अफसोस कि दिल्ली नहीं गये. दिल्ली जाने के बाद भी दिल्ली नहीं गये. बस, फरीदाबाद गये. खुशी इस बात की कि पंगेबाज भाई अरुण अरोरा मिल गये. खाना उन्हीं के घर दबा कर खाया. भाभी जी एक उम्दा और बेहतरीन व्यक्तित्व की धनी हैं. इतना लज़ीज खाना खिलाया कि लंच के बाद के सारे काम टल गये. अगले हफ्ते फिर जाना पड़ेगा काम निपटाने. काम एक हफ्ते टल जाने का सारा दोष लज़ीज खाने पर डाला जा रहा है. मगर अगले हफ्ते की ट्रिप में दिल्ली जरुर जायेंगे और मित्रों से मिलेंगे, यह अभी से प्लान में है.
लौटते वक्त अपने गुरु राधा स्वामी श्री श्री अनुकुल जी महाराज के आश्रम देवघर, झारखण्ड गये. सारा दिन वहीं बिताया और बैजनाथ धाम के दर्शन का सौभाग्य भी प्राप्त किया. दर्शन करने टांगे से गये. घोडे पर क्या बीती, पता नहीं मगर मुझे मजा आया. बचपन की ढ़ेरों यादें घिर आई इस टांगा यात्रा के साथ. यादों ने साथ छोड़ा, पंडों को स्पेस मिली, उन्होंने घेरा. किसी तरह उन्हें ढ़केला तो समय खत्म हुआ और हम निकल पड़े जबलपुर की ओर. रास्ते में इलाहाबाद पड़ना था. ज्ञानदत्त जी से मुलाकात हुई. जैसा सोचा था उससे कहीं ज्यादा विनम्र और व्यवहारकुशल. अफसोस हुआ कि मुझे कम से कम से एक दिन इलाहाबाद के लिये रखना चाहिये था. हमने तो अपनी खुशी के लिये घोड़े की चिन्ता नहीं की तो ज्ञानजी के लिये क्या सोचें कि क्या वो भी चाहते थे कि हम एक दिन रुकें.
ज्ञानजी आये. पूरे ट्रेन में हमारी पूछ हो ली. सबने समझा कि या तो हम कोई मंत्री हैं या रेल्वे बोर्ड के मेंम्बर. हमारा मौन और मुस्कराह्ट सह यात्रियों से लेकर रेल्वे स्टाफ की अटकलों पर अपनी मोहर लगाता रहा और हम मुस्कराते रहे और बकायदा सम्मान पाते जबलपुर तक चले आये.
महाशक्ती परमेन्द्र प्रताप का भी इलाहबाद में मिलने का वादा था. फिर बाद में पता चला कि ट्रेन छूटने के बाद, गलत जानकारी की वजह से, वो हाँफते हुए पहुँचे भी और मुलाकात न हो पाई. खैर आगे कभी सही, फिर मुलाकात हो लेगी. वो अमरुद अपने बगीचे से लेकर आये थे. मैं नहीं खा पाया, हमेशा इस बात का रंज रहेगा जब तक की खा न लूँ.
न तो अरुण भाई से और न ही ज्ञानजी से, मिलन की उत्सुक्ता में ,कोई विशेष प्रयोजन पर बात हो पाई. बस, एक बिखरी सी बात ब्लॉगिंग, ब्लॉगिंग का भविष्य, आगे के प्लान आदि पर हल्की फुल्की चर्चा हुई.
दोनों ही जगह, गौरतलब, इस विषय पर अवश्य नजर डाली गई कि आखिर क्या वजह है कि एकाएक नव आगंतुकों की संख्या में कमी आई है. क्या कहीं प्रोत्साहन की कमी है या विस्तार को लेकर विशेष कार्य नहीं किया जा रहा है. है तो चिन्ता का विषय मगर मेरा मानना है कि इससे उबरा जा सकता है और हम सब को इस ओर प्रयासरत होना होगा. हर ब्लॉगर अगर माह में मात्र दो से तीन लोगों को नया ब्लॉग बनाने को प्रेरित करे तो चेन एफेक्ट में हिन्दी के विस्तार को एक नया आयाम मिल सकता है. बस, एक सजग प्रयास की आवश्यक्ता है.
बाकी का कल....
बुधवार, फ़रवरी 27, 2008
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31 टिप्पणियां:
चंबल क्षेत्र से कब गुजर रहे हैं जी........जब भी आसपास हों सूचित कीजिएगा.
समीर भाई, दिल्ली जाकर भी दिल्ली नहीं पहुंचे. यह तो अच्छा नहीं हुआ. कम से कम दिल्ली के लिए. लेकिन एक बात कहूँगा, अगर दिल्ली 'पहुँचना' है तो आप ज्यादा से ज्यादा समय जबलपुर में गुजारिये. उसके बाद दिल्ली 'पहुँचने' का मजा अलग ही रहेगा.....:-)
अगली कड़ी की प्रतीक्षा है.
बाकी तो सही है जी पर ये जरुर बताये कि आप दोनो जगह खुद कुरते पजामे मे (नेताओ वाले) मे रहे और यहा हमको तथा इलाहाबाद मे ज्ञान जी को अपनी जाकट पहना कर ही फ़ोटो क्यो खीची ..? क्या हमे और ज्ञान जी को भी भविष्य मे राजनीती मे लाने का इरादा है क्या जी..? ज्ञान दादा का तो पता नही हम तो तैयार है..:)
hmmm khub maje lute jaa rahen
हे भटकती? आत्मा! :)
आप देशाटन करते रहें और सुधिजनों को दर्शन लाभ देते रहें यही कामना है. इस बीच अपने पुराने और विश्वासु सेवक की भी सुध लेते रहें, क्या है कि चिंता लगी रहती है... :)
- श्री पंकज कुमार, वही, अहमदाबाद वाले.
समीर भाई, आपकी यात्रा तो बड़ी रोचक रहती हैं और आप यूँ ही मुस्कुराते रहिये ..यहाँ कनाडा के लोग आपका इंतज़ार करते रहेंगें ..
enjoy your trip !!
उत्सुकता
आपकी यात्रा(एं) मगंलमय हो.
हम भी अपनी अगली दिल्ली यात्रा में लजीज खाने का जुगाड़ बिठाते है. हैलो....पंगेबाज भाई....
मैं तो समझ रहा था कि आप दिल्ली मे है .दिल्ली के मोहिन्दर कुमार को मैंने बताया था कि आप देहली पहुच रहे है .......यात्रा की जानकारी अपने कलम से बड़े ही सुंदर ढंग से उकेरी है ..धन्यवाद ......आभार
अब जब दिल्ली जाना इतना लटकाया है तो और लटका लीजिये । हम भी आशा है मार्च अंत तक वहाँ पहुँच ही जाएँगे ।
घुघूती बासूती
ghumiye ghumiye.....din hai aapke..!
समीर जी ,आगरा कहीं दूर नहीं है आपसे लेकिन एक बात बतायें कि अगले हफ़्ते कब फ़रीदाबाद जा रहे हैं बिना सूचित किये निकल जाना आपका ठीक नहीं! दुर्भाग्य से आपसे फ़िर नहीं मिल सके लेकिन इस बार आप सूचित कर दें तो शायद हम आपसे मिल सकें.
और हां ज्ञान दद्दा से आपसे मुलाकात हो गयी बहुत ही बड़ी बात है लेकिन ये मिठाई जो सामने रखी है वो तो मेरे हिस्से की थी अगली बार इलाहाबाद जाकर उनसे वसूल लूंगा.
वाह जी, भारत दर्शन पर निकले हुए हैं
अति सुंदर चित्र्……किन्तु परन्तु आप हमारे प्रदेश झारखंड से भाभी जी को लिये चुपचाप निकल गये……?
bhaiyaa udan tashtaree jee,
saadar abhivaadan. kamaal hai aapko kaun rok saktaa thaa aap to udan tashtaree hain waise dilli ka kya kahein jo dilli ke laddo to jo khaaye wo pachtaaye naa khaaye to bhee pachh taaye.
भविष्य में कब, किधर से गुजरेंगें? तय कर लीजिये और सबको बता दीजिये। रास्ते में कौन ,कब मिल सकता है सहज हो जायेगा।
आपसे मिलने की काफी इच्छा थी किन्तु शायद मिलने का संयोग नही था, क्योकि अभी तक मेरी इलाहाबाद जंक्शन करीब आधा दर्जन से ज्यादा ब्लागर मीट की थी किन्तु कोई भी छूट भी छूटी नही थी। । शायद ऊपर वाले ने अभी मिलने का समय नही तय कर रखा है। ...
:)
ज्ञान जी के साथ आपकी फोटो देख कर एहसास कर रहा हूँ कि अगर मै भी हो तो कहीं आप दोनो के बीच फंसा होता :)
मुझे आपके पुन: इलाहाबाद आगमन की प्रतीक्षा रहेगी, कहा जाता है कि इंतजार का फल मीठा होता है, मै उस मीठे फल की प्रतीक्षा कर रहा हूँ।
ज्ञान जी और अरूण जी से मिला हूँ, दोनो ही सदा जीवन उच्च विचार वाले व्यक्तित्व के व्यक्ति है। आपकी मिलन समारोह सम्पन्न हुआ, जानकर अच्छा लगा।
जिन विषयों पर आप चर्चा करना चाहते थे मै भी बहुत दिनों से उस पर सोच और कार्य कर रहा हूँ किन्तु अभी तक आशिंक सफलता मिल पाई है, मिलना होगा तो जरूर बात होगी।
शेष यात्राऐं मंगलमय हो, अगर पुन: कार्यक्रम बने तो जरूर आईयेगा। :)
वाह जी वाह। दिल्ली पधारें तो सूचित अवश्य कीजिएगा, मोबाइल नंबर आपके पास है ही। :)
सरकार आप तो इत्ती यात्राएं कर रहे हैं जित्ती हम साल भर में नईं करते । हो का रओ है जे । कमस-कम टेम निकाल के फिरो भईया । 'चीन-चीन' के लोगों से मिलो, जे ठीक नईं कि पलेटफारम पर 'जय गुरूजी' करके खिसक लिए । बुंदेलखंड की नाक ने कटाओ गुरू । कहीं जाओ सो ऐसे टिको कि हिलाने से ने हिलो तब तो लगे कि बुंदेली बंदा आया है
आप की यात्रा मंगलमय हो।
जितना हो सके आप पैदल चला करें...मैं भी चलता रहता हूँ:)
सैर पर सैर क्या मजे है।
आपका यात्रा विवरण का स्टाइल बहुत ही अनोखा और अच्छा लगा।
सई जी, उड़नतश्तरी इधर उधर न जाने किधर किधर शूं शां फूं फां करती हुई लैंड किए जा रही है और छत्तीसगढ़ का रास्ता भूले जा रही है , सई है सई है!!!
वैसे मस्त है कि आप एक एक करके सब से मिलते जा रहे हैं।
दिल्ली की कसकदिल में ही रह गयी। पर अगली बार आपकी यह कसक अवश्य पूरी हो, ईश्वर से मेरी यही प्रार्थना है।
लगता है आपने राहुल संकृत्यायन जी की घुमक्कडी का रिकार्ड तोडने की कसम खा रखी है। मेरी शुभकामनाएं स्वीकारें।
धन्यवाद समीर जी मेरा उत्साह वर्धन करने के लिए। आपका ब्लाग देख कर अच्छा लगा कि देश से इतनी रहकर भी आप इतनी गहराई से जुडे है। आपको मिले सम्मानों को देख कर खुशी हुई।
धन्यवाद समीर जी मेरा उत्साह वर्धन करने के लिए। आपका ब्लाग देख कर अच्छा लगा कि देश से इतनी रहकर भी आप इतनी गहराई से जुडे है। आपको मिले सम्मानों को देख कर खुशी हुई।
धन्यवाद समीर जी मेरा उत्साह वर्धन करने के लिए। आपका ब्लाग देख कर अच्छा लगा कि देश से इतनी रहकर भी आप इतनी गहराई से जुडे है। आपको मिले सम्मानों को देख कर खुशी हुई।
Dubara aapase,
na mil sakane ka khed
aksar rahega...
socha tha ki milne par
tamam baate karenge..
par,
aapke aane ka
ahsaas bhar rah gaya..
jaane kahan gujaare aapne
itne din..
auir ab jaane kab
fir mulakat hogi...
haan,
chand ghanton ki mulakaat
sanjoke rakhenge..
aapaka hi.
यात्रा वर्णन अच्छा लगा बहुत-बहुत बधाई...
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