बुधवार, अक्तूबर 28, 2015

जिल्द इक किताब का...

दो काल खण्ड
इस जीवन के
और उन्हें जोड़ता
वो इक लम्हा
जो हाथ पसारे
लेटा है इस तरह
दोनों को समेटता
मानिंद जिल्द हो
मेरी जिन्दगी की
किताब का!!

-समीर लाल ’समीर’


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13 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

खूब... बढ़िया कही ....

Pallavi saxena ने कहा…

बहुत खूब।

कविता रावत ने कहा…

दार्शनिकता का पुट लिए सुन्दर प्रस्तुति ..

Asha Joglekar ने कहा…

बहुत बढिया।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

इधर आप छोटी छोटी कविताओं में बड़ी बड़ी बात कह रहे हैं।

रचना दीक्षित ने कहा…

अच्छा नजरिया जीवन दर्शन का.

Ankur Jain ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति। छोटी सी रचना किंतु गहरी बात।

gyanipandit ने कहा…

बेहतरीन पोस्ट

Rajeysha ने कहा…

बस बीती मिसालों के सिवा,
जिंदगी क्या है, ख्यालों के सिवा?
जिंदगी क्या है, सवालों के सिवा?

कंचनलता चतुर्वेदी ने कहा…

सुन्दर

Abhishek Neel ने कहा…

काफ़ी अच्छा ब्लौग है आपका समीर जी. मैं बराबर आपके ब्लौग पर आपकी नई रचनायें पढने के लिये आता हूँ. मगर एक शिकायत है कि आपकी कृतियाँ काफ़ी अन्तराल पर आती हैं. अगर और कोई अच्छा ब्लौग आप बता सकें हिंदी का तो बड़ी प्रसन्नता होगी. मैंने काफ़ी खोजा पर उदसीनता ही हाथ आयी. कोई अच्छा ब्लौग हिंदी में मिला ही नहीं. मैं भी लिखता हूँ ब्लौग. मेरा पता है washermansdog.blogspot.com. आपके मार्गदर्शन की अपेक्षा में - अभिषेक नील.

Unknown ने कहा…

सुन्दर शब्द रचना

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

बेहद प्रभावशाली......बहुत बहुत बधाई.....