सोमवार, मई 19, 2008

पी गये उधार में...

जिस किसी ने भी जीवन में कभी इश्क में चोट खाई हो या किसी को खाते हुए देखा,पढ़ा या सुना हो, उन सभी को आमंत्रण है. आईये, आईये-महफिल सजी है. गज़ल चल रही है, सुनिये. दाद दिजिये, हालात पर थोड़ा दुख जताईये और महफिल की शोभा बढ़ाईये. बाकी बचे भी आमंत्रित हैं. कुछ अनुभव ही बढ़ेगा. ऐसी द्विव्य बातें और महफिलें बार बार तो होती नहीं.

वैधानिक चेतावनी: थोड़ा मार्मिक टाईप है. आँख से अश्रुधार बह सकती है, रुमाल ले कर बैठें. वरना क्म्प्यूटर के कीबोर्ड में आँसू गिरने से शार्ट सर्किट हो सकता है. :)

तब अर्ज किया है:

सो गया मैं चैन से




रात भर दबा के पी, खुल्लम खुल्ला बार में
सारा दिन गुजार दिया बस उसी खुमार में

गम गलत हुआ जरा तो इश्क जागने लगा
रोज धोखे खा रहे हैं जबकि हम तो प्यार में.

कैश जितना जेब में था, वो तो देकर आ गये
बाकी जितनी पी गये, वो लिख गई उधार में.

यों चढ़ा नशा कि होश, होश को गंवा गया
और नींद पी गई उसे बची जो जार में.

वो दिखे तो साथ में लिये थे अपने भाई को
गुठलियाँ भी साथ आईं, आम के अचार में.

याद की गली से दूर, नींद आये रात भर
सो गया मैं चैन से चादर बिछा मजार में.

हुआ ज़फ़र के चार दिन की उम्र का हिसाब यूँ
कटा है एक इश्क में, कटेंगे तीन बार में.

होश की दवाओं में, बहक गये समीर भी
फूल की तलाश थी, अटक गये हैं खार में.

-समीर लाल ’समीर’


चित्र साभार: जोश डाट कॉम का. Indli - Hindi News, Blogs, Links

38 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

खिले गुलशन-ए-वफा में गुल-ए-नामुराद ऐसे
ना बहार ही ने पूछा ना खिज़ां के काम आये

तेरे वादे से कहाँ तक मेरा दिल फ़रेब खाये
कोई ऐसा कर बहाना मेरा दिल ही टूट जाये

मैं चला शराबखाने जहाँ कोई ग़म नहीं है
जिसे देखनी हो जन्नत मेरे साथ-साथ आये

DEEPAK NARESH ने कहा…

वाह लाल साहेब मजा आ गया... ये तो आपने जमाने के मारे लोगों के दर्द को जुबान दे डाली...नीचे की लाइन पढ़कर तो मौज आ गई..
वो दिखे तो साथ में लिये थे अपने भाई को
गुठलियों भी साथ आईं, आम के अचार में.

उन दिनों जब शेरो-शायरी की गर्दन उमेठा करते थे तब का एक शेर याद आ रहा है मौका औ दस्तूर दोनों है तो वो भी पेश-ए-खिदमत है...

बाद मरने के मेरी कब्र पर आलू बोना,
ताकि महबूब मुझे भूनकर भुरता खा ले

मजा आ गया, वाह...

अनूप शुक्ल ने कहा…

सही है। आपकी फोटॊ सबसे शानदार है। :)

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

कैश जितना जेब में था, वो तो देकर आ गये
बाकी जितनी पी गये, वो लिख गई उधार में.


अरे वाह! यह तो आधुनिक निराला हैं (जो जेब खाली कर देते थे करुणा में) या हरिवंशराय (मधुशाला खातिनाम)। एक एक शेर से प्रतिभा का प्याला छलक रहा है। हमें भी लिखना सिखा दीजिये शेर!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

न जाने क्यू ऐसे
आशिक पिया करते है
आदत बुरी अपनी को,
बदनाम किया करते हैँ

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

बमुश्किल तो खुला है ब्लॉग
फूली है इतना कि
स्क्रीन में नहीं समा रहा है ब्लॉग
ब्लॉगस्पॉट भी है धराशाही,
चुन चुन कर खोल रहा है ब्लॉग

विजय गौड़ ने कहा…

रात भर दबा के पी, खुल्लम खुल्ला बार में
सारा दिन गुजार दिया बस उसी खुमार में
वो "मधुशाला वाले" भी ऎसे ही कहते रहे, पर एक दिन मालूम हुआ, भय्यन छूते ही नहीं.
आपका मामला भी कहीं यूंही खाली-पीली तो नहीं. देख लें पकडे जा सकते हैं.

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

हुआ ज़फ़र के चार दिन की उम्र का हिसाब यूँ
कटा है एक इश्क में, कटेंगे तीन बार में.
wah kya baaaat hai. mazaaa aa gaya bandhuvaram

bhuvnesh sharma ने कहा…

वाह वाह...महफिल जमाये रहिए.

रंजू भाटिया ने कहा…

गम गलत हुआ जरा तो इश्क जागने लगा
रोज धोखे खा रहे हैं जबकि हम तो प्यार में.


वाह वाह :)रुमाल भीग गया ..बहुत खूब लिखा है समीर जी :)

बेनामी ने कहा…

wah wah bahut hi umda gazal ki peshkesh hai.

डा. अमर कुमार ने कहा…

वाह, समीर भईय्या !
मुझको सुलाकर इतनी अ्च्छी रचना ठेल दी ।
छौ ठो वाहवाहबाज भी गुज़र गये यहाँ से , लेकिन..

हमरा विरोध भी दर्ज़ कीजीए, इहाँ । बार का पेमेन्ट हम
कीये अउर हमरा नाम एक्को लाइन में नाहिं है,
काहे ?

ALOK PURANIK ने कहा…

कातिल अकबराबादी, जो कभी कभी आलोक पुराणिक की आत्मा में घुस कर शायरी करते हैं, ने कुछ यूं कहा है-

लगता हैं विकट ठलुए हो रे हैं इन दिनों
जाओ हो जो तुम रोज गली आफ यार में

इस उम्र में उतरा है जो तू इश्क पे समीर
ठुकना भी पड़ै है भौत बुढ़ापे के प्यार में

उनका तो हुस्न है बहुत ही है वैल्यू वाला
तुझसे मिले हैं खूब रुपये के चार में

ये खेल है अजब, औ मर्तबे भी हैं गजब
असली तो मजा आवै है पिट कर हार में

जमाये रहिये।

कुमार आलोक ने कहा…

huzur yoon samajh lijiye ki meraa kalejaa mooh ko aa gaya...
main badnaam hoon ya mujhe may aur maykhane ne neknaamiyon aur badgumaani ki dher saari saugaat dee hai....arze karenge shaayar smraat sameer sahab....

zahid sharab peene se kaafir banaa main kyon ?
kya ek chullu panee main imaan bah gaya....
maza aaya lal sahab yoon hi ham jaise sharaabiyon ki hoslaa- aafjaai karte rahe...

संजय बेंगाणी ने कहा…

बहुत खूब...बहुत दिनो बाद असली रंग में लौटे है...मौसम और माहौल का असर दिखे है :)

डॉ .अनुराग ने कहा…

लीजिये एक ओर धांसू कविता मय की बोतल लिए आ गई ....ओर ऐसा पोज़ ...की बस पूछिये मत....गिरे पड़े ही सारी कहानी सुना दी..........उफ़ ये रुमाल कहाँ गया ?

mamta ने कहा…

अच्छा हुआ जो आपने रुमाल साथ रखने की चेतावनी दे दी थी वरना तो आज गजब ही हो जाता माने शॉट सर्किट। :)

Ghost Buster ने कहा…

पड़ गए समीर जी जो बार घर के प्यार में
मस्त रात भर बहे दारु की तेज धार में.

क्या मशक्कतें हुईं, वो भाभीजी बताएंगी,
कि लठ्ठ तोड़ना पड़ा, खुमार के उतार में.

हमारी राय में तो इन्हें डोज पूरा दीजिये,
ये वो शगल नहीं जो छूट जाए एक बार में.

है लत बुरी इसे तो दूर से प्रणाम कीजिये,
घसीटते हैं सायकल, चलते कभी जो कार में.

बहुत हुआ ये लेक्चर, जरा बौट्ली तो पास कर,
रहते हैं बकते 'घोस्ट बस्टर' यूं ही बस बेकार में.

राजीव रंजन प्रसाद ने कहा…

वाह वाह!!

अच्छा हुआ आपने वैधानिक चेतावनी दे रखी थी :) सचमुच शार्तसर्किट का खतरा था :)

***राजीव रंजन प्रसाद

कुमार आलोक ने कहा…

vah vah janab maza aa gaya bahut badnaam hai ham insaano kee mehfil main lekin aabad hai piyakkado ki colony main ....aap ke madhushaala ko padhkar mera man bhee shayrana ho gaya....
zahid sharab peene se kaafir banaa main kyon ..
kya ek chullu panee main iman bah gaya ?

Sanjeet Tripathi ने कहा…

धांसू है!

नीरज गोस्वामी ने कहा…

वो दिखे तो साथ में लिये थे अपने भाई को
गुठलियाँ भी साथ आईं, आम के अचार में.
समीर जी
भाई बहुत खूब. आप की ग़ज़ल की तुक में एक शेर अर्ज़ है:
पी गए बैरल पे बैरल फ़िर भी देखो हाल ये
कुछ कमी होने ना पायी इस टपकती लार में
नीरज

pallavi trivedi ने कहा…

समीर जी..इतना मार्मिक भी न लिखा कीजिए!रूमाल रख के बैठे फिर भी कीबोर्ड गीला हो ही गया..अभी सुधरवाने डाला है!हा हा...

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

मेरी ओर से भी वाह-वाह!

समयचक्र ने कहा…

सो गए चैन से हम,
पी गए उधार मे
क्या कहने बहुत बढ़िया
पढ़ रहे है हम उधार मे.
आपकी कविता नए परिवेश मे बहुत बढ़िया लगी . आनंद अ गया
धन्यवाद

आशीष कुमार 'अंशु' ने कहा…

अंशु के दोहे
अच्छा जो देखन मैं चला अच्छा मिला ना कोई
जो दिल देखा आपना मुझसे भला ना कोई

अंशु इस संसार मे सबसे मिलिए जाय
ना जाने किस भेस मे पत्रकार मिल जाय

जला है आलू का पराठा जहा आलू भी जल गया होगा
लगा रहे हो जो सौस का मलहम जुस्तजू क्या है

नेता अभिनेता दोउ खरे काके लागू पाए
बलिहारी नेता आपने जो अभिनय दिया सिखाय

जमीन पर आदमी है आसमान मे तारे है
जमीन के अन्दर जाकर देखो वह पानी ही पानी है
पानी ही पानी है

Abhishek Ojha ने कहा…

यहाँ तो अश्रुधारा से बाढ़ आ गई...

कटा है एक इश्क में, कटेंगे तीन बार में.

वाह ! इश्क में वैसे अक्सर कटता ही है :-)

Shiv ने कहा…

बहुत खूब, समीर भाई...बहुत बढ़िया शेर हैं.

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

बकौल चचा गालिब

गालिब छुटी शराब, मगर अब भी कभी कभी
पीता हूँ रोजे-अब्र, शबे-माहताब में
काटे हैं तीन आपने दिन यों तो बार में
चौथे को छोड़ आये क्यों इश्क-ए-हिसाब में ?
खालेंगे अगर गुठलियाँ आचार के जो साथ
आयेगा और कुछ मजा खाना खराब में

Unknown ने कहा…

भाई जी - इस का आनंद "मग"न हो कर लिया - [ कसम से ... हि..क्क :-)] छा गए मई के महीने में -
"यों चढ़ा नशा कि होश, होश को गंवा गया / और नींद पी गई उसे बची जो जार में." vaah - सादर - manish

बेनामी ने कहा…

समीर भाई बहुत बढ़िया आपने तो मुझ जैसे सूफ़ी आदमी को भी मदहोश कर दिया। देखिए खरबूजा खरबूजे को देख रंग बदलता है..। जमे रहिए

सुमन कुमार घई

निशान्त ने कहा…

क्या समीर बाबु बड़ा दर्द छुपा रखा है....
ग़ालिब नहीं तो कम-से-कम टिनअहिया (भोजपुरी: टूटपुन्जिया) ग़ालिब तो जरूर बन गए. लगे रहिये बड़ा मज़ा आया. सिनेमा में ट्राई कीजिये. :)

Ila's world, in and out ने कहा…

वो दिखे तो साथ में लिये थे अपने भाई को
गुठलियों भी साथ आईं, आम के अचार में.

हा, हा, हा---.रूमाल तो भीगा ही, दिल्ली की इस लगातार बारिश के दौरान आपके बब्बर शेरों ने पकौडों का काम किया.

samagam rangmandal ने कहा…

आपने एक पोस्ट क्या लिखी,मयखाना बन गया,मय और समीर जी को चाहने वाले बहूत है। हम भी दो शेरो से उपस्थिति दर्ज करता हूँः

१."गिलासो में जो डूबे ,उभरे न जिंदगानी में,
हजारो बह गए इन बोतलो के बंद पानी मे"

लेकिन जनाब मानता कौन हैः

२."पाल ले एक रोग नादाँ जिंदगी के वास्ते,
सिर्फ सेहत के सहारे जिंदगी कटती नहीं"

Kirtish Bhatt ने कहा…

वाह!
वाह!वाह!
वाह!वाह!वाह!वाह!
भौत मज़ेदार हैं सरजी .......

मीनाक्षी ने कहा…

आपकी महफिल में दाद और दुख दोनों जताते हैं अपनी इन दो लाइनों के साथ ......
उन्हें जाते जो देखा बार-बार बार में
बहते गए हम आसुँओं की धार में ..!

आशु ने कहा…

समीर भाई ,
बहुत बढ़िया ..आप की कविता मस्ती और दर्द के एहसास से सराबोर है ..मुझे वोह साहिर लुधिआनवी साहिब के मशहूर हम दोनों फ़िल्म के गाने लाईनों की याद आ गयी ॥

बर्बादियाओ का सोग मनाना फिजौल था
बर्बादियाओं का जस्न मनाता चला गया

जो मील गया उसी को मुकद्दर समझ लिया
जो खो गया मैं उस को भुलाता चला गया

Reetesh Gupta ने कहा…

वो दिखे तो साथ में लिये थे अपने भाई को
गुठलियाँ भी साथ आईं, आम के अचार में.

वाह-वाह लालाजी ...बहुत सुंदर ...महफ़िल भी कमाल है भाई.....बधाई