रविवार, अप्रैल 22, 2018

मार्केटिंग इज़ द किंग!!



एक नया कॉलम : अंदाज  बयां - समीर लाल समीर’ by renowned author in Hindi, settled at Canada.


धरा दिवस हर वर्ष अप्रेल २२ को मनाया जाता है. दिवस विशेष पर प्रयास एवं प्रार्थना इस हेतु होती है कि धरा को ज्यादा समय तक कैसे बचा कर रखा जाये?
हम ही अपने फायदे के लिए साल भर इसका अति तक दोहन करके इसकी हालत ऐसी जर्जर कर रहे हैं और फिर साल के एक दिन प्रार्थना करते हैं कि किसी तरह बची रहे. मानो धरा न हो गई हो फेसबुक का पन्ना हो. साल भर माँ बाप की कोई कद्र और परवाह न की मगर मातृ दिवस और पितृ दिवस पर ऐसा उन्माद भरा उत्सव कि माँ बाप भी सोचने को मजबूर हो जायें कि आज जरुर कुछ ज्यादा पी ली है वरना बेटा ऐसा तो न था.
अच्छा है कि मातृ दिवस और पितृ दिवस पर हर बरस नई नई थीम नहीं आती कि इस साल उन्होंने खाना खिलाया, इसलिए उनको सादर नमन. अगले बरस इसलिए नमन कि उन्होंने पढ़ाया, उसके अगले बरस इसलिए कि उन्होंने घर में रखा....बरस दर बरस थीम बदलते बदलते २०/२५ सालों में आऊट ऑफ थीम ही हो जाये बंदा और फिर उनकी वही हालत जो बुढ़ापे में सच में कर डालते हैं वो ही मातृ दिवस और पितृ दिवस पर भी हो जाये और वो वृद्धा आश्रम में इन्तजार करते एक दिन गुजर जायें.
मगर धरा दिवस की विशेषता है कि हर बरस एक नई थीम होती है. किसी साल पर्यावरण मित्रता की बात होती है. फिर किसी साल ग्लोबल वार्मिंग की. इस बरस २०१८ में प्लास्टिक से हो रहे पर्यावरण के नुकसान की बात है. बात जागरुकता फैलाने की ही है. उम्मीद कर रहा हूँ इस बरस इस हेतु २२ अप्रेल के सेमीनार में जो मूमेन्टो, लोगो, पेम्पलेट एवं अन्य मेटेरियल का किट दिया जायेगा वो प्लास्टिक के बैग में नहीं होगा. यह मात्र एक उम्मीद है वरना तो विश्व हिन्दी दिवस में सम्मलित होने और सृजनात्मक योगदान का प्रशस्ति पत्र भी अंग्रेजी में प्राप्त हुआ था.
सारे देश धरा दिवस पर रात ८:३० से ९:३० बजे तक बिजली बंद रखने की अपील करते हैं और लोग अपने घरों और दफ्तरों की बत्तियाँ बंद रखकर इस दिवस के प्रति अपनी श्रृद्धा, समर्पण एवं समर्थन का प्रदर्शन करते हैं.
मेरे एक मित्र का पिछले साल भारत से फोन आया था. उसे जब मैने इस हेतु प्रेरित किया तो वह अति उत्साहित हो चला. कहने लगा कि निश्चित ही वह और उसके साथी इस दिवस पर संपूर्ण जागरुकता फैलायेंगे और योगदान करेंगे. उत्तर प्रदेश के उस बड़े शहर में एक आंदोलन सी लहर फैला दी कि २२ अप्रेल, २०१७ को सारे शहरवासी रात ८:३० से ९:३० बजे तक बिजली बंद रख कर अपना समर्थन प्रदर्शित करेंगे. मगर भारत तो भारत है और उस पर से उत्तर प्रदेश!! जो २२ अप्रेल की सुबह से उसके शहर की बिजली गई तो २३ अप्रेल की सुबह ही लौटी. जो है ही नहीं, जो चल ही नहीं रहा है, उसे बंद क्या करते? बेचारे अपना सा मूँह लेकर रह गये. सोचते ही रह गये कि काश! इन्वर्टर  ही चार्ज कर लेने का मौका मिल जाता तो बिजली चालू बंद कर लेते. ये बेचारे सीधे सादे लोग हैं, कोई नेता तो हैं नहीं जो इतनी हैसियत हो कि स्वच्छता अभियान चलाने के लिए साफ सुथरी जगह पर कचरा फेलवा लें ताकि उसे साफ कर स्वच्छता अभियान को सफल घोषित किया जा सके और अखबारों में छापने के लिए सेल्फी निकाली जा सके..
गरीबी हटाने की बजाये हम आदी हो गये हैं गरीब पैदा करने के ताकि गरीबी मिटाने का नारा उठा कर चुनाव जीत सकें. हम आदी हो गये हैं संप्रदायों को बांटने के ताकि उन्हें जोड़ने का आगाज कर हम अपना उल्लु सीधा कर सकें.
हमारी शिक्षा प्रणाली भी इतनी लचर हो गई है कि मास्टर स्कूल में मात्र इसलिए ठीक से नहीं पढ़ाते ताकि बच्चे उसी मास्टर की कोचिंग में आकर कई गुना ज्यादा पैसा देकर ट्यूशन पढ़ें और सफल हों. उनके विज्ञापन और सफलता के परिणाम देखकर लगता है कि क्या यह वही शिक्षक है जो फलां स्कूल में पढ़ाता है?  मौके और नजाकत के हिसाब से हम रुप बदलते रहते हैं. वही मास्टर स्कूल में कुछ और एवं कोचिंग में कुछ और. शायद घर पर कुछ और हो..सच में कितना सही कहा है निदा फ़ाज़ली साहेब ने:
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी,
जिस को भी देखना हो कई बार देखना..
इस बरस की धरा दिवस की थीम...प्लास्टिक का विरोध एवं उससे हो रहे पर्यावरण के नुकसान के प्रति सजगता. हम, जो सदा से कुर्ता और पजामा फट जाने पर उसका झोला सिलकर सब्जी लेने जाते रहे हैं, उनके द्वारा? प्लास्टिक हमें बाजार ने पकड़ा दी वरना तो हम झोला छाप शुरु से कहलाते आये ही थे. वही झोला छाप इस बरस उस प्लास्टिक का विरोध दर्ज करेंगे, जिसे बाजार नें हमसे कपड़े का झोला छिन कर हमारे हाथों में थमा दिया है.
हम कुल्हड़ में चाय पीकर बड़े हुए पर्यावरण के प्रति जागरुक नागरिक. बाजार के साथ तालमेल बैठाते हुए अनजाने में ही कब प्लास्टिक के कप में चाय सुड़कते हुए पोलीथीन में लपेट कर चाय दफ्तर तक लाने लगे, पता ही नहीं चला. कैसी विड़ंबना है!!
मुझे वह वाकिया याद आ रहा है मेरे शहर का..जहाँ खबर उड़ी थी कि एक डॉक्टर ने दवा दे देकर एक गैस के मरीज को दिल का रोगी घोषित कर दिया था और फिर दिल्ली के बड़े अस्पताल में ओपन हार्ट सर्जरी के लिए रेफर कर बड़ा कमीशन बना कर बड़े डॉक्टर का दर्जा प्राप्त कर लिया था.
धरा के साथ भी धरा दिवस पर हम कुछ कुछ वैसा ही तो कर रहे हैं और कहला रहे हैं धरा दिवस के जागरुक सिपाही..
कौन जाने कल को हमारा यही दिखावा, हमें धरा सैनिक का नोबल पुरुस्कार दिलवा दे. जमाना मार्केटिंग का है, मार्केटिंग सॉलिड हो तो कुछ भी संभव है..
आज अमेरीका के राष्ट्रपति से लेकर भारत के प्रधान मंत्री तक, सब मार्केटिंग का ही तो कमाल है! समाज सेवा अब आऊट ऑफ सिलेबस है.
मार्केटिंग इज़ द किंग!!
-समीर लाल समीर  
#Hindi_Blogging
#हिन्दी_ब्लॉगिंग 
#व्यंग्य 
#Vyangya

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2 टिप्‍पणियां:

Laxmi ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है। निदा फ़ाज़ली साहब का कथन महाबीर के बहुचित्तवाद की याद दिलाता है।

Ajabgajabjankari ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत लेख प्रस्तुतकिया