शनिवार, अगस्त 04, 2018

अगले चुनाव में वापसी के लिए वापसी ही मुख्य मुद्दा



लड़की रईस परिवार की और लड़का नौकरीपेशा मध्यमवर्गीय परिवार का. मोहब्बत में पड़ लड़की लड़का शादी की जिद्द ले बैठे. रईस पिता के रईसी चोचले. लड़के को घर जमाई बनाना है मगर सीधे कहेंगे तो कौन मानेगा भला? वो भी तो अपने पिता की इकलौती संतान है. अतः लड़के के पिता को फरमान भेजा गया कि क्या आपका घर इस काबिल है कि हमारी बेटी वहाँ आरामपूर्वक रह पायेगी? लड़के का पिता भी बेटे के प्यार में अपमान झेलने को मजबूर रहा. उसने खबर भिजवाई कि जी, एकदम फिट व्यवस्था है. बहु के लिए कमरे में टीवी लगवा दिया है और कमरे से जुड़ा बाथरुम भी बनवा दिया है जिसमें वेस्टर्न स्टाईल टॉयलेट भी लगवा दिया है. गरीब का बोला सच भी रईस की नजर में झूठ ही होता है. अतः रईस ने कहा कि तस्वीरें दिखाओ. बहरहाल, एक बार अपमान झेल लो तो आप बार बार अपमान झेलने को बाध्य हो जाते हैं. अतः तस्वीरें खिचवाई गई अलग अलग कोणों से और भिजवाई गई. मगर बात मान लेने के लिए तस्वीर मंगवाई गई हो तब तो मानें. इधर तो मामला ही दूसरा था.
अतः कहा गया कि तस्वीर से पता नहीं चल रहा है कि आपके घर में नेचुरल लाईट आती भी है कि नहीं. एक विडिओ बना कर लाओ जिसमें घर की गली के मोड़ से घर में घुसने और कमरे तक जाने का और टायलेट का स्पष्ट चित्र हो. इस मांग का उद्देश्य मात्र इतना है कि या तो परेशान होकर लड़के वाले खुद ही कह दें कि आप अपनी लड़की अपनी रईसों की बिरादरी में ब्याह दो या फिर कह दें कि हमसे इससे ज्यादा न हो पायेगा. अगर आपको नहीं पसंद आ रहा है तो हमारा लड़का ही आपके यहाँ आकर घरजमाई बन कर रह लेगा. बेटी रईस की है. नाजो नखरों में पली है, पिता उसे भला कैसे मना करे तो यह पैतरा काम आ जायेगा.
फिलहाल तो विडिओ का इन्तजार है मगर यह भी तय है विडिओ भी भला क्या तसल्ली करा पायेगा? फिर फरमान आयेगा कि आपके यहाँ एसी नहीं है. दिन रात एसी मकान और कारों में बंद रहने वाली लड़की के लिए नेचुरल लाईट की मांग, यह बात अपने आप में अचंभित करती है. वो भी तब जब बिजली कम्पनी की लाईट सिरे से नदारत है- घंटे भर भी आ जाये तो बहुत. फिर जनरेटर या इन्वर्टर से एक मध्यमवर्गीय परिवार में पंखा भी चल जाये तो जन्नत माना जाता हौ. यूँ भी महानगर के घोर प्रदुषण में कौन भला चाहेगा कि नेचुरल रोशनी और हवा में रहा जाये. होना तो यूँ चाहिये कि ऑक्सीजन मास्क है कि नहीं, वह पता किया जाना चाहिये. पता तो यह  करना चाहिये कि घर पूरी तरह से सील बंद है कि नहीं ताकि बाहर का प्रदुषण घर में न घुसे.
शायद विडिओ बनाया जा रहा है, पेश किया जायेगा मगर साथ ही साथ रईस के घर में यह तैयारी भी चल रही है कि अगला कदम क्या होगा? जल्दबाजी में भले और कुछ न सोच पायें तो भी कम से कम समय खरीदने के लिए इतना तो कह ही सकते हैं कि हम यह चाहते हैं कि आप बरातियों का स्वागत पान पराग से करें, क्या आपके पास इसका बजट और इन्तजाम है, कृपया सबूत भेजें.
यही हाल देश से कर्जा ले भागे देश के दामाद भूपू सांसद दारुकिंग का है. रुपया बोलता है तो सुना था मगर रुपया पोण्ड में भी बोलता है, यह अब जाना. रईस रुपये में हो, पोण्ड में हो या डॉलर में, रईस तो रईस ही होता है और उसके चोचले हर जगह एक से होते हैं.
नागरिक हमारा, कर्जा खाया वो हमारा, सारा जीवन जिस देश में गुजारा वो हमारा और अब जब जेल जाने का समय आया तो फैसला तुम्हारा? तुम हमसे पूछ रहे हो कि उसे कहाँ रखोगे? क्या खिलाओगे? कैसे स्वागत करोगे?
हर बात में झूठ बोलने के आदी हम, इस केस में क्यूँ सच्ची तस्वीर और विडिओ लेकर उस विदेशी कोर्ट में घिघिया रहे हैं. हजार फोटोशॉप करके देश को गुमराह करने वाले आज एक फोटोशॉप ऐसी नहीं कर पा रहे हैं कि वो विदेशी कोर्ट गुमराह हो कर ही सही, हमारे अपराधी को जो हमारे देश का नागरिक है, उसे हमें हमारी न्यायिक प्रक्रिया से गुजारने के हमें सौंप दें. अरे, भेज दो ताज होटल की तस्वीर और बता तो उसे आर्थर रोड़ जेल. चुनाव जीतने के लिए ऐसी हरकत कर सकते हो मगर अपराधी को लाने के लिए नहीं?
जरुर कुछ न कुछ तो बात है कि आज हम फोटोशॉप न कर वही तस्वीर भेज रहे हैं जो सही के हालात हैं. डिजिटल और स्मार्ट इंडिया की यह कैसी तस्वीर कि एक विदेशी कोर्ट आपको आपका नागरिक सौंपने को तैयार नहीं डिजिटल इंडिया में ले जाने के लिए?
एक बार हिम्मत दिखा कर कहो तो कि घर मेरा, नाच भी मेरा है, तुम कौन हो कहने वाले कि आंगन टेढ़ा है?
मगर अगर हम यह हिम्मत दिखायेंगे तो कहीं कुछ राज ऐसे न खुल जायें कि हिम्मत का दिवाला निकल जाये!! एन्टीगुआ ने तो बता ही दिया कि कैसे भारत से उन्हें क्लीयरेन्स दिया गया ऐसी ही दूसरे कर्जा खाकर भागे नागरिक के लिए जो अब एन्टीगुआ का नागरिक बन गया है.
ऐसे में यही मुफीद है कि भूल जाओ वो हमारा नागरिक है फिलहाल तो उनका मेहमान है जो अब वापस नहीं आने वाला. ये वही वाला काला धन है जिसे सब जानते हैं कि देश का है मगर विदेश में हैं और लाख दावों के बावजूद भी वापस नहीं आने वाला. वापस से खैर भारत में आ बसे गैर नागरिक भी नहीं जाने वाले. दिखावे के लिए दो पाँच हजार घुसपैठिये इधर उधर कर भी देंगे तो भी चुनाव के लिए एक मस्त मुद्दा तो मिल ही गया है.
अगले चुनाव में वापसी के लिए वापसी ही मुख्य मुद्दा बन कर रह जायेगा – चाहे काला धन की हो, काले धनधारी की हो या घुसपैठियों की हो.
-समीर लाल ’समीर’

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में रविवार अगस्त ५, २०१८ के अंक में:
http://epaper.subahsavere.news/c/30913506

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3 टिप्‍पणियां:

Gyan Vigyan Sarita ने कहा…

गिलास आधा भरा है या आधा खाली है इसे कहने और स्वीकार करने के लिए ऊंचा मनोबल चाहिए, जिसका आधार है साफ़ नीयत और पक्का इरादा | आज के पपर्यवेक्ष में लेख बहुत प्रासंगिक है और यह हमारे नागरिकों की प्रभुद्धता पर निर्भर करता है की किसे अगले चुनाव में योग्य आंकते हैं | आने वाले समय के वही निर्धाता हैं और वे उसके फल भोगने के अधिकारी | इस प्रासंगिक लेख से आपने हमें हमारे अधिकार से अधिक हमारे उत्तरदायित्व के प्रति जागरूक किया है , धन्यवाद और अगले लेख की प्रतीक्षा में.....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (07-08-2018) को "पड़ गये झूले पुराने नीम के उस पेड़ पर" (चर्चा अंक-3056) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आज, 6अगस्त,के जागरण के साथ "चाय की चुस्की" ली ! स्वादिष्ट थी, बधाई