अक्सर दिल करता है मेरा चलूँ, बादलों के पार चलूँ चलूँ, उन पहाड़ों के पार चलूँ चलूँ, नदी की गहराई में चलूँ चलूँ, गली के उस मोड़ तक चलूँ -समीर लाल ’समीर’ |
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--ख्यालों की बेलगाम उड़ान...कभी लेख, कभी विचार, कभी वार्तालाप और कभी कविता के माध्यम से......
हाथ में लेकर कलम मैं हालेदिल कहता गया
काव्य का निर्झर उमड़ता आप ही बहता गया.
अक्सर दिल करता है मेरा चलूँ, बादलों के पार चलूँ चलूँ, उन पहाड़ों के पार चलूँ चलूँ, नदी की गहराई में चलूँ चलूँ, गली के उस मोड़ तक चलूँ -समीर लाल ’समीर’ |
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दूसरों की गलतियों से सीखें। आप इतने दिन नहीं जी सकते कि आप खुद इतनी गलतियां कर सके।
-अमिताभ बच्चन के ब्लॉग से
और क्या इस से ज्यादा कोई नर्मी बरतूं
दिल के जख्मों को छुआ है तेरे गालों की तरह
-जाँ निसार अख्तर
अधूरे सच का बरगद हूँ, किसी को ज्ञान क्या दूँगा
मगर मुद्दत से इक गौतम मेरे साये में बैठा है
-शायर अज्ञात
Compelling content causes comments.
106 टिप्पणियां:
चाँद से आप का नया रिश्ता मालूम हुआ सुंदर रचना बहुत बहुत वधाई
very beautiful :-)
चाँद भी बड़ा बदमाश है... कभी पानी में अठखेलियाँ करता है तो कभी प्रियतमा के चेहरे में नज़र आता है...जाने कितने रूप हैं उसके| बहुत सुन्दर कविता|
ब्रह्माण्ड
"एक भौरा भी छुपा है गुलाब मे "
बहुत कुछ कह्ती अच्छी कविता समीर जी !
आपका चाँद बहुत खूबसूरत है सर!
--
कल्पना की इस उड़ान पर
हम तो बस रीझकर ही रह गये!
एक चांद
उस रात झील में देखा था उसे चलूं,
गली के उस मोड़ तक चलूं देखूं,
उस कोने वाले मकान को
जहां रहती हो तुम…
और साथ दिखती है
चांद की परछाई…
वाह क्या बात है समीर जी !
तहत में बहुत शानदार पढ़ा है ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार
उम्दा । कल्पनाओं के सुन्दर पंख । आमीन्।
एक स्वप्नदृषा हृदय की कविता है ये तो. सुंदर.
देखूँ, कहाँ रहता है वो चाँद
जो झाँकता है अपनी खिड़की से
मेरी खिड़की में सारी रात
bahut sunder
समीर बाबू,
आज त कमाल चाँद लगा रखे हैं चारो तरफ..गुलज़ार साहब का कलाम याद आ गयाः
चाँद होगा, ज़मीं की बात करो
हमसे उस महजबीं की बात करो.
बात तुमपर ही ख़त्म होती है,
हमसे चाहे कहीं की बात करो.
बहुत सुंदर!!
श्रृंगार रस जिंदाबाद !
बहुत ही सुंदर रचना... अंतिम पंक्तियों ने तो मन मोह लिया....
बहुत ही सुंदर रचना... अंतिम पंक्तियों ने तो मन मोह लिया....
चकोर की अभिलाषा --अति सुन्दर ।
बगीचे के गुलाब --इनमे खुशबू है की नहीं ?
गली के मोड़ पर हम तो चाँद ही देखते रहे, चाँद की परछाईं तो साँवली होती है।
bahut rumani rachanawo chand,ye gulab behad sunder.
देखूँ, कहाँ रहता है वो चाँद
जो झाँकता है अपनी खिड़की से
मेरी खिड़की में सारी रात
मन को छु गयी ये पंक्तियाँ बेहद ही खुबसूरत..
regards
बादल-पर्वत झाँक लिए फिर उनकी खिड़की याद आई!
नाप के झील की गहराई फिर उनकी खिड़की याद आई!
भौंरा फूलो को ढूंदे ज्यूँ बगियाँ-बगियाँ भटक लिए!
चाँद तो नुक्कड़ ही पर निकला, उनकी खिड़की याद आई!!
चार चांद लग गए।
aapka chand bada khubsurat hai...:)
vaah sir ji...aap itna acha likhte hai ki kya kahe...sir ji aapke chad ko mera salam...(to sir ji india kab aa rahe hai?)
vaah sir ji...aap itna acha likhte hai ki kya kahe...sir ji aapke chad ko mera salam...(to sir ji india kab aa rahe hai?)
बहुत ही सुन्दर रचना ! उतना ही सुन्दर वाचन । जय हो बड्डे।
चलूँ, उन पहाड़ों के पार चलूँ
देखूँ, कहाँ से आता है सूरज
जिसे देख मेरा चाँद
छुप जाता है
जाने किस परदे की ओट में ..
वाह क्या बात है! बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ! शानदार और लाजवाब रचना!
शिक्षक दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
देखूँ, कहाँ रहता है वो चाँद
जो झाँकता है अपनी खिड़की से
मेरी खिड़की में सारी रात
अत्यंत सुन्दर और भावपूर्ण ! जिस विधा में लिखें आप अपनी छाप छोड़ जाते हैं.
भावपूर्ण कविता ,वाचन भी सुन्दर !
हाँ समीर जी,
बहुत लम्बी चटाई है
आओ बैठो !
आपके लिए ही बिछाई है हा हा हा हा
________________ये टिप्पणी मैंने गिरीश बिल्लोरे जी के ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी के जवाब में लिखी थी, परन्तु वहां पेस्ट नहीं हो रही थी, इसलिए यहाँचिपकादी.............
बहरहाल आज बहुत दिनों बड़े आपको पढ़ने का सौभाग्य मिला ......आनन्द आगया
वाह वाह बहुत सुन्दर और प्यारी कविता !
सुन्दर रचना.
behatarin !
चलूँ
देखूँ, उस कोने वाले मकान को
जहाँ रहती हो तुम..
और साथ दिखती है
चाँद की परछाई... -समीर लाल ’समीर’ यहाँ सुनिये:
बहुत सुन्दर कविता.
समीर भाई वो चाँद सूरज ताका-झाँकी वाले हमारे ही देश में मिलेगें जी। कनाडा में तो मिलने वाले हैं नही। तो बस आकर ही मिल लेना...:)
superb !
आज तो बहुत बढ़िया कल्पना सजा दी है.... चाँद
झील में और सूरज से चाँद का छिपना ...बहुत सुन्दर
ye khwaahishen kitni masoom hain
आज तो श्रृंगार रस में रची बसी है कविता :) बहुत सुन्दर.
वाह! ....बड़ी भावभीनी रचना है...
चलें चाँद के पार चलें
ज़िंदगी ख़त्म भी हो जाये अगर
न कभी ख़त्म हो उल्फ़त का सफ़र
चलें चाँद के पार चलें
समीर भाई ... ये रोमेंटिक अंदाज़ बहुत मस्त है ..... मज़बूत ....
भाभी को प्रणाम ...
sunder kavita..
... bahut sundar !!!
"चलूँ, बादलों के पार चलूँ"
चलो दिलदार चलो, हम है तैयार चलो :)
चलूँ, गली के उस मोड़ तक चलूँ
देखूँ, उस कोने वाले मकान को
जहाँ रहती हो तुम..
और साथ दिखती है
चाँद की परछाई...
आपकी भाषिक संवेदना हमें आपकी आत्मीय दुनिया की सैर करा गई!
गीली मिट्टी पर पैरों के निशान!!, “मनोज” पर, ... देखिए ...ना!
चलूँ, गली के उस मोड़ तक चलूँ
देखूँ, उस कोने वाले मकान को
जहाँ रहती हो तुम..
और साथ दिखती है
चाँद की परछाई..
बहुत खूब ..अलग अंदाज़ दिखा आपके लिखे का इस में ....बहुत बढ़िया
arey waah! behad khubsurat chaand ki tarah.
bahut sunder kavita...........
देखूँ, कहाँ रहता है वो चाँद
जो झाँकता है अपनी खिड़की से
मेरी खिड़की में सारी रात
पिछली पोस्ट की तरह फिर किसी नई खोज पर निकले हैं क्या ?पिछली बार यारों बुला लिया इस बार चाँद बुला लिया
चाँद की परछाई ...
अच्छी रचना !
" चलूँ, नदी की गहराई में चलूँ
मिलूँ, उन मछलियों से
जिनके साथ भी रहता है
एक चाँद
उस रात झील में देखा था उसे"
समीर जी आपकी कविता को पढ़ने में जितना आनंद आया उतना ही सुनने में भी ! अब तो अक्सर आता रहूँगा ! धन्यवाद मेरे ब्लॉग को अपने कॉमेंट्स से सुसज्जित करने के लिए !
बहुत बढ़िया रचना हमेशा की तरह ...
चलूँ, गली के उस मोड़ तक चलूँ
देखूँ, उस कोने वाले मकान को
जहाँ रहती हो तुम..
और साथ दिखती है
चाँद की परछाई..
आजकल क्या बात है? फ़िजा बदली बदली सी लगती है? शृंगार रस का शौक कुछ जियादा ही ठाठे मार रहा है आजकल. खुदा खैर करे.:)
रामराम.
चाँद की परछाईं शीर्षक होना था ना... :) भंवरा नहीं दिखा मुझे पर कुछ है तो सफ़ेद सा..
बहुत सुन्दर कविता ...
Kya gazab ki rachna hai!
Sarw shreshth blogger hone ke liye dheron badhayi!
बहुत खूबसूरत है :) :)
बहुत सुन्दर
खूबसूरत पोस्ट लगी जी।
गोदियाल जी का कमेंट भी ध्यान खींच गया।
very good.
बहुत सुन्दर... चाँद हर प्रेम कहानी का हिस्सा ज़रूर होता है :)
बेहद सुंदर ...
कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया,
और कुछ तल्खी-ए-हालात ने दिल तोड़ दिया,
हम तो समझे थे के बरसात में बरसेगी शराब,
आई तो बरसात, बरसात ने दिल तोड़ दिया...
जय हिंद...
देखूँ, उस कोने वाले मकान को
जहाँ रहती हो तुम..
और साथ दिखती है
चाँद की परछाई...
पूरी की पूरी कविता बहुत ही खूबसूरत बन पड़ी है लेकिन ये अंतिम lines तो सचमुच दिल ले गयीं ,बहुत बढ़िया
महक
देखूँ, उस कोने वाले मकान को
जहाँ रहती हो तुम..
और साथ दिखती है
चाँद की परछाई...
kya baat hae,samiir ji. khuubsuurat rachana
bahut badiya samir ji... bahut bahut badhai ho is sundar rachana ke liye...
बहुत बढिया कविता है समीर भाई
हिन्दी सेवा जारी रहे।
आभार
चलूँ, गली के उस मोड़ तक चलूँ
देखूँ, उस कोने वाले मकान को
जहाँ रहती हो तुम..
और साथ दिखती है
चाँद की परछाई...
कौनो एड्रेस-उड्रेस बता देते ...पड़ोसन का ...
हाँ नहीं तो..!!
बहुत सुन्दर कविता...!
बहुत ही सुंदर रचना..........
बढ़िया कल्पना !!!!
चाँद की तलाश का यह अभियान बहुत अच्छा लगा समीर जी ! बहुत खूबसूरत रचना है ! बधाई एवम शुभकामनाएं !
चांद से मिलने की ख्वाहिश आपकी जरूर पूरी हो...साथ ही
आपके मार्ग-दर्शन के लिए शुक्रिया सर जी
बहुत अच्छी कविता। बिम्बों का उत्तम प्रयोग!
हिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।
हिंदी और अर्थव्यवस्था
, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
बाल-हृदय की जिज्ञासावृत्ति से सराबोर युवा-मन प्रेम का सत्त्व ऐसे ही तलाशता है।
चलूँ, बादलों के पार चलूँ
देखूँ, कहाँ रहता है वो चाँद
जो झाँकता है अपनी खिड़की से
मेरी खिड़की में सारी रात
बहुत ही बेहतरीन रचना........ बहुत खूब!
बहुत अच्छी कविता।
खूबसूरत लिखा है .आप की चाह आकाश से कोने वाले मकान तक खूब पहुची.आनंद आगया.पर साथ ही ग़ालिब साब का शेर भी याद आरहा है
हज़ारों खाहिशें ऐसी के हर खाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमा फिर भी कम निकले
चलूँ, नदी की गहराई में चलूँ
मिलूँ, उन मछलियों से
जिनके साथ भी रहता है
एक चाँद
उस रात झील में देखा था उसे.....vaah...aap bhi chand ke aashik hain.
पहले उस कोने वाले मकान में ही चले जाइये न । अल्लाह ने चाहा तो चाँद, तारे, समन्दर सब वहीं नसीब हो जाएंगे ।
नए रिश्ते में बंधी रचना....आप भी चाँद से मरासिम हैं मालूम न था...अच्छी कविता के लिए आभार
bahut bahut badhai...sunder abhivyakti :)
http://liberalflorence.blogspot.com/
आदरणीय भाई जी, प्रणाम. चाँद हमारी भाभी जी हैं. है ना भाई जी? हमने सही कहा ना? :)
गुस्ताखी के लिए माफ़ी :)
आपकी भावनाओं और कल्पनाओं का स्वरुप इस रचना में देखने को मिला.
साथ ही प्राय: सभी ब्लॉगों में आपकी नि:स्वार्थ टिप्पणियाँ दिखाई दे जाती हैं इसके लिए भी आप बधाई के पात्र हैं.
प्रणाम
रोशनी
उस रात झील में देखा था उसे चलूँ, गली के उस मोड़ तक चलूँ
देखूँ, उस कोने वाले मकान को
जहाँ रहती हो तुम..
और साथ दिखती है
चाँद की परछाई...
.....sundar masoom ahsas...
जहाँ रहती हो तुम..
और साथ दिखती है
चाँद की परछाई...
वाह ! बहुत मोहक अंदाज़ ...
आपकी आवाज़ में रचना को सुनाने के अनुभव बहुत अच्छा रहा ....आभार !
देखूँ, कहाँ रहता है वो चाँद
जो झाँकता है अपनी खिड़की से
मेरी खिड़की में सारी रात
...खूबसूरत ...बेहद खूबसूरत ...
बैशाखनंदन सम्मान के लिए ढेरों बधाई|
ब्रह्माण्ड
इ लीजिये ...हम तो बुझे थे कि चाँद आपके घर में ही है ...
ये तो कोई और खिड़की से झाँक रहा है ...
अदा का सवाल मेरा भी है ...:)
मन तो मेरा भी करता है ..पर !
बहुत दिन से बात नहीं हुई ..किसी दिन फोन पर बात करते हैं ..
Udan tastri ji... chaand kaa jikr bakhubi kiya ..chaliye usi bahane nukkad vale makan tak walking....kavita bahut sundar hai.laajwaab
is naacheej ko bhi apne saath le chalna...
इस कविता में,प्रेयसी के संदर्भ के बावजूद,सर्वत्र प्रकृति के प्रति आकर्षण ही बिखरा पड़ा है। आज की ज़रूरत भी,कवि के लिए अनुकूल भी।
बहुत अच्छी कविता।
चंचल मन की अभिलाशायें ज़िन्दगी भर पूरी नही होती कुछ न कुछ चाहता ही रहता है। कल्पनाओं के पंख नही होते न इस लिये हो आयें चाँद पर मगर वहाँ ठोस चट्टानो के कुछ नही मिलेगा। बहुत अच्छी लगी रचना । बधाई और शुभकामनायें
अच्छी रचना.
Waah!!! Bahut Hi sundar Rachna.
अच्छा लेखन ,बधाई ।
hmmm..mujhe lgtaa thaa..ye chaand sirf meraa hi he.:).....pr..dhere dhere jaan rhi hun...isne sabpe apnaa jaadu chlaa rkhaa he.....
hmm..thodi si jalan hui..chaand pe itni achaa rchnaa maine kyun nhi likhi.....bahut hii khoobsurat rchnaa
take care
sameer sahab
kalpana ki bahoot achchhi udan....
very nice
लगता है आज चाँदद का ही दिन है, जिसे आप निहार रहे हैं हर जगह , बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
sir..jab aksar dil kare..to dil ki aksar kar leni chahiye :)....ek pari katha si parikalpna..bahut sundar :)
aap mere blog par aaie
aapka bahut bahut dhanyvad
aapko ganesh charturthi ki puri report di jaiegi.
aap aise hi margdarshan karte rahen.
again thanx
sudhir kumar sharma
www.brahminpatrika.tk
बहुत सुंदर विचार हैं आपके ...
इंसान जो सोचे,
गर वो हो जाए.
कहने की ज़रूरत नहीं ,
मज़ा आ जाए.
बहुत ही उम्दा रचना ....
अक्सर दिल करता है मेरा चलूँ, बादलों के पार चलूँ
देखूँ, कहाँ रहता है वो चाँद
जो झाँकता है अपनी खिड़की से
मेरी खिड़की में सारी रात चलूँ, उन पहाड़ों के पार चलूँ
ये पंक्तियाँ इतनी अच्छी हैं ,
कि बार -बार पढ़ने को मन करता है .
जानता कि हूँ ये नामुमकिन है,
फिर भी पक्षी बन उड़ने को मन करता है .
उस रात झील में देखा था उसे चलूं,
गली के उस मोड़ तक चलूं देखूं,
उस कोने वाले मकान को
जहां रहती हो तुम…
और साथ दिखती है
चांद की परछाई…
उम्दा । कल्पनाओं के सुन्दर पंख
चलूँ, नदी की गहराई में चलूँ
मिलूँ, उन मछलियों से
जिनके साथ भी रहता है
एक चाँद
उस रात झील में देखा था उसे
Adarneey Sir,
Bahut samvedanatmak aur bhavpoorn rachna---apka prakriti ke prati prem pradarshit kartee huyi.
Poonam
बेहतर...बेहतर...बेहतरीन लिखा है आपने।
कनाडा में भी धड़कता है हिंदुस्तानी दिल,
छोटी सी कविता मेरी भी ....आपके जवाब के इंतजार में।
यादें जब भी आती हैं, तेरी
दिल भर जाता है जज्बातों से
सागर से भी गहरी तेरी आंखें
पहाड़ से भी ऊंचे तेरे सपने
खुशबू सा तेरा अहसास
जो रहे मेरे आस-पास
आदित्य वर्मा
बेहतर...बेहतर...बेहतरीन लिखा है आपने।
कनाडा में भी धड़कता है हिंदुस्तानी दिल,
छोटी सी कविता मेरी भी ....आपके जवाब के इंतजार में।
यादें जब भी आती हैं, तेरी
दिल भर जाता है जज्बातों से
सागर से भी गहरी तेरी आंखें
पहाड़ से भी ऊंचे तेरे सपने
खुशबू सा तेरा अहसास
जो रहे मेरे आस-पास
आदित्य वर्मा
बेहतर...बेहतर...बेहतरीन लिखा है आपने।
कनाडा में भी धड़कता है हिंदुस्तानी दिल,
छोटी सी कविता मेरी भी ....आपके जवाब के इंतजार में।
यादें जब भी आती हैं, तेरी
दिल भर जाता है जज्बातों से
सागर से भी गहरी तेरी आंखें
पहाड़ से भी ऊंचे तेरे सपने
खुशबू सा तेरा अहसास
जो रहे मेरे आस-पास
आदित्य वर्मा
बिलकुल चाँद जैसी सुन्दर रचना !
शब्द सामर्थ्य इसे कहते हैं.
सुंदर अभिव्यक्ति.
और जब यह तेरी नजरें ...
ठहरतीं हैं
मेरे चेहरे पर ठिठक के
- विजय तिवारी
शब्द सामर्थ्य इसे कहते हैं.
सुंदर अभिव्यक्ति.
और जब यह तेरी नजरें ...
ठहरतीं हैं
मेरे चेहरे पर ठिठक के
- विजय तिवारी
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