अगर मैं कहूँ कि ९८ प्रतिशत भारत की आबादी को, जिसमें मैं भी शामिल हूँ, को न तो धन्यवाद देना आता है और न ही स्वीकारना आता है और न ही किसी का अभिनन्दन या प्रशंसा करना या फिर अपना अभिनन्दन या प्रशंसा स्वीकार करना, तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. हाँ, इस बात को सुनकर अनेकों भृकुटियाँ जरुर टेढी हो जायेंगी. यह तो हम सबको आता है.
जरा बताईयेगा:
क्या आप अपने नौकर को पानी या चाय देने के लिये धन्यवाद देते हैं?
क्या आप अपने ड्राइवर को दफ्तर पर उतरते समय या घर पर उतरते समय, सुरक्षापूर्वक पहुँचाने का धन्यवाद देते हैं?
क्या आप पेट्रोल पंप पर पेट्रोल भरने वाले बालक को पेट्रोल भरने का धन्यवाद देते हैं?
क्या आप अपने मित्र का फोन आने पर फोन रखते समय उसे फोन करके याद करने का आभार करते हैं?
क्या आप से जब कोई आपका हाल पूछता है तो उसे अपना हाल 'ठीक हूँ' के साथ हाल पूछने के लिये धन्यवाद करते हैं?
क्या आप दुकानदार को पैसा देने के बाद बचे पैसे वापस लेते हुये उसकी सेवाओं के लिये धन्यवाद कहते हैं?
क्या आप स्टेशन पर कुली को या रिक्शे वाले को पैसे के सिवाय धन्यवाद भी देते हैं?
उपरोक्त सूची में अभी कम से कम १०० और वाकये रख सकने में सक्षम हूँ जिसमें ९८% लोगों का जबाब नकारात्मक होगा.लोग सोचते हैं कि किस बात का धन्यवाद दें इनको. यह तो इनका काम है. पैसे देते हैं इसको. इसकी औकात ही क्या है हमारे सामने ? और भी न जाने क्या क्या कारण.
(अमरीका/ कनाडा में इन्हीं के जबाब ९८% लोगों के सकारात्मक होंगे और इसका जबाब देते हुये भी अधिकतर इन प्रश्नों को उनसे पूछने का धन्यवाद दे रहे होंगे.)
चलिये, यह तो देने की बात हो गई. अगर कोई दे दे तो लेना नहीं आता. धन्यवाद का सीधा जबाब अंग्रेजी में ' यू आर वेलकम' या 'मेन्शन नॉट' से दे सकते हैं या फिर हिन्दी में इसे ही 'आपका बहुत आभार', लिखित में 'साधुवाद' आदि से दिया जा सकता है. मगर मैने देखा है कि आधे से तो कोई भी जबाब देने की बजाय या तो उसे अनसुना कर देंगे या चुपचाप निकल लेंगे या फिर 'हें हें हें, कैसी बात कर रहे हैं?' या 'अरे, धन्यवाद कैसा?' या फिर 'आप भी न!! हद करते हो, भाई साहब' या 'अरे, यह तो हमारा फर्ज है, इसमें धन्यवाद कैसा.'
वही हालत अभिनन्दन और प्रशंसा की है. किसी से कह देजिये कि भाई, तुम्हारी शर्ट गजब की है. जबाब में धन्यवाद की जगह 'क्या भाई, सुबह से कोई मिला नहीं क्या?' या 'अरे कहाँ, बस ऐसी ही है.' या फिर 'अरे भाई साहब, बस काम चल जा रहा है.' या 'आप ले लो.' हद है, यार. एक धन्यवाद देने की बजाय ये सब क्या है?
इसको इस ढंग से भी देखें कि अगर चाय पिलाने का इन्तजाम करना धन्यवाद प्राप्ति की पात्रता रखता है तो चाय पिलाने का वादा करना, चाय पिलाने के लिये बुलवाना, चाय पिलवाना, हर बार चाय पिलवाना भी हर बार धन्यवाद प्राप्ति की पात्रता रखता है. अगर चाय अच्छी नहीं बनी है, तो या तो आपका प्रोत्साहन पाकर वह स्वयं बना बना कर सीख जायेगा या फिर आप उसे मार्गदर्शन दें कि कैसे बेहतर बनती है. परिणाम दोनों के ही अंत में एक अच्छी चाय बन जाने के ही होने की संभावना है.
किन्तु यदि आप चाय पीने ही न जायें या जायें भी, तो पी कर बिना कुछ कहे ही लौट जायें तो वो भी आखिर कब तक आपके आगे बीन बजाता रहेगा. हताश होकर चाय बनाना ही छोड़ देगा. कोई उधार तो ले नहीं रखी. फ्री में चाय पिला रहा है और आप है कि धन्यवाद तक नहीं कहते मगर चले हर बार आते हैं क्योंकि अभी शहर में बहुत सारी इस तरह की चाय स्थलियों की आवश्यकता है. रोज आवाज लगाते हैं कि अभी चाय पिलाने वाले कम हैं और आओ, और आओ.
कहते हैं न कि
'करत करत अभ्यास ते, जड़मत होत सुजान'
किन्तु बिन प्रोत्साहन के तो अभ्यास हो नहीं सकता. जल्द ही हौसला चुक जायेगा.
मुझे खुद गर तीन दिन तक पत्नी न कहे कि कुछ दुबले दिखने लगे हैं तो ट्रेड मिल पर जाने की इच्छा खत्म होने लगती है जबकि वजन तौलने वाली मशीन चिंघाड़ चिघांड़ कर कह रही होती है कि आपकी बीबी झूठ बोल कर सिर्फ आपको कसरत जारी रखने के प्रोत्साहित कर रही है. सालों में इकट्ठा किया वजन निकलने में भी कुछ समय दोगे कि हर तीसरे दिन दुबले होते जाओगे. मगर उसका प्रोत्साहन ही तो है जो मुझे बार बार ट्रेड मिल पर बनाये रखता है. भले ही कम न हो रहा हो मगर कम से कम बढ़ तो नहीं रहा. यह ही गनीमत है वरना अभी तक क्या हाल हो गया होता.
किसी ने मेहनत की है. भले ही आपके लिये न की हो, खुद के लिये ही की हो मगर उसकी मेहनत का जो फल आया, वो एक अच्छाई के लिये है, आप भी उसका आनन्द उठाते हैं तो दो शब्द धन्यवाद के देना क्या आपका फर्ज नहीं बनता?
बनता है न!! इसी धन्यवाद को, इसी प्रोत्साहन को, इसी अभिनन्दन को चिट्ठाकारी में 'टिप्पणी' कहते हैं और इस धन्यवाद के बदले जो 'यू आर वेलकम' बोलने का शिष्टाचार है, उसे टिप्पणी देने वाले के चिट्ठे पर जाकर 'टिप्पणी' करना बोलते हैं.
फिर शिष्टाचार निभाने में अकड़ कैसी और शर्माना कैसा?
कहीं उन ९८% की तरह आप भी तो इस बात से नहीं डर रहे कि इससे आपकी औकात कमतर आँक ली जायेगी?
बात मानो इससे आपका बड़प्पन ही साबित होगा और औकात में इजाफा. बाकी तो आप खुद ही समझदार हैं.
चलते चलते:
इस आलेख की वजह बनी अभी अभी ताजा चली टिप्पणी महत्ता पर वेचारिक आँधी. अगर बहुत गहरा उतरने की चाह हो तो यह सारे लिंक एक जगह उपलब्द्ध करा रहा हूँ. कुछ राजीव जी के ब्लॉग से टीपे हैं बिना अनुमति :) :
राजीव टंडन के अंतरिम पर
ज्ञान दत्त जी मानसिक हलचल पर
शास्त्री जे सी फिलिप जी के सारथी पर
टिप्पणीकार पर
संजय तिवारी जी के विस्फोट पर
कुछ पुराने जमाने की बातें:
उड़न तश्तरी पर : अपना ब्लॉग बेचो रे भाई
फुरसतिया पर: सुभाषित वचन-ब्लाग, ब्लागर, ब्लागिंग
जीतू भाई: ब्लाग पर टिप्पणी का महत्व
उड़न तश्तरी पर: पुनि पुनि बोले संत समीरा
सागर चन्द नहार जी: अपने ब्लाग की टी आर पी कैसे बढ़ायें
नोटपैड पर: तू मेरी पीठ खुजा मैं तेरी पीठ खुजाऊँ
और भी अनेकों बार इस विषय पर लिखा जा चुका है, जिनके लिंक फिर कभी. मसीजिवी और निलिमा जी भी इस विषय पर अपनी तरह से विचार रख चुके हैं.
सूचना:
यह आलेख स्वांत: सुखाय लेखन वालों के लिये सफेद पन्ना है. वे इसे न देखें. वैसे भी वो सब कुछ पनी डायरी में लिख सकते हैं या टिप्पणी वाला टैब बंद कर सकते हैं तो फिर बताना भी नहीं पड़ेगा कि स्वांत: सुखाय लिख रहे हैं. सब समझ जायेंगे.
उनके काम यह आलेख तभी आयेगा अगर वो हमारे मोहल्ले में रहने वाले शर्मा जी की तरह स्टेटमेंट दे रहे हों तो!! शर्मा जी निम्न मध्यम वर्ग से आते हैं. रोज मिलते हैं और कहते हैं कि मैं बहुत खुश हूँ. क्या करना है इतना पैसा कि चैन खो जाये? खाना वो दो रोटी ही है चाहे कितना भी पैसा आ जाये. हम तो बस अपने में खुश हैं. जितना है दो टाईम की रोटी आ जाती है, इससे ज्यादा की हा हा क्या मचाना. और मुझे तिवारी जी बता रहे थे कि वो कोई साईड बिजनेस की तलाश में हैं ताकि कुछ अलग से कमाई हो जाये.
वैसे अगर संतोष है तो संतोष में बहुत शक्ति है:
गोधन, गजधन, वाजिधन, और रतन धन खान।
जब आवे संतोष धन, सब धन धूरि समान॥
मंगलवार, सितंबर 18, 2007
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52 टिप्पणियां:
दो छोरों - स्वान्त: सुखाय और टिप्पणी के माध्यम से परस्पर जोश दिला कर उत्कृष्टता का जागरण में विरोधाभास नहीं है. एक ही व्यक्ति जब पूर्णत: चार्ज्ड होता है लेखन के लिये तो सर्राटे से लिखता है; और टिप्पणियों की परवाह किये बिना. पर वही जब सामान्य या आत्म संशय से ग्रस्त होता है - और यह मूड स्विन्ग में ज्यादा देर नहीं लगती - तब उसे जोशीली/धन्यवाद वाली टिप्पणियों की बहुत जरूरत होती है.
सब निर्भर करता है कि आप किस मनस्थिति से गुजर रहे हैं. स्वान्त: सुखाय वाला दौर बहुत कम और अचानक होता है. अत: सामान्यत: धन्यवाद लेने और देने का शिष्टाचार सीख लेना चाहिये. और यह शिष्टाचार केवल अपने बॉस के प्रति नहीं - कुली और रिक्शे वाले के प्रति भी सम भाव से होना चाहिये.
आपने सही और सामयिक कहा. और वह भी अपने अनूठे अन्दाज में. यह याद रहेगा और इसका उपयोग हम ब्लॉगरी के इतर क्षेत्रों में दृष्टान्त के लिये भी करेंगे. धन्यवाद!
कटु सत्य और इस साहस के लिये धन्यवाद :)
यह किसको लपेटा है समीर भाई.
हम तो कम ही जानते हैं आपके इस संसार को मगर जिसे लपेटा होगा उन्हें रास्ता खोजने में वक्त लगेगा वो आपकी धार से तो महसूस हो गया है हमें.
लिखते रहियेगा इसी तरह, भईया.
-खालिद
समीर भाई, बेहद सही लिखा है। हमें न तो धन्यवाद देना आता है और न ही लेना। बाहर की बात तो छोड़ दीजिए जिस घर से हम इतना कुछ लेते हैं वहां भी कोई शुक्रिया नहीं अदा करते। बात भले ही आपने आखिर में टिप्पणियों से जोड़ दी, लेकिन उससे न भी जोड़ते तो यह एक विकट सच्चाई है हमारे समाज की।
समीर जी ये गलती तो मैंने भी की है पर हर बार नहीं.धन्यवाद बताने के लिए.आगे से सुधार करने की कोशिश करूँगी.
अव्व्ल तो यह सोच रहा हूँ, कि मैं शर्मा जी की श्रेणी में आऊं या दूसरी !
कहीँ पर मुझे विरोध लगता है
1.) अमरीकी / भारतीय शिष्टाचार की तुलना बहुत जायज़ नहीं। भिन्न संस्कृति, भिन्न परिस्थितियाँ (सामाजिक, आर्थिक, ऐतिहासिक) तो उस पर यह तुलना और मापदण्ड भी उन्हीं के - फिर भी कम से कम सिद्धांत रूप में, कहीँ हम आगे तो कहीँ वे। हम किन्हीँ कार्यों में कर्तव्य और अधिकार समझते और देते भी हैं - वे किन्हीँ और कार्यों में । हम आज के आधा तीतर आधा बटेर भारतीय+पाश्चात्य समाज में ज़रूर दोहरी मानसिकता अपनाते हैं, तो गड़बड़ होती है, कौन से मानक लगायें? याद करें पिछले वर्ष 2006 जुन-जुलाई का रीडर्स डाइजेस्ट का शिष्टाचार सम्बन्धी सर्वेक्षण और उसमें प्रयोग किये गये बेतुके और पाश्चात्य मानक! जिनमें मुंबई को निम्न दर्ज़े का
पर यह तो विषयांतर हो रहा है।
2.) नवोदित चिट्ठाकारों, मन व तर्क की सच्ची प्रतिक्रिया के अतिरिक्त मुझे टिप्पणी, टिप्पणी के लिये ही समझ में आती है - विरोध हो, सुधार हो, सुझाव हो तो वह भी चलेगा, मगर हो सच्चाई से। सामान्यत: अच्छा या धन्यवाद के लिये अतिथि पुस्तिका/अच्छा/बुरा जैसी ही सुविधा बेहतर है।
यदि मात्र उत्साहवर्धन के लिये ही टिप्पणी दी जाय गुणवत्ता से इतर- जैसे कि अस्वाद भोजन को भी शिष्टाचार या उत्साहवर्धन हेतु गर्मागर्म और बढ़िया कहें तो बनाने वाले को कैसे पता चलेगा कि यह ठीक नहीं थी, वह तो पुन: वैसा ही बनायेगा। Feedback Correction System कैसे काम करेगा!
धन्यवाद तो अच्छी बात है, कोई गुरेज़ नहीँ, पर टिप्पणी तो प्रतिक्रिया ही हो तो बेहतर! यदि यह व्यवहार का एक मात्र मानक बनेगा तो हमारा दायरा बढ़ेगा ही कैसे?
या "धन्यवाद" / "अच्छा है" को Default मान लिया जाये ;) तब बहुत सुविधा होगी सभी के लिये !
बहुत बहुत ::""धन्यवाद"" ::समीर जी ...इतने प्यारी सुंदर सी बातें बताने के लिए :)
मेरे विचार से धन्यवाद, अभिनन्दन , प्रशंसा (जब तक वह खुलेआम चाटुकारिता न हो) का जवाब एक प्यारी सी मुस्कराहट है।
thank you sameer for "speaking up" its important that people should retailiate when needed . to ignore is a weakness and people who claim that they dont "bother" have no strength to retailate .
popular and well known hindi bloggers need to be "respected" because they came into hindi blogging before any one else and paved the way for others. people like you are still finding time to post comments on various blogs . i personally always say "thank you " even to the salesman who shows his good to me irrespective of the fact i buy or not . if mummy also cooks something nice i try my level best to appreciate . similarly i try to write comments on posts where people make "names " headlines and cash on the popularity of people like sameer , narad, fursatiya , shashtri, . PLEASE KEEP WRITING AND KEEP VISITING AND KEEP COMMENTING help as as many to improve hindi writing . with regds rachna
बहुत बढ़िया पोस्ट समीर जीं.
धन्यवाद
बस बस समझ गए. आपके पास टोपिक की कमी नही है. :)
हमारे तो मजे ही है. लिखते जाइए :)
अरे जाते जाते साधुवाद तो दे ही दें.. ही ही ही
आपने तो क्लास ही ले ली :)
अब गम्भीरता से..
मैं सबको धन्यवाद देता हूँ जी मगर बदले में वे ऐसे देखते है जैसे मैं दुनिया का सबसे बड़ा गधा हूँ :(
धन्यवाद स्वीकारना नहीं आया, अबसे प्रयास किया जाएगा. सचेत करने के लिए धन्यवाद.
समीर जी,
निम्न टिप्पणी मे आप ने मेरे मन की बात कह दी:
"बनता है न!! इसी धन्यवाद को, इसी प्रोत्साहन को, इसी अभिनन्दन को चिट्ठाकारी में 'टिप्पणी' कहते हैं और इस धन्यवाद के बदले जो 'यू आर वेलकम' बोलने का शिष्टाचार है, उसे टिप्पणी देने वाले के चिट्ठे पर जाकर 'टिप्पणी' करना बोलते हैं.
फिर शिष्टाचार निभाने में अकड़ कैसी और शर्माना कैसा?"
आपने जो कहा मैं उसका अनुमोदन करता हू. देवयोग से मेरे नाम के बाद इस टिप्पणी में जो विचार रखा जा रहा है वह कल ही मैं ने अपने टिप्पणी-हस्ताक्षर के साथ जोडा है.
-- शास्त्री जे सी फिलिप
प्रोत्साहन की जरूरत हरेक् को होती है. ऐसा कोई आभूषण
नहीं है जिसे चमकाने पर शोभा न बढे. चिट्ठाकार भी
ऐसे ही है. आपका एक वाक्य, एक टिप्पणी, एक छोटा
सा प्रोत्साहन, उसके चिट्ठाजीवन की एक बहुत बडी कडी
बन सकती है.
आप ने आज कम से कम दस हिन्दी चिट्ठाकरों को
प्रोत्साहित किया क्या ? यदि नहीं तो क्यो नहीं ??
इस सुन्दर आलेख के लिये धन्यवाद.आपकी बातें याद रखेंगे.
उपरोक्त सूची में अभी कम से कम १०० और वाकये रख सकने में सक्षम हूँ जिसमें ९८% लोगों का जबाब नकारात्मक होगा
शायद मेरा जवाब 50+% सकारात्मक होगा, लेकिन आपका लेख पढ़ने के बाद महसूस हो रहा है कि इसे कम से कम 80+ तो होना ही चाहिये।
बढ़िया और मेरे लेख का लिंक देने के लिये धन्यवाद।
टिप्पणी पर तल्ख लेखन और टिप्पणियों का ही टोटा?
आओ यारों कम से कम 60-70 टिप्पणी का कोटा पूरा करना यहां...
सत्य वचन ! लेकिन एक समय आकर थैंक्यू और यू आर वेलकम सब गडमड हो जायेगा :-)
टिप्पणियों पर राय नहीं बता रही....पर आपकी टिप्पणियों का इंतज़ार रहता है....आप मीठा बोलकर भी पोस्ट को सही आँक आते हैं।
बहुत बढ़िया लिखा है आपने!!
ज़ी सही नब्ज़ पर हाथ रखा है आपने.
जब मर्ज़ सही सही पकड लिया है तो फिर इलाज़ की शुरूआत भी हो जानी चाहिये.
( वैसे यह लेख स्वयं ,इलाज़ की तरह ही है.)
धन्यवाद्
सच्ची बात, दिल की बात और सबकी बात.....इसी ऐब के लिए तो हिन्दुस्तानी सारे जहां में बदनाम हैं और
आज आपने भी गरिया दिया...धन्यवाद
सच्ची बात, दिल की बात और सबकी बात.....इसी ऐब के लिए तो हिन्दुस्तानी सारे जहां में बदनाम हैं और
आज आपने भी गरिया दिया...धन्यवाद
हम तो कम ही जानते हैं आपके इस संसार को मगर जिसे लपेटा होगा उन्हें रास्ता खोजने में वक्त लगेगा वो आपकी धार से तो महसूस हो गया है हमें
खालिद भाई ने कहा-
हम माने लेते हैं कि हमें लपेटा है- और आपकी सलाह मानकर कहे देते हैं कि
'लपेटने के लिए धन्यवाद' :)
आज ही हमने लिखा है कि असहमति व्यकत करने वालोंके प्रति हम विशेष रूप से कृतज्ञ रहते हैं क्योंकि ये साहस का काम है और जरूरी किसम का भी।
कुछ राजीवजी ने भी कहा- उस पर भी ध्यान दें
प्रोत्साहन के लिए टिप्पणी वाला तर्क अपनी पोस्ट में राजीवजी ने विवेचित किया है और सच ही है कि टिप्पणी प्रोत्साहित करती है पर क्भी कभी आत्मालोचना के मार्ग में आकर अड़ जाती है- और जब समीरजी जैसे धुरंधर की तरफ से बार बार आने लगे कि बहुत बढि़या तो गलतफहमी की गुंजाइश बनने लगती है।
बाकी न तो आप साधुवाद से चूकने वाले है न चुकने वाले।
वाह गुरू जी ,क्या बात कही है आपने । बहुत सुंदर और सही सच्चाई बताई है आपने ........
आज का युग ही इस रंग मे रंग गया है ।
मेरे आफ़िस में एक लिफ़्ट मैन है, जिसे मैं हर दिन लिफ़्ट से उपर-नीचे लाने के लिये धन्यवाद देता हूं. मैं चेन्नई में रहता हूं और मुझे तमिल नहीं आती है, एक दिन वो बहुत ही भाव-विभोर होकर मुझे तमिल में कुछ कह रहा था, मुझे पता नहीं की वो क्या कह रहा था. फ़िर बाद में मेरे एक तमिल मित्र ने बताया की वो बोल रहा था की कभी भी किसी ने उसे उसके इस काम के लिये धन्यवाद नहीं दिया था और मैं पहला ऐसा व्यक्ति हूं जो उसे हर दिन धन्यवाद देत हूं..
यहां आया था आपको धन्यवाद देने के लिये पर ये तो मैं अपनी कहानी सुनाने लग गया. :)
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद इस लेख के लिये..
वैसे भी आज मैं टिप्पणी दिन मना रहा हूं, और ये मेरा आज का 28वाँ टिप्पणी था..
मैं उन २% लोगों मे से हूँ. सुन्दर लेख के लिए धन्यवाद.
आंखें खोल दी आपने। रोजमर्रा की जिंदगी में हम रोज इस तरह की बदतमीजियां करते हैं। धन्यवाद
धन्यवाद हो या गाली कभी कुछ दिया नहीं
और न किसी को कभी हमने दिया शुक्रिया
हमको बटोरना बस आता दोनों हाथों से है
कभी देंगे, आप ये कहेंगे हमने क्या किया
कोशिशें न कीजिये कि आदतों को बदलें हम
वरना लेनदेन का हिसाब उलझ जायेगा
आपतो बटोरते के साथ साथ बाँटते है
इसलिये ही चिट्ठा शायद ये और लिख दिया
समीर जी धन्यवाद !!
कितनी सरलता से आपने इतनी बड़ी बात कह दी।
वैसे पहले तो नही पर जब से अंडमान गए थे(४ साल पहले)तब से लोगों को धन्यवाद कहने की आदत पड़ गयी है और यहां गोवा मे भी ये बरकरार है।
एक व्यवहारिक और समझदार की छवि को पुख्ता करती है आपकी यह पोस्ट ।
thank`s a lot
क्या आप अपने नौकर को पानी या चाय देने के लिये धन्यवाद देते हैं?
अपने यहाँ नौकर तो नहीं है, रेस्तरां आदि कहीं भी जाता हूँ तो अवश्य धन्यवाद देता हूँ।
क्या आप पेट्रोल पंप पर पेट्रोल भरने वाले बालक को पेट्रोल भरने का धन्यवाद देते हैं?
बिलकुल
क्या आप दुकानदार को पैसा देने के बाद बचे पैसे वापस लेते हुये उसकी सेवाओं के लिये धन्यवाद कहते हैं?
करता हूँ।
क्या है कि कुछ गंवार लोगों को यह समझाओ कि लोगों को धन्यवाद दो, सड़क चलते किसी से रास्ता भी पूछो तो उसको धन्यवाद दो, तो वो कहने लगते हैं कि ये धन्यवाद आदि का चलन प्लॉस्टिक है और सिर्फ़ ऊपरी दिखावा है हमारे तो मन में प्रेम है!! अरे जब किसी पर किसी भाव का इज़हार नहीं करोगे तो उसको कैसे पता चलेगा, सपना थोड़े ही आएगा!!
रही आपकी टिप्पणी की बात, तो हर पोस्ट पर "बधाई", "साधूवाद" वगैरह ही कह देने को मैं सही नहीं मानता!! यदि पोस्ट पर टिप्पणी दे रहे हैं तो उसको पढ़िये और उसके संबन्ध में टिप्पणी दीजिए, साथ में प्रोत्साहन आदि के लिए बेशक "साधूवाद", "बढ़िया" आदि लगा दें लेकिन टिप्पणी पोस्ट के मसौदे से संबन्धित हो तभी लेखक को भी अच्छी लगती है।
वही हालत अभिनन्दन और प्रशंसा की है. किसी से कह देजिये कि भाई, तुम्हारी शर्ट गजब की है. जबाब में धन्यवाद की जगह 'क्या भाई, सुबह से कोई मिला नहीं क्या?' या 'अरे कहाँ, बस ऐसी ही है.' या फिर 'अरे भाई साहब, बस काम चल जा रहा है.' या 'आप ले लो.' हद है, यार. एक धन्यवाद देने की बजाय ये सब क्या है?
बहुत अच्छे लालाजी ...पढ़कर आनंद आ गया
मन लगाकर दिल से लिखतें हैं आप...बधाई
बहुत अच्छा लेख लिखा है जो स्वयं को आँकने का अवसर देता है, अब सवाल आता है शिष्टाचार का तो भई हम तो अपने आपको ९९ कि श्रेणी में रखते हैं हम तो किसी से भी बिना धन्यवाद के बात ही नहीं करते, जो १ प्रतिशत बचता है वो है कि हम सभी ब्लॉग पर नहीं जा पाते और ना ही सब पर टिप्पणी कर पाते जो सही नहीं है अब से कोशिश करेंगे ज्यादा से ज्यादा बलॉग पढ़ने का भी और टिप्पणी देने का भी, आपने बहुत सारे लिंक दिये सब पढ़े सभी अपने आप में बेजोड हैं । लेख के लिये बहुत-बहुत बधाई ...
THANKS :)
बहुत अच्छा लेख लिखा है जो स्वयं को आँकने का अवसर देता है, अब सवाल आता है शिष्टाचार का तो भई हम तो अपने आपको ९९ कि श्रेणी में रखते हैं हम तो किसी से भी बिना धन्यवाद के बात ही नहीं करते, जो १ प्रतिशत बचता है वो है कि हम सभी ब्लॉग पर नहीं जा पाते और ना ही सब पर टिप्पणी कर पाते जो सही नहीं है अब से कोशिश करेंगे ज्यादा से ज्यादा बलॉग पढ़ने का भी और टिप्पणी देने का भी, आपने बहुत सारे लिंक दिये सब पढ़े सभी अपने आप में बेजोड हैं । लेख के लिये बहुत-बहुत बधाई ...
THANKS :)
साधुवाद.. साधुवाद.. समीर भैया को साधुवाद.
किसी ने मेहनत की है. भले ही आपके लिये न की हो, खुद के लिये ही की हो मगर उसकी मेहनत का जो फल आया, वो एक अच्छाई के लिये है, आप भी उसका आनन्द उठाते हैं तो दो शब्द धन्यवाद के देना क्या आपका फर्ज नहीं बनता?
बिल्कुल बनता है भैया. मैं प्रयास करता हूं कि सभी साथियों की ब्लॉगपोस्ट पढ़कर राय व्यक्त की जाए. जहां शब्द नहीं होते वहां साधुवाद और जहां विवाद की गुंजाइश होती है तो सवाल उठाते हैं।
टिप्पणियों के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। भले ही प्रतिकूल लगें। वाद-विवाद भी हमें मसलों को नए सिरे से विचारने का अवसर देते हैं। यह आलेख दिखने में कुछ को सामान्य लग सकता है किंतु ब्लॉगिंग में यह मील का पत्थर साबित होता दिख रहा है।
मैं कृतार्थ हूं जो आप जैसे सुलझे और सरलचित्त वरिष्ठ सज्जन हमारे बीच है। यही पूंजी है हमारी।
समीर भाई,
सच बड़ा हीं कड़वा होता है, आपने सच कहा है इसलिए पहले तो आपको धन्यवाद दे दूँ . इस आलेख में पता नहीं किसको लपेटा है आपने, मगर जो भी कहा है वह सोलह आने सच है.
कहा गया है कि क्रित्ग्यता, आभार, धन्यवाद, ये सभी हृदय के आभूषण हैं जिसे देखा नहीं जा सकता केवल महसूस किया जा सकता है. अपनी ही ग़ज़ल का एक शेर अर्ज़ कर रहा हूँ-
'' झूठ के तेवर उधार होते हैं,
सच बड़े हीं धारदार होते हैं.
आज के अब्बल सियासी दौर में-
सब मुखौटे तार - तार होते हैं .''
आपका पुन : धन्यवाद !
समीर भाई, सटीक पोस्ट के लिये शुक्रिया ॥॥
समीर जी आपकी पोस्ट का धन्यवाद और हम जैसे नये लोगो कि आप सदा ही हिम्मत बढाते हैं…उसके लिये बहुत बहुत आभार्………
टिप्पणीशास्त्र के इतिहास में आपका यह लेख मील के पत्थर के समान है।
आभार अपने विचार हमारे साथ बांटने के लिए। :)
बात मे तो है दम ! आरम्भ के सारे के सारे points गौर करने वाले हैं और बाद वाले ( टिप्पणी वाले )भी :)
Sameer
main bhi sadhuwaad diye bina nahin rah saki. Uttam, bejod lekhan kala ka namoona hai.
daaaaaaaaaaaaaaaad hoooooo!!!!
Devi
साधुवाद साधुवाद :)
बिल्कुल सही कहा आपने | पता नही कब और कहाँ यह आदत पडी | हाँ, सभी को तो नही मगर बहुतों को तो शुक्रिया बोला है| यह कोई बड़ा काम नही किया मगर कुछ की विपरीत प्रतिक्रिया भी मिली है| शुक्रिया , सुनना कुछ लोगो को अजीब लगता है | बहरहाल मुदा सोचनीय है और अमल करने लायक भी, क्योंकि प्रतिक्रिया कुछ भी हो अपने को तो कहीँ न कहीँ संतोष होता है की हम ने कुछ अच्छा किया |
एक ब्लॉगर होने के नाते मैं इस लेख को बेहतर फील कर रहा हूँ। अपने लेखों पर टिप्पणियाँ मिलने से इतनी तो तसल्ली होती ही है कि मेरा लेख पढ़ा जा रहा है। पसंद आए, न आए यह बाद की बात है। लिखने वाले के लिए पढ़ा जाना बहुत ज़रूरी खुराक़ है। - आनंद
समीरजी
सही है कि धन्यवाद लेने-देने का प्रचलन हमारे संस्कारों में कम ही होता है। लेकिन, कम से कम आपकी पोस्ट पर आ रही टिप्पणियों और आपकी टिप्पणियों की दूसरे की पोस्ट पर उपस्थिति तो इस तथ्य को खारिज कर रही है।
लाख छिपाओ छिप न सकेगा असली नकली चेहरा.
आखिर आपकी इतनी पुरानी पोस्ट पर आने का मौका मिला 'सुनीता शानू' जी की मेहरबानी से.भगवान भला करे उनका.
आपका असली खूबसूरत चेहरा देखकर लगा कि मेरा
ब्लॉग जगत में पदार्पण करना 'धन्य' हो गया है.
आपसे मिलने के बाद ही मैंने अपनी पहली पोस्ट'ब्लॉग जगत में मेरा पदार्पण' लिखी थी और
आपके इस सुन्दर लेख को पढकर नई प्रेरणा मिली है मुझको.
बहुत बहुत आभार आपका.
बात भेजे के अंदर घुसी
तीर की तरह जा निशाने लगी
अब हम न पछतायेंगे
टिप्पणी करने वाली की पीठ तत्क्षण खुजायेंगे
आपका यह आलेख शिक्षाप्रद है । यों तो मैं भी 'सर्वजन हिताय-स्वांतः सुखाय'लिखता हूँ ,परंतु जो आलेख अच्छे लगते हैं उन पर बदले मे 'चाह'के बगैर टिप्पणियाँ दे देता हूँ ।
बहुत सही बात कही है सर।
सादर
बिल्कुल सही कहा है ..न धन्यवाद देना आता है और न ही लेना ...
टिप्पणी करो जा कर तो सुनने को मिलता है लेन- देन है ... अब है जी क्या करें ..हम किसी का दिया कुछ रखते नहीं ..रखते हैं तो प्यार से कुछ दे भी आते हैं ...यही समझ नहीं आता लोगों को ...
बहुत सार्थक लेख ..
:)...
sach me koi aapko padhe to samajh me aata hai ki kaise kya hota hai..blog ki duniya me!! kaise len den chalta hai............ab dekho na main kuchh bebakufo jisee baat kah ke jaunga aur ummid karunga ki kal aap ek jhakkas sa comment mere blog pe maroge..hai na bhaiya:D
इस सुंदर आलेख के लिए आभार.
सादर,
डोरोथी.
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