शादी का गठबन्धन राजनीतिक गठबंधन से जहाँ पहले बहुत मजबूत हुआ करता था
वहीं आज थोड़ा कमजोर हुआ करता है. बीच में एक दौर ऐसा भी आया था जब दोनों ही लगभग
एक बराबर स्ट्रेन्थ रखने लगे थे. राजनीतिक गठबंधन तोड़ने में तो फिर भी राजनीतिक दल,
एक तो पद की लोलुपता और दूसरे, वोटर के अहसान की वजह से कुछ वक्त लगाते हैं मगर
वैवाहिक गठबंधन तोड़ने में तो जोड़े आजकल एक सेकेंड नहीं लेते. बस!! एक डायलॉग कि आई
कान्ट टेक इट ऐनी मोर..यू आर सो डिस्गस्टिंग और खतम गठबंधन.
राजनीतिक गठबंधन घटनाओं से टूटते बनते हैं. गधे को बाप कहना और फिर
बाप को गधा कह देना भी एक गठबंधनीय वजह के तहत होता है जबकि शादी में गधे को बाप
ठहरा देना या सामने वाले के बाप को गधा, दोनों हॊ गठबंधन तोड़ने के कारक हो जाते
हैं.
राजनीतिक गठबंधनों की चरमराती हालत और बदलते परिवेश से शादी के गठबंधन
ने बहुत कुछ सीखा..वहीं गुरु गुड़ न रह जाये और चेला शक्कर न बन जाये..इस चक्कर में
राजनीतिक गठबंधनों ने भी शादी के गठबंधनो से लगातार सीखा.
शादी के गठबंधन पहले दो प्रकार के होते थे. एक तो तय तमाम हो कर..याने
कि अरेन्जड और दूसरा गंधर्व...जिसे परिवार और समाज की सहमति न मिलती थी तुरंत
..मगर एकाध बच्चा होते ही अधिकतर परिवार तो कम से कम उनको अपना वापस मान ही लेते
थे सो ही हालत थे छुपे छुपे से राजनीतिक गठबंधनो की..जो समाज को बताये नहीं जाते
थे मगर एक दूसरे के खिलाफ कमजोर प्रत्याशी खड़े करवा कर क्षेत्रवार जीत सुनिश्चित
कर चुनाव के बाद एकाएक मिलमिला कर सरकार बना लेते थे. जनता शुरु में ठगा सा महसूस
करती मगर एकाध साल गुजर जाने पर, एक दो फायदे की साझा योजना देखते हुए अपना लेती
थी भले ही अंततः ठगी ही रह जाती हो. गंधर्व वाले विवाह के गठबंधन में अक्सर जब दो
मजहबों का गठबंधन होता तो बवाल ज्यादा कटता, बात मारापीटी से मर्डर तक आकर अक्सर
गठबंधन टूटने पर आ जाती. वही हाल उनका राजनीति में होता, हिन्दु हिन्दु करके जीत
गये और हाथ मिला बैठे दलितों के वोट बैंक वालों से..सरकार बनाने को...और जैसा होना
था कि खूब बवाल कटती..कुछ दिन सरकार चली, कुछ लोग मरे, कुछ जी गये और सरकार समेत
गठबंधन फिर धाराशाही.
वक्त बदला...गंधर्व विवाह, लव मैरिज सामान्य सी बात हो गई. किसी को
इससे फर्क पड़ना ही बन्द हो गया. लोग भी इसे यूं कह कर अपनाने लगे कि जब मियां बीबी
राजी, तो क्या करेगा काजी. मानो इस बात से समझौता कर लिया हो कि नियती के आगे
हमारा क्या जोर? नेता है तो धोखा तो देगा ही!! मगर समाज से मिली इस मान्यता नें
समाज के सामने जो आँख की शर्म होती थी, उसे भी हटा दिया तो जब जुड़ने में शर्म नहीं
तो तोड़ने में शर्म कैसी? छोटी छोटी बातों पर विवाह टूटने लगे. सबके लिए परिवार से
ज्यादा अह्म और कैरियर महत्वपूर्ण हो गया. वहीं राजनिती में राष्ट्र हित से ज्यादा
पदलोभ और सत्ता में बने रहना महत्वपूर्ण हो गया. समाज की परवाह दोनों ही ने करना
छोड़ दी.
दुगर्ति की विशेषता ये होती है कि उसकी गति बड़ी तेज होती है और उसकी
इस गति को विराम मिलना मुश्किल हो जाता है. वो ही हालात यहाँ हो लिए. हर चीज इतनी
व्यवहारिक हो गई..हर सोच इतनी सो काल्ड प्रगतिशील हो गई कि किसी भी अन्य मान्यताओं
के लिए स्थान बचा ही नहीं मात्र खुद की सहूलियतों के. जिन्दगी जैसे मकान हो गई हो.
दो शरीरों के लिए एक छत ताकि रह सकें आराम से. तयशुदा जरुरतें शरीर और रहवास की
पूरी होती रहें और बस!! इससे ऊपर कुछ भी नहीं तो लिव ईन रिलेशनशिप का जमाना आ गया.
मानो कह रहे हों..कि हाँ, हम गठबंधन कर रहे हैं मगर अपनी सहूलियत के लिए. जैसे ही
ऐसा लगेगा कि हममे से कोई भी एक दूसरे पर हाबी हो रहा है या अब हमें एक दूसरे के
साथ जम नहीं रहा.. हम दोनों स्वतंत्र होंगे कि अपनी अपनी नई राह चुन कर उस पर चल
दें.
तुम जो हमसे रुठोगे तो और भी हैं हमारी सरकार बनवाने वाले..मिनट लगता
है..पलक झपकते ही खेल और साथी बदल जाते हैं..और मुस्कराते हुए मेरे सरकार फिर से
नजर आते हैं...बिहार याद आता है अक्सर जब एक लिविग इन रिलेशनशिप में साथी बदलते
देखता हूँ. हुआ होगा कोई सियासी साहसी खेल या एक नया करार...मगर टूटा तो समाज का
भरोसा ही न!!
राजनीति में एक तरह का गठबंधन ऐसा भी होता है जिसमें मुद्दा आधारित
बाहर से समर्थन देने का आश्वासन दिया जाता है, जैसे पहले के सेठ साहूकार एक अलग से
रख लिया करते थे. उसे सारी सुख सुविधा, खर्चा पानी और यहाँ तक की शहर भी जानता था
कि सेठ जी दूसरी वाली है मगर बस, समर्थन बाहर से. न तो हमारी धन संपत्ति में कानूनी
हिस्सेदारी और न ही संतानों को हमारा नाम. हैं भी मगर कोई पूछेगा तो मना भी कर
देंगे कि नहीं हैं. अजब सा गठबंधन.
वैवाहिक गठबंधन अब कई नई राहें ले रहा है. एक तो यह कि अगर गठबंधन में
बंधना हैं तो इसके टूटने की कीमत पहले से तय कर लो, बाद के सरप्राईज नहीं चाहिये.
याने जोड़े प्री नेपच्यूल एग्रीमेन्ट कर लेते हैं इसके लिए. अगर अलग हुए तो क्या
शर्तें होंगी? उस अलगाव की कीमत क्या होगी? ताकि कोई प्रापर्टी या धन लूटने की
मंशा से जुड़ रहा हो तो पहले ही लगाम कस दी जाये कि इस मुगालते में न रहना कि सब
तुम्हारा हो जायेगा.. और दूसरा नजरिया, सेम सेक्स मैरिज.....इसका राजनीतिक गठबंधन
क्या सबक लेता है यह शायद अभी देखना या दिखना बाकी हो..मगर कम से कम सेम सेक्स वाली
बात पर...जैसा लोग बताते हैं कि ऐसे संबंध जमाने से रहे हैं भले ही मान्यता अलग
अलग देशों में अब मिल रही हो...भले ही लोग खुल कर अब सामने आ रहे हों..मगर राजनीति
में इनके समकक्ष किसे रखूँ यह अब तक मेरी समझ में नहीं आया है..मगर दबा छुपा ऐसा
कुछ तो यहाँ भी अर्सों से कोई न कोई गठबंधन होगा ही जो कल को खुल कर सामने आयेगा
और मान्यता प्राप्त करने के लिए आवाज लगायेगा और इन सबके साथ, प्री नेपच्यूल
एग्रीमेन्ट टाईप बातें भी क्या स्वरुप लेंगी, प्राईवेट रहेंगी कि पब्लिक कर दी
जायेंगी, कौन जाने!!
मुझे ऐसे एग्रीमेन्ट वाले गठबंधन और उस राजनीतिक प्राईड परेड का
इन्तजार है जो एलजीबीटी (सेम सेक्स वालों की प्राईड परेड) की रेन बो परेड के
समकक्ष अपना झंडा लहरायेंगे कि हम अपने राजनीतिक गठबंधन पर गर्व करते हैं..हमें
मान्यता दो..हम किसी से कम नहीं!!
एक सोच ही तो है..न जाने किस रुप में, प्रभु दर्शन हो जायें...
-समीर लाल ’समीर’
दैनिक सुबह सवेरे भोपाल में रविवार ३१ दिसम्बर, २०१७ को प्रकाशित:
http://epaper.subahsavere.news/c/24973807
फोटो साभार: Photo Courtesy:
https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Rainbow_warriors_-_DC_Gay_Pride_Parade_2012_(7171056053).jpg
फोटो साभार: Photo Courtesy:
https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Rainbow_warriors_-_DC_Gay_Pride_Parade_2012_(7171056053).jpg
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