जबलपुर से निकले हफ्ता होने आया मगर वहाँ बिताये पल यादों में ऐसे रचे बसे हैं कि अब तक यहाँ सेट ही नहीं हो पा रहे है.
बहुत भारी मन से आज अपनी हाथ घड़ी में भारत का समय बदल कर कनाडा का किया तब लगा कि वाकई, फिर से बहुत दूर आ गये हैं. हालाँकि मौसम याद दिलाता है दिन भर और रात भर. आज सुबह भी ३ फिर दिन में ११ और शाम को ५ तापमान था.
आज जब शाम को टहलने निकला तो जैकेट पहनते बड़ा असहज महसूस हो रहा था. कहाँ सफेद झकाझक कलफी मगहर का सफेद खादी का कुर्ता पहनते ६ माह बीत गये और आज फिर अटक गये शर्ट पैण्ट और जैकेट, मफलर में.
आज से तो सोना/ जागना भी यहाँ के समयानुसार शुरु करना पड़ेगा तभी सोमवार से दफ्तर जाना संभव हो पायेगा.
खैर, यह तो होना ही था. करेंगे जब तक यहाँ है.
हाँ, इस बार होली मिलन पर जबलपुर में एक दावत रखी मित्रों के लिये. उसमें एक कव्वाली का कार्यक्रम भी रखा था. किन्हीं वजहों से उसकी रिकार्डिंग ठीक से नहीं हो पाई. जबलपुर के विख्यात कव्वाल लुकमान चाचा जिनके विषय में विस्तार से पंकज स्वामी ’गुलुश’ ने जबलपुर चौपाल पर लिखा था, के वारिस एवं मेरे परम मित्र श्री सुशांत दुबे ’बवाल’ ने पूरे चार घंटे समा बनाये रखा. १०० से अधिक उपस्थित लोग एकांगी बैठे उन्हें मन लगाये सुनते रहे, पीते रहे, झूमते रहे और फिर खा पी कर चले गये. वो शाम एक यादगार शाम बन गई. मौके का फायदा उठाया गया. बवाल को बीच कार्यक्रम में आराम देने के बहाने दो तीन कविताऐं ठेलने का असीम सुकून प्राप्त किया. मजबूरी में या खूशी से, सबने सुना. वाह वाह की. ताली बजाई. आखिर हमारे बाद बवाल को फिर से सुनना भी तो था. भागते कैसे?
उस दिन की कुछ तस्वीरें बाँट रहा हूँ.
और
और
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फिर चलने के एक दिन पहले बवाल को घर पर दावत में बुलाया गया. अकेले समा बना लेने की महारत रखने वाले बवाल नें बिना किसी साज के फिर तीन घंटे सबको अपने गायन से बाधें रखा. बड़े आनन्ददायी क्षण रहे. दो छोटे क्लिपस भी उस बैठक के यहाँ बांटता हूँ. कान में अब तक आवाज गुँज रही है- विरह रो रहा है, मिलन गा रहा है-किसे याद रखूँ, किसे भूल जाऊँ. सच, किस पल को याद रखूँ और किस पल को भूल जाऊँ.
और इसे भी सुनें:
एकदम पहली प्रस्तुति नेट पर. वर्जिन आवाज. आनन्द उठाईये और बताईये ताकि पूरे पूरे आईटम पेश किये जा सकें भविष्य में.
बवाल से काफी चर्चा हुई. उन्होंने भी अपने ब्लॉग का शुभारंभ कर दिया है. अब बात आगे बढ़ेगी-नींव रख दी गई है. जल्द ही आपको उनका और विस्तृत परिचय देता हूँ.
गुरुवार, मई 01, 2008
विरह रो रहा है, मिलन गा रहा है
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38 टिप्पणियां:
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी
आप तो एकदम झकाझक लग रहे हैं सफेद कुर्ते-पाजामे में। विरह गीत सुन नहीं पाया। सुनकर बताता हूं।
सही है। सुन्दर। कव्वाली अटक रही है। शायद नेट का लफ़ड़ा हो।
बहुत ही सुंदर यादे हैं यह संजो लेने लायक .आवाज़ कुछ साफ नही सुनाई दी पर जितना सुना अच्छा लगा :)शुक्रिया इसको यहाँ शेयर करने के लिए समीर जी !!
जबलइपुर ऐसई है । जो जाये सो याद कर कर के रोए , जो ना जाए सो सुन सुन के रोवै ।
आप ऐसा करो कनाडा में ही एक जबलपुर बसा लो ।
सप्लाई हम भेजते रहेंगे ।
mujhe achchaa lagaa kee aap vapas apane pados me aa gaye hai aur aapkee hindustaaan kee yaatraa itanee sukhad rahee.
ek blogger meet to America-canada ke northeast me bhee honee chaahiye.....
लुकमान चाचा की यादें ताज़ा कर दीं आपने ।
आकाशवाणी जबलपुर से बहुत सुनी हैं उनकी कव्वालियां । अगर मैं ग़लत नहीं हूं तो पन्नालाल श्रीवास्तव 'नूर' की एक ग़ज़ल जो क़व्वाली के तौर पर वो गाते थे । बहुत लोकप्रिय हुई थी ।
बोल याद नहीं आ पा रहे हैं ।
समीर जी, ये मिट्टी की खुशबू है. महकती रहेगी. वो भूली दासतां लो फिर याद् आ गयी.
bilkul saaf aur badhiyaa sunaayii diyaa..saadhuvaad..
सचमुच बवाल है आप के बवाल.. मज़ा आ गया सुन के!
"ये लौटेंगे कब और कहा जा रहे है.. "
वाह क्या सुनवाया है आपने सुबह सुबह.. दिन बन गया है.. बधाई.. कुछ और वीडियोस भी हो तो दिखवाएगा ज़रूर..
जमाये रहियेजी।
बहुत अच्छे चित्र हैं...मेरा दुर्भाग्य रहा कि आपके भारत-प्रवास के दौरान आपसे भेंट हो सकी..
***राजीव रंजन प्रसाद
शानदार प्रस्तुति...।
मजा आ गया सुन कर।
खासकर दूसरी प्रस्तुति तो बिल्कुल आप ही के लिये थी।
और सुनवाइये....
क्या भूलूँ क्या याद करूं ! ये असमंजस तो बना ही रहता है... जो याद करना है वो तो याद ही रहता है, जिसे भूलना चाहते हैं उसकी याद भी और मजबूत होती जाती है.
बवाल जी के परिचय का इंतज़ार रहेगा.
बहुत अच्छा लगा सुनकर,फोटोस भी बहुत अच्छी लगीं,सचमुच शेयर करने लायक थीं.थैंक्स सर
BAHUT DINO BAD AAPKE DARSHAN HUWE, KUCH DER UDAN TASHTARI ME BAITHNA NASEEB HUWA :)
SHUAIB
चन्द दिनो में वहाँ के माहौल के आदि हो जायेगें, बाकि यादों के सहारे....
हम तो भाई दिल्ली में रहते हैं. किसी ने कहा था - जीना तेरी गली में, मरना तेरी गली में. क्या कनाडा में सफेद झकाझक कलफी मगहर का सफेद खादी का कुर्ता पहनने पर पाबंदी है?
टिप्पणी मॉडरेशन सक्षम क्यों कर देते हैं आप लोग? अरे करने दीजिये न लोगों को टिप्पणी दिल खोल कर.
समीर जी थोडे दिन लगता हे आजीब सा, कहा शोर शराबा, घर की रोनाक, कभी यह आया, कभी वो आया, ओर फ़िर एक दम से बिलकुल सन्नाटा बिलकुल शान्ति. बिलकुल अकेला पन, यह हम सब के साथ होता हे, अब करे भी तो करे ? रहना भी तो हे, एक दो सप्तहा मे सब वेसा ही हो जाये गा जेसे पहले था, बाकी आप की यादो ने हमे भी उदास कर दिया,
चलिये आप के नाम एक उपहार.. हम ने आप के कहने पर ...अब आप सब ने साथ भी देना हे ओर राय भी.. यह रहा आप का तोहफ़ा..http://sikayaat.blogspot.com/
अभी बना रहा हु दो चार दिन लगे गे
युनूस भाई ने सई कहो - "जबलइपुर ऐसई है । जो जाये सो याद कर कर के रोए , जो ना जाए सो सुन सुन के रोवै । "
जल्दी सौ जबलइपुर बसाओ, हम आते है।
दो तीन कविताऐं ठेलने का असीम सुकून
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बवाल के बीच में लाल - क्या समा बन्धा होगा!
समीर भाई शानदार है ...बवाल तो सचमुच कमाल हैं..वाह!
आपने तो वाकई मजे लूट लिए ,कव्वाली कुछ अटक रही है अब भी..ओर इस कुरते पाजामे मे आप वाकई झकास लग रहे है......ऐसा लगता है एक दिन ब्लॉग की दुनिया आपकी कव्वाली सुनेगी......
sach mein kamal hai. share karne ke liye shukriya sameer ji.
जबलपुर के विख्यात कव्वाल लुकमान चाचा की परम्परा को उनके मेरी समझ से एकमात्र शिष्य श्री सुशांत दुबे जी आज भी जीवित रखे हुए है जो संस्काराधानी के लिए गौरव का विषय है .
जननी जन्मभूमि की यादे कभी स्मृति पटल से जाती नही है यह अमिट सत्य है हमेशा इनकी यादे दिलो मे उत्साह और उमंग का संचार पैदा करती है . बढ़िया आलेख प्रस्तुति के लिए आभार
दोनों ही प्रस्तुति शानदार रही... ठीक से सुन भी पाये। दूसरी तो बहुत ही अच्छी लगी...आगे भी प्रतीक्षा रहेगी...
समीर भाई ,
वतन से दूरी ही तो मिलन गा रहा है विरह रो रहा है " वाली बात हुई ना -
बवाल जी को सुनना अच्छा लगा -
- लावण्या
बहुत बढिया समीर भाई ।
बहुत सुंदर, आपकी ख़ुशी साफ झलकती है..
आम आदमियों का खास शहर आपकों भी मिस करता हैं.................
MAshaAllah!!! Samir ji aapne waqai bhavuk kar diya aapki iss post se!!! Aur hamari jigyasa aur badha dee kyunke hum July mahine mein Bharat ki yatra kar rahe hein :)
Aapki ye sari baatein reha reha kar yaad ayengi humein wahan bhi :)
bahut dino baad aana hua lekin bahut accha laga
Khush rahein sada
Fiza
बहुत झकास दीख रहे हैं।
मात्र भूमी को कभी भूला नही सक्ता कोई और कही से आने के बाद कुछ सूनहरी यादे पीछा नही छॊडती।
एकदम झकास लग रहे हैं
कुछ दीन लगेगा और धीरे धीरे यादे कम होती जाऎंगी पर फीर यादे वापस आ जाऎंगे क्यो की आप तो घूमते रहते हैं फीर ऎशे हजारो सूनहरे मौके आऎंगे की आप फीर जबलपूर का लूफत ऊठाते दीखेंगे।
काश ! कि दिलो-दिमाग भी घड़ी की तरह कनाडा के हिसाब से सेट किया जा सकता. ..खैर कुछ ही दिनों में सबकुछ सामान्य हो जाएगा...
समीर जी
दिल है कि मानता नहीं
और कम्बख्त दुनिया को देखता है
फिर भी जानता नहीं
सच कहूं ये दिल
जिस दिन दुनिया को जान जाएगा
उस दिन हमें
कोई नहीं
बहका पाएगा
कोई नहीं बहका पाएगा
आप वास्तव में
अभिव्यक्ति को पूरी शिद्दत से जीते हैं.
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लाज़वाब ! हर पोस्ट....हर बात !!
शुक्रिया
डा.चंद्रकुमार जैन
वाह भइ। मुज़े तो अपने बेटों के साथ आप सचमुच बडे बोस ही लगे।बीग बोस।
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