शनिवार, अगस्त 18, 2018

सिद्धान्त गुजरे जमाने की बात है



डिस्काउन्ट का अपना वैसा ही आकर्षण है, जैसा किसी सेलीब्रेटी का. प्रोडक्ट की कितनी उपयोगिता है, कितनी गुणवत्ता है, सब गौंण हो जाता है, जब उस पर डिस्काउन्ट की घोषणा होती है. डिस्काउन्ट रुपी पुष्परस ग्राहक रुपी मधुमख्खियों को अपनी और आकर्षित करता है झुंड के झुंड में.
जैसे विदेशों में कभी सलमान, कभी कटरीना, कभी शाहरुख आदि अपना कार्यक्रम देते हैं तो क्या कार्यक्रम है, इस बात से ज्यादा उनका नाम भीड़ खींचता है. उन्हें तो स्टेज पर आकर उछलना कूदना है. गाना कोई और गायेगा. फिर भी नाम उनका शो. क्यूँकि उनके नाम में भीड़ जुटाने की ताकत है.
वही डिस्काउन्ट का हाल है. दुकान के बाहर बस इतना बोर्ड लगाने की जरुरत है कि भारी डिस्काउन्ट और फिर देखो, कैसे भीड़ खिंची चली आती है. दुकान के बाहर डिस्काउन्ट और सेल का बोर्ड दुकान में भीड़ बढ़ाने का सफल मंत्र है.
आप दुकान के बाहर बोर्ड लगा कर देखो कि हम बार्गेन नहीं करते, न तो गुणवत्ता से, न ही दाम से. यकीन जानिये, कुछ गिने चुने सिरफिरे भी अगर दुकान पर फटक जायें तो. मगर डिस्काउन्ट और सेल का बोर्ड सबको आकर्षित करता है.
मेरा व्यक्तिगत अनुभव यह रहा है कि जब कहीं डिस्काउन्ट लगता है तो पत्नी सिर्फ डिस्काउन्ट को सलामी देने के लिए जो कुछ खरीद कर लाती है, वो शायद अगर डिस्काउन्ट न लगता तो न तो उसकी जरुरत थी और न ही खरीदा जाता.
डिस्काउन्ट का स्वभाव है कि वो आपको वो माल बेच लेता है जिसकी आपको जरुरत भी नहीं है. मने अगर ३०% डिस्काउन्ट पर आप वो सामान ले आये जिसे आप बिना डिस्काउन्ट के शायद न खरीदते, तो आप ७०% बेकार में खर्च कर आये हैं.
उस रोज एक ऐसे मित्र कार के चार टायर रिक्शे पर लाद कर लाते मिले जिनके पास कार ही नहीं है. पूछने पर पता चला कि ४०% डिस्काउन्ट चल रहा था सो खरीद लाये. आगे पीछे कार तो खरीदना है ही. देखते हैं कब कार पर डिस्काउन्ट लगता है.
इधर दर्जी के यहाँ डिस्काउन्ट लगा तो हमने भी लगे हाथ बंद गले का सूट सिलवा ही लिया और उस पर सुनहरे तार से लाईन लाईन अपना नाम भी कढ़वा लिये हैं. क्या पता कल को प्रधान मंत्री बन जायें तब कहाँ सिलवाने जायेंगे? कौन जाने तब डिस्काउन्ट मिले न मिले. डिस्काउन्ट का ऐसा उपयोग हमारी दूर दृष्टि और पक्के इरादे का ध्योतक है, जो कि हमारे देश चलाने के लिए सुपात्र होने को साफ दर्शाता है.

हमारे नेता इस व्यवहार को जानते हैं. वे अपने वादे इसी डिस्काउन्ट की तर्ज पर बेचते हैं. जितना बड़ा डिस्काउन्ट याने कि वादे जितने चमकदार, उतनी भीड़, उतने वोट.
वो दिन दूर नहीं, दूर तो क्या होना शुरु हो ही गया है, जब डिस्काउन्ट के चलते लोग हनीमून ऑफ सीजन में डिस्काउन्ट पर मना आयेंगे, फिर शादी मुहर्त देखकर होती रहेगी. वरना तो शादी के मौसम में पहाड़ भी लूटते हैं.
वैसे डिस्काउन्ट का एक अन्य आयाम भी है जिसे निगेटिव डिस्काउन्ट कहते हैं. जिस तरह एकाऊन्टिंग में निगेटिव प्राफिट मतलब लॉस होता है. मगर जिस तरह हार हताशा के बदले अगर सीख बन जाये, लेसन लर्न्ड बन जाये तो हार हार नहीं होती, जिन्दगी की सीख और आने वाली जीत होती है.
निगेटिव डिस्काउन्ट मतलब कि प्रिमियम..याने कि पावरफुल लोगों को निगेटिव डिस्काउन्ट दो और अपना मतलब साधो. वही तो डिस्काउन्ट देने का हेतु है.
प्रिमियम मतलब कि घूस...मौका देखो और निगेटिव डिस्काउन्ट से समझौता करो.
आज का वक्त डिस्काउन्ट का है. फिक्स प्राईज़ की दुकान अब नहीं चलती.
सिद्धान्त गुजरे जमाने की बात है और समझौता आज के ज़ज्बात हैं.    
इसे समझना होगा...
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में रविवार अगस्त १९, २०१८ के अंक में:



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2 टिप्‍पणियां:

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, परमात्मा को धोखा कैसे दोगे ? - ओशो “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत बढ़िया पोस्ट ... समझ पायें तो गहरी बात छिपी है