चेहरा पढ़ने की आदत ऐसी कि चाहूँ भी तो छूटती नहीं. दफ्तर से निकलता हूँ. ट्रेन में बैठते ही सामने बैठे लोगों पर नजर जाती है और बस शुरु आदतन चेहरा पढ़ना. पढ़ना तो क्या, एक अंदाज ही रहता है अपनी तरफ से अपने लिए. किसी को बताना तो होता नहीं कि एकदम सही सही ही पढ़ा हो. हालांकि जिनको बताना होता है वो भी हाथ देख कर कितना सही सही बताते हैं, यह तो जग जाहिर है. ढेरों अनुभव रोज होते हैं, धीरे धीरे सुनाता चलूँगा.
सामने की सीट पर एक गोरी महिला आ बैठी है. मेरी नजर मेरे लैपटॉप पर है मगर बस दिखाने के लिए. दरअसल, लैपटॉप तो एक आड़ ही समझो, देख तो उसका ही चेहरा रहा हूँ. हूँ पैदाईशी भारतीय, संस्कृति आड़े आती है कि सीधे कैसे देख लूँ एक अनजान अपरिचिता को. मगर फिर वही, हूँ तो पैदाईशी भारतीय, तरीका निकाल ही लिया, लैपटॉप की आड़ से. तिनके की आड़ शास्त्रों में और चिन्दी की आड़ हिन्दी फिल्मों की अभिनेत्रियों में काफी मानी गई है तो लैपटॉप की स्क्रीन तो बहुत ही बड़ी आड़ कहलाई. संस्कृति हो या कानून या सेंसर बोर्ड, जो कुछ रोकने का जितना बड़ा प्रबंध करते हैं, उसमें हम उतना ही बड़ा छेद बनाने का हुनर रखते हैं. यूँ तो अक्सर ऐसा परदा बुनते समय ही ऐसे छेद छोड़ देने की प्रथा रही है. कानून बनाने वाले हम, कानून तोड़ने वाले हम, कानून का अपनी सुविधा के लिए पालन करने वाले हम- हम याने हम भारतीय!!!
उसने हाथ में अखबार खोला हुआ है और नजर ऐसे गड़ाये है जैसे अगर वो खबर उसने न पढ़ी तो अखबार वालों का तो क्या कहना, खबर पैदा करने वालों के यत्न बेकार चले जायेंगे. ओबामा का अमेरीका को ग्रेटेस्ट कहना या अन्ना की कांग्रेस को उखाड़ फेंकने की घुड़की, सब इनके पढ़े बिना नकारा ही साबित होने वाला है. खैर, इस महिला की किस्मत ही कहो कि ये दोनों खबर तो यूँ भी नकारा साबित होना ही है. मगर इतनी गहन तन्मयता प्रदर्शित होने के बावजूद, मेरा चेहरा पढ़ने का अनुभव और वो भी जब चेहरा महिला का हो- कोई मजाक तो है नहीं. फट से ताड़ लिया कि महिला की नजर जरुर अखबार पर है मगर वो सोच कुछ और रही है. अंदाजा एकदम सही निकला- दो ही मिनट में उसने अपने पर्स से फोन निकाला और जाने किससे बात करने लग गई- हाय हनी, मैं अभी सोच रही थी कि आज तुम मुझको लेने स्टेशन आ जाओ तो ग्रासरी करते हुए घर चलें. दूध भी खत्म हुआ है और कल के लिए ब्रेड भी नहीं है. और हाँ, बेटू ने होमवर्क कर लिया कि नहीं?
वैसे भी हनी शब्द सुनते ही मेरे कान खड़े हो जाते हैं कि एक शब्द किसी आदमी को कितना बेवकूफ बना सकता है कि वो फिर हर बात पर सिर्फ हाँ ही करता है. मानो हनी, हनी न हुआ-रुपया हो गया हो जिसके आगे हमारा हर नेता हाँ ही बोलता है.
एकाएक अखबार की खबर ध्यान से पढ़ते तो यह नहीं हो जाता. निश्चित ही विचार मन में आया होगा कि ग्रासरी करना है, बेटू का होमवर्क होना है. ट्रेन से उतर कर बस लेकर घर जाये- फिर उस सो काल्ड हनी के साथ बाजार जाये- बेवजह समय खराब होगा, उससे अच्छा उसे स्टेशन बुला ले तो सहूलियत रहेगी. तब जाकर फोन किया होगा.
फिर फोन रखने के बाद पुनः वैसे ही नजर गड़ गई अखबार में. मैं अब भी जान रहा था कि वो अखबार में खबर नहीं पढ़ रही है...अनुभव से बड़ा भला कौन सा ज्ञान हो सकता है.
मुश्किल से दो मिनट बीते होंगे कि उसने फोन पर फिर रीडायल दबाया...हाँ हनी, एक बात तो कहना मैं भूल ही गई- स्टेशन आते समय मेरा वो ब्लैक जैकेट लेते आना, जिसमें जेब पर व्हाईट क्यूट सा फ्लावर बना है. ड्राईक्लिनर को रास्ते में दे देंगे.
गरीब हनी शायद हम सा ही, हम सा क्या- ९०% पतियों सा- कोई निरिह प्राणी रहा होगा जिसे पत्नी का जैकेट कौन सा और कहाँ टंगा होता है, न मालूम होगा और पूछ बैठा होगा कि कौन सा वाला?
फिर तो दस मिनट इस तरफ से जो फायरिंग चली कि तुमको तो ये तक नहीं मालूम कि मैं क्या पहनती हूँ..फलाना फलाना...टॉय टॉय...यू डोंट लव मी एट ऑल..मुझे पता है...जाने क्या क्या!!....मेरे तो कान ही सुन्न हो गये. उसकी आवाज में मुझे अपनी पत्नी की आवाज सुनाई देती रही. एकाएक उसका चेहरा भी मेरी पत्नी के समान हो गया....ओह!!
स्टेशन आ गया, और मैं हकबकाया सा ट्रेन से उतर कर बाहर आ गया. पत्नी कार लिए इन्तजार कर रही थी.
पूछ रही है कि इतने सहमे से क्यूँ हो- क्या ऑफिस में कुछ हुआ?
लगता है वो भी चेहरा पढ़ना सीख रही है. सही ही हो ये कोई जरुरी तो नहीं!!! वरना तो हमारे ज्योतिषियों की दुकान ही बंद हो जाये एक दिन में...
सात समुन्दर कोशिश करके हार गये
मैं अपने आँसू से ही पूरा भीगा हूँ...
गुरु मंत्र स्कूलों वाले सीमित थे
जो भी सीखा ठोकर खाकर सीखा हूँ
-समीर लाल ’समीर’
83 टिप्पणियां:
अपनी अपनी किस्मत है! मगर यह मोहतरिमा अखबार के अन्दर भी हैं और बाहर भी!
यह अखबार पसंद आया ....
बेचारा हनी !
आपको शुभकामनायें !
मस्त पोस्ट है। कमेंट लिखने लगा तो अनुराग जी के कमेंट पर निगाह गई। आपने इस पर ध्यान नहीं दिया क्या कि वो मोहतरमा..अखबार में भी है..? कोई मामूली नहीं लगतीं।
फोटू कैसे हींचा..? उखड़ नहीं गईं..!
और हम जो सिर्फ तस्वीर देख कर चेहरा पढ़ लेते हैं , मान ही लीजिये की महिलाओं का सिक्स्थ सेन्स बहुत तगड़ा होता है , आप उनको ताड़ रहे थे और वो आपको ताड़ चुकी थी :):)
ये पोस्ट अभी के अभी चाची को पढाया जाए :)
आप लैपटॉप की आड़ से देखते है गोरी महिलाओं को..तौबा तौबा :)
भारत में कई वर्ष पूर्व ऐसी फायरिंग पुरुषों की तरफ से होती थी लेकिन अब फायरिंग कौन कर दे पता नहीं चलता। आपने इतनी हिम्मत के साथ भाभीजी का उल्लेख कर दिया है बस यही भारतीय होने का प्रमाण है कि यहाँ आज भी फायरिंग पुरुषों की तरफ से ही होती है।
सात समुन्दर कोशिश करके हार गये
मैं अपने आँसू से पूरा भीगा हूँ...
गुरु मंत्र स्कूलों वाले सीमित थे
जो भी सीखा ठोकर खाकर सीखा हूँ
-समीर लाल ’समीर’
poora lekh ek taraf aur ye 4 panktiyan ek taraf
bahut khoob !!
bilkul sachchee aur kharee baat !!
भाई समीर जी बहुत ही मजेदार पोस्ट पढ़ने को मिली देवदीपावली की हार्दिक बधाई |
चेहरे पढ़ लेना वाक़ई बहुत दुखदायी होता है
सात समुन्दर कोशिश करके हार गये
मैं अपने आँसू से पूरा भीगा हूँ...
गुरु मंत्र स्कूलों वाले सीमित थे
जो भी सीखा ठोकर खाकर सीखा हूँ
ekdam mantr-mugdh karti post......
Bahut achchha vayngya likha aapne...achchha laga padhkar..badhai..
अपना ख्याल रखियेगा ... ;-)
( भाभी जी ने चहेरा पढना सीख लिया है ... इस लिए कह रहा हूँ )
सात समुन्दर कोशिश करके हार गये
मैं अपने आँसू से पूरा भीगा हूँ...
गुरु मंत्र स्कूलों वाले सीमित थे
जो भी सीखा ठोकर खाकर सीखा हूँ
ekdam mantr-mugdh karnewala post......
हनी से फनी प्राणी इस दुनिया में और कोई नहीं होता...
हनी से स्लॉग ओवर पर हाल में सुनाया एक किस्सा याद आ गया...
एक मैडम अपने पति के बॉस के साथ फिल्म देखने गई...
शो के बीच मैडम के मोबाइल की रिंग बजी...मैडम ने नंबर देखकर बड़े रुखे अंदाज़ से उठाया...फिर बोली...
हाय हनी, मैं ज़रूरी शॉपिंग के लिए बाज़ार आई हूं..तुम क्या कर रहे हो...ओके...टेक केयर...सीयू...
कॉल खत्म होने के बाद मैडम ने हंसते हुए साथ बैठे बॉस की तरफ देखा और बोली...
कमीना कह रहा था बॉस के साथ अर्जेंट मीटिंग में हूं...
जय हिंद...
सारे पति हनी जैसे ही होते है
शुभकामनये
एक शब्द किसी आदमी को कितना बेवकूफ बना सकता है कि वो फिर हर बात पर सिर्फ हाँ ही करता है...mahilaaon ke saath bhi hota hai 'sweetheart' kahke
लगता है वो भी चेहरा पढ़ना सीख रही है. सही ही हो ये कोई जरुरी तो नहीं!
हर पत्नि कम से कम पति का चेहरा पढ़ना खूब जानती है .. आप अभी तक यह नहीं पढ़ पाए ताज्जुब है ..
वैसे सच है हनी सुन कर भी कड़वाहट का एहसास होता है :):)
Ek cheez main soch raha tha ki kya ye chehra padhne ki aadat aur koshish sada hazraat karte hai ya hawateen bhi ya ve hi karti hai aur kya marte dum tak ye jari rahta hai ya ki jaise jaise umra dhalti hai ye harqat badhti jaati hai?
Kuchh to sudhro aur ghuspaith apni khaatoon tak seemit karo.kam se kam wo chehra padh ke na samjhe ki miyaan ji ki ghus paith jari hai, itna to karo.
poori tarah sahmat aapsey,choti choti bato se bhi bade niskarsh nikal dena hi rachna sheelta hai.
sader,
dr.bhoopendra
rewa mp
बहुत रोचक पर बेचारा हनी....आभार
ये भी खूब रही समीर भाई ... भाई हमने तो भाभी हो हमेशा मीठी वाली हनी के रूप में ही देखा है ... और बाकी तो जीवन के अनुभव से सीखे हुवे हो तो फिर आगे क्या कहूँ ... जबरदस्त पोस्ट ....
उसका हनी कड़वा है लेकिन हमारे समीर सरजी का\की हनी वैरी स्वीट। बिना आपके फ़ोन किये ही रिसीव करने मौजूद। अनुभव से बड़ा भला कौन सा ज्ञान हो सकता है:)
भाई साहब हम सभी लोग कनखियों से चेहरा पढ़ ही लेते हैं हा हा गज़ब लिखो हो समीर भाई
गुरु मंत्र स्कूलों वाले सीमित थे
जो भी सीखा ठोकर खाकर सीखा हूँ
वाह!
LEKH AUR KAVYA PANKTIYAN PADH KAR
LUTF AA GYAA HAI .
बिचारे "हनी" को इतना कड़वा क्यों कर दिया :)
वो एक गाना है ना,
'एक चेहरे पे कई चहरे लगा लेते हैं लोग...'
आप कौन सा वाला चेहरा पढ़ लेते हैं...:):)
बहुत खूब सर!
सादर
अब लगता है कि लैपटॉप पर भी फ्रण्ट कैमरा लगवाये जायें, हमारी आदतें तो जाने से रहीं। हनी बचपन से ही प्रयोग में ला रहे हैं, कड़वी दवाईयाँ खाने के लिये।
स्मीर जी नमस्कार, अखबार वह पढ रहीं थी और चेहरा आप और हनी वहां भले इतना बेचारा हो पर भारत मे हनी बेचारे नही है। आप तो भारतीय हैं। मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।
सोचता हूं, पत्नीजी के कपड़े सहेजना सीख ही लूं इस उम्र में!
कोई सामने बैठ कर चेहरा पढ़ रहा है ,चाहे चतुराई दिखाते हुये लैपटॉप की आड़ से ही ,महिला को तुरंत पता चल गया होगा ,इसीलिये वह अपने आज्ञाकारी 'हनी'से मुख़तिब हो गईँ होंगी .
चेहेरा पढना भी एक कला है और आप और भाभीजी इसमें माहिर लगते हैं । हनी कहां कडवा होता है समीर जी, अपनी कडवाहट लोग जरूर हनी की आड में छुपा लेते हैं ।
यानी जो काम हम लोग 'अमीर' देश में अखबार के जरिये करते हैं, वही गुरुदेव 'गरीब' देश में बजरिया लेपटोप करते हैं...
pasand aaya bahut....kintu us ek baat jo aap jaise bhudhimaan ke muh se nikale to pasand nahi aayi...maaf kijiyega kintu Abla nari ki jagah agar kuch positive aata to acha lagta...
dhanywaad
लैपटॉप का एक और यूज बताने के लिए शुक्रिया ।
चेहरा पढने का हूनर तो बड़े काम का है । :)
कडवा वाला हनी...काफी मीठा था...फोटो भी खींच डाली...सारा प्राइवेट कन्वेर्सेशन रिकॉर्ड कर डाला...आशा है रास्ता बढ़िया कटा होगा...फिर भाभी जी को देख के गिल्ट तो आना ही था...जबतक उन्हें चेहरा पढना ठीक से नहीं आता तबतक आपक़े लिए फ़िक्र की कोई बात नहीं...
हनी और मनी में यही तो अंतर होता है... मनी हो तो ज़हर भी हनी दिखता है वर्ना कोट का रंग भी बदल गया तो कडवा वाला हनी दिखता है :)
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा आज दिनांक 11-11-2011 को शुक्रवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
आप संस्मरण विधा के साथ पूरा न्याय करते हैं -मगर मैं यह भी सोच रहा हूँ अगर उसने भी कोई संस्मरण इसी घटना पर लिखा होगा तो कैसा होगा वह .. :) कैसे कैसे खूसट अन्कल्नुमा लोग होते हैं ये इंडियंस भी बस घूरते रहते हैं जैसे पा जाएँ तो समूचा निगल ही जायं (माफी भाई जान माफी )
पढते-पढते,होंठो पर मुस्कान फैल गई,धन्यवाद,समीर जी,इस मुस्कुराहट के लिये.
पढते-पढते,होंठो पर मुस्कान फैल गई,धन्यवाद,समीर जी,इस मुस्कुराहट के लिये.
पढते-पढते,होंठो पर मुस्कान फैल गई,धन्यवाद,समीर जी,इस मुस्कुराहट के लिये.
पढते-पढते,होंठो पर मुस्कान फैल गई,धन्यवाद,समीर जी,इस मुस्कुराहट के लिये.
पढते-पढते,होंठो पर मुस्कान फैल गई,धन्यवाद,समीर जी,इस मुस्कुराहट के लिये.
सात समुन्दर कोशिश करके हार गये
मैं अपने आँसू से ही पूरा भीगा हूँ...
गुरु मंत्र स्कूलों वाले सीमित थे
जो भी सीखा ठोकर खाकर सीखा
वाह ...बहुत ही बढि़या।
नजर अपनी अपनी, अंदाजा अपना अपना है. आपको हनी कड़वा लगा. और मुझे...हाय बेचारी अखबार पढते भी घर का, ग्रोसरी का, और बेटू के होमवर्क का ख्याल खाए जा रहा है उसे.और कमबख्त हनी है कि इतना भी ख्याल नहीं कि बीबी पहनती क्या है :):).
बहुत ख़ूब लाल साहब, आपके 'शब्दों' का 'अर्थ चित्र' प्रस्तुत है:-
बहुत खूबसूरत थी, गोरी वो चिट्टी,
इधर 'लाल' थे और उधर गुल बदन थी.
ख़बर पर नज़र थी या नज़रों में ख़बरे ,
पढ़े एक-दूजे के लुक-छुप के चेहरे.
न जाने क्यों होंठो पे ऊँगली सटी थी !
सफ़र कट रहा रेल भी चल रही थी.
अचानक जो उसको 'हनी' याद आया,
मोबाइल पे झट-पट से नंबर लगाया.
हलो , हाय कह, काम घर का बताया,
'हनी' कहके प्यारे को अपने पटाया.
जो इक बात उसकी, समझ न सका तो ,
बड़े ज़ोर का उसने गुस्सा दिखाया.
इधर 'लाल साहब' हुए अबतो पीले,
लगे डंक से, होंठ अब तो रसीले.
'हनी' पर उलट-वार Bee का जो देखा,
है 'अंगूर खट्टे' यही मन में सोचा.
जो गाड़ी रुकी, 'साधना' मिल गयी है.
अभी तक भी ये तो नई की नई है.
http://aatm-manthan.com
jabardast post hai...honey
तो हमरा सक सही निकला..
जानते थे हम... ओतना सीधा आप नहीं जेतना दिखते हैं...
आउर ई भी सोच रहे हैं....कि सहमें हुए आप कैसे लग रहे होंगे...!!
सुकर है साधना जी अभी चेहरा पढ़ना सीख ही रहीं हैं...कहीं जो सीख गईं होतीं तो आपका का होता ?........:)
आउर ई जो डार्लिंग डार्लिंग करके दूसरा पार्टी को बेवकूफ बनाया जाता है....उसको का कहियेगा..?
हाँ नहीं तो..!!
फेस रीडिंग भी एक कला है .... रोचक फायरिंग रही... आभार
कुछ माहों से ब्लागजगत से दूर रहा जिस हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ ....
महेंद्र मिश्र
जबलपुर.
...मगर वो सोच कुछ और रही है. अंदाजा एकदम सही निकला- दो ही मिनट में उसने अपने पर्स से फोन निकाला और जाने किससे बात करने लग गई- हाय हनी, मैं अभी सोच रही थी कि आज तुम मुझको लेने स्टेशन आ जाओ तो ग्रासरी करते हुए घर चलें. दूध भी खत्म हुआ है और कल के लिए ब्रेड भी नहीं है. और हाँ, बेटू ने होमवर्क कर लिया कि नहीं?
..बहुत खूब गोरी मेम की बात भारतीय नारी की तरह कहना बहुत भाया ...
बहुत बढ़िया अंदाज़ में बहुत कुछ कह गए आप...
सार्थक प्रस्तुति हेतु धन्यवाद
आड़ और जुगाड़ में हम भारतीयों का कोई जवाब नहीं!!
:-) बहुत बढ़िया मज़ेदार पोस्ट ....
आपकी लेखनी बीच बीच में हास्य का जो पुट पैदा करती है वो मज़ेदार लगता है.सुन्दर प्रस्तुति.
नमस्कार समीर अंकल...आपकी रचनाओं का क्या जवाब..बहुत ही रोचक लगी ये बेचारी हनी......बहुत शानदार.....लाजवाब।
समीर जी बहुत मजेदार पोस्ट है ...मैं इसको बुन्देलखंडी में सुन रही हूँ ...!!
वाह समीर साहब! आपका अंदाज़े-बयां ही और है. पढ़कर मज़ा आ जाता है.
तुमको तो ये तक नहीं मालूम कि मैं क्या पहनती हूँ..फलाना फलाना...टॉय टॉय...यू डोंट लव मी एट ऑल..मुझे पता है...जाने क्या क्या!!....मेरे तो कान ही सुन्न हो गये. उसकी आवाज में मुझे अपनी पत्नी की आवाज सुनाई देती रही. एकाएक उसका चेहरा भी मेरी पत्नी के समान हो गया....ओह!!
हा.....हा.....हा......
कड़वा वाला हनी ऐसा होता है क्या .....?
और यह क्या ....संध्या भाभी जी भी .....?
नहीं नहीं आप झूठ बोल रहे हैं ....आप भला किसी की डांट सुनने वाले हैं ....?
अजी हमारे यहाँ तो बिलकुल ऑपोजिट है ....:))
@ सोच रहा हूँ अगर उसने भी कोई संस्मरण इसी घटना पर लिखा होगा तो कैसा होगा वह .. :) कैसे कैसे खूसट अन्कल्नुमा लोग होते हैं ये इंडियंस भी बस घूरते रहते हैं जैसे पा जाएँ तो समूचा निगल ही जायं
:))
औरों के और हम भारतीयों के देखने में बहुत फर्क होता है | हम जब देखते हैं तो क्या खूब देखते हैं , और जब और देखते हैं तो क्या खाक देखते हैं|
:-) :-)
बहुत ह बड़ आड़ कहलाई. संकृित हो या कानून या ससर बोड, जो कुछ रोकने का जतना बड़ा बंध करते ह, उसम हम उतना ह बड़ा छेद बनाने का हुनर रखते ह. यूँ तो असर ऐसा परदा बुनते समय ह ऐसे छेद छोड़ देने क था रह है. कानून बनाने वाले हम, कानून तोड़ने वाले हम, कानून का अपनी सुवधा के िलए पालन करने वाले हम-हम याने हम भारतीय!!!
Saralata se kahi gayi gambhir baat
बहुत बहुत शुभकामना के साथ
poor honey... :))
regards...
सर क्या खूब लिखते हैं आप...... अच्छी पोस्ट ...
किस्सागोई कोई आपसे सीखे. बस मज़ा आ गया.
कमाल करते हैं भाई साहब आप भी ..चोरी-चोरी चुपके-चुपके..शानदार पोस्ट !
Isiliye,Vyas muni ne jeevan ke jo saat sukh ginaye hain,"patni ka meetha bolna" unme se ek hai.
जाने क्या क्या!!....मेरे तो कान ही सुन्न हो गये. उसकी आवाज में मुझे अपनी पत्नी की आवाज सुनाई देती रही. एकाएक उसका चेहरा भी मेरी पत्नी के समान हो गया....ओह!! स्टेशन आ गया, और मैं हकबकाया सा ...
आह! 'देख लूँ तो चलूँ' याद आगई.
फिर क्या कार क्या ट्रेन.
गनीमत है पत्नी समझ उसके साथ ही ट्रेन से
बाहर नही आये.वर्ना पत्नी जी आपका चेहरा पढ़ना ही नही और भी बहुत कुछ समझ जातीं.
तब तो जरूर 'हनी कड़वा वाला' ही होता,
समीर भाई.
संस्कृति हो या कानून या सेंसर बोर्ड, जो कुछ रोकने का जितना बड़ा प्रबंध करते हैं, उसमें हम उतना ही बड़ा छेद बनाने का हुनर रखते हैं.
बहुत खूब ...
मधुमेह के जमाने में कहाँ का हनी, कहाँ का मधु? यदि पुरुषों के पत्नियों पर व्यंग्य पर रोक लगा दी जाए तो व्यंग्य की दुकान ही ठप पड़ जाएगी.
घुघूतीबासूती
सचमुच में 'बेचारा हनी' - मुँह के, कडवे जायकेवाला हनी।
सर क्या खूब लिखते हैं आप...
आजकल कुछ निजी व्यस्तताओं के कारन ब्लॉग जगत में पर्याप्त समय नहीं दे पा रहा हूँ जिसका मुझे खेद है,
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
पर आपका स्वागत है
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
नमस्कार जी...
हास्य और व्यंग्य का सधा हुआ संतुलन.
हनी-दर्शन :-
फूलों का मकरंद खुशबुओं के साथ झूमता( स्वतंत्र कुँआरा जीवन)
मधुमक्खियों ने अपने छत्ते में कैद किया (विवाहित जीवन का आरम्भ))
छत्ते से छुड़ाकर बोतलों में कैद किया गया (दाम्पत्य जीवन की लाचारी)
कड़वी दवा खाने के लिये शहद का उपयोग (पारिवारिक दु:ख उठाने का दायित्व)
कड़वा वाला हनी(लाईफ टाइम अचीव्हमेंट ट्राफी याने विवाहित जीवन का उपसंहार)
यानी कि कुल मिलाकर काफी शुभ और सुखद रही यह यात्रा आपके लिए भी और पाठकों के लिए भी, जिन्हें इसी बहाने इतनी रोचक पोस्ट पढने को मिली...
बहुत रोचक पर बेचारा हनी....
बहुत ही मज़ेदार लगा! शानदार और ज़बरदस्त व्यंग्य! लाजवाब प्रस्तुती!
बहुत अच्छा व रोचक लेख ।
सुन्दर प्रस्तुति !
अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।
औचित्यहीन होती मीडिया और दिशाहीन होती पत्रकारिता
आपके पोस्ट पर आकर अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट शिवपूजन सहाय पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद
"चेहरा पढ़ने की आदत ऐसी कि चाहूँ भी तो छूटती नहीं"
समीर जी , लगता है तभी आप एस कला के लिए काला चश्मा लगते हैं | keep it up !
आपका लेख मोहतरमा से हर हाल में इक्कीस है
बेहतरीन पोस्ट के लिए धन्यवाद । मेरे नए पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । धन्यवाद ।
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