नमस्कार, अब गुजरात और हिमाचल के चुनाव हो चुके हैं और
दोनों ही जगह आपको हार का मूँह देखना पड़ा, इस पर आप क्या कहना चाहेंगे?
देखिये, आपको शायद जानकारी नहीं है लेकिन हम दोनों ही
जगह जीते हैं. आप मीडिया वाले
सब गलत सलत दिखाते हैं. दरअसल, सब आपका नजरिया है देखने और दिखाने का. आप बताईये कि गुजरात में पिछली बार हमारी कितनी
सीटें थी? ६१ है न!! अबकी बार हमारी ७७ और साथियों के साथ मिलाकर ८०..तो हम १९ सीटें एकस्ट्रा जीते कि नहीं. असल में हारे तो वो हैं १२० से ९९ पर आ गिरे, २१ सीटें हार गये मगर आप मीडिया वाले तो उन्हीं
के गुण गाओगे.
लेकिन सर बहुमत
में तो वो ही हैं, सरकार तो वो ही
बनायेंगे?
बात हार जीत की
है साहब! सरकार कौन बनाता
है, किसकी बनती है, वो अलग बात है. सरकार पार्टी से उपर उठ कर होती हैं. जो सरकार बनेगी वो गुजरात की बनेगी. कभी किसी मुख्यमंत्री या मंत्री का कार्ड पढ़ कर
देखियेगा- उस पर लिखा होता
है- मुख्य मंत्री, गुजरात राज्य!! वहाँ पार्टी अपनी पहचान खो देती है.
चलिये आप की बात
मान भी लें कि आप गुजरात जीत गये मगर हिमाचल, वहाँ तो आप साफ साफ हारे हैं?
जी नहीं, आप एक्लिट पोल के परिणाम देखें. सब चिल्ला रहे थे कि हिमाचल में पार्टी का
सूपड़ा साफ याने की जीरो सीटें, है न? और परिणाम देखिये २१ सीटें..वो दान में नहीं मिली, वो हम जीते हैं. और फिर वहाँ बात एन्टी इन्कमबेंसी की भी थी.
एन्टी इन्कमबेंसी
तो खैर गुजरात में उनके लिए भी लागू होता है, फिर?
फिर क्या, अभी बताया तो कि वो हार गये है, अब क्या लिख कर लिजियेगा मुझसे?
खैर जाने दिजिये
इसको, आप यह बतायें कि
आपने चुनाव परिणाम आने के बाद हिमाचल के विषय में कोई बयान नहीं दिया?
देखिये, हम मेहनतकश गरीब मजदूर के एक एक पसीने की बूँद
का सरकार से हिसाब मांग रहे हैं. आप हमारे हर बयान
देखिये, उसमें मजदूर के
पसीने की बात है. पसीने की कमाई की
बात है. फिर आप देख ही
रहे हैं कि हिमाचल में कित्ती ठंड पड़ती है. अभी तो बर्फ बारी भी हो रही है. ऐसे में किसी को
वहाँ पसीना आ ही नहीं रहा, तो हम क्या बयान
दें, किसकी बात उठायें, इस लिए चुप रह आये.
जी, बात तो आपकी सही है. अब २०१९ के चुनाव की उल्टी गिनती शुरु हो गई है, क्या रोड मैप तैयार किया है आपने और क्या माईल
स्टोन्स सेट किये हैं जो तय करेगा कि आप जीत की अग्रसर हैं?
ये तो आपने
सवालों की झड़ी लगा डाली और वो भी एक दूसरे से असंबंधित सवाल. मैं आपको एकएक करके जबाब देता हूँ- पहली बात, उल्टी गिनती हमारे यहाँ न तो किसी को आती है और
न ही कोई गिनता है. ये उन लोगों का
काम है, उन्हें करने दें
सीधी सादी जनता को बेवकूफ बनाने के लिए. कौन सा ऐसा पाठ्यक्रम है जिसमें उल्टा गिनना सिखाया जाता है? एक से शुरु होकर असंख्य तक गिनती गिनी जा सकती
है मगर उल्टी गिनती. आप ही बताईये कि
आपके कहे अनुसार अंसख्य से गिनना शुरु करते हैं, अंसख्य के एक पहले क्या? नहीं बता पाये न!! मुझसे ऐसे प्रश्न मत करिये जिसमें आप खुद उलझ
जायें.
दूसरी बात, रोड मैप की. तो मैं आपको बता दूँ कि अव्वल तो जीपीएस के
जमाने में अब कोई रोड़ मैप नहीं बनाता. और जब सभाओं के स्थान तय होंगे, रैलियों की शहर
तय होंगे तो हम तो हर जगह हैलीकाप्टर और हवाई जहाज से आते जाते हैं तो उसमें रोड
मैप कैसा? रोड़ से जायें तो
भी एक बार रोड़ मैप की सोचें मगर वो भी अब जरुरत नहीं पड़ती, मेरी कार में तो जीपीएस लगा है वरना फ्री डाटा
के जमाने में फोन पर गुगल मैप से देखते हुए चले जाओ जहाँ जाना है. आप लोग अपनी नॉलेज अप टू डेट रखा किजिये वरना
फोरेन मीडिया तो आपको बुद्धु करार दे देगा.
तीसरी बात आपने
माईल स्टोन की पूछी है. तो आपकी जानकारी
के लिए बता दूँ कि माईल स्टोन अलग से सेट नहीं किये जाते. जहाँ जहाँ आवश्यक होता है, हम सड़के बनवाते हैं और जब सड़कें बनती है तो
उसके किनारे किनारे माईल स्टोन दूरी के हिसाब से ठेकेदार लगवाते हैं. आप पार्टी के माईल स्टोन की बात करते हैं. आप भारत का एक भी माईल स्टोन दिखा दें जिस पर
लिखा हो कि यह कांग्रेस ने सेट किया या ये बीजेपी ने? यह सरकार का काम है और जैसा मैने बताया कि
सरकार पार्टी से उपर देश या प्रदेश की होती है. वो ही सड़के बनवाती हैं और वो ही माईल स्टोन
लगवाती है.
नहीं, नहीं, मैं २०१९ के लिए आपकी पार्टी की प्लानिंग की
बात कर रहा था?
देखिये, प्लानिंग का काम प्लानिंग कमीशन का होता है. अब आप उनसे जाकर
यह प्रश्न किजिये जिन्होंने प्लानिंग कमीशन ही खत्म कर दिया. उनसे तो आप कुछ
पूछते नहीं और आप हमसे प्लानिंग की बात कर रहे हैं?
सुना है अगले
चुनाव में टेक्नोलॉजी का खूब इस्तेमाल होगा, सोशल मीडिया, डाटा, बिग डाटा, क्लाऊड बेस डाटा
सेन्टर और भी न जाने क्या क्या- आर्टिफीशियल इन्टेलिजेन्स. क्या हैं आपकी
तैयारियाँ इस दिशा में.
देखिये, हम गरीब किसानों
और मजदूरों के हितों की बात करने वाली पार्टी है. हम चाहते हैं कि
उनकी खेती में टेक्नोलाजी का इस्तेमाल हो. इस हेतु हमसे जो मदद बन पड़ेगी वो करेंगे. सोशल मिडिया के
माध्यम से मैं उनसे जुड़ा महसूस करना चाहता हूँ. मैं हर किसान और
मजदूर के हाथ में टेक्नोलाजी देखना चाहता हूँ, व्हाट्सएप देखना
चाहता हूँ ताकि वो मुझे जुड़ सके और हमें अपनी समस्या बिना बिचौलियों के बताये. एक नया व्हाटसएप
भारत का निर्माण मेरा सपना है. रही बात डाटा की तो मैं स्माल हो या बिग, उसमें फरक नहीं
करता. जैसे हर देशवासी को एक समान अधिकार प्राप्त कराने के लिए मैं प्रयासरत हूँ
वैसे ही डाटा के क्षेत्र में भी मैं बिग और स्माल की दूरी को पाटने के लिए हर संभव
कदम उठाऊँगा. यह हमारे मेनिफेस्टो में डालूँगा.
और आज आपको
स्पष्ट रुप से बता दूँ कि किसी गरीब किसान का हक मार कर किसी अमीर को उसकी जमीन
दिलवा देने जैसे कार्य का मैं सख्त विरोधी रहा हूँ. जो गरीब किसान का
हक है उसे मारने का प्रश्न ही नहीं होता. अतः आप क्लाऊड बेस डेटा सेन्टर की तो मुझसे बात
भी न करें. क्लाऊड का काम है कि वो पानी एकत्रित कर गरीब किसान के खेत में उसे बरसाये और
आप मुझसे उम्मीद करते हैं कि मैं उनका पानी हटा कर वहाँ डाटा सेन्टर खोलूँ. यह हमारी पार्टी
की सोच नहीं है. किसानों की जमीन पर खेती
ही होगी, उद्योग नहीं खुलेंगे.
और आपके प्रश्न
की अंतिम बात, आर्टिफीशियल इन्टेलिजेन्स. हमें उसकी जरुरत नहीं है. हमारे पास हमारी पार्टी के ब्रेन टैंक में ओरिजन आर्गेनिक ह्यूमेन
इन्टेलिजेन्स कूट कूट कर भरा है तो हम आर्टिफीशियल चीजों का इस्तेमाल क्यूँ करें? जिनके पास न हो
वो करे तो इससे हमें कोई एतराज भी नहीं. उनके यहाँ तो आर्टिफीशियल के साथ साथ ब्यूरो
वाला इन्टेलिजेन्स भी इन्हीं सब के लिए इस्तेमाल होता है.
सर! मान गये! जैसा लोग बताते
है वाकई वैसी ही आपकी ’आऊट ऑफ द बॉक्स थिंकिंग’ है, कैसे सोच लेते
हैं इस तरह आप?
देखिये, हम चाहते हैं कि
इस देश की महिलायें जब सड़को पर निकलें तो सुरक्षित महसूस करें. खुद को एमपावर्ड
महसूस करें. बुजुर्ग कभी असुरक्षित न महसूस करें. उन्हें घर में ताले लगाने की जरुरत न पड़े..
सर! हमारे पास समय
कम है आप कृप्या सवाल से न भटकें.
नहीं, मैं आपके सवाल का
ही जबाब दे रहा हूँ. मेरी बात तो पूरी होने दें. वो इतना अधिक सुरक्षित महसूस करें कि उन्हें अपने कीमती सामानों को तिजोरी या
बक्से में बंद करके रखने की जरुरत ही न पड़े. याने हर सोच ऐसी हो जिसमें बक्सा और तिजोरी का
नाम ही न हो..इसे ही मैं मानता हूँ ’आऊट ऑफ द बॉक्स थिंकिंग’ याने कि बक्से
के बाहर निकल पर सोचो और मैं इसी को जीता हूँ इसीलिए लोग ऐसा कहते होंगे.
अब समय समाप्त
होना चाहता है मगर चलते चलते एक निवेदन, जैसे ही २०१९
चुनाव का आपका ब्लू प्रिन्ट तैयार हो जाये, हमें जरुर सूचित
करियेगा.
देखिये, प्रिन्ट तो गुजरे
जमाने की बाद है. आजकल तो ईमेल, स्कैन से काम होता है. मोबाईल में सब डाऊनलोड किया होता है. प्रिन्ट कौन निकलवाता है? और जहाँ तक रंग
की बात है तो मैं वर्ड डाकुमेन्ट में डिफाल्ट फॉन्ट कलर ब्लैक ही रखता हूँ. आपको भेज दूँगा
ईमेल में फिर आप चाहो तो ब्लू, ग्रीन, आरेंज जिस कलर में मन चाहे कन्वर्ट करके सेव कर लेना.अगर मैं हरा
करुँगा तो लोग मुझे एक वर्ग विशेष से जोड़ने लगते हैं इसलिए डिफाल्ट काला ही भला.
थैन्क यू सर, आपने इतना समय
दिया और उससे भी ज्यादा, इतना ज्ञान दिया. पूरा देश आपका
आभारी रहेगा.
डिसक्लेमर: यह इन्टरव्यू
मात्र मनोरंजन के लिए काल्पनिकता पर आधारित है, अतः इसे उसी रुप
में पढ़कर आनन्द उठाया जाये. कृप्या इसे भविष्य में कभी मुझे पार्टी के टिकिट से वंचित करने का आधार न
बनाया जाये.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से
प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के दिसम्बर २३, २०१७ के अंक में:
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