शुक्रवार, अक्तूबर 14, 2011

ऋतुपर्णा !! मैं बुद्ध हो जाना चाहता हूँ ..

जिस सुबह तुम मुझसे मिलने आने वाली  होगी, उस रात मैं साधु हो तपस्या करने त्रिवेणी पार्क के उसी पेड़ के नीचे बैठूँगा, जिसके नीचे बैठ हमने तुमने कितनी ही शामें गुजारी थी.

मैं सारी रात आँख मूँद कर जागूँगा. तुम ऋतुपर्णा बन कर आना. मैं आँख खोलूँगा, तुम सामने होगी. मैं बुद्ध हो जाऊँगा.

monk_sam

तुम्हारे चेहरे पर एक अजीब  भाव होगा - तुम पूछोगी कि यह ऋतुपर्णा कौन है?

ऋतुपर्णा !! 

मेरी कहानी की नायिका- उस कहानी की जो कभी लिखी नहीं गई. एक समुद्र सी मेरे भीतर समाई है, जेहन की किसी गहराई तक 

मुझे नहीं लगता कि मैं कभी लिख पाऊँगा उस कहानी को. कुछ पानी के बुलबुले उकेर भी दूँ तो भी समुद्र तो उतना ही बाकी बच रहेगा. क्या फायदा कुछ छींटें उड़ेलने से भी.

ऋतुपर्णा !! 

देखा तो कभी नहीं उसे मगर उसके बालों की खुशबू- उसके बदन की मोहक गंध नथुनों में समाई रहती है हर वक्त. गुलाब की महक मैं नहीं जानता . बस एक गंध- उन बालों की, एक महक-उस बदन की. इतना ही है मेरे लिए खुशबू का संसार.

ऋतुपर्णा !!

देखा तो कभी नहीं उसे मगर पहचानता हूँ उसकी मुस्कराहट को, उसके चमकते चेहरे को. अहसास है मुझे उसके स्पर्श का. एक कोमल स्पर्श. 

ऋतुपर्णा !! 

सब कुछ वैसा ही जैसी की तुम. एक अंतर बस आवाज का. 

ऋतुपर्णा !! 

सुना तो कभी नहीं उसे - बस आवाज पहचानता हूँ. आवाज कुछ बैठी हुई सी.

याद है जब तुम अपनी सहेली की शादी में रात भर मंगलगान गाती रही थी और सुबह तुम्हारी आवाज बैठ गई थी- वही- हाँ बिल्कुल वैसी ही है ऋतुपर्णा की आवाज. मुझे बहुत भाती है. शायद मोहब्बत का तकाजा हो कि प्रेमिका के ऐब भी ऐब न होकर रिझाने लगते हैं.

तुम यूँ करना कि उस रात भी रात भर मंगलगान गाना, जब मैं तपस्या करने बैठूँगा. पावन मौके पर यूँ भी मंगलगान की प्रथा रही है.

जब सुबह तुम आओगी और मुझे पुकारोगी- तो वही आवाज होगी ऋतुपर्णा की...

मैं मुस्कराते हुए आँख खोलूँगा और बुद्ध हो जाऊँगा...

तुम उलझन में पूछोगी कि बुद्ध कैसे हो जाओगे? बुद्ध को तो बोध की प्राप्ति हुई थी.

मैं कहूँगा - बोध?

बोध का अर्थ जानती हो?

उस रोज मैने तुम्हें एक बौद्ध मठ से कुछ किताबों के साथ निकलते देखा. आवाज लगाना चाहता था मगर तब तक तुम ...शायद बहुत देर से वो वहीं कार में बैठा तुम्हारा इन्तजार कर रहा था....

तुम निकल गई अपने पति के साथ कार में बैठ कर तेजी से

मैं आँख मूँदें जाग रहा हूँ न जाने क्यूँ तब से.और मैं.....

मैं बुद्ध हो जाना चाहता हूँ .. 

एक मुद्दत हुई
कि
जागते हुए
सोया हूँ मैं...
जाने किन ख्यालों में
खोया हूँ मैं...

-कुछ बातें अहसास की- लिखी नहीं जाती.

-समीर लाल ’समीर’

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104 टिप्‍पणियां:

दिनेश शर्मा ने कहा…

हमेशा की तरह बेहतर रचना पर आज फिर साधुवाद।

Smart Indian ने कहा…

@ नायिका- उस कहानी की जो कभी लिखी नहीं गई ...
That explains a lot ...

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

आपकी कालपापनिक ऋतुपर्णा के लिए दो पंक्तियाँ

वो जो हसीन परी का खयाल था दिल में।
सही कहूँ तो खयालात का फितूर था वो।।


उस काल्पनिक ऋतुपर्णा, और स्वयं के बुद्ध होने के इर्द गिर्द् एक सुंदर दृश्य उपस्थित किया है। बधाई।


गुजर गया एक साल

विवेक रस्तोगी ने कहा…

बहुत मारक पोस्ट है, ऐसी सच्चाई जो कोई किसी को बताना नहीं चाहता ।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

शब्दों में एक अजब सा बुद्धत्व झलक रहा है, आप बुद्ध हो चुके हैं गुरुवर।

PRIYANKA RATHORE ने कहा…

bahut khoobsurati se ahsaso ko shabdon mei ukera hai....aabhar

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

कहानी में कुछ अधूरापन सा लग रहा है। कुछ और विस्‍तार होता तो शायद ज्‍यादा अच्‍छा लगता।

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

sundar rachna !!
मुझे नहीं लगता कि मैं कभी लिख पाऊँगा उस कहानी को

phir bhi ham sab ko us kahani ka intezar rahega

mehhekk ने कहा…

dil mein sanjoye ek mehek ki tarah.....sunder.

केवल राम ने कहा…

कुछ बातें अहसास की- लिखी नहीं जाती.

एकदम सटीक .....अगर अहसास की बातें लिखी जातीं तो फिर क्या होता ? फिर शायद अहसास इतना कीमती नहीं होता ....बहुत रोचक ...शुक्रिया

किलर झपाटा ने कहा…

एक अत्यंत हैवी किस्म का लिटरेचर है आपका। मेरा पहलवानी मट्ठर दिमाग तो घबरा ही जाता है एकदम से सर। सर एक question पूछना चाहता हूँ आपसे। आप इतनी सहजता से इतने क्लिष्ट चिंतन का इतना सरल और सुगम प्रस्तुतिकरण कैसे कर लेते हैं ? रितुपर्णा के बहाने क्या क्या कह गए आप ! अमेज़िंग !!

सदा ने कहा…

मैं बुध्द हो जाना चाहता हूँ ..
बहुत बढि़या ...लिखा है आपने ...आभार ।

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

अपने प्रिय की काव्यात्मक याद ! सुन्दर अभिव्यक्ति !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

शायद मोहब्बत का तकाजा हो कि प्रेमिका के ऐब भी ऐब न होकर रिझाने लगते हैं.

बेहतरीन भाव ... सुन्दर प्रस्तुति

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब .....
शुभकामनायें !

अजय कुमार ने कहा…

सुंदर अहसास

Khushdeep Sehgal ने कहा…

बुद्दू से बुद्ध बनने के लिए एक अदद नायिका की आवश्यकता होती ही है...

लेकिन कुछ हमारे मक्खन जैसे चिरकालिक बुद्दू भी होते हैं...

जय हिंद...

Kavita Prasad ने कहा…

आप में अपने भावों को रूप देने की अद्भुत क्षमता है| कितनी बारीकी से एहसास उड़ेले हैं अपनी पोस्ट में अपने|

आभार!!!

मीनाक्षी ने कहा…

-कुछ बातें अहसास की- लिखी नहीं जाती.--सच है.

PRAN SHARMA ने कहा…

BHAVABHIVYAKTI MARMIK HAI .BAHU
KHOOB!

रंजू भाटिया ने कहा…

लाजवाब बेहतरीन पोस्ट ...........

रश्मि प्रभा... ने कहा…

waah

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

अहसास लिखे नहीं जा सकते मगर यहां तो सफलतापूर्वक अभिव्यक्त हुए हैं।
वाह!

डॉ टी एस दराल ने कहा…

तुम निकल गई अपने पति के साथ कार में बैठ कर तेजी से

मैं आँख मूँदें जाग रहा हूँ न जाने क्यूँ तब से.और मैं.....

मैं बुध्द हो जाना चाहता हूँ ॥

हा हा हा ! ऐसा अहसास तो हमें भी कई बार हुआ है लेकिन बुद्ध होने का दिल तो कभी नहीं किया । :)

कहानी बहुत सुन्दर लिखी है भाई ।

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

sameer ji..kitni sarlta se likhte hain aap ..aisa lgta hai mann ke vicharon se baat ho rahi ho seedhi seedhi...

shikha varshney ने कहा…

@कुछ बातें अहसास की- लिखी नहीं जाती.
फिर भी काफी कुछ लिख दिया आपने.
सुन्दर.

rashmi ravija ने कहा…

एक मुद्दत हुई जागते हुए..

वाह...अहसासों का सुन्दर अहसास कराती रचना..

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

.... पर यह ऋतुपर्णा कौन है जी?

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बुद्धमे शरणम् गच्चामि!
बुद्धि की शरण में जाइए!
--
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

Amit ने कहा…

ऐसा लगा कि कुछ अधूरापन है. बहरहाल कुछ पुरानी बातें याद आ गयीं.

Udan Tashtari ने कहा…

@ अजीत जी / अमित जी


-ऐसी अभिव्यक्ति तो मात्र एक टुकड़ा ही होती हैं- न शुरुवात का पता...न अंत का....अधुरापन तो इनकी नियति है...

अक्सर तो पाठक ही जोड़ जाड़ कर पूरा करने की कोशिश में उलझन का अहसास करते हैं...

राजेश उत्‍साही ने कहा…

सुंदर।

Meenu Khare ने कहा…

कई और लोग भी भी बुद्ध हो जाना चाहते हैं समीर जी.

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

क्या बात है!!!

mridula pradhan ने कहा…

कुछ बातें अहसास की- लिखी नहीं जाती.
haan.....theek to......

Santosh Kumar ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना..

मेरे ब्लॉग पर आकार उत्साह बढ़ाएं.
www.belovedlife-santosh.blogspot.com

वाणी गीत ने कहा…

कुछ बातें एहसासों की लिखी नहीं जाती ,
तब उपन्यास कैसे पूरा होगा !!!

Arvind Mishra ने कहा…

बहुत बढियां प्रोज मगर वर्तनी की कई गलतियां दुखी करती हैं ..कृपया विशेष ध्यान रखा करें
एक स्थापित ब्लॉगर और लेखक के स्तर से ऐसी असावधानी अपेक्षित नहीं है.
कृपया अन्यथा नहीं लेगें !

Mansoor ali Hashmi ने कहा…

आपके ख्यालो की 'रानी', कही 'मुखर्जी' तो नहीं ! आवाज़ से तो यही चित्र उभरता है, बाकी खुशबू और स्पर्श से तो कुछ आभास नहीं होता ,अस्पष्टता , अधूरापन, 'बुद्ध' हो जाने में ही भलाई है.
सुन्दर प्रस्तुति, मोडर्न आर्ट का शाब्दिक चित्रीकरण.

http://aatm-manthan.com

रचना दीक्षित ने कहा…

अहसास को कभी कभी शब्द देना असहाय कर देता है. बहुत ही भावपूर्ण.

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

बुद्ध से बुद्ध्त्व तक की यात्रा ......

Rajput ने कहा…

कुछ बातें अहसास की- लिखी नहीं जाती
सुन्दर रचना

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

नायिका उस कहानी की जो कभी लिखी नहीं गयी....
सुन्दर....
सादर बधाई...

अनुपमा पाठक ने कहा…

कुछ पानी के बुलबुले उकेर भी दूँ तो भी समुन्द्र तो उतना ही बाकी बच रहेगा.

भावों का अथाह सागर!!!

Udan Tashtari ने कहा…

वर्तनी की त्रुटियों की ओर ध्यान दिलाने के लिए मित्रों का आभार. भरसक सुधार कर लिया है. भविष्य में भी इसी तरह के मार्गदर्शन की उम्मीद रहेगी.

आभार.

vandana gupta ने कहा…

आपने तो आज निशब्द कर दिया………………एक खोज , एक चाहत और एक सच्……………उफ़ !

vandana gupta ने कहा…

समीर जी आपकी ये पोस्ट पढकर आज तो कुछ ऐसे भाव जगे कि एक रचना का निर्माण हो गया………शायद आपके भावो का कुछ समावेश हुआ हो इसमे………देखकर बताइयेगा



एक खोज , एक चाहत और एक सच्……………उफ़ !
बुद्धत्व में पूर्णत्व को खोजता एक सच
पर उस चाहत का क्या करूँ
जो बुद्धत्व भी तुम में ही पाना चाहती है
हाँ ...........तुम नहीं होकर भी यहीं कहीं हो
हाँ ...........मेरे अहसासों में
मेरे ख्यालों में
मेरे गीतों में
मेरी धड़कन में
फिर भी कहीं नहीं हो
वर्षों गुजर गए
तुम्हारा स्पंदन मुझ तक आते
मेरी धमनियों में बहते
मधुर झंकार करते
मगर फिर भी कहीं कुछ अधूरा था
कुछ छुटा हुआ
कहीं कुछ ठहरा हुआ
एक अनाम सा नाम
एक मीठी सी टीस
एक महकती सी खुशबू
तुम्हारे होने की .........या ना होने की
मगर था और है सब आस पास ही
फिर भी एक दूरी
एक अनजानापन.......जिसे जानता हूँ मैं
एक उद्घोष मन्त्रों का
एक उद्घोष तुम्हारी अनसुनी आवाज़ का
कभी फर्क ही नहीं दिखा दोनों में
यूँ लगा जैसे तुम मुझे
गुनगुना रही हो
तुमसे कभी अन्जान रहा ही नहीं
तुम्हें जानता हूँ ........ये भी कैसे कहूं
जब तक कि मेरी चाहत को पंख ना मिलें
हाँ .........वो ही .........जब तुम हो
और बुद्धत्व तुम में ही समा जाये
या कहो मुझे बुद्ध तुम में ही मिल जाये
और जीवन संपूर्ण हो जाए
कहो आओगी ना
क़यामत के दिन मुझे पूर्ण करने
बुद्धत्व स्थापित करने
मेरी अनदेखी कल्पना .........मेरी मधुरिमा

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

ऐसे अहसास होने पर कोई क्या काहे...! आँखे मूँद कर सुन रहा हूँ सिर्फ.

anju ने कहा…

आप की रचनायें पढ़ती हूँ तो ऐसे लगता है कोई चलचित्र देख रही हूँ .इतनी टिप्पणीयों के बाद कुछ भी कहने को नहीं बचता है.फेसबुक में जैसे लाईक का बटन होता है वैसा ही यहाँ भी होता तो मेरे जैसे (देर से पढ़ने वाले )लोगो का भला हो जाता :)

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

दो ध्रुव एक साथ.कामना बोध पाने की और मोह ऋतुपर्णा का - कैसी आकुल द्विधा है:
कोई बात नहीं,लक्ष्य पर पहुँचने की सबकी अपनी राहें! .

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

कैसी आकुल द्विधा, मोह अलभ्य ऋतुपर्णा का और कामना बुद्धत्व की !
चलो ठीक है ,सबके अपने रास्ते .

M VERMA ने कहा…

बुद्धत्व की इस प्रक्रिया से प्रेरणा मिली ..
आँखे मूदकर जागना शायद इसका सोपान होगा.
साधुवाद

P.N. Subramanian ने कहा…

अब आपने ठान लिया है तो लिखा ही जावे.

आकर्षण गिरि ने कहा…

Ek bahhut hi behtareen rachna

Riya Sharma ने कहा…

buddh ho jana.....
amazing....sampurnata...rishton kee esee gahraee..jise kewal mahsuus hee kiya ja sakta hai....

sandeep sharma ने कहा…

मेरी कहानी की नायिका- उस कहानी की जो कभी लिखी नहीं गई. एक समुद्र सी मेरे भीतर समाई है, जेहन की किसी गहराई तक

ऋतुपर्णा !!
बहुत ही भावपूर्ण ....

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…

मुझे नहीं लगता कि मैं कभी लिख पाऊँगा उस कहानी को. कुछ पानी के बुलबुले उकेर भी दूँ तो भी समुद्र तो उतना ही बाकी बच रहेगा. क्या फायदा कुछ छींटें उड़ेलने से भी.

Awesome, like always!!! :-) I wish you meet your rituparna very sooooon….

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Bahut alag se baav padhne ko mile aapki kalpana ki ritu men ,par achha laga sapno ki duniya bhi haseen hoti hai...hakikat ki duniya se koson pare...

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत ही सुंदर पोस्ट |

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत ही सुंदर पोस्ट |

abhi ने कहा…

:) :)
स्वीट है !!

Pratik Maheshwari ने कहा…

काल्पनिक उड़ान बहुत ही गहरी है!

हास्य-व्यंग्य का रंग गोपाल तिवारी के संग ने कहा…

Behtar rachna

Sadhana Vaid ने कहा…

जिस ॠतुपर्णा की अनुभूति मात्र आपको बुद्ध बन जाने के लिये प्रेरित करे कहीं उससे मुलाक़ात हो गयी तो क्या होगा ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति ! बधाई !

विष्णु बैरागी ने कहा…

कुछ बातें अहससा की, लिखी नहीं जातीं।
यब कुछ कह देने के बाद भी, बातें कही नहीं जातीं।
कुछ ऐसी ही, अनलिखी, अनकही बातें पढकर कसकभरा आनन्‍द आया।

Urmi ने कहा…

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! लाजवाब प्रस्तुती !

कविता रावत ने कहा…

badiya prastuti..

जितेन्द़ भगत ने कहा…

Nice.

Sunil Kumar ने कहा…

अहसासों को शब्द दे दिए

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

बौद्धिक पोस्ट....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ऊफ्फ़ ... क्या टीस भर दी है समीर भाई ... कुछ फंसा फंसा सा लग रहा है सीने में ...
क्या हाल चाल है ... बहुत दिन हो गए बात भी किया ... कभी कभी इस भाई को याद कर लिया करो ... हाल बाँट लिया करो ...
आशा है बच्छे भाभी ठीक ठाक होंगे ... हमारा नमस्कार ..

Ankur Jain ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति...हमेशा की तरह

Kailash Sharma ने कहा…

अहसासों का इतना भावपूर्ण और ह्रदयस्पर्शी चित्रण..निशब्द कर दिया...आभार

Rachana ने कहा…

एक मुद्दत हुई
कि
जागते हुए
सोया हूँ मैं...
जाने किन ख्यालों में
खोया हूँ मैं...
aapki har rachna ke bad ki kuchh panktiya rachna ki harah hi asardar hoti hai aapke lekhan ko naman
saader
rachana

VIJAY PAL KURDIYA ने कहा…

अच्छी रचना .............
wel come
http://vijaypalkurdiya.blogspot.com

KK Yadav ने कहा…

बड़े दार्शनिक लहजे में लिखी पोस्ट...अच्छी लगी.

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

जिन अभिव्यक्तियों को अभिव्यक्त नहीं कर सकते फिर भी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति... सादर

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

sach kaha aapne ehsaas kabhi panno par pure nahi utar pate...shayed isliye is me vahi adhurapan chhalak raha hai jo shayad kabhi purnta nahi paa payega...lekin ehsaso ko mehsoos kar ke poornta payi ja sakti hai jise har pathak gan apni apni soch se pa lene ki koshish karega.

sunder abhivyakti....vicharo k mayajal me fasa diya hai apne pathak ko.

संगीता पुरी ने कहा…

एक मुद्दत हुई
कि
जागते हुए
सोया हूँ मैं...
जाने किन ख्यालों में
खोया हूँ मैं...

-कुछ बातें अहसास की- लिखी नहीं जाती.

बहुत सुंदर प्रस्‍तुति !!

palash ने कहा…

समीर जी , आपकी लेखनी की मै हमेशा से कायल रही हूँ, आपको पढना एक सुखद सा अनुभव देता है , पढते पढते मन एक कल्पना के संसार में खो सा गया , शायद ऋतुपर्णा की खोजने लगा था....

Rajesh Kumari ने कहा…

bahut achchi rachna.

Rakesh Kumar ने कहा…

कुछ बातें अहसास की- लिखी नहीं जाती.

-समीर लाल ’समीर’

ओह! अब जाना कि समीर जी 'लाल' क्यूँ हैं
और लाल 'समीर' की तो बस अपनी ही बात है.

सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर भी चले आईयेगा न.
.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

अरे बाप रे! यह तो शुद्ध ज़ेन बुद्धत्व है।
हमने पढ़ा नहीं और ब्लॉगजगत साधू बनने लगा।

सुनीता शानू ने कहा…

सचमुच संडे का पूरा आनंद ले रहे हैं आप जो न देख पाये हैं आज की यह खुशनुमा हलचल :) आज कीनई पुरानी हलचल

Urmi ने कहा…

आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को दिवाली की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !

Kunwar Kusumesh ने कहा…

एक समुद्र सी भीतर समाई कहानी का अद्भुत होना लाज़मी है.
बहुत खूब,समीर जी.
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें.

रजनीश तिवारी ने कहा…

बहुत भावपूर्ण पोस्ट । दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं

Amit Sharma ने कहा…

पञ्च दिवसीय दीपोत्सव पर आप को हार्दिक शुभकामनाएं ! ईश्वर आपको और आपके कुटुंब को संपन्न व स्वस्थ रखें !
***************************************************

"आइये प्रदुषण मुक्त दिवाली मनाएं, पटाखे ना चलायें"

समय चक्र ने कहा…

दीपावली पर्व अवसर पर आपको और आपके परिवारजनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं....

Amrita Tanmay ने कहा…

अति सुन्दर....** दीप ऐसे जले कि तम के संग मन को भी प्रकाशित करे ***शुभ दीपावली **

Rakesh Kumar ने कहा…

आपके व आपके समस्त परिवार के स्वास्थ्य, सुख
समृद्धि की मंगलकामना करता हूँ.दीपावली के पावन पर्व की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
दुआ करता हूँ कि सुखद 'समीर' चहुँ ओर बहे और आपके सुन्दर सद लेखन से ब्लॉग जगत हमेशा हमेशा आलोकित रहे.

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

bahut sundar aur maarmik katha hai. kisi ke pyar mein buddhatwa ko praapt hona, bahut sundar vichaar. shubhkaamnaayen.

संतोष पाण्डेय ने कहा…

निश्चित ही शानदार रचना, हमेशा की तरह.
दीपोत्सव की शुभकामनायें.

ePandit ने कहा…

असल जीवन में तो पता नहीं पर लेखन में बुद्धत्व को प्राप्त हो चुके हैं आप।

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

बहुत सुंदर पोस्ट हमेशा की तरह …

आभार ! बधाई !!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

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* आप सबको दीवाली की रामराम !*
*~* भाईदूज की बधाई और मंगलकामनाएं !*~*

- राजेन्द्र स्वर्णकार
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मेरे भाव ने कहा…

गंभीर चिंतन को प्रेरित करती पोस्ट... दिवाली की हार्दिक शुभकामना !

neha ने कहा…

rituparna...kya kahna..naam me hi kitni khushbu hai...
padhte huye kuchh palon ke liye khud ko bhul gayi..

Unknown ने कहा…

महोदय/महोदया जैसा कि आपको पहले ही माननीय श्री चन्द्र भूषण मिश्र 'ग़ाफ़िल' द्वारा सूचित किया जा चुका कि आपके यात्रा-वृत्त एक शोध के लिए सन्दर्भित किए गये हैं उसको जिस रूप में प्रस्तुत किया गया है वह ब्लॉग ‘हिन्दी भाषा और साहित्य’ http://shalinikikalamse.blogspot.com/2011/10/blog-post.html पर प्रकाशित किया जा रहा है। आपसे अनुरोध है कि आप इस ब्लॉग पर तशरीफ़ लाएं और अपनी महत्तवपूर्ण टिप्पणी दें। हाँ टिप्पणी में आभार मत जताइएगा वरन् यात्रा-साहित्य और ब्लॉगों पर प्रकाशित यात्रा-वृत्तों के बारे में अपनी अमूल्य राय दीजिएगा क्योंकि यहीं से प्रिंट निकालकर उसे शोध प्रबन्ध में आपकी टिप्पणी के साथ शामिल करना है। सादर-
-शालिनी पाण्डेय

Ashoke Mehta ने कहा…

बहुत सुन्दर ढंग से मन की कल्पनाओं को शब्दोँ में पिरो कर आपने प्रस्तुत किया है ..

निर्मला कपिला ने कहा…

कुछ शब्दों मे पूरी ज़िन्दगी के जज़्बात कह दिये--- कल्पनायें वहाँ तक चली जाती हैं जहाँ तक हम कभी पहुँच नही पाते। विचित्र है ये कल्पनाओं का शहर। शुभकामनायें।

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत कुछ पठनीय है यहाँ आपके ब्लॉग पर-. लगता है इस अंजुमन में आना होगा बार बार.। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद !

इन्दु पुरी ने कहा…

लम्बे अरसे के बाद मेरा मनभावन पढ़ने को मिला। एक ऋतुपर्णा सबमें जीती है। गौतम बुद्ध तो अद्वितीय है, 'मानव' में जीते महसूसा है मैंने।आप हो, आपमे ऋतुपर्णा भी धड़कती रहे...आपकी कविता की तरह।