तब मैं उसे आप पुकारता और वो मुझे आप.
नया नया परिचय था. पन्ने पन्ने चढ़ता है प्यार का नशा...आँख पढ़ पायें वो स्तर अभी नहीं पहुँचा था.
वो कहती मुझे कि आप पियानो पर कोई धुन सुनायेंगे. कहती तो क्या एक आदेश सा करती. जानती थी कि मैं मना नहीं कर पाऊँगा.
काली सफेद पियानो की बीट- मैं महसूसता कि मैं उसे और खुद को झंकार दे रहा हूँ.
डूब कर बजाता - जाने क्या किन्तु वो मुग्ध हो मुझे ताकती.
परिचय का दायरा बढ़ता गया और हमारे बीच दूरियाँ कम होती गईं. अब हम आप से तुम तक का सफर पूरा कर चुके थे. सांसों में फायर प्लेस से ज्यादा गर्मी होती है, यह भी जान गये थे कितु फिर भी फायर प्लेस से टिके टिके- बर्फीली रातों में...जाने क्यों, किसी अनजान दुनिया में डूबना- बस, एक वाईन का ग्लास थामे- उसे लुभाता. हम देखते एक दूसरे को-वाईन का सुरुर-डूबो ले जाता सागर की उस तलहटी मे जहाँ एक अलग दूनिया बसती है. रंग बिरंगी मछलियाँ. कुछ छोटी कुछ बड़ी. कोरल की रंग बिरंगे जिंदा पत्थरों वाली दुनिया. सांस लेते पत्थर. अचंम्भों और रंगो की एक तिलस्मी- बिना गहरे उतरे जान पाना कतई संभव नहीं.
बिना कुछ कहे पियानों की धुन पर मैं सब कुछ कहता...हाँ, सब कुछ- वो भी जिन्हें शायद शब्द न कह पायें बस एक अहसास की धुन ही कह सकती है वो सब और वो- मंत्र मुग्ध सी सब कुछ समझ जाती. इस हद तक कि शायद शब्दों में कहता तो सागर की लहरों के हिचकोले ही होते जो साहिल पर लाते और वापस ले जाते. मानो कि कोई खेल खेल रहे हों. इस तरह समझ जाना भी एक ऐसी गहन अनुभूति की दरकार रखता है जो शायद कभी ही संभव हो आम इन्सानों के बीच.
संगत और सानिध्य का असर ऐसा कि नजरें पढ़ना सीख गये- जान जाते कि क्या चाहत है और क्या कहना है. शब्दों का सामर्थय बौना हुआ या मेरा शब्दकोश. अब तक नहीं जान पाया.
एक दूसरे को इतना करीब से जाना मगर जाना देर से. तब तक और न जाने कितना जान गये थे एक दूसरे के बारे में..हमेशा देर कर देता हूँ मैं- शायर मुनीर नियाज़ी साहेब याद आये मगर फिर वही-देर से..उनके अशआर:
हमेशा देर कर देता हूँ मैं, हर काम करने में.
जरुरी बात कहनी हो, कोई वादा निभाना हो,
उसे आवाज देनी हो, उसे वापस बुलाना हो.
हमेशा देर कर देता हूँ मैं…..
मदद करनी हो उसकी, यार की ढ़ाढ़स बंधाना हो,
बहुत देहरीना रस्तों पर, किसी से मिलने जाना हो.
हमेशा देर कर देता हूँ मैं…..
बदलते मौसमों की सैर में, दिल को लगाना हो,
किसी को याद रखना हो, किसी को भूल जाना हो.
हमेशा देर कर देता हूँ मैं…..
किसी को मौत से पहले, किसी गम से बचाना हो,
हकीकत और थी कुछ, उसको जाके ये बताना हो.
हमेशा देर कर देता हूँ मैं…..
कब कह गये नियाज़ी साहेब- शायद मेरे लिए. गुजर गये कह कर वे- फिर मैं सोचता हूँ:
लिख कर पढ़ाता हूँ जब
दास्तां अपनी...
पढ़ती है और गुनगुनाती है वो...
पढ़ती है आँखों में सच्चाई....
सिहर जाती है वो...
बिखर जाती है वो....
समीर लाल ’समीर’
62 टिप्पणियां:
हमने भी पढ़ी दास्तां आपकी :)
साँसों की गरमाहट शब्दजनित दूरियाँ पिघलने लगती हैं, उसमें पिघलने के बाद सम्बन्धों का स्वरूप ही अलग होता है।
जरुरी बात कहनी हो, कोई वादा निभाना हो,
उसे आवाज देनी हो, उसे वापस बुलाना हो.
हमेशा देर कर देता हूँ मैं…..
यही समस्या यहाँ भी है भाई जी ....
मस्त लिखा है , शुभकामनायें आपको !!
लिख कर पढ़ाता हूँ जब
दास्तां अपनी...
पढ़ती है और गुनगुनाती है वो...
पढ़ती है आँखों में सच्चाई....
सिहर जाती है वो...
बिखर जाती है वो....
बहुत खूब... लिखा गया है....
एहसास और अनुभूतियाँ बहुत कुछ साझा कर देती है ...
नए उपन्यास की पृष्ठभूमि लग रही है !
मैं देर करता नहीं, देर हो जाती है...
जय हिंद...
बेहतरीन पोस्ट।
हर सफलता के बाद अहसास होता है कि मौके से पहुँच गए और असफलता के बाद कि देर कर दी।
लिख कर पढ़ाता हूँ जब
दास्तां अपनी...
पढ़ती है और गुनगुनाती है वो...
पढ़ती है आँखों में सच्चाई....
सिहर जाती है वो...
बिखर जाती है वो....
हर किसी की घटना एक जैसी लेकिन दास्तां अलग- अलग ....!
आजकल लिखने का टोन बिलकुल अलग ?
@नए उपन्यास की पृष्ठभूमि लग रही है !
जी, यही सही है..
सर , इसके आगे भी कुछ हुआ ? या कथा हमारी तरह अधूरी रह गई ?
अहसासो को बहुत ही संजीदगी से पिरोया है ………मगर अधूरा क्यों छोड दिया………इन्हे तो और आगे ले जाना था …………एक कहानी मगर अधूरी सी
behtarin...har shabd kitni acchhi tarah ek-dusre me piroye se lagte hain...dhanywaad
आपने अपने जज़्बातों को प्रकर्ति के साथ जोड़कर उनका बड़ी खूबसूरती से वर्णन किया है। पढ़कर ऐसा लग रहा था जैसे आँखों के सामने कोई चलचित्र सा चल रहा हो ....वाकई बहुत खूब लिखा है आपने!!!!
वो आ जाएं और जाने में देर करें तो इस देरी एमिन भी मज़ा आता है समीर भाई ... इस इकबाले जुर्म की सज़ा भी तो भोगनी पड़ती है ...
" सांसों में फायर प्लेस से ज्यादा गर्मी होती है"
वाह...वाह...वाह...मा-बदौलत को आपका ये रोमांटिक अंदाज़ बहुत पसंद आया...तखलिया
नीरज
CHAND LAFZON MEIN AAPNE BAHUT KUCHH
KAH DIYAA HAI . BADHAAEE .
आप से तुम तक आने में लगी देर कभी-कभी जिंदगी भर सालती है।
'पन्ने पन्ने चढ़ता है प्यार का नशा…' पूरी की पूरी पोस्ट, जैसे एक नज़्म हो... बहुत खूब!
संगत और सानिध्य का असर ऐसा कि नजरें पढ़ना सीख गये-
वाह वाह वाह ! इश्क भी ज्ञानी बना देता है ।
सुन्दर प्रस्तुति ।
बहुत ही भावपूर्ण और बहरीन लगी आपकी दास्तान.....
समीर यूं ही हसते, गाते, मुस्कराते और के लबों पर एक नर्म धूप सी मुस्कान बिखरने का प्रयास ज़री रखना। बहुत ढेर सारी शुभकामनोन के साथ...
शाब्दिक अनूभूति से कहीं गहरी है वैचारिक और अहसासों की अनुभूति ..... जीवंत रेखांकन .....
अनुभूतियों का सुंदर शब्दांकन
हमेशा देर कर देता हूँ........... वाला हिस्सा ज़ोरदार।
लिख कर पढ़ाता हूँ जब
दास्तां अपनी...
पढ़ती है और गुनगुनाती है वो...
पढ़ती है आँखों में सच्चाई....
सिहर जाती है वो...
बिखर जाती है वो....waah
अलग ही मूड की पोस्ट है..
शायद इस देर करवाने के पीछे उपरवाले की कोई साज़िश हो..
एक कविता की तरह बहती हुई लेखनी....
जनाब मुनीर नियाजी साहब को पढ़ कर तो लफ्ज़ झिलमिलाने से लगे हैं..
सादर...
sir i am back after two years
sir i am back after 2 years.
आप इतना अच्छा कैसे लिख लेते हैं...
दांस्ता दिलचस्प है।
जरुरी बात कहनी हो, कोई वादा निभाना हो,
उसे आवाज देनी हो, उसे वापस बुलाना हो.
हमेशा देर कर देता हूँ मैं…..
lazabab.....bahut sunder post.....
लिखते तो आप अच्छा हैं ही,गा भी लेते हैं ये भी पता है ...अब इतना नया परिचय भी नहीं है हमारा ...
शायर मुनीर नियाज़ी साहेब याद तो आयेंगे ही ...."हमेशा देर कर देता हूँ मैं"
पियानो की धुन जो अब तक नहीं सुनवाई है हमें..
कब सीख लिया ??:-)
कल ज़रा जदी में था इसलिए ...
कुछ शे’र याद आ गए इस पोस्ट को पढ़कर, शेयर करता हूं ...
दबा के चल दिए सब क़ब्र में, ना दुआ ना सलाम
ज़रा सी देर में क्या हो गया ज़माने को
कहीं छत थी दीवार-ओ-दर थे कहीं
मिला मुझको घर का पता देर से
दिया तो बहुत ज़िन्दगी ने मुझे
मगर जो दिया वो दिया देर से
तुम तक जाती है मेरी हर निगाहें, जाने क्यों
जालिम आवाज़ ही टकरा कर लौट आती है।
अच्छी प्रस्तुति,
कहानी कुछ अधूरी सी लगी,...
मेरे नए पोस्ट में आकर अपने विचार दे आपका
स्वागत है,..
Very interesting information!Perfect just what I was looking for!
From everything is canvas
अच्छा है। हमें तो बड़मनई का वाद्य लगता है पियानो।
गंवई होता तो शायद इकतारा की बात होती! कभी इकतारा वाले प्यार की भी बात की जाये!
एक बेहद उम्दा,दिलचस्प और सार्थक पोस्ट के लिए आपका आभार।
एक बेहद उम्दा,दिलचस्प और सार्थक पोस्ट के लिए आपका आभार।
कोमल मनोभावों का सुंदर शब्द-चित्र
मौन अभिव्यक्ति तेरी आँखों ही में पढ़ लूंगा
सदा प्रेषित करो ई-मेल जरूरी तो नही.
बहुत रोचक और सुंदर प्रस्तुति.। मेरे नए पोस्ट पर (हरिवंश राय बच्चन) आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
भाई जान नारियल के खोल में..इस कदर धड़कता दिल है...लगता नहीं था...बड़ा महीन मारते हैं...प्रभु...
very nice sir.......saanson ki garmaahat!!!!
अच्छी प्रस्तुति...
अति सुन्दर. "सस्तैंड रिलीस" ज्यादा इफ्फेक्तिव होता है. कोच्ची से...
अरे ...! तो आपको पियानों भी बजाने आता है .....सुभानाल्लाह ....!!
@ बिना कुछ कहे पियानो की धुन पर मैं सब कुछ कहता.
ओये होए ...! .हमारा तो उस पियानो की धुन को सुनने का मन कर रहा है ....:))
@जान जाते कि क्या चाहत है और क्या कहना है.
और क्या हालत है .....:))
बस आप ये देर मत किया करो न ......:))
बिना कुछ कहे पियानों की धुन पर मैं सब कुछ कहता...हाँ, सब कुछ- वो भी जिन्हें शायद शब्द न कह पायें बस एक अहसास की धुन ही कह सकती है वो सब और वो- मंत्र मुग्ध सी सब कुछ समझ जाती.
अभी देर कहाँ हुई ? अभी तो डूबे हुए हैं ... बेरंग सफहे तो नहीं लग रहे ... सुन्दर प्रस्तुति
लिख कर पढ़ाता हूँ जब
दास्तां अपनी...
पढ़ती है और गुनगुनाती है वो...
पढ़ती है आँखों में सच्चाई....
सिहर जाती है वो...
बिखर जाती है वो....बहुत खुबसूरत अहसासो को सुन्दर -सुन्दर शब्दो में पिरोया है..समीर जी आप ने..जीवंत रेखांकन .
बहुत ख़ूब
बहुत अच्छी प्रस्तुति
बेहतरीन पोस्ट !
बदलते मौसमों की सैर में, दिल को लगाना हो,
किसी को याद रखना हो, किसी को भूल जाना हो.
हमेशा देर कर देता हूँ मैं…..
कभी कभी ऐसा ही होता है! सटीक लिखा है आपने! बहुत सुन्दर! शानदार प्रस्तुती!
महसूस किया दिल ने, देखा ऑंखों ने
बयॉं करें कैसे, जबॉं नहीं दोनों के पास
बयॉं करती है जबॉं, पर बयॉं करे कैसे
न दिल है न ऑंखें जबॉं के पास
ehsaas kabhi bhi shabdo ke mohtaz nahi hote...
बहुत सुंदर जी बेहतरीन...
मेरे नये पोस्ट -प्रतिस्पर्धा- में आपका.....
लिख कर पढ़ाता हूँ जब
दास्तां अपनी...
पढ़ती है और गुनगुनाती है वो...
पढ़ती है आँखों में सच्चाई....
सिहर जाती है वो...
बिखर जाती है वो...
..बहुत खूब!
समीर जी ...
आगे ....
अब लगता है कि कोई कविता जल्द ही आपके तरकश से आने वाली है ....
विजय
बेहतरीन पोस्ट ..
बहुत आनंद आया पढ़कर ...
नर्म निवेदन है की इस पोस्ट को कॉपी
पेस्ट कर अपनी पोस्ट जारी करें ताकि
अधिक से अधिक लोगों तक जानकारी
पहुंचे-
http://cartoondhamaka.blogspot.com/2011/12/blog-post_420.html#links
बहुत खूब लिखा है आपने!!!
शुक्रिया ..इतना उम्दा लिखने के लिए !
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
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