आज कम्प्यूटर पर वायरस का हमला हुआ. सुबह से मोर्चा संभाला हुआ है उनके खिलाफ. देखिये, क्या नतीजा निकलता है. अच्छा है कि ९७% कम्प्यूटर का बैक अप है. याने चार दिन पहले तक का. टेंशन डाटा लूज करने की हमेशा ज्यादा होती है तो उससे मुक्त हूँ. बस, आपसे पूछना चाह रहा था कि आपके पास बैक अप है अपने कम्पयूटर का? क्यूँकि जिस तरह एक आतंकवादी नहीं जानता कि हमले में वो किसे मार रहा है, और किस समय कर रहा है, उसी तरह वायरस की चपेट में भी कोई भी आ सकता है कभी भी. अपनी सुरक्षा का इन्तजाम खुद करें. हर समय तैयार रहें बैक अप के साथ.
अब मौसम जा रहा है. सर्दियाँ लगने को है. फल सब्जी जो भी बगीचे में हुए, तोड़ लिए गये या तोड़े जा रहे हैं. खूब खीरे, मिर्च, टमाटर, चेरी, नाशपाती खाई गई बगीचे की. कल सेब की अंतिम खेप भी तोड़ ली और लौकी (भ्रष्टाचार से तेज गति से बढ़ी) कल तोड़ी जायेगी. तो सेब और लौकी की तस्वीरें:
इन्हीं वजहों के चलते कुछ लिखना नहीं हुआ, बड़ी मिटती उड़ती फाईलें, उनका बचाव दिन ले गया तो बीच में नजर पड़ी अपनी एक पुरानी कविता पर जिसे मैं मंचों से अक्सर सुनाता हूँ मगर आश्चर्य कि वो मेरे ब्लॉग पर नहीं है. न जाने कैसे छूट गई. तो आज वो ही:
तुझे भूलूँ बता कैसे
मैं हूँ इस पार तू उस पार, मगर दिल साथ रहते हैं
हमारे देश में यारों, इसी को प्यार कहते हैं
मुझे तुम भूलना चाहो तो बेशक भूल जाना पर
तुझे मैं भूलता कैसे, तुझे हम यार कहते हैं.
न जाने कौन सा बंधन, न जाने कैसे रिश्ते हैं
दर्द उस पार उठता है, आँसूं इस पार गिरते हैं
ये हैं अहसास के रिश्ते, इसे तुम नाम मत देना
जैसे फूल में खुशबू, ये हर इक दिल में रहते हैं.
इन्हीं रिश्तों के बंधन से, हुआ जो हाल इस दिल का
कई बीमार कहते हैं, कई लाचार कहते हैं
तुझे मैं भूलता कैसे, तुझे हम यार कहते हैं.
मुझे अक्सर रुलाती हैं, सुनहरी याद अपनों की
हमारे साथ के किस्से, लगे है बात सपनों की
मैं उन पत्तों से पूछूंगा, बता दो मुझको मजबूरी
छोड़ कर साथ शाखों का, बना ली तुमने क्यूँ दूरी
यूँ ही रोते बिलखते ही, मिटाने दूरियाँ निकला
हुई है मेरी हालत जो, उसे बेजार कहते हैं
तुझे मैं भूलता कैसे, तुझे हम यार कहते हैं.
जहाँ बचपन ये खेला था, गली वो याद रहती है
जहाँ भी जा बसें हम तुम, याद वो साथ रहती है
उन्हीं यादों के साये में, गुजरती रात की घड़ियाँ
यहाँ अक्सर ही दिन में भी, अँधेरी रात रहती है.
हँसता हूँ यहाँ पर मैं, तुम्हारे बिन ही महफिल में,
मेरी जाँ ये समझ ले तू, इसे व्यवहार कहते हैं
तुझे मैं भूलता कैसे, तुझे हम यार कहते हैं.
--समीर लाल ’समीर’
120 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.............
हँसता हूँ यहाँ पर मैं, तुम्हारे बिन ही महफिल में,
मेरी जाँ ये समझ ले तू, इसे व्यवहार कहते हैं
बहुत सटीक कविता ..जीवन के यथार्थ को कहती हुई ...भले ही दूर रहें मन में प्यार की हर याद यूँ हो महकती है ....
अब पता चला आपकी तंदुरस्ती का राज.. घर में उगाए.. लोकी.. सेव..
पिछले तीन चार दिनों तक मेरा कंप्यूटर भी वायरस के प्रभाव में रहा .. इतने दिनों तक किसी के ब्लॉग्स तक न देख सकी .. बगीचे के ताजे फलों सब्जियों ने हमें पुराने दिन याद दिलाए .. जब से फ्लैट में रहना हो रहा है .. बागवानी भूल ही गयी हूं .. आपकी यह पुरानी रचना बहुत ही अच्छी लगी !!
क्या कहूँ चचा, कविता ऐ-ग्रेड है...बहुत कुछ याद आ गया :)
बधाई हो !
कोई तो अभी भी आपको हमला करने के लायक समझ रहा है .....जाहिर है हमेशा सजग रहेंगे !
....वैसे यह बैक-अप कैसे लिया जाता है ?
न जाने कौन सा बंधन, न जाने कैसे रिश्ते हैं दर्द उस पार उठता है, आँसूं इस पार गिरते हैं ........... ...इसे पढ़ कर कुछ कुछ होता है सर जी !!!!!!!!!!
@ न जाने कौन सा बंधन, न जाने कैसे रिश्ते हैं
दर्द उस पार उठता है, आँसूं इस पार गिरते हैं ..
अच्छी लगी कविता !
इन्हीं रिश्तों के बंधन से, हुआ जो हाल इस दिल का
कई बीमार कहते हैं, कई लाचार कहते हैं
तुझे मैं भूलता कैसे, तुझे हम यार कहते हैं.
कविता बेहद ही पसंद आई....ये हरी भरी सब्जियां और फल कुछ यहाँ भी भिजवा दीजिये , एक तो महगाई और बारिश दोनों ने जीना मुहाल किया है.....
regards
मेरी जाँ ये समझ ले तू, इसे व्यवहार कहते हैं
..मंच लूट लेने वाली कविता ।
..इसे पढ़कर पता चलता है कि आप भी कभी ज़वान थे और सेव लौकी से आपका प्यार देखकर लगता है कि आप कभी बुढ्ढे भी नहीं होंगे।
backup is necessary. about an year back there was a burglary in our office. the RAM and hard-disk were missing. I had a back-up of the desktop data in my laptop so the damage was not too much..
bahut hi sundar...
achhi rachna....
yeh taaze fal aur sabjiyaan bhi....
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मेरे ब्लॉग पर इस मौसम में भी पतझड़ ..
जरूर आएँ..
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...
बैकअप की जुगाड़ करनी पड़ेगी सर जी...अच्छा किया समय रहते सतर्क कर दिया आपने...
हर बार की तरह आपकी रचना लाजवाब है....
बहुत सुंदर हृदय स्पर्शी कविता
हर उस व्यक्ति के मन की बात जो अपनी गलियों चौराहों से अपनों से दूर है
बैकअप के साथ हम तैयार हैं।
लौकी की तरह स्वास्थ्यकर नहीं पर भ्रष्टाचार।
प्यार की परिभाषा यदि गेयता में उतारी जा सके तो आपकी कविता एक मानक कहलायेगी।
सबसे पहले
नेट प्रोटेक्टर लगाएं
और वायरसों से
निजाद पायें ....
मैं हूँ इस पार तू उस पार, मगर दिल साथ रहते हैं
हमारे देश में यारों, इसी को प्यार कहते हैं .
रचना बेहद अच्छी लगी. ... आप १५ नवम्बर को आ रहे हैं ... जानकर बड़ा अच्छा लगा.
आभार
बहुत खूब... कविता ... वन्स मोर कहकर खुद ही दुबारा पढ़ ली...
आपकी स्टाइल बड़ी प्यारी है. लौकी तो कोफ्ता ही बनाते हैं. इतने सारे सेव हों तो फिर जाम. allonge महत्वपूर्ण रहा. .
मुझे तुम भूलना चाहो तो बेशक भूल जाना पर
तुझे मैं भूलता कैसे, तुझे हम यार कहते हैं.
बहुत ही बेहतरीन.....
यह तो आपने सही कहा, वाइरस से तो हर किसी को सावधान रहना चाहिए.
हमने देखी है इन आंखों की महकती खुशबू,
हाथ से छू के इसे रिश्तों का इल्ज़ाम ना दो,
सिर्फ अहसास है ये रूह से महसूस करो,
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो..
हमने देखी है...
जय हिंद...
असली ओर्गनिक खेती का मज़ा तो आप ले रहे हो समीर भाई! और इधर हम कीटनाशक पी पी कर हलकान हुए जा रहें हैं।
खैर! अभी तो कविता का स्वाद भरा है मुहँ में, तो कोई रश्क नहीं!
बहुत सटीक कविता
न जाने कौन सा बंधन, न जाने कैसे रिश्ते हैं
दर्द उस पार उठता है, आँसूं इस पार गिरते हैं
waah
आप तो डरा रहे हैं...पर खोने के लिए हमारे पास है ही क्या :)
वैसे ये बैकअप लेते कैसे है ? हम जैसे नाताज़ुर्बेकारों को ये भी बता देते तो कल्याण होता :)
kis mulaymiyt se aapne yado ko shej kr rkkha hai ki kya khe .jb ehsas mhsoos kiye jate hai to uska vjn hi kuchh our hota hai .bhut khoobsoorti se unhe ukera hai . dhnywaad .
हम जैसे फक्कड लोग अपने कम्प्यूटर में डाटा ही नहीं रखते है तो उड़ने वाली बात ही नहीं है | वायरस का प्रकोप भी हमारी ज़रा सी लापरवाही से ही होता है | आपकी सेहत का राज है ओर्गेनिक सब्जिया ,आज पता चल गया है |
मुझे अक्सर रुलाती हैं, सुनहरी याद अपनों की
हमारे साथ के किस्से, लगे है बात सपनों की
........
तुझे मैं भूलता कैसे, तुझे हम यार कहते हैं.
बहुत ही प्यारी दिल को छूती भावमयी कविता
यह रचना कभी पुरानी नहीं हो सकती
आभार & शुभ कामनाएं
जहाँ बचपन ये खेला था, गली वो याद रहती है
जहाँ भी जा बसें हम तुम, याद वो साथ रहती है
उन्हीं यादों के साये में, गुजरती रात की घड़ियाँ
यहाँ अक्सर ही दिन में भी, अँधेरी रात रहती है.
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां भावमय कर गईं ।
Wow....aapka garden bahut khoobsoorat hai...aur apple to lajawaap type lag rahe hain ...kheera. nashpaati aur Chery ki tasveere kahan hai .....by the way
हँसता हूँ यहाँ पर मैं, तुम्हारे बिन ही महफिल में,
मेरी जाँ ये समझ ले तू, इसे व्यवहार कहते हैं
Love this one
सुन्दर अभिव्यक्ति...
शीर्षक देखा- पोस्ट पर नज़र डाली लगा वायरस को न भूल पाने की बात.... कोई व्यंग्य का टुकड़ा होगा.....पर ये तो कविता थी...जीवन के यथार्थ को उद्धृत करती...
शुभकामनाएं...
बहुत सुन्दर रचना है ...
और फल तो लजीज है ...
न जाने कौन सा बंधन, न जाने कैसे रिश्ते हैं
दर्द उस पार उठता है, आँसूं इस पार गिरते हैं
ये हैं अहसास के रिश्ते, इसे तुम नाम मत देना
जैसे फूल में खुशबू, ये हर इक दिल में रहते हैं.
इन्हीं रिश्तों के बंधन से, हुआ जो हाल इस दिल का
कई बीमार कहते हैं, कई लाचार कहते हैं
तुझे मैं भूलता कैसे, तुझे हम यार कहते हैं.
beautiful...!
@हँसता हूँ यहाँ पर मैं, तुम्हारे बिन ही महफिल में,
मेरी जाँ ये समझ ले तू, इसे व्यवहार कहते हैं
तुझे मैं भूलता कैसे, तुझे हम यार कहते हैं.
उफ्फ्फ ....... दर्द और मुस्कराहट [वाह वाह कैसे कहें ?? अच्छा नहीं लगेगा :)]
शुरूआती पेराग्राफ पढ़ कर एक दम से "माय जापानीज वाइफ" [फिल्म ] की याद आ गयी
http://www.santabanta.com/cinema.asp?pid=18809
मैं तो बेकअप का ख़ास ख़याल नहीं रखता ..... हाँ एक बात है इन्फोर्मेशन का सोर्स [जैसे की वेब साईट का नाम] याद रहे बस काफी है
रही बात खुद के लिखे नोट्स आदि सामग्री की उसे भी नेट पर अपलोड कर देता हूँ , हो गया काम पूरा
वायरस आता भी होगा तो निराश हो कर जाता होगा, या हाथ पर हाथ धर कर बैठा रहता होगा और सोचता होगा "कहाँ आ गया मैं भी" :)
घर में ही सब्जी उगती देख कर आस पास सब्जी वाले आपसे जयादा भाव लगाते होंगे , रोज रोज थोड़ी जाना होता होगा आपका ..... इसलिए कह रहा हूँ :))
...sundar rachanaa ... badhiyaa post !!!
आप हमेशा ही बगीचे की तस्वीरें लगा कर ललचाया करते हैं ये बात अच्छी नहीं :) अब मैं ये लौकी की तस्वीर कैसे भूलूं? आपने ही कहा है भूलना संभव नहीं .
बेहद सटीक कविता .
जहाँ बचपन ये खेला था, गली वो याद रहती है
जहाँ भी जा बसें हम तुम, याद वो साथ रहती है
उन्हीं यादों के साये में, गुजरती रात की घड़ियाँ
यहाँ अक्सर ही दिन में भी, अँधेरी रात रहती है.
आपके जज़्बे को सलाम समीर लाल जी.
बहुत अच्छी कविता.. प्रेम के रस मे डूबी हुई..
न जाने कौन सा बंधन, न जाने कैसे रिश्ते हैं
दर्द उस पार उठता है, आँसूं इस पार गिरते हैं
आंसू भरा प्यार बड़ा लुभावना होता है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
समझ का फेर, राजभाषा हिन्दी पर संगीता स्वरूप की लघुकथा, पधारें
समीर जी
आशर्वाद
आपकी कविता
यूं ही रोते बिलखते ही,मिटाने दूरियां निकला हुए हैं मेरी
बहुत स्टीक
फिर आपने लिखा
हँसता हूँ यहाँ पर मै, तुम्हारे बिन ही महफ़िल में
समझ ले तू इसे व्यवहार कहते है
आगे क्या लिखू सभी पंक्तियाँ एक से एक बढ़ कर
शानदार गीत, जानदार अभिव्यक्ति .बहुत-बहुत बधाई .
शानदार गीत ,जानदार अभिव्यक्ति . बहुत-बहुत बधाई .
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 22 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
`न जाने कौन सा बंधन, न जाने कैसे रिश्ते हैं'
ऐ दोस्त...... इसी को वायरस कहते हैं :)
क्या खूब लिखा है………………बडी ही बेजोड कविता है……………सीधे दिल मे उतर गयी।
सेव और लौकी तो बढिया और सुंदर लग रही है, खुद के बगीचे की है तो पौष्टिक और कीटनाशक के प्रभाव से भी मुक्त होगी ही. सेहत का राज आज समझ आगया.:)
कविता तो बहुत ही लाजवाब है.
रामराम.
और सेव और लौकी पर क्लिक करके सारा फ़ोटूआ देखा, मजा आगया, बहुत धन्यवाद.
रामराम.
और एक ठो बात....सेव पर कुछ सफ़ेद सफ़ेद सा दिख रहा है. क्या आप भी कोनू दवाई वगैरह तो नाही छींटते इन पर?
रामराम
शानदार गीत ,जानदार अभिव्यक्ति . बहुत-बहुत बधाई .
मैं उन पत्तों से पूछूंगा, बता दो मुझको मजबूरी
छोड़ कर साथ शाखों का, बना ली तुमने क्यूँ दूरी
क्या सधा हुआ बिम्ब है! बिल्कुल अपठनीय और गद्यमय होते जा रहे काव्य परिदृश्य पर "तुझे कैसे भूलूं बता दे" कविता इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि आप कविता की मूलभूत विशेषताओं को प्रयोग के नाम पर छोड़ नहीं देते। बेहद संश्लिष्ट इस कविता में उपस्थित लयात्मकता इसे दीर्घ जीवन प्रदान करती है। यह कविता एक संवेदनशील मन की निश्छल अभिव्यक्तियों से भरी-पूरी है। इसमें निहित आपकी भाषिक संवेदना पाठक को आपकी आत्मीय दुनिया की सैर कराने में सक्षम है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
और समय ठहर गया!, ज्ञान चंद्र ‘मर्मज्ञ’, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
वायरस का चमत्कार है चतुर्दिक ।
हँसता हूँ यहाँ पर मैं, तुम्हारे बिन ही महफिल में,
मेरी जाँ ये समझ ले तू, इसे व्यवहार कहते हैं
तुझे मैं भूलता कैसे, तुझे हम यार कहते हैं.
वाह...वाह...वाह...क्या बात कही....
कविता तो मनमोहक है ही...साथ साथ हृष्ट पुष्ट स्वस्थ सेब लौकी के दर्शन करा मन हरिया दिया आपने..
बहुत ही उम्दा रचना है भाईसाहब ...!!
न जाने कौन सा बंधन, न जाने कैसे रिश्ते हैं
दर्द उस पार उठता है, आँसूं इस पार गिरते हैं ...
वाह संमीर भाई .... इसी को दिल का रिश्ता कहते हैं ..... बहुत अच्छा लगा कल बात करना ... पर शिकायत रह गई ..... दुबारा सोच लो दुबई होते जाने का .....
सर ..आपको बहुत तालियाँ मिलती होंगी
इस कविता को सुनाने पर.
बहुत ही उम्दा कविता है .
आभार ......
समीर भाई, एण्टी वायरस लगाने के बाद भी वायरस आ जाता है क्या? सेव दिखाकर तो आप ललचा रहे हैं और लौकी तो अपनी प्रिय है।
बहुत ही बेहतरीन पोस्ट ..और हां लौकी और सेब दोनों एक साथ माने बाबा रामदेब और बाबा कामदेव दोनों का prescription साथ ले रहे हैं ...॥
बहुत सुन्दर यादों का पिटारा ।
सुन्दर प्रस्तुति ।
बैकप याद दिलाने के लिए धन्यवाद ।
जहाँ बचपन ये खेला था, गली वो याद रहती है
जहाँ भी जा बसें हम तुम, याद वो साथ रहती है
उन्हीं यादों के साये में, गुजरती रात की घड़ियाँ
यहाँ अक्सर ही दिन में भी, अँधेरी रात रहती है.
हँसता हूँ यहाँ पर मैं, तुम्हारे बिन ही महफिल में,
मेरी जाँ ये समझ ले तू, इसे व्यवहार कहते हैं
तुझे मैं भूलता कैसे, तुझे हम यार कहते हैं.
बहुत सुंदर पंक्तियां
sabjiyan dekh man hara ho gaya
Vah bhai sahab aaj to is geet ko gaane ka man ho raha hai. lekin sur taal nahi hai. isliye besura hi sahi. lekin ga ke jarur dekhunga.
shubhkamnaye.
आप कभी अपनी बार की फ़ोटो दिखाकर और कभी फ़ल सब्जियों की तस्वीर दिखाकर सबको ललचाते रहते हैं। हम भी विंडो शापिंग की तरह विंडॊ पार्टी का लुत्फ़ लेते रहते हैं।
कविता एकदम फ़र्स्ट क्लास लगी जी। कई साल पीछे ले गई। मंच लूट लेते हैं आप इसकी बदौलत, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं।
आभार स्वीकार करें।
मैं हूँ इस पार तू उस पार, मगर दिल साथ रहते हैं
हमारे देश में यारों, इसी को प्यार कहते हैं
मुझे तुम भूलना चाहो तो बेशक भूल जाना पर
तुझे मैं भूलता कैसे, तुझे हम यार कहते हैं.
बहुत ही खूबसूरत रचना ...दिल को छू गयी ..
आपकी लौकी की बेल पर लटकी लौकी से मुझे जलन हो रही क्योकि मेरे यहा लगी लौकी,तुरई,गंगाफ़ल.भिन्डी आदि बाढ की भेट चढ गये है मेरे फ़ार्म पर पानी ही पानी है . और मेरा एक खेत तो राम गंगा में समा गया है .
हमारा दिल तो आप के बगीचे में ही टिक कर रह गया। :-)
न जाने कौन सा बंधन, न जाने कैसे रिश्ते हैं
दर्द उस पार उठता है, आँसूं इस पार गिरते हैं
ये हैं अहसास के रिश्ते, इसे तुम नाम मत देना
जैसे फूल में खुशबू, ये हर इक दिल में रहते हैं.
सुंदर भावपूर्ण रचना...
सीधे दिल से दिल तक ।
वाह क्या बात है.........
जहाँ बचपन ये खेला था, गली वो याद रहती है
जहाँ भी जा बसें हम तुम, याद वो साथ रहती है
उन्हीं यादों के साये में, गुजरती रात की घड़ियाँ
यहाँ अक्सर ही दिन में भी, अँधेरी रात रहती है.
--
सुन्दर रचना!
--
सशक्त लेखन!
आया है मुझे याद वो जालिम गुजरा जमाना बचपन का
आपकी इस पोस्ट नें तो हमारी एक बहुत बडी भ्रान्ती का उन्मूलन कर डाला....वो ये कि हम तो शुरू से यही सोचते थे कि यहाँ जिस चीज का जो रंग होता है...आपके वहाँ उससे अलग होता होगा...मसलन यहाँ सेब लाल होता है तो वहाँ नीला/पीला जैसा कुछ होता होगा...लौकी भी यहँ हरी है तो वहाँ शायद लाल/काली या किसी ओर रंग की होती होगी...अब मालूम पडा कि इहाँ और उहाँ में तो कोई फर्क ही नहीं है...फिर आदमी के रंग में इतना फर्क कैसे :)
अति उत्तम प्रसतुति
हम चाहेंगे कि आप अपना ब्लाग
http://bharatvani.feedcluster.com/
पर जोड़ें।
खूबसूरत नज़्म से नवाजने के किये शुक्रीया.मेरे जेसे कुछ लोगों के लिए यह नई है. नहीं छापते तो हम मजा लेने से चूक जाते.कतील साब का इक मिसरा है.. चोट तुझ को लगे ओर ज़ख्म आये मुझे .कई वक्त बाद मुझे याद आया आपकी नज़्म के सहारे अपना भी भुला सा शेर याद आ गया है
है कोई तरीका मिलन का पूंछ तो साहिबे तकदीर से
हम तुम किनारे हैं वक्त की नदिया बही जा रही है
अच्छी कविता की यही निशानी है की वो पाठक के भीतर उतर कर उसे हिला देती है.मेरे हिसाब से आप अपने मकसद में कामयाब रहे हैं .
इधर मेरा भी 20-25 दिन का काफी काम बैकप न होने के कारण ग़ायब हो गया.पर अब पछताए होत का ...
कविता अच्छी लगी.
मुझे अक्सर रुलाती हैं, सुनहरी याद अपनों की
हमारे साथ के किस्से, लगे है बात सपनों की
मैं उन पत्तों से पूछूंगा, बता दो मुझको मजबूरी
छोड़ कर साथ शाखों का, बना ली तुमने क्यूँ दूरी
यूँ ही रोते बिलखते ही, मिटाने दूरियाँ निकला
हुई है मेरी हालत जो, उसे बेजार कहते हैं
तुझे मैं भूलता कैसे, तुझे हम यार कहते हैं.
वैसे तो पूरी की पूरी कविता ही दिल के बहुत करीब सी महसूस हुई ....लेकिन फिर भी इन पंक्तियों गहरी चाप छोड़ी है .....चेरी और खीरों के बारें में पहले नहीं बताया आपने वर्ना इस समर हम पहुच ही जाते स्वाद लेने : )
खैर कोई नहीं अगली समर ही सही .....
क्या जनाब आपके यहाँ टिप्पणी करने के लिए कितना नीचे गिरना /उतरना पड़ता है. इतनी देर में तो मैं पोस्ट पर क्या पढ़ा था सब भूल जाता हूँ.
मुझे तुम भूलना चाहो तो बेशक भूल जाना पर
तुझे मैं भूलता कैसे, तुझे हम यार कहते हैं.
बेहद सुंदर रचना , समीर जी बहुत खूब
bahut hi sundar rachana...... aabhar
सेब देख कर तो मुँह में पानी आ गया.... और कविता देख कर कुछ पंक्तियों से आँखों में आँसू.... बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट...
मैं हूँ इस पार तू उस पार, मगर दिल साथ रहते हैं
हमारे देश में यारों, इसी को प्यार कहते हैं
यही तो हमारे देश का दर्शन है। यही प्यार है। अनदेखी डोर है जो हमें बांधे रखती है।
न जाने कौन सा बंधन, न जाने कैसे रिश्ते हैं
दर्द उस पार उठता है, आँसूं इस पार गिरते हैं
खूबसूरत कविता....
bahut achchha bhavo ko vyakt kiya sir aapne
हँसता हूँ यहाँ पर मैं, तुम्हारे बिन ही महफिल में,
मेरी जाँ ये समझ ले तू, इसे व्यवहार कहते हैं
बस आपके लिए दो पंक्तिया बनायीं हैं , समय नहीं हैं क्योंकि पापी पेट के सवाल हैं .
जिंदगी की सारी खुशिया आप पर बरसती रहे
आकाशो के पार उड़न तश्तरी बढती रहे
ऐसा कुछ हम सब पाताल तक पढ़ जाये
जब हिमालयो से भावो को समीर गढ़ जाये
इतना सुन्दर लिखने पर बधाई सर जी .
बहुत खूब समीर भाई। इसी तरह कभी-कभी अपने बागान की हरियाली को ब्लॉग पर भी लाते रहें। तबीयत हरी-मनभरी हो गयी। कविता भी अच्छी है।
ज्ञानवर्धक लेख, दिल को छू लेने वाली रचना, बधाई
बेहतरीन ...बहुत सुन्दर कविता ...यादों का कारवां मन मस्तिष्क में कब आ जाये पता ही नहीं चलता है|
मैं हूँ इस पार तू उस पार, मगर दिल साथ रहते हैं
हमारे देश में यारों, इसी को प्यार कहते हैं
आपसे भी कुछ इसी किस्म का प्यार है
बहुत ही बढ़िया
न जाने कौन सा बंधन, न जाने कैसे रिश्ते हैं
दर्द उस पार उठता है, आँसूं इस पार गिरते हैं
ये हैं अहसास के रिश्ते, इसे तुम नाम मत देना
जैसे फूल में खुशबू, ये हर इक दिल में रहते हैं......
बहोत ही प्यारी बातें कही है आपने बहोत ही सुंदर रचना
Wah ! Sameer ji seb aur louki dekh ji lalcha gaya. Kavita ne bhi man ko dore dalne me jara bhi kotahi nahi ki
dil ke ehsaas,behad khubsurat.
apple bahut hi shandar hai. ji karta hai photo se churale.
क्या बताऊँ, क्या याद आ गया
कोई भूला फ़साना याद आ गया
तेरे शब्द गुज़रे जब आँखों से ,
वो गुज़रा ज़माना याद आ गया
समीर जी कभी हमारे ब्लॉग पर आ कर भी मार्गदर्शन करें.
सेब और लौकी देख कर मुंह में पानी आ गया...लौकी काफी हट्टी कट्टी और मख्खन के माफिक चिकनी लग रही है...
कविता तो आपकी तरह बेजोड है ही...उस के लिए और क्या कहें...
नीरज
जितने मीठै सेव उतनी ही मीठी कविता। बहुत अच्छी प्रस्तुति। बधाई।
Sameer Ji,
मैं हूँ इस पार तू उस पार, मगर दिल साथ रहते हैं
हमारे देश में यारों, इसी को प्यार कहते हैं
Ek pyar hi sahare to sab zinda hain ... Bahut sunder bhaav se bhari rachna...
Surinder Ratti
Mumbai
मुझे तो लगता है इस कविता में आपकी आत्मा बस्ती है कहीं...
और इस कविता की तारीफ में तो क्या कहू इस में समीरलाल जी पूर्णरूप से झलकते हैं...कोई अगर मुझे आ कर कहे की मैं समीर लाल जी को नहीं जानता तो मैं कहूँगी की ये कविता वो पढ़ ले पुरे के पुरे समीर लाल जी को जान जायेगा.
:):)
शुक्रिया.इसे पढाने के लिए.
हँसता हूँ यहाँ पर मैं, तुम्हारे बिन ही महफिल में,
मेरी जाँ ये समझ ले तू, इसे व्यवहार कहते हैं
बहुत सटीक कविता
न जाने कौन सा बंधन, न जाने कैसे रिश्ते हैं
दर्द उस पार उठता है, आँसूं इस पार गिरते हैं
ये हैं अहसास के रिश्ते, इसे तुम नाम मत देना
जैसे फूल में खुशबू, ये हर इक दिल में रहते हैं.
बहुत उम्दा रचना.
ये लौकी और सेवफ़ल बडे सुंदर लग रहे हैं. इनका स्वाद भारतीय लैकी सेव जैसा ही होता है या कुछ अलग? यह एक सहज जिज्ञासा है.
jivan ka yatharth uker kar rakh diya apane.
ये लौकी और सेव? मुंह मे पानी आगया....
वाह!!!!! मेरे घर में सबकी हॉट फेवरेट सब्जी
''लौकी''. अच्छी लगीं तस्वीरें एपल फ्रिताता कब खिला रहे हैं??? बेकअप के बारे में मैं इतना जानती हूँ की पेन ड्राईव और एक्सटर्नल हार्ड ड्राईव इसमें ही स्टोर किया जाता है और मैं इस्तेमाल भी करती हूँ इसके आलावा नया कुछ हो तो उस पर जानकारी जरुर दीजियेगा इंतज़ार रहेगा
कविता लाजवाब है और जो अपने होते हैं उन्हें भूलना चाहो तो भी बहुत याद आते हैं
"भूलना चाहो तो बेशक भूल जाना पर तुझे मैं भूलता कैसे, तुझे हम यार कहते हैं."
बैकप पे खयाल आया क्या ज़िंदगी का भी बैकप लिया जा सकता है !!
achhi rachna.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.............
किस वायरस की शामत आई है..........
आप सब ठीक कर लेंगे.
शेष तो रचना अच्छी है ही हमेशा की तरह.....
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
किसकी बात करें-आपकी प्रस्तुति की या आपकी रचनाओं की। सब ही तो आनन्ददायक हैं।
आपका ब्लॉग ई-मेल से नहीं मिलता। सूचना आती है कि ई-मेल से मिलने की व्यवस्था लागू नहीं है। कुछ कीजिए।
बड़ी ही प्यारी रचना है !
मैं हूँ इस पार तू उस पार, मगर दिल साथ रहते हैं
हमारे देश में यारों, इसी को प्यार कहते हैं
बहुत सुंदर भाव भीनी प्रस्तुति ।
सेब और लौकी जोरदार । वायरस की भली कही जो इसकी चपेट मे आया बरबाद हो गया तो बैक अप जिन्दाबाद ।
न जाने कौन सा बंधन, न जाने कैसे रिश्ते हैं दर्द उस पार उठता है, आँसूं इस पार गिरते हैं ......
बहुत सुन्दर.....वास्तव में सच्चा प्यार ऐसा ही होता है.....आभार
bahut hi achhe
bahut achhi kavita hai aapki
deepti sharma
आदरणीय सर,इस रचना को यदि आप न प्रकाशित करते तो सचमुच यह पाठकों के साथ नाइंसाफ़ी होती। बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना---।
फ़ल सब्जियों के साथ इतनी शानदार रचना---पढ़ने का आनन्द बढ़ गया।
लौकियां और सेब दोनो बढिया हैं...
बैक अप कायम रहे....
कविता बेहतरीन है...
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ये हैं अहसास के रिश्ते, इसे तुम नाम मत देना
जैसे फूल में खुशबू, ये हर इक दिल में रहते हैं...
कुछ रिश्ते अनाम ही होते हैं...
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आप कैसे दोस्त हैं? मेरे रहते किस वायरस ने आपको तकलीफ पहुँचाई? ज़रा उसे मेरे पास भेजिये उसको दंड दिया जायेगा :)
कविता अच्छी लगी… आप बच्चे को फिर से बिगाड़ रहे हैं… आपकी कविता के भावों में बहकर इधर उधर फिर से झाँकना शुर उकर दिया तो?
खैर, आपके पेंडिग वाले काम कब तक पूरा होते है?
न जाने कौन सा बंधन, न जाने कैसे रिश्ते हैं
दर्द उस पार उठता है, आँसूं इस पार गिरते हैं
ये हैं अहसास के रिश्ते, इसे तुम नाम मत देना
जैसे फूल में खुशबू, ये हर इक दिल में रहते हैं.
क्या बात कहे समीर जी , लाजबाब ! बहुत सुन्दर, बेल से नई निकलती लौंकी कुछ कहते है !!!
ताज़ी सब्जियां वाह !
कविता तो सेंटी कर गयी.
बहुत अच्छी कविता!
बहुत सटीक प्रसंग बताया है ये तो होता ही है ... ..
मैं हूँ इस पार तू उस पार, मगर दिल साथ रहते हैं
हमारे देश में यारों, इसी को प्यार कहते हैं
मुझे तुम भूलना चाहो तो बेशक भूल जाना पर
तुझे मैं भूलता कैसे, तुझे हम यार कहते हैं.
जोरदार प्रस्तुति.... आभार
Bahut acha taje fal or sabjiyan khub khayi gayi yaani ki...saat men khubsurat kavita padhane ke liye thanks..
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