बस कोशिश थी कि कुछ कहें मगर जब बात बिगड़नी होती है तो यूँ बिगड़ती है कि साधे नहीं सधती....काफिया उखड़ा बार बार...कोई बात नही....माईने ही उखड़ गया कि जिसे शिद्दत से चाहा उसे ही कुर्बान कर देने को तैयार...खैर, यही तो है मतवाला पन- यही तो दीवानापन...पढ़ ही लिजिये...सुधार, व्याकरण आदि तो खैर चलता रहेगा...सुधार बता देंगे तो कोशिश होगी कि आगे महफिलों में सुधार कर पढ़ी जाये वरना तो आजकल की महफिलें...किस बात पर दाद मिलेगी ...ये तो आप पर निर्भर हैं...शेर पर नहीं.
जबकि लोग लिख रहे हैं कि फलाने गुरु का आशीर्वाद प्राप्त गज़ल...तब ऐसे में बेआशीष गज़ल का लुत्फ उठायें….और कुछ नहीं तो हिम्मत की दाद दे देना
आज इस धूप पर हम भी, जरा अहसान कर देंगे
कि मेहनत का पसीना भी, इसी के नाम कर देंगे.
जरा पलकें झुका ली जो, मेरी महबूब ने थक कर
जहाँ जगने को थी सुबह, वहीं पर शाम कर देंगे
अजब सा हौसला मेरा, अजब सी हसरतें दिल में
जिसे चाहा था शिद्दत से, उसे कुर्बान कर देंगे.
अगर मज़हब बना रोड़ा, प्रेम की राह में अपने
इबारत लेके भजनों की, बुलंद अज़ान कर देंगे.
लिखे ’समीर’ ने अपने, प्यार के गीत में किस्से
ये सारे प्यार के दुश्मन, उसे बदनाम कर देंगे.
-समीर लाल ’समीर’
85 टिप्पणियां:
सुंदर ग़ज़ल।
वाह...
बेहतरीन ग़ज़ल.....
सादर
अनु
बहुत सुंदर...
बहुत सुंदर ...
मन की बात जो समाज को प्रभावित करती है -----
आपके भाव व शब्द स्वयं में हस्ताक्षर हैं, आप अपने कनिष्ठों पर प्यार बनाये रखिये, और अधिक लिखते रहिये।
अच्छी है ।
प्रवाहमयी ग़ज़ल...... हर भाव एक दूजे से जुड़ा सा, एक दूजे को पूरा करता सा.....
ये सारे प्यार के दुश्मन, उसे बदनाम कर देंगे.
वाकई ..
शुभकामनायें !
bahut khoob
आपको किसी के आशीर्वाद की ज़रूरत नहीं है, हम तो खुद आपसे प्रेरणा लेते हैं :)
अच्छी लगी गजल- "जिसे चाहा था शिद्दत से, उसे कुर्बान कर देंगे."
"जरा पलकें झुका ली जो, मेरी महबूब ने थक कर
जहाँ जगने को थी सुबह, वहीं पर शाम कर देंगे"
बहुत ही लाजवाब गजल, इसको किसी गुरू के आशीर्वाद की करूरत नही है.
रामराम.
बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन गज़ल है महोदय.
वाह.... बेहतरीन ग़ज़ल।
जरा पलकें झुका ली जो, मेरी महबूब ने थक कर
जहाँ जगने को थी सुबह, वहीं पर शाम कर देंगे
यह शेअ`र तो ज़बरदस्त बन गया है।
जिसे चाहा था शिद्दत से, उसे कुर्बान कर देंगे.
- यही उचित होगा .कुर्बानी अपनी प्रिय वस्तु की दे कर निश्चिंत हो जाना चाहिये!
लिखे ’समीर’ ने अपने, प्यार के गीत में किस्से
ये सारे प्यार के दुश्मन, उसे बदनाम कर देंगे.
अगर मज़हब बना रोड़ा, प्रेम की राह में अपने
इबारत लेके भजनों की, बुलंद अज़ान कर देंगे....
:) yehi karne ki koshish me lage hain :)
हमें तो बेआशीष गज़ल ही पसंद है:). मौलिकता की सुगंध आती है उसमें से.
बहुत सुन्दर ग़ज़ल !
बेखौफ़ दीवानगी नजर आ रही है ...:-)
Kya baat sameer bhai ... Maza aa gaya .. Vaise bhi guru ko guru ki kya jaroorat ...har sher kamal hai ...
समीर जी गुरूजी का आशीर्वाद प्राप्त ग़ज़ल की कुछ और ही बात होती है :-)
फिर भी मैं आपकी ग़ज़ल और हिम्मत दोनों पर भरपूर दाद देता हूँ।
नीरज
वाह! बहुत बढ़िया ग़ज़ल ! :)
~सादर!!!
क्या जी !
या चतुर बोलो या घोड़ा बोलो
या घोडा बोलो या चतुर बोलो जी। :)
बिन गुरु-आशीष ज्ञान... बहुत कमाल, हर एक शेर बहुत उम्दा. सन्देश देते भाव...
अगर मज़हब बना रोड़ा, प्रेम की राह में अपने
इबारत लेके भजनों की, बुलंद अज़ान कर देंगे.
दाद स्वीकारें.
" बेआशीष गज़ल "
आनंद दायक और प्रफुल्लित विचार ..
हमें भी कोई अपना आशीष देने को तैयार ही नहीं :(
लिखे ’समीर’ ने अपने, प्यार के गीत में किस्से
ये सारे प्यार के दुश्मन, उसे बदनाम कर देंगे.
बहुत सुन्दर ...
अगर मज़हब बना रोड़ा, प्रेम की राह में अपने
इबारत लेके भजनों की, बुलंद अज़ान कर देंगे.
बहुत खूबसूरत बात काही इस शेर में ...बहुत खूब
दाद तो देनी ही पड़ेगी उम्दा है
आज की ब्लॉग बुलेटिन अरे रुक जा रे बंदे ... अरे थम जा रे बंदे - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
वाह वाह!
अगर मज़हब बना रोड़ा, प्रेम की राह में अपने
इबारत लेके भजनों की, बुलंद अज़ान कर देंगे.
ग़ज़ल की समझ न आज मुझे है न कभी आ पायेगी किन्तु आपने यहाँ अपना दिल काटकर हमारा दिल भी चाक चाक कर दिया
यहाँ मैं आपके एहसास को प्रणाम करता हूँ
शानदार ग़ज़ल...बेहतरीन कंटेंट...लेकिन पता नहीं क्यों, मुझे बहर में कुछ दिक़्कत लगी...हालांकि हो सकता है दिक़्कत सिर्फ मेरे साथ हो...बहर के साथ न हो....
जरा पलकें झुका ली जो, मेरी महबूब ने थक कर
जहाँ जगने को थी सुबह, वहीं पर शाम कर देंगे...
अब इतना अच्छा लिखने के बाद कोई क्या कहेंगा जी ... बहुत अच्छी और simple ग़ज़ल ..पढ़कर आनंद आ गया ... अब तो इसे directly सुनना है ..आपसे ...आ जाईये ...तो सुने और सुनाये.....!!
ब्लाग की दुनिया रौनक है आपकी ऐसी रचनाओं से.
"जरा पलकें झुका ली जो, मेरी महबूब ने थक कर जहाँ जगने को थी सुबह, वहीं पर शाम कर देंगे"
बहुत ही शानदार गजल.
"जरा पलकें झुका ली जो, मेरी महबूब ने थक कर जहाँ जगने को थी सुबह, वहीं पर शाम कर देंगे"
बहुत ही शानदार गजल.
"जरा पलकें झुका ली जो, मेरी महबूब ने थक कर जहाँ जगने को थी सुबह, वहीं पर शाम कर देंगे"
बहुत ही शानदार गजल.
मेरा कमेंट कहां गया?
अभी भी नही दिख रहा है....
बेहद सुंदर गजल
हप्पी ब्लागिंग
बेहद सुंदर गजल
हप्पी ब्लागिंग
इतनी बढ़िया ग़ज़ल कह के, का क़त्ल-ए-आम कर देंगे ???
अरे हमरे गुरु ही बन जाइये हम परनाम कर देंगे :)
बहुत ज़बरदस्त लिख दिए हैं, ऊ भी बिन-आशीष।
ग़ज़ल लिखने का कौनो टॉनिक-उनिक तो नहीं मिलने लगा है बाज़ार में ??
:)
सुंदर ग़ज़ल है. क्या अंतिम दो शे'र कुछ बदलाव की कामना नहीं कर रहे हैं? कुछ करें।
गिरिराजशरण अग्रवाल
जिस ग़ज़ल ने पाया हो आपका ही आशीष
उस ग़ज़ल पे कई महफ़िल कुर्बान हो लेंगे ....
सीधे रास्ते ही अक्सर खुरदुरे होते हैं
खुरदुरे रास्तों को समतल कर दिया
तो रात भी सुबह की मुस्कान होती है ....
आजकल की महफिलें...किस बात पर दाद मिलेगी ...ये तो आप पर निर्भर हैं...शेर पर नहीं...... bahut vajan dar , dhar dar ...wah wah
बहुत सुन्दर रचना. गजल में पैनापन है और वो बात भी. बहुत सुन्दर वाकई में.
bahut badhiya gajal lagi ..shukriya isko padhwaane ke liye
Bahut khoob Sameer bhaiya!
Prem ke path pe chalna,
Asaan nahi hota...
Har aashiq sameer ki tarah
Kurbaan nahi hota
Aapka pyaar, pyaar se pyara hai
ye dunia jaanti hai..
Gazal ke har shabd ko tolta
agar ye dil nadaan nahi hota!!
.......Punah: Achhi prastuti ke liye Badhaiya!
Prem ke path pe chalna,
Asaan nahi hota...
Har aashiq sameer ki tarah
Kurbaan nahi hota
Aapka pyaar, pyaar se pyara hai
ye dunia jaanti hai..
Gazal ke har shabd ko tolta
agar ye dil nadaan nahi hota!!
.......Punah: Achhi prastuti ke liye Badhaiya!
कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना...और आजकल तो अपने ही परायों से ज़्यादा ज़ख्म देने लगे हैं...
दुश्मन ना करे, दोस्त ने वो काम किया है,
उम्र भर का गम हमें इनाम दिया है,
तूफ़ान में हम को छोड़ के साहिल पे आ गए,
नाखुदा का हमने इन्हें नाम दिया है,
पहले तो होश छीन लिए जु्ल्म-ओ-सितम से,
दीवानगी का फिर हमें इल्ज़ाम दिया है,
अपने ही गिराते हैं, नशेमन पे बिजलियां,
ग़ैरों ने आके फिर भी उसे थाम लिया है...
जय हिंद...
Bahut khoob Sameer bhaiya!
आज इस धूप पर हम भी, जरा अहसान कर देंगे
इतनी सुंदर ग़ज़ल कि महक हम भी पहुँच गई ....और हम खींचे चले आये ....
अगर मज़हब बना रोड़ा, प्रेम की राह में अपने
इबारत लेके भजनों की, बुलंद अज़ान कर देंगे.
पहले तो बधाई ....
शे'र की नहीं इस नए प्रेम की जिसके लिए भजन गए जा रहे हैं .....
इबारत लेके भजनों की, बुलंद अज़ान कर देंगे.
प्रेम का नया इज़हार ....
लिखे ’समीर’ ने अपने, प्यार के गीत में किस्से
ये सारे प्यार के दुश्मन, उसे बदनाम कर देंगे.
तौबा तौबा ....!
ये दुश्मन कौन है ....?
हमें तो सबसे पहले ताऊ जी ही नज़र आ रहे हैं ....:))
कर देंगे कर देंगे
ज़रूर कर देंगे
वैसे आपके द्वारा लिखा पिछले कई वर्षों से लगातार पढ़ रहे हैं...इतना संगठित, स्पष्ट, प्रवाहपूर्ण होता है कि टिप्पणी के रूप में सिर्फ ‘वाह-वाह’ कर देना, ‘बहुत सुन्दर’ कह देना एक औपचारिकता सा लगता है..और आपका जो स्नेह हम पर है उसमे औपचारिकता का कोई स्थान नहीं.
“आपको पढ़-पढ़ कर, लिखने का मन करता रहा,
लिखेंगे क्या ख़ाक बस, कागज़ बर्बाद कर देंगे.”
+++
ग़ज़ल, शेर, रदीफ़, काफिया, मक्ता आदि-आदि से पता नहीं हम दूर भागते रहे या ये ही हमसे दूर रहे..और मीटर की जानकारी भी कतई नहीं...(करेंट लगने के डर से मीटर से दूर रहते हैं ;-) ) हाँ, इतना समझ आ रहा है कि आपकी ये ग़ज़ल भी जबरदस्त प्रभाव छोडती है...बिम्ब का उम्दा प्रयोग करना कोई आपसे सीखे...
इसके बाद भी आपके इस शेर में ‘अपने’ शब्द कुछ खटका..इससे पहले शेर में भी ‘अपने’ साथ है...साथ ही इस शेर की पहली पंक्ति भी कुछ खटकन लगा रही है...
लिखे ’समीर’ ने अपने, प्यार के गीत में किस्से
ये सारे प्यार के दुश्मन, उसे बदनाम कर देंगे.
++
बिना नियम-कायदे के लिखने के शौक के कारण अपनी अल्पबुद्धि से ये समझ आया सो बदल कर धर दिया....बाकी आपको सही-गलत बताना सूरज के सामने दियासलाई जलाने जैसा है..
लिखे ‘समीर’ ने कितने ही, प्यार के गीत औ किस्से
ये सारे प्यार के दुश्मन, उन्हें बदनाम कर देंगे.
शेष शुभकामनायें...हम अनुजों के लिए आपके बनाये रास्ते बहुत मददगार हैं...
bahut hi bariya hai
Gazhal ke bhaav achchhe hain . kahin - kahib tukon kaa galat prayog hua hai . Do - teen ashaar
bhee vazan mein nahin hain .
समीर सरजी, आप तो खुद ही बहुत पहले से दूसरों को आशीष देने वाले लेवल पर हैं फ़िर आशीष क्या और बेआशीष क्या?
पढ़कर मजा आ गया, महफ़िल पक्का लूटेंगे आप।
अगर मज़हब बना रोड़ा, प्रेम की राह में अपने
इबारत लेके भजनों की, बुलंद अज़ान कर देंगे.
क्या बाsssत ...बड़ी धांसू ग़ज़ल है
बेहतरीन समीर जी :)
बहुत बढ़िया ग़ज़ल
वफायें हम सभी अपनी तुम्हारे नाम कर देंगे
कि खुद को बेवफा के नाम से बदनाम कर देंगे
जहां मिल जाएगा साया घनी जुल्फों का राहों में
कसम काली घटाओं की वहीं पर शाम कर देंगे
कही इस्लाह के बिन भी ग़ज़ल हमने मुकम्मल है
तो अब इस्लाह का हम आख़िरी अंजाम कर देंगे
समीर जी,
बहुत वज़नदार रचना/गज़ल है..नये प्रतीक और बिम्ब..प्रत्येक पंक्ति पर "वाह" कहने का मन होता है। गज़ल के मीटर आदि को मैं नहीं जानती और किसी की आशीष, माँ सरस्वती की आशीष से बड़ी हो सकती है, ऐसा नहीं सोच सकती और वह महत्त्वपूर्ण आशीष आप पर है। कुछ मित्रों ने शब्दों के हेर-फेर के बारे में कहा है पर वह संभावना तो कभी समाप्त होती नहीं..कवि कुछ समय बाद अपनी रचना पढ़ता है तो उसे स्वयं भी यहाँ-वहाँ बदल देता है, मुख्य बात यह है कि आज आप के क्या भाव हैं और क्या आपकी भाषा, आपकी अपनाई विधा में आप के भावों को सशक्त रूप से प्रस्तुत करने में समर्थ है? और क्या ये भाव, उस भाषा में पाठक को प्रभावित करने में समर्थ हैं? तो समीर जी, उस ड्रुष्टि से आपकी यह रचना..धूप को अपना पसीना दान देती हुई एक समर्थ रचना ही दिखाई देती है..और ६१ टिप्पणियों में इस रचना का पाठक पर प्रभाव भी दिखाई देता है.....इस सुंदर रचना के लिये मेरी बधाई को ६२ वीं टिप्पणीके रूप में स्वीकार करें...
Kya baat hai Samir ji ! Bahut achhe ! aapko ham maan gaye !
bahut bahut badhai !
-Archana, California
आप प्यार के गीत इसी तरह गाते रहिये और हम पढकर आनन्द लेते रहेंगे.
शुक्रिया.
जरा पलकें झुका ली जो, मेरी महबूब ने थक कर
जहाँ जगने को थी सुबह, वहीं पर शाम कर देंगे..
वाह...
बेहतरीन ग़ज़ल
ब्लास्ट करने वाली कमीन गाहों तक ये पहुंचे ज़रा
अगर मज़हब बना रोड़ा, प्रेम की राह में अपने
इबारत लेके भजनों की, बुलंद अज़ान कर देंगे.
वह क्या बात है. दाद तो देनी ही होगी.
क्या बात है बॉस....भजन की लाइनें लेकर बुलंद अजान कर देंगे....अमां छोडिए किसी गुरु का आशिर्वाद .....निराला जी को याद कीजिए....बिना बंधन वाली कविता गजलों को उनका चिर आशिर्वाद है....हम तो यही कहेंगे..सुभानअल्लाह...
sundar, sahaz aur pravaahmay..!
वाह वाह ... बेहतरीन गज़ल
सुन्दर और बेहतरीन गजल ...
जरा पलकें झुका ली जो, मेरी महबूब ने थक कर
जहाँ जगने को थी सुबह, वहीं पर शाम कर देंगे
वाह बहुत खूब......!!!
aap khud me gajal ho bhaiya.. sahi kaha Praveen jee ne :)
जरा पलकें झुका ली जो, मेरी महबूब ने थक कर
जहाँ जगने को थी सुबह, वहीं पर शाम कर देंगे
...बहुत सुन्दर ग़ज़ल..
अजब सा हौसला मेरा, अजब सी हसरतें दिल में
जिसे चाहा था शिद्दत से, उसे कुर्बान कर देंगे.
ज़बरदस्त शेर कहा है आपने.
ग़ज़ल अच्छी लगी.
समीरजी बहुत सुंदर ग़ज़ल है पढ़ कर मज़ा आ गया!
समीरजी बहुत सुंदर ग़ज़ल है पढ़ कर मज़ा आ गया!
Javaab nahi bahut hi pyari ,gahan abhivyakti hai...bahut2 badhaai...
जरा पलकें झुका ली जो, मेरी महबूब ने थक कर
जहाँ जगने को थी सुबह, वहीं पर शाम कर देंगे
bahut sunder gajal
अजब सा हौसला मेरा, अजब सी हसरतें दिल में
जिसे चाहा था शिद्दत से, उसे कुर्बान कर देंगे
वाह वाह !
अजी बात कुछ यूँ है लाल साब के पूना में हमारा एक दोस्त था शिन्दे। उसकी भाषा बोले तो एकदम अल्लानामी। मगर जब भी कोई उसे सुधारता, तो वो हँस कर कह देता "यू अण्डर्स्टुड ना ? दैन ओ.के. फिर"
"क्या ज़रूरी है के शोलों की मदद ली जाए, जिनको जलना है वो, शबनम से भी जल जाते हैं।" है कि नहीं ? हा हा !!
हमें अपने गजल कहने के दिन याद आ गए।
होली की छुट्टियाँ मिली तो Gmail पर भरे हुए मेल देखे.. आजकल कैंपस के webmail से ही मुक्ति नहीं मिल पाती.. बेचारा Gmail विज्ञापनों से भर गया है.. साफ सफाई के दौरान आपका मेल मिला..
क्षमा कीजियेगा.. ३० दिन की देरी हो गयी.
..और गज़ल का रंग मेरे हालात जैसे हो गये..
अगर मज़हब बना रोड़ा, प्रेम की राह में अपने
इबारत लेके भजनों की, बुलंद अज़ान कर देंगे.
------ एक महीने से ऊपर हुआ लेकिन आपकी मतवाली बेखौफ़ गज़ल दिल और दिमाग से निकलती ही नहीं....
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