक सफ़र, समीर लाल जी के साथ : डॉ टी एस दराल
एक प्रवाह है समीर लाल "समीर" के लेखन में जो आपको दूर तक बहा ले जाता है : रवीन्द्र प्रभात
"देख लूँ तो चलूँ"-समीर लाल "समीर" : डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
समीर-सागर के मोती.. : खुशदीप
समीर जी की किताब- इतना पहले कभी नहीं हंसा.. : खुशदीप
विमोचित पुस्तक ' देख लूँ तो चलूँ ' महज यात्रा वृत्तांत न होकर उड़न तश्तरी समीर लाल समीर के अन्दर की उथल-पुथल, समाज के प्रति एक साहित्यकार के उत्तरदायित्व का सबूत है : विजय तिवारी ' किसलय'
ऐसी कौन सी जगह है जहाँ समीर का अबाध प्रवाह नहीं है : आचार्य डॉ हरि शंकर दुबे
मुझे समीर लाल एक शैलीकार लगते हैं : श्री ज्ञानरंजन जी
ज्ञानरंजन जी करेंगे समीर लाल की कृति ’ देख लूं तो चलूँ’ का अंतरिम विमोचन: गिरीष बिल्लोरे”मुकुल”
देख लूं तो चलूं का विमोचन समारोह: नुक्कड़
देह नाचती रहे - आँखे देखती रहें : ललित शर्मा
अपील
शुभकामनाऐं.
समीर लाल
----------
72 टिप्पणियां:
वाह!!! भावनाओं का कितना सजीव चित्रण किया है आप ने... और कितनी संजीदगी है इन लाइनों में.. सचमुच मजा आ गया...समीर लाल जी उर्फ़ उड़न तस्तरी जी.
एक शिकायत है...पहले तो आप रुक-रुक कर 'मेरी पत्रिका ' पर उतर भी जाते थे पर अब तो आप की उड़न तस्तरी कभी उड़कर इधर नहीं आती.
आयु बढ़ने के साथ ही वृद्ध जन कुछ अलग से होते जाते हैं. ऐसा मैंने भी अनुभव किया है. साथी की मृत्यु ही नहीं बहुतेरे कारण होते हैं.
बहुत तेजी से बदलती दुनिया और सोच के साथ ताल मेल न बिठा पाने के कारण वृद्ध आज परिवार के साथ रहते हुए भी अकेले हैं. आवश्यकता है उन्हें समझने और उनके साथ थोड़ा समय बिताने की.
आप की भावुक कविता से जुदा यह मुद्दा ध्यान में आया. सोचा पोस्ट कर दूँ ताकि और लोग पढ़ें और समझें.
धन्यवाद्
अब रवि जी आप भी कमाल करते हैं . कितना उडें . अब तश्तरी ही हैं .कोई जम्बो जेट नहीं .न पवन पुत्र . थोडा यार सुस्ताने भी दो . उड़ने की भी लिमिट है .
आयेंगे बयार से झोंका बन मिले गें .
समीर जी हम तो कहते हैं थोडा सुस्ती लो कुछ दिन .
ओह ! पर यह आपके साथ ही नहीं है -धैर्य रखें ! आपके समान दुःख वाले भी हैं ! जीवन इसी का नाम है ! जो लेता ज्यादा है देता काफी कम !
वाह !! समीर जी, मज़ा आ गया! बहुत अच्छा लिखा है....भावनाऒ को इससे अच्छा कागज़ पर नही उतारा जा सकता है...
भाव तो खूब हैं उनके लिये क्या कहूँ, लेकिन ये एक रि-साईकल प्रोसेस है यही सोचकर मन को दिलासा देना पड़ता है सभी को। डाक का इंतजार कर रहा हूँ।
बहुत सुंदर रचना है। स्पष्ट यथार्थ है। आप की श्रेष्ठ काव्य रचनाओं में से एक।
जीवन की गाड़ी समय आने पर सबकी रुक ही जाती है। इसमें हमारा कोई वश नहीं चलता।
मर्मस्पर्शी!
मैं
जिन्दा हूँ अभी....
और
वो
होते हुए..
नहीं रहे!!
-मैं अनाथ हुआ!!
एक यथार्थ अभिव्यक्ति. शुभकामनाएं.
रामराम.
इसे पढ कर जो कुछ मेरे मन में आया वो----
जिंदा हूँ अभी----
मेरे बच्चों के पिता नहीं रहे
पर मैं अपना गला घोंट न पाई
मैने कत्ल कर दिया
अपनी तमाम हसरतों का
और बतौर फ़र्ज
उठा लिया खुद को भी अपनी गोदी में
अब भी पकडी हूँ हाथ अपने बच्चों के
इसी डर से कि वे भटक न जाएं कहीं
चलती रही हूँ,चल रही हूँ और चलना है मुझे
जब तक कि मंज़िल न पा जाउं कहीं
खुदा से भी कर न पाई कभी शिकायत
कि जिन्दा हूँ अभी !!!
अद्भुत !!
वाह !! समीर जी, मज़ा आ गया!
थोड़े को घणा समझे. अगले के दर्द पर मजा आता है!!!? ऐसा कवितापन शायद ही समझ में आए अपने को.
भावनाओं को बहुत ही सजीव रूप दिया है आपने ।
बहुत सुन्दर चित्रण..
अब तक पढ़ी उम्दा रचनाओं में शुमार करता हूं इसे।
वाह!!! बेहतरीन अभिव्यक्ति...
मर्म का अखिती पड़ाव है यह...
बहुत ही भावुक...
मीत
aap ki yahi adaa hai, jo aap ka mureed banaati hai..!JAB HANSATE HAI TO HANS NAHI RUKTI AUR JAB BHAVUK KARATE HAI HAI TAB SANVEDANAEN..!
जीवन एक यथार्थ को उकेरती शब्द रचना ....
जाने क्यों किशोर कुमार याद आये .जब उन्होंने अपनी छवि के विपरीत एक सीरियस मूवी 'दूर गगन की छाँव में "बनायीं ...लोगो को हज़म नहीं हुई .....यहाँ भी हैरानी है की इस दुःख भरी कविता पे लोगो को मजा कैसे आ सकता है ?क्या आपकी छवि आडे आती है आपकी रचनाओ में समीर जी ?
समीर भाई.................आज बहुत ही उदास दिख रहे हो भैया.............कितना सजीव लिखा है ........और कितनी भावनाएं हैं इस कविता में...........ये कोई कविता नहीं...एक दस्तावे है जीवन की सत्य का.....अक्सर ऐसा होता है......जीवन संगिनी नहीं होने पर.........चुप सा हो जाता है पुरुष.......अपने आप में खो जाता है ......सही उतारा है शब्दों के केनवास पर जीवन का यथार्थ
पीडा ही तो सृजन की बुनियाद है आह ! से उपजी इस कविता को प्रणाम
ओह! नैराश्य भी कितना रचनात्मक हो सकता है - यह कविता का सृजन प्रमाण है।
मैंने अभी अभी ब्लोगिंग करना शुरु किया है . मै हिंदी का vidyarthi भी नहीं , पर हिंदी साहित्य पड़ने का शौख भी है , मै एक photographer हु आप की उड़न तस्तरी में अनाथ हुआ में, जाने क्या सोचता रहता हु ......
की फोटो व आलेख देख कर, किसी के उदासी का रहस्य भी जानना भी मुस्किल हो गया है
aapke mnobhav ajeeb se nhi hai par saty ke njdeek hai .bdlti pristhiya
bdlta privesh ham sab mhsus kar rhe hai aur ham bhi usi ka hissa ban rhe hai .
पिछले कुछ पोस्टों से भावनाएं और यथार्थ थोक के भाव उड़ेली जा रही हैं !
दिल के बहुत करीब लगी आप की यह कविता, जेसे मेरे लिये ही लिखी गई हो.
धन्यवाद
bhut hi achchhi rachna
aap itni badi badi batain itni sahajita se kah dete hai ki andar tak hil jate hai
bhut hi pyari rachna
man bhing gaya, dil jaise deh se nikalne kee koshish kar raha hai.
:-(( अब क्या करेँ ?
जीवन का ये भी कटु सत्य है -
भावाभिव्यक्ति यथार्त से भरी रही नीर भरी बदली सी ही !
- लावण्या
bahut achchhi rachna hai
bhavnaon ka sajeev chitran kiya hai sameer ji, aaj ka yatharth hai. bahut sundar abhivyakti.
क्या टिपण्णी करूँ........
अद्भुद !!!
एक यथार्थ परक सुंदर रचना .
bahut khoob Samir ji!
एक बात तो माननी पडेगी कि आपके पास संवेदनाएं और लफ्ज दोनों का ही खजाना है।
behtareen lagi aapki ye rachna
बहुत ही भावुक कर देने वाली प्रस्तुति . इस रचना पर क्या टीप दूं शब्द खोजे नहीं मिल रहे है .
फिर से नतमस्तक!
main to dar gya tha, anath hone ke dar se. sukr hai sab thik hai. narayan narayan
sach itna kadva kyon hota hai. aapke har shabd ko ghat-te dekh rahi hoon.
Samir ji ye kavita to dil ko bahut gahre tak chhu gayi...
Life must go On .....
सुन्दर कविता .....
AAPKEE KAVITA "MAIN ANAATH HUA"
TEEN BAAR PADH GAYAA HOON MAIN.
TEENON BAAR HEE EK NAYE DARD KAA
AABHAAS HUA HAI.CHAND PANKTIYON
MEIN HEE AAPNE MAHAKAVYA RACH DIYA
HAI JIS TARAH USTAD SHAYAR NAWAAB
MIRZA KHAN"DAAG" NE APNE IS SHER
MEIN MAHAKAVYA RACHAA THAA---
FALAK DETA HAI JINKO AESH
UNKO GAM BHEE HOTE HAIN
JAHAN BAJTE HAIN NAQQAARE
WAHAN MAATAM BHEE HOTE HAIN
AAPKEE IS POOREE KAVITA MEIN
KASHISH HAI,MITHAAS HAI ,ENGLISH
POET SHALLEY KEE IS PANKTI KEE
BHANTI---"OUR SWEETEST SONGS ARE
THOSE THAT TELL OF SADDEST THOUGHTS"
क्या कहूँ ......
......................मर्मस्पर्शी.
कविता के लिए कुशल शिल्पी बनना होता है जिससे शब्दों को तराश कर, उन्हें मूर्तरूप दे सकें, उनकी जड़ता में अर्थपूर्ण प्राणों का संचार कर सकें और पंक्तियों में अपने भावों, उदगारों, अनुभूतियों के उमड़ते हुए सैलाब को बूँद में सागर के समान समेट कर भर सकें।
यह अद्भुत गुण आपकी कविता में स्पष्ट लक्षित हैं। भावनाओं का सजीव चित्रण!
बधाई।
बहुत भावुक और संवेदनाओं से परिपू्र्ण अभिव्यक्ति. मन भारी हो गया.
zindgi se badi sazaa hi nahin,
zurm kya hai...pataa hi nahin
atne hisson me bat gaya hoon main
mere hisse me kuchh bacha hi nahin
NOOR SAHEB KA YAH SHE'R main aaj aapke naam karta hoon sameerji, this is really really great!!!
aapne kavya aur kavyakar ka bhed mita diya hai....kavita ko moortiman khada kar diya hai...MERI BADHAI SWEEKAR KAREN
बहुत ही सार्थक और यथार्थ चित्रण किया है ।
एकाकी संवेदनाओं को इतनी शिद्द्त से महसूस करना, शायद इसीलिए पुत्र को आत्मज कहा गया है।
जबर कविता, जबरियन कविता।
लगता है आज आपखुद तो उदास हैण ही हमे भी रुलाने का इरादा है मार्मिक रचना है आभार और शुभकामनायें
समीर जी,
आप केई इस कविता के लिये कोई शब्द नही है, स्पंदन महसूस किया जा सकता है, कविता नही बल्कि यथार्थ को बयां किया है।
हम अपने आस-पास देख सकते हैं कि किसी एक जाने के बाद दूसरा अपनेआप को मार लेता है, और उदासियों को गले लगा लेता है।
मार्मिक चित्रण, सुश्री निर्मला कपिला जी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ, कविता जैसे जैसे दिमाग से दिल में उतरती है, आँखें छलछला उठती हैं।
सादर,
मुकेशन कुमार तिवारी
फलक देता है जिनको ऐश
उनको ग़म भी होते हैं
जहाँ बजते हैं नक्कारे
वहां मातम भी होते हैं
प्राण साहेब ने इस शेर के माध्यम से सब कुछ कह दिया है...एकाकी पन की जो तस्वीर आपने उकेरी है वो विलक्षण है...और क्या कहूँ...वाह.
नीरज
Sameer ji
pahle to bandhaii swikaren
E-next aapki vistrit charcha hui hai..jo sacchai se ru-b-ru karati hai sabko
chha to aap pahle se hi rahe the lekin ab to aap is tarah chaa gaye ho jaise savan mein mansooni badal chaa jate hai.
बना ली
एक दूरी
हर शक्स से...
khoobsurat bhaav ko gine hue shabdo mai khoobsurti se pirona aapki kalam khoob jaanti hai..
marmsparshi kavita
adbhut!!
सरजी क्या कहें मां और बाप पर कित्ता भी लिखें, कम सा ही मालूम होता है।
आपकी चिंताओं के साथ संवेदना है।
कई बार अनकहे में बहुत कहा होता है, सो समझिये कि अनकहे में कह रहे हैं इस बार।
समीर जी कहते हैं न कि अमेरिका तो पहले से ही वहां था फिर क्यों कहा जाता है कि उसकी खोज कोलम्बस ने की । दरअसल में कोलम्बस ने खोज नहीं की थी उसने तो अमेरिका को बाकी की दुनिया से मिला दिया था । तो आपकी इन कविताओं में जो अद्भुत रूप सामने आ रहा है उसका श्रेय थोड़ा तो शिवना प्रकाशन की टीम को जायेगा ही कि उन्होंने एक नये समीर लाल को लोगों से मिलाया । ये कविता भी पूर्व की ही तरह है । आप सही ट्रेक पर हैं उसी पर रहें ।
bahubadiyaa likha hai her gar ki kahaane kuch alg nhi hai
आपके चाहने वाले जब इतने ढेर सारे हों, तो फिर आपने आपको अनाथ कैसे कह सकत हैं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
मैने बहुत करीब से महसूस किया है इन स्थितियों को. ऐसा लगा कि चलचित्र देख रही हूँ.
अचानक अनाथ होना ........ इससे बड़ा कष्ट शायद ही कोई हो
कुछ ऐसी ही वेदना इस शख्स की भी है.
वाह,क्या भावनाएँ है आपकी, अद्भुत रचना,समीर जी,
माँ नही रही,
पिता का सहारा भी गया,
वो हर इशारा भी गया,
जो हमसे चुपके से कान मे,
कहता था,बेटा
अभी तो छत है,
क्यों बारिश मे भींगने
की भय पाले बैठे हो,
पर आज सोचता हूँ,
तो मन कचोटता है,
दिलो पर साँप लोटता है,
अब नही है कोई दिल तो तसल्ली देने वाला,
पर हाँ एक बार और,
नही दिखता कोई ठौर,
वो बचपन की बातें तो हमे
बारिश से बचा लेती है,
पत्थरों से बने कठोर महलो मे,
बरसात की बूंदे हमे छू नही पाती,
पर वो बातें घनघोर बादल से
हमारे जेहन मे घूमड़ने लगते है,
और आँसूओं के सैलाब हमारे आँखों मे
उमड़ने लगते है.
कविता बहुत भावुक कर गई, दिल को छु गई
आपका वीनस केसरी
आपकी उड़न तश्तरी तो कमाल की है दादा
vo hote hue nahi rahe
ye aapki ajab kahaani maine kaiiyon ki jubaani suni
baap ne unhe baap hone ka ehsaas dilaayaa
beti ke hone par pitaa ne sab jutaayaa magr
beta hote hi mastaayaa kabhi uski tarakki ka khayaal n kiya kyonki jaise wo the
दुखती रग पर हाथ रख रही है ये कविता।
दिल के बहुत करीब लगी आप की यह कविता |
मर्मस्पर्शी!
बहुत बढ़िया
अमरजीत सिंह
http://hotamar.in
"मैं..?
मैं तो
जिन्दा हूँ अभी....
और
वो
होते हुए..
नहीं रहे!!
-मैं अनाथ हुआ!!"
मार्मिक पोस्ट।
श्रद्धांजलि।
sabne itna kuch kaha ki bolne ke liye kuch hai hi nahi......jeevan ki sachchai aur mrityu ki gahrai do ko hi bayan kiya aapne
" Sir, aapka real naam kya hain ?
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