कुछ बयान इसलिए
दिये जाते हैं ताकि बाद में माफी मांगी जा सके. बाद में माफी कब
मांगना है यह भी माफी मांगने की केटेगरी वाले बयानों की सब केटेगरी पर निर्भर करता है. अगर आपने किसी की मान हानि वाला बयान दिया है तो माफी भी तब मांगना होगी जब
अगला लाखों की मान हानि का दावा ठोक दें. इस केटेगरी में आजकल दिल्ली के मुख्यमंत्री जी भविष्य में दिये जाने वाले
बयानों के लिए भी अभी से माफीनामा बनवा कर रख ले रहे हैं.
इसी में एक सब केटेगरी
है जिसमें आप बयान देने के साथ ही साथ चंद मिनटों
में खुद ही माफी मांग लेते हैं बिना किसी की प्रतिक्रिया के आये ही. आप जानते हैं कि आपके बयान का एक मात्र जबाब
आपको लतियाया जाना है जिसे आजकल की सोशल मीडिया की भाषा में ट्रॉल किया जाना भी
कहते हैं. इसका सबसे बेहतरीन
उदाहरण है कि फिल्म से जुड़ी शख्सियत का कास्टिंग काऊच के बारे में राज उजागर करने
वाला बयान और उसका देखा देखी किसी
नेत्री के द्वारा संसद में भी कास्टिंग काऊच के होने का बयान. जिसे देखो वो ही ऐसा सनसनी मचा देने वाला
कास्टिंग काऊच के बारे में बयान दे दे रहा है और फिर माफी मांग रहा है कि मेरे
कहने का वो मतलब नहीं था जो मीडिया ने लगा लिया. मीडिया उसे तोड़
मरोड़ के पेश कर रहा है और उसे #MeToo जैसी बातों से जोड़ कर देख रहा है. जबकि हकीकत यह
है कि मीडिया तो अभी तोड़ भर पाया है और मरोड़ कर प्रस्तुत करने की तो तैयारी कर रहा है. वो तो इसका
नाट्य रूपांतरण भी लाएगा मानो की सब कुछ इनकी आँखों के सामने घटित हुआ हो.
तिवारी जी सुबह
पान की दुकान पर मिले तो कहने लगे कि कास्टिंग काऊच का किस्सा तो हमसे पूछो. बॉलीवुड बेवजह
बदनाम है क्यूंकि कास्टिंग को लोग स्टार कास्टिंग
की तरह देख रहे हैं स्क्रीन पर, मगर सच कहें तो
जिसके पास भी पावर है कि किसी के सपने निखारने में मदद दे सके, वो कास्टिंग काऊच
हो जाने की काबीलियत रखता है बस जिसे मौका हाथ लग
जाये. जैसे रिश्वतखोरी
भी मौका लगने की बात है वरना तो मजबूरी में सब ही ईमानदार हैं. इक्के दुक्के अपवादी तो खैर हर
जगह होते हैं. हम तो जानते हैं
न कि सरपंच के चुनाव में जानकी देवी को टिकिट कैसी मिली थी, वही कास्टिंग
काऊच वाला खेला था वरना कहाँ वो और कहाँ
सरपंची? मूंह तो देखो उसका? यह बोल कर तिवारी जी ने पान
की पीक ऐसे थूकी मानो जानकी देवी के चेहरे पर थूका हो. पान खाने वाले अक्सर
अपनी खुन्नस का इसी
तरह इजहार करते हैं.
अंत में उन्होंने अपनी बात को समराईज़ करते हुए कहा की असल अंतर बस
इतना सा है कि पैसा या गिफ्ट ले लो तो रिश्वतखोर और अगर सेक्सुअल फेवर ले लो तो
कास्टिंग काऊच.
समर्पण किया मन
से मगर आरोप कि लुटे तन से. हाल ही में एक स्वयंभू संत के संदर्भ में सुना कि इसे वह स्पर्श दिक्षा का नाम
देते हैं. काम वही कास्टिंग
काऊच का. बदले में स्वर्ग में जगह तय. अब अदालत ने ताउम्र कैद की
सजा काटने का फैसला दिया है. दूसरों को
स्वर्ग में रिजर्वेशन दिलाने का जिम्मा उठाये खुद धरती पर ही नरक को प्राप्त हुए. ये होता है
त्याग. ऐसे ही नहीं कोई संत कहलाता है.
रिश्वतखोरी में रिश्वत
देने वाले की भी उतनी ही गलती होती है वरना मजाल है कोई ले ले रिश्वत. अपना काम साधना
होता है तो दे देते हैं रुपया. वही हाल यहाँ है. सारा जीवन जिसे
अपना पथ प्रदर्शक बताते आये, अपना मसिहा बताया उसे ही वक्त गुजर जाने के बाद योन शोषक ठहरा दिया. कास्टिंग काऊच
बना दिया. बड़ा अजीब मसला है, चाहे राजनिती हो, फिल्म हो, बाबागिरी का धंधा या कोई दीगर प्रोफेशन.
कास्टिंग का मतलब
एक शेप में ढालना है और जो किसी के मंसूबों को शेप में ढालने की कुव्वत रखता है, वो कास्टिंग काऊच
कभी भी हो सकता है. बाकी सब कुम्हार. बनाओ तरह तरह के कुल्हड़. कौन पूछता है है भला जब तक कोई प्रमोटर न हो? उन्हें ही तो
कास्टिंग काऊच कहते हैं.
बॉलीवुड बेवजह
बदनाम है, कास्टिंग काऊच हर प्रोफेशन में होते हैं!!
न मैं
भ्रष्टाचारियों का समर्थन करता हूँ और न ही कास्टिंग काउचों का..मगर वो हैं तो हैं!!
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में तारीख २९ अप्रेल, २०१८ को:
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
#Hindi_Blogging
4 टिप्पणियां:
समीर जी, बहुत पैनी नजर पाई है | रोजमर्रा की घटनाओं को लोग जिसे नजरंदाज कर देते हैं उन्हें किस बखूबी से व्यंग के द्वारा प्रतिष्ठित लोगों की विसंगति को उभरते हैं | हर इतवार की सुबह आपके लेख का इंतज़ार करके फिन दिन की शुरुआत होती है | आपके आगामी लेख की प्रतीक्षा में ......
पेनी नजर .
सत्य की नजर जो माने ,वही मसीहा .
समीर जी ,शुभप्रभात .
किस किस की कहें और किस किस की देखें?
सभी तरफ मारामारी है --
कास्टिंग कोच की .
नए-नए कलेवरों के साथ.
कभी सोचती हूं --एक छोटी सी किताबा लिखा दूं ,
लेकिन छुपा बैठ जाती हूं --
कहां मेरी किताब यहां तो ग्रंथ भरे पड़े हैं ?
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन पेन्सिल में समाहित सकारात्मक सोच : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जो हैं तो हैं....
साहित्य की दुनिया में इसका जिक्र जरूर नया है !
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