एक नये तरह का प्रयोग किया है...देखें जरा...कैसी गज़ल निकली है:
कब परिंदो को पता था, आंगनों में भेद का
एक दाना वाँ चुगा था, एक दाना याँ चुगा...
सरहदों से जा के पूछो, कौन किसका खून है
एक कतरा वाँ गिरा था, एक कतरा याँ गिरा..
राज इतना जान लो, तब हर अँधेरा दूर हो
एक दीपक वाँ जला था, एक दीपक याँ जला
आसमां को कब पता था, कौन मांगे है दुआ
एक तारा वाँ गिरा था, एक तारा याँ गिरा
है जमाना लाख बदला, पर न बदला है ’समीर’
दिल तुम्हारा वाँ छुआ था, दिल तुम्हारा याँ छुआ..
-समीर लाल ’समीर’
40 टिप्पणियां:
वाकई छू गयी रचना!
सच! भावनाओं और संवेदनाओं को भला कौन सी सरहद बाँध पाती है!
सादर
मधुरेश
सुंदर ग़ज़ल।
जाने कैसे सब कुछ छुंआ छुंआ हो गया
गजल से मानस में धुंआ धुंआ यूं हो गया
बहुत बढ़िया..............
प्रयोग सफल रहा...................
सादर
अनु
बहुत खूब , प्रखर भाव है ग़ज़ल में ! बधाई
आसमाँ को कब पता था , किसने की दुआ !!
वाह !
काश इस रचना की शतांश संवेदना नायकों में होती, विश्व महक जाता।
बहुत सुंदर
बहुत सुंदर
आपकी इस ग़ज़ल ने मन मोह लिया है। हर शेर में नवीनता है।
आप वाकई प्रयोग कर्मी हैं। अगर मैं यह कहूँ तो कोई
अतिश्योक्ति नहीं है -
है ज़माना लाख बदला पर न बदले तुम `समीर`
दिल हमारा वां छुआ है दिल हमारा यां छुआ
सरहदों से जा के पूछो, कौन किसका खून है
एक कतरा वाँ गिरा था, एक कतरा याँ गिरा...
बहुत लाजवाब प्रयोग है समीर भई ... हर शेर अलग अंदाज़ लिए है ...
खून तो खून ही है ... खून किसी का भी गिरे ... माएं तो दोनों पार की रोती होंगी ...
बहुत सुन्दर ग़ज़ल , बस सहज शब्दों में रच डाली। लेकिन मन को छू गयी।
kamaal!
सरहदों से जा के पूछो, कौन किसका खून है
एक कतरा वाँ गिरा था, एक कतरा याँ गिरा...
बहुत लाजवाब
बहुत खूब समीर साहब।
"कर दिया 'फ़ैलाऊ' को कितना 'सीमित' तुमने 'समीर'
एक मिसरा वाँ जड़ा तो एक मिसरा याँ जड़ा
http://mansooralihashmi.blogspot.in
बहुत खूब..सुंदर प्रयोग।
बेहतरीन शैली की ग़ज़ल...प्रयोग बहुत ही निराला लगा...मुबारकां...
bahut sundar .......
बादलों को कब पता था सरहदों की हद कहाँ
एक बादल वां था बरसा एक बरसा है यां ।
वाँ और याँ बहुत सुंदर गज़ल, और नया प्रयोग भी
http://farhorizons.org/wp-content/uploads/2013/06/sitemap.xml
वाँ साहब वाँ
वाह वाह, लाजवाब.
रामराम.
कुछ वां की, कुछ याँ की, कुछ याँ -वाँ की :)
आपकी लेखनी ,का जवाब नही |
बहुत ही लाजवाब ....यह रचना मेरे दिल के बहुत करीब हैं |
है जमाना लाख बदला, पर न बदला है ’समीर’
दिल तुम्हारा वाँ छुआ था, दिल तुम्हारा याँ छुआ..
nihshabd man hua BEHATARIN
कल 06/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
kafi din hua jb mai likha karta tha aur aap hme protsahit kiya karte the,kya aap isliye ab mujh tk nhi pahunch pate ki mai ek purana bloggar ho gya hu .
pls read n follow me i will
good , read and follow me also
समीर जी,देरी के लिये क्षमा चाहिती हूं.
देर आये,सबेर आये.
वाह!!! एक दिल यां छुआ,एक दिल वां छुआ--
समीर जी,देरी के लिये क्षमा चाहिती हूं.
देर आये,सबेर आये.
वाह!!! एक दिल यां छुआ,एक दिल वां छुआ--
बहुत ही बेहतरीन गजल। दिल हमारा याँ छुआ दिल हमारा वाँ छुआ
बेहद खूबसूरत। लेकिन समीर जी, इस रचना को "गजल" न कहें। गजल की परिभाषा रदीफ़,काफिये और मक्ता-मतला से जुड़ी है। इसे कविता ही कहें।
अतिसुन्दर रचना
http://vidrohibhikshuk.blogspot.co.uk/2007/02/blog-post_26.html
अतिसुन्दर रचना
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वाह समीरजी बहुत ही प्यारी ग़ज़ल
बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
http://mmsaxena69.blogspot.in/
touching .....
वाह आपकी ग़ज़ल का जवाब नहीं। वाँ, याँ का सुंदर प्रयोग....!
आसमां को कब पता था, कौन मांगे है दुआ
एक तारा वाँ गिरा था, एक तारा याँ गिरा...
Behatarin lines...
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