दीनानाथ, हमारा ड्राईवर.
उसका बेटा चोरी के इल्जाम में,जेल में एक साल की सजा काट रहा है। . दीनानाथ का मानना है कि झूठा फँसाया है पुलिस ने उसे.
पिछले ह्फ्ते दीनानाथ ने बताया कि उसकी बहु रात गये चुपचाप भाग गई. कुलच्छनी थी. दीनानाथ का कहना है कि उसे शुरु से ही उसके चाल चलन ठीक नहीं दिखते थे.
परसों वो लौट आई. पता लगा कि उसके पिता जी की तबीयत एकाएक खराब हो गई. दीनानाथ जाने न देता सो वो चुपचाप बिना बताये ही चली गई.
आज दीनानाथ की लड़की भाग गई. कहता है कि गऊ है. गली के नुक्कड़ वाला धोबी का लड़का फुसला कर भगा ले गया. दुष्ट नहीं तो!!!
रात वही,
बात वही
चाँद ये
अलग सा ऊग आया
और
देखो,
बात ……..
कितनी बदल जाती है.....
-समीर लाल ’समीर’
78 टिप्पणियां:
रात वही, चाँद वही, बात लेकिन बदल जाती है
जैसा पहना हो चश्मा वैसी सूरत नज़र आती है।
बस बौस
सही कहा, बात बदल जाती है. दूसरे की बेटी कुलछ्नी अपनी गौउ
इंसानी चरित्र के दोमुंहेपन को खूब उजागर किया है आपने लघु कथा के माध्यम से।
लघु कविता भी अपनी अभिव्यंजना से आकर्षित करती है।
बात तो बहुत सच है हर बात के बहुत से पहलू होते है बस नजरिया कैसा है / या उस वक्त के हालत क्या है इस पर सब तय रहता है ....
रात वही,
बात वही
चाँद ये
अलग सा ऊग आया
और
देखो,
बात …….. कितनी बदल जाती है.....
कोई भी बात
कब कैसे कौन सी करवट ले सकती है
इस का बखूबी बयान किया आपने ...
कहानी की संक्षिप्तता ही कहानी की शान है
और
काव्य धारा भी
अपनी बात कह रही है ...
अभिवादन स्वीकारें .
दीनानाथ सावन का अंधा है, इसलिए हरा-हरा ही देखता है...
मुझे तो झील में चांद नज़र आए, उनकी वो हसरत ही याद रहती है...
जय हिंद...
बेचारा दीन- अनाथ! वह खतरे में है, उसका अस्तित्व, धर्मं, उसकी अस्मिता खतरे में है| सारी दुनिया लट्ठ लेकर बस उसी के पीछे पडी है|
आदरणीय समीर लाल जी
नमस्कार !
....ये चाँद कैसे कैसे
बहुत प्रेरणा देती हुई सुन्दर रचना ...
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!
Happy Republic Day.........Jai HIND
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ, क्षमा चाहूँगा,
मिला जब भी मौका,साथ छोड़ गए अपने।
पल में चकनाचूर हुए,कच्चे शीशे के सपने।
बयार ही कुछ ऐसी चल रही है। दीनानाथ तो क्या? जगन्नाथ भी कुछ नहीं कर सकते।
घर घर में माटी का चूल्हा
देखो,
बात …….. कितनी बदल जाती है...
" कितने सरल शब्दों में कितनी गहरी बात..."
regards
बेचारे दीनानाथ ...
सही बात है.....अपनी बात किसी को बुरी नहीं लगती...
चन्दा मामा भी खूब हैं..
आंख मूंद कर पत्थर फेंकिये ! जहां भी गिरेगा दीनानाथ ज़रूर मिलेंगे !
bahut khoob kaha sir aapane
aapake isi vichar par maine
ek natak likha hain jald hi post karunga use
sir maine apane poem vale blog ko delete kar dia hain ab se main apani poem sirf ek blog apr likhunga
kabhi visit kariyega and accha lage to follow kariyega
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/
कितने सरल शब्दो मे आपने इतनी गहरी बात कह दी,
बधाई
ऐसा ही होता है औरो की बेटी कुलच्छनी, अपनी बेटी गऊ
Zahiran sundar aalekh!
Gantantr Diwas kee dheron badhayee!
अदमी के दोचहरे । और जब बात अपनी बेती पर आयी तो गऊ और अगर बहु पर तो कुलच्छनी। अच्छी लगी लघु कथा। शुभकामनायें।
कहानी चार वाक्य की, पर अर्थ कितना गहरा है ...
कथा और कविता अपनी जगह मुकम्मल होते हुए भी एक दूसरे की पूरक सी महसूस होती हैं ,
बहुत कम शब्दों में कही गई बहुत बड़ी बात ,
गागर में सागर भरने वाला मुहावरा चरितार्थ होता है यहां .
हम सब में एक दीनानाथ छुपा हुआ है...हमारे विचार व्यक्ति को देख कर बदलते हैं...इस बात को बहुत अच्छे से बताया है आपने...
नीरज ..
सही कह रहे हैं. बातों ही बातों में बात कितनी बदल जाती है.
बहुत खूब कहा है आपने ...बेहतरीन ।
चाँद तो एक ही है बस नज़र का फेर है.. अलग अलग रंग के चश्मे से दुनिया और हालात अलग ही दिखते हैं... छोटी सी लघुकथा लेकिन असर गहरा छोड़ती है..
good sight
सच है बात कितनी बदल जाती है.
चेहरा वही है नजरें बदल जाती हैं..
चाँद और कविता दोनों सुन्दर...
सच में कैसे -कैसे हैं यह चाँद .....
asardaar laghu kathaa ,aabhaar
..अजब-गजब कहानी...
:))))..........sach me aisa hi hota hai...jo jitna kareeb, waisee soch khud nikalti hai...
ek nivedan sameer bhaiya : mera blog jindagikeerahen.blgospot.com pata nahi kahan gumm hoga, agar aap iske revive ke liye koi suggestion de sakte hain, to bahut kripa hogi..!!
khoob kahi sir :)
aisa hi hota hai !
रात वही,
बात वही
चाँद ये
अलग सा ऊग आया
और
देखो,
बात ……..
कितनी बदल जाती है.....
:-) waah! zindagi ki sachchai to badi khoobsurati aur saadgi se bayaan kar diya!
ye kese kese chand
bahut khub
..
अलग-अलग घटनाओं को देखने के अलग-अलग नज़रिए. क्या खूब ढंग से कही आपने ये बात!
is samaj ka yahi dastur hai apna bhala to jag bhala, koi dubta hai to doob jane do ......
क्या कहें दुनिया रंग बिरंगी .तरह तरह के चाँद .. संक्षिप्त पोस्ट मानो बहुत कुछ कह रही है ... आभार
Superb!!!!!!!1
‘दीनानाथ, हमारा ड्राईवर’
बेचारा अनाथ :(
सही कहा...बात नजर और नजरिये की ही तो है...
कलयुग में ऐसे दीनानाथों की भरमार है ।
बहुत संक्षेप में बता दिया कि कैसे मन में उपस्थित पूर्वविचार किस प्रकार शब्द ले लेते हैं।
अपनी बेटी और दूसरे की बेटी वाली मानसिकता का ये अन्तर चन्द्रमा के बेहतर प्रतीक माध्यमों से प्रतिबिंबित हुआ है । Great.
सच दूसरों में दुर्गुण न होते हुए भी दिखाई पड़ते हैं लेकिन हमें अपने दिखाई नहीं देते,
यहाँ तक कि बताने के बाद भी लोग यकीन नहीं करते !!
काश ये बात सभी समझ लेते ....
- विजय तिवारी ' किसलय '
सच दूसरों में दुर्गुण न होते हुए भी दिखाई पड़ते हैं लेकिन हमें अपने दिखाई नहीं देते,
यहाँ तक कि बताने के बाद भी लोग यकीन नहीं करते !!
काश ये बात सभी समझ लेते ....
- विजय तिवारी ' किसलय '
यही तो है स्थानीय मान..
वाह वाह !! क्या बात है ... सच कहा आपने ... बस नज़र का फर्क है ... :)
परिस्थितियां एक ही बात के भावों को बदल देती हैं ...सुन्दर अभिव्यक्ति
रात वही, चाँद वही, बात लेकिन बदल जाती है
जैसा पहना हो चश्मा वैसी सूरत नज़र आती है।
--
अलंकारों से सुसज्जित सुन्दर रचना!
सच कहा समय के साथ हर चीज़ बदल जाती है ....
बेहतरीन रचना.
aapne ek aur dinanath se parichy kara diya.
laghu katha aur kavita dono hee
marmspashee hain . Seedhe - saade
shabdon badee baat kahne mein aap
maahir hain .
laghu katha aur kavita dono hee
marmspashee hain . Seedhe - saade
shabdon badee baat kahne mein aap
maahir hain .
यह दीना नाथ बहुत झूठ बोलता हे जी, आप इस की बाते मत मानाना, बहुत सुंदर बात कह दी आप ने, धन्यवाद
"जाकी रही भावना जैसी…प्रभू मूरत देखी तिन्ह तैसी॥सुन्दर अभिव्यक्ति
very true you said ..
apanaa wahi kaam kare to doosare k galti hum dekhe hai.
कोई रात बस यूं ही निकल जाती है, झट से,
और कोई पल भी नहीं कटता,
जैसे कई काली रातों की गहराई हो...
बेचारे दीनानाथ :)
सही है, दीनानाथ के लिये दृष्टि बदली तो सृष्टि बदली। और चांद भी!!
sarthak.....
pranam.
थोड़े से शब्दों में बहुत बड़ी बात, आपकी नजर बड़ी गहराई से चीजों को पकड़ती है
सच ही है अपनी बेटी कोई गलत काम करे तो उसे फुसला लिया गया और वही काम करे तो कुलच्छनी...इसी को दोहरा चरित्र कहते हैं....
चांद तो सुंदर है ही कविता भी...
लघु कलेवर । गहरे तेवर । मान्यवर वाह ! www.abhinavsrijan.blogspot.com
आप भी न गज़ब करते हैं समीर जी ....
इस लघु कथा नें कितनी बड़ी बात कह दी ....
की बहु कभी बेटी का स्थान नहीं ले सकती ...
अपनी बेटी कुलक्षणी है तो भी भली और
बहु भली है तो भी कुलक्षणी ....
ये खाई हमेशा रहेगी ही .....
चाँद तो एक ही है ...
पर अलग अलग दृष्टिकोण से
अलग अलग देखा जाता है ....
गज़ब.... कविता दीनानाथ सहित अन्य कई घटनाओं और चरित्रों पर सही बैठती है.....
नमस्कार........ आपकी कविता मन को छु गयी......
मैं ब्लॉग जगत में नया हूँ, कृपया मेरा मार्गदर्शन करें......
http://harish-joshi.blogspot.com/
आभार.
बिलकुल ठीक कहा है। एक घटना याद आ रही है: मेरे एक भारतीय मित्र ने दूर से देखा दो काले व्यक्तियों को तो सोचा कि इस मुहल्ले में कुछ काले लोग रहने आ गए हैं। पास आने पर पता लगा कि उसी के दोनों बेटे हैं!
अपना पराया का फरक तो इंसान कर ही जाता है कहीं ना कहीं..
बहुत खूब बयां किया है आपने..
माथा देखकर तिलक लगाना इसी को कहते हैं।
सच में बात बहुत बदल जाती है..... देखने का नज़रिया और कहने का ढंग इस बदलाव को बता देता है.... संक्षिप्त ..सटीक बात
सच में बात बहुत बदल जाती है..... देखने का नज़रिया और कहने का ढंग इस बदलाव को बता देता है.... संक्षिप्त ..सटीक बात
छोटी और सटीक बात...
बात नहीं बदलती। लोग अपनी बात बदल देते हैं। वैसे, बदलाव ही जीवन है।
आदरणीय समीर लाल जी
हम आप के पंखे (FAN) है
बहुत दिन हो गए आप से कोई व्यंग रचना नहीं सुनी .
यही फितरत है आज ज़माने की..........सरल शब्दों में लिखी हुई गहरी बात।
मोह-बुद्धि !दुनिया इसी का नाम है .
chaand par gulzar ka nazariya :
kisi bhikhari ka toota hua katora hai,
gale main dale jise asman pe raat chale...
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