आदरणीय तश्तरी जी,
मान्यवर, अत्यन्त दुखद समाचार है.
सारी रात इसी सोच में गुजर गई कि किस तरह यह खबर आपको दूँ? कुछ समझ नहीं आता. मैं आपका अपराधी हूँ और आज नहीं तो कल, आपको पता लग ही जाना है तो क्यूँ न मैं ही सीधे आपको बता दूँ. फिर आप जो सजा तय करेंगे, वो मैं भुगतने को तैयार हूँ. यूँ तो जितना टूट कर आपने उसे प्यार दिया है, बचपन से आजतक कि मैं केवल नाममात्र का स्वामित्व लिए था बाकी तो सब आपकी हौसला अफजाई और स्नेह का ही नतीजा था.
दरअसल, परसों दफ्तर से दिन भर का थका हारा, भीषण गर्मी झेलता जब देर शाम घर पहुँचा तो कुछ भी लिखने पढ़ने का मन नहीं था. भरपूर स्नान के बाद कुछ तरावट आई और एक प्याली चाय ने हिम्मत बँधाई तो सोचा, कुछ लिखा जाये. आप इन्तजार कर रहे होंगे.
गरमी इतनी भीषण पड़ रही है कि थोड़ा सा काम करो और शरीर जबाब देने लगता है किन्तु फिर आपका ख्याल आया तो किसी तरह लिखता चला गया और रात एक बज गई. आपके स्नेह और प्रेम वर्षा के सामने मेरी थकन की कीमत दो कौड़ी की नहीं है.
किसी तरह पोस्ट शेड्यूल करके बस बिस्तर पर लुढ़क गया. फिर ख्याल आया कि कल सुबह कुछ साज सजावट भी कर दूँगा ताकि आप जैसे स्नेही स्वजनों को अच्छा लगे और आप अपने स्नेह आशीषों के पनपते परिणामों को देख खुश हों. यह मेरा दायित्व एवं कर्तव्य भी है आपके प्रति.
सुबह सुबह ६ बजे उठकर जल्दीबाजी में कुछ फॉण्ट, कुछ ले आऊट आदि में फेर बदल की और बस, उसी समय, शायद नींद पूरी न होने की वजह से, एक ऐसी घटना हुई कि मेरा तो मानो जीवन ही बदल गया.
सब कुछ लुट गया. मैं कंगाल हो गया. आपके स्नेहाशीष में बढ़ रहा वृक्ष बस फल देने ही वाला था कि मानो मुझ माली ने अपने ही हाथों उसे काट दिया. जाने कैसे कौन सा बटन दब गया और जल्दबाजी में मैने क्या कनफर्मेशन दबा दिया कि आपका पसंदीदा ब्लॉग अब नहीं रहा. पूरा कुछ डिलीट हो गया, भाई साहब. मैं हत्यारा हूँ, मैं तो आपको मूँह दिखाने के काबिल भी नहीं रहा.
अपराध तो अपराध ही है किन्तु शायद यदि मैंने बैक-अप रखा होता तो कुछ हद तक क्षम्य होता. अब तो कोई चारा भी नहीं.
मैं अपना गुनाह बिना किसी साफ सफाई के कबूल करता हूँ और आपसे निवेदन करता हूँ कि आप जो भी सजा देना चाहें, दें. मैं उसे सहर्ष कबूल करुँगा.
आज मेरे हाथों इस साहित्य जगत में वो क्षति हुई है, जिसका पूरा किया जाना अब संभव नहीं. आप तो तकनीक के ज्ञाता भी हैं. यदि आप उचित समझें तो अपने प्रभाव से गुगल को लिख कर बात कर सकते हैं कि क्या ऐसी स्थितियों में कुछ किया जा सकता है.
अतयन्त दुखी मन से,
आपका अपराधी
मैं अभागा
संजय
अब जबसे यह टिप्पणी आई है, चमकने की बारी हमारी है.
अव्वल तो यह बालक है कौन?
दूसरा, आदरणीय तश्तरी जी- अभिवादन कर रहा है कि हमारी तस्वीर देखकर मजाक उड़ा रहा है?
भाई मेरे, हमारे ब्लॉग का नाम उड़न तश्तरी है और हमारा समीर लाल. कहीं क्न्फ्यूजन तो नहीं कि हमारा सरनेम तश्तरी और नाम उड़न है. और समीर लाल इनके चपरासीनुमा पॉयलट. ये अनुमान भी तस्वीर देख लगा लिया हो, तो कोई अतिश्योक्ति न होगी.
कहीं वो यह गलतफहमी तो नहीं पाल बैठा कि हम मात्र और एक मात्र ब्लॉग उसी का पढ़ते हैं. वैसे पाल भी ली हो तो आश्चर्य नहीं. जो हमारे नाम को लेकर गलतफहमी पाल सकता है, उसे हमारी टिप्पणी से इस तरह की गलतफहमी और फिर यह भी, साहित्यजगत में तुम्हारा योगदान अतुलनीय है, हो जाना बहुत सहज और स्वभाविक सी बात है.
माना भाई, मगर जरा ब्लॉग का नाम भी तो बता देते तो पता तो रहता कि किसकी याद में आँसूं बहाऊँ और किसे अश्रुपूरित श्रृद्धांजलि अर्पित करुँ.
इनके नाम पर क्लिक करो तो कहीं जाता ही नहीं. हो सकता है कि इतना दुखी हों कि हिल डुल भी न पा रहे हों और ब्लॉग तो डिलिट हो गया है तो उसके माध्यम से तो टिप्पणी कर न पाये होंगे. कम से कम मृत आत्मा का नाम तो बताना ही था.
दिमाग पर जोर डाल रहा हूँ कि कौन सा ऐसा ब्लॉग था जिसे मैने उसके जन्म से ही अपना स्नेह दिया और देता चला गया. वो बढ़ कर वृक्ष हो गया और वो फल भी देने वाला था. वो साहित्य में योगदान कर रहा था. वो लिखता बहुत सटीक था. मैं उसकी हौसला अफजाई किया करता था. उसे बेहतरीन कहता था. उसकी अगली पोस्ट का इन्तजार करता था. सर फटा जा रहा है बोरा भर नामों में से एक नाम छांटने में. संजय गुगल करो तो हजार ब्लॉग निकल आते हैं, उसमें से बीसों डिलिटेड होंगे तो वो राह लेना ही बेकार है.
अपने ब्लॉग की ग्यारह हजार टिप्पणियों में से सब संजय क्लिक करता घूम भी लूँ और एक दो डिलिटेड पर चले भी जायें, तो ढ़ाढ़स बँधाने कहाँ जाऊँगा जब तक ईमेल एड्रेस न हो और डिलिटेड ब्लॉग की प्रोफाईल तो दिखेगी भी नहीं कि ईमेल मिल जाये और मैं उनके दर्द में सहभागी बन पाऊँ.
और जहाँ तक रही उनके मूँह न दिखा पाने की बात तो जब हमें कुछ याद ही नहीं तो दिखाओ या न दिखाओ, क्या फरक पड़ेगा. सभी सूरमाओं को मैं जानता हूँ ऐसा भी नहीं.
डर लगता है कि इतना संवेदनशील और भावुक व्यक्ति, जो अपनी थकन भूल, सिर्फ इसलिये इतनी गर्मी में लिखने बैठ गया और लिखता चला गया जब तक निढाल होकर बिस्तर में न गिर पड़ा कि मैं उसके लिखे का इन्तजार कर रहा हूँगा, वो इतनी हृदय विदारक घटना पर, मेरे किसी भी जबाब को न पाकर कुछ ऐसा वैसा न कर बैठे. यूँ भी वो अपने आपको हत्यारा अपराधी माने बैठा है, कहीं बतौर-ए-सजा वो खुद को.................न..हीं........!! ऐसा नहीं होना चाहिये.
कोई तो राह सुझाओ, मित्रों कि करुँ क्या?
इस बीच मेरे परमप्रिय संजय जी, आपने कोई अपराध नहीं किया है. यह मानवजन्य भूलवश हुई क्रिया है जो किसी के साथ भी हो सकती है. अपराधबोध मन से निकाल दें. उपर पढ़कर आप समझ ही गये होंगे, आपका दिल भी टुकड़े टुकड़े हो गया होगा कि मैं आपको पहचान तक नहीं पा रहा हूँ, जबकि आज तक आपको यह मुगालता पलवाता रहा, अपरोक्ष रुप से ही सही, कि आप हैं तो ब्लॉगजगत है और जो कुछ है बस आप ही हैं.
तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ. आपकी तरह ही भूलवश मैने आपको इस मुगालते की सबसे उपर वाली मंजिल पर ला खड़ा किया. आगे से टिप्पणी करते वक्त ध्यान रखूँगा कि कोई और आपकी तरह ही परेशान हो अपराधबोध न पाल बैठे.
वैसे सत्य तो यह है कि आज की दुनिया में शिष्टाचार और किसी के स्नेहवर्षा को इतनी संवेदनशीलता और भावुकता से लेने वालों को बेवकूफ ही कहा जाता है और अंततः ऐसे लोग अपनी सजा खुद ही मुकर्रर करते हैं. सामने वाला तो क्या सजा देगा. सामने वाले पर चलोगे तो फिर तो इस देश में अफज़ल की फाँसी भी माफ है-इसका यह अर्थ तो कतई नहीं कि हत्या अपराध नहीं है.
चलते चलते:
फोटू तो आप देख ही रहे हैं. २० दिन पहले की है. उम्र भी मुझे कम से कम अपनी तो सही ही मालूम है. अभी कोई खास तो है नहीं और बाल भी फैशनवश ही सफेदी झलका रहे हैं वरना तो कब का रंग लेते.
मगर इसी तरह के स्नेहियों ने नाम के साथ आदरणीय, परम श्रद्धेय, माननीय, अंकल जी, महोदय, पित्रतुल्य, पूज्यनीय आदि न जाने क्या क्या लगा लगा कर ऐसा बुढ़ापे का एहसास कराया है कि कई बार तो अपना डेट ऑफ बर्थ प्रमाणपत्र और केलकुलेटर लिए पूरा दिन गुजार देता हूँ, फिर भी हल नहीं ढ़ूंढ़ पाता.बस, कान बजते रहते हैं:
दिल में इक तूफां और आँखों में ये नमीं सी क्यूँ है......
कहीं यह मुझ युवा के खिलाफ कोई षणयंत्र तो नहीं?
ब्लॉगजगत में आकर मात्र यही एक घाटा लगा है कि हम अपना युवत्व असमय खोते नजर आ रहे हैं.
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84 टिप्पणियां:
सत्य कथन प्रभु....
ब्लॉगजगत में आकर मात्र यही एक घाटा लगा है कि हम अपना युवत्व असमय खोते नजर आ रहे हैं.
when you birth to demon you need to lean to live with it . hindi bloging is suffocating under the pressure of bhartiyae sanskriti and it will not bloom
चाचा, वो संजय कम से कम मैं तो नहीं हूँ अतः आप मेरी तरफ से निश्चिंत हो जाओ. मगर आप लिखते क्या हो, और लपेटते किसको हो, यह भी एक अजूबा ही है. न जाने कितने संजय सर पटक रहे होंगे.
na jaane kisko niptaya hai aapne, aadarniya bhai sahab. :)
अबूझमाड़!
उड़न तश्तरी बन गए भाई लाल समीर।
चिन्ता न पहचान की फिर क्यों दिखता पीड़।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के
तुम ही भविष्य हो मेरे भारत विशाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के "
इन अमर गीतों के साथ याद कर लें और नमन करें कवि प्रदीप जी की लेखनी को !
और
प्रेम का जज्बा कुछ और गहराता है :-)
ये भी कहीं हो सकता है ?
Photograph = MAST !!!
हास्य-विनोद से भरी एक बहुत-ही हल्की-फुल्की पोस्ट (फोटो छोड़कर). आजकल की ज़िन्दगी में जब हर तरफ टेंशन ही टेंशन है, ये पोस्ट पढ़कर मूड कुछ अच्छा हो गया. भगवान मृत ब्लॉग की आत्मा को शान्ति दे.
साभार
हमसफ़र यादों का.......
अब जब मौका हाथ आ ही गया है तो आपको शरणागत-वत्सलता तो दिखानी ही पड़ेगी.
sameer ji poore lekh ka saar aapne in panktiyon men prakat kar diya hai , main bhi aap se sahmat hun.
ब्लॉगजगत में आकर मात्र यही एक घाटा लगा है कि हम अपना युवत्व असमय खोते नजर आ रहे हैं.
dheere dheere adjust kar raha hun.
समीर भाई
संजय की टिप्पणी और आपके सटीक प्रत्युत्तर ने सच में "लुटी जवानी तेरे दर पर!!" को एक सत्य कथा का रूप दे दिया ही. वैसे भी आपकी जादुई अभिव्यक्ति लोग पूर्व परीची तो हैं ही.
- विजय
बहुत दिनों के बाद वही हलका-फुलका विनोदी लहज़ा नज़र आया। बहुत ख़ूब!
छह महीने से आप इंडिया में थे .. परिचित संजयों को भी टिप्पणी नहीं की .. अनजाने संजयों का भ्रम तो कब टूट जाना चाहिए .. फिर भी पता नहीं कौन से 'संजय' भ्रम में रह गए ।
संजय तिवारी जी की बात पर ग़ौर करने लगा हूँ! आपकी माया आप ही जाने! अब या तो आप संजय के नाम से किसी को लपेट भी सकते हैं क्योंकि आप सबको इतना प्यार देते हैं तो आप लपेटेंगे भी प्यार से ही। "संजय" तो बेचारा परेशान होगा कि तश्तरी लिखकर उड़न हो गया और समीर से पंगा लेकर नंगा हो गया! संजय तुम कौन हो भाई बता दो वरना कई संजय बेचारे तुम्हारी वजह से परेशान हो रहे होंगे! लेकिन समीर भाई एक बात मैंने भी सीख ली आपके इस लेख से कि अपने ब्लॉग का बैकअप तो रखना ही चाहिए!
प्रणाम
बहुत शानदार लिखा. हम तो इतनी बडी टिपणी पढते २ ये ही भूळ गये थे कि अभी टिपणी ही बांची जा रही है. हम इतना दुखी होगये, ये जानकर कि, आपका ही
ब्लाग ही उड गया. हम तो दुखी होकर वहीं से सांत्वना देने वाले थे कि आगे आपकी और भाभी जी की फ़ोटो देखकर फ़िर पढते हुये वहां पहुंचे और सारी बात समझ आई.
हां आपका युवत्व खोने और बुढापे की साजिश शुद्ध रुप से शाश्त्री जी की है. हम सरे आम यहां कह रहे हैं. अब आप जानो और शाश्त्री जी जानें. बाकी सब तो प्रेम वश आपको आदरसूचक संबोधन देते हैं बुढापे की वजह से नही, परम आदर्णीय गुरुजी.:)
रामराम.
वाह दिल यह जानने को बेताब हो रहा है कि कौन हैं वह संजय भाई, जो शायद इस कदर गम में डूबे हैं कि अपने ब्लाग का नाम भी भूल गए। वैसे समीर जी हमें तो लग रहा है कि किसी ने आपसे मजाक किया है। खैर सच जो भी हो आपने पोस्ट इस अंदाज में लिखी कि पढ़कर मजा आ गया। संजय जी (अगर कोई हैं तो) को मजा आया होगा या गुस्सा ये मैं नहीं कह सकता। खैर बाकी औऱ कुछ पता चले तो जरूर बताइएगा।
बहुत ही शानदार विस्तार दिया है आपने उस टिप्पणी का । कुशलता का तो कहना ही क्या लेखन में । आभार ।
अंकलजी, आप संजय को नहीं पहचाने? वही धृतराष्ट्र के सचिव संजय। और साहित्य की अपूरणीय क्षति तो हुई है। उन्होंने पूरी "महाभारत" पर डिलीट मार दिया है!
--- आपका, कृष्ण वैशम्पायन व्यास!
:)
राम नाम सत्य है ----
ये ब्लोगर बडा मस्त है,
ब्लोगिंग से त्रस्त है,
बुढापे का कष्ट है,
गूगल भी ध्वस्त है,
अन्य ब्लोगर पस्त है,
"ये" ही सर्वत्र है,
(क्योंकि इसमें)
आंतरिक युवत्व है ।
गलतफ़हमी में ही सही,अगर कोई इंसान किसी से प्रेम कर बैठे तो उसकी गलतफ़हमी को बनाये रखना चाहिये। यह उसके हित मे होता है।
बेचारे संजय न जाने क्या होगा उनका,जब उन्हें पता चलेगा।
वैसे तो जैसे जैसे आपका आकार धीरे धीरे दीर्घाकार या कहें तो पर्वताकार होता जा रहा है उसे देख कर तो ये ही लगता है कि आपको जल्द ही अपने ब्लाग का नाम उड़न तश्तरा रखना होगा । या यूं भी कर सकते हैं कि जैसे हमारे यहां पर वो एक होता है न भगोना तो उसी आधार पर ब्लाग का नाम उड़न भगोना भी रख सकते हैं । जहां तक सम्मान का प्रश्न है तो उम्र से कुछ नहीं होता कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन पर जवानी आती है और 'ता' करके चली जाती है । और पता ही नहीं चलता कब लड़कियां भैया से अंकलजी कहने लगती हैं ।
सबसे पहले तो उस (भूतपूर्व) ब्लॉगर को पत्र लिखो। जिसमे पूरी ईमानदारी से इसके ब्लॉग की अकाल मृत्यू पर श्रृद्दांजली अर्पित करो। आंसू वगैरहा भी बहाओ। आंसुओं मे ईमानदारी झलके, इस तरह रोना जैसे पडोस का पंसारी, तुम्हारे पैसे खाकर लुढक गया हो। इस सारी कहानी के बाद, मौका-ए-वारदात के बारे मे पूछो। पता करो, किस थानाक्षेत्र के अंतर्गत है। कोशिश करके, बला टालो, गूगल वाला थानाक्षेत्र तुम्हारे अंतर्गत तो आता है नही, इसलिए इसको रवि रतलामी के पास भेजो, वो दो चार लोगों के पास घुमा-फिरा देगा, इस बीच अगर वो फुरसतिया के हत्थे पड़ गया तो गया बारह के भाव में। खैर आखिरकार थक-हारकर संजय वापस गूगल बाबा की शरण मे जाएगा। जो उसकी सही शरणस्थली है।
तारीफ़ का शुक्रिया करो, अपने नाम का सही उच्चारण, स्पैलिंग सहित लिखो, हो सके तो आवाज भी डालो, ताकि संजय आगे से ऐसे गलती ना दोहराए। अगले हिस्से मे क्लेम करो, तुमको मानसिक पीड़ा हुई, फिर गूगल पर संजय टाइप करने मे जो कष्ट हुआ, जितना समय व्यर्थ( उसको क्या पता फुल्ली फालतू हो) जाया हुआ, उस पर ग्लोबल चिंतन करो। क्लेम करने के लिए पता जानो।
आखिरी मे फिर से थोड़े आंसू बहाओ, सांत्वना दो, धीरज रखने का संदेश दो। बिजी होने का नाटक करते हुए नमस्ते नमस्ते करते हुए, चिट्ठी बन्द करो। किसी भी प्रकार की समस्या आने पर फुरसतिया की चौपाल पर बुलाने का वादा दे दो। वही पर घेर पर पूछेंगे।
अब हम भी बिजी होने की परम्परा निभाते हुए, इस टिप्पणी को यही बन्द करते है। पब्लिश करते ही सूचित करना। (ताकि हम फिर लौटे, वैसे भी हम बिजी विदाउट वर्क है।)
वाह..मज़ा आ गया!
हम तो क्या है की बाल की खाल निकालते हैं...आप की इस पोस्ट से हमने ये निष्कर्ष निकाला की अब तक आपको ग्यारह हज़ार टिप्पणियां प्राप्त हो चुकी हैं जो एक विश्व रिकार्ड है और जिसे आपने संजय नमक काल्पनिक पात्र के काल्पनिक ब्लॉग की कथा के माध्यम से हैं बताया है...कहिये सच कहा ना...हा हा हा हा हा हा हा हा
सीधे सीधे बताते तब भी ऐसे ही बधाई देते जैसे की अब दे रहे हैं...बधाई...
और इस बुढापे के मुगालते में आप मत पड़िये...कौन कमबख्त कहता है की आप बूढे हैं...हम कहते हैं की आप अनुभवी हैं...अनुभव से कोई बूढा होता है क्या...???
नीरज
इस पर कहने को कुछ नहीं है...........
वो संजय जी तो उड़न तश्तरी की तरह ही रहस्य ही बन गए है...!लेकिन कहीं पडोसी देश की कोई साजिश तो नहीं है ये...
अबे ओ समीर के बच्चे !
घबरा गया यार।घबराइए नहीं मित्र, थोडा सा आपका युवापन बचा रहे, बस इसीलिए चिल्लाना पडा।
ब्लॉगजगत में आकर मात्र यही एक घाटा लगा है कि हम अपना युवत्व असमय खोते नजर आ रहे हैं.---- बस यही समझ आया जो शत प्रतिशत सच है.... बाकि का लिखा समझने के लिए दूसरे मित्रो पर छोड़ दिया है...
वो संजय कम से कम मैं तो नहीं हो सकता. यूँ रोना अपने बस का काम नहीं, इत्ते वीर भी नहीं है हम.
बाकि आप जानो और आपके साहित्याकार, कवि प्रशंसक जाने. यह बला अपनी समझ में नहीं आती.
और शीर्षक देख चौक गया कि सुन्दर, सर्वगुण सम्पन्न पत्नी के होते हुए अपनी जवानी कहाँ कहाँ लुटाते फिर रहे हैं?!!! मामला कुछ और निकला तो तसल्ली हुई. जमाना बड़ा खराब है साहब, चिंता हो जाती है.
समर्पित प्रशंसक जो केवल आपके लिए लिखता है, और चिट्ठे को साहित्य की तोप समझता है देख हृदय भर आया, आँखे झलझला गई. :)
जय हो
एक हत्या का अपराध तो आपके सर लगेगा ही सर जी........थ्री मिस्टेक ऑफ़ माय लाइफ....फिर आप हूँ भी लिख मारेंगे.......फोनुवा घुमाईये ....मालूम करिए .....
खैर फोटुवा जानदार है.....आपके दुश्मन बूढा कहेगे आपको......वो क्या कहते है जलते है ....ईष्या तू न गयी मेरे मन से .....
अब जाने दीजिये....ज्यादा देर रहेंगे तो हमी न भावुक हो जाये ..
पात्र आपने अच्छा चुना है, इस नाम के बहुत से ब्लोगर है . चान्द को सब अपना कहे, चान्द की नजर मे सब बेगाने है। पर आप की नजर मे तो सब नजदीकी लोग है ।
thik hai.
कहीं क्न्फ्यूजन तो नहीं कि हमारा सरनेम तश्तरी और नाम उड़न है.आप भी क्या क्य लिख देते हो ??? :) :)
मगर सारा दोष आपका ही है उड़न जी...! आप ही तो सारी जगह ऐसे टिप्पणी करते हैं, जैसे लगता है कि उसके अलावा दूसरे को बहुत ज्यादा तवज्जो नही देते और उसको दो चार नही सौ दो सौ बार पढ़ते हैं। अब जबकि उस साहित्यकार से, उस साहित्य से हम सब लोग वंचित रह जायेंगे....! तो उसके दोषी भी आप ही होंगे तश्तरी जी..! सिर्फ आप..! आने वाली ब्लॉगर पीढ़ियाँ आपको इस अपराध के लिये कभी क्षमा नही करेंगी...!:) :)
बहुत ही मजेदार...!
माजरा तो कुछ खास पल्ले नहीं पड़ा ,पर
आपकी तश्ताराइन को देख कर अच्छा लगा ....
Bilkul saty kaha.....
"वैसे सत्य तो यह है कि आज की दुनिया में शिष्टाचार और किसी के स्नेहवर्षा को इतनी संवेदनशीलता और भावुकता से लेने वालों को बेवकूफ ही कहा जाता है "
समीर भाई
बेहतरी है इसी में.............अंकल मान लो भइये........ क्या पता अंकल बोल कर कोई ...............ले ............
पर रोबदार तो लग रहे हो.............जवानी पूरी नहीं लुटी अभी
कहीं ये किसी हैकर की पूर्व चेतावनी तो नहीं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
देखो आपने क्या कर दिया ये!! इसलिए जीतू भाई कहते रहते थे आपको कि लोगों की खामखा झूठी तारीफ़ मत किया करो, कुछ बेचारे भोले होते हैं जो सच मान दिल पर लगा लेते हैं, ही ही ही!! :D गांधी बाबा ने भी सत्य की राह पर चलने पर ज़ोर दिया कि भई झूठ न बोलो पंगा पै जाता है!! ;)
मैं तो यह सोचकर खुश हूँ कि मेरा नाम संजय नहीं है।
मैं तो यह सोचकर खुश हूँ कि मेरा नाम संजय नहीं है।
आज एक बात सीखी पहली टिप्पणी बिना पढ़े कर देनी चाहिए। क्या पता पढ़ते पढ़ते बिजली चली जाए।
और चित्र में आप तो आज जैसे ही लग रहे हैं। आप न कहते तो हम चित्र को ताजा ही कहते। भैया अब तो सुर रहना सीखना ही होगा। ससुर नाम जो धरायो।
करो तश्तरी जी, आप ही कुछ करो.
आप भी खामख्वाह नाराज हो रहे हैं। सोचिये जिस की असमय भ्रुण हत्या हो गयी उस, असहय गर्मी और सुहानी ठंड़ से उपजी, अनमोल रचना(लेखक के अनुसार)का इस धरा पर अवतरण हो जाता तो!!!!!!!!!!!
क्या कहा... डिलीट हो गया....
राम का नाम सत तो था ही... राम नाम सत हो गया...
बहुत बुरा... बहुत भयानक हुआ...
अफ़सोस हम न थे... होते भी तो क्या होता...
भरी रात में क्या कर लेते...
वैसे कर तो आप भी नहीं सकते...
कोई नहीं कर सकता...
सिवाय दुआ करने के....
"इसी तरह के स्नेहियों ने नाम के साथ आदरणीय, परम श्रद्धेय, माननीय, अंकल जी, महोदय, पित्रतुल्य, पूज्यनीय आदि न जाने क्या क्या लगा लगा कर ऐसा बुढ़ापे का एहसास कराया है कि कई बार तो अपना डेट ऑफ बर्थ प्रमाणपत्र और केलकुलेटर लिए पूरा दिन गुजार देता हूँ, फिर भी हल नहीं ढ़ूंढ़ पाता.बस, कान बजते रहते हैं:"
अब इस उम्र की दहलीज पर उपरोक्त संबोधन तो सुनने पड़ेंगे आगे जाकर दादा बाबा के संबोधन भी आपको सुनना पड़ेंगे कब तक बचेंगे आप ...? ये तो संसार सागर है .
.....अपने ही दर पे अपने हाथो से लुट जाने की बात.... . भाई संजय की व्यथा पढ़ी बड़ा दुःख हुआ सहानुभूति है उनके साथ . उम्दा आलेख. धन्यवाद.
Parnaam uncle ji..
Aap to budha gaye hi hain.. aap bhi galat fahmi paal rahe hain un bechare sanjay ki tarah..
Jis din mere bhaiya ki shadi hui thi usi din se main apne papa-mummy ko chidhana shuru kar diya tha ki ab aap budha gaye hain.. is hisab se dekhiye to aap bhi apne bare bete ki shadi karke budha gaye hain.. :D
aage se aapko har comment me aapko aapke budhape ki yaad dilata rahunga..
apne kamar ka khyal rakhiyega Uncle ji.. :)
bhai sameerji, aadarniy/poojniy/sammanniy/shrddhey ya jo bhi achha lage vo sambodhan rakhlo lekin isme koi shaq nahin ki aapne mujhe aaj hasaya bahut hai....aapse subah phone par jab baat ho rahi thi toh main aapko bada dheer gambheer kism wala maan baitha tha,aap toh bahut funny ho prabhu ==== maza aagaya,HA HA HA HA
sath hi aapne mera blog blogvani par punah shuru kara diya,isse khushi doguni ho gayi hai....
IS TANATAN POST KE LIYE AAPKO LAKH LAKH BADHAIYAN
मैंने आपके 'उम्दा और बेहतरीन' वाले ब्लॉग से डर कर एक नया तरीका सोंचा है एक शब्द में सब कुछ कह देने का- कि मैं नतमस्तक हूँ
इस ब्लॉग पे भी मेरा वही कहना है - नतमस्तक
आह मैं बच गया...
मेरा नाम संजय नहीं.
क्या बात है,आपकी समीर लाल जी,
शब्दो,विचारो और भावनाओं से मालामाल जी,
गजब घुमाया आप ने सभी को आज,
मैं खुद नही समझ पाया,संजय का राज,
बस लास्ट लाइन अच्छे से समझ मे आई है,
जो हमारे जीवन की,कड़वी सच्चाई है,
हम कुछ पाने की खुशी को लेकर मस्त होते है,
पर हक़ीकत मे हम बहुत कुछ खोते है.
हर एक समय का हमे अहसास होना चाहिए,
और बीतने वाला हर पल हमारे लिए खास होना चाहिए.
इन खूबसूरत तथ्यो को आपने कराया याद,
आपको बहुत बहुत धन्यवाद.
smeerji
apka blog pdhte pdhte muskurate meri ajib si hansi nikal gai kam vali bai poncha lgate mujhe vichitra njro se dekhne lgi .par mai use kuch bhi smjha nhi pai ki mai kyo hansi .
mujhe ashry hota haiaap itna khubsurt hasy kitni asani se likh lete hai .meri bdhai sweekare .mai apse umr me bdi huisliye ashirwad.
baap re...ganimat hai mera naam sanjay nahin hai.
blog delete ho jaane ka dar to hamesha laga rahta tha, fir ek din blog save karne ke bare me pata chala, fatafat backup liya...to thode nishint hain :)
aapki is rachna par sadhuvaad tashtari ji...bahut accha likha hai :)
समीर जी क्या धांसूं लिखा है मजा आ गया बस एक शंका रह गई की ऐसा सच में हुआ या कल्पना में,
आप भी अन्य की तरह लिख देते (व्यंग)तो ये शंका तो न होती अब आपने नहीं लिखा तो हम इसे सत्य घटना मान कार चल रहे है
बस यही कहना चाहता हूँ की अभी दो दिन पहले एक मतला लिखा था जिसका पहला मिश्रा है
जिन्दगी माँगा है कम औ तुझसे है पाया बहुत.
अभी अचानक दिल किया की इसे ऐसे भी कहाँ जा सकता है
तश्तरी माँगा है कम औ तुझसे है पाया बहुत
बहर भी तो नहीं खराब होगी
जिन्दगी == , तश्तरी === २१२ :) :) :)
आपका वीनस केसरी
सरकार की माया
अन्कल जी अछ्छा किया बता दिया . हम तो आप्का नाम ’ उडन ’ और आन्टी जी का ’तश्तरी ’ समझ रहे थे जैसे लैला मजनू , शीरीं फ़रिहाद , सोनी महिवाल , हीर रान्झा ,चान्द और......(क्या नाम था उस उप मुख्य मन्त्री की उप्मुख्य पत्नी का ?)......वगैरह वगैरह .
अछ्छा लगा कि आप्के इस ब्लोगीय लफ़डे मे आन्टी जी नहीं शामिल ,आक्खे के आक्खे आप ही हो !
और वो तिप्पणी वाला .......जो चल गया उसे भूल जा !
बाल वाली बात अन्कल जरा सीरीयसली लेने का .
अब देखो मेरा अपना प्रोब्लम .फ़ैशन मे बाल सफ़ेद किया , ये अमेरिकन की मफ़िक सर के बीच मे से थोडा बाल वाल निकाल विकाल इश्श्टायिल दिया .बकरा दाढी भी सफ़ेद छोड दिया .
इन्डिआ मे प्रोब्लेम हो गया . जो मिलता वही अन्कल से चालू हो जाता है .......( बिना क्लोस अप के ) .
बच के रहने का अन्कल ,आप्को तो उस हिसाब से ( मिलेला टिप्पणी के नम्बर से भी ) ’ ग्रैन्ड पा ’ बोलने लग जायेगा .
लेकिन उ अन्कल फ़िकिर बिकिर नयीं करने का ....बस .......KEEP IT UP !!
तश्तरी और तश्तराईन :)
हा हा !
वल्लाह !! वो टिप्पणी आई भी है कि ये आपके दिमाग की खुजली है ? :)
आप पर गुरुजी गुस्सा दिखा रहे थे. आपसे कहने को कहा है कि बहु का ज्यादा मजाक मत लिखा करें.
मुझे तो दीदी का नाम तश्तराईन बहुत अच्छा लगा.
अब आप गुरुजी से फोन पर बात कर लेना.
# गजब का हास्य पुट है आपकी लेखनी में. क्या खा कर लिखते है ददुआ? मज़ा आ गया.
# लेखकीय अपराध भी च्कित्सीय अपराध से कम नहीं , आज के ही दिनेश राय जी द्विवेदी के लेख से आपके ''संजय श्री" को maarg-दर्शन मिल सकता है.
# उम्र के चक्कर में न पड़िये, बेचारा नाज़ुक केलकुलेटर और आपकी उँगलियाँ!
# बालो में सफेदी की झलक तो काजल का काम करती है, आप को किसी की नज़र न लगे [कोई नज़र न गढे].
# ब्लागिंग की दुनिया में तस्वीरों का भी अपना महत्व है .बड़ा बनने में हर्ज ही क्या है? मैंने तो अपने चिरंजीवी पर-दादा की तस्वीर चस्पा कर रखी है अपने ब्लॉग पर! [राज़ की बात है अपने तक ही रखियेगा].
# आपने बेचारे संजय ही का नाम क्यों चुना? आपकी टिप्पणी का तो हर कोई अभिलाषी है.
-मंसूर अली हाशमी
सरजी हमें तो लुटने से बचाया हुआ है सिरिलजी और मैथिलीजी ने। समय समय पर बिलगेट्सी सलाह देकर बचाते रहते हैं। उनकी सलाह पर अभी एक्सटर्नल हार्डडिस्क ठोंक दी गयी है कंप्यूटर में। सारा आइटम वहां पर बेकअप हो रहा है। सिरिल जी की जय हो, मैथिलीजी की जय हो।
:) टिप्पणी थी की कोई गुजरते समय की चेतवानी .:) सब आपकी सोच का कमाल लग रहा है मुझे तो ..जिसका दिल अभी बचपने से भरा हो वह कहाँ से अंकल कहलायेंगे :)
सब कुछ साजिशन लग रहा है!
अब इतनी युवा टिप्पणियाँ आ चुकीं तो मेरी भी एक हो जाये।
post ki jagah tippdi padta raha. vah vah vistar rasta banaya hai aapne.
jab jab jo jo hona hai, tab tab vo vo hotaa hai.
afazal ko faasi to nahee milegee is desh me. kasab hama par aur hamaaree nyaay vyavasthaa par has hee rahaa hai!!
tashtaraaeen ke saath waale photo me aap has kyo nahee rahe hai? vo to kahee se aunti nahee nazar aa rahee hai, to aap kyo uncle hue jaa rahe hai?
smaaeel kijiye, jaise aapa hameM hameshaa hasaate hai, khud bhee hasiye.
tum jo muskurao raajadhaanee hai.
jab jab jo jo hona hai, tab tab vo vo hotaa hai.
afazal ko faasi to nahee milegee is desh me. kasab hama par aur hamaaree nyaay vyavasthaa par has hee rahaa hai!!
tashtaraaeen ke saath waale photo me aap has kyo nahee rahe hai? vo to kahee se aunti nahee nazar aa rahee hai, to aap kyo uncle hue jaa rahe hai?
smaaeel kijiye, jaise aapa hameM hameshaa hasaate hai, khud bhee hasiye.
tum jo muskurao raajadhaanee hai.
प्रिय समीर भाई,
ध्रुव को उसके जन्म दिन पर आपका आर्शीवाद मिला...मेरे लिए भाग्य की बात थी...धन्यवाद देने के लिए अपनी टिप्पणी आदरणीय इत्यादि वाक्यांश से आरम्भ करने वाला था कि आपकी पोस्ट पर आपकी उम्र सम्बन्धी टिप्पणी याद आ गई...मैंने आपकी तस्वीर और लेखनी दोनों पर गौर किया...फिर मैंने ध्रुव की तस्वीर को देखा ,भाई आप नाराज मत होना...अब तो आपकी उम्र दिखने लगी है...ध्रुव और आप में वैसे तो तीन चार साल का ही फर्क होगा...पर तस्वीर में यह सात आठ साल का नजर आता है...वैसे चाहें तो आप स्वयम मेरी पोस्ट पर ध्रुव की तस्वीर से मिलान कर सकते है....
वैसे ब्लागरों में आदित्य ,लविजा...आदि को छोड़ दे तो सबसे युवा है..
अगर आप इजाजत देंगे ..तो भविष्य में भी आपको प्रिय समीर भाई कहने की गुस्ताखी करूंगा..
.
आपका
प्रकाश सिंह राठौड़ 'पाखी'
अज़ी, आप किस चक्कर में हैं ?
आपने कभी पतँग उड़ायी होगी । ज़माना बदल गया दिक्खै, लौंडा उड़नतश्तरी उड़ा रैया सै !
आप भी इस बावले के इशारे पे ऊड़न लाग्यै । टिप्पणीकार बेचारा यो माज़रा पढ़ कै फ़ाख़्ता उड़ाण लग पड्या सै !
छोटी सी बात से क्यों बिदक रहे हो बड़े भाई....
यह सजन्य जो कोई भी हो समीरभाई ! पर था बडा नेक आदमी। ऐसे व्यक्ति का एकाएक इस दुनिया से उठ जाना वास्तव मे गुगलबाबा कि सन्तानो मे कमी आई है। भगवान उसकी आत्मा को शान्ती दे। समीर भाई आपने यह अच्छा किया कि दिवगत आत्मा के लिऐ उडन तस्तरी पर जो शोक सन्देश छापा बेचारे को नरकलोक मे भी मिर्ची लग रही होगी। सावधान ऐसी अतृप्त आत्माऐ भटकती हुइ वापिस धरती पर लोट सकती है। ताऊजी को बोलकर कुछ ताविज वैगेहरा का इन्तजाम करना उचित रहेगा।
thank you
mumbai tiger / hey prabhu yah terapanth
आप के ब्लाग में जब आया कुछ कहने के लिये बैठा तो मेरा नम्बर 50 के बाद ही आया ..आप तो ब्लाग जगत के शंहशाह जनाब हैं..अब बादशाह की तलाश किजिये सजय सार्थी था चलेगा तो आपके कहने पर ही
समीर अंकल मजा आ गया
तश्तरी के साथ तश्तराईन के भी दर्शन हुए
;चलिये भाई संजय के साथ दुख मनाे का आपको एक सबल कार म तो मिला । वैसे आप काफी ग्रेसफुली उमरा रहे हैं ।
श्रीमती एवम श्री तश्तरी { एक युवा दम्पति सदियो तक }
जब कोई आपको चाचा कहे तो सीधे पंजा लडाने के पोज में आ जायें और कहें- जरा हाथ टेढा करो दो तो जानूं.....।
यही कह कर मेरे गाँव में कई लोग अब तक जवान बने हैं.
समीर भाई
संजय ने बड़े प्यार से दिल दुखाया है.मेरे हिसाब से यह उचित नहीं और माफ़ी के काबिल भी नहीं.
दिलचस्प पोस्ट। आपके स्नेहभाजन के लिए हमें भी संवेदना है। उनका हौसला बनाए रखिये।
इस तरह वे जीवन भर घुटनों ही चलते रहेंगे। फिर ऐसी ही गलती करेंगे। फिर दुखी होंगे।
तब फिर एक पोस्ट आप लिखियेगा:)
मेरी सहानुभुति संजयों के साथ है। खामखाह आपने लपेट लिया। अरे भाई संजय को दिव्य-दृष्टि प्राप्त है , वो जो सुनाता है वह महाभारत का आंखों देखा हाल है नकि उसकी अपनी कहानी। और मैं इससे भी सहमत हूं कि आप बिल्कुल युवा हैं...ये अलग बात है कि आपके साथ के पेड़-पौधे सूख रहे हैं...
समीर साहब आप लिखते बहुत बढ़िया हैं.आपकी यह पोस्ट आई-नेक्स्ट अख़बार में भी पढ़ी थी..बधाई.
_______________
कभी अपनी उड़न तश्तरी पर सवार होकर डाकिया बाबू के ब्लॉग पर भी आयें तो सही !!
आदरणीय समीर लाल जी नमस्कार
जितना मजा टीप मारने में है उससे ज्यादा मजा उसकी प्रतिक्रिया में आता है. चिकोटी कोई भी काटे , काम मेरा बन गया. मुझे संडे कालम के लिए मसाला चाहिए थे वो उडऩ तश्तरी में मिल गया. आपकी तुलना मैने बालीवुड के स्टार से की है क्योंकि मैं उनका फैन हूं.
नाम उडऩ सरनेम तश्तरी?
ब्लॉग के महासागर में विष भी निकलता है और अमृत भी. बस थोड़ा सा प्रयास कीजिए और आपको मनपसंद ब्लॉग मिल जाएंगे. किसी को लिटरेचर चाहिए, किसी को फिक्शन, किसी को साइंस तो किसी को लाइट मूड का मसाला पसंद है. हर ब्लॉग में एक खास तरह का तेवर और फील होता है और यह तय होता है ब्लॉगर की स्टाइल से. लेकिन कुछ ब्लॉगर ऐसे हैं जो ऑलराउंडर हैं. कभी उनमें गंभीर साहित्यकार दिखता है तो कभी चुलबुला यंगस्टर तो कभी साइंस और नेट सैवी संजीदा इंसान. उडऩ तश्तरी ऐसा ही ब्लाग और समीर लाल ऐसे ब्लागर हैं. वैसे उनकी सूरत देख कर सत्या फिल्म के कल्लू मामा और लिखने की स्टाइल से हास्टल के दिनों के एक साथी सक्सेना जी याद आते हैं. आप किसी भी विषय पर पोस्ट लिखिए अपनी सटीक टिप्पणी के साथ समीर लाल अक्सर सबसे पहले हाजिर होने वालों में से होते हैं. इसी तरह हमारे हास्टल में सीनियर सक्सेना जी थे. उनको इश्क-विश्क, प्यार-व्यार कभी हुआ था या नहीं इसका तो पक्का पता नहीं लेकिन इश्क के मारे अपने युवा साथियों को एडवाइस देने में उन्हें महारत हासिल थी. समीर लाल के कुछ कमेंट्स को पढ़ कर तो कई बार ओरिजिनल पोस्ट से ज्यादा मजा आता है. लगता है कि किसी ने जानबूझ कर समीर लाल से चुटकी ली है लेकिन उससे कहीं रोचक है उस पर समीर लाल का कमेंट.
यह भी सही -वह भी सही .
कलम को सलाम,
कमाल ही कमाल,
जमाल ही जमाल।
समीर भाई इस फोटो में आप वास्तव में अपेक्षाकृत जवान लग रहे हैं। इसका कारण आप खुद कम और भाभीजी अधिक लग रही हैं। :)
अब अगर आपको अपनी बढ़ी उम्र थामे रखनी है तो भाभीजी के आस-पास ही मंडराते रहें। जवान बने रहेंगे। :)
जब मैंने अपना ब्लॉग शुरू किया तो कुछ दिन बाद शायद मैं भी ऐसा ही एक पत्र आपको भेज देता कि मियां कई दिन से पोस्ट लिख नहीं पाया क्षमाप्रार्थी हूं। अब लिख दी है सो पढ़ लेना ताकि आपका कुछ ज्ञानवर्द्धन हो जाए। :) इस बीच एक दिन अपना ब्लॉग सर्च इंजन पर खोजते हुए ब्लॉग एग्रेगेटर्स से टकरा गया और इंटरनेट पर हिन्दी ब्लॉगिंग का पुरोधा होने का मुगालता टूटा और लिखने से अधिक पढ़ने में समय बिताने लगा।
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