मंगलवार, मई 13, 2008

सहायता चाहिये पर सहायताओं से गुरेज

सहायता (ऐड) चाहिये पर सहायताओं (ऐड्स) से गुरेज, हद है!

बचपन में घर पर एक कहावत सुना करते थे-इतना ज्यादा मिठाई भी मत खा लो कि मीठा कड़वा लगने लगे.

अब देखिये न, एक जमाने में अमेरीका का खास आदमी. सहायता(Aid) पर सहायता(Aid) मांगे और जब यही बात बढ़ी तो ऐड्स -AIDS (सहायता का बहुवचन सहायताओं का अंग्रेजी) से डर गया. उस जमाने में तो जो मांगा सब मिला. डालर पर डालर. मिसाईल पर मिसाईल और WMD (वेपन ऑफ मास डिस्ट्रक्शन). खूब ईरान पर हमला किया. बड़े भईया जी अमरीका से सपोर्ट का टेका लगाये रहे. जो मर्जी आई, करते रहे. धाँये..धाँये खूब बम दागे, क्यूँ?

फिर बड़े भईया की नजर तेल के कुंए पर पड़ गई. अब लो, वो तेल तो उनको चाहिये. बस, नाराज हो लिए. कुवैत से दोस्ती गढ़ ली. वो बन गये नये पिट्ठू और तुम अपने मूँह मियाँ मिट्ठू. इसीलिए बुजुर्ग, पठानों और गुण्डों से उधार और मदद लेने से मना करते थे कि कब न बात उलट जाये. ये किसी के सगे नहीं होते. इन्हें तो बस अपना वर्चस्व फैलाना होता है, उसी ध्येय से मदद करते हैं और इसीलिए उधार भी देते हैं कि न लौटा पाओ और उनकी गुलामी करो. मगर सद्दाम ने कब बुजुर्गों की सलाह मानी. जो मन में आया-किया. लो, फिर भुगता न!! यही तो है, जब खुद बुजुर्ग हो लेते हो, तब बुजुर्गों की सलाह याद आती है. मगर, तब तक तो देर हो चुकी होती है. बस, पछतावा रह जाता है.

सब राज पाट छिन गया और चूहे के बिल से पकड़ाये. जेल और फिर फाँसी.

भारत होता तो हमारे राष्ट्रपति जी माफ भी कर देते तुम्हारी फाँसी. पूरी योग्यता तो थी-एक तो मुसलमान और उपर से डिक्लेयर्ड आतंकी. फिर कैसे न माफ होती? बस एक कमीं थी कि तुमने भारतियों को नहीं मारा फिर भी चलेगा. इतनी नन्हीं बात पर भारत ध्यान नहीं देता या यूँ कहें कि ध्यान नहीं जाता. और बड़े बड़े मुद्दे पड़े हैं सोचने को.

मगर बाबू, वो अमरीका है, यूँ ही नहीं माफी मिलती. समझे!!

Saddam

कल सद्दाम की डायरी के पन्ने पढ़ता था. मात्र ६ या ७ पन्ने रिलिज किये हैं अमरीका ने और हमने उसमें से मात्र ३ लाईनें पढ़ी.

सद्दाम कहते हैं कि मुझे जेल में इस बात का डर लगता है कि मुझे कहीं ऐड्स न हो जाये.

(हम्म!! क्यूँ भाई, ऐसा क्या इन्तजाम हो लिया जेल में कि ऐड्स का खतरा मंडराने लगा. बोलो, बोलो!! कहीं वो फाँसी को स्टेजड ड्रामा बताने वाली बात सच तो नहीं कि तुम्हारी फाँसी हुई न हो, किसी और को टांग दिया और तुम अमरीका की मेहमानी काट रहे हो अपने पुराने संबंधों के चलते और फिर अमरीकी मेहमानी वो भी शासकीय-ऐड्स का खतरा तो स्वाभाविक है और डर भी. मगर तुम किस बात से डरे?? ऐड्स से मरने से?? मरने से तुम डरो, यह मानने को दिल नहीं मानता. जो आदमी बिना मूँह ढ़कवाये खुली आँख फाँसी का फंदा गले में डलवा के झूल गया हो, वो मरने से डरे?? ह्म्म. कौन मानेगा?? फिर ऐड्स से कैसा डर? तुम्हें तो यूँ भी फाँसी घोषित हो ही चुकी थी. मरना तो है ही ऐसे भी और वैसे भी, फिर डर कैसा?? न न!! कोई और बात है..आगे पढ़ता हूँ.)

आगे लिखते हैं कि मैने कई बार इन अमरीकी जवानों को मना किया कि तुम अपने कपड़े उस डोरी पर मत सुखाया करो जहाँ मेरे कपड़े सूखते हैं. तुम जवान हो, तुम्हें जवानों वाली बीमारी होगी. तुम्हारे इस तरह सेम डोरी पर कपड़े सुखाने से मुझे भी ऐड्स हो सकती है, मगर मानते ही नहीं.

(हा हा!! वो क्या, कोई भी नहीं मानेगा कि डोरी से ऐड्स हो गया सद्दाम साहब को. मगर भाई, बहाना सालिड खोजा है. बहुत खूब. साधुवाद ऐसी सोच को. मान गये. धोबी या धोबन से ऐड्स लग गया तो समझ में आता है, है तो वो भी बदनामी की वजह, मगर कपड़े सुखाने वाली डोरी से ऐड्स-गजब भाई गजब!!! एक चीज तो सही सोची कि अमरीकी जवान सैनिकों पर बात सरका दो. वो सही है. एक तो अमरीकी, फिर जवान, फिर सेना मे और उन सब के उपर-ईराक में पोस्टेड- स्वाभाविक सी बात है-ऐसी बीमारी उन्हें पकड़ ले-मगर उनके कपड़े जिस डोरी पर सूखें उससे तुम्हें पकड़ ले ऐड्स तब तो गजब ही हो लिया. कौन मानेगा-हर जगह थू थू कि लो इस बुढ़ापे में न जाने क्या कर डाला कि ऐडस ने पकड़ लिया. हम तो खैर भारत से हैं जहाँ तुम्हारी उम्र के लोग तो अगर गलत नजर से लड़की को देख भर लें तो पूरा मोहल्ला थूके कि छी छी, कम से कम उम्र का तो ख्याल किया होता. ऐडस को तो कोई न टॉलरेट करे इस उम्र में.पूरे मोहल्ले में पिटते घूमते!!)

सही है गुरु, सही बहाना निकालने की कोशिश की है. नतमस्तक हैं तुम्हारी सोच पर. दिमाग के तो तेज हो, तभी तो इतने समय अड़े रहे. हमें तो डाऊट है कि तुम अमरीकी मेहमानी अब भी काट रहे हो और वो फाँसी पर तुम्हारा डुप्लीकेट लटक लिया है. डाऊट बस है, सच तो तुम, तुम्हारे बड़े भईया अमरीका वाले मौसेरे भाई और तुम्हारा खुदा जाने!!! यह भी हो सकता है कि अमरीका ने तुम्हें मारने से पहले, जैसे बकरे को हलाल करने के पहले खूब खिलाते पिलाते हैं, तुम्हारी मेहमान नवाजी तबीयत से की हो और तुम बाद में घबरा गये हो कि कहीं मरने से पहले ऐड्स वाली बदनामी न हो जाये तो यह सब डायरी में लिख गये हो.

क्या सच-क्या झूठ. हमें तो पता नहीं. हम तो सिर्फ सोच और लिख सकते हैं और मुशर्रफ जी को सलाह दे सकते हैं कि संभल जाओ या फिर एक डायरी खरीद कर लिखने की प्रेक्टिस करो ताकि उस वक्त बहाना सही बन पड़े.

अगर इत्ते बड़े गुंडों से सहायता (ऐड) ले रहे हो तो सहायताओं(ऐड्स) से गुरेज न करना!!! वैसे अमरीका में पैकेज डील का प्रचलन है-ऐड के साथ ऐड्स भी-पैकेज डील ही कहलाई.

बता दे रहे हैं ताकि बाद में न कहना कि बताया नहीं.


नोट: अगर कहीं सच में जिन्दा हुआ तो हमारा तो यह आखिरी आलेख ही समझो. छोड़ेगा थोड़ी गुगल ट्रांसलेटर से पढ़कर. क्या चीज बनाई है हिन्दी से अंग्रेजी या कितनी ही भाषाओं से कितनी ही भाषाओं में ट्रांसलेट कर पढ़ने के लिए. Indli - Hindi News, Blogs, Links

30 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

अगर आपकी रचनाएँ जैसी मिठाई मिले तो हम तो भइ कड़वी लगने तक क्या बदहजमी हो जाने तक भी खा लेंगे!

अनूप शुक्ल ने कहा…

सद्दामजी पढ़ रहे होते तो नाराज तो हो ही जाते। है न!

पंकज सुबीर ने कहा…

इसे देशी भाषा में कहते हैं कि गुड़ खाना और गुलगुलों से परहेज़ करना या कि अंगूर खाना और अंगूर की बेटी से परहेज़ करना । खैर अब तो कोई डर नहीं है क्‍योंकि सद्दाम भाई जान तो अब गुजर चुके हैं । और हां गूगल ट्रासलेशन की तो अपने खूब कही मैं दो दिन से परेशान हूं मैं गुछ और लिखता हूं ये कुछ और बताता है / अनूप जी को टिप्‍पणी में देख कर अच्‍छा लगा अनूप जी भी मेरी तरह ब्‍लाग जगत में विल्‍ुप्‍त प्राय नजर आ रहे हैं ।

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

उम्‍दा लेख

समयचक्र ने कहा…

आपने पैकेज डील और एड्स डील के बारे बता कर एड्स से सतर्क रहने की सलाह दे दी है . भगवान ने एड्स वाइरस ऐसा बनाया है कि एड्स महोदय हर जगह घुसपैठ करने लगे है देखिये आपकी पोस्ट मे एड्स महोदय ने घुसपैठ कर ली है . हा हा हा

राजीव रंजन प्रसाद ने कहा…

वाह समीर जी,

आपकी भाषा कि मुस्कुराते हुए पढिये और कश्मकश में उलझ जाईये..

***राजीव रंजन प्रसाद

डा. अमर कुमार ने कहा…

दद्दा,
ज़नाब सद्दाम साहब की यही गलती तो उन्हें ले डूबी ।
यह अमेरिकी प्रोपेगंडा की सफलता है, जो एड्स के
ज़िन्न को खड़ा करके पूरी दुनिया को ताबीज़ बाँटने
वाला मौलवी बना बैठा है ।
यह डायरी के पन्ने भी इसी
का हिस्सा हैं । बतलाय रहे हैं, देखो,सद्दामौ डेराय गये
तो तुम्हरी क्या बिसात ?

सद्दाम चच्चू, मौत से नहीं बल्कि एड्स से डेराय गये ।
शोले नहीं देखिन था, गब्बरवा बोलिस था कि जो डर
गया सो मर गया ।

परवेज़वा तो ढीठ है, सच्ची का एड्स लिये बैठा है, अउर
मुस्कियाय रहा है,हमार कोऊ का करिहे । छोड़िये, ज़्यादा
लिखेंगे तो एक पूरी पोस्टिया यहीं बन जायेगी ।
मेरा सलाम क़बूल करिये कि आपने बात छेड़ दी ।
हमको अब बहुत दूर तलक जाना पड़ेगा ।

रिपुदमन पचौरी ने कहा…

hi ....
kidhar hain itne dino se ?
mail keejiye bhaai ...

rakhshanda ने कहा…

एकदम सही कहा आपने,यही सच्चाई है ,बहुत जालिम सच्चाई

ALOK PURANIK ने कहा…

भई वाह वाह है जी।
सुबह आपकी रचना पढ़ लेता हूं तो रात तक शुगर लेने की जरुरत नहीं होती।
जमाये रहिये जी।

Shiv ने कहा…

अरे समीर भाई क्या कह रहे हैं. अगर वे जिंदा रहे तो ये आपका आखिरी आलेख होगा...नहीं-नहीं..ऐसा हो नहीं सकता. अगर वे जिंदा रह गए हैं तो उन्हें भारत बुलाकर (या फिर वहीं कनाडा में ही) हिन्दी सिखाई जायेगी...और फिर उनका एक चिटठा...

सोचिये, क्या-क्या पढने को मिलेगा...हम तो अभी से खुश है कि वे ज़िंदा हों...:-)

Pankaj Oudhia ने कहा…

हल्के अन्दाज मे भारी बाते कह दी है आपने इस फिरंगी मर्ज के बारे मे।

संजय बेंगाणी ने कहा…

अमेरीका पास ही है, नराज हो गया तो आपको डायरी लिखनी पड़ सकती है. :)

मगर इस बार साधूवाद की खोल से निकल कर साफ साफ लिख गये. बहुत खुब. आनन्द आया.

डॉ .अनुराग ने कहा…

दरअसल अमेरिका इतना घटिया सोच वाल देश है की क्या मालूम क्या कर दे ? बुश के सलाहकार पता नही कौन है आजकल उन्हें भारत के लोग पेटू दिख रहे है .....उडीसा और पूरे देश मे कितने बच्चे भूखे ओर कुपोषण के शिकार है, वैसे भी भैय्या जिसे ९ / ११ डाकूमेंट्री देखि हो वो बुश या अमेरिका किसी पर यकीन नही करेगा.......आजकल तो जिसकी लाठी उसकी भैंस......

mamta ने कहा…

अब जब आप लिख ही दिए है तो डर काहे का। :)

Abhishek Ojha ने कहा…

वाह, शब्दों को पकड़ना कोई आपसे सीखे... वैसे मुशर्रफ साहब को ऐसे खुले में सलाह मत दिया कीजिये नहीं तो वो सहायतायें भिजवा देंगे तो दिक्कत हो जायेगी :-)

Unknown ने कहा…

एड और एड़्स के चक्कर में आपको फर्स्ट एड़ की जरूरत पड़ सकती है...सोचा है आपने...

बता दे रहे हैं ताकि बाद में न कहना कि बताया नहीं.

साधुवाद

Waterfox ने कहा…

वाह बुजुर्गवर :)

अजय कुमार झा ने कहा…

maharaj udantashtari jee,
kisi baat ko kaise faad faad kar chithraa kiya jaataa hai aap se seekhaa jaa saktaa hai, saddam kaa baapm bhee rafoo nahin kar saktaa. ego samasyaa hai sir ee bataaiye ee sasur tippnni hindi mein karne ke liye kaa karnaa hogaa.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

दूर की कौडी ,
ठीक निशाने लगाये हो
आप, समीर भाई ;-)

- लावण्या

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

सद्दाम....
हे मेरे राम...............
यदि अंत में नपुंसकता न दिखलाता,
तो एशिया का मर्द कहलाता.
लेकिन पट्ठा एड्स से डर गया,
तभी तो लटक ATAK कर मर गया....

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

आपको क्लासीफ़ाईड इन्फ़ार्मेशन लीक करने के लिये जिम्मेदार ठहराया जाता है . कानूनी कार्यवाही होगी आप पर और साथ ही आपको कानूनी एड्स भी मुहैय्या कराई जायेंगी. आपको अपने बचाव में जो कहना हो वह सहायतायें प्राप्त करने के पश्चात ही कह सकते हैं. आप लेना चाहें अथवा न चाहें कानूनी सहायतायें उपलब्ध कराना भी स्म्वैधानिक आवश्यकता है आप पर कानूनी कार्यवाही के लिये.

आपको ताकीद की जाती है कि आगे से अगर आपने क्लासीफ़ाईड सूचनाओं की गोपनीयता भंग करने की चेष्टा की तो आपको दी गईं सुरक्षा श्रेणियों से वंचित कर दिया जायेगा.

सूचना दी जा रही है ताकि सनद रहे और वक्ते-मुकदमा काम आवे

बेनामी ने कहा…

घबराईये नहीं ! वह जीवित नहीं होगा अगर जीवित होता तो अब तक बुश को भी एड्स हो चुका होता .... :)
और बुश भाई ,इस समय भारतीय थाली में न झाँक रहे होते बल्कि खुद की हेल्थ रिपोर्ट देख रहे होते .
गूगल अनुवादक की मत पूछिए ! मेरे अच्छे भले अधूरे सपने को तोड़ दिया ....लिखा है "Broken Dream "
male को female बना देता है " मनोज आज घर जा रही थी ".... :)

आनंद आया पढ़कर !

बेनामी ने कहा…

Nice Post !
Use a Hindi social bookmarking widget like PrachaarThis to let your users easily bookmark their favourite blog posts on Indian bookmarking services.

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

सददाम की डायरी के अंश रोचक हैं। और उसे आपकी शैली ने और ज्यादा मजेदार बना दिया है। बधाई।

HBMedia ने कहा…

सौलिड लिखा..

pallavi trivedi ने कहा…

एक सच्चाई को बड़े ही रोचक अंदाज़ में प्रस्तुत किया है आपने...

Dr. Chandra Kumar Jain ने कहा…

सहायता (ऐड) चाहिये पर सहायताओं (ऐड्स) से गुरेज,.........
=============================
क्या बात है !
एकदम नई सोच !
सहायताओं के असहाय कर्मियों को
इससे नया ज़ोश मिलेगा.
==========================
सच आपका अंदाज़ निराला है.
शुभकामनाओं सहित
डा.चंद्रकुमार जैन

सागर नाहर ने कहा…

वहाँ भी कपड़े डोरी पर ही सुखाये जाते हैं... ?
मैं तो समझे था कि यह भारत की खोज है! कुछ रोशनी डालें।

L.Goswami ने कहा…

समीर अंकल की जय हो.आप कमल का लिखतें हैं.अंकल आपका लिंक मैंने बिना आपसे पूछे मेरे अपनों की लिस्ट मे दे दिया है.आशा है आप नाराज नही होंगे