बस कुछ यूँ ही उमड़ते घुमड़ते ख्याल:
चाहे नाम धरम का रख लो
या कि दिल में नफरत भर लो
देखो, इक दिन पछताओगे
अभी स्वयं को वश में कर लो.
आँधी तेज हवाओं वाली
आँधी धूल गुबारों वाली
आँधी नफरत की वो काली
आँधी हठ उन्मादों वाली.
सागर तट से उठती आँधी
मज़हब से जो भड़की आँधी
बस्ती बस्ती घूम घूम कर
नॄत्य मौत का करती आँधी.
आँधी तो आँधी होती है
गुस्से में आपा खोती है
इसको तुम मत राह दिखाओ
बेकाबू यह हो जायेगी
कितने नीड़ बिखर जायेंगे
तुम करनी पर पछताओगे
आँधी को क्या फ़र्क पड़ेगा
आदत से न बाज आयेगी
मासूमों को ग्रास बना कर
अँगड़ाई ले सो जायेगी
लेकिन क्या तुम सो पाओगे
क्या तुमको नींद कभी आयेगी.
--समीर लाल ’समीर’
गुरुवार, मई 29, 2008
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43 टिप्पणियां:
अच्छा है भाई. बिल्कुल सही है. समीर की आंधी ....
बात सही है, लेकिन कविता का स्ट्रक्चर सुधार चाहता है।
समीर भाई,
ऐसी आँधी आज कयी जगह बह रही है जिससे बहोत सारा नुकसान हो रहा है
अपने सही कहा -
बड़ी खूबसूरत कविता, उससे कही इसका बढ़िया भाव. लेकिन अन्तिम की दो पंक्तियों पर मुझे रह रह कर संदेह होता रहता है. आंधिया (Destructive Elements)को सब कुछ उड़ाने के बाद ही शायद नींद आती है
वाह ,बहुत बढियां -आप तो एक मजे कवि हैं !मगर समझ में नही आता की आंधी कैसे रुकेगी ?
सुंदर तथा सामयिक रचना!
अच्छी रचना.
समय कि दास्ताँ कहती और हमारी करनियों की पोल खोलती.
इसको मत राह दिखाओ
सबको गुस्से से हिला देती है
अपना जलवा दिखा देती है
फ़िर आंधी तो बस आंधी है .
बारिश का सीजन आ गया है और अँधियो का दौर शुरू हो गया है . बरसात के पहले आंधी ही बारिश की बूंदों के आगमन की पूर्व सूचना सभी को देती है . बहुत कम कवि हुए है जो अपनी कविता मे बारिश का जिक्र भरपूर करते है पर आंधी का जिक्र नही करते है . आपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी भाई आनंद आ गया . आभार
कितने नीड़ बिखर जायेंगे
तुम करनी पर पछताओगे
आँधी को क्या फ़र्क पड़ेगा
आदत से न बाज आयेगी
सही लिखा समीर जी आपने ..गुस्सा और बिना सोचे समझे किया गया कार्य तेज आंधी की तरह ही नुकसान देता है अच्छे लगे आपके विचार इस रचना में
शानदार कविता है. वाह-वाह करते ही जाएँ..
baat behad pravah mayee hai
आँधी तेज हवाओं वाली
आँधी धूल गुबारों वाली
आँधी नफरत की वो काली
आँधी हठ उन्मादों वाली.
समीर लाल की चार लाइनें बिलकुल सटीक बैठतीं है
खूबसूरत कविता
जबर्दस्त,बहुत खूब!
बहुत सुंदर कविता, कविता के भाव के क्या कहने...बहुत सुंदर समीर जी.
आंधी तो आंधी होती है, सरजी हमने कब इनकार किया।
जिसने आपको सशरीऱ भौतिक रुप से देखा हो, वह आपकी किसी बात से कैसे इनकार कर पायेगा। पंगेबाजजी इस बयान के अपवाद हैं।
अब आप हमे रोज कन्फ्यूज़ करे दे रहे है.....एक से एक कविताएं निकाल रहे है ...पूछिये मत .....पर ये आंधी अभी बहुत जगह चलनी बाकी है.......फिलहाल रजिस्थान मे है......
आँधी तो आँधी होती है
गुस्से में आपा खोती है
इसको तुम मत राह दिखाओ
बेकाबू यह हो जायेगी.
बिल्कुल ठीक कहा आपने... जरुरत है तो बस आंधी को राह से भटकाने की... नहीं तो वो तो आंधी है !
वाह, मुझे तो नीरज की कविता की पंक्तियां याद आ रही हैं -
आंधियां चाहे उठाओ
बिजलियां चाहे गिराओ
जल गया है दीप तो अंधियार ढ़ल कर ही रहेगा!
आँधी तो आँधी होती है
गुस्से में आपा खोती है
इसको तुम मत राह दिखाओ
बेकाबू यह हो जायेगी
मासूमों को ग्रास बना कर
अँगड़ाई ले सो जायेगी
लेकिन क्या तुम सो पाओगे
क्या तुमको नींद कभी आयेगी.
आँधी के माध्यम से बहुत गहरी बाते आपने पंक्तियों में प्रस्तुत की हैं। बहुत अच्छी रचना की बधाई स्वीकार करें...
***राजीव रंजन प्रसाद
अब आँधी तो आँधी है, नहीं जानती..मगर मनुष्य़ क्यों अँधा बना हुआ है?
वाह! पढ़ते हुए ज़ुबान से बार बार 'अश अश' निकलता है।
अच्छी है.
आजकल तो आधियों का आलम है , इधर लखनऊ मे रोज आती जाती आँधी और उधर आप भी आँधियों का जलवा मारे हैं :)
आँधी तो आँधी होती है
गुस्से में आपा खोती है
----- gussa hi to hai jo tabahi ke kagar par laakar khada kar deta hain. aapki ek ek rachna gehra arth lekar kuch sandesh de jaati hai.
समीर जी
आप की रचनात्मक क्षमता चमत्कृत करती है...ग़ज़ल, गीत और गध्य...जो भी आपने लिखा है कमाल लिखा है...ये समसामयिक रचना भी उसी श्रेणी है...बधाई
नीरज
सुन्दर ....
सागर तट से उठती आँधी
मज़हब से जो भड़की आँधी
बस्ती बस्ती घूम घूम कर
नॄत्य मौत का करती आँधी.
आँधी तो आँधी होती है
गुस्से में आपा खोती है
इसको तुम मत राह दिखाओ
बेकाबू यह हो जायेगी
bilkul sahi sachhi baat kahi,bahut badhai
बहुत सुन्दर, बहुत सुन्दर वालों के बह्कावे में मत आओ समीर दिनेशराय द्विवेदी जी क्या कह रहे है उसे भी सुन लेना, "लेकिन कविता का स्ट्रक्चर सुधार चाहता है।"
Aandhi ab wo nahi jo hawaon men dhool ke kan lekar udati hai ab to aandhi wo hai jo burai ke roop men samaj ko titar bitar kar rahi hai.
बहुत खूब समीर जी।
sameer ji..yah aandhi abhi aur na jaane kitni kavitayon ko janam degi.....agar aap ki kalam se nahin to kisi aur ki kalam se[jaise ki haal hi mein---'bawal ji' ne likhi thi ek ghazal....]
*bahut khuub bhaav hain...badhayee
आपको मैं पसंद करती और आपकी फोटो में दिखती पेटू को बही. मला ज्यास्ती हिन्दी नको येते. लेकिन आपसे एक बोलाब्ने का है-
यूँ गुडी-गुडी बने रहने से कस्टमर और नखरेवाली का भला नहीं होने का.
मंजिलें तो प्राइवेट पायी जा सकतीन, लेकिन सोसाइटी का बेटर नहीं होने का.
आंधी बडी ही भयानक होती है जब ये फिल्म के रुप में इंदिरा गांधी के जमाने में रिलीज हुइ थी ..एक बडी राजनीतिक आंधी आ गइ थी ..फिल्म को बैन कर दिया गया था ..वाह वाह आपकी आंधी खूब पसंद आइ ..खैर आप भी तो उडनतस्तरी है आंधी से बचकर उडान भरियेगा ..साधुवाद अच्छी रचना के लिये...
wah sameer ji, wah
अच्छे हैं उमड़ते घुमड़ते ख्याल.
प्रेम करो सब से, नफरत न करो किसी से. विश्वास करो सब कुछ ठीक हो जायेगा. आंधी रुक जायेगी. शान्ति छा जायेगी.
आपकी कविताऍं संवेदनशील बनाती है। अब नियमित मिलना होगा आपसे।
आंधी .......आ गयी थी ...उड़ा कर दूर पटक दिया उसने ...
आपके "नीड़" तो उखड गए लेकिन इस नन्ही जान का क्या ??
जिसे आंधी ने उखाड़ तो दिया लेकिन जीने के लिए छोड़ गयी ........ :(
पंक्तियाँ सटीक बैठाते हें .....फुरसत मिले तो हमें भी ये गुर सीखा दीजियेगा ...
और आपके बन्दर महाराज हास्य वाला प्राणायाम खूब कराते हैं ..अपने दोस्तों के सुपर हीरो बन बैठे हैं ...सूचना उन तक भेज दीजियेगा ..कुछ आटोग्राफ लेने हैं ....और दूसरों की पूँछ कैसे खींचे ...ये भी सीखना है ...:)
Padhke yaad aaya ek geet,"chalo jhoomte sarse baandge kafan,lahoo mangtaa hai zameene watan,kaheenpar bagoole kaheen aandhiyaan,are mit na jaaye hamaaraa chaman..."
Kya mai apnee ek kavitaa yahanpe post kar saktee hun??Krupayaa bataayen...mujhe badee khushee hogee!!
Shama
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